भारत में किरायेदार और मकान मालिक के रिश्ते की स्थिति

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Transfer of Property Act
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यह लेख PV Krishna Rao द्वारा लिखा गया है, जो लॉशिखो से रियल एस्टेट लॉ में सर्टिफिकेट कोर्स कर रहे हैं। यह लेख किराएदार और मकान मालिक के कानूनी संबंध के बारे मे चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

इस संदर्भ (कॉन्टेक्स्ट) में सबसे पहली आवश्यकता यह है कि, एक घर होना चाहिए जिसे किराए पर दिया जाना है। मकान मालिक या मालिक वह है जिसने इस अचल संपत्ति (इम्मूवेबल प्रॉपर्टी) को या तो विरासत के माध्यम से या खरीद कर या उपहार के माध्यम से हासिल किया है। मकान मालिक वह व्यक्ति या एंटिटी है, जिसे किराए का भुगतान किया जाता है।

एक किरायेदार वह व्यक्ति है, जो उस मकान में रहने के बदले में मकान मालिक को किराए का भुगतान करता है। भारत में एक मालिक और किरायेदार के बीच के संबंध को अक्सर विवादित (कंटेंशियस) और विरोधी माना जाता है, लेकिन मूल रूप से यह आवश्यकता से प्रेरित होता है।

कोई भी रिश्ता गुस्से से शुरू नहीं होता है, और इसलिए, उन वाचाओं (कोवेनेंट्स) को स्थापित (सेट) करना बहुत जरूरी है, जिनका पालन किसी भी पक्ष द्वारा किया जाएगा, ताकि यह संबंध सुखद, फलदायी और आर्थिक रूप से लाभकारी हो, क्योंकि संतुलन (बैलेंस) बनाना बहुत जरूरी है, और किसी भी पक्ष के लिए इसे असंतुलित नहीं करना चाहिए क्योंकि, वही व्यक्ति जो एक मकान मालिक है, वह किसी अन्य शहर में या उसी शहर के किसी क्षेत्र में किरायेदार हो सकता है।

1986 में किए गए एक प्रसिद्ध यूनाइटेड नेशंस के अध्ययन (स्टडी) ने अनुमान लगाया कि दुनिया भर में लगभग 42% शहरवासी किरायेदार थे, तेजी से शहरीकरण (अर्बनाइजेशन) के साथ, विशेष रूप से भारत में, ज्यादा बेहतर संभावनाओं के लिए ग्रामीण क्षेत्रों (रूरल एरिया) से शहरों की ओर बढ़ते प्रवास (माइग्रेशन) के साथ, इस संख्या में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई थी और इनमें से ज्यादातर प्रवासी किरायेदार हैं, हालांकि, 6 महानगरों में भारत में 2011 की जनगणना (सेंसस) के आंकड़ों से यह दिखाई देता है कि 60% निवासी अपने स्वामित्व (ओनरशिप) वाली संपत्तियों में रहते हैं।

विश्व स्तर पर, किराया नियंत्रण और कानूनों की आवश्यकता का उदय

किराया नियंत्रण (रेंट कंट्रोल), एक कानूनी प्रतिबंध (रिस्ट्रिक्शन) लगाता है कि अधिकतम (मैक्सिमम) किराया क्या हो सकता है, या दूसरे शब्दों में, यह राज्य द्वारा निर्धारित नियमों के तहत उचित समझे जाने वाले किराए को सीमित करता है।

प्रथम विश्व युद्ध (वर्ल्ड वार I) के दौरान, न्यूयॉर्क में रहने की जगह की बहुत कमी थी क्योंकि निर्माण के आवश्यक संसाधनों (रिसोर्सेज) को युद्धकालीन (वाॅर्टाइम) प्रयासों के लिए इस्तेमाल करना पड़ा था; प्रथम विश्व युद्ध के दौरान और बाद में निर्माण पूरी तरह से बंद हो गया था। इस प्रकार, आवास (हाउसिंग) की कोई नई सूची नहीं आ रही थी। उसी समय, मांग पूरी नहीं हुई, और घर की रिक्ति (वेकेंसी) 1% की गिरावट तक चली गई, जिसके कारण किराए की कीमतें काफी हद तक बढ़ गईं, और हर जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसमें मकान मालिकों पर ‘शोषण (एक्सप्लॉयटेशन)’ प्रथाओं का आरोप लगाया गया, जिसके कारण न्यूयॉर्क के राज्य विधानमंडल ने, ‘किराया नियंत्रण कार्यक्रम (रेंट कंट्रोल प्रोग्राम)’ पास किया जो, आधारहीन बेदखली (इविक्शंस) से राहत प्रदान करेगा और किराए को नियंत्रण में रखेगा।

यह कार्यक्रम युद्ध के समय किया गया एक उपाय था और 1929 में आपातकाल (इमर्जेंसी) की स्थिति समाप्त होने पर समाप्त हो गया था। इसने किराया नियंत्रण की अवधारणा (कांसेप्ट) की स्थापना की और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे पुनर्जीवित (रिवाइव) किया गया, और आज भी किसी न किसी रूप में यह मौजूद है।

भारत में किराया नियंत्रण की आवश्यकता

भारत में, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका) की तरह, किराए पर नियंत्रण लाने की शुरुआत, प्रथम विश्व युद्ध से की गई थी, क्योंकि महंगाई बढ़ रही थी, और किरायेदार संकट में थे। किराया नियंत्रण अधिनियम (रेंट कंट्रोल एक्ट), 1918, किराए को उचित सीमा के अंदर रखने के लिए बॉम्बे प्रेसीडेंसी में पास किया गया था, और इसी तरह का एक अधिनियम 1920 में कोलकाता में भी अधिनियमित (इनैक्ट) किया गया था। दिल्ली अधिनियम का जन्म 1938 में भारत की रक्षा नियमों (डिफेंस ऑफ़ इंडिया रूल्स) के तहत, द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने पर शुरू हुआ था और विलुप्त (एक्सटेन्यूट) होने वाली परिस्थितियों को देखते हुए एक अस्थायी (टेंपरेरी) उपाय के रूप में किया गया था।

हालांकि, एक अस्थायी राहत उपाय के रूप में जो शुरू हुआ वह जारी रहा, और 1948 में, केंद्रीय किराया नियंत्रण अधिनियम (सेंट्रल रेंट कंट्रोल एक्ट), स्वतंत्र भारत द्वारा पास किया गया था और संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम (ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट), 1882 के अपवाद (एक्सेप्शन) के रूप में तैयार किया गया था।

क्योंकि, आवास का प्रावधान (प्रोविजन) भारतीय संविधान के तहत एक राज्य का विषय है, इसलिए सभी राज्य किराया नियंत्रण को अपने अनुसार लागू करने के लिए बाध्य हैं।

इन अधिनियमों के अंतर्निहित (अंडरलाइंग) सिद्धांत:

  • मकान मालिक द्वारा किरायेदार की बेदखली से सुरक्षा करना, जब तक कि यह प्रामाणिक (बोना फाइड) न हो और अधिनियम के तहत निर्धारित विशिष्ट (स्पेसिफिक) शर्तों के तहत न हो।
  • मकान मालिक को भारी किराया लेने से रोकने के लिए उचित या मानक (स्टैंडर्ड) किराया निर्धारित करना।

संपत्ति के हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 106 के अनुसार एक संविदात्मक (कॉन्ट्रैक्चुअल) किरायेदार या लीज एग्रीमेंट के तहत बेदखली के लिए, मकान मालिक 15 दिन का नोटिस देने के बाद, बिना कोई विशेष कारण बताए, किरायेदार से कब्जे पाने के लिए नोटिस दाखिल कर सकता है।

किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत, मानकों के सेट को सामने रखा गया है, जिसके तहत एक मकान मालिक बेदखली के लिए फाइल कर सकता है:

  • किराए के भुगतान में जानबूझकर चूक करना।
  • मकान मालिक की सहमति के बिना, मकान किसी और को दे देना।
  • किरायेदारी की किसी भी शर्त का उल्लंघन करना, जैसे गैरकानूनी आचरण (कंडक्ट) या मकान में रहने वाले अन्य लोगों को परेशान करना।
  • दुर्भावनापूर्ण इरादे के कारण किरायेदार द्वारा संपत्ति के टाइटल से इनकार करना।
  • किरायेदार मकान ले न रहा हो।
  • मकान मालिक वास्तविक कारणों से अपने लिए कब्जा मांग रहा हो।
  • मकान की बिगड़ती स्थिति के कारण आवश्यक पुनर्निर्माण (रिकंस्ट्रक्शन) के कारण बेदखली, मकान के पुनर्निर्माण के बाद, मकान मालिक अपनी संपत्ति का उपयोग करने और आनंद लेने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन, आंध्र प्रदेश बिल्डिंग (लीज, रेंट और एविक्शन) कंट्रोल एक्ट, 1960 में इसके तहत एक अपवाद है, जिसमें मकान मालिक को, किरायेदार को पुनर्निर्मित मकान को उस समय के प्रचलित (प्रिवेलिंग) उचित बाजार किराए पर देने का पहला अधिकार प्रदान करना चाहिए और अगर किरायेदार अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करना चाहता है तो ही मकान मालिक मकान पर कब्जा कर सकता है या किसी और को किराए पर दे सकता है।

किराया नियंत्रण अधिनियम कुछ मामलों में लागू नहीं होगा, जैसे की:

  1. एक करोड़ या अधिक की चुकता पूंजी (पेड अप कैपिटल) वाली प्राइवेट लिमिटेड और पब्लिक लिमिटेड कंपनियों को किराए पर दी गई संपत्ति।
  2. सरकारी कंपनियों या सार्वजनिक क्षेत्र के पी.एस.यू., बैंकों या किसी ऐसे निगम (कॉर्पोरेशन) को दी गई संपत्ति, जिसे किसी केंद्रीय या राज्य अधिनियम के तहत स्थापित किया गया हो।
  3. संपत्ति जो विदेशी कंपनियों या अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों को किराए पर दी जाती है।
  4. कुछ राज्यों ने मंदिरों, चैरिटेबल ट्रस्टों और वक्फों को भी छूट दी है।

किराया नियंत्रण की अवधारणा, समाजवाद (सोशलिज्म) में निहित (वेस्ट) है, और यह किरायेदारों के पक्ष में है।

फ्री मार्केट नहीं है

किराया नियंत्रण स्वतंत्र मार्केट के अर्थशास्त्र (इकॉनोमी) को नष्ट कर देता है, क्योंकि यह मांग और आपूर्ति (डिमांड एंड सप्लाई) के बाजार की गतिशीलता (डायनेमिक) में हस्तक्षेप (इंटरफेयर) करता है, जिससे उचित मूल्य की डिस्कवरी को रोका जा सकता है।

किराए का कोई भी दीर्घकालिक (लॉन्ग टर्म) विरूपण (डिस्टॉरशन) उल्टा है, क्योंकि यह किराये के लिए घर बनाने पर विचार करने वालों के किसी भी प्रोत्साहन (इंसेंटिव) को नष्ट कर देता है, जिससे उस समस्या को और भी बढ़ा दिया जाता है, जिसे हल करने के लिए इसे बनाया गया है।

कृत्रिम (आर्टिफिशियल) रूप से लगाए गए किराए भी, नगर पालिका के राजस्व (म्युनिसिपल रेवेन्यू) पर उल्टा ही प्रभाव डालते हैं, क्योंकि संपत्ति कर (प्रॉपर्टी टैक्स) किराए से निकटता से जुड़े होते हैं।

पूर्ववृत्त जांच (एंटीसीडेंट चेक)

सुधारात्मक कदम (करेक्टिव स्टेप्स) उठाने में शामिल कठिनाई को देखते हुए, यह सुनिश्चित करना समझदारी है कि मकान मालिक संपत्ति को किराए पर देने से पहले किरायेदार की पृष्ठभूमि (बैकगॉउन्ड) पर अपना उचित परिश्रम करता है जैसे:

  1. पहचान जांच, जिसमें ग्राहक को जानिए (के.वाई.सी.) दस्तावेज शामिल होंगे;
  2. वित्तीय व्यवहार (फाइनेंशियल बिहेवियर) के पिछले पैटर्न को सत्यापित (वेरिफाई) करने के लिए क्रेडिट स्कोर जांच करना;
  3. बैंक स्टेटमेंट जिसमें वेतन पर्ची के साथ वेतन का क्रेडिट हो या नियोक्ता (एंप्लॉयर) के लेटरहेड पर पत्र या पिछले 2 साल की आई.टी.आर. की कॉपी हो।
  4. पुलिस सत्यापन अनिवार्य है और एक निवारक उपाय (प्रीवेंटिव मेजर) है, जिसके तहत जिला पुलिस उन लोगों का रिकॉर्ड रखती है जो पढ़ाई करने व्यवसाय (बिजनेस), नौकरी आदि के लिए अपने मूल स्थानों से विभिन्न शहरों में चले गए हैं। इस सत्यापन का सबसे पहला उद्देश्य अपराधियों और समाज के असामाजिक तत्व (एलिमेंट) का ट्रैक रखना है।  

उचित किराया, इतना भी उचित नहीं है

इससे पहले कि हम उचित किराए का निर्धारण (डिटरमाइन) करने के लिए क़ानून पर ध्यान दें, यह महत्वपूर्ण है कि मकान मालिक ने वास्तविक किराए को निर्धारित करने के लिए, पड़ोस में अन्य संपत्तियों पर, लिए जा रहे किराए पर ध्यान दिया है। एक अन्य तत्व जो एक सहायक संकेतक (इंडिकेटर) हो सकता है, वह है किराए के साधन से कमाई, जो आवासीय संपत्तियों की 2-3% रेंज में हो सकती है।

आइए, अब एक उदाहरण देखें कि प्रख्यापित (प्रोमल्गेटेड) कानून, उचित किराए पर कैसे पहुंचता है। उदाहरण के लिए, बॉम्बे किराया अधिनियम (रेंट एक्ट), 1948, एक निजी मकान के लिए उचित किराए को, उस किराए के रूप में परिभाषित करता है, जिसके तहत एक मकान को 1 सितंबर, 1940 को किराए पर दिया गया था।

इसके अलावा, भारत में किराया नियंत्रण क़ानून उप-किरायेदारों और लाइसेंसधारियों (लाइसेंसीज) को उचित किराए का अनुमान लगाने के लिए मान्यता नहीं देते हैं। यह अधिनियम, ‘व्यक्तिगत (इन परसोनम)’ रूप से नहीं बल्कि सार्वजनिक (इन रेम)’ रूप से कार्य करता है। इसलिए किसी मकान के संबंध में निर्धारित उचित किराया केवल उसके पूंजीगत मूल्य (कैपिटल) से प्रभावित होता है।

यह प्रक्रिया कुछ हद तक कठिन है और लगभग हमेशा किरायेदार का पक्ष लेती है, भले ही मकान मालिक किराए के निर्धारण के लिए किराया नियंत्रक (कंट्रोलर) से संपर्क करता है।

क्या किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत आर्बिट्रेशन की अनुमति है?

नहीं, ‘विशेष’ किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत विवाद, आर्बिट्रेशन योग्य नहीं हैं जैसा कि विद्या ड्रोलिया और अन्य बनाम दुर्गा ट्रेडिंग कॉरपोरेशन-II में माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने निर्णय में कुछ मानदंड (क्राइटेरिया) निर्धारित किए, जिस पर विवादों में आर्बिट्रेशन की संभावना होने का निर्णय लिया जाएगा। न्यायालय ने माना कि केवल लीज पर दी गई संपत्तियां, जिन्हें किराया नियंत्रण प्रावधानों के तहत छूट दी गई है, वे ही संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के प्रावधानों के तहत शासित होंगी और आर्बिट्रेशन योग्य होंगी।

रेंट कंट्रोल का मॉडल टेनेंसी में बदलाव

प्रस्तावित, मॉडल टेनेंसी एक्ट का उद्देश्य एक ऐसा ढांचा स्थापित करना है जो देश में किराये के बाजार को पूरी तरह से बदल देगा।

आइए उन प्रावधानों पर एक नजर डालते हैं जो ड्राफ्ट मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2020 में प्रस्तावित किए गए हैं:

  1. पारस्परिक (म्यूचुअल) रूप से सहमत शर्तों पर लिखित समझौते के बिना कोई भी मकान या घर किराए पर नहीं दिया जा सकता है;
  2. अधिनियम आवासीय और वाणिज्यिक (कमर्शियल) दोनों प्रकार के किराएदारों पर लागू होगा;
  3. यह पूरे भारत में लागू होता है;
  4. मकान मालिक और किरायेदार के बीच आपसी समझौते से किराया तय किया जाएगा।
  5. यह केवल संभावित (प्रोस्पेक्टिवली) रूप से लागू होगा, और मौजूदा किरायेदार राज्यों/केंद्र प्रशासित राज्यों (यूनियन टेरिटरी) के मौजूदा किराये कानूनों द्वारा शासित होते रहेंगे।
  6. विवादों के निर्णय के लिए एक त्वरित अर्ध-न्यायिक तंत्र (फास्ट ट्रैक क्वासी ज्यूडिशियल) का प्रावधान है।
  7. बिना किसी मौद्रिक (मॉनेटरी) सीमा के सभी किरायेदारी पर लागू होगा।
  8. किरायेदारी समझौते के अनुसार, शेष अवधि के लिए मकान मालिक के उत्तराधिकारियों (सक्सेसर्स) के साथ-साथ किरायेदार के लिए समझौते की शर्तें बाध्यकारी होंगी।
  9. मकान मालिक और किरायेदार के बीच एक पूरक (सप्लीमेंटरी) समझौते के निष्पादन (एग्जीक्यूशन) के बिना, किरायेदार द्वारा किराए पर देने की अनुमति नहीं है।
  10. यदि किरायेदारी की अवधि उस समय समाप्त होती है, जब वह क्षेत्र, जहां किराए का मकान स्थित है, किसी भी अप्रत्याशित घटना (फोर्स मज्योर इवेंट) का अनुभव करता है, तो मकान मालिक किरायेदार को इस तरह की घटना की समाप्ति की तारीख से एक महीने के लिए प्रचलित किरायेदारी समझौते की शर्तों पर, वहां रहने की अनुमति देगा।
  11. आवासीय मकानों के लिए सुरक्षा राशि (सिक्योरिटी डिपॉजिट) दो महीने के किराए से अधिक नहीं होना चाहिए, और गैर-आवासीय प्रतिष्ठानों (एस्टेब्लिशमेंट) के मामले में, यह किरायेदारी समझौते की शर्तों के अनुसार अधिकतम छह महीने के किराए के अधीन होगा। मकान मालिक द्वारा घर का कब्जा लेते समय किसी भी बकाया राशि का समायोजन (एडजस्ट) कर, सुरक्षा राशि वापस कर दी जाएगी।
  12. कुछ शर्तों पर मकान मालिक द्वारा कब्जे की वसूली।
  13. यदि किरायेदार लीज समाप्त होने के बाद संपत्ति खाली करने में विफल रहता है, तो मकान मालिक पहले दो महीनों के लिए किराए को दोगुना करने और उसके बाद मासिक किराए का चार गुना करने का हकदार है।

इस प्रकार, यह उम्मीद की जाती है कि मसौदा (ड्राफ्ट) मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2020 के आधार पर आगामी (एंसुइंग) राज्य किरायेदारी कानून, मकान मालिकों और किरायेदारों के लिए पारदर्शिता (ट्रांसपेरेंसी) सुनिश्चित करने के लिए एक नई शुरुआत करेगा। मॉडल एक्ट के प्रावधान, पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों पर पक्षों के बीच निष्पादित किराए समझौते के महत्व को उजागर करते हैं, जिससे विवादों की संभावना कम हो जाती है, और किसी भी विवाद के मामले में, इसे विवाद निवारण तंत्र के माध्यम से जल्दी से हल किया जा सकता है जैसा कि प्रस्तावित कानून मे निर्धारित है।

कोविड-19, अप्रत्याशित घटना (फोर्स मेज्योर) और किराए 

यह एक कम महत्त्व की बात नही होगी कि कोविड-19 एक अभूतपूर्व (अनप्रेसिडेंटेड) घटना थी, जिसने विश्व स्तर पर अर्थव्यवस्था को एक लॉकडाउन में डाल दिया, कई किरायेदारों ने अचानक उन संपत्तियों को छोड़ दिया, जिन पर वह रह रहे थे, और कई अन्य जिन्होंने अपनी नौकरी खो दी थी, वे अपने किराए का भुगतान करने में असमर्थ थे और सरकार ने भी अपनी एडवाइजरी जारी की, जिसमें बेदखली की मोहलत और किराए की छूट शामिल थी। इसने, मकान मालिकों को बहुत संकट में डाल दिया, खासकर उन लोगों के लिए जिनके लिए घर या मकान उनकी आय का एकमात्र स्रोत (सोर्स) था।

यह स्थिति अप्रत्याशित घटना क्लॉज की आवश्यकता पर जोर देती है, जिसमें महामारी और सरकार द्वारा अनिवार्य शटडाउन और उपयुक्त निवारण तंत्र (रिड्रेसल मैकेनिज्म) शामिल हैं, जिसमें अधिस्थगन (वेवर) या छूट या देय किराए को कम करना शामिल हो सकता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

किसी भी रिश्ते को लंबे समय तक चलने और फलदायी होने के लिए, इसे आपसी सम्मान, समानता और निष्पक्षता द्वारा हुआ होना चाहिए। कुछ मकान मालिक, किरायेदारों को नीची नज़र से देखते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पास किरायेदारों की तुलना में उच्च सामाजिक स्थिति (सोशल स्टेटस) है। किरायेदार लोकप्रिय वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा हैं और किराया नियंत्रण अधिनियम के प्रावधानों से लैस (आर्म्ड) हैं जो उन्हें इस रिश्ते में बहुत लाभ देते हैं।

एक मकान मालिक की परेशानियों को गिनना कठिन होगा, जो करों से लेकर बढ़ते रखरखाव (मेंटेनेंस) और नवीनीकरण लागत (रेनोवेशन कॉस्ट) तक फैली हुई हैं; एक मकान मालिक की लाचारी का वर्णन एक प्रसिद्ध कहावत द्वारा किया गया है, “मूर्ख घर बनाते हैं, और बुद्धिमान लोग उनमें रहते हैं।”

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों के कारण, किराये के आवास की कमी हो गई थी, और उस समय की सरकारों ने, अस्थायी उपाय के रूप में, किरायेदारों और मकान मालिकों के बीच शक्ति का संतुलन (बैलेंस ऑफ पावर) सुनिश्चित करने के लिए किराया नियंत्रण कानूनों की स्थापना की, चीजें अब समान नहीं हैं और किराया नियंत्रण के पुराने प्रावधानों को पूरी तरह से बदलने का समय आ गया है और मॉडल टेनेंसी एक्ट सही दिशा में एक कदम है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • The Great Rent Wars: New York, 1917-1929, by Robert M. Fogelson.
  • Rent Control in Developing Countries: A Framework for Analysis, 1986, by Stephen Malpezzi and C. P. Rydell.
  • Fundamentals of Rent Control Legislation in India along with Rent Acts of All States, 1984, by R C Kochatta.
  • The Bombay Rent Control Act,1918.
  • The Transfer of Property Act, 1882.
  • The Maharashtra Rent Control Act, 1999.
  • The West Bengal Premises Tenancy Act, 1997.
  • The Delhi Rent Act, 1995.
  • Draft Model Tenancy Act, 2020.
  • The Tamil Nadu Buildings (Lease and Rent Control) Act, 1960.
  • The Karnataka Rent Control Act, 2001.

 

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