अगर कोई आपकी सहमति के बिना आपकी तस्वीर पोस्ट कर दे तो क्या करें

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66185
Indian Penal Code
Image Source- https://rb.gy/8vbjlx

यह लेख एलायंस यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु से Vanya Verma द्वारा लिखा गया है। यह लेख इस बारे में बात करता है कि यदि कोई व्यक्ति आपकी सहमति के बिना आपकी तस्वीर ऑनलाइन पोस्ट करता है तो आप क्या कर सकते है, किन मामलों में यह कानूनी कार्रवाई और इससे निपटने वाले कानूनों की अनुमति देगा। इस लेख का अनुवाद Sakshi Kumari ने किया है।

Table of Contents

परिचय

2014 में, जेनिफर लॉरेंस, सेलेना गोमेज़, केट अप्टन और एरियाना ग्रांडे सहित कई हॉलीवुड हस्तियों की नग्न तस्वीरों के बहुत बड़े लीक के बाद, मशहूर हस्तियों को एक महत्वपूर्ण कॉपीराइट मुद्दे का सामना करना पड़ रहा है। जिन हस्तियों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि छवियां प्रामाणिक (ऑथेंटिक) हैं, वे अपने कॉपीराइट के स्वामित्व (ओनरशिप) का दावा करते हुए, उन्हें इंटरनेट से हटाने का प्रयास कर रही हैं। यदि ऐसा लीक भारत में हुआ तो कानूनी प्रभाव क्या होंगे? यह लेख उसी पर चर्चा करेगा।

किसी की सहमति के बिना ऑनलाइन पोस्ट की गई किसी और की तस्वीर का उचित उपयोग हो सकता है जैसे की वह मित्र या परिवार के सदस्यों द्वारा पोस्ट हो सकती है, समस्या तब होती है जब कोई व्यक्ति अनुचित (इनएप्रोप्रिएटली) या अवैध (इल्लीगल) रूप से तस्वीर पोस्ट करता है। पेशेवर फोटोग्राफी और विकृति (परवर्शन) के इन कार्यों के बीच की रेखा पतली है लेकिन कानून यह स्पष्ट करता है कि तस्वीर की प्रकृति शिकायत दर्ज करने का निर्णय लेने और अदालत में भी मामले का फैसला करने में एक महत्वपूर्ण कारक (फैक्टर) है।

ऐसे मामले जहां सहमति के बिना तस्वीर पोस्ट करना अवैध नहीं है

यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं जहां बिना सहमति के फोटो पोस्ट करने पर कानूनी कार्रवाई नहीं होती है-

  • किसी मित्र या परिवार के सदस्य द्वारा साझा की गई तस्वीर

अगर फोटो किसी मित्र या परिवार के सदस्य द्वारा लिया गया है तो आपको विनम्रता (पॉलाईटली) से अनुरोध (रिक्वेस्ट) करना चाहिए कि वे इसे हटा दें। ये तस्वीरें अक्सर किसी की निजी संपत्ति (जैसे कि उनका घर) पर ली जाती हैं, जहां उन्हें तस्वीरें लेने का कानूनी अधिकार होता है।

आप अपनी जमीन पर रहने की सहमति देकर उन्हें अपनी उपस्थिति के कुछ अधिकार प्रदान करते हैं। इसके अलावा, भले ही उन पर मुकदमा चलाया गया हो, इसके परिणामस्वरूप कई बदलाव नहीं होंगे और मामले को प्रबंधित (मैनेज) करने के लिए आवश्यक वकील की फीस बहुत अधिक होगी।

  • एक अजनबी द्वारा पोस्ट की गई एक तस्वीर

यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है। किसी सार्वजनिक स्थान पर, जैसे कि पार्क या शहर की सड़क पर, आप किसी अजनबी को अपनी तस्वीरें लेने के लिए अपनी सहमति दे रहे हैं। आपके पास कुछ अधिकार हो सकते हैं यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसे आप नहीं जानते हैं, निजी संपत्ति पर आपकी तस्वीरें लेता है, जो निजी संपत्ति के प्रतिबंधों (रिस्ट्रिक्शन) पर निर्भर करता है।

यदि कोई अजनबी आपकी संपत्ति पर आपकी तस्वीरों को कैप्चर करता है, जैसे कि एक निजी तौर पर किराए पर बुलाया गया निगरानी करने वाला व्यक्ति (सर्विलियंस पर्सन) या एक नासमझ पड़ोसी, तो आपको गोपनीयता (प्राइवेसी) के उल्लंघन पर ध्यान देना चाहिए या एक वकील को देखना चाहिए। हालांकि, अगर आप फोटो में नहीं हैं तो अपके घर की तस्वीरें लेना कानूनी है जैसे कि आपकी बालकनी की रोशनी।

  • किसी कार्यक्रम स्थल या बार द्वारा पोस्ट की गई तस्वीर

कार्यक्रम स्थल या साइट के प्रतिबंध लागू हो सकते हैं यदि छवि किसी कार्यक्रम, संगीत कार्यक्रम, रेस्टोरेंट या बार में ली गई हो। इन स्थानों में अक्सर फोटो प्रतिबंधीत होते हैं, जैसे बार क्रॉल प्रतिभागियों (पार्टिसिपेंट्स) को सूचित करता है कि फोटोग्राफर पूरी रात कार्यक्रम छवियों को कैप्चर करेंगे।

कभी-कभी प्रबंधन से उनके फेसबुक पेज या वेबसाइट से कार्यक्रम की तस्वीरें हटाने के लिए कहना काफी होता है। यदि छवि का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है, जैसे कि पोस्टर या किसी कार्यक्रम आमंत्रण पर, तो आपके पास कानूनी उपाय हो सकते हैं।

  • फोटो का इस्तेमाल विज्ञापनों में किया जा रहा है

यदि आपकी छवियाँ आपकी अनुमति के बिना किसी मार्केटिंग अभियान (कैंपेन), प्रिंट कमर्शियल या इंटरनेट कमर्शियल में दिखाई देती हैं, तो आपको कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति या व्यवसाय आपकी छवि से पैसा कमाता है, तो आपके पास इसका “व्यावसायिक रूप से उपयोग” होने का अधिकार है।

  • आपकी फ़ोटो के साथ नकारात्मक फ़ीडबैक या अनुपयुक्त सामग्री

इस बात की संभावना है कि आपकी तस्वीर का इस्तेमाल आपका मजाक उड़ाने के लिए किया जाएगा, आप पर नकारात्मक (नेगेटिव) रोशनी डाली जाएगी, या भद्दी (विशियस) टिप्पणियों के साथ जोड़ा जाएगा। अधिक समझने के लिए, बदमाशी, साइबर धमकी, मानहानि (डिफेमेशन) के खिलाफ अपने राज्य के कानूनों को देखें। इससे निपटने वाले भारतीय कानूनों पर नीचे चर्चा की गई है।

ऐसे मामले जहां सहमति के बिना फोटो के प्रकाशन (पब्लिकेशन) के खिलाफ अधिकार उपलब्ध नहीं है

कोर्ट ने कहा कि, “एक नागरिक को अपनी, अपने परिवार, शादी, प्रजनन (प्रोक्रिएशन), मातृत्व, बच्चे पैदा करने और शिक्षा सहित अन्य मामलों की निजता (प्राइवेसी) की रक्षा करने का अधिकार है। उपर दिए गए मामलों से संबंधित कोई भी उसकी सहमति के बिना कुछ भी प्रकाशित नहीं कर सकता है – चाहे वह सच्चा हो या चाहे वह प्रशंसनीय हो या आलोचनात्मक (क्रिटिकल) हो। ”

कोर्ट ने स्वीकार किया कि तस्वीरों के प्रकाशन के खिलाफ निजता का यह अधिकार पूर्ण (एब्सोल्यूट) नहीं है और निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी व्यक्ति के लिए उपलब्ध नहीं है:

  1. यदि व्यक्ति स्वेच्छा से किसी विवाद में शामिल हो जाता है;
  2. कोई विचाराधीन मामला जो अदालत के रिकॉर्ड सहित सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा बन गया है, सिवाय “एक महिला के नाम के जो यौन उत्पीड़न (सेक्सुअल हैरेसमेंट), अपहरण, या समान अपराध की शिकार है” और उसे और अधिक अपमान से बचाने वाले कार्यों को छोड़कर; तथा
  3. यदि व्यक्ति एक सार्वजनिक अधिकारी है और प्रश्न में यह मुद्दा है की “(उसके) कार्यों और आचरण के संबंध में (उसके) आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के लिए प्रासंगिक (रिलेवेंट) है” सिवाय इसके कि वह किसी कानून के तहत संरक्षित है।

यह सराहनीय है कि अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि विषय किसी सरकारी अधिकारी के आधिकारिक कर्तव्यों की पूर्ति से संबंधित नहीं है, तो सरकारी अधिकारी को एक सामान्य व्यक्ति के समान सुरक्षा का अधिकार है। इन आधारों का उपयोग करते हुए, अदालत ने निर्धारित किया कि याचिकाकर्ता (पेटीशनर), एक पत्रिका, को एक कैदी की जीवन कहानी को उसकी सहमति के बिना प्रकाशित करने का अधिकार था, जब तक कि यह सार्वजनिक रिकॉर्ड में उपलब्ध चीज़ों से आगे नहीं जाती है। यह अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को दर्शाता है।

  • जनहित में इस्तेमाल की गई तस्वीर

अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के तर्क को अधिकांश मामलों (कुछ नीचे सूचीबद्ध) में खारिज कर दिया गया था क्योंकि प्रकाशन वैधानिक नियमों (स्टेच्यूटरी रूल्स) द्वारा अधिकृत (ऑथराइज्ड) था।

  • वैधानिक बैंकों द्वारा छवियों का प्रकाशन

श्री के.जे. दोराईसामी बनाम सहायक महाप्रबंधक (असिस्टेंट जेनरल मैनेजर), मोनाल दिनेशभाई चोकशी और अन्य बनाम भारतीय स्टेट बैंक और अन्य, मोहन प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम भारतीय स्टेट बैंक, कु. अर्चना चौहान बनाम भारतीय स्टेट बैंक, जबलपुर, इन मामलों में यह माना गया कि बैंकों का कर्तव्य था कि वे 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम (राइट टू इंफॉर्मेशन) के अधिनियमन (इनैक्टमेंट) के साथ इस तरह की जानकारी को जनता के सामने प्रकट करें, और यह व्यापक जनहित में उचित था। वेणु बनाम भारतीय स्टेट बैंक में इस तर्क को खारिज कर दिया गया था।

  • संदिग्ध अपराधियों की तस्वीरों का प्रकाशन

हिस्ट्री शीटेड उपद्रवियों (जी. रमन उर्फ ​​रामचंद्रन बनाम पुलिस अधीक्षक, करूर जिला और अन्य) और संदिग्ध अपराधियों (अयप्पनकुट्टी बनाम राज्य) की तस्वीरों के प्रकाशन के मामले में, अदालत ने एक बार फिर इनमें अनुच्छेद 21 के तर्क को यह बताते हुए खारिज कर दिया कि ऐसे प्रकाशन में सार्वजनिक हित या राज्य का हित निजी हित से अधिक है।

  •  मतदाता पहचान प्रमाण में छवियों का प्रकाशन

एक अन्य मामले में निजता तर्क को खारिज कर दिया गया था, जो की एम. अजमल खान बनाम भारत के चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व इसके मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य के मामले द्वारा किया गया था, जहां भारत के चुनाव आयोग (इलेक्शन कमीशन) के मतदाता (वोटर्स) की तस्वीरों को मतदाता सूची में शामिल करने के निर्णय को चुनौती दी गई थी, क्योंकि यह निर्णय “मतदाता सूची की निष्ठा (फिडेलिटी) में सुधार लाने, प्रतिरूपण (इंपरसोनेशन) की जाँच करने और फर्जी मतदान को समाप्त करने की दृष्टि से लिया गया था।”

नतीजतन, अदालतों ने माना कि तस्वीरों का प्रकाशन लोगों की निजता पर हस्तक्षेप (इंटरफेयर) कर सकता है, उन्होंने निजता के संवैधानिक अधिकार (कांस्टीट्यूशनल राइट) को बरकरार नहीं रखा क्योंकि उन्हें इस कार्य में अधिक सार्वजनिक या राज्य हित दिखा (यानी, सूचना का अधिकार, फर्जी मतदान का उन्मूलन (प्रिवेंशन), अपराध की रोकथाम, लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, आदि) जो निजता के निजी हित पर हावी हो रहा था।

अपनी तस्वीर पर नियंत्रण का दावा करने के विकल्प

यदि तस्वीरें या वीडियो आपके हैं और वो किसी और के कब्जे में है तो आपके पास नियंत्रण को पुनः प्राप्त करने के लिए तीन विकल्प हैं, जिसमें निजता के आक्रमण (इनवेशन ऑफ प्राइवेसी), मानहानि, या आपके निजता के अधिकार के उल्लंघन का दावा करना शामिल है। समाधान के ये तीन साधन है जैसे की सोशल नेटवर्किंग साइट नीतियां (पॉलिसी) इनमे से एक तरह का समाधान हैं। उन्हें नेविगेट करने या मुकदमा जारी रखने में सहायता के लिए किसी अनुभवी वकील से संपर्क करें।

  • निजता आक्रमण

यदि किसी व्यक्ति ने आपके बारे में कुछ ऐसा लिखा है जो कि गलत या आपत्तिजनक (ऑफेंसिवली) रूप से आपको चित्रित (पोर्ट्रे) करता है तो आपको इस मामले में कार्रवाई करने का अधिकार है। इसका एक उदाहरण है एक अश्लील वेबसाइट का पेज स्थापित करने के लिए आपकी तस्वीर का उपयोग करना। हालांकि सार्वजनिक स्थान पर आपकी तस्वीर लेना निजता का हनन नहीं है, आपके पास कानूनी उपाय हैं यदि वह व्यक्ति आपके घर में आपकी तस्वीर लेता है और फिर आपकी अनुमति के बिना उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देता है।

  • मानहानि

मानहानि साबित करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आपकी कोई तस्वीर आपको बदनाम करने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट पर पोस्ट की जानी चाहिए। आपको यह साबित कारन होगा कि वह तस्वीर आपकी प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक है या वो आपकी गलत धारणा (इंप्रेशन) प्रदान करेगी। मानहानि तब होती है जब कोई व्यक्ति या कंपनी किसी तस्वीर या वीडियो का उपयोग यह दिखाने के लिए करती है कि आपने कोई अपराध किया है जबकि आपने वो अपराध नहीं किया होता है, और इसका परिणाम आपको या आपके व्यवसाय को भुगतने पड़ते है।

  • प्रचार का अधिकार (राइट ऑफ पब्लिसिटी)

इस परिदृश्य (सिनेरियो) में कोई व्यक्ति व्यावसायिक उद्देश्यों (कमर्शियल पर्पज) के लिए आपकी एक तस्वीर का शोषण करता है। दूसरे शब्दों में, यदि वह व्यक्ति किसी उत्पाद या सेवा का ऑनलाइन विपणन (एंडोर्समेंट) करने के लिए या किसी व्यावसायिक वेबसाइट पर समर्थन के रूप में आपकी सहमति के बिना आपकी तस्वीर का उपयोग करता है, तो उसने आपके निजता के अधिकार का उल्लंघन किया है। लेकिन इस प्रकार के उल्लंघन के लिए उपयोग की गई तस्वीर में जनता आपको पहचानने में सक्षम होनी चाहिए।

क्योंकि सभी प्रमुख सोशल मीडिया साइट्स, जैसे कि फेसबुक, ट्विटर और अन्य, लगातार अपने उपयोगकर्ताओं के बारे में डेटा एकत्र करते हैं और एक ऐसी स्थिति जिसमें आपकी तस्वीर या वीडियो दिखाई दे वो हैरान करने वाली हो सकती है। यदि आप इस क्षेत्र में विशेषज्ञता (स्पेसलाइज) रखने वाले वकील को नियुक्त करते हैं, तो वह यह देखने के लिए जांच और शोध (रिसर्च) कर सकता है कि आपके पास कानूनी कार्रवाई के लिए आधार हैं या नहीं।

यदि आप पाते हैं कि आपकी तस्वीर या वीडियो आपकी अनुमति के बिना पोस्ट की गई है, तो आप उस व्यक्ति से संपर्क कर सकते हैं जिसने इसे पोस्ट किया है यदि आप जानते हैं कि वे कौन हैं तो उससे अनुरोध करे कि वे इसे हटा दें। यदि वह व्यक्ति मना करना जारी रखता है, तो आप कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं। यदि आपको अधिक जानकारी की आवश्यकता है या इस परिदृश्य में खुद को ढूंढना है, तो एक योग्य वकील को बुलाने से न डरें।

भारत में किसी ऐसे व्यक्ति के लिए निवारण तंत्र (रिड्रेसल मैकेनिज्म) जिसकी तस्वीर उनकी सहमति के बिना पोस्ट की गई हो

  • रिट याचिका दायर करना

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि आप सार्वजनिक स्थानों पर व्यक्तिगत उपयोग के लिए अन्य लोगों की तस्वीरें लेने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन एक तस्वीर को इस तरह से प्रकाशित करना जो “शर्मनाक, मानसिक रूप से दर्दनाक” है या “व्यक्ति की गतिविधियों के बारे में असुरक्षा की भावना पैदा करता है” अनुच्छेद 21 के तहत अवैध है। संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, और इस अधिकार का उपयोग सरकार पर कर्तव्य (ड्यूटी)  लगाने के लिए किया जा सकता है।

वर्तमान कानूनी स्थिति के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति यह मानता है कि उसकी तस्वीर को किसी भी तरह से प्रकाशित करके राज्य द्वारा उसकी निजता पर आक्रमण किया गया है, तो वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर कर सकता है या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अपने मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) को लागू करने के लिए अनुच्छेद 226 के तहत एक उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट दायर कर सकता है। यदि प्रकाशन एक निजी निकाय (प्राइवेट बॉडी) द्वारा सार्वजनिक भूमिका का प्रयोग करते हुए किया गया था, जैसे कि मीडिया, तो व्यक्ति फिर भी अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के माध्यम से अपने अधिकार को लागू करने की मांग कर सकता है।

भारतीय कानून निजता को परिभाषित नहीं करता है, बल्कि उन परिस्थितियों को परिभाषित करता है जिनके तहत इसे कानून द्वारा संरक्षित किया जाएगा। नतीजतन, यह प्रदर्शित किया जाना चाहिए कि आत्मविश्वास की बाध्यता को लागू करने वाली परिस्थितियों में तस्वीर का खुलासा किया गया था। “निजता (प्राइवेसी)” और “गोपनीयता (कॉन्फिडेंशियलिटी)” शब्द लगभग विनिमेय (इंटरचेंजेबल) हैं। गोपनीयता विश्वास के निष्पक्ष विचार (फेयर आइडिया ऑफ ट्रस्ट) पर आधारित है।

सफल होने के लिए, एक याचिकाकर्ता को यह दिखाना होगा कि तस्वीर का प्रकाशन उसकी निजता पर आक्रमण करता है और कानूनी प्रक्रिया के अनुपालन में नहीं किया गया है जो फेयर, न्यायसंगत (जस्ट) और उचित है, साथ ही व्यापक सार्वजनिक हित की सुरक्षा के लिए है, या ‘पीड़ित’ तर्क दे सकते हैं कि तस्वीरों को किसी प्रकार की हैकिंग (या कंप्यूटर संसाधन तक अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) पहुंच) द्वारा प्राप्त किया गया था और यह माना जा सकता है की ऐसी छवियो के दर्शक को पता था कि तस्वीर गोपनीय थी।

  • भारतीय कॉपीराइट अधिनियम के तहत दावा

यदि फोटो का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है, तो फोटोग्राफर को पहले से अनुमति लेनी होगी। जिन फोटोग्राफर की तस्वीरें लीक हुई हैं, उनका फोटोग्राफर भारतीय कॉपीराइट अधिनियम (इंडियन कॉपीराइट एक्ट) के तहत बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) के उल्लंघन का दावा दायर कर सकता है, क्योंकि फ़ोटोग्राफ़र के पास फ़ोटोग्राफ़ का कॉपीराइट है (जब तक कि यह एक कमीशन का काम नहीं है, और कॉपीराइट उस व्यक्ति के पास चला गया जिसने फोटोग्राफ का कमीशन किया था, तो मुकदमा करने का अधिकार भी ऐसे व्यक्ति को सभी संभावनाओं में स्थानांतरित (ट्रांसफर) हो जाएगा)।

  • साइबर सेल में ऑनलाइन शिकायत दर्ज करना

यदि व्यक्ति की तस्वीरें अनैतिक (इल्लीगल) रूप से या अश्लील तरीके से पोस्ट की जाती हैं, तो व्यक्ति साइबर क्राइम सेल को इसकी रिपोर्ट कर सकता है।

साइबर क्राइम सेल भारत के सभी प्रमुख शहरों में मौजूद हैं, और भारत के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (इनफॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी एक्ट ऑफ इंडिया) के तहत उनके पास वैश्विक अधिकार क्षेत्र (यूनिवर्सल ज्यूरिएडिक्शन) है, इसलिए एक सेल एक बड़े क्षेत्र में दूर से अपराधों को संभाल सकता है। यद्यपि आप व्यक्तिगत रूप से शिकायत दर्ज कर सकते हैं, यहां हम जानेंगे कि यदि आप साइबर अपराध का शिकार हुए हैं तो आप ऑनलाइन शिकायत कैसे कर सकते हैं।

शिकायत दर्ज करने में पहला कदम साइबर सेल इंडिया को एक ऑनलाइन शिकायत प्रस्तुत करना है, जो सभी साइबर अपराध शिकायतों के लिए एक समेकित (कंसोलिडेट) ऑनलाइन मंच के रूप में कार्य करता है।

उसके बाद, एक औपचारिक (फॉर्मल) लिखित शिकायत विशिष्ट शहर या जिले में साइबर क्राइम सेल को भेजी या दी जानी चाहिए। यदि आपके क्षेत्र में कोई सेल नहीं है, तो आप निकटतम साइबर सेल में शिकायत दर्ज कर सकते हैं, क्योंकि सेल का दुनिया भर में अधिकार क्षेत्र है। शिकायत के अलावा व्यक्तिगत जानकारी जैसे पीड़ित का नाम, संपर्क जानकारी और एक डाक पता साइबर सेल में जमा किया जाना चाहिए।

यदि कोई साइबर सेल सुलभ है, तो स्थानीय पुलिस स्टेशन या न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास प्राथमिकी (फर्स्ट इन्फोर्मेशन रिपोर्ट (एफआईआर)) के रूप में शिकायत दर्ज की जा सकती है।

यदि अपराध भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड) की धारा 154 के अंदर आता है, जो एक संज्ञेय अपराध (कॉग्निजेबल क्राइम) है, तो पुलिस थानों को शिकायत स्वीकार करनी होगी। चूंकि अधिकांश साइबर अपराधों को संज्ञेय माना जाता है, इसलिए पुलिस को जल्द से जल्द रिपोर्ट को स्वीकार करना चाहिए और उन पर कार्रवाई करनी चाहिए। साइबर अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए उन्हें किसी विशिष्ट वारंट की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये संज्ञेय अपराध हैं।

ऑनलाइन साइबर अपराध शिकायत दर्ज करने के लिए इस वेबसाइट पर जाएं- http://www.cybercelldelhi.in/Report.html

साइबर सेल प्रारंभिक शिकायत दर्ज करने के बाद अपनी जांच शुरू करते हैं। प्रारंभ में, घटना से संबंधित सभी डिजिटल साक्ष्य इंटरनेट के साथ-साथ स्थानीय कंप्यूटर डिस्क से एकत्र किए जाते हैं। विशेषज्ञ ऑनलाइन फोरेंसिक डेटा विश्लेषक यह कार्य यह सुनिश्चित करने के लिए करते हैं कि हैकिंग या वायरस के हमले की स्थिति में कोई संवेदनशील या महत्वपूर्ण डेटा खो न जाए।

ऑनलाइन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की कई स्थितियों में, साइबर सेल को अपराधी की असली पहचान निर्धारित करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि वह अक्सर टायर नाम या गुमनाम रूप से काम कर रहा होता है।

इसमें कंप्यूटर आईपी पते का पता लगाना, वीपीएन जैसी बुनियादी गुमनामी सुरक्षा को तोड़ना और पहचान निर्धारित करने के लिए सोशल मीडिया गतिविधि के समय और इतिहास को ट्रैक करना शामिल है।

परिणामस्वरूप, साइबर अपराध निवारण प्रणाली तीव्र गति से विकसित हुई है, जो ऑनलाइन कमजोर लोगों, विशेष रूप से युवा लोगों के लिए बहुत आवश्यक सुरक्षा प्रदान करती है, जो अक्सर ऑनलाइन दुर्व्यवहार, धोखाधड़ी या उत्पीड़न के शिकार होते हैं। हालांकि, साइबर सेल मुख्य रूप से प्रमुख शहरों में पाए जाते हैं, और साइबर अपराध के खिलाफ सुरक्षा अभी तक भारत के टायर 2 और टायर 3 शहरों तक नहीं पहुँच पाई है। नतीजतन, भारत की साइबर अपराध सुरक्षा प्रभावशाली और तेजी से विकसित हो रही है, फिर भी विकास और पीड़ित सुरक्षा में वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।

भारत में प्रचलित (प्रीवेल) कानून

किसी भी सामग्री को साझा करना जो बच्चे के जन्म से किसी व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन करता है, परिणामस्वरूप पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य में आयोजित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

जबकि टिप्पणियां और बहस संबंधित हैं, कानूनी प्रभाव सबसे अधिक संभावना समूह की नाबालिग लड़कियों की निजी छवियों और संशोधित तस्वीरों के वितरण से संबंधित होंगे। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66E, 67, 67A, और 67B और भारतीय दंड संहिता की धारा 354D, 465, 471, 499, 500 और 509 लागू होती हैं। इसके अलावा, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस) (पोस्को), 2012 की धारा 14 और 15 भी यहां लागू होती हैं।

  • सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000

धारा 65: कंप्यूटर स्रोत दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़

इस धारा में, जो कोई जानबूझकर किसी कंप्यूटर, कंप्यूटर प्रोग्राम, कंप्यूटर सिस्टम, या कंप्यूटर नेटवर्क के लिए उपयोग किए गए किसी भी कंप्यूटर स्रोत कोड को छुपाता है, नष्ट करता है, या बदलता है, या जो जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को दूसरे द्वारा उपयोग किए गए किसी भी कंप्यूटर, कंप्यूटर प्रोग्राम, कंप्यूटर सिस्टम, या कंप्यूटर नेटवर्क, कंप्यूटर स्रोत कोड को छुपाने, नष्ट करने या बदलने का कारण बनता है जब कंप्यूटर स्रोत कोड को कानून द्वारा कुछ समय के लिए रखने या बनाए रखने की आवश्यकता होती है तो उसे 3 साल तक की कैद या 2 लाख तक के जुर्माने या दोनों से दंडनीय है। 

इस धारा का उद्देश्य कंप्यूटर की “बौद्धिक संपदा” की रक्षा करना है। यह भारतीय कॉपीराइट कानून द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा से परे कंप्यूटर स्रोत सामग्री (कोड) को सुरक्षा प्रदान करने का एक प्रयास है। यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है। इस भाग को वर्तमान स्थिति में लागू करने के लिए, हमें पहले यह स्थापित करना होगा कि धारा के प्रमुख तत्व मौजूद हैं, जिसमें कोई ऐसा व्यक्ति शामिल है जो:

  1. जानबूझकर छुपाना,
  2.  जानबूझकर नष्ट करना,
  3. जानबूझकर बदलना,
  4.  जानबूझकर दूसरों को छुपाने के लिए,
  5. जानबूझकर दूसरे को नष्ट करने का कारण,
  6. जानबूझकर दूसरे को बदलने का कारण।

धारा 66E – निजता के उल्लंघन के लिए सजा

यह धारा “किसी भी व्यक्ति के निजी क्षेत्र की उसकी सहमति के बिना” की तस्वीरों के प्रसारण (ट्रांसमिशन) से संबंधित है। इसके लिए या तो 3 साल की सजा या 2 लाख रुपये से कम का जुर्माना या दोनों हो सकता है।

न्यायमूर्ति के एस पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य के ऐतिहासिक फैसले में, निजता के अधिकार को हाल ही में भारतीय संविधान के भाग III में जीवन के अधिकार के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में गारंटीकृत और संरक्षित करने के लिए आयोजित किया गया था। किसी भी सामग्री को साझा करना जो किसी व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन करता है, फलस्वरूप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

धारा 67 – अश्लील सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित करने या प्रसारित करने के लिए दंड

यह धारा अश्लील सामग्री के प्रकाशन (पब्लिकेशन) या प्रसारण (ट्रांसमिशन) से संबंधित मामलों से निपटने में मदद करता है (” सम्मग्री के रूप में वर्णित किसी भी सामग्री का अर्थ है वह जो कामुक (लासिवियस) है या वास्तविक हित के लिए अपील करता है या यदि इसका प्रभाव ऐसा है जैसे कि लोगों को भ्रष्ट (करप्ट) करने के लिए है”)।ऐसे मामलो में पहली सजा में तीन साल तक की जेल और पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है, बाद में दोषियों को पांच साल तक की जेल और दस लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

धारा 67A – इलेक्ट्रॉनिक रूप में यौन स्पष्ट कार्य आदि वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड

ऐसी सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण जिसमें स्पष्ट यौन कार्य या आचरण शामिल है, इस धारा के तहत दंडनीय है। पहली सजा के मामले में, प5 साल तक की जेल और 10 लाख तक का जुर्माना है। वर्तमान धारा बॉइस लॉकर रूम घटना में लागू हुई थी क्योंकि इसमें लड़कियों की मॉर्फ्ड तस्वीरें साझा करना शामिल था।

धारा 67B – इलेक्ट्रॉनिक रूप में बच्चों को स्पष्ट यौन कार्य आदि में दर्शाने वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड

यह धारा वैसे सारे मामलो से निपटता है जहां किसी भी डिजिटल टेक्स्ट या फोटो का निर्माण या वितरण शामिल है जो नाबालिगों (माइनर्स) को “अश्लील या यौन रूप में  स्पष्ट तरीके से चित्रित (प्रेजेंट) करता है न कि केवल यौन कार्यों (सेक्सुअल एक्ट) या आचरण (कंडक्ट) में बच्चों के चित्रण से।

गौरतलब है कि मौजूदा स्थिति में नाबालिग लड़कियों की अश्लील या निजी तस्वीरों का वितरण शामिल है। नतीजतन, इस धारा को एक सहारा के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

यह धारा पहली बार दोषी ठहराए जाने पर 5 साल तक की जेल और 10 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान करती है।

धारा 72: निजता और गोपनीयता भंग करने के लिए सजा

इस धारा में कोई भी व्यक्ति, जो संबंधित व्यक्ति की सहमति के बिना, आईटी अधिनियम, उसके तहत बनाए गए नियमों या विनियमों (रेगुलेशन) के तहत प्रदत्त किसी भी शक्ति के अनुसरण  (पर्सुएंस) में किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, पुस्तक, रजिस्टर, पत्राचार, सूचना, दस्तावेज, या अन्य सामग्री तक पहुंच प्राप्त करता है और किसी अन्य व्यक्ति के सामने ऐसी सामग्री का खुलासा करता है तो उसे दो साल तक के कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोस्को) अधिनियम, 2012

धारा 14 और 15 – बाल अश्लीलता (पोर्नोग्राफी)

नाबालिग या बच्चों का अश्लील प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल करने पर धारा 14(1) के तहत 5 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। इसके अलावा, पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 15 के तहत एक बच्चे को शामिल करने वाली अश्लील सामग्री के रखने के लिए 3 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।

  • भारतीय दंड संहिता

धारा 354D – पीछा करना

2013 के आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम ने इस धारा को आईपीसी में पेश किया। कुख्यात सामूहिक बलात्कार और पीड़िता निर्भया कांड की हत्या के बाद, 2013 का संशोधन अधिनियम पास किया गया, जिसमें आईपीसी में कई बदलाव, विशेष रूप से धारा 354D शामिल थे।

धारा 354D(b) के अनुसार, “एक महिला द्वारा इंटरनेट, ईमेल या किसी अन्य प्रकार के संचार के उपयोग की निगरानी करना”। परिणामस्वरूप, महिलाओं की उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल से तस्वीरें एकत्र करना इस श्रेणी में आता है। इस धारा के तहत दोष सिद्ध होने पर 3 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।

धारा 463, 465 और 471 – जालसाजी (फॉर्जरी)

धारा 463 के अनुसार जालसाजी को “किसी भी नकली दस्तावेज़ या झूठे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, या किसी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के हिस्से को नुकसान या चोट पहुँचाने के इरादे से” के रूप में परिभाषित किया गया है। जालसाजी की धारा 465 के तहत 2 साल तक की जेल की सजा है या जुर्माना, या दोनों हो सकते है। धारा 471 जाली दस्तावेजों या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के रूप में उपयोग करने की भी सजा देती है, और यह उसी तरह से दंडनीय है जैसे कि इस तरह के एक दस्तावेज को जाली बनाना। एक नकली इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बनाने में एक तस्वीर में डिजिटल परिवर्तन करना शामिल होगा।

धारा 509 – शब्द, हावभाव या कार्य जिसका उद्देश्य किसी महिला की लज्जा (मोडेस्टी) का अपमान करना है

यह धारा जो एक महिला की लज्जा को भंग करने से संबंधित है, आईपीसी के तहत एक प्रावधान है जो आमतौर पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए आईपीसी के अन्य हिस्सों के संयोजन (कंजक्शन) के साथ प्रयोग किया जाता है। पंजाब राज्य बनाम मेजर सिंह के मामले में, यह निर्णय लिया गया था कि किसी महिला की उपस्थिति में या उसकी उपस्थिति में किया गया कोई भी कार्य जो मानवता की दृष्टि में सेक्स का सूचक है, इस प्रावधान के अंदर आता है। इस धारा का उपयोग उन संदेशों को कवर करने के लिए किया जा सकता है जो उन लड़कियों के शरीर के बारे में भद्दी टिप्पणी करते हैं जिनकी तस्वीरें समूह में वितरित की गई थीं। इस धारा में 1 साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

धारा 499 और 500 – मानहानि

ऐसे मामलो में पीड़ितों के पास मानहानि का मुकदमा करने का विकल्प होता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 499 किसी व्यक्ति के बारे में कथित रूप से मानहानिकारक बयानों को अन्य शब्दों, लेखन या दृश्य प्रतिनिधित्व के रूप में उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए प्रस्तुत करने या प्रकाशित करने पर रोक लगाती है। नतीजतन, किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए पुरुषों की प्रेरणा इस धारा के तहत अपराध के लिए एक शर्त है। पीड़ित चाहें तो इस प्रावधान के तहत मुकदमा कर सकते हैं। आईपीसी की धारा 500 के तहत 2 साल तक के साधारण कारावास, जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।

क्या होगा अगर आरोपी किशोर (जुवेनाइल) है?

मौजूदा कानूनी प्रावधानों की जांच करना उचित हो जाता है जिनका उपयोग इस तरह की घटना से निपटने के लिए किया जा सकता है। वर्तमान घटना एक अनूठी चुनौती प्रस्तुत करती है जिसमें शामिल लगभग सभी लड़के 18 वर्ष से कम आयु के हैं, इसे किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम  (जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट), 2015 के दायरे में लाया गया है। विभिन्न अधिनियमों के तहत धाराओं का विश्लेषण उपरोक्त अपराध पर लागू होने से किशोर न्याय अधिनियम के आवेदन को समझने में मदद करेगा।

दूसरी ओर, किशोर न्याय अधिनियम, “कानून के विवाद में नाबालिग” को एक वयस्क (अडल्ट) के रूप में मुकदमा चलाने की अनुमति देता है यदि किशोर न्याय बोर्ड यह निर्धारित करता है कि यह उचित है। यह केवल तभी किया जा सकता है जब किशोर ने एक जघन्य (हिनियस) अपराध किया हो, जिसे किसी भी अपराध के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें न्यूनतम 7 साल या उससे अधिक की सजा होती है।

जैसा कि पिछले विश्लेषण से देखा जा सकता है, इस उदाहरण पर लागू होने वाले किसी भी धारा में इस अवधि का जुर्माना नहीं है। नतीजतन, सभी प्रतिवादियों को अकेले किशोर माना जाएगा। किशोरों को अधिकतम 3 साल की जेल की सजा का सामना करना पड़ता है। हालांकि, किशोर अपराधियों के मामले में, अधिनियम यथासंभव सुधार का समर्थन करता है। किशोरों को पुनर्वास केंद्रों, किशोर विद्यालयों में भेजना, या उन्हें अन्य सरकारी या गैर-सरकारी पहलों में विसर्जित इमर्जिंग) करना अधिनियम के तहत सुधार दंड के भाग के रूप में शामिल हैं।

निष्कर्ष

जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है कि अगर किसी की तस्वीर को उनकी सहमति के बिना ऑनलाइन पोस्ट किया जाता है तो यह हमेशा अवैध नहीं होता है, लेकिन अनुपयुक्त रूप से उपयोग किए जाने पर यह अवैध हो जाता है और अनुरोध के बाद भी इसे नहीं हटाया जाता है। व्यक्ति को हमेशा अपनी निजता के बारे में चिंतित रहना चाहिए और निजता का उल्लंघन होने पर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।

संदर्भ

 

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