क्या कोई पत्नी आई.पी.सी. की धारा 377 के तहत पति के खिलाफ अननेचुरल सेक्शुअल ऑफेंस का मामला दर्ज करा सकती है

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Indian Penal Code
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इस लेख में लेखक, धारा 377 के बारे में और क्या महिलाएं इस धारा का उपयोग करके अपने पति के खिलाफ मामला दर्ज करवा सकती हैं, पर चर्चा करते हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन) 

आई.पी.सी. की धारा 377 इस प्रकार है:

अननेचुरल ऑफेंस- जो कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ प्रकृति के आदेश के खिलाफ जाकर, उसके साथ कार्नल इंटरकोर्स करता है, उसे आजीवन कारावास, या किसी एक अवधि की कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और वह जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा। 

स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन)- पेनिट्रेशन इस धारा में बताये गए ऑफेंस के लिए, आवश्यक कार्नल इंटरकोर्स का गठन (कंस्टिट्यूट) करने के लिए पर्याप्त है।

इस ऑफेंस के विभिन्न इंग्रेडिएंट्स को इस प्रकार समझा जा सकता है

  • “अपनी इच्छा से”: इसके लिए यह आवश्यक है कि अननेचुरल ऑफेंस किसी इरादे के साथ होना चाहिए।
  • “कार्नल इंटरकोर्स होना चाहिए”: इसके लिए आवश्यक है कि कार्य कमिट किया गया है (एक्टस रिअस); केवल इरादा पर्याप्त नहीं है।
  • “प्रकृति के आदेश के खिलाफ”: यह हिस्सा कोर्ट द्वारा विभिन्न व्याख्याओं के अधीन (सब्जेक्ट) है। खानू बनाम एम्परर के मामले में कोर्ट ने यह निर्धारित (लेड डाउन) किया कि, “सेक्शुअल इंटरकोर्स का प्राकृतिक उद्देश्य यह है कि मनुष्य के कंसेप्शन की संभावना (पॉसिबिलिटी) होनी चाहिए।’ कोर्ट ने तब सेक्शुअल इंटरकोर्स को “सीमित उद्देश्यों के लिए दूसरे जीव के द्वारा एक जीव के साथ अस्थायी मुलाकात (टेम्पररी विजिटेशन)” के रूप में परिभाषित किया है।”। इस प्रकार कोई भी सेक्शुअल गतिविधि, जिसका प्राकृतिक उद्देश्य कंसेप्शन नहीं है, वह प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध होगी। इस धारा को कोर्ट्स द्वारा पशुता (बेस्टिएलिटी), चाइल्ड सेक्शुअल एब्यूज और सहमति से होमोसेक्शुअल इंटरकोर्स को ऑफेंस घोषित करने के लिए पढ़ा गया था। कोर्ट्स द्वारा, समय-समय पर इस धारा की व्याख्या करने में, शुरू में केवल एनल सेक्स को अननेचुरल मानकर सजा दी थी और धीरे-धीरे, खानू बनाम एम्परर जैसे मामलों ने भी ओरल सेक्स को अननेचुरल माना था। वर्तमान व्याख्याओं ने अन्य आर्टिफिशियल ओपनिंग जैसे कि जांघों (थाईज) या मुड़ी हुई हथेलियों के बीच, अननेचुरल के रूप में पेनाइल पेनिट्रेशन को भी कवर किया है।

कानूनी विवाद जिसने आई.पी.सी. की धारा 377 को घेरा हुआ है

डेटा के अनुसार, इस धारा के लागू होने के दौरान, होमोसेक्शुअल्स को सबसे अधिक नुकसान हुआ है और उन्हें निशाना बनाया गया है। इससे, इस धारा के भविष्य का फैसला करने के लिए कानूनी विवाद हुए थे।

कानूनी विवाद, जिसने इस धारा को घेरा हुआ है, वह नाज़ फाउंडेशन द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष याचिका दायर करने के साथ शुरू हुए थे। दिल्ली हाई कोर्ट ने नाज़ फाउंडेशन बनाम एनसीटी ऑफ़ दिल्ली के मामले में, सहमति से किए गए निजी सेक्शुअल कार्यों पर इस धारा को लागू न करने के लिए देखा, लेकिन फिर भी यह सहमति के बिना किए गए कार्यों पर लागू होगी। इस प्रकार निर्णय का प्रभाव यह हुआ कि होमोसेक्शुअल कार्य अवैध नहीं हैं।

लेकिन इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सुरेश कुमार कौशल के फैसले में पलट (अपहेल्ड) दिया, जिसमें धारा 377 की संवैधानिक वैधता (कांस्टीट्यूशनल वैलिडिटी) को बरकरार रखा और प्रकृति के आदेश के खिलाफ, सहमति से किए गए निजी सेक्शुअल कार्यों को ऑफेंस की श्रेणी में रखा।

पत्नी अपने पति के खिलाफ धारा 377 के तहत मामला दर्ज करा सकती है

सुप्रीम कोर्ट के शब्दों में “आई.पी.सी. की धारा 377, किसी विशेष व्यक्ति या पहचान या ओरिएंटेशन को क्रिमिनलाइज नहीं करती है। यह केवल कुछ ऐसे कार्यों की पहचान करती है, जो यदि किए गए तो एक ऑफेंस कहलाएंगे। इस तरह का निषेध (प्रोहिबिशन) लैंगिक पहचान (जेंडर आइडेंटिटी) और ओरिएंटेशन की परवाह किए बिना सेक्शुअल कंडक्ट को नियंत्रित (रेगुलेट) करता है।” इस प्रकार धारा 377 में, होमोसेक्शुअल और हेट्रोसेक्शुअल को एक ही प्रकार से शामिल किया गया है और हेट्रोसेक्शुअल के बीच प्रकृति के आदेश के खिलाफ कार्नल इंटरकोर्स को उसी प्रकार दंडित किया जाएगा।

एक पत्नी अपने पति के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 377 के तहत अननेचुरल सेक्शुअल ऑफेंसेज के खिलाफ मामला दर्ज करवा सकती है। क्योंकि, यह धारा व्यक्तियों के सेक्शुअल ओरिएंटेशन या लैंगिक पहचान की परवाह किए बिना, प्रकृति के आदेश के खिलाफ सेक्शुअल इंटरकोर्स को दंडित करती है, इस प्रकार भले ही, ऐसे कोई कार्य हेट्रोसेक्शुअल जोड़े द्वारा किया गया हो, तो उन्हें भी धारा 377 के तहत दंडित किया जा सकता है। इसके अलावा अगर पीड़ित ने सहमति दी है (उम्र की परवाह किए बिना), तो भी ऑफेंडर को इस धारा के तहत दंडित किया जा सकता है। धारा 377 लागू करने के लिए सहमति का कोई महत्व नहीं है और पीड़ित की सहमति से किसी गैरकानूनी कार्य को वैध नहीं ठहराया जा सकता है।

ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें पत्नी या प्रेमिका ने अपने पति या प्रेमी के खिलाफ धारा 377 के तहत अननेचुरल सेक्शुअल कार्यों के लिए मामला दर्ज करवाया है। लगभग 20 साल की एक महिला ने अपने पति के साथ एनल और ओरल सेक्स के रिकॉर्ड रखे और फिर तलाक के लिए याचिका दायर की। एक अन्य महिला ने, जब उसके रिश्ते का खुलासा उसके पति को किया गया, तो उसने एक व्यक्ति के खिलाफ, धारा 377 के तहत मामला दर्ज किया, जिसके साथ वह एक्स्ट्रा मैरिटल संबंध में थी।

कानून का उपयोग होने के साथ-साथ उसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है। यह इस अर्थ में उपयोगी है कि, क्योंकि भारत में मैरिटल रेप कोई ऑफेंस नहीं है, इसलिए भारतीय महिलाओं के पास अपने पति को दंडित कराने का यह तरीका है, यदि पति उनके साथ कोई अननेचुरल सेक्शुअल कार्य करते है। यह धारा, उन क्रूर (क्रूअल) पतियों द्वारा पीड़ित भारतीय विवाहित महिलाओं के हाथों में एक टूल के रूप में कार्य करेगी।

दूसरी ओर धारा 377 भी बड़े पैमाने पर दुरुपयोग करने में सक्षम (कैपेबल) है, क्योंकि इस धारा का उपयोग करके, न्याय करने के लिए सहमति एक अप्रासंगिक मानदंड (रिलेवेंट क्राइटेरिया) है। इस प्रकार अननेचुरल सेक्शुअल कार्य के लिए शिकायतकर्ता (कंप्लेंनेंट) की सहमति व्यक्ति को जेल जाने से नहीं बचा सकती है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • Khanu v. Emperor , AIR 1925 Sind 286
  • Naz Foundation (India) Trust v. Government of NCT of Delhi and Ors. [Writ Petition (Civil) No. 4755 of 2001]
  • Suresh Kumar Koushal & Ors. v. Naz Foundation (India ) Trust & Ors.[Special Leave Petition (Civil) No. 15436 of 2009]
  • Section 377: Men worry about being framed by women, Swati Deshpande, TNN, Dec 17, 2013, 07.04AM IST

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