यदि आप झूठे सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोप का शिकार होते हैं तो आप क्या कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं

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23014
Indian Penal Code
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यह लेख Sonali khatri और Karan Singh Sohal द्वारा लिखा गया है। Sonali जयपुर में रहने वाली एडवोकेट हैं। Karan ने बीबीए. एलएलबी (ऑनर्स) में ग्रेजुएशन की है और वर्तमान में अभ्यास कर रहें है। इस लेख में लेखकों ने, सेक्शुअल हैरेसमेंट के झूठे मामलो में फसने वाले लोगों को सहायता प्रदान कराने के लिए, ऐसे मामलो से बाहर निकलने और जल्दी निपटान के लिए, कुछ माध्यमों से अवगत कराया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

एक महिला पुलिस स्टेशन जाती है और इंडियन पीनल कोड (इसके बाद, “आई.पी.सी.”) की धारा 354A के तहत झूठी एफ.आई.आर. दर्ज करती है, जिसमें वह कहती है की आपने उसके साथ सेक्शुअल हैरेसमेंट किया है। एफ.आई.आर. और उसके बाद की आपराधिक कार्यवाही के आधार पर, यदि आप कोर्ट द्वारा दोषी पाए जाते हैं, तो आपको कारावास से दंडित किया जा सकता है जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी हो सकता है।

यह जानते हुए भी कि यह एक झूठा मामला है, आप क्या करेंगे? क्या आप इस स्थिति का ऐसे ही अपनी गति से आगे बढ़ने का इंतजार करेंगे या फिर इस स्थिति की जिम्मेदारी लेंगे और इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे? यदि आप दूसरी श्रेणी (कैटेगरी) में हैं, तो इस लेख को पढ़ना जारी रखें। यह लेख आपको इस स्थिति से बाहर निकालने में मदद करने के लिए है।

इस लेख में, हमने संभावित (पॉसिबल) कानूनी तरीकों पर चर्चा की है, जिसके माध्यम से आप एसी स्थिति से खुद को बचा सकते हैं। हो सकता है कि वे सभी आपकी स्थिति में लागू न हों, तो आप वह ही चुनें जो आपकी स्थिति में सबसे उपयुक्त (अप्रॉप्रीएट) हो।

सबसे पहले, आइए देखें कि आई.पी.सी. की धारा 354A के तहत आरोप लगने पर आप अपना बचाव कैसे कर सकते हैं।

आई.पी.सी. की धारा 354A के तहत लगाए गए आरोप से बचाव कैसे करें?

निम्नलिखित तरीके हैं जिनसे आरोपी व्यक्ति इस तरह के आरोप से अपना बचाव कर सकता है:

  1. चरित्र गवाह (कैरेक्टर विटनेसेस)- एक आदमी ऐसे गवाह ढूंढता है जो यह साबित कर सके कि वह निर्दोष है। यदि कोई गवाह गवाही देता है कि प्रतिवादी (डिफेंडेंट) ऐसी प्रकृति का है जो किसी भी महिला को किसी भी शारीरिक या मानसिक क्षमता (कैपेसिटी) से कभी नुकसान नहीं पहुंचा सकता, तो कोर्ट ऐसे गवाहों पर उचित विचार कर सकता है। यह नोट करना प्रासंगिक (रेलिवेंट) है कि ऐसे गवाहों को पूरे मुकदमे के दौरान और मुकदमे के बाद अपना रुख बनाए रखना होगा। ऐसे गवाहों द्वारा रुख में बदलाव (जिसे कानूनी भाषा में ‘गवाहों की वापसी’ के रूप में जाना जाता है) आरोपी के मामले के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकता है यदि पूरा मामला ऐसे गवाहों पर निर्भर है।
  2. शिकायतकर्ता (कंप्लेनेंट) महिला द्वारा दिए गए झूठे साक्ष्य- दिए गए मामले के वास्तविक तथ्यों का पता लगाने के लिए क्रॉस एग्जामिनेशन एक प्रभावी तरीका हो सकता है। यदि इस तरह के तथ्य को कोर्ट में या बयान के माध्यम से उठाया जाता है, तो पुरुष महिला पर मानहानि और संबंधित वकील पर झूठी गवाही के लिए मुकदमा कर सकता है।
  3. स्थान- यदि यह साबित किया जा सकता है कि संबंधित आरोपी कथित स्थान पर मौजूद नहीं था और वास्तव में किसी अन्य स्थान पर मौजूद था, तो यह साबित करना आसान होगा कि आरोपी निर्दोष है।
  4. पुरुष की स्थिति (पोजिशन)- यदि कोई व्यक्ति सत्ता की स्थिति में है तो उस पर इस तरह के आरोप लगने की संभावना अधिक होती है। उदाहरण के लिए, आरोपी व्यक्ति ने शिकायतकर्ता महिला को प्रमोट नहीं किया, तो ऐसी स्थिति में संभव है कि महिला ने सिर्फ बदला लेने के लिए पुरुष पर सेक्शुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया हो। इसलिए, आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच संबंधों की प्रकृति पर ध्यान देना समझदारी होगी।
  5. इतिहास- यदि शिकायतकर्ता महिला का निर्दोष पुरुषों पर गलत आरोप लगाने या ब्लैकमेल करने का कोई इतिहास है (यह बात साथियों की गवाही, पिछले संबंधों और क्रॉस एग्जामिनेशन से साबित हो सकती है), तो आरोपी की बेगुनाही साबित करना आसान होगा।
  6. किशोर (जुवेनाइल)- यदि अपराध किए जाने के समय आरोपी व्यक्ति किशोर था, तो उसके भविष्य के भले के लिए उसके साथ नरमी बरती जाने की संभावना है।
  7. एक्सटॉर्शन- अगर शिकायतकर्ता महिला पुरुष से पैसा एक्सटॉर्ट करने की कोशिश करती है (जिसे फोरेंसिक विशेषज्ञ की सहायता से उसके सोशल मीडिया को स्कैन करके साबित किया जा सकता है), तो भी आरोपी को कोर्ट से राहत मिलने की संभावना है। बैंक अकाउंट स्टेटमेंट को सबूत के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  8. मोबाइल फोन रिकॉर्ड, विशेष रूप से, महिला और आरोपी की कॉल हिस्ट्री बहुत मदद कर सकती है।
  9. यह भी एक प्रासंगिक (रेलिवेंट) तथ्य हो सकता है कि महिला का पहले से उस पुरुष के साथ संबंध था।

क्रॉस एग्जामिनेशन क्यों महत्वपूर्ण है?

क्रॉस एग्जामिनेशन एक कला है जो वास्तविक कहानी को बाहर निकालने में मदद कर सकती है और आरोपी को उस सजा से बचा सकती है जिसके लिए वह उत्तरदायी नहीं है। यह तभी संभव है जब आपराधिक वकील अपने क्लाइंट के हितों की रक्षा के लिए क्रॉस एग्जामिनेशन के स्किल्स का उपयोग करने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम हो। निम्नलिखित कारणों से क्रॉस एग्जामिनेशन महत्वपूर्ण है:

  1. अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) और आरोपी द्वारा दिए गए प्रासंगिक तथ्यों से परिचित होना।
  2. अभियोजन की रणनीति (स्ट्रेटजी) से अवगत होना और उसका उपयोग आरोपी के लाभ के लिए करना।
  3. यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरोपी अभियोजन पक्ष के जाल में नहीं फंसता है और अभियोजन द्वारा उठाए जाने वाले संभावित सवालों के जवाब देने के लिए वह तैयार है।
  4. जितना हो सके आरोपी को जवाबों का सामना करने की त्यारी करवाए, ताकि वह अभियोजन द्वारा दिए गए किसी भी आश्चर्य के लिए तैयार रहे।
  5. आरोपी को कोर्ट की प्रक्रियाओं (प्रोसीजर्स) से परिचित कराने के लिए।
  6. यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरोपी समझता है कि उसे कोर्ट में कैसे व्यवहार करना है।

अभियोजन पक्ष की कहानी में किस तरह की विसंगतियों से बरी हो जाएगी ( व्हाट काइंड ऑफ़ इनकंसिटेंसिस इन प्रॉसिक्यूशन स्टोरी विल लीड तो एक्विटल) ?

निम्नलिखित विसंगतियां (इनकंसिस्टेंसीज) हैं जिनके कारण आरोपी को बरी किया जा सकता है:

  1. कार्य का स्थान।
  2. कार्य की तिथि, समय और प्रकृति।
  3. वह स्थिति जिसकी वजह से वह कार्य हुआ है।
  4. आरोपी के साथ कोई पूर्व इतिहास।
  5. उन घटनाओं के बारे में विवरण (डिटेल्स) जो कथित कार्य से पहले और बाद में हुई हों।

बचाव पक्ष को किस तरह के गवाह पेश करने चाहिए (व्हाट काइंड ऑफ़ विटनेसेज शुड बी प्रेजेंटेड बाई डिफेंस)?

बचाव पक्ष द्वारा निम्नलिखित गवाह प्रस्तुत किए जा सकते हैं:

  1. परिवार और दोस्त।
  2. वर्कप्लेस पर सहकर्मी और वरिष्ठ (सीनियर्स)।
  3. कोई भी पीड़ित व्यक्ति, जिस पर उस महिला द्वारा कभी पहले झूठा आरोप लगाये गए थे।
  4. वे लोग जो गवाही दे सकते हैं कि क्या आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच पहले कोई संबंध थे।
  5. पुरुष जो उस महिला के साथ पहले किसी रिश्ते में थाऔर पुरुषों पर झूठा आरोप लगाने के उसके बुरे चरित्र के बारे में वह गवाही दे सकते हों।

“द सेक्शुअल हैरेसमेंट ऑफ़ वूमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) एक्ट, 2013” (इसके बाद 2013 का एक्ट) के तहत कुछ एसा भी है जो उन लोगों को बचा सकता है जिन पर झूठे सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोप लगाए गए हैं?

हां, 2013 के एक्ट में विशेष रूप से धारा 14 है जो झूठे सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोपित लोगों की मदद कर सकती है।

1. धारा 14 क्या प्रदान करती है?

यह उन महिलाओं के लिए सजा का प्रावधान (प्रोविजन) करती है जो किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठी या दुर्भावनापूर्ण (मलीशियस) शिकायत दर्ज करती हैं।

कृपया इस धारा के बारे में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात नोट करें। आप इस धारा के तहत राहत तभी प्राप्त कर सकते हैं जब इंटर्नल कमिटी (अर्थात इंक्वायरी कमिटी) इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि आपके खिलाफ शिकायत झूठी या दुर्भावनापूर्ण थी। इस तरह के किसी निष्कर्ष के अभाव (एब्सेंस) में आपको धारा 14 के तहत कोई लाभ मिलने की संभावना नहीं है।

इसलिए मेरी यही सलाह होगी कि यदि इंटर्नल कमिटी ने शिकायत के आधार पर आपके खिलाफ कार्रवाई की है तो कमिटी का सहयोग करें, अपनी पूरी क्षमता से अपना बचाव करें और इसे साबित करने के लिए सभी आवश्यक साक्ष्य प्रदान करें की क्यों, यह शिकायत आपके खिलाफ झूठी और दुर्भावनापूर्ण है। कमिटी के समक्ष अपना मामला पेश करने का अवसर यह साबित करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप पर सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोपों का झूठा आरोप लगाया गया है।

2. क्या होगा यदि इंटर्नल कमिटी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती है कि आपके खिलाफ शिकायत झूठी या दुर्भावनापूर्ण थी? उस स्थिति में आपके पास क्या उपाय होगा?

इंटर्नल कमिटी के निर्णय के विरुद्ध, आप 2013 के एक्ट की धारा 18 के अनुसार कोर्ट या ट्रिब्यूनल में अपील दर्ज़ करने पर विचार कर सकते हैं।

क्या 2013 का एक्ट ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को लाभ प्रदान कर सकता है जिस पर सेक्शुअल हैरेसमेंट के झूठे आरोप लगाए गए हैं?

नहीं, ऐसा नहीं है। यह एक्ट केवल उन मामलों पर लागू होता है जहां वर्कप्लेस पर सेक्शुअल हैरेसमेंट हुआ है।

1. वर्कप्लेस शब्द का अर्थ क्या है?

वर्कप्लेस शब्द को 2013 के एक्ट की धारा 2(o) के तहत बहुत विस्तार से परिभाषित (डिफाइन) किया गया है।

2. वर्कप्लेस की परिभाषा में कौन से सभी क्षेत्र शामिल हैं?

संक्षेप में, वर्कप्लेस की परिभाषा में निम्नलिखित क्षेत्रों को शामिल किया गया है:

  • कोई भी विभाग (डिपार्टमेंट) या इकाई (यूनिट) जो सरकार द्वारा स्थापित, स्वामित्व (ओन्ड), नियंत्रित (कंट्रोल्ड) और पर्याप्त रूप से फाइनेंस्ड हो।
  • कोई भी निजी क्षेत्र का संगठन (प्राइवेट सेक्टर ऑर्गेनाइजेशन), चाहे वह लाभ के लिए हो या फिर गैर-लाभकारी संगठन हो।
  • अस्पताल या नर्सिंग होम।
  • खेल से संबंधित गतिविधियों के लिए उपयोग किया जाने वाला कोई भी स्थान।
  • यात्रा करने के लिए नियोक्ता (एंप्लॉयी) द्वारा प्रदान किए गए परिवहन सहित रोजगार के दौरान कर्मचारी द्वारा दौरा किया गया कोई भी स्थान।
  • कोई निवास स्थान या घर।

यह सलाह दी जाती है की, एक्ट से ही “वर्कप्लेस” की परिभाषा को पढ़े। 

3. मुझे कैसे पता चलेगा कि यह एक्ट (2013 का एक्ट) मुझ पर लागू होगा या नहीं?

इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, आपको शिकायत को देखने की आवश्यकता है। शिकायत की सामग्री को पढ़ने के बाद, आपको उस जगह का पता चल जाएगा जहां सेक्शुअल हैरेसमेंट हुआ था (महिला के संस्करण (वर्जन) के अनुसार)। यदि वह स्थान 2013 के एक्ट के तहत दी गई “वर्कप्लेस” की परिभाषा के तहत आता है, तो 2013 का एक्ट आप पर पूरी तरह लागू होगा।

यदि यह एक्ट मुझ पर लागू नहीं होता है तो मैं क्या कर सकता हूं? क्या कोई अन्य उपाय है जो उन लोगों को बचा सकता है जिन पर सेक्शुअल हैरेसमेंट के झूठे आरोप लगाए गए हैं?

यदि यह एक्ट आपकी स्थिति पर लागू नहीं होता है, तो आप स्वयं, आई.पी.सी. की धारा 354A के तहत अपना बचाव कर सकते हैं (जिसे पहले भाग में समझाया गया है)। इसके अतिरिक्त, आप इंडियन पीनल कोड की धारा 499, 500 और 211 की मदद ले सकते हैं।

क्या आप इन प्रावधानों के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?

A. धारा 499 और 500

1. ये धाराएं किस बारे में हैं?

इन धाराओं का उद्देश्य किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा (रेप्यूटेशन) की रक्षा करना है। यदि आपको लगता है कि किसी महिला ने अपने झूठे आरोपों से आपकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है, तो आप इन धाराओं का उपयोग कर सकते हैं।

सेक्शुअल हैरेसमेंट के मामले में बरी होने के बावजूद उस समय तक आदमी की प्रतिष्ठा और करियर बर्बाद हो जाता है। इसलिए, उन परिस्थितियों में, ये धाराएं काफी हद तक आपकी मदद कर सकती हैं।

2. मुझे इस धारा के तहत शिकायत क्यों दर्ज करनी चाहिए?

इन धाराओं के तहत डिफेमेशन के अपराध के लिए शिकायत दर्ज की जाती है। यदि आप सफलतापूर्वक यह स्थापित करने में सक्षम हो जाते हैं कि किसी महिला द्वारा आप पर डिफेमेशन किया गया है, तो उस महिला को 2 साल तक की कैद और जुर्माना (इस अपराध के लिए अधिकतम सजा) से दंडित किया जा सकता है।

3.धारा 499 के तहत दर्ज़ शिकायत में कौन से आवश्यक तत्व होने चाहिए?

  • पहली शर्त यह साबित करना है कि बयान प्रकाशित (पब्लिश) होना चाहिए। मामले को लिखित या मौखिक रूप में प्रकाशित किया जाना चाहिए, ताकि यह स्थापित किया जा सके कि कोई व्यक्ति इसके बारे में जानता हो या उसने इसके बारे में सुना है। 
  • अगली शर्त यह साबित करने की है कि दिए गए बयान ने व्यक्ति की प्रतिष्ठा या सद्भावना (गुडविल) को कम कर दिया है और यह अक्सर मूल आधार होता है जिसे डिफेमेशन के मामले के लिए साबित करने की आवश्यकता होती है।
  • अंतिम शर्त यह है कि घटना समाज के सही सोच वाले सदस्यों के सामने हुई होगी। इसका सार यह है कि डिफेमेट्री बयान उन लोगों के एक वर्ग (सेक्शन) के सामने होना चाहिए, जिसकी जानकारी घटना के बारे में आपकी वर्तमान प्रतिष्ठा को बाधित (हैंपर) कर सकती है।

4.कौन सी कोर्ट इस अपराध की सुनवाई करेगी?

फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट इस अपराध को ट्राई करेंगे।

5. क्या यह एक बेलेबल अपराध है?

हाँ, यह एक बेलेबल अपराध है।

नोट: डिफेमेशन के अपराध से निपटने के दो तरीके हो सकते हैं। एक आपराधिक डिफेमेशन है (जिस कि ऊपर चर्चा की गई है) और दूसरा सिविल डिफेमेशन है। बाद में, आप महिला से डेमेजेस का दावा करते हुए उस पर सिविल मुकदमा दर्ज़ कर सकते हैं।

B. धारा 211

1. यह धारा किस बारे में है?

यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ झूठे आरोप लगाता है, तो इस तरह के झूठे आरोप लगाने वाले व्यक्ति ने आई.पी.सी. की धारा 211 के तहत अपराध किया होगा।

2.मुझे इस धारा के तहत शिकायत क्यों दर्ज करनी चाहिए?

यदि आपका वकील यह साबित करने में सक्षम हो जाता है कि महिला ने आप पर सेक्शुअल हैरेसमेंट का झूठा आरोप लगाया है, तो महिला को जुर्माने के साथ 7 साल तक की कैद की सजा दी जा सकती है।

3.धारा 211 के तहत दर्ज़ की गई शिकायत में कौन से आवश्यक तत्व होने चाहिए?

  1. किसी महिला द्वारा आपके खिलाफ एक आपराधिक कार्यवाही या आरोप स्थापित किया गया था।
  2. उस महिला ने इस आधार पर आपके खिलाफ कार्यवाही शुरू की, कि आपने उसको सेक्शुअली हैरेस किया था।
  3. आपके खिलाफ उपरोक्त आरोप झूठे और दुर्भावनापूर्ण थे। 
  4. यह जानने के बावजूद महिला ने आप पर ये आरोप लगाए थे।

4. कौन सा कोर्ट इस अपराध की सुनवाई कर सकता है?

फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट इस अपराध को ट्राई करते हैं। हालाँकि, यदि आप पर किसी ऐसे अपराध का आरोप है जिसकी सज़ा मृत्यु या आजीवन कारावास है, तो सेशंस कोर्ट इस अपराध को ट्राई करेगा।

5. क्या यह (धारा 211) एक बेलेबल अपराध है?

हाँ, यह एक बेलेबल अपराध है।

आई.पी.सी. की धारा 499 और 500 के तहत शिकायत करने का सही समय क्या है?

यह आवश्यक नहीं है कि डिफेमेशन का मामला दर्ज करने से पहले आपको मुख्य मामले के निर्णय के लिए प्रतीक्षा करने की आवश्यकता हो। दरअसल, इन धाराओं के तहत शिकायत करने के लिए मामला या झूठा आरोप लगाना भी जरूरी नहीं है। इन धाराओं का उपयोग करने का सही समय वह है जब सही सोच रखने वाले सदस्यों (जैसा कि पहले बताया गया है) के मन में आपकी प्रतिष्ठा प्रभावित होती है। संक्षेप में, इस धारा का आपकी प्रतिष्ठा से अधिक लेना-देना है, भले ही आपके खिलाफ झूठी एफ.आई.आर दर्ज की गई हो या नहीं।

आई.पी.सी. की धारा 211 के तहत शिकायत करने का सही समय क्या है?

इस प्रश्न का उत्तर उस स्टेज पर निर्भर करता है जिस पर आपके विरुद्ध मुख्य मामला लंबित (पेंडिंग) है।

यदि मजिस्ट्रेट ने उस अपराध (“सेक्शुअल हैरेसमेंट के अपराध”) का कॉग्नीजेंस लिया है, तो आप उस महिला के खिलाफ धारा 211 के तहत शिकायत दर्ज नहीं कर पाएंगे। (यह कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 की धारा 195(1)(B) के कारण है।)

यदि मजिस्ट्रेट (या किसी अन्य कोर्ट) ने उस अपराध (“सेक्शुअल हैरेसमेंट के अपराध”) का कॉग्नीजेंस नहीं लिया है, तो आपको प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। दूसरे शब्दों में, भले ही मुख्य मामला पुलिस अधिकारी के स्तर पर लंबित है, फिर भी आप धारा 211 के तहत शिकायत दर्ज कर सकते है। सबसे अच्छी बात यह है की, हालांकि इंवेस्टीगेशन ऑफिसर को महिला की शिकायत झूठी (चूंकि मामला अभी भी लंबित है), नहीं मिली है लेकिन तब भी कानून के तहत कुछ भी आपको धारा 211 के तहत शिकायत दर्ज करने से नहीं रोक सकता है। (इस पर अधिक जानने के लिए, आप आरकेसेल्वराजन चेट्टियार @ बनाम एस. मुरुगेवल के पैराग्राफ 18-24 को नीचे दी गई साइट पर पढ़ सकते हैं। https://www.casemine.com/judgement/in/560900f3e4b0149711155839#p_2)

क्या उपर्युक्त धाराओं के तहत की गई कार्यवाही, मेरे खिलाफ स्थापित मुख्य मामले में मेरी रक्षा करने में मदद करेगी? मुख्य मामले पर उपरोक्त प्रावधानों के तहत शिकायत दर्ज करने का क्या प्रभाव होगा?

नहीं, बहुत ज्यादा नहीं।

मुख्य मामला (मुख्य मामले का मतलब है कि जिसमें किसी महिला द्वारा आई.पी.सी. की धारा 354A के तहत आपके द्वारा किए गए सेक्शुअल हैरेसमेंट के अपराध का आरोप लगाया गया है) इस बारे में है कि क्या आपने महिला को सेक्शुअली हैरेस किया है या नहीं। अब, जब आप धारा 211 के तहत मामला दर्ज करते हैं, तो आप मूल रूप से यह कहते हैं कि महिला का आरोप झूठा है। क्योंकि सिर्फ आप इस पर भरोसा करते हैं की आपने ऐसा नहीं किया, इसका मतलब यह नहीं है कि महिला का बयान झूठा है। इसलिए, यह अंततः मुख्य मामला है जो आपके भाग्य का फैसला करेगा। यदि आप मुख्य मामले में बरी हो जाते हैं या महिला द्वारा दर्ज की गई एफ.आई.आर. रद्द (क्वाश) कर दी जाती है, तो यह बेहतर होगा की उसके बाद आप धारा 211 के तहत कार्यवाही शुरू करदे और इस स्थिति में आपके लिए यह साबित करना थोड़ा और आसान हो सकता है कि आप झूठे सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोपों का शिकार हुए हैं।

चूंकि धारा 499 और 500 आपकी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए हैं, इसलिए यह आपके मुख्य मामले को प्रभावित नहीं  कर सकते हैं।

अगर महिला ने एफ.आई.आर दर्ज नहीं कराई है, लेकिन वह फेसबुक/व्हाट्सएप या किसी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर झूठी अफवाहें फैला रही है, तो क्या आप इन धाराओं के तहत मामला दर्ज कर सकते हैं?

उस स्थिति में आप धारा 211 के तहत मामला दर्ज नहीं कर सकते। आप धारा 211 लागू करने के बारे में तभी सोच सकते हैं जब महिला ने आपके खिलाफ झूठी एफ.आई.आर. दर्ज की हो (यह, धारा 211 लागू करने के लिए न्यूनतम (मिनिमम) आवश्यकता है)। हालाँकि, इस स्थिति में आप डिफेमेशन से संबंधित धारा 499 और 500 का उपयोग कर सकते हैं।

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