धोखाधड़ी के तत्व, इसकी सजा और इससे संबंधित अन्य कानूनी मुद्दे

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Indian penal Code
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इस लेख में, Diksha Chaturvedi ने धोखाधड़ी के तत्व (कंस्टीट्यूएंट), इसकी सजा और इससे संबंधित अन्य कानूनी मुद्दों पर चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

जैसा कि हम देखते हैं कि धोखाधड़ी एक अपराध है और इससे जुड़े असंख्य अपराध हैं। इसे विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है। आम आदमी की भाषा में धोखाधड़ी को  बेईमान या अनुचित (अनफेयर) कार्य के रूप में वर्णित (डिस्क्राइब) किया जा सकता है जो दूसरे से लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। धोखाधड़ी कुछ ऐसा कहना या बेईमानी से कुछ करना है जिससे किसी को विश्वास हो जाता है कि वो सच है जबकि वो सच नहीं होता है। यह एक ऐसा शब्द है जिसे हम  अपने दैनिक जीवन में अक्सर सुनते हैं लेकिन इसके कानूनी पहलुओं को नहीं जानते हैं। कानूनी दृष्टिकोण (पॉइंट ऑफ व्यू) से अधिक स्पष्ट समझाने के लिए, यह लेख धोखाधड़ी के तत्व, इस अपराध के लिए सजा और इससे संबंधित अन्य कानूनी मुद्दों से निपटेगा। इसके अलावा, यह लेख इस अपराध के लिए उपलब्ध कानूनी उपायों पर भी चर्चा करेगा।

धोखाधड़ी (आईपीसी की धारा 415-420)

इंडियन पीनल कोड की धारा 415 से 420  इस अपराध से संबंधित है।

धारा 415: धोखाधड़ी

इस धारा के तहत धोखाधड़ी को परिभाषित किया गया है। इस धारा के अनुसार,

“कोई भी किसी व्यक्ति को धोखा देकर, धोखे से या बेईमानी से व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति की संपत्ति देने के लिए प्रेरित करता है, या सहमति देता है कि व्यक्ति किसी भी संपत्ति को बनाए रखेगा, या जानबूझकर ऐसे धोखेबाज व्यक्ति को ऐसा कुछ करने के लिए प्रेरित करता है या कुछ भी करने से चूक (ऑमिशन) जाता है तो जो कार्य या चूक उस व्यक्ति को शरीर, मन, प्रतिष्ठा (रेप्यूटेशन) या संपत्ति में नुकसान का कारण बनता है या नुकसान पहुंचाता है, उसे “धोखा” कहा जाता है।

स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन): इस धारा के अर्थ के भीतर तथ्यों को बेईमानी से छिपाना एक धोखाधड़ी है।

उदाहरण: A, ने B को यह कहते हुए एक वस्तु बेची कि यह सोने से बना है जबकि ऐसा नहीं था, तो A जानबूझकर उसे धोखा देता है और इस तरह धोखाधड़ी का अपराध करता है।

धोखाधड़ी के तत्व (कांस्टीट्यूएंट्स ऑफ चीटिंग)

  • बेईमानी से काम करना

इंडियन पीनल कोड की धारा 24 के तहत ‘बेईमानी से काम करना’ शब्द को परिभाषित किया गया है।

इसमें कहा गया है कि “जब किसी कार्य को करना या किसी कार्य को न करने से किसी व्यक्ति को संपत्ति का गलत लाभ होता है या किसी व्यक्ति को संपत्ति का गलत नुकसान होता है, तो उस कार्य को बेईमानी से किया जाता है।”

  • संपत्ति

संपत्ति का बहुत व्यापक (वाइड) अर्थ है। इसमें न केवल पैसा शामिल है बल्कि अन्य चीजें भी शामिल हैं जिन्हें पैसे के संदर्भ में मापा जा सकता है। संपत्ति व्यक्ति के पूर्ण स्वामित्व (ओनरशिप) में होनी चाहिए और उसे अपने कब्जे (पजेशन) का आनंद लेने का पूरा अधिकार होना चाहिए।

  • कपटपूर्ण (फ्रेडुलेंटली)

कपटपूर्ण होने का अर्थ है जिसमें मुख्य रूप से आपराधिक धोखा शामिल है। यह फ्रॉड की विशेषता है। धारा 25 के अनुसार “किसी व्यक्ति को कपटपूर्ण तरीके से काम करने के लिए तब कहा जाता है जब वह उस काम को धोखा देने के इरादे से करता है।”

  • मेन्स रीआ

मेन्स रीआ एक अपराध का गठन करने का इरादा या कार्य है। यह अपराध करते समय अपराधी की मानसिक स्थिति है। यह किसी भी संदेह से परे (बियोंड एनी डाउट) साबित करना होगा कि आरोपी ने अपराध में सक्रिय (एक्टिवली) रूप से योगदान दिया है और उस अपराध ने किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति को प्रभावित किया है।

धारा 416: प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी (चीटिंग बाय पर्सोनेशन)

इस धारा के अनुसार प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी करना तब कहा जाता है, जब,

“वह किसी अन्य व्यक्ति के होने का नाटक करके, या जानबूझकर एक व्यक्ति को दूसरे के लिए प्रतिस्थापित (सब्सिट्यूट) करके, या यह प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंट) करते हुए कि वह या कोई अन्य व्यक्ति वह व्यक्ति है जो वह या अन्य व्यक्ति वास्तव में नही है, से धोखा देता है”।

स्पष्टीकरण- अपराध किया जाता है चाहे वह व्यक्ति वास्तविक या काल्पनिक (इमैजिनरी) व्यक्ति हो।

उदाहरण: A, सरकारी अधिकारी होने का झूठा ढोंग करके B को धोखा देता है, और B को अपनी संपत्ति बेचने के लिए प्रेरित करता है जिसके लिए वह भुगतान नहीं करता है।  A प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी करता है।

धारा 417: धोखाधड़ी के लिए सजा

इस धारा के तहत धोखाधड़ी करने पर 1 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकता है। कारावास किए गए कार्य की मात्रा पर निर्भर करता है। यदि कार्य इतना गंभीर नहीं है, तो कारावास नहीं लगाया जाएगा केवल जुर्माना लगाया जाएगा। लेकिन जब किया गया कार्य इतना गंभीर है कि केवल जुर्माना और कारावास से भरपाई नहीं होगी, तो उस व्यक्ति को जुर्माने के साथ 7 साल की अनिवार्य (मैंडेटरी) कारावास की सजा दी जाएगी।

धारा 418: इस ज्ञान के साथ धोखाधड़ी करना कि उस व्यक्ति को गलत हानि हो सकती है जिसके हित की रक्षा करने के लिए अपराधी बाध्य है (चीटिंग विथ नॉलेज देट रांगफुल लॉस मे एंस्यू टू पर्सन हूज इंटरेस्ट ऑफेंडर इज बाउंड टू प्रोटेक्ट)

इस धारा के तहत,

“जो कोई भी इस ज्ञान के साथ धोखा देता है कि इससे उस व्यक्ति को गलत तरीके से हानि होने की संभावना है, जिसके लेन-देन में रुचि धोखाधड़ी से संबंधित है, जो या तो कानून द्वारा, या कानूनी कॉन्ट्रैक्ट द्वारा सुरक्षित करने के लिए था, उसे एक अवधि के लिए कारावास दिया जाएगा, जिसे 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।”

स्पष्टीकरण: पीड़ित पक्ष को नुकसान पहुंचाना, जिसके हित (इंटरेस्ट) की रक्षा अपराधी द्वारा की जानी है, गलत इरादे से ऐसा करने से चूक जाता है।

धारा 419: प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी करने के लिए सजा

इस धारा के तहत,

“जो कोई भी व्यक्ति के रूप में धोखा देता है, उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया जाएगा।”

धारा 420: धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना

यह धारा उन अपराधों से संबंधित है जो एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को धोखा देकर और अपराधी को अपनी संपत्ति देने के लिए प्रेरित करके किए जाते हैं।

इस धारा के अनुसार “जो कोई भी व्यक्ति को धोखा देता है और इस तरह बेईमानी से किसी व्यक्ति की संपत्ति को धोखा देता है, या एक मूल्यवान सुरक्षा (वैल्युएबल सिक्यॉरिटी) के पूरे या किसी हिस्से को बनाने, बदलने या नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है, या कुछ भी जो हस्ताक्षरित (साइन्ड) या मुहरबंद (सील्ड) है, और जो एक मूल्यवान सुरक्षा में परिवर्तित (कन्वर्ट) होने में सक्षम है, किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा”।

धारा 420 के तत्व

इस धारा के तहत अपराध का गठन करने वाले इंग्रेडिएंट्स हैं:

  1. धोखाधड़ी,
  2. किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति लेने का बेईमान इरादा या उसे संपत्ति देने के लिए प्रेरित करने के लिए मूल्यवान सुरक्षा को नष्ट या कोई परिवर्तन करने के लिए बेईमान इरादा, या
  3. कपटपूर्ण (डिसिटफुल) या द्वेषपूर्ण (मेलिस) इरादा।

धोखाधड़ी के तरीके (मोड्स ऑफ चीटिंग)

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे धोखाधड़ी का अपराध किया जा सकता है। जैसे:

  • कास्ट मिसरिप्रजेंटेशन

जब कोई व्यक्ति खुद को उस जाति के सदस्य के रूप में प्रस्तुत करता है जिससे वह संबंधित नहीं है तो वह धोखाधड़ी का अपराध करता है।

  •  झूठे खाते दिखाता है

जब कोई व्यक्ति कर्ज चुकाने के लिए अपना या किसी अन्य व्यक्ति का झूठा खाता दिखाता है, तो उसे धोखाधडी का अपराध कहा जाता है।

  •  झूठे सबूत बनाना

जब कोई व्यक्ति किसी घटना के संबंध में झूठे सबूत देता है तो उसे धोखाधड़ी के अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

  • गलत पेशेवर योग्यता दिखाना (फॉल्स प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन)

जब कोई व्यक्ति किसी पद या नौकरी को प्राप्त करने के लिए झूठी पेशेवर योग्यता दिखाता है तो उसे धोखाधड़ी का अपराध करना कहा जाता है।

कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन कब धोखाधड़ी है

धोखाधड़ी कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन
इसका उल्लेख (मेंशन) इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 415 से 420 तक है।  इसका उल्लेख इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 73 के तहत किया गया है।
यह आपराधिक कानून के तहत निपटाया जाता है।  यह सिविल कानून के तहत निपटाया जाता है।
यह एक बेईमान कार्य है जो दूसरो से लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है।  यह कार्रवाई का एक कारण है जो तब होता है जब बाध्यकारी  समझौता (बाइंडिंग एग्रीमेंट) नहीं किया जाता है।
इसमें धोखा देने का इरादा उस समय मौजूद होता है जब प्रलोभन (इंड्यूसमेंट) दिया जाता है। शुरुआत में, केवल व्यक्ति के पास इसे धोखाधड़ी के अपराध के रूप में गठित करने के वादे के संबंध में कपटपूर्ण इरादा होना चाहिए। इसमें कॉन्ट्रैक्ट के शुरुआत से द्वेष का इरादा मौजूद नहीं होता है। उल्लंघन कुछ कारणों से उस समय किया जाता है जब यह बाध्यकारी होने वाला होता है

केस लॉ: एस.डब्ल्यू. पलनितकर बनाम बिहार स्टेट- 2001(10) टीएमआई 1150- सुप्रीम कोर्ट

इस केस के तहत सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी के अपराध के लिए दोषी ठहराने के लिए पहले से ही उस व्यक्ति का बेईमानी या कपटपूर्ण इरादा होना चाहिए, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट के उल्लंघन के केस में बेईमानी का इरादा समझौते के शुरुआत में मौजूद नहीं होता है। 

फ्रॉड/धोखाधड़ी

धोखाधड़ी  फ्रॉड
यह इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 415 से 420 तक उल्लिखित है। फ्रॉड के इंप्लिकेशंस इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 421, 422, 423 और 424 में उल्लिखित हैं।
यह एक बेईमान कार्य है जो दूसरो से लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। दूसरो से अनुचित (अनफेयर) लाभ प्राप्त करने के लिए यह एक जानबूझकर किया गया धोखा है। यह दूसरे के नुकसान से हासिल करने के लिए किया जाता है।
धोखाधड़ी के मुकदमे को बनाए रखने के लिए दो स्थितियां हैं जिन्हें धारा 415 यानी धोखाधड़ी और प्रलोभन में शामिल किया जाना आवश्यक है। फ्रॉड के मुकदमे को बनाए रखने के लिए धोखा देने का इरादा पर्याप्त है।
धोखाधड़ी केवल कॉन्ट्रैक्ट्स तक ही सीमित नहीं है। फ्रॉड मूल रूप से कॉन्ट्रैक्ट्स से अधिक संबंधित है।

चेक का डिसऑनर होना/धोखाधड़ी

चेक का डिसऑनर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत दिया गया है जबकि धोखाधड़ी का अपराध इंडियन पीनल कोड की धारा 420 के तहत उल्लिखित है। लेकिन कुछ मामलों में चेक के डिसऑनर को धोखाधड़ी के अपराध के रूप में माना जा सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि चेक देने वाले व्यक्ति ने पहले ही अपना बैंक खाता बंद कर दिया है, लेकिन फिर भी किसी अन्य व्यक्ति को उस व्यक्ति से खरीदे गए सामान के भुगतान के बदले में चेक देता है, तो इस मामले में चेक देने वाला व्यक्ति बेईमान है क्योंकि उसे इस बात की जानकारी है कि चेक बाउंस हो जाएगा। व्यक्ति ने ऐसा करके दूसरे को धोखा दिया है क्योंकि वह शुरू से ही इसके परिणामों के बारे में जानता था। इसलिए, यह एक उदाहरण हो सकता है जहां चेक के डिसऑनर के लिए धारा 420 के तहत अपराध माना जा सकता है।

एनआई एक्ट की धारा 138 और आईपीसी की धारा 420 के तहत अपराध दो अलग-अलग अपराध हैं। यह प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है की कौनसा अपराध माना जाता है। आपको यह जांचना होगा कि आपके मामले के तथ्यों से कौन से विशेष अपराध संतुष्ट हैं।

धोखाधड़ी के अपराध के लिए कानूनी उपचार

क्षेत्राधिकार (ज्यूरिसडिक्शन)

आईपीसी की धारा 2 के तहत यह कहा गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति इस कोड के तहत दंड के लिए उत्तरदायी होगा और अन्यथा (अदरवाइज) इसके प्रावधानों के विपरीत (कंट्रेरी) प्रत्येक कार्य या चूक के लिए नहीं, जिसके लिए वह भारत के भीतर दोषी होगा।”

पाकिस्तान का एक नागरिक, खुद को बॉम्बे के व्यवसायी के रूप में झूठा प्रतिनिधित्व करता है। उसने शिकायतकर्ता (कंप्लेनेंट) को आश्वासन (एश्यूर) दिया कि उसके पास उत्पादों (प्रोडक्ट) की अच्छी गुणवत्ता (क्वालिटी) है और अगर वह उसे पैसे ट्रांसफर करता है तो उसे शिकायतकर्ता को सामान बेचने में खुशी होगी। शिकायतकर्ता ने पैसे ट्रांसफर कर दिए लेकिन बदले में उसे कुछ नहीं मिला।

यह माना गया कि चूंकि अपराध बॉम्बे में किया गया था, भले ही आरोपी पाकिस्तान का नागरिक है और भारत में शारीरिक रूप से मौजूद नहीं था, इसलिए, आईपीसी की धारा 2 के आधार पर बॉम्बे के कोर्ट्स का क्षेत्राधिकार है।

अपराध का कॉग्निजेंस

धोखाधड़ी का अपराध कॉग्निजिएबल और नॉन-बेलेबल है। मुकदमा फर्स्ट क्लास के मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है। एफआईआर या आवेदन (एप्लीकेशन) सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत और निजी शिकायत का मामला  सीआरपीसी की धारा 200 के तहत दर्ज किया जा सकता है।

सज़ा

मामूली केसेस

जब धोखाधड़ी का अपराध इतना गंभीर नहीं है या धोखाधड़ी का एक साधारण केस है तो अपराधी को 1 साल की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाता है।

उदाहरण: ‘A’ ने ‘B’ को अपनी संपत्ति बेचने का वादा किया, लेकिन इसके बजाय उसने ‘C’ को बेच दी। इस केस को मामूली केस माना जा सकता है।

गंभीर केसेस

यह उन केसेस को कवर करता है जहां धोखाधड़ी गार्जियन, ट्रस्टी, सॉलिसिटर, एजेंट, हिंदू परिवार के मैनेजर आदि द्वारा की जाती है। ऐसे केसेस में सजा 3 साल की कैद या जुर्माना या दोनों है।

प्रतिरूपण द्वारा धोखा (चीटिंग बाय पर्सोनेशन)

ऐसे केसेस में जहां धोखाधड़ी का अपराध प्रतिरूपण द्वारा किया जाता है, तो व्यक्ति यदि धारा 416 के तहत दोषी है तो धारा 419 के तहत 3 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा के लिए उत्तरदायी होता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

धोखाधड़ी एक ऐसा अपराध है जिसके तहत एक व्यक्ति दूसरे को संपत्ति देने या कार्य के करने या अपराधी की ओर से व्यक्ति को धोखा देने के इरादे से किए गए कार्य की चूक के लिए प्रेरित करता है। धोखाधड़ी के अपराध के गठन के लिए मुख्य रूप से दो तत्व आवश्यक हैं यानी धोखा और प्रलोभन। धोखाधड़ी को कई अन्य सिविल और आपराधिक अपराधों के साथ भ्रमित (कन्फ्यूज) किया जाता है, लेकिन यह उनमें से प्रत्येक से किसी न किसी तरह से भिन्न होता है।

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