इस लेख में, सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, हैदराबाद के Shrey Chakraborty चर्चा करते हैं कि एक लोक सेवक के खिलाफ आप क्या कार्रवाई कर सकते हैं, जो आपका अपमान करता है या आपको मारता है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash द्वारा किया गया है।
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परिचय
सत्ता में बैठे लोगों के लिए यह असामान्य नहीं है कि वे उस शक्ति का दुरुपयोग करें जो उनके पास निहित है। तो क्या सत्ता में बैठे लोग उन लोगों पर अत्याचार, दमन (सप्रेस) और शोषण करना जारी रखेंगे, जिन्होंने उन्हें पहली बार यह शक्ति दी थी? नहीं, हम एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य (सॉवरेन सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) में रहते हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना (प्रीएमबल) में यही कहा गया है। फिर क्यों जनता पर अब भी अत्याचार हो रहे हैं? यह केवल एक व्यक्ति के कानूनी अधिकारों और उपचारों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण है। इस लेख में, मैं उन तंत्रों के बारे में बात करूंगा जिनका उपयोग व्यक्ति कर सकते है, यदि किसी लोक सेवक ने आपको मारा या अपमान किया है।
हम क्यों नहीं बोलते है?
लोग आमतौर पर किसी सरकारी कार्यालय में जाना पसंद नहीं करते हैं या किसी लोक सेवक के साथ व्यवहार करना भी पसंद नहीं करते हैं। यह नागरिकों के मन में एक पूर्वाग्रह (प्रेज्यूडिस) बन गया है। लेकिन यह पूर्वाग्रह एक कारण से है। इसमें सच्चाई का एक कर्नेल होता है। हम सरकारी कार्यालय में जाना पसंद नहीं करते हैं या किसी लोक सेवक के साथ उनके शांत रवैये, लालफीताशाही (रेड टेपिसम), भ्रष्टाचार, नौकरशाही (ब्यूरोक्रेसी) और आदि के चलते व्यवहार करना पसंद नहीं करते हैं। लेकिन हम इसके बारे में क्यों नहीं बोलते? यदि सरकारी कार्यालय में कोई लोक सेवक आपका अपमान करता है, तो हम इस बारे में क्यों नहीं बोलते? क्या होगा अगर वही लोक सेवक आपको मार दे? तब कुछ लोग आपत्ति कर सकते हैं। परन्तु ऐसा क्यों? खैर, मुख्य रूप से इसलिए कि हम आशंकित (अप्रिहेंसिव) हैं कि यह हमारे लिए स्थिति को और खराब कर सकता है और इसलिए हम खुद को रोक लेते हैं। हमें उन उपायों को जानना चाहिए, जो हमारे लिए उपलब्ध हैं यदि कोई लोक सेवक हमें मारता है या अपमान करता है। लेकिन किसी लोक सेवक के खिलाफ किसी व्यक्ति के लिए उपलब्ध तंत्र और उपायों को जानने से पहले, यह जानना महत्वपूर्ण है कि कानूनी भाषा में ‘लोक सेवक’ का वास्तव में क्या अर्थ है।
एक लोक सेवक कौन है?
भारतीय दंड संहिता में ‘लोक सेवक’ शब्द को परिभाषित किया गया है और यह परिभाषा विस्तृत है। प्रावधान के अनुसार, अधिकारियों की श्रेणियां निम्नलिखित हैं, जो एक लोक सेवक के दायरे में आती हैं:
- भारत की सेना, नौसेना या वायु सेना में प्रत्येक कमीशंड अधिकारी;
- प्रत्येक न्यायाधीश, जिसमें कोई भी व्यक्ति शामिल है, जो किसी भी न्यायिक कार्यों का निर्वहन करने के लिए कानून द्वारा सशक्त (एंपावर) है;
- न्यायालय के प्रत्येक अधिकारी (एक परिसमापक (लिक्विडेटर), रिसीवर या आयुक्त सहित);
- न्यायलय या लोक सेवक की सहायता करने वाला प्रत्येक जूरीमैन, मूल्यांकनकर्ता (एसेसर), या पंचायत का सदस्य;
- प्रत्येक मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर) या अन्य लोग, जिनके पास किसी न्यायालय या किसी अन्य सक्षम सार्वजनिक प्राधिकरण (अथॉरिटी) द्वारा निर्णय या रिपोर्ट के लिए कोई कारण या मामला भेजा गया है;
- प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे को कारावास में रखने का अधिकार;
- प्रत्येक अधिकारी जिसका कर्तव्य अपराधों को रोकना, अपराधों की जानकारी देना, अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना, या सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा की रक्षा करना है;
- प्रत्येक अधिकारी जिसे चुनाव कराने का अधिकार है।
और यह सूची चलती ही जाती है। इस विस्तृत परिभाषा पर अधिक स्पष्टता प्राप्त करने के लिए, यहां क्लिक करें। आईपीसी की यह धारा बताती है कि ‘लोक सेवक’ की छत्रछाया में किसे लोक सेवक माना जा सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी प्रकार से आपको मारने वाले या आपका अपमान करने वाले उपरोक्त लोक अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की जा सकती है। अगला सवाल यह उठता है कि क्या हमारे पास कानून के पर्याप्त प्रावधान हैं, जो हमारी समस्या का समाधान कर सकते हैं?
क्या भारतीय कानून में कोई प्रावधान है, जो इस मुद्दे को पर्याप्त रूप से संबोधित करता है?
- जब कोई लोक सेवक सार्वजनिक दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहता है और इसके बजाय, कुछ गलत कामों में संलग्न (एंगेज) होता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को चोट लगती है, तो उसे दुर्भावना कहा जाता है। उदाहरण – एक नगर प्राधिकरण ने एक नया प्रमुख नियुक्त किया – X। इस प्रबंधक (मैनेजर) को अपनी अन्य जिम्मेदारियों के साथ, कुछ सामाजिक कल्याण परियोजनाओं के लिए तीसरे पक्ष के साथ अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता है। A, एक उद्यमी (इंटरप्रेन्योर), ने एक सामाजिक कल्याण परियोजना अनुबंध के लिए X से संपर्क किया, जिससे दोनों पक्षों को लाभ होगा। हालांकि, X इस शर्त पर अनुबंध पर हस्ताक्षर करना स्वीकार करता है कि यदि A, X को एक निश्चित राशि का भुगतान करता है। इस प्रकार, एक लोक सेवक की हैसियत से X का आचरण, दुर्भावना की श्रेणी में आता है।
- इसी तरह, भारत में, लोक सेवक द्वारा किया गया कोई भी गलत कार्य दुर्भावना की श्रेणी में आएगा। हालांकि, भारत में, दुर्भावना को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन कुछ कानून ऐसे हैं जो ऐसी परिस्थितियों का प्रावधान करते हैं, जब कोई लोक सेवक अपने अधिकार का उपयोग करके आपको गाली देता है।
- आईपीसी के 22वें अध्याय में अपमान के अपराध के लिए 2 साल की कैद या जुर्माना या यहां तक कि दोनों की सजा का प्रावधान है। यह अपराध दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार एक कंपाउंडेबल अपराध है। इसका मतलब है कि अपमानित किये गए व्यक्ति द्वारा इस अपराध को कंपाउंड किया जा सकता है।
- उदाहरण – A, जो पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने के लिए मदद मांग रहा है, B से पूछता है, जो वहां का अधिकारी है। B उसकी मदद करने के बजाय सबके सामने उसका अपमान करता है। इसके कारण, A कानून की अदालत में जाता है क्योंकि B ने उसका अपमान किया है। चूंकि अपमान एक कंपाउंडेबल अपराध है, B, A के साथ समझौता कर सकता है ताकि उसके खिलाफ आरोप हटा दिए जाएं।
- इसी तरह, भारतीय दंड संहिता उन परिस्थितियों के लिए भी प्रावधान करती है, जब आप पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से प्रहार किया जा रहा हो। ऐसी स्थिति में, जिस व्यक्ति ने आपको मारा है, वह फिर से 3 महीने की अवधि के लिए कारावास या 500 रुपये तक का जुर्माना या यहां तक कि दोनों के लिए दंड के भागी होगा।
- भारतीय दंड संहिता में यह भी कहा गया है कि यदि कोई लोक सेवक व्यक्ति को सजा से बचाने के इरादे से अपने आचरण के अनुसार या कानून के किसी भी निर्देश के विपरीत कार्य नहीं कर रहा है, तो ऐसा व्यक्ति 2 साल कैद की सजा या जुर्माना या दोनों के लिए उत्तरदायी होगा।
- साथ ही, यदि कोई लोक सेवक न्यायिक कार्यवाही में कानून के विपरीत रिपोर्ट करता है, तो वह 7 साल की कैद या जुर्माना या दोनों के लिए उत्तरदायी होगा।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 166 के अनुसार, एक लोक सेवक जो दूसरे को चोट पहुंचाने के इरादे से कानून की अवहेलना करता है, उसे 1 साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है। इसलिए यदि कोई लोक सेवक आपको मारता या अपमानित करता है, तो आईपीसी का यह प्रावधान आकर्षित होगा।
- हालांकि, भारतीय कानून में, ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो विशेष रूप से, एक लोक सेवक द्वारा अपमान, हमला या किसी भी गलत काम को अपराध बनाता है। लेकिन प्रत्येक लोक सेवक के लिए कुछ दिशानिर्देश और आचार संहिता हैं, जिनका उन्हें पालन करना आवश्यक है।
- तो, वास्तव में कानून के कुछ प्रावधान हैं जो वर्तमान समस्या का समाधान करते हैं लेकिन क्या ये प्रावधान समस्या के हर पहलू को कवर करते हैं? क्या वे उस समस्या का ठीक से समाधान करते हैं, जिसका सामना हम किसी लोक अधिकारी द्वारा प्रताड़ित या अपमानित करने पर करते हैं? नहीं, ये प्रावधान उस समस्या का पर्याप्त समाधान नहीं करते हैं, जब कोई लोक सेवक आपको मारता या अपमानित करता है। तो हम किसका सहारा लेते हैं?
इसका क्या निदान है?
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, कुछ प्रावधान हैं जो एक अपराध के रूप में मारने या अपमान करने का कार्य करते हैं। इसलिए, पहला कदम जो व्यक्ति को उठाना चाहिए, वह है एफआईआर दर्ज करके पास के पुलिस स्टेशन में लोक सेवक के कार्य की रिपोर्ट करना। एफआईआर दर्ज करने से कानूनी कार्यवाही का पहला चरण शुरू होता है। एक बार कानूनी कार्यवाही शुरू हो जाने के बाद, कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया जाता है और कानून का शासन कायम रहता है। लेकिन समस्या इतनी लंबी (कभी-कभी खत्म न होने वाली) न्यायिक प्रक्रिया में निहित नहीं है।
किसी को यह समझना चाहिए कि यह तथ्य कि आप एफआईआर दर्ज करते हैं, आपको इसी तरह की एक और स्थिति के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है। आखिर पुलिस अधिकारी भी तो जनता का सेवक होता है। ऐसे में क्या करना चाहिए कि उस पुलिस अधिकारी के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज करा दी जाए। लेकिन कौन स्वीकार करेगा कि पुलिस अधिकारी वही है, जिस पर अपराधों का आरोप लगाया गया है? क्या होगा अगर समाज में सभी बुराइयों से लोगों की रक्षा करने वाला लोक सेवक दुष्ट बन जाए? क्या होगा यदि कोई शिकायत स्वीकार नहीं करता है? ऐसे में आप जिला पुलिस अधिकारी के पास जा सकते हैं, जो मामले को देखेंगे और एफआईआर दर्ज करने का आदेश भी देंगे।
हालांकि, यदि ये दोनों रास्ते पीड़ित के लिए बहुत प्रभावी नहीं होते हैं, तो आप निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकते हैं या यहां तक कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से संपर्क कर सकते हैं, या, यदि आपके राज्य में उपलब्ध हो, तो राज्य मानवाधिकार आयोग से संपर्क कर सकते हैं। जैसा कि हम देख सकते हैं, ऐसे कई तरीके हैं, जिनसे आप संबंधित अधिकारियों को अपनी शिकायतों के बारे में बता सकते हैं।
पुलिस शिकायत प्राधिकरण (पीसीए) क्या है और यह कैसे काम करता है?
हालांकि, यदि आपने उपरोक्त सभी दरवाजे खटखटाए गए हैं और फिर भी किसी ने उत्तर नहीं दिया है, तब भी आपको हार नहीं माननी चाहिए! अभी एक दरवाजा खटखटाना बाकी है और वो हैं पुलिस शिकायत प्राधिकरण का दरवाजा। 2006 में, प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित एक ऐतिहासिक निर्णय ने सभी राज्यों को अपने-अपने राज्यों में पुलिस शिकायत प्राधिकरण बनाने का निर्देश दिया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि राज्य के कामकाज में कानून के शासन को बनाए रखने की सख्त जरूरत थी। समस्या यह है कि अभी तक केवल 18 राज्यों ने ही इस निर्देश का पालन किया है। इससे भी बुरी बात यह है कि इस सुनहरे दरवाजे के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं।
चूंकि यह एक राज्य का विषय है, इसलिए प्रत्येक राज्य के अपने पुलिस शिकायत प्राधिकरण विनियम (पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी रेगुलेशंस) हैं। इनमें से अधिकांश पीसीए विनियमों के अनुसार, निम्नलिखित बुनियादी कार्य हैं, जो अधिकांश पीसीए में समान हैं:
- उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें प्राप्त करें जिन पर गलत काम करने का आरोप लगाया गया है।
- कदाचार के उन आरोपों की जांच करें।
- एफआईआर दर्ज न करने की शिकायतों को प्राप्त करें और पूछताछ करें।
निष्कर्ष
अब, क्या हम यह मान लें कि कानून का कोई शासन नहीं है और जो सत्ता में हैं वे उस शक्ति के बिना लोगों पर अत्याचार करते रहेंगे? संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है और इससे ऊपर कोई नहीं है। कानून का शासन भारतीय संविधान के एक स्तंभ के रूप में खड़ा है और इसे हटाया नहीं जा सकता है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं, पुरुष या महिला, गरीब या अमीर; कानून हमेशा आपके ऊपर रहेगा। कोई कानून से ऊपर नहीं है, यहां तक कि कानून बनाने वाले या कानून लागू करने वाले भी नहीं। यदि आप एक पुलिसकर्मी हैं, तो भी आप कानून के समक्ष जवाबदेह होंगे।
तो हाँ, यदि कोई लोक सेवक कानून तोड़ता है, तो उस व्यक्ति को इसके लिए बिल्कुल दंडित किया जाएगा, सभी की तरह। यदि कोई लोक सेवक आपको मारता है या मौखिक रूप से आपका अपमान करता है, तो आशंकित होने और पीछे हटने का कोई मतलब नहीं है। यदि वह असभ्य रहा है, या उसने अनुचित व्यवहार किया है या अपना कर्तव्य उस तरह से नहीं किया है जैसा उसे करना चाहिए, तो उसे हमेशा उसके वरिष्ठों (सीनियर) द्वारा दंडित किया जा सकता है।
राज्य को अपनी प्रजा के हितों की रक्षा करनी चाहिए। कोई भी राज्य एकांत में काम नहीं कर सकता। इसे लोगों के साथ और लोगों के लिए काम करना चाहिए और तभी राष्ट्र समग्र रूप से विकसित हो सकता है।
संदर्भ
- Section 21 of Indian Penal Code, 1861.
- Section 504 of Indian Penal Code, 1861.
- Section 320 of Code of Criminal Procedure, 1973.
- Section 350 of Indian Penal Code, 1861
- Section 352 of Indian Penal Code, 1861.
- Section 217 of Indian Penal Code, 1861.
- Section 219 of Indian Penal Code, 1861.
- Writ Petition (civil) 310 of 1996.