परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 4

0
96

यह लेख Dilpreet Kaur Kharbanda द्वारा लिखा गया है। यह वचन पत्र (प्रोमीसरी नोट) के सभी पहलुओं, साथ ही इसके प्रकारों और आवश्यक बातों को समझने का एक प्रयास है। लेख का मुख्य उद्देश्य परक्राम्य लिखत ((निगोशीएबल इन्स्ट्रुमेंट) अधिनियम, 1881 की धारा 4 के दृष्टिकोण से वचन पत्र की व्याख्या करना है। इसके अलावा, यह वचन पत्र के विभिन्न प्रकार और याह वचन पत्र चेक और विनिमय पत्र (बिल ऑफ एक्स्चेंज) से किस प्रकार भिन्न है यह भी बताता है। इसमे पिछले कुछ वर्षों में इस विषय में हुए विकास को समझने के लिए उदाहरणों की एक श्रृंखला भी बताई गई है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

पैसा दुनिया को चलाता है, यह एक बहुत ही सामान्य रूप से इस्तेमाल किए जानेवाला मुहावरा है। प्रत्येक घर और प्रत्येक व्यवसाय पैसे पर चलता है, और विनिमय का सबसे सामान्य और पुराना रूप नकद (कैश) है। यदि हम 10 की भारतीय मुद्रा (करेंसी) का नोट उठाएं, तो हम पाएंगे कि उस पर लिखा है ‘मैं धारक को दस रुपये देने का वचन देता हूं।’ इसका क्या अर्थ है, यह जानने के लिए हमारे दिमाग पर थोडा जोर दिया जाना चाहिए। इसे सरलतम शब्दों में कहें तो यह जारीकर्ता (इश्यूरर), अर्थात भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय मुद्रा की नोट के धारक को दिया गया वचन है कि वे उक्त राशि का भुगतान करने में कभी विफल नहीं होंगे। इसे भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26 के संदर्भ में स्थापित किया जा सकता है, जो यह प्रावधान करता है कि बैंक नोट के मूल्य का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। एक करेंसी नोट को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उस करेंसी नोट के धारक को दिया गया वचन पत्र कहा जा सकता है। 

वचन पत्र को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अंतर्गत स्थान मिलता है। परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 13 परक्राम्य लिखतों को ‘एक वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक जो आदेशकर्ता या वाहक को देय हो’ के रूप में परिभाषित करती है। परक्राम्यता (निगोशीएबिलीटी) परक्राम्य लिखतों की मुख्य विशेषता है। ‘परक्राम्य’ का अर्थ है हस्तांतरणीय, और ‘लिखत’ का अर्थ है एक लिखित दस्तावेज जिसके द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को कोई चीज़ हस्तांतरित की जाती है। जब कोई वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक किसी व्यक्ति को इस तरह से हस्तांतरित किया जाता है कि वह व्यक्ति उसका धारक बन जाता है, तो उस लिखत को परक्राम्य कहा जाता है। धारा 13 के तहत प्रदान की गई परिभाषा की कुछ न्यायविदों द्वारा इस आधार पर आलोचना की जाती है कि यह बस इतना बताता है कि इसमें क्या शामिल है लेकीन परक्राम्य लिखतों की सटीक परिभाषा नहीं देता हैl

इस लेख में वचन पत्र की मूल बातें, आवश्यक जानकारी से लेकर इसके प्रारूप (फॉरमैट), इसमें शामिल पक्षों और विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार बनाए जाने वाले वचन पत्र के विभिन्न प्रकारों पर विस्तार से चर्चा की गई है। इसके अलावा, वचन पत्र और चेक के बीच और वचन पत्र और विनिमय पत्र के बीच का अंतर भी बताया गया है। 

परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 4 के अंतर्गत वचन पत्र

अधिनियम की धारा 4 वचन पत्र को एक लिखित दस्तावेज (बैंक नोट या करेंसी नोट नहीं) के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें निर्माता द्वारा हस्ताक्षरित बिना शर्त वचन होता है कि वह एक निश्चित राशि का भुगतान केवल एक निश्चित व्यक्ति को या उसके आदेश पर या दस्तावेज के धारक को करेगा।

वचन पत्र मे शामिल चीजे  

वचन पत्र की मूल सामग्री है:

  1. तिथि : वचन पत्र पर उस तिथि का उल्लेख होना चाहिए जिस दिन वचन पत्र तैयार किया गया है।
  2. स्थान : वचन पत्र में उस स्थान का उल्लेख किया जाना चाहिए, जहां वचन पत्र बनाया गया है या वचनकर्ता द्वारा तैयार किया गया है।
  3. राशि : भुगतान करने के लिए आहर्ता द्वारा जो विशिष्ट राशि देने का वादा किया गया है, उसका स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिए। 
  4. भुगतान का वादा : वचन पत्र में एक विशिष्ट राशि का भुगतान करने का स्पष्ट वादा किया जाना चाहिए।
  5. सम्मिलित पक्ष (पार्टीज इनवोल्व्ड) : लेखीवाल/आहर्ता (ड्राॅअर) (वह व्यक्ति जो धन का भुगतान करने का वचन देता है) और उपरवाल/राशी स्वीकारनेवाला (वह व्यक्ति जिसे भुगतान किया जाना है) के नाम स्पष्ट रूप से उल्लिखित होने चाहिए।
  6. हस्ताक्षर : वचन पत्र पर लेखक द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिए।
  7. भुगतान की शर्तें : वह समय सीमा जिसके भीतर भुगतान किया जाएगा, चाहे वह मांग करने पर हो या भविष्य की किसी विशेष तिथि पर, इस बारे मे उल्लेख किया जाना चाहिए।

वचन पत्र का प्रारूप 

वचन पत्र का सामान्य स्वरूप इस प्रकार है:

आवश्यक सामग्री

लिखित फॉर्म

वचन पत्र की सबसे पहली अनिवार्यता यह है कि यह लिखित रूप में होना चाहिए। यह मुद्रित (प्रिंटेड) या पत्थर या किसी चीज पर निशान बनाकर (लिथोग्राफिक) हो सकता है। मौखिक रूप से किया गया वादा वचन पत्र नहीं बनता। इसके अतिरिक्त, नोट पर निर्माता के हस्ताक्षर होने चाहिए।

भुगतान करने का स्पष्ट वचन (भुगतान करने का वादा)

वचन पत्र बनाने वाले की ओर से निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने के लिए स्पष्ट वचनबद्धता (एक्सप्रेस अंडरटेकिंग) होनी चाहिए। ऋण की मात्र स्वीकृति वचन पत्र नहीं है। नवाब मेजर सर मोहम्मद अकबर खान बनाम अत्तर सिंह (1936) के मामले में भी यही माना गया था।

साथ ही, महज धन की रसीद भी वचन पत्र नहीं होती, भले ही उसमें चुकौती की शर्तें लिखी हों। उसमे राशि का भुगतान करने का वचन व्यक्त होना चाहिए, निहित नहीं। बाल मुकुंद बनाम मुन्ना लाल पम्मी लाल एवं अन्य (1970) के मामले का संदर्भ लिया जा सकता है, जहां देनदार ने स्पष्ट रूप से विशिष्ट राशि का भुगतान करने का वादा नहीं किया था, लेकिन निश्चित राशि के संबंध में ऋणग्रस्तता (इनडेटेडनेस) की स्वीकृति थी, जिसे मांग पर चुकाया जाना था। इसे परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 4 के तहत वैध वचन पत्र माना गया। इसके अलावा, वचन पत्र में निर्दिष्ट राशि विशिष्ट होनी चाहिए न कि एकमुश्त (लम्पसम)। 

आइये एक उदाहरण लेते हैं:

‘A’ लिखित रूप से ‘B’ को ₹50,000 की राशि का  ‘A’ को देय किराया काटने के बाद भुगतान करने का वादा करता है। वचन पत्र के वैध होने के लिए, नोट में उल्लिखित राशि विशिष्ट होनी चाहिए। इस प्रकार, इस मामले में, ‘A’ द्वारा तैयार किया गया वचन पत्र वैध नहीं है।

वादा बिना शर्त के होना चाहिए

पैसे देने का वादा पूरी तरह बिना शर्त के होना चाहिए और किसी घटना या शर्त पर आधारित नहीं होना चाहिए। यहाँ अपवाद एक सामान्य स्थिति या मानव जाति का अनुभव हो सकता है जो एक न एक दिन होने ही वाला है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति की मृत्यु निश्चित नहीं हो सकती है, लेकिन उसका होना तय है। इसलिए, यदि ‘A’ वचन पत्र में यह शर्त रखता है कि वह ‘C’ की मृत्यु के बाद ‘B को निर्दिष्ट राशि का भुगतान करेगा, तो यह एक शर्त है, लेकिन यह वचन पत्र को अमान्य नहीं करता है क्योंकि ऐसी शर्त का होना तय है।

एस. एस. नंबूरी बनाम मथाई अब्राहम (1973) के मामले में केरल उच्च न्यायालय के फैसले का संदर्भ लिया जा सकता है। मामले में रखी गई शर्त यह थी कि याचिकाकर्ता मुकदमे के समाप्त होने के बाद वचन पत्र के अनुसार खातों का निपटान करने के लिए सहमत हो। अदालत ने माना कि ऐसी शर्त वचन पत्र को अमान्य बनाती है क्योंकि वादा सशर्त था, और यह अनिश्चित था कि मुकदमा कब समाप्त होगा, भले ही यह किसी दिन समाप्त हो जाए।

वादा केवल धन के संबंध में होना चाहिए 

वचन पत्र में किया गया वादा केवल पैसे के संबंध में होना चाहिए। इसलिए, वचन पत्र की सभी आवश्यक बातों के साथ लिखित रूप में आभूषण देने का वादा वचन पत्र नहीं माना जा सकता। इसके अलावा, देय धन की राशि निश्चित होनी चाहिए।

शामिल पक्षों की निश्चितता (सर्टेनिटी)

वचन पत्र में निर्माता और आदाता (पेई) दोनों का नाम स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए। इसलिए, दोनों पक्षों को लिखे गए पत्र के मुखपृष्ठ पर निश्चितता के साथ दर्शाया जाना चाहिए। इसका संदर्भ लाला जेठजी बनाम भागू (1901) के मामले में दिया जा सकता है, जहाँ वचन पत्र खाता बही के रूप में बनाया गया था। इसमें भुगतान की जाने वाली विशिष्ट राशियों का उल्लेख किया गया था, लेकिन इस बात का कोई विशेष उल्लेख नहीं था कि राशि किसे दी जानी थी। इसलिए, यह माना गया कि किसी भी पक्ष के संबंध में अनिश्चितता वचन पत्र को अमान्य बनाती है।

आदेश या मांग के अनुसार भुगतान 

वचन पत्र का मूल नियम यह है कि जिस किसी व्यक्ति के पास परक्राम्य लिखत है, उसे एक निश्चित राशि वसूलने का अधिकार है। अधिनियम की धारा 4 में ‘धारक (बियरर) को’ और ‘के आदेश को’ शब्दों का प्रयोग किया गया है। धारक को देय का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास वचन पत्र है, वह उसमें निर्दिष्ट धन वसूल सकता है। आइए एक उदाहरण लेते हैं:

‘A’, ‘B’ को एक हस्ताक्षरित वचन पत्र देता है जिसमें वह कहता है कि वह ‘B’ को 5,000/- रुपये की धनराशि देगा और वह लिखत ‘B’ को सौंप देता है, तो उस स्थिति में ‘B’ लिखत के वाहक के रूप में ‘A’ से उक्त धनराशि वसूल कर सकता है।

आदेश के अनुसार भुगतान योग्य का अर्थ है कि वचन पत्र में उस व्यक्ति का नाम लिखा होता है जिसके पक्ष में ऐसा वचन पत्र लिखा जाता है और साथ ही ‘उसके आदेश के अनुसार’ उसमे शब्दो का भी उपयोग किया जाता है। परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1890 की धारा 1 और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 31 के संयुक्त वाचन से यह स्पष्ट होता है कि केवल भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के पास मांग पर धारक को देय वचन पत्र जारी करने का अधिकार है। इसी तरह, विनिमय पत्र धारक को देय हो सकता है लेकिन मांग पर नहीं। इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लेते हैं:

वचन पत्र में कहा गया है कि ‘A’ ‘B’ या उसके आदेश पर ₹5,000/- की राशि का भुगतान करने का वादा करता है। यहाँ, पहली बार में, यह राशि ‘B’ द्वारा वसूली योग्य होगी। हालाँकि, यदि ‘B’ वचन पत्र के पीछे पृष्ठांकन (एंडोर्स) करता है और इसे ‘C को सौंपता है, तो ‘C उस लिखत का वाहक होने के नाते, ‘B के आदेश पर, ‘A’ से राशि वसूल कर सकता है।

वचन पत्र के पक्षकार

वचन पत्र में दो पक्ष होते हैं:

  1. लेखीवाल/आहर्ता : वह व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति को एक विशिष्ट धनराशि देने का वचन देता है (वचनकर्ता) और वचन-पत्र तैयार करता है, उसे वचन-पत्र का लेखक या निर्माता कहा जाता है।
  2. उपरवाल/राशी स्वीकारनेवाला: वह व्यक्ति जिसके पक्ष में वचन पत्र तैयार या जारी किया जाता है, उसे वचनग्राही (प्रॉमिसी) या आदाता (पेई) या लिखत का आहर्ता कहा जाता है।

यदि आदाता वचन पत्र में उल्लिखित निर्दिष्ट राशि को वापस लेने का अधिकार उसे पृष्ठांकित करके हस्तांतरित करता है, तो वह व्यक्ति जिसे अधिकार पृष्ठांकित किया जाता है, उसे पृष्ठांकिती (इंडोरसी) कहलाता है।

उदाहरण 

अधिनियम की धारा 4 में ही वचन पत्र की अवधारणा को समझने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए उदाहरण दिए गए हैं। आइए धारा में दिए गए उदाहरणों के अलावा कुछ और उदाहरण देखें।

  1. रिचर्ड, सैमुअल से ₹25,000 उधार लेता है और उधार लेने की तारीख से एक महीने के भीतर ऋण चुकाने का लिखित में वादा करता है।

अधिनियम के अंतर्गत दिए गए सभी आवश्यक तत्व इसमें पूरे हैं, और इसलिए यह एक वैध वचन पत्र है।

2. जैकब ने वादा किया कि जब एडम लॉटरी जीतेगा तो वह उसे ₹2,000 देगा।

वचन पत्र की एक अनिवार्यता यह है कि भुगतान का वादा बिना किसी शर्त के होना चाहिए। इसलिए, वचन पत्र शर्त लगाए जाने के कारण अमान्य है, और ऐसी कोई स्थिति नहीं है जहाँ यह कहा जा सके कि ऐसा होना तय था या एडम लॉटरी जीतने के लिए बाध्य था।

3. एंड्रयू एक वचन पत्र तैयार करता है जिसमें देय ऋणों की पूरी राशि का उल्लेख होता है, लेकिन यह उल्लेख नहीं करता कि विशिष्ट राशि किसे देय है। 

इसलिए, लिखत के विशिष्ट पक्ष कौन हैं इस बात की अनिश्चितता के कारण, वचन पत्र कानून के अनुसार अवैध है।

वचन पत्र के प्रकार

वचन पत्र का मूल उद्देश्य सभी परिदृश्यों (सिनेरीयो) में समान होता है, लेकिन विभिन्न परिस्थितियों और व्यवसायों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वचन पत्र को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:

सरल (सिंपल) वचन पत्र

वचन पत्र का सबसे बुनियादी लेकिन मौलिक प्रकार सरल वचन पत्र के रूप में जाना जाता है। इसमें उधारकर्ता द्वारा आदाता से उधार ली गई राशि को एक निर्दिष्ट तिथि पर ब्याज (यदि लागू हो) के साथ चुकाने का वादा किया जाता है और अंत में हस्ताक्षर किए जाते हैं। इस प्रकार का वचन पत्र लचीलापन प्रदान करता है और साथ ही वचन पत्र के पक्षों के बीच कानूनी बंधन भी प्रदान करता है।

मांग (डिमांड) वचन पत्र 

इस तरह का वचन पत्र एक साधारण वचन पत्र जैसा ही होता है, लेकिन इस पर किसी निर्दिष्ट तिथि के बजाय ‘भुगतानकर्ता की मांग पर’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इसका मतलब यह है कि ऋणदाता (लेंडर) किसी भी समय उधार दी गई राशि की मांग कर सकता है।

आइये एक उदाहरण लेते हैं:

‘A’ ग्राफिक प्रिंटर्स के नाम से प्रिंटिंग का व्यवसाय चलाता है। ‘A’ ‘B’ से स्याही, फ्लेक्स और कागज जैसी सभी आवश्यक सामग्री उधार पर खरीदता है, जिसे मांग वचन पत्र के रूप में दर्ज किया जाता है। यहां, ‘B’ किसी भी समय ‘A’ से सामग्री के बकाया भुगतान की मांग कर सकता है।

वाणिज्यिक या सुरक्षित (कमर्शियल ऑर सेक्युरड) वचन पत्र

वाणिज्यिक या सुरक्षित वचन पत्र को संपार्श्विक (कोलैटरल) द्वारा समर्थित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि यदि उधारकर्ता चूक करता है या राशि चुकाने में असमर्थ रहता है, तो बकाया ऋण की वसूली के लिए उस संपार्श्विक को बनाए रखा जा सकता है। यह संपार्श्विक कुछ भी हो सकता है, जिसमें उधारकर्ता की संपत्ति, मशीनरी या कोई अन्य मूल्यवान संपत्ति शामिल है।

आइये एक उदाहरण से समझते हैं:

‘A’ ने कार खरीदने के लिए ₹25,00,000/- का ऋण लिया है। ऐसी स्थिति में, वाहन (कार) को संपार्श्विक माना जाएगा। यदि ‘A’ वचन पत्र में तय तिथि पर राशि चुकाने में असमर्थ है, तो ‘B’ को ‘A’ की उस कार को जब्त करने का अधिकार है और वह उधार दी गई बकाया राशि वसूल सकता है।

अनौपचारिक या असुरक्षित वचन पत्र 

जैसा कि नाम से पता चलता है, अनौपचारिक या व्यक्तिगत या असुरक्षित वचन पत्र किसी भी संपार्श्विक द्वारा समर्थित नहीं होते हैं। इस प्रकार का वचन पत्र केवल मौखिक रूप से या उधार ली गई विशिष्ट राशि को चुकाने का वादा करने वाले व्यक्ति पर होनेवाले विश्वास पर काम करता है।

आइये एक उदाहरण से समझते हैं:

‘A’ अपने रिश्तेदार ‘B’ से ₹5,000 की राशि उधार लेती है और एक महीने के भीतर उक्त राशि चुकाने का वादा करती है। यहाँ, कोई संपार्श्विक शामिल नहीं है। यदि, ऐसी स्थिति में, ‘A’ द्वारा एक वचन पत्र तैयार किया जाता है, तो यह एक व्यक्तिगत वचन पत्र होगा जो पूरी तरह से ‘A’ द्वारा किए गए वादे और ‘B’ द्वारा उस पर लगाए गए विश्वास पर काम करेगा।

यहां, चूंकि कोई संपार्श्विक शामिल नहीं है, यदि ‘A’ उधार ली गई राशि वापस नहीं करता है, तो यहा एकमात्र उपाय सिविल मुकदमा दायर करना है। 

परिवर्तनीय (कन्वर्टिबल) वचन पत्र

परिवर्तनीय वचन पत्र में, ऋणदाता के पास उधार दिए गए पैसे (ऋण) को हिस्सेदारी/इक्विटी में बदलने का विकल्प होता है। आम तौर पर, ऐसे वचन पत्र तैयार किए जाते हैं, जहाँ निवेशक (इनवेस्टर) या ऋणदाता भविष्य में पर्याप्त लाभ की उम्मीद में स्टार्टअप में अपना पैसा लगाते हैं।

आइये एक उदाहरण से समझते हैं:

XYZ फिनटेक फर्म की मालिक कैथरीन एक परिवर्तनीय वचन पत्र का उपयोग करके एक फिनटेक स्टार्टअप को ₹1.5 करोड़ की राशि उधार देती है। अगर, पांच साल बाद, स्टार्टअप अच्छा काम करता है, तो कैथरीन संगठन  (कंपनी) के भागो की हिस्सेदारी/इक्विटी शेयर के रूप में उधार दिए गए पैसे (ऋण) को वसूलने का विकल्प चुन सकती है।

इस प्रकार के वचन पत्र के दोतरफा लाभ हैं: स्टार्टअप को अपना निवेश मिल जाता है, और निवेशकों को स्टार्टअप में इक्विटी भागीदारी का विकल्प मिलता है।

छात्र ऋण वचन पत्र

जैसा कि नाम से पता चलता है, छात्र ऋण वचन पत्र एक छात्र द्वारा उस ऋण के संबंध में तैयार किया जाता है जिसे उसने शिक्षा के वित्तपोषण (फायनान्स) के लिए लिया है। इस तरह के वचन पत्र के प्रमुख तत्व किसी भी अन्य वचन पत्र के समान ही होते हैं, लेकिन पुनर्भुगतान (रीपेमेंट) कालावधी, पुनर्भुगतान के लिए अनुग्रह अवधि का आवंटन, स्थगन और सहनशीलता (डिफरमेंट एंड फोरबियरन्स) विकल्प और अन्य शर्तों के संबंध में अंतर होता है जो किसी न किसी तरह से पूरी प्रक्रिया को छात्रों के लिए थोड़ा आसान बना सकता है। 

आइये एक उदाहरण लेते हैं:

‘A’ स्टैनफोर्ड में दाखिला लेता है। ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए वह ABC बैंक से ऋण लेता है और छात्र ऋण वचन पत्र पर हस्ताक्षर करता है। 

इस तरह के वचन पत्र में ‘Y’ वर्षों की अवधि के लिए स्नातक (स्टूडंट) होने के चार महीने बाद से ‘X’ राशि के मासिक भुगतान द्वारा ऋण की चुकौती के लिए एक कार्यक्रम जैसी शर्तें हो सकती हैं। वित्तीय कठिनाइयों या आगे की पढ़ाई के दौरान भुगतान में अस्थायी कमी (टेम्पररी रिडक्शन) या विराम (पॉज) जैसे सहनशीलता विकल्प प्रदान करने वाली शर्तें हो सकती हैं।

अचल संपत्ति (रिअल एस्टेट) वचन पत्र

रियल एस्टेट वचन पत्र पैसे के उधारकर्ता के बीच कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते के रूप में कार्य करता है, जिसमे दो पक्षो मे से एक व्यक्ति होगा जो किसी संपत्ति का खरीदार या विकसक (डेवलपर) होगा और एक ऋणदाता, जो संपत्ति से जुड़ी स्थिति में एक बैंक या एक बंधक (मोर्टगेज) संगठन या एक निजी निवेशक होगा। इस तरह का एक वचन पत्र एक विशिष्ट उद्देश्य को पूरा करता है, जहाँ खरीदार ऋणदाता को एक विशिष्ट राशि चुकाने का वादा करता है, जो कि अचल संपत्ति द्वारा सुरक्षित है।

निवेश (इन्वेस्टमेंट) वचन पत्र

इस प्रकार के वचन पत्र का उपयोग मुख्य रूप से निजी निवेश लेनदेन में किया जाता है। निवेश वचन पत्र उधारकर्ता (कंपनी) द्वारा निवेशक को दिया गया एक वादा है, जो निवेश की गई विशिष्ट राशि को चुकाने के लिए है। यह किसी कंपनी के लिए किसी ऐसे व्यक्ति से पैसे उधार लेने का एक तरीका है जो उनमें निवेश करना चाहता है। उधार ली गई राशि को उधारकर्ता अपनी संगठन या किसी परियोजना (प्रोजेक्ट) में निवेश करता है और एक निश्चित अवधि के भीतर निवेशक को ब्याज के साथ चुकाया जाता है।

ऐसे मामलों में, निवेश करने से पहले जारीकर्ता की ऋण-योग्यता और वित्तीय स्थिरता का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिए। 

धन उधार लेने वाला व्यक्ति अक्सर उधारदाताओं या निवेशकों को संगठन के विस्तार या किसी विशिष्ट परियोजना को पूरा करने के लिए पूंजी (कॅपिटल) जुटाने के बदले में एक निश्चित राशि का वापस मिलना और निवेश के अवसर प्रदान करता है।

Lawshikho

वचन पत्र और चेक के बीच अंतर

क्रमांक आधार वचन पत्र  चेक 
1. परिभाषा परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 4 के अंतर्गत वचन पत्र को निर्माता द्वारा आदाता को एक निश्चित धनराशि का भुगतान करने का लिखित वादा के रूप में परिभाषित किया गया है, चाहे वह मांग पर हो या किसी निर्दिष्ट भविष्य की तिथि पर। परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 6 के अंतर्गत चेक को एक लिखित आदेश के रूप में परिभाषित किया गया है, जो बैंक को एक निर्दिष्ट राशि को जारीकर्ता के खाते से आदाता के खाते में भुगतान करने का निर्देश देता है।
2. शामिल पक्ष  इसमें दो पक्ष शामिल होते हैं: निर्माता (वह जो लिखत बनाता है) और आदाता (जिसे पैसा दिया जाता है)। इसमें तीन पक्ष शामिल होते हैं: लेखक (चेक लिखने वाला) आहर्ता (बैंक) आदाता (वह व्यक्ति जिसे भुगतान किया जाता है)।
3.  बैंक की भागीदारी बैंक किसी भी स्तर पर इसमें शामिल नहीं है। बैंक इस प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से शामिल है, तथा वही आहर्ता है।
4.  मुद्रांकन (स्टाम्प ) वचन पत्र पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 के अनुसार मुद्रांकन किया होना चाहिए । चेक के मामले में मुद्रांकन लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
5.  हस्ताक्षर वचनपत्र पर निर्माता के हस्ताक्षर होना अनिवार्य है। इसमें आहर्ता के हस्ताक्षर की अनिवार्य आवश्यकता है। 
6. भुगतान वचन पत्र, लिखत पर निर्दिष्ट भविष्य की तिथि पर देय हो सकता है, या यह मांग पर देय हो सकता है। चेक मांग पर देय होता है। जारी किए गए चेक को जारी होने की तारीख से तीन महीने की वैधता अवधि के भीतर भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

 

वचन पत्र और विनिमय पत्र (बील ऑफ एक्स्चेंज) के बीच अंतर

क्रमांक आधार वचन पत्र  विनिमय पत्र
1. परिभाषा  परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 4 के तहत वचन पत्र को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को एक निश्चित धनराशि का भुगतान करने के लिए बिना शर्त लिखित रूप में दिया गया वादा, ऐसे परिभाषित किया गया है, चाहे वह मांग पर हो या भविष्य की किसी तिथि पर और इस पर वचन पत्र बनाने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। विनिमय पत्र को  परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 5 के तहत एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को बिना शर्त लिखित आदेश के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें जिस व्यक्ति को यह पत्र संबोधित किया जाता है, वह किसी तीसरे व्यक्ति या लिखत के धारक को मांग पर या भविष्य में निर्दिष्ट तिथि पर एक निर्दिष्ट धनराशि का भुगतान करने का निर्देश देता है।
2. शामिल पक्ष  इसमें दो पक्ष शामिल होते हैं: निर्माता (वह जो लिखत बनाता है) आदाता (जिसे पैसा दिया जाता है)। इसमें तीन पक्ष शामिल हैं: आहर्ता (वह जो मांग करता है) आहर्ता (जो मांग पूरी करता है) आदाता (जिसे भुगतान किया जाना है)
3. स्वीकार वचन पत्र के मामले में आहर्ता की स्वीकृति की कोई आवश्यकता नहीं है। यह अनिवार्य है कि विनिमय पत्र को पहले स्वीकार किया जाए, तभी उसके विरुद्ध भुगतान की मांग की जा सकती है।
4. लिखत का प्रकार यह भुगतान करने का वादा है। यह भुगतान करने का आदेश है।
5. पक्षो का दायित्व वचन पत्र के निर्माता का प्राथमिक और पूर्ण दायित्व होता है। विनिमय पत्र के लेखक का दायित्व गौण (सेकंडरी) है तथा यह आहर्ता द्वारा विनिमय पत्र का भुगतान न करने या उसे स्वीकार न करने पर सशर्त (कन्डीशन) है।
6. अस्वीकृती का विरोध (प्रोटेस्ट ऑफ डीसओनर) वचन पत्र के अस्वीकृती के लिए विरोध की आवश्यकता नहीं होती है और लिखत के अस्वीकृती के मामले में लेखक को कोई नोटिस नहीं दिया जाता है। यदि बिल विदेशी है तो अस्वीकृती का विरोध आवश्यक है तथा लेन-देन से संबंधित सभी पक्षों को नोटिस देना अनिवार्य है।
7. वैधता कि अवधि वचन पत्र की वैधता अवधि उसके निष्पादन (एग्जीकयुशन) की तिथि से शुरू होकर तीन वर्ष की होती है। विनिमय पत्र की कोई वैधता अवधि नहीं होती।
8. प्रतियां (कॉपीज) ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जो वचन पत्र की प्रतियां देने की अनुमति देता हो। विनिमय पत्र की प्रतियां हो सकती हैं।

परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 4 से संबंधित महत्वपूर्ण मिसालें

नवाब मेजर सर मोहम्मद अकबर खान बनाम अत्तर सिंह (1936)

इस मामले मे माननीय मुंबई उच्च न्यायालय ने रसीद और वचन पत्र के बीच अंतर करते हुए कहा कि एक दस्तावेज वचन पत्र प्रतीत हो सकता है और इस प्रकार परक्राम्य भी लग सकता है यदि इसमें प्रथम दृष्टया कोई तत्व नहीं दर्शाया गया है जो इसे हस्तांतरणीय नहीं दर्शाता है। 

अदालत ने आगे कहा कि रसीदें और समझौते आम तौर पर बातचीत के लिए नहीं होते हैं। पैसे की रसीद में पुनर्भुगतान की शर्तें शामिल होती हैं। अदालत ने इस बात को ध्यान में रखा कि प्रतिवादी, जो अनुभवी धन उधारदाता थे, उन्होने वचन पत्र के लिए आवश्यक विशेष कागज़ का उपयोग नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने एक साधारण रसीद के लिए उपयुक्त मुद्रांकन का इस्तेमाल किया। चूँकि इस्तेमाल किया गया दस्तावेज़ मुख्य रूप से रसीद था, यहाँ तक कि पुनर्भुगतान के वादे के साथ भी, इसीलिये इसे वचन पत्र नहीं माना जा सकता।

कुंदन मल बनाम नंद किशोर (1994)

इस मामले में, माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने, यह विचार करते हुए कि क्या विचाराधीन दस्तावेज वचन पत्र था या नहीं, यह टिप्पणी की कि तीन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  • दस्तावेज़ के निष्पादन के समय पक्षों की मंशा (इंटेंशन),
  • उन परिस्थितियों का संदर्भ दिया जाना चाहिए जिनमें दस्तावेज़ निष्पादित किया गया है और लोकप्रिय अर्थ में इसकी परक्राम्यता, तथा
  • दस्तावेज़ के सार पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

उपर्युक्त सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, मात्र पावती या प्रतिफल की रसीद और वचन पत्र के बीच अंतर किया जा सकता है।

एम. न्यामथुल्ला बनाम. ए. चितरंजन रेड्डी (2008)

इस मामले में, माननीय आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने बंधपत्र (बांड) और वचन पत्र के बीच अंतर की व्याख्या करने की कोशिश की। न्यायालय ने अल्पविराम के उपयोग के महत्व को समझाने की हद तक कोशिश की। न्यायालय ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 4 में ‘के आदेश पर’ शब्द के बाद और पहले अल्पविराम के उपयोग पर जोर दिया और कहा कि इस्तेमाल किया गया अल्पविराम यह दर्शाता है कि लिखत के धारक को उसके मांग पर एक विशिष्ट राशि का भुगतान किया जाना चाहिए। माननीय न्यायालय ने आगे बढ़कर कहा कि यदि प्रावधान में अल्पविराम का उपयोग नहीं किया गया होता, तो उस प्रावधान की वर्तमान व्याख्या स्वीकार्य नहीं होती, और इसलिए, बंधपत्र और वचन पत्र के बीच कोई अंतर नहीं रह जाता। 

न्यायालय ने आगे कहा कि विधानमंडल का स्पष्ट इरादा है कि वचन पत्र में किसी विशेष व्यक्ति या उनके आदेश के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान करने का बिना शर्त वादा शामिल होना चाहिए। इसमे वाक्य को दो भागों में विभाजित नहीं किया जा सकता है, इसका मतलब यह है कि लिखत या तो नामित व्यक्ति या उनके आदेश के लिए हो सकता है। वाक्य को विभाजित करने से यह भ्रामक और अतार्किक (इर्रीलेवंट) हो जाएगा। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि किसी दस्तावेज़ को वचन पत्र होने के लिए, उसमें ‘धारक को’ या ‘आदेश को’ शब्द शामिल होने चाहिए। इन शब्दों को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए, और अलग-अलग नहीं।     

मल्लावरपु काशीविश्वेश्वर राव बनाम थडिकोंडा रामुलु फर्म (2008)

इस मामले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 118 (A) को ध्यान में रखा, जो यह प्रावधान करता है कि न्यायालय का यह मानना दायित्व है कि वचन पत्र तब तक प्रतिफल के लिए बनाया गया था जब तक कि इसके विपरीत कुछ सामने न आ जाए। इसके अलावा, इसके संबंध में प्रारंभिक भार प्रतिवादी पर है कि वह प्रतिफल के अस्तित्वहीन होने का समर्थन करने वाले तथ्यों और परिस्थितियों को अभिलेख पर लाकर यह साबित करे कि विचार अस्तित्वहीन है। न्यायालय ने भारत बैरल एंड ड्रम मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम अमीन चंद पेरेलाल (1999) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया, न्यायालय ने कहा कि यदि प्रतिवादी यह दिखा सकता है कि यह असंभव या संदिग्ध (डाउटफुल) है कि कोई वैध प्रतिफल था, या प्रतिफल अवैध था, तो साबित करने का भार वादी पर आ जाता है। फिर यह वादी पर निरभ्र है कि वह साबित करे कि प्रतिफल अस्तित्व में था। यदि वादी ऐसा करने में विफल रहता है, तो उसे परक्राम्य लिखत के आधार पर कोई राहत नहीं मिलेगी। हालाँकि, यदि प्रतिवादी यह साबित नहीं कर सकता कि कोई प्रतिफल नहीं था, तो वादी यह अनुमान लगाने का हकदार है कि धारा 118(A) के तहत एक वैध प्रतिफल मौजूद है।

वर्तमान मामले में न्यायालय ने भारत बैरल मामले में न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी को बरकरार रखा और कहा कि मामले के तथ्यों के अनुसार, वचन पत्र प्रतिवादी द्वारा विधिवत् निष्पादित किया गया था, और एक बार वचन पत्र का निष्पादन सिद्ध हो जाने पर, अधिनियम की धारा 118 (A) के तहत लाभ अपीलकर्ता को प्राप्त हो जाता है, क्योंकि प्रतिवादी प्रारंभिक दायित्व का निर्वहन करने में विफल रहे थे।

निष्कर्ष 

परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 4 वचन पत्र से संबंधित है, जो ऋण देने और लेने का एक प्रभावी तरीका है, जिसमें उधार ली गई राशि, पुनर्भुगतान योजना, ब्याज दर और अन्य विवरण स्पष्ट होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में न्यायालयों द्वारा स्थापित मिसालों (प्रीसिडेन्ट) ने इस लिखत के दायरे को व्यापक बना दिया है, लेकिन साथ ही, वचन पत्र को रसीद, बंधपत्र या भुगतान की मात्र पावती से अलग करने के लिए ध्यान देने योग्य सूक्ष्म तत्वों को भी स्पष्ट किया है।

वचन पत्र तैयार करने के कई लाभ हैं क्योंकि यह स्पष्ट और कानूनी रूप से बाध्यकारी शर्तें प्रदान करता है, गलतफहमियों को कम करता है, और यदि उधारकर्ता ऋण चुकाने में विफल रहता है तो कानूनी विकल्प प्रदान करता है। यह लचीला भी है और आम लोगों के लिए जटिल ऋण अनुबंधों की तुलना में इसे बनाना और समझना बहुत आसान है।

हालांकि, इसके कुछ नुकसान भी हैं। वचन पत्रो में अक्सर कोई संपार्श्विक (डाऊनसाईड) नहीं होता है, जिससे उधारकर्ता द्वारा चूक किए जाने की स्थिति में ऋणदाताओं के लिए जोखिम बढ़ जाता है। एक और मुद्दा यह है कि एक बार शर्तों पर सहमति हो जाने के बाद, उन्हें नया लिखत बनाए बिना बदलना मुश्किल होता है। एक और नुकसान यह है कि ब्याज कि दर (रेट) तय होती हैं; अगर बाजार गिरता है तो वे खराब हो सकती हैं। 

कुल मिलाकर, वचन पत्र ऋण का दस्तावेजीकरण (डोक्यूमेंटेशन) करने का एक सीधा और लागू करने योग्य तरीका है, लेकिन इसमें शामिल दोनों पक्षों के लिए इसकी शर्तों और संभावित जोखिमों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

क्या मुद्रा राशी (करन्सी नोट) वचन पत्र की श्रेणी में आते हैं?

हां, करेंसी नोट वचन पत्र की श्रेणी में आते हैं। वे वाहक वचन पत्र हैं। प्रश्न का उत्तर परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 4 के विपरीत लग सकता है, जो वचन पत्र की परिभाषा प्रदान करता है और विशेष रूप से करेंसी या बैंक लिखत को बाहर करता है। संदर्भ: भारतीय पत्र मुद्रा अधिनियम, 1923 बनाम अज्ञात (1928) की धारा 25 के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का संदर्भ लिया जाना चाहिए, जहां अदालत ने निर्दिष्ट किया कि मांग पर वाहक को देय धन के भुगतान के लिए वचन पत्र तैयार करना भारतीय पत्र मुद्रा अधिनियम 10, 1923 की धारा 25 के तहत विशेष रूप से निषिद्ध है। धारा 25 को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 31 द्वारा प्रतिस्थापित (रिप्लेस) किया गया है।

क्या नेमोडेट क्वाड नॉन हैबेट का सिद्धांत परक्राम्य लिखतों पर लागू होता है?

परक्राम्य लिखत नेमोडेट क्वाड नॉन हैबेट के सिद्धांत का अपवाद है, जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति अपने पास मौजूद अधिकार से बेहतर अधिकार हस्तांतरित नहीं कर सकता। इसलिए, कोई भी व्यक्ति जो सद्भावनापूर्वक (गुड फेथ) और मूल्य के लिए परक्राम्य लिखत लेता है, वह उस परक्राम्य लिखत का सच्चा मालिक बन जाता है, भले ही वह उस लिखत को चोर या उस लिखत को खोजने वाले से लेता हो। 

न्यायमूर्ति विलिस ने परक्राम्य लिखत को इस प्रकार परिभाषित किया है, “वह संपत्ति जो किसी व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक और मूल्य के लिए अर्जित की जाती है, भले ही उस व्यक्ति में शीर्षक के कोई दोष हों, जिससे उसने इसे लिया है” ।

इस प्रकार, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लिखत किससे लिया गया है। शीर्षक में दोष लिखत के साथ आगे नहीं बढ़ता है बशर्ते कि इसे सद्भावनापूर्वक और उसके मूल्य का भुगतान करके लिया गया हो।

क्या वचन पत्र पर स्टाम्प शुल्क लागू होता है?

भारतीय मुद्रांकन अधिनियम, 1899 के अनुसार वचन-पत्र पर राजस्व (रीवेन्यू) मुद्रांकन पर्याप्त रूप से अंकित होने चाहिए। अधिनियम की धारा 3 , 35 , 62 और अनुसूची की मद 49 का संदर्भ अवश्य लिया जाना चाहिए।

संदर्भ

  • Avatar Singh, Introduction to Negotiable Instruments: Negotiable Instruments Act, 1881, Eastern Book Company, 2016. 

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here