व्यापार चिन्ह अधिनियम 1999 की धारा 103

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यह लेख Harshita Agrawal द्वारा लिखा गया है। इसमें व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 पर विशेष ध्यान देते हुए व्यापार चिन्ह के महत्व और विशेषताओं का पता लगाया गया है। यह लेख झूठे व्यापार चिन्ह के प्रयोग, भ्रामक व्यापार विवरण और अन्य संबंधित उल्लंघनों से जुड़े दंडों पर विस्तार से प्रकाश डालता है। इस लेख का अनुवाद Chitrangda Sharma के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 व्यापार चिन्ह के मालिकों को अपने चिह्नों के उपयोग का विशेष अधिकार प्रदान करता है, जिससे उन्हें अनधिकृत उपयोग या किसी भी समान चिह्नों से सुरक्षा मिलती है जो ग्राहकों के बीच भ्रम पैदा कर सकते हैं या ग्राहकों को धोखा देने के उद्देश्य से उपयोग किए जा सकते हैं। व्यापार चिन्ह अधिनियम का उद्देश्य व्यापार चिन्ह के मालिकों  और उनकी संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करना है, साथ ही इन अधिकारों को लागू करने के लिए कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यह अधिनियम पुलिस को व्यापार चिन्ह के उल्लंघन के लिए गिरफ्तारी करने का अधिकार देता है, तथा स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है कि उल्लंघन क्या है। 

यह अपराधियों के लिए दंड और सज़ा का भी प्रावधान करता है, पंजीकरण अवधि को बढ़ाता है, तथा गैर-पारंपरिक व्यापार चिन्ह के पंजीकरण की अनुमति देता है। यह कानूनी संरक्षण व्यवसाय की अखंडता सुनिश्चित करता है और उपभोक्ता विश्वास को कायम रखता है। जैसे-जैसे हम लेख में आगे बढ़ेंगे, हम प्रावधान का उल्लंघन करने के दायरे और कानूनी निहितार्थों का पता लगाएंगे, तथा अधिनियम के तहत गलत व्यापार चिन्ह या विवरण लागू करने पर दंड और उससे संबंधित न्यायिक उदाहरणों का संकेत देंगे। इस लेख में भारत में व्यापार चिन्ह के अधिकारों और हितों को बनाए रखने में इसके महत्व को भी समझाया गया है। 

व्यापार चिन्ह के बारे में वह सब कुछ जो हमें जानना चाहिए

1940 से पहले भारत में व्यापार चिन्ह से संबंधित कोई विशेष कानून नहीं था। पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों तरह के व्यापार चिन्ह के उल्लंघन से संबंधित मुद्दों को विशिष्ट अनुतोष  अधिनियम, 1877 की धारा 54 के तहत संबोधित किया जाता था, जबकि पंजीकरण से संबंधित मामलों को पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत संभाला जाता था। 1940 में व्यापार चिन्ह अधिनियम का लागू होना इन मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस अधिनियम ने व्यापार चिन्ह अधिकारों की सुरक्षा और व्यापार में उनके उचित उपयोग को सुनिश्चित करने की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित किया। बाद में, बेहतर सुरक्षा प्रदान करने तथा वस्तुओं पर चिह्नों के भ्रामक उपयोग को रोकने के लिए व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 ने पूर्ववर्ती व्यापार चिन्ह एवं मर्चेंडाइज मार्क्स अधिनियम, 1958 का स्थान ले लिया हैं। संसद ने विश्व व्यापार संगठन की अनुशंसा के अनुसार ट्रिप्स (बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधी पहलू) करार (एग्रीमेंट) का अनुपालन करने के लिए यह नया कानून बनाया है। 

व्यापार चिन्ह का अर्थ

अधिनियम की धारा 2(1)(zb) के तहत परिभाषित अनुसार, व्यापार चिन्ह एक प्रतीक या डिजाइन है जिसे दृष्टिगत रूप से दर्शाया जा सकता है और जो एक व्यक्ति के सामान या सेवाओं को अन्य लोगों से अलग करने में सक्षम है। इसमें वस्तुओं का आकार, उनकी पैकेजिंग या रंगों का संयोजन शामिल हो सकता है। 

अध्याय XII (धारा 107 को छोड़कर) के संबंध में, व्यापार चिन्ह से तात्पर्य पंजीकृत चिह्न या व्यवसाय में प्रयुक्त चिह्न से है, जो वस्तुओं या सेवाओं तथा चिह्न के उपयोग का अधिकार स्वामी के रूप में रखने वाले व्यक्ति के बीच संबंध को इंगित करता है। 

इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों के अनुसार, व्यापार चिन्ह से तात्पर्य ऐसे चिह्न से है जिसका उपयोग वस्तुओं या सेवाओं के संबंध में, जैसा भी मामला हो, वस्तुओं या सेवाओं तथा चिह्न का उपयोग करने के अधिकार वाले व्यक्ति के बीच संबंध दर्शाने के उद्देश्य से किया जाता है या किया जाना अपेक्षित है, चाहे उस व्यक्ति की पहचान दर्शाई गई हो या नहीं। इसमें प्रमाणन व्यापार चिन्ह और सामूहिक चिह्न भी शामिल हैं। 

वैध व्यापार चिन्ह की अनिवार्यताएं

वैध व्यापार चिन्ह के लिए आवश्यक मानदंड इस प्रकार हैं:

  • व्यापार चिन्ह में ऐसा प्रतीक, शब्द या संयोजन शामिल होना चाहिए जिसे न्यायालय या व्यापार चिन्ह कार्यालय संरक्षण के योग्य समझे। 
  • इसका उपयोग वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जाना चाहिए।
  • उसे एक पक्ष के सामान, उत्पाद या सेवाओं को अन्य पक्षों से पहचानना और उनमें अंतर करना होगा।
  • यह अद्वितीय (यूनिक)  होना चाहिए।

व्यापार चिन्ह का दुरुपयोग

पंजीकृत व्यापार चिन्ह का कोई भी दुरुपयोग अधिनियम के तहत दंडित किया जाता है। व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 का अध्याय XII अपराधों, दंड और प्रक्रियाओं से संबंधित है। यह धारा झूठे व्यापार चिन्ह का उपयोग करने, पंजीकृत व्यापार चिन्ह के साथ छेड़छाड़ करने, उपभोक्ताओं को गुमराह करने और झूठे व्यापार चिन्ह का प्रतिनिधित्व करने के परिणामों से संबंधित है। इस अध्याय का प्राथमिक उद्देश्य व्यापार चिन्ह के वास्तविक मालिकों के अधिकारों की रक्षा करना तथा बाज़ार में विश्वास बनाए रखना है, तथा यह सुनिश्चित करना है कि सभी व्यापार चिन्ह का उपयोग सही तरीके से किया जाना चाहिए। यह व्यापार चिन्ह की विश्वसनीयता को कायम रखता है और ग्राहकों को धोखा देने पर उचित कानूनी परिणाम स्थापित करता है।  अधिनियम के अध्याय XII की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत दंड का संक्षिप्त अवलोकन की चर्चा की गई है। 

व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103

व्यापार चिन्ह अधिनियम 1999 की धारा 103 में झूठे व्यापार चिन्ह, व्यापार विवरण और संबंधित अपराधों के लिए दंड की रूपरेखा दी गई है: 

  1. व्यापार चिन्ह का मिथ्याकरण करना;
  2. किसी वस्तु या सेवा पर व्यापार चिन्ह का गलत प्रयोग करना;
  3. किसी व्यापार चिन्ह का मिथ्याकरण करने के इरादे से कोई उपकरण, मशीन या अन्य उपकरण बनाना, रखना या उसका उपयोग करना;
  4. माल या सेवाओं पर गलत व्यापार विवरण लागू करना;
  5. मूल देश, निर्माता का विवरण, या धारा 139 के तहत किसी भी आवश्यक जानकारी को गलत तरीके से प्रस्तुत करना, ऐसे देश, नाम, स्थान या पते के बारे में गलत संकेत प्रदान करना;
  6. माल पर मूल के संकेत के साथ छेड़छाड़ करना, उसे बदलना या हटाना, जहाँ धारा 139 के तहत ऐसा संकेत आवश्यक है;
  7. उपर्युक्त किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेरित करना

इन अपराधों के लिए सजा में कम से कम छह महीने का कारावास, जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है, तथा पचास हजार से दो लाख रुपये तक का जुर्माना शामिल है, जब तक कि व्यक्ति यह साबित नहीं कर देता कि उसका धोखा देने का आशय नहीं था। हालांकि, यदि विशेष कारण हों तो अदालत कम सजा भी दे सकती है, जैसे छह महीने से कम की जेल या पचास हजार रुपये से कम का जुर्माना दिया जा सकता है। 

कैडबरी इंडिया लिमिटेड बनाम नीरज फूड प्रोडक्ट्स (2001) के ऐतिहासिक मामले में, अदालत ने माना कि अभियुक्त, नीरज फूड प्रोडक्ट्स, भ्रामक रूप से समान व्यापार चिन्ह का उपयोग करके ग्राहकों को गुमराह कर रहा था, जिससे व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ था। अदालत ने उल्लंघन के लिए दंड का आदेश दिया और झूठे व्यापार चिन्ह से व्यापार चिन्ह के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की थी। 

व्यापार चिन्ह अधिनियम की धारा 103 का उद्देश्य

धारा 103 झूठे व्यापार चिन्ह, व्यापार विवरण और संबंधित अपराधों के लिए दंड से संबंधित है। इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों के हितों की रक्षा करना, बाज़ार की अखंडता बनाए रखना और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं का पालन करके प्रत्येक ग्राहक के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी को रोकना है जो उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पत्ति के संबंध में ग्राहकों को गुमराह करती है। 

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि केवल वे लोग ही इसका उपयोग कर सकते हैं जिनके पास व्यापार चिन्ह पर प्रमाणित कानूनी अधिकार है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की प्रामाणिकता बनी रहेगी। धारा 103 के उल्लंघन, जिसमें व्यापार चिन्ह का अवैध उपयोग या पंजीकृत व्यापार चिन्ह के प्रति किसी भी प्रकार की समानता शामिल है, पर दंड लगाया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ब्रांड मालिकों के अधिकारों को बरकरार रखा जाए। इन दंडों में जुर्माना और कारावास शामिल हैं, जिनका उद्देश्य उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा बनाए रखना तथा अनैतिक गतिविधियों में लिप्त (इंगेज्ड) लोगों को दंडित करना है। 

खंडवार स्पष्टीकरण

धारा 103 में विभिन्न धाराओं का उल्लेख किया गया है, जो व्यापार चिन्ह के मिथ्याकरण और गलत प्रस्तुतीकरण के विभिन्न रूपों को संबोधित करने और दंडित करने के लिए तैयार की गई हैं। प्रत्येक खंड विशिष्ट अवैध गतिविधियों को संबोधित करता है जो व्यापार चिन्ह की अखंडता को कमजोर करते हैं और उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं। यहां खंड-वार स्पष्टीकरण दिया गया है, जो इस धारा के अंतर्गत आने वाले अपराधों का विस्तृत विवरण प्रदान करता है: 

  • खण्ड (a): किसी भी व्यापार चिन्ह को गलत साबित करता है : यह खंड किसी पंजीकृत व्यापार चिन्ह को बिना प्राधिकरण के मूल जैसा बनाने के लिए उसमें परिवर्तन या नकल करने के किसी भी कार्य को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी लोगो में कोई परिवर्तन करके उसे किसी प्रसिद्ध व्यापार चिन्ह जैसा बनाता है, तो यह इस खण्ड का उल्लंघन होगा। उत्पाद की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने और ग्राहकों को धोखा देने से रोकने के लिए किसी भी पंजीकृत व्यापार चिन्ह को बदलना अवैध है।
  • खण्ड (b): किसी भी व्यापार चिन्ह को गलत तरीके से वस्तुओं या सेवाओं पर लागू किया जाता है:  इस खण्ड में किसी वस्तु या सेवा पर उस व्यापार चिन्ह का उपयोग करने का अधिकार न होने पर भी उसका उपयोग करना शामिल है, जिससे उपभोक्ताओं को उत्पाद की प्रामाणिकता के बारे में गुमराह किया जा सके। उदाहरण के लिए, यदि कोई कंपनी उत्पाद की प्रामाणिकता के बारे में ग्राहकों को धोखा देने के लिए किसी प्रसिद्ध व्यापार चिन्ह का उपयोग करती है, तो वह इस खंड का उल्लंघन करती है। इसका मुख्य उद्देश्य अनाधिकृत उपयोग को रोकना है, जिससे ग्राहकों में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। 
  • खंड (c): व्यापार चिन्ह को गलत साबित करने के लिए कोई उपकरण बनाना, उसका निपटान करना, या अपने कब्जे में रखना: यह खंड उन लोगों को लक्षित करता है जो नकली व्यापार चिन्ह बनाने के लिए प्रयुक्त औजार या उपकरण बनाते हैं, बेचते हैं या रखते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति नकली व्यापार चिन्ह बनाने के लिए मशीनरी या संबंधित उत्पादों का उपयोग करते हुए पकड़ा जाता है, तो वह इस खंड का उल्लंघन कर रहा है। इस खंड के प्रयोग का उद्देश्य ऐसे साधनों को समाप्त करना है जो प्रयुक्त संबंधित उत्पादों की सम्पूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करते हैं। 
  • खण्ड (d): वस्तुओं और सेवाओं पर गलत व्यापार विवरण लागू करना: इस खण्ड में उपभोक्ताओं को उनकी प्रकृति, गुणवत्ता या उत्पत्ति के बारे में धोखा देने के लिए वस्तुओं या सेवाओं पर भ्रामक या गलत विवरण देना शामिल है। उदाहरण के लिए, यदि कोई कंपनी ग्राहकों को धोखा देने के लिए कुछ वस्तुओं का गलत वर्णन करती है, जबकि वास्तव में उक्त उत्पाद का मूल स्थान कहीं और है, तो इससे उक्त प्रावधान का उल्लंघन होता है और ग्राहकों के लिए उपलब्ध पारदर्शिता बाधित होती है। 

  • खण्ड (e): मूल देश या निर्माता का गलत विवरण देना: यह खंड धारा 139 के तहत अपेक्षित मूल देश या माल के निर्माता के संबंध में गलत लेबलिंग को संबोधित करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई उत्पाद कहीं और निर्मित होता है या उसका मूल स्थान किसी अन्य स्थान का है और उत्पाद पर गलत उत्पत्ति या निर्माता का विवरण अंकित है, तो यह इस प्रावधान का उल्लंघन होता है। इससे ग्राहकों को सूचित निर्णय लेने में सुविधा होती है। 
  • खंड (f): उत्पत्ति के संकेत के साथ छेड़छाड़ करना, बदलना या हटाना: इस खंड में उत्पत्ति के किसी भी आवश्यक संकेत के साथ छेड़छाड़ करना या उसे हटाना शामिल है, जिसे धारा 139 के तहत लागू किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी उत्पाद की उत्पत्ति को इंगित करने वाले चिह्न को हटा देता है, तथा ग्राहकों को धोखा देने के लिए उत्पाद पर गलत उत्पत्ति का लेबल लगा देता है, ताकि उन्हें विश्वास हो जाए कि यह किसी अन्य उत्पत्ति का उत्पाद है, तो यह संलिप्तता मिथ्याकरण की एक श्रृंखला है। यहां, संबंधित व्यक्ति को जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह प्रावधान न केवल उन लोगों को संबोधित करता है जो प्रत्यक्ष रूप से ऐसा अपराध करते हैं, बल्कि उन सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष अपराधों को भी संबोधित करता है जो उत्पाद या बाज़ार की अखंडता को कमजोर करते हैं। 
  • खंड (g): उपर्युक्त में से किसी भी अपराध को अंजाम देना: इस खंड में वह सभी लोग शामिल हैं जो पिछले खंडों में उल्लिखित किसी भी कार्य में सहायता करते हैं या उसे प्रोत्साहित करते हैं। इस खंड को लागू करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यापार चिन्ह के जालसाजी या ग्राहकों को धोखा देने की श्रृंखला में शामिल सभी व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराया जाए, न कि केवल उन लोगों को जो सीधे अपराध कर रहे हैं। 

इन अपराधों के लिए दंड में कम से कम छह महीने की कैद, जो तीन साल तक बढ़ सकती है, तथा कम से कम पचास हजार रुपये का जुर्माना शामिल है। हालाँकि, न्यायालय पर्याप्त और विशेष कारणों से सजा को कम कर सकता है। 

संबंधित प्रावधान : व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 139

चूंकि धारा 103 के खंड (e) और (f) धारा 139 के बारे में बात करते हैं, इसलिए इस प्रावधान को स्पष्ट करना प्रासंगिक है। धारा 139 माल से उसके उद्गम का संकेत मांगने की शक्ति से संबंधित है। इस धारा में निम्नलिखित उल्लेख है:

  1. केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह अपेक्षा कर सकती है कि कुछ आयातित या स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं पर, अधिसूचना द्वारा निर्धारित तिथि से (जो तीन माह से कम नहीं होगी), यह दर्शाया जाना चाहिए कि वे कहाँ बनाई गई थीं या निर्माता का नाम और पता, या उस व्यक्ति का नाम और पता जिसके लिए माल का उत्पादन किया गया था। 
  2. अधिसूचना में यह निर्दिष्ट किया जा सकता है कि संकेत किस प्रकार लागू किया जाएगा, क्या सीधे माल पर या अन्य माध्यम से, तथा वह समय या अवसर जब संकेत मौजूद होना चाहिए, जैसे आयात के दौरान या बिक्री के समय, चाहे थोक, खुदरा (रिटेल) या दोनों हो सकते है।
  3. इस धारा के अधीन अधिसूचना तब तक जारी की जाएगी जब तक कि आवेदन ऐसे व्यक्तियों या संघों द्वारा न किया जाए जो प्रासंगिक वस्तुओं के डीलरों, विनिर्माताओं, उत्पादकों या उपयोगकर्ताओं के हितों का महत्वपूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करते हों, या जब तक कि केन्द्रीय सरकार को अन्यथा यह विश्वास न हो कि अधिसूचना जारी करना लोकहित में आवश्यक है, केन्द्रीय सरकार जांच सहित या उसके बिना, जैसा उचित समझे, जारी कर सकती है। 
  4. साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 की धारा 23 के उपबन्ध इस धारा के अधीन अधिसूचना जारी करने पर उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे किसी नियम या उपविधि के निर्माण पर लागू होते हैं, जिसके लिए पूर्व प्रकाशन अपेक्षित होता है। 
  5. इस धारा के अंतर्गत जारी कोई भी अधिसूचना भारत की प्रादेशिक सीमाओं के बाहर निर्मित या उत्पादित तथा भारत में आयातित माल पर लागू नहीं होगी, बशर्ते कि आयात के समय सीमा शुल्क आयुक्त इस बात से संतुष्ट हो कि माल निर्यात के लिए है, चाहे वह भारत में पोतांतरण (ट्रांसशिपमेंट) के पश्चात या भारत से होकर पारगमन के पश्चात हो या अन्यथा हो। 

कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड बनाम कैडिला फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (2001) के मामले में व्यापार चिन्ह रिकॉर्ड और दस्तावेजों से संबंधित गलत प्रस्तुतीकरण के आरोप शामिल थे, जिसमें कुछ व्यापार चिन्ह की स्थिति और स्वामित्व पर सवाल उठाया गया था। यह मामला धारा 139 के प्रावधानों के उल्लंघन तथा व्यापार चिन्ह रिकॉर्ड के रखरखाव से संबंधित विनियमों का पालन न करने पर निर्धारित दंड पर केंद्रित था। अदालत ने अभियुक्तों को दोषी ठहराया तथा उन्हें सुधारात्मक कदम उठाने का आदेश दिया था। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि वे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने और व्यापार चिन्ह मालिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने कार्यों के प्रति जवाबदेह होंगे। 

प्रासंगिक कानूनी मामले

पीयूष सुभाषभाई रानीपा बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021)

मामले के तथ्य

पीयूष सुभाषभाई रानीपा बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021) में, शिकायतकर्ता ने अधिनियम की धारा 103 के तहत अपराध करने के लिए अभियुक्त के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। परिणामस्वरूप, अभियुक्त ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी। 

मुद्दा

क्या अधिनियम की धारा 103 के अंतर्गत अपराध जमानतीय अपराध है।

मामले का फैसला

बॉम्बे उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने पक्षों की दलीलें सुनने के बाद और नाथू राम बनाम राजस्थान राज्य (2021) के मामले सहित इसी मुद्दे पर अदालत के अन्य पिछले फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जो अपराध 3 साल तक के कारावास से दंडनीय हैं वे गैर-जमानती हैं क्योंकि ऐसे अपराधों के लिए ठीक 3 साल का कारावास लगाया जा सकता है। तदनुसार, न्यायालय ने माना कि चूंकि धारा 103 के तहत अपराध के लिए कारावास की अवधि 3 वर्ष तक है, इसलिए यह एक गैर-जमानती अपराध है और अग्रिम जमानत को खारिज कर दिया। 

शिवलाल बनाम राज्य एवं अन्य (2013)

मामले के तथ्य

शिवलाल बनाम राज्य एवं अन्य (2013) मामले में शिवलाल पर प्रसिद्ध ब्रांड नाम जे.के. सीमेंट के तहत नकली सीमेंट बैग बेचने का आरोप लगाया गया था। जब अधिकारियों को उक्त अपराध का पता चला तो उन्होंने उत्पाद जब्त कर लिया और उसके खिलाफ व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 के तहत आरोप लगाया था। जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 420 तथा धारा 103 एवं 104 के तहत विचारण न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया। विचारण न्यायालय ने आरोप तय करने का आदेश दिया, जिससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता/अभियुक्त ने सत्र न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की थी। हालाँकि, सत्र न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता ने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष आपराधिक अपील दायर की। 

मुद्दा

क्या विचारण न्यायालय ने अधिनियम की धारा 103 और 104 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के अंतर्गत अपराध के लिए अभियुक्त के विरुद्ध आरोप तय करने में गलती की है। 

मामले का फैसला

अदालत ने याचिकाकर्ता की दलीलों और अधिनियम की धारा 103 के संबंध में अधिनियम की धारा 115 के तहत निहित प्रावधानों की जांच की थी। इस प्रकार की जांच के बाद न्यायालय ने माना कि उपभोक्ताओं को धोखा देने के इरादे से झूठे व्यापार चिन्ह का उपयोग इस धारा के तहत एक संज्ञेय अपराध है। जब पुलिस अधिकारी को प्रतिवादी से अधिनियम की धारा 103 और 104 के तहत अपराध किए जाने के संबंध में सूचना प्राप्त हुई थी, जो संज्ञेय है, तो परिसर में छापा मारने और नकली व्यापार चिन्ह वाले सामान को जब्त करने में उक्त पुलिस अधिकारी की कार्रवाई में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है। यह स्थापित किया गया है कि जब भी पुलिस अधिकारी को किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने के संबंध में सूचना प्राप्त होती है, तो सीआरपीसी की धारा 154 उसे ऐसी कोई भी सूचना प्राप्त करने के लिए अधिकृत करती है तथा सीआरपीसी की धारा 156 उसे संज्ञेय अपराध से संबंधित मामले की जांच करने का अधिकार देती है। इसलिए, अदालत ने माना कि चूंकि अधिनियम की धारा 103 के तहत अपराध संज्ञेय अपराध है, इसलिए अधिनियम की धारा 115 पुलिस अधिकारी की किसी अपराध के बारे में सूचना प्राप्त करने, परिसर की तलाशी लेने और सीआरपीसी के अध्याय XII के तहत प्रदान की गई प्रक्रिया के अनुसार सामान जब्त करने की शक्ति को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है। 

प्रतीक चंद्रगुप्त गोयल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2021)

मामले के तथ्य

प्रतीक चंद्रगुप्त गोयल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2021) के मामले में, प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ इस आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी कि उसने अपने द्वारा लिखे गए और ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ नामक समाचार पोर्टल में प्रकाशित दो लेखों में सकाळ ग्रुप के व्यापार चिन्ह का गलत तरीके से इस्तेमाल करके अधिनियम की धारा 103 के तहत अपराध किया था। व्यापार चिन्ह याचिकाकर्ता द्वारा लिखित और प्रकाशित दो लेखों पर मुद्रित किया गया था।

मुद्दा

  • क्या याचिकाकर्ता द्वारा लिखित लेख, जिनमें कथित व्यापार चिन्ह मुद्रित किया गया था, धारा 2(j) और 2(z) के तहत परिभाषित वस्तुओं और सेवाओं की श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं। 
  • यदि ऐसा है, तो क्या पंजीकृत व्यापार चिन्ह से मिलते-जुलते व्यापार चिन्ह को लागू करना धारा 103 के तहत प्रावधान के अनुसार ग्राहक को धोखा देने के इरादे से गलत तरीके से लागू किया गया माना जा सकता है। 

मामले का फैसला

यह एफआईआर व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 के तहत कथित अपराध के लिए दर्ज की गई थी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा लिखे और प्रकाशित लेख न तो माल की श्रेणी में आते हैं और न ही सेवा की श्रेणी में आते हैं। इसके आधार पर, अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा समाचार पत्र में लिखे और प्रकाशित लेखों पर पंजीकृत व्यापार चिन्ह जैसा दिखने वाला चिह्न लगाना “माल या सेवाओं के संबंध में व्यापार चिन्ह के झूठे आवेदन की परिभाषा में फिट नहीं बैठता है”। इसलिए, इस तरह से चिह्न का उपयोग करना उसे अपराध बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। यह साबित किया जाना चाहिए कि इस चिह्न का उपयोग उपभोक्ताओं को धोखा देने के लिए धोखाधड़ीपूर्ण इरादे से किया गया था। इस धारा के अंतर्गत मनःस्थिति साबित करने के लिए इरादा ग्राहकों को गुमराह करना या उनके बीच भ्रम पैदा करना होना चाहिए। 

निष्कर्ष

व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 का उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की रक्षा करना है। इसमें झूठे व्यापार चिन्ह के प्रयोग के परिणामों तथा व्यक्तियों या संस्थाओं पर लगाए गए जुर्माने पर भी प्रकाश डाला गया है, ताकि पहले से पंजीकृत व्यापार चिन्ह या किसी पंजीकृत व्यापार चिन्ह के समान भ्रामक चिह्न के अनधिकृत प्रयोग को रोका जा सकता है। यह धारा ये निष्कर्ष निकालती है कि व्यापार चिन्ह मात्र वाणिज्यिक प्रतीक नहीं हैं, बल्कि व्यवसाय के आधारभूत स्तंभ के रूप में कार्य करते हैं। इसका उद्देश्य व्यवसाय के मूल्य को सुनिश्चित करने तथा उसमें निहित अधिकारों को संरक्षित करने के लिए पंजीकृत व्यापार चिन्ह के उल्लंघन को रोकना है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 के अंतर्गत किन न्यायालयों को अधिकार क्षेत्र प्राप्त है?

व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 के तहत, उच्च न्यायालय को व्यापार चिन्ह से संबंधित मामलों पर अधिकार क्षेत्र प्राप्त है, जिसमें अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार व्यापार चिन्ह के उल्लंघन या उससे संबंधित अपराध के मामले भी शामिल हैं। न्यायालय का अधिकार क्षेत्र सामान्यतः या तो वहां होता है जहां घटनाएं घटित हुई हैं या जहां उक्त मामले के प्रतिवादी का पंजीकृत कार्यालय स्थित है। 

व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 मालिकों और निर्माताओं को कैसे प्रभावित करती है?

व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 103 सीधे तौर पर मालिकों और निर्माताओं को प्रभावित नहीं करती है। हालाँकि, यह संबंधित व्यापार चिन्ह के मालिकों के अधिकारों और हितों की रक्षा करता है और उनके उत्पादों की वैयक्तिकता की रक्षा करता है। उन्हें अधिनियम में निर्धारित प्रक्रियाओं और आवश्यकताओं का पालन करना होगा। 

संदर्भ

 

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