विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा और अन्य, 7 अन्य मामलों के साथ

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Hindu Succession Amendment Act 2005
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यह लेख Dylan Dominic द्वारा लिखा गया है। यह लेख विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा और अन्य मामले के बारे में पूरी जानकारी से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sonia Balhara द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956 (1956 का एक्ट) हिंदुओं के बीच इंटेस्टेट सक्सेशन से संबंधित कानूनों को अमेंड और कोडिफाइड करने के लिए अधिनियमित (एनक्टेड) किया गया था और सक्सेशन के संबंध में परिवर्तन लाया गया था और महिलाओं को कुछ अधिकार भी प्रदान किए गए थे जो तब तक अस्तित्व में नहीं थे। इसके अलावा, 1956 के एक्ट ने, धारा 6 के तहत, एक हिंदू कोपार्सेनर के पुरुष कोपार्सेनर के विशेष अधिकार को कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी पर जन्म से विरासत में मिला और कोपार्सेनर के बीच इन्हेरिट के लिए नियम निर्धारित किए गए। हालांकि, यह लिंग के मामले में भेदभावपूर्ण (डिस्क्रिमिनेशन) था और समानता के संवैधानिक अधिकार (कांस्टीट्यूशनल राइट्स) की अपेक्षा भी, जहाँ एक कोपार्सेनर की बेटी का संबंध था। भेदभाव को दूर करने के लिए, संसद ने हिंदू सक्सेशन (अमेंडमेंट) एक्ट 2005 (2005 का एक्ट) पास किया, जो 09.09.2005 से लागू हुआ, जिसके द्वारा 1956 के एक्ट की धारा 6 को सब्स्टीट्यूट किया गया और कोपार्सनर की बेटी को, एक बेटे के बराबर माना गया और उसको भी जन्म से, कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी में वैसे ही अधिकार प्रदान किये गए, हालांकि इस तरह का अधिकार प्रदान करना किसी भी स्वभाव (डिस्पोसिशन) या अलगाव (एलिनेशन), विभाजन (पार्टीशन) या वसीयतनामा (टेस्टामेंट्री) को प्रभावित या अमान्य नहीं करेगा जिन संपत्ति का निपटान 20.12.2004 से पहले हुआ था।

2005 के अमेंडमेंट एक्ट के बाद, प्रकाश और अन्य बनाम फुलावती एवं अन्य, (2016) 2 एससीसी 36 के मामले में भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने माना कि 2005 का एक्ट प्रकृति में प्रोस्पेक्टिव है और 2005 के एक्ट की धारा 6 के तहत बेटी को दिए गए अधिकार, एक जीवित कोपार्सेनर की जीवित बेटी पर हैं, जिसके लिए 09.09.2005 को कोपार्सेनर के जीवित रहने की आवश्यकता होती है, ताकि बेटी कोपार्सेनर प्रॉपर्टी पर अधिकार का दावा कर सके। उक्त मामले में, 2005 के अमेंडमेंट से पहले कोपार्सेनर की मृत्यु हो गई थी और इसलिए, यह माना गया कि बेटी कोपार्सेनर प्रॉपर्टी में हिस्से की हकदार नहीं है क्योंकि वह एक जीवित कोपार्सेनर की बेटी नहीं है। भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच के बाद के फैसले में, दानम्मा @ सुमन सुरपुर और अन्य बनाम अमर एवं अन्य, (2018) 3 एससीसी 343 कोर्ट ने विशेष रूप से एक जीवित कोपार्सेनर की जीवित बेटी की अवधारणा (कांसेप्ट) पर विचार नहीं किया, कोर्ट ने फुलावती मामले के फैसले से एक विरोधाभासी दृष्टिकोण (कॉन्ट्रडिक्टिंग व्यू) की बेटियों का कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी पर बराबर का अधिकार है जैसा की बेटों को प्रदान किया गया है, भले ही कोपार्सेनर की मृत्यु 2005 के अमेंडमेंट से पहले हो गई हो।

यहां विश्लेषण (एनालिसिस) के तहत एक अपील में, अर्थात, विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा और अन्य में, इसी तरह के प्रश्न माननीय सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाए गए थे, और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपरोक्त दो में व्यक्त विरोधाभासी विचार पर विचार करते हुए निर्णय, यानी, फुलावती मामला और दानम्मा मामला, इस मुद्दे को माननीय सुप्रीम कोर्ट की 3 न्यायाधीशों की बेंच के पास भेजा गया था।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने इशूज़

  • क्या 2005 के एक्ट की अमेंडेड धारा 6 के अनुसार बेटी को कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी में अधिकार देने के लिए, कोपार्सेनर का 09.09.2020 तक जीवित रहना जरूरी है? 
  • क्या 2005 के एक्ट की अमेंडेड धारा 6 प्रोस्पेक्टिव, रेट्रोस्पेक्टिव या रेट्रोएक्टिव है?

भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से दिए गए तर्क

  • 2005 का अमेंडमेंट एक्ट रेट्रोस्पेक्टिव नहीं बल्कि प्रकृति में रेट्रोएक्टिव है।
  • बेटी को अधिकार प्रदान करने से उन अधिकारों का हनन (डिस्टर्ब) नहीं हुआ है, जो 20.12.2004 से पहले विभाजन से क्रिस्टलाइज्ड हो गए थे।
  • धारा 6 में कोपार्सेनर की बेटी का अर्थ जीवित कोपार्सेनर की बेटी नहीं है। अमेंडमेंट एक्ट के प्रारंभ होने की तिथि के अनुसार कोपार्सेनर का जीवित होना आवश्यक नहीं है।
  • पंजीकृत (रजिस्टर्ड) विभाजन विलेख (डीड) की आवश्यकता के संबंध में धारा 6(5) का एक्सप्लनेशन प्रकृति में एक निर्देशिका (डायरेक्टरी) है और अनिवार्य नहीं है।

विद्वान सीनियर वकील और एमिकस क्यूरी, श्री आर. वेंकटरामनी द्वारा दिए गए तर्क

  • फुलावती और दानम्मा के निर्णयों के बीच कोई विरोध नहीं है, और दोनों निर्णयों में, धारा 6 के प्रावधानों को प्रकृति में संभावित माना गया है।
  • एक कोपार्सेनर की मृत्यु पर, उसका हित (इंटरेस्ट) जीवित कॉपर्सनरी में विलीन (मर्ज्ड) हो जाएगा और इसलिए, एक कोपार्सेनर पिता की मृत्यु पर, कोई भी जीवित कोपार्सेनरी नहीं होगा जिससे बेटी सफल होगी। इसलिए बेटी जीवित कोपार्सेनरी के हित में ही सफल हो सकती है।
  • यद्यपि समानता को 2005 के अमेंडमेंट से लागू किया गया है, 2005 से पहले एक कोपार्सेनर के जन्म की घटना का कोई परिणाम नहीं है।
  • मौखिक विभाजन और पारिवारिक बंदोबस्त का इरादा धारा 6(1) और 6(5) द्वारा फिर से खोलने का नहीं है।

विद्वान सीनियर वकील और एमिकस क्युरि, श्री वी.वी.एस.राव

  • फुलावती में निर्णय के तर्क को मंगममल बनाम टी.बी. राजू और अन्य में बरकरार रखा गया है।
  • 2005 से पहले या उसके बाद पैदा हुई बेटी को कोपार्सेनर माना जाता है।
  • धारा 6(1)(b) और (c) में इस्तेमाल की गई भाषा से संसद का मतलब अमेंडमेंट के बाद कोपार्सेनर में अधिकार प्रदान करना है न कि पूर्ववर्ती (एंटीसीडेंट)।
  • प्रचलित कानून के अनुसार, यह आवश्यक नहीं था कि एक विभाजन पंजीकृत किया जाना चाहिए। ऐसे मामले में जहां मौखिक विभाजन को मान्यता दी जाती है, इसे उचित साक्ष्य समर्थन (एविडेंटरी सपोर्ट) द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए।
  • संसद का इरादा एक बेटी को रेट्रोस्पेक्टिवली रूप से कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी में अधिकार प्रदान करने का नहीं था।
  • धारा 6(1) में “ऑन एंड फ्रॉम” शब्दों का प्रयोग इंगित (इंडिकेट्स) करता है कि बेटी एक्ट के प्रारंभ से कोपार्सेनरी बन जाती है।
  • एक बेटी को दी गयी कोपार्सेनर की स्थिति अलगाव, स्वभाव, विभाजन के पिछले लेनदेन को प्रभावित नहीं कर सकती- मौखिक या लिखित। एक्सप्लनेशन पार्टियों द्वारा किए गए मौखिक विभाजन सहित अतीत के सभी वास्तविक लेनदेन की सुरक्षा करता है।
  • एक जीवित कोपार्सेनरी होना चाहिए जिसे बेटी कोपार्सेनर बनने के लिए इन्हेरीट में प्राप्त कर सके।

एडवोकेट श्री अमित पाय द्वारा दिए गए तर्क

  • अमेंडमेंट एक्ट के तहत धारा 6 को प्रतिस्थापन (सब्सीट्यूशन) मूल एक्ट 1956 के प्रारंभ से है।
  • एक कोपार्सेनर की मृत्यु पर इसके शेयर्स का पता लगाने के लिए एक काल्पनिक (नेशनल) विभाजन, एक वास्तविक (एक्चुअल) विभाजन नहीं है और इसे धारा 6 में निहित परंतुक (प्रोविज़ो) द्वारा बाहर नहीं रखा गया है।
  • फुलावती में निर्णय को सही कानून बनाने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
  • एक जीवित कोपार्सेनर की जीवित पुत्री की अवधारणा धारा 6 के प्रावधानों के पाठ में जोड़ रही है।
  • धारा 6 में सभी बेटियां शामिल हैं, चाहे उनके पिता एक्ट में अमेंडमेंट की तिथि के अनुसार जीवित हों।

विचार (रीज़निंग)

सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच ने उपरोक्त अपीलों में, हिंदू कानून की विभिन्न अवधारणाओं को कोडिफाइड और प्रथागत (कस्ट्मरी) दोनों, कोपार्सेनर और संयुक्त हिंदू परिवार और अबाधित (अनऑब्स्ट्रक्टेड) और बाधित (ऑब्स्ट्रक्टेड) विरासत जैसी अवधारणाओं के रूप में संदर्भित किया है, और निर्णयों की श्रेणी का भी उल्लेख किया है, निर्णय के पैराग्राफ संख्या 44 में, एक निष्कर्ष पर आया, कि अमेंडेड धारा 6 के अनुसार, कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी पर एक बेटी को अधिकार प्राप्त करने के लिए कोपार्सेनर पिता को जीवित रहने की आवश्यकता नहीं है। बाधित और अबाधित विरासत की व्याख्या (एक्सप्लेनेशन) करते वक्त, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अबाधित विरासत जन्म से होती है, जबकि बाधित विरासत मालिक की मृत्यु के बाद होती है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 6 के तहत, अधिकार जन्म से दिया जाता है, जिससे यह एक अबाधित विरासत बन जाती है, और इसलिए बेटी को कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी का अधिकार प्राप्त करने के लिए कोपार्सेनर पिता को 09.09.2005 तक जीवित रहने की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अबाधित विरासत के अनकोडिफाइड हिंदू कानून की अवधारणा को धारा 6(1)(a) और 6(1)(b) के प्रावधानों के तहत एक ठोस आकार दिया गया है और यह कि कोपार्सेनर अधिकार जन्म से है और इसलिए, यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है कि बेटी के पिता अमेंडमेंट की तारीख पर जीवित हो, क्योंकि उसे बाधित विरासत द्वारा कोपार्सेनर के अधिकार से सम्मानित नहीं किया गया था। इस प्रकार, जहां तक इस पहलू का संबंध है, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फुलावती मामले में निर्णय को एक अच्छा निर्णय नहीं माना।

अमेंडेड धारा 6 के रेट्रोस्पेक्टिव या प्रोस्पेक्टिव होने के संबंध में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अमेंडेड धारा 6 रेट्रोएक्टिव प्रकृति की है। प्रोस्पेक्टिव, रेट्रोस्पेक्टिव और रेट्रोएक्टिव की अवधारणाओं की व्याख्या करते हुए, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि रेट्रोएक्टिव क़ानून का संचालन (ऑपरेशन) एक विशेषता या घटना के आधार पर संचालित होता है जो अतीत में हुआ था या आवश्यक घटनाएँ जो पूर्ववर्ती घटना से ली गई थी। न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 6(1)(a) में मिताक्षरा कोपार्सेनर की अबाधित विरासत की अवधारणा शामिल है, जो जन्म के आधार पर है और चूंकि अधिकार जन्म से दिया जाता है, यह एक पूर्ववर्ती घटना है, और प्रावधान संचालित होते हैं और अमेंडमेंट एक्ट की तारीख से, इसे रेट्रोएक्टिव बनाते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 6(4) में निहित प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि धारा 6 के प्रावधान रेट्रोस्पेक्टिव नहीं हैं।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

उपरोक्त मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तर दिए गए अन्य मुद्दों के अलावा, निम्नलिखित का उत्तर दिया गया:

  • कोपार्सेनरी प्रॉपर्टी में एक बेटी को दिया गया अधिकार जन्म से होता है और इसलिए, यह आवश्यक नहीं है कि पिता 09.09.2005 तक जीवित हो। इस प्रकार, फुलावती मामले में निर्णय को खारिज कर दिया जाता है और दानम्मा मामले में निर्णय को आंशिक रूप से खारिज कर दिया जाता है, जहां यह कहा गया था कि कोपार्सेनर पिता को 09.09.2005 तक जीवित रहना होगा।
  • 2005 के एक्ट की धारा 6 के सब्सीट्यूशन के माध्यम से अमेंडमेंट प्रकृति में रेट्रोएक्टिव है।

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