कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 447

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Companies Act

यह लेख Bhavika Mittal द्वारा लिखा गया है, जो श्री नवलमल फिरोदिया लॉ कॉलेज, पुणे में बीए एलएलबी कर रही हैं। यह लेख कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 का विस्तृत विवरण है, जो धोखाधड़ी करने के लिए सजा का प्रावधान करता है। इस लेख में दंड, संशोधन और धारा के व्यापक दायरे का भी उल्लेख किया गया है। साथ ही, यह सफेदपोश नौकरी (व्हाइट कॉलर जॉब) अपराधों में वृद्धि के कारण ऐसे कानून के महत्व पर भी चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

परिचय

समाज समय के साथ विकसित होता है, और इसके निवासी भी। समानांतर (पैरालेल) रूप से, कानूनों के उन्नयन (अपग्रेडेशन) की भी हमेशा सलाह दी जाती है। उदाहरण के लिए, पिछले एक दशक के भीतर कॉर्पोरेट क्षेत्र में भारी परिवर्तन के कारण 1956 के कंपनी अधिनियम को एक नए कानून, 2013 के कंपनी अधिनियम के साथ बदल दिया गया है। पिछले कुछ वर्षों में परिवर्तन नकारात्मक होने के साथ-साथ सकारात्मक भी रहे हैं। ऐसा ही एक नकारात्मक परिवर्तन धोखाधड़ी जैसे गलत कार्य करने में वृद्धि है। ऐसे कई तरीके हैं जिनके द्वारा सफेदपोश नौकरियों में धोखाधड़ी की जाती है। इसलिए ऐसे कार्यों पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून बनाने की सख्त जरूरत थी।

2013 के संशोधित अधिनियम ने धोखाधड़ी को दंडित करने वाले प्रावधान को लागू किया। अध्याय XXIX, शीर्षक “विविध”, धारा 447 प्रदान करता है, जो धोखाधड़ी का अर्थ बताती है और उसी के लिए सजा देती है। यहां धोखाधड़ी के अर्थ, प्रकृति और सजा पर विस्तार से चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त, यह लेख धारा के मार्गदर्शक सिद्धांतों और नैतिकता पर भी प्रकाश डालता है।

कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत धोखाधड़ी

आम आदमी की भाषा में, धोखाधड़ी किसी के द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त करने या दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए किया गया भ्रामक आचरण है। लेकिन धोखाधड़ी शब्द को उनकी संबंधित प्रकृति से संबंधित विभिन्न कानूनों में विविध रूप से परिभाषित किया गया है।

कंपनी अधिनियम 2013, धारा 447 के स्पष्टीकरण के तहत, कंपनी या किसी कॉर्पोरेट निकाय के मामलों के संबंध में धोखाधड़ी को परिभाषित करता है। इसमें निम्नलिखित शामिल है-

  1. किसी व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य, लोप (ऑमिशन), तथ्यों को छिपाना या स्थिति का दुरुपयोग करना, या
  2. धोखा देने या अनुचित लाभ लेने या चोट पहुँचाने के इरादे से दूसरे व्यक्ति की मिलीभगत से कार्य करना, या
  3. कंपनी, उसके शेयरधारकों, लेनदारों, या किसी अन्य व्यक्ति के हित, किसी भी गलत लाभ या हानि के बावजूद कार्य करना।

धोखाधड़ी को एक गलत कार्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि इसमें झूठे बयानों, धोखे आदि के माध्यम से लाभ प्राप्त करना शामिल है। धोखाधड़ी का कार्य व्यावसायिक नैतिकता के सिद्धांत के साथ हस्तक्षेप करता है। नैतिक रूप से कार्य करने का महत्व बढ़ गया है और उसी प्रक्षेपवक्र (ट्राजेक्ट्री) का पालन करने पर विचार किया गया है।

वृद्धि क्यों हो रही है? कॉर्पोरेट क्षेत्र की सफलता से कंपनी को लाभ होता है और अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। और इसके साथ, समाज में समान रूप से योगदान करने के लिए कंपनियों से अपेक्षाओं में वृद्धि हुई है।

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) की अवधारणा ऐसे कर्तव्य की सक्रिय पूर्ति सुनिश्चित करती है। यह गतिविधि नई नहीं है, लेकिन अब 2013 के संशोधित कंपनी अधिनियम द्वारा अनिवार्य कानूनी अनुपालन दिए गए है।

इसलिए, सिद्धांत को बनाए रखने और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए, इस तरह की धारा को लागू करना अनिवार्य है। क्योंकि 2015 में एसोचैम और ग्रांट थॉर्नटन के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में कॉर्पोरेट धोखाधड़ी दो वर्षों में 45 प्रतिशत बढ़ी है। कॉर्पोरेट धोखाधड़ी कंपनी और उसके कर्मचारियों को प्रभावित करती है और अनजाने में सार्वजनिक धन की हानि का कारण बनती है।

विकास अग्रवाल बनाम गंभीर धोखाधड़ी जांच, (2019), में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि धारा 447 के तहत कोई समय सीमा नहीं है। कंपनियों के साथ-साथ किसी भी तरह से शामिल किसी भी अन्य व्यक्ति पर धोखाधड़ी के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता और तीन अन्य व्यक्ति पर अवैध खनन गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था जो एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे। अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता के खिलाफ कानूनी रूप से आगे बढ़ने के लिए विचारण न्यायालय के अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) को बरकरार रखा।

इस प्रकार, धारा का व्यापक दायरा बड़ी संख्या में कॉर्पोरेट धोखाधड़ी को रोकता है।

धोखाधड़ी करने वाले व्यक्तियों के दायित्व 

किसी व्यक्ति द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य या गतिविधि उसे कानूनी रूप से जिम्मेदार बनाती है। विभिन्न प्रकार के दायित्व होते हैं। जब कोई व्यक्ति धोखाधड़ी का अपराध करता है, तो उस व्यक्ति को आपराधिक रूप से उत्तरदायी कहा जाता है।

आपराधिक दायित्व के दावे को स्थापित करने के लिए, सबसे पहले, व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य उसके रोजगार के दायरे में होना चाहिए। दूसरा, कार्य से संगठन को लाभ होगा क्योंकि एक कर्मचारी द्वारा किया गया कार्य संगठन के कार्य से अलग नहीं है।

किसी कंपनी को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है या नहीं, इस पर लंबे समय से चली आ रही बहस 2013 के कंपनी अधिनियम के अधिनियमन के साथ काफी हद तक समाप्त हो गई है। नया कानून “किसी भी व्यक्ति” को धोखाधड़ी के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराता है।

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 के तहत धोखाधड़ी के लिए सजा

जहां कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 के स्पष्टीकरण के तहत धोखाधड़ी का अपराध किया गया है, तो इस तरह के अपराध का दोषी पाया गया व्यक्ति निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होगा-

  • कम से कम छह महीने के लिए कारावास, लेकिन जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है, और
  • धोखाधड़ी में शामिल राशि से कम नहीं होने वाले जुर्माने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा, लेकिन इसे धोखाधड़ी में शामिल राशि का तीन गुना तक बढ़ाया जा सकता है।

आगे, धारा के परंतुक (प्रोविजो) के अनुसार, दंड निम्नानुसार भिन्न होते है।

  • सार्वजनिक हित से जुड़ी धोखाधड़ी
  • जहां विचाराधीन धोखाधड़ी में जनहित शामिल है, कारावास की अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी।
  • दस लाख या एक प्रतिशत से कम राशि की धोखाधड़ी

यह प्रावधान 2018 के अधिनियम 1 द्वारा डाला गया है। यदि कोई व्यक्ति इस तरह की धोखाधड़ी गतिविधि करने का दोषी पाया जाता है, तो उस व्यक्ति को दंडित किया जाएगा।

  • एक अवधि के लिए कारावास जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है, या
  • जुर्माने के साथ जो पचास लाख रुपये तक हो सकता है, या
  • दोनों के साथ।

लेकिन 2019 के अधिनियम 22 से पहले यह जुर्माना पचास लाख के बजाय बीस लाख रुपये था।

इस प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि धोखाधड़ी में निम्नलिखित शामिल है

  • दस लाख से कम राशि या
  • कंपनी के टर्नओवर का एक प्रतिशत,

जो भी कम हो और जिसमें सार्वजनिक हित शामिल न हो।

कंपनी अधिनियम 2013 के तहत, धोखाधड़ी की सजा प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन अधिनियम के अन्य प्रावधानों पर लागू होती है। अधिनियम में लगभग 17 ऐसी धाराएं हैं, जहां धारा 447 के तहत पढ़ी जाने वाली सजा का प्रावधान है। धोखाधड़ी के जुर्माने को लागू करने वाली धाराओं में अधिनियम के अन्य प्रावधानों में उल्लिखित मामले और धारा 447 के तहत धोखाधड़ी की परिभाषा के अर्थ में आने वाले दावे शामिल हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

  • धारा 448

धारा 448 तथ्यों की वास्तविकता को जानते हुए गलत बयान देने या तथ्यों की चूक के मामलों से संबंधित है। स्टेटमेंट, रिटर्न, प्रॉस्पेक्टस या किसी अन्य दस्तावेज के संबंध में गलत बयान।

  • धारा 251

धारा 251 नामों को हटाने के लिए कपटपूर्ण आवेदन से संबंधित है। यदि कंपनी के दायित्वों से बचने के लिए धोखाधड़ी के इरादे से कोई आवेदन किया जाता है, तो यह धारा 447 के तहत उत्तरदायी होगा।

  • धारा 229

धारा 229 किसी भी अधिकारी या किसी व्यक्ति या कंपनी के किसी कर्मचारी को दंडित करने से संबंधित है, जिसे निरीक्षण के समय जानकारी प्रदान करने या बयान देने की आवश्यकता होती है, लेकिन वो इसके बजाय एक गलत बयान देता है या दस्तावेजों को नष्ट कर देता है या उसे विकृत कर देता है।

  • धारा 86

धारा 86 में उल्लंघन के लिए सजा का प्रावधान है। धारा 86(2), धारा 447 को लागू करती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठी या गलत जानकारी प्रस्तुत करता है या जानबूझकर महत्वपूर्ण जानकारी को दबाता है।

  • धारा 8

धारा 8 धर्मार्थ उद्देश्यों वाली कंपनियों के गठन से संबंधित है। अधिनियम की धारा 8(11), धारा 447 को लागू करती है, जहां कंपनी मामलों के संचालन के लिए धारा की आवश्यकताओं का पालन नहीं करती है और धोखाधड़ी के तरीकों का उपयोग करती है।

आगे, कार्यवाही शुरू करने और अधिनियम की धारा 447 के तहत किसी भी व्यक्ति को दंडित करने के लिए, विभिन्न अन्य मानार्थ (कॉम्प्लीमेंट्री) और पूरक (सप्लीमेंट्री) के तहत उल्लिखित प्रक्रियाओं का अनुपालन किया जाएगा। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 212 और धारा 213 को मामलो की मदद से नीचे समझाया गया है।

इसके अतिरिक्त, अधिनियम की धारा 439 भी तस्वीर में आती है क्योंकि धारा 439 के अपवाद के रूप में धारा 447 के तहत संज्ञेय (कॉग्निजेबल) अपराध के रूप में धोखाधड़ी के अपराध को वर्गीकृत किया गया है। अधिनियम की अन्य धाराएं गैर संज्ञेय (नॉन कॉग्निजेबल) हैं।

मामले 

श्री नेक्कंती वेंकट राव बनाम जक्का विनोद कुमार रेड्डी, 2022

श्री नेक्कंती वेंकट राव बनाम जक्का विनोद कुमार रेड्डी, (2022) में तेलंगाना उच्च न्यायालय ने कंपनी अधिनियम, 2013 की एक महत्वपूर्ण धारा को प्रकाश में लाया, जो अधिनियम की धारा 447 का पूरक है।

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 212(6) तुच्छ शिकायतों के आधार पर अदालतों पर मुकदमे शुरू करने के बोझ को रोकती है। धारा में कहा गया है कि धारा 447 के तहत मुकदमा केवल जांच करने के बाद ही शुरू किया जा सकता है, क्योंकि हर शिकायत को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, संज्ञान की एक रोक स्थापित की गई है।

मौजूदा मामले में, प्रतिवादी और उसके भाई की कंपनी विवाद में है। याचिकाकर्ता, जिसकी आपराधिक कार्यवाही को बाद में अनुमति दी गई थी और अतिरिक्त मेट्रोपॉलिटन सत्र न्यायाधीश और आर्थिक अपराधों के विशेष न्यायाधीश के समक्ष लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था।

याचिकाकर्ताओं और अन्य पर कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447, धारा 448 और धारा 451 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता की बहन ने प्रतिवादी और उसके भाई को उसे निदेशक (डायरेक्टर) बनाने के लिए प्रेरित किया था।

बाद में, यह खुलासा हुआ कि उन्होंने कथित तौर पर जालसाजी और दस्तावेजों के निर्माण के माध्यम से कंपनी के वित्त के साथ खिलवाड़ किया। लगभग एक दशक के बाद याचिकाकर्ता पर मनगढ़ंत आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करना दुर्भावनापूर्ण इरादे को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, अधिनियम द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का अनुपालन नहीं किया गया था। जहां कंपनी का रजिस्ट्रार एक जांच करने, एक रिपोर्ट बनाने और गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) द्वारा जांच के लिए सरकार को भेजने के लिए सक्षम है। लेकिन मौजूदा मामले में, प्रतिवादी ने सीधे शिकायत दर्ज कराई थी।

इस प्रकार, अदालत ने कहा कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 के तहत एक निजी शिकायत विशेष अदालत के सामने सुनवाई योग्य नहीं है और शिकायत दर्ज करने के लिए एक उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

श्री एम गोपाल बनाम श्री गंगा रेड्डी, 2022

श्री एम गोपाल बनाम श्री गंगा रेड्डी, (2022), के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को रद्द किया गया था। मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता और प्रतिवादी कंपनी के निदेशक हैं। निजी शिकायत में याचिकाकर्ता पर कंपनी और शिकायतकर्ता को धोखा देने का आरोप लगाया गया था।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि एक शेयरधारक को कंपनी अधिनियम की धारा 447 के प्रावधानों का लाभ उठाने के लिए एक धोखाधड़ी कार्य के खिलाफ, उसे धारा 213 के तहत दी हुई प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

धारा 213 के तहत, एक बार निरीक्षक (इंस्पेक्टर) ने न्यायाधीकरण (ट्रिब्यूनल) को धोखाधड़ी के अपराध का प्रदर्शन या सुझाव देने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। न्यायाधीकरण या शेयरधारक अधिनियम की धारा 212(6) के तहत उल्लिखित धारा 447 के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए एसएफआईओ को रिपोर्ट भेज सकते हैं। इस प्रकार, यदि धारा 213 की आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है, तो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 212 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया शुरू की जाती है।

अदालत ने आगे कहा कि शेयरधारकों के पास अल्पमत या बहुमत के बावजूद उपाय हैं। इसलिए, कोई भी शेयरधारक कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 के तहत स्वयं कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता है।

अधिनियम की धारा 212(6) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कोई भी अदालत किसी शिकायत का संज्ञान तब तक नहीं लेगी जब तक कि वह निदेशक, एसएफआईओ या केंद्र सरकार के किसी अधिकारी द्वारा न की गई हो। धारा 447 के तहत अपराध संज्ञेय है, जो शेयरधारकों पर रोक लगाता है।

निष्कर्ष

किसी अभियुक्त को दोषी साबित करने की प्रक्रिया 2013 के नए अधिनियम के तहत स्पष्ट रूप से निर्धारित की गई है। कॉर्पोरेट वित्त की निगरानी के लिए राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (अथॉरिटी) (एनएफआरए) की शुरूआत यह सुनिश्चित करती है कि वित्तीय विवरणों का मूल्यांकन बिना किसी विसंगति के किया जाए। इसके अतिरिक्त, एसएफआइओ की शक्तियों और आवश्यकताओं में वृद्धि हुई है। अब, विनियामक (रेगुलेटरी) प्राधिकरणों के ओवरलैप से बचा जाता है, और एसएफआइओ एकमात्र एजेंसी के रूप में कार्य करता है।

धोखाधड़ी एक जानबूझकर किया जाने वाला कार्य है जो दूसरे का अनुचित लाभ उठाता है और दूसरे को संपत्ति या धन से वंचित करता है। जब किसी कंपनी या कर्मचारी पर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया जाता है, तो वर्षों से विकसित प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती है। लेकिन इस तरह के कानून की शुरुआत के साथ, वे कॉरपोरेट्स को फिर से मूल्यांकन करने और धोखाधड़ी की रोकथाम के लिए, यदि आवश्यक हो, कड़े नियम पेश करने के लिए मजबूर करते हैं। इसलिए, धारा 447 न केवल दंड देती है बल्कि निवारक के रूप में भी काम करती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

कंपनी अधिनियम 2013 के तहत गलत लाभ क्या है?

धारा 447 के स्पष्टीकरण खंड (ii) से गलत लाभ को संपत्ति के गैरकानूनी साधनों के लाभ के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से इसका हकदार नहीं है।

कंपनी अधिनियम 2013 के तहत गलत नुकसान क्या है?

गलत नुकसान मतलब संपत्ति के गैरकानूनी तरीकों से होने वाली हानि, जिसे खोने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से इसका हकदार होता है। इसे धारा 447 के स्पष्टीकरण खंड (iii) के तहत परिभाषित किया गया है।

एसएफआईओ क्या है?

एसएफआईओ का मतलब गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय है। यह कॉर्पोरेट धोखाधड़ी मंत्रालय के तहत एक बहु-अनुशासनात्मक संगठन है। इसे 2013 के कंपनी अधिनियम के तहत गंभीर और जटिल धोखाधड़ी से निपटने के लिए स्थापित किया गया है। यह अधिनियम के तहत अपराधों का पता लगाने और अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) की सिफारिश करने में भी सहायता करता है।

धोखाधड़ी का अपराध शमनीय (कंपाउंडेबल) है या गैर शमनीय (नॉन कंपाउंडेबल)?

धारा 447 के तहत धोखाधड़ी का अपराध गैर-शमनीय है।

संदर्भ

 

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