क्या एक अनुबंध के लिए प्रतिफल आवश्यक है

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5086
Indian Contract Act

यह लेख के.एस. साकेत पी.जी. कॉलेज, अयोध्या के छात्र Abhay Kumar Pandey, और सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नोएडा की छात्रा Anindita Deb के द्वारा लिखा गया है। यह लेख भारतीय अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) अधिनियम के तहत, प्रतिफल (कंसीडरेशन) की अवधारणा पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

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परिचय

ऐसी दुनिया में जहां निगम (कॉर्पोरेशन) बढ़ रहे हैं, कोई भी व्यक्ति अनुबंध की अवधारणा और कॉर्पोरेट क्षेत्र में उनकी भूमिका के सार को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। अब आप यहां पूछ सकते है की एक अनुबंध क्या होता है? ठीक है, तो इसको एक दम सरल शब्दों में परिभाषित करते हुए यह कहा जा सकता है की एक अनुबंध एक ऐसा वादा है जिसे कानून द्वारा लागू किया जा सकता है। यह एक प्रस्ताव (प्रपोजल) है, जिसे स्वीकार करने पर, वह एक वादा बन जाता है। प्रस्ताव देने वाले को वचनकर्ता (प्रोमिसर) कहा जाता है, और जो इसे स्वीकार करता है उसे वचनदाता (प्रोमिसी) कहा जाता है। इसके अर्थ को गहराई से जानने के लिए, यह जानना ज़रूरी है की भारत में अनुबंधों का कानून भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के द्वारा शासित होता है । इस अधिनियम की धारा 2 (h) के तहत एक अनुबंध को “कानून द्वारा लागू करने योग्य समझौते” के रूप में परिभाषित किया गया है। एक अनुबंध को “प्रतिफल के साथ वादा” भी कहा जा सकता है। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2, भारतीय अनुबंध अधिनियम की व्याख्या खंड (इंटरप्रिटेशन क्लॉज) है और इसके तहत एक अनुबंध की अनिवार्यताओं को सूचीबद्ध और इसे संपूर्ण और मूल रूप से परिभाषित किया गया है। अनुबंध का ऐसा ही एक अनिवार्य तत्व है ‘प्रतिफल’। इस शब्द को धारा 2 (d) के तहत, वचनदाता के कहने पर कुछ करने या ऐसा करने का वादा करने की इच्छा या करने से मना करने के रूप में परिभाषित किया गया है। इस अवधारणा के बारे में अधिक जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ते रहें।

प्रतिफल

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2(d) के तहत प्रतिफल शब्द को निम्नानुसार परिभाषित किया गया है-

जब वचनकर्ता, वचनदाता या किसी अन्य व्यक्ति की इच्छा पर

  • कुछ करता है, या कुछ करने से मना करता है;

                      या

  • कुछ करने, या कुछ करने से मना करने का वादा करता है;

तब ऐसे कार्य, मना करने को या वचन को प्रतिफल के रूप में माना जाता है।

संक्षेप में, प्रतिफल शब्द का अर्थ ‘बदले में कुछ’ यानी ‘क्विड प्रो क्यू’ है।

  • पोलक- “वह कीमत, जिसके लिए दूसरे का वादा खरीदा जाता है, और इसलिए किसी मूल्य के लिए दिया गया वादा लागू करने योग्य होता है”।
  • ब्लैकस्टोन- “दूसरे पक्ष को अनुबंध करने वाले पक्ष द्वारा दिया गया मुआवजा।”

करी बनाम मीसा  के मामले में, न्यायाधीश लश ने प्रतिफल शब्द को निम्नानुसार परिभाषित किया था-

“एक मूल्यवान प्रतिफल में, कानून के अर्थ में, या तो कुछ अधिकार, हित, लाभ या पक्ष को प्राप्त होने वाले लाभ, या किसी अन्य पक्ष द्वारा दी जाने वाली सहनशीलता, हानि, क्षति या जिम्मेदारी” शामिल हो सकती है।

उदाहरण- A अपनी कार B को 50,000 रुपये में बेचने के लिए सहमत होता है। यहां, B द्वारा 50,000 रुपये की राशि का भुगतान करने का वादा कार बेचने के A के वादे के लिए एक प्रतिफल है, और कार बेचने का A का वादा, B के वादे के लिए 50,000 रुपये का भुगतान करने का प्रतिफल है।

फिशर बनाम ब्रिज के मामले में, प्रतिवादी वादी से जमीन खरीदने के लिए सहमत हो गया। प्रतिवादी के अनुसार, विलेख (डीड) बनाने से पहले, जो एक बंधक (मॉर्गेज) के अधीन थी, वादी को यह पता था कि क़ानून के विपरीत, भूमि को अवैध तरीके से या तो लॉटरी के माध्यम से बिक्री या फिर बिक्री के लिए उजागर किया जाएगा। खरीद राशि का एक हिस्सा प्रतिवादी द्वारा भुगतान नहीं किया गया था और प्रतिवादी ने भुगतान के लिए एक अनुबंध किया था। वादी ने इस अनुबंध के आधार पर भुगतान के लिए वाद (सूट) दायर किया। यह पाया गया था कि प्रतिवादी द्वारा, अनुबंध स्पष्ट रूप से इसलिए दिया गया था की वह भूमि के लिए खरीद राशि या प्रतिफल राशि के एक हिस्से के भुगतान को सुरक्षित कर सके और यह उस समझौते के आधीन था। तदनुसार, इसे एक ऋण के भुगतान के लिए सुरक्षा के रूप में दिया गया था जो कि अवैधता से दूषित था। इसलिए, कानून ऋण के भुगतान को लागू नहीं करता, इसलिए यह अनुबंध निहित सुरक्षा के भुगतान को लागू नहीं करेगा क्योंकि यह एक अंतर्निहित (इन्हेरेंट) अवैध समझौते से उत्पन्न हुआ था।

प्रतिफल के आवश्यक तत्व

कानून की नजर में एक वैध प्रतिफल माने जाने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि एक प्रतिफल कुछ आवश्यक तत्वों को पूरा करे। इन आवश्यक तत्वों को नीचे समझाया गया है।

वचनकर्ता के कहने पर प्रतिफल दिया जाना चाहिए

कोई भी कार्य या किसी कार्य से मना केवल तभी किया जाना चाहिए जब वचनकर्ता की इच्छा हो। यदि कार्य वचनकर्ता के अनुरोध या इच्छा के बिना किया जाता है, या यदि यह किसी तीसरे पक्ष के कहने पर किया जाता है, तो प्रतिफल मान्य नहीं होगा।

आइए एक सरल उदाहरण पर विचार करते है- यदि आप अपने मित्र को उसके बिना पूछे उसके स्कूल के कार्य में मदद करते हैं, और फिर बाद में आप उससे उसी के लिए आपको एक निश्चित राशि का भुगतान करने के लिए कहते हैं, तो यह एक वैध प्रतिफल नहीं होगा क्योंकि आपने स्वेच्छा से उसके स्कूल के कार्य में उसकी मदद करने का निर्णय लिया था।

दुर्गा प्रसाद बनाम बलदेव (1879) के मामले में, दुर्गा प्रसाद ने कलेक्टर के आदेश के बाद अपने खर्च पर कुछ दुकानें बनाने का फैसला किया था। इन दुकानों पर कब्जा करने वाले लोगों ने दुर्गा प्रसाद को उनकी बिक्री से कमीशन देने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने वादा पूरा नहीं किया था। दुर्गा प्रसाद ने दुकानदारों पर मुकदमा कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के द्वारा प्रतिफल को अमान्य माना गया था क्योंकि उसने कलेक्टर के आदेश पर दुकानें बनाई थीं, न कि दुकानदारों के कहने पर। अदालत ने वादी के दावों को खारिज कर दिया और साथ ही मामले को भी खारिज कर दिया। यह इस तथ्य के आधार पर किया गया था कि इस मामले में कोई प्रमुख और मान्यता प्राप्त प्रतिफल शामिल नहीं था और इसलिए भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2 (d) अनुबंध को, एक अनुबंध के रूप में मान्यता देने से खारिज करती है। इस अधिनियम की धारा 25 के अनुसार, प्रतिफल की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप अनुबंध को एक शून्य (वॉइड) अनुबंध करार दिया गया था। न्यायाधीशों द्वारा यह भी निर्णय लिया गया था कि चूंकि अधिनियम अनुबंध के लिए एक आवश्यक तत्व के रूप में प्रतिफल के महत्व को निर्दिष्ट करता है, इसलिए अपील का कोई मौका नहीं है, और इसे अदालत के द्वारा खारिज कर दिया गया था।

हालांकि, यहां पर यह देखना महत्वपूर्ण है कि यह अनिवार्य नहीं है कि वचनकर्ता को उस कार्य या कार्य करने से मना करने से लाभ उठाना है; केवल यह आवश्यक है कि यह उसकी इच्छा पर किया जाए। यह केदारनाथ भट्टाचार्जी बनाम गोरी महोमेद (1886) के मामले में आयोजित किया गया था।

वचनदाता या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से प्रतिफल दिया जा सकता है

एक अन्य आवश्यक तत्व यह है कि किसी कार्य को करना या कार्य से मना करना, जो एक अनुबंध के लिए प्रतिफल का गठन करता है, वचनदाता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि, जब तक किसी वादे पर प्रतिफल दिया जाता है, तब तक यह कोई मायने नहीं रखता कि वह प्रतिफल किसने दिया है। यदि वचनकर्ता इस पर आपत्ति नहीं करता है, तो प्रतिफल वचनदाता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा भी दिया जा सकता है।

यह सिद्धांत चिन्नया बनाम रामय्या, आई.एल.आर. (1876-82) 4 मद 137 के मामले में आयोजित किया गया था, जिसमें A ने अपनी बेटी को कुछ संपत्ति उपहार विलेख के माध्यम से इस निर्देश के साथ हस्तांतरित (ट्रांसफर) की कि बेटी अपने भाई को वार्षिकी (एन्नूटी) देगी। उसकी बेटी वार्षिकी का भुगतान करने के लिए सहमत हो गई और उसी दिन उसने अपने भाई के पक्ष में एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए। उसके बाद, बेटी ने अपनी बात नहीं रखने का फैसला किया और उसके भाई ने अपना पैसा वापस पाने के लिए न्यायालय के समक्ष एक मुकदमा दायर कर दिया। प्रतिवादी (बहन) ने तर्क दिया कि भाई की ओर से कोई प्रतिफल नहीं तय किया गया था और वह प्रतिफल के पक्ष नहीं था, इसलिए उसके पास मुकदमा दायर करने के लिए कारण की कमी थी। फैसला सुनाया गया था कि व्यक्तिगत रूप से वचनदाता से प्रतिफल को स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए उसके भाई को मुकदमा जारी रखने की अनुमति दी गई थी।

हालाँकि, अंग्रेजी कानून के तहत, यह सिद्धांत लागू नहीं होता है।

प्रतिफल भूत (पास्ट), वर्तमान या भविष्य मे हो सकता है

एक अनुबंध पर प्रतिफल, एक कार्य करने या कोई कार्य करने से मना करने जो पहले से ही वचनकर्ता की इच्छा पर किया जा चुका है, या फिर प्रगति पर है या उस कार्य को भविष्य में करने का वादा किया गया है, के द्वारा हो सकता है। इस आधार पर, प्रतिफल को भूत, वर्तमान या भविष्य के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

भूत पूर्व प्रतिफल

पहले किए गए स्वैच्छिक कार्रवाई के लिए एक वादा जो पक्ष को भुगतान करने या बाद में कुछ करने का वादा करने में सक्षम बनाता है, उसे ‘भूत पूर्व प्रतिफल’ के रूप में जाना जाता है। यह इंगित करता है कि दूसरे पक्ष से किसी भी वादे के बिना किए गए कार्य के बदले भविष्य में भुगतान का वादा किया गया है। जब वचनकर्ता को अतीत में मिले लाभ के कारण वादा किया जाता है, जिससे क्षतिपूर्ति (रेस्टिट्यूशन) करने की आवश्यकता होती है, तो यह कहा जाता है कि वादा भूत पूर्व प्रतिफल के लिए किया गया था। आज से पहले, कोई प्रतिफल नहीं किया गया था; फिर भी, अब एक अच्छा और वैध प्रतिफल है।

उदाहरण के लिए, आप अपने पड़ोसी की बालकनी को रंगने में मदद करते हैं और उसके बदले में किसी चीज की अपेक्षा नहीं करते हैं। लेकिन वह पड़ोसी आपके द्वारा किए गए कार्य के लिए 1000 रुपये देता है। आपको क्षतिपूर्ति करने की उनकी प्रेरणा, आपके द्वारा उनको पूर्व में प्रदान की गई सहायता से आती है। इसे भूत पूर्व प्रतिफल के रूप में जाना जाता है।

भूत पूर्व स्वैच्छिक सेवा

इस अवधारणा को धारा 25(2) के तहत शामिल किया गया है, जो यह प्रदान करती है कि किसी ऐसे व्यक्ति को पूर्ण या आंशिक रूप से मुआवजा देने का वादा, जो पहले से ही स्वेच्छा से वचनकर्ता के लिए कुछ कर चुका है, एक वैध और लागू करने योग्य प्रतिफल है। एक स्वैच्छिक सेवा, एक ऐसी सेवा या कार्य है जो बिना किसी अनुरोध या वादे के की गई थी, लेकिन बाद में उस कार्य के लिए भुगतान करने का वादा किया गया था।

उदाहरण के लिए- एक व्यक्ति, किसी आदमी को डूबने से बचाता है, और बाद में आदमी उसे बचाने वाले को इनाम देने का फैसला करता है।

अनुरोध पर भूत पूर्व सेवा

इस अवधारणा को अधिनियम द्वारा पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है। यह इस तथ्य के कारण है कि जब अनुरोध किया जाता है, तो यह किए गए कार्य के लिए भुगतान का वादा करता है। यह अनुरोध पर किए गए किसी ऐसे कार्य पर लागू नहीं हो सकता है जो भुगतान करने के किसी भी वादे के बिना था। लेकिन इस अवधारणा में एक ऐसा कार्य शामिल हो सकता है जो अनुरोध पर किया गया था, और जहां भुगतान करने का वादा बाद में किया गया था। बंबई उच्च न्यायालय के द्वारा सिंध श्री गणपति सिंहजी बनाम अब्राहम आई.एल.आर. (1896) 20 बॉम 755 के मामले में इस सिद्धांत को बरकरार रखा गया था क्योंकि यह निर्धारित करता है कि एक नाबालिग को उसके अनुरोध पर प्रदान की जाने वाली सेवाएं और जो उसकी वयस्कता (मेजॉरिटी) की उम्र के बाद भी जारी रहेंगी, भुगतान करने के उनके वादे के लिए अच्छा प्रतिफल थी।

वर्तमान या निष्पादित (एग्जिक्यूटेड) प्रतिफल

इस प्रकार का प्रतिफल, प्रतिफल के साथ-साथ चलता है। एक कार्य जो पहले ही वादे के जवाब में किया जा चुका है, वह ‘निष्पादित प्रतिफल’ कहलाता है। लोग अक्सर भूत पूर्व प्रतिफल को निष्पादित प्रतिफल के साथ भ्रमित करते हैं। लेकिन वास्तव में, ये दोनो एक दूसरे से बहुत अलग हैं। भूत पूर्व प्रतिफल में हमेशा, किसी वादे के बिना किया गया कार्य होता है। लेकिन निष्पादित प्रतिफल का अर्थ एक ऐसा कार्य है जो एक सकारात्मक वादे के जवाब में किया गया हो।

उदाहरण के लिए, खोई हुई वस्तुओं को खोजने के लिए पुरस्कारों के प्रस्तावों को केवल मालिक को वस्तु खोजने और प्रस्तुत करने के द्वारा ही स्वीकार किया जा सकता है, और यह एक वादे के लिए भी एक प्रतिफल है।

भविष्य या कार्यकारी (एग्जिक्यूटरी) प्रतिफल

कार्यकारी प्रतिफल, जिसे भविष्य के प्रतिफल के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसे वादे को संदर्भित करता है जिसे बाद में पूरा किया जाएगा। यह भविष्य का प्रतिफल होता है क्योंकि वचनकर्ता बाद की तारीख के लिए एक प्रस्ताव देता है, और वचनदाता उस तारीख के बाद अनुबंध को स्वीकार करने और उसे निष्पादित करने का वादा करता है। प्रत्येक वादा, इस विशेष मामले में, दूसरे के लिए एक प्रतिफल होता है। इस उदाहरण में, दोनों पक्षों ने प्रतिफल के भुगतान को स्थगित कर दिया है। लेकिन बाद की तारीख में, दोनों पक्ष अपने दायित्व को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।

उदाहरण के लिए, X कुछ वस्तुओं को Y को एक निश्चित कीमत पर बेचने का वादा करता है। बदले में, Y माल के लिए X को भुगतान करने का वादा करता है। यह भविष्य के प्रतिफल का एक उदाहरण है।

प्रतिफल कुछ मूल्य के लिए होना चाहिए

मान लीजिए कि आप अपने दोस्त से वादा करते हैं कि आप उसे अपने नए एयरपॉड देंगे यदि वह जाता है और उन्हें आपके बैग से लाता है, जो उस कक्षा में रखा है जो दो मंजिल ऊपर है। लेकिन यह कार्य, किसी भी परिस्थिति में, वादे के लिए वैध प्रतिफल के रूप में योग्य नहीं होगा। इस तरह का कार्य निस्संदेह परिभाषा के शब्दों को संतुष्ट करता है, लेकिन यह इसकी भावना को स्पष्ट नहीं करता है। यही कारण है कि इस बात पर जोर दिया जाता है कि कानून की नजर में प्रतिफल का कुछ मूल्य होना चाहिए। चिदंबरा अय्यर बनाम पीएस रेंगा अय्यर (1966) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि प्रतिफल ” ‘कुछ’ होना चाहिए, जिसे न केवल पक्ष मानते हैं बल्कि कानून भी कुछ मूल्य के रूप में मान सकता है।” 

प्रतिफल के मूल्य की पर्याप्तता

हमने स्थापित किया है कि प्रतिफल कुछ मूल्य का होना चाहिए। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि, यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिफल वादे के लिए पर्याप्त हो। अदालतें यह निर्धारित करने के लिए अपना कोई कर्तव्य नहीं मान सकतीं कि पक्षों के लिए उचित प्रतिफल क्या होगा, पक्षों को यह आपस में तय करना होगा। यदि किसी पक्ष को वह मिलता है जिसके लिए उसने अनुबंध किया है, चाहे वह कितना भी बड़ा या छोटा मूल्य का क्यों न हो, अदालतें इसकी पर्याप्तता की जांच नहीं करती हैं। प्रतिफल की पर्याप्तता एक ऐसी चीज है जो पक्षों को अनुबंध में प्रवेश करते समय तय करनी होती है, न कि अदालत द्वारा जब इसे लागू करने की मांग की जाती है।

आरोपण (इंपोजिशन) के सबूत के रूप में अपर्याप्तता

भले ही प्रतिफल की पर्याप्तता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, लेकिन अदालत द्वारा प्रतिफल की अपर्याप्तता पर विचार किया जा सकता है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि धारा 25 के स्पष्टीकरण 2 के अनुसार वचनकर्ता द्वारा स्वतंत्र सहमति दी गई थी। एक बार जब अदालत संतुष्ट हो जाती है कि सहमति स्वतंत्र रूप से थी दी गई है, तो अनुबंध प्रतिफल की अपर्याप्तता के बावजूद वैध होगा।

मुकदमा करने की सहनशीलता

यदि कोई व्यक्ति प्रतिवादी के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार होने पर प्रतिवादी पर मुकदमा नहीं करने के लिए सहमत होता है, तो प्रतिवादी के वादे के आधार पर, अनुबंध के प्रतिफल के हिस्से के रूप में, इसे हमेशा मूल्यवान प्रतिफल माना जाएगा। यह एक प्रकार से कार्य न करने से मना करने के बराबर है जिसे स्पष्ट रूप से परिभाषा में ही अच्छे प्रतिफल के रूप में पहचाना जाता है। देबी राधा रानी बनाम राम दास (1941) के मामले में, पटना उच्च न्यायालय के द्वारा यह कहा गया था कि एक ऐसे मामले में जहां एक पत्नी को अपने पति पर भरण पोषण (मेंटेनेंस) के लिए मुकदमा करने का अधिकार है, लेकिन वह पति द्वारा किए गए वादे के आधार पर की वह उसको मासिक भत्ते (एलाउंस) का भुगतान करेगा, उस पर मुकदमा करने से मना करती है और कानून की नजर में यह वैध प्रतिफल है। हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जब तक दावा तुरंत देय (ड्यू) न हो, तब तक कोई वास्तविक सहनशीलता नहीं हो सकती है।

प्रतिफल वास्तविक होना चाहिए

प्रतिफल वास्तविक होना चाहिए, क्योंकि यह प्रकृति में भौतिक (फिजिकल) या कानूनी रूप से असंभव नहीं होना चाहिए। प्रतिफल को तब भी वास्तविक नहीं माना जाएगा यदि यह अनिश्चितता के स्तर के साथ आता है, क्योंकि यदि प्रतिफल निश्चित नहीं है, तो इसे पूरा करना असंभव हो जाता है। नीचे ऐसे उदाहरण दिए गए हैं जब प्रतिफल अवास्तविक होता है और इसलिए कानून की नजर में यह शून्य है।

भौतिक रूप से असंभव

प्रतिफल कुछ ऐसा नहीं हो सकता जिसे किया जाना भौतिक रूप से असंभव हो। उदाहरण के लिए, आप 3 मिनट में 300 पुशअप्स करने का वादा करते हैं यदि आपका मित्र आपको इसके लिए 10 लाख रूपये देने का वादा करता है। यह शारीरिक रूप से पूरा करना असंभव है। इसलिए, इस तरह का प्रतिफल शारीरिक या भौतिक रूप से असंभव है और कानून की नजर में इसे वैध नहीं माना जा सकता है।

कानूनी रूप से असंभव

एक ऐसा कार्य करने का वादा जो कानून द्वारा निषिद्ध है, एक ऐसा प्रतिफल होगा जो कानूनी रूप से असंभव है। उदाहरण के लिए, यदि आप अपने दुश्मन की हत्या के लिए अपने दोस्त को 10 लाख रुपये देने का वादा करते हैं तो यह प्रतिफल मान्य नहीं होगा।

अनिश्चित प्रतिफल

प्रतिफल स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए और प्रकृति में निश्चित होना चाहिए। अन्यथा, अस्पष्टता पैदा होती है और प्रतिफल मान्य नहीं होगा क्योंकि यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में प्रतिफल क्या है। उदाहरण के लिए, यदि आप मोची के पास जाते हैं और उसे अपने जूते के तलवों को बदलने के लिए कहते हैं, और वह कहता है कि वह आपसे उसको ठीक करने के लिए 100 रुपए या 150 रुपए लेगा, तो यह एक अनिश्चित प्रतिफल बन जाएगा क्योंकि आप नहीं जानते कि उन जूते के तलवों को बदलने के बदले में आपको कौन सी राशि का भुगतान करना होगा।

भ्रामक (इल्यूजनरी) प्रतिफल

हम अक्सर फिल्म के डायलॉग सुनते हैं जिसमें हीरो अपनी गर्लफ्रेंड को चांद-तारे लाने का वादा करता है। यह एक भ्रमपूर्ण प्रतिफल का एक उत्कृष्ट (एक्सीलेंट) उदाहरण है। भ्रामक प्रतिफल कानून की अदालत में नहीं टिक सकते क्योंकि यह कुछ ऐसा देने का वादा है जो वास्तव में संभव ही नहीं है।

पूर्व-मौजूदा कर्तव्य शामिल करने वाला प्रतिफल

प्रतिफल के हिस्से के रूप में एक नया दायित्व पूरा किया जाना चाहिए। कानून के अनुसार, मौजूदा कानूनी दायित्व को पूरा करना अप्रासंगिक (ईररिलेवेंट) है। यह कुछ ऐसा होना चाहिए जो किसी व्यक्ति से पहले से अपेक्षा से ऊपर और परे हो। इसके अलावा, एक सरकारी कर्मचारी को सार्वजनिक कर्तव्य करने के लिए भुगतान करने का वादा करना स्वीकार्य प्रकार का प्रतिफल नहीं है।

प्रतिफल वैध होना चाहिए

समझौते को कायम रखने के लिए प्रतिफल वैध होना चाहिए। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 23 द्वारा निम्नलिखित परिस्थितियों पर प्रतिफल करने की अनुमति नहीं दी जाती है:

  • जब इसमें कानूनी रूप से निषिद्ध कार्य शामिल हो, या
  • जब यह किसी अन्य व्यक्ति या उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है, या
  • जब उस कार्य को अनैतिक (इममॉरल) या सार्वजनिक नीति के विरुद्ध माना जाता हो।

इन स्थितियों को छोड़कर जब किसी समझौते के अवैध हिस्से को उसके कानूनी या वैध हिस्से से अलग किया जा सकता है, लेकिन अगर इसका कोई भी हिस्सा अवैध है तो पूरा समझौता शून्य हो जाएगा।

प्रतिफल के लिए अपवाद

अनुबंध अधिनियम की धारा 25 के तहत कुछ अपवादों को निर्धारित किया गया है, जब बिना प्रतिफल के किया गया समझौता शून्य नहीं होता है। यह अपवाद निम्नलिखित हैं:

अपवाद 1- स्वाभाविक प्रेम और स्नेह

निकट संबंधियों के बीच स्वाभाविक प्रेम और स्नेह पर आधारित एक लिखित और पंजीकृत (रजिस्टर्ड) समझौता बिना किसी प्रतिफल के लागू किया जा सकता है। अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) ‘निकट संबंधी’ में रक्त या विवाह से संबंधित पक्ष शामिल होते है।

अपवाद 2- भूत पूर्व स्वैच्छिक सेवा

एक व्यक्ति को मुआवजा देने का वादा, जो पहले ही स्वेच्छा से वचनकर्ता के लिए कुछ कर चुका है, या ऐसा कुछ जिसे करने के लिए वचनकर्ता कानूनी रूप से मजबूर था, वह लागू करने योग्य है। हालाँकि, ऐसी कोई सेवा स्वेच्छा से और वचनकर्ता के ज्ञान के बिना, और केवल वचनकर्ता के लिए ही प्रदान की जानी चाहिए थी।

उदाहरण के लिए, यदि एक व्यक्ति अपनी अवयस्कता (माइनोरिटी) के दौरान वचनकर्ता को यह वादा करता है की उसके द्वारा आपूर्ति (सप्लाई) की गई वस्तुओं के लिए वयस्कता की आयु प्राप्त करने के बाद भुगतान कर देगा इसलिए उसे एक वादे को अपवाद के भीतर माना गया था।

दृष्टांत (इलस्ट्रेशन) :- A को B का मोबाइल फोन मिल जाता है और वह उसे दे देता है। B, A को 100 रुपए देने का वादा करता है। यह एक अनुबंध है।

अपवाद 3- समय अवरुद्ध ऋण (टाइम बर्ड डेट)

एक समय-अवरुद्ध ऋण का भुगतान करने का वादा, लागू करने योग्य है।

उदाहरण:- X पर Y का 1000 रुपए बकाया है, लेकिन यह ऋण परिसीमा अधिनियम (लिमिटेशन एक्ट) द्वारा वर्जित है। X, Y को उस ऋण के लिए 500 रुपए भुगतान करने के लिए एक लिखित वादे पर हस्ताक्षर करता है। इसलिए यह एक अनुबंध है।

निष्कर्ष

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2 (d) के तहत प्रतिफल शब्द को परिभाषित किया गया है। प्रतिफल वर्तमान, भूतकाल या भविष्य मे हो सकता है। और यह केवल अनुबंध के पक्षों से संबंधित होना चाहिए न कि तीसरे पक्ष से। लेकिन धारा 25 के तहत एक निश्चित अपवाद मौजूद है। इसमें 3 उप-धाराएं मौजूद हैं और विभिन्न स्थितियों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई हैं ताकि अनुबंध के पक्ष या यहां तक कि अनुबंध के तीसरे पक्ष के हितों से समझौता किया जा सके। इसके अलावा, प्रतिफल की पर्याप्तता इतनी महत्पूर्ण नहीं हैं, हालांकि, अनुबंध के पक्षों के अनुसार यह मूल्यवान (कुछ मूल्य का) होना चाहिए।

 

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