श्रम कानून में छंटनी

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यह लेख Shashank Singh Rathore द्वारा लिखा गया है। यह लेख औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 और औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के तहत शामिल की गई छंटनी (ले ऑफ) जो कुछ प्रतिबंधों के अधीन कर्मचारियों और नियोक्ताओं को कुछ अधिकारों का आश्वासन देता है, के बारे में है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

क्या आपने कभी ‘छंटनी’ शब्द के बारे में सुना है? कल्पना कीजिए कि आप अपने कार्यालय के लिए तैयार होने के लिए सुबह जल्दी उठते हैं लेकिन दुर्भाग्य से एक ईमेल सूचना प्राप्त होती है जिसमें कहा गया है कि कंपनी ने आपकी छंटनी का फैसला किया है। सबसे पहले आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? हाल ही में कई राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी से छंटनी कर दी गई है। इकोनॉमिक टाइम्स-टेक की एक रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़ॅन, मेटा, डेल, एचपी, ट्विटर आदि कुछ प्रसिद्ध नाम हैं जिन्होंने हाल के दिनों में अपने कर्मचारियों की नौकरी से छंटनी कर दी है। वास्तविक समय में छंटनी पर नज़र रखने वाले प्लेटफ़ॉर्म Layoffs.fyi पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2022 में वैश्विक स्तर पर लगभग 1,64,969 कर्मचारियों की छंटनी कर दी गई थी। क्या आंकड़े चौंकाने वाले नहीं हैं? लेकिन इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि इन लोगों की अल्प सूचना पर छंटनी की गई थी। तो, अब पहला सवाल जो मन में उठता है वह यह है कि ये राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बिना किसी कानूनी परिणाम का सामना किए इन लोगों के साथ ऐसा कैसे कर सकती हैं? और अब, इन सभी लोगों का क्या होगा? और अगले कुछ महीनों तक वेतन प्राप्त किए बिना वे कैसे जीवित रहेंगे? साथ ही, उस अवधि के लिए जब वे बेरोजगार होंगे?

आइए इस लेख के माध्यम से आपके सभी प्रश्न हल हो जाएं, और किसी कर्मचारी की छंटनी के भारतीय परिप्रेक्ष्य को समझें।

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत छंटनी

छंटनी को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (“अधिनियम”) की धारा 2 (kkk) के तहत परिभाषित किया गया है, जो कहती है कि एक कर्मचारी की  छंटनी तब कर दी जाती है जब कोई नियोक्ता उसके नियंत्रण से परे कारणों, जैसे कोयला, बिजली या कच्चे माल की अपर्याप्तता, स्टॉक का संचय (एक्युकुलेशन), मशीनरी का टूटना, प्राकृतिक आपदा या कोई अन्य समान या सहसंबद्ध कारण से किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान (स्टेब्लिशमेंट) के मस्टर रोल में उल्लिखित कर्मचारी को रोजगार देने में विफल रहता है, मना कर देता है या असमर्थ होता है। उपर्युक्त कारणों से उस कर्मचारी की छंटनी नहीं की गई है।

सरल शब्दों में, छंटनी नियोक्ता की अस्थायी अवधि के लिए कर्मचारी को रोजगार प्रदान करने में असमर्थता है ताकि नियोक्ता कमी के समय भी अपना व्यवसाय चालू रख सके। यदि नियोक्ता औद्योगिक सुविधा को बंद कर देता है और औद्योगिक प्रतिष्ठान में तालाबंदी की घोषणा करता है, तो छंटनी की अवधारणा अप्रासंगिक हो जाती है। छंटनी स्थायी नहीं होती है, और ये नियोक्ता और कर्मचारी के बीच संविदात्मक संबंध को समाप्त नहीं करती हैं। छंटनी का मतलब कर्मचारियों की पूर्ण बर्खास्तगी नहीं है; इसका मतलब है कि उस अवधि के दौरान उन्हें अपना पूरा वेतन नहीं मिलेगा।

प्रिया लक्ष्मी मिल्स लिमिटेड बनाम मजदूर महाजन मंडल (1976)  के मामले में, ‘छंटनी’ शब्द की व्याख्या डिक्शनरी के अनुसार “इसके व्युत्पत्ति संबंधी (एटीमोलॉजिकल) अर्थ में” एक ऐसी अवधि के रूप में की जाती है, जिसमें कर्मचारियों को अस्थायी रूप से अपना काम करने से छुट्टी दे दी जाती है। इसके बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने वर्कमेन ऑफ फायरस्टोन टायर एंड रबर कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम एमजीएमटी (1973) में फैसला सुनाया कि ‘छंटनी’ न तो किसी कर्मचारी की पूर्ण बर्खास्तगी है और न ही नियोक्ता और कर्मचारी के बीच संविदात्मक संबंध का अस्थायी निलंबन है; बल्कि, इसे कर्मचारियों के लिए अस्थायी बेरोजगारी के रूप में गठित किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि ‘छंटनी’ का मतलब धारा के तहत परिभाषा में सूचीबद्ध कारणों के कारण कर्मचारियों को रोजगार प्रदान करने में नियोक्ता की विफलता, अनिच्छा या असमर्थता है। अधिनियम के तहत परिभाषा प्रकृति में स्पष्ट है और छंटनी की पश्चिमी समझ से अलग है; अन्य परिभाषाओं का सहारा लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

छंटनी के लिए आवश्यक शर्तें

कुछ आवश्यक शर्तें हैं जिन्हें कर्मचारियों की छंटनी से पहले ध्यान में रखा जाना चाहिए। शर्तें इस प्रकार हैं:

  • नियोक्ता की कर्मचारियों को काम प्रदान करने में असमर्थता, विफलता, या इनकार।
  • कोयला, बिजली, कच्चे माल की अपर्याप्तता, स्टॉक के संचय, मशीनरी के खराब होने, प्राकृतिक आपदा या किसी अन्य प्रासंगिक कारण के कारण ऐसी अक्षमता, विफलता या इनकार होना चाहिए।
  • जिस कर्मचारी को नौकरी से निकाला गया है या रोजगार से वंचित किया गया है, वह कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसका नाम उसके औद्योगिक प्रतिष्ठान के मस्टर रोल के रिकॉर्ड में हो।
  • कर्मचारियों को काम से नहीं हटाया गया होगा।

विफलता, इनकार, या असमर्थता

अधिनियम में दी गई परिभाषा के अनुसार, जब नियोक्ता उनके औद्योगिक प्रतिष्ठान में अपने नियंत्रण से बाहर कारणों जैसे कि कोयले, बिजली, कच्चे माल की अपर्याप्तता, स्टॉक के संचय, मशीनरी के टूटने या प्राकृतिक आपदा, और किसी भी अन्य स्थितियों के कारण काम देने में विफल रहता है, इनकार करता है या असमर्थ होता है तभी इन सभी परिस्थितियों में की गई छंटनी अपने आप में कानूनी रूप से वैध होगी। एक ऐतिहासिक फैसले सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वियरिंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड, नागपुर बनाम राज्य औद्योगिक न्यायालय (1959), में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना कि परिभाषा में प्रमुख शब्द, यानी, “नियोक्ता की विफलता, इनकार, या अक्षमता” यह स्पष्ट करते हैं कि कर्मचारियों को होने वाली बेरोजगारी उनकी कार्रवाई या निष्क्रियता की परवाह किए बिना होती है।

किसी अन्य कारण से

अभिव्यक्ति ‘किसी अन्य कारण से’ जो कि अधिनियम की धारा 2 (kkk) के तहत परिभाषा में है, की व्याख्या एजुस्डेम जेनेरिस के रूप में की जानी चाहिए। एक ऐतिहासिक फैसले के. एस्टेट का प्रबंधन बनाम राजमनिकम (1960), में सर्वोच्च न्यायालय ने विस्तार से बताया कि अधिनियम की धारा 2(kkk) के तहत परिभाषित ‘कोई अन्य कारण’, उन कारणों के समान होना चाहिए जो खंड में स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं जो कोयला, बिजली, कच्चे माल की अपर्याप्तता, स्टॉक का संचय, मशीनरी का टूटना या प्राकृतिक आपदा है। इन सभी कारणों की सामान्य विशेषता यह है कि यह नियोक्ता के नियंत्रण से परे है, जिसके कारण कर्मचारियों की छंटनी हुई। तदनुसार, अभिव्यक्ति ‘किसी अन्य कारण से’ में समान विशेषताएं होनी चाहिए।

कर्मचारियो की छंटनी कब मानी जाती है 

धारा 2(kkk) से जुड़े स्पष्टीकरण के अनुसार, वह कर्मचारी जिसका नाम औद्योगिक प्रतिष्ठान के मस्टर रोल में उल्लिखित है और वह काम करने का इच्छुक है और जिस विशिष्ट उद्देश्य के लिए उसे आवंटित किया गया है, उसके लिए वह दिन के सामान्य कामकाजी घंटों के दौरान उपस्थित रहता है, लेकिन कार्यस्थल पर उसकी उपस्थिति के दो घंटों के भीतर उसे काम नहीं मिलता है, तो इस खंड के संदर्भ में ऐसे कर्मचारी की उस दिन के लिए छंटनी मानी जाती है। 

यदि किसी कर्मचारी को किसी दिन की पाली के प्रारंभ में रोजगार देने के बजाय, काम के उद्देश्य से पाली के दूसरे भाग में कार्यस्थल पर उपस्थित रहने के लिए कहा जाता है, तो ऐसे कर्मचारी की केवल आधे दिन के लिए ही छंटनी मानी जाती है। 

बशर्ते कि यदि कार्यस्थल पर उपस्थित होने के बाद भी कर्मचारी को दिन के किसी भी आधे हिस्से में काम नहीं दिया गया है, तो ऐसे कर्मचारी की पूरे दिन के लिए छंटनी मानी जाएगी, और उसके बाद वह दिन के उस हिस्से के लिए पूर्ण मूल वेतन और महंगाई भत्ते का हकदार होगा। 

छंटनी किए गए कर्मचारियों को मुआवजा

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत, कुछ परिस्थितियों में कर्मचारी को मुआवजे के संबंध में प्रावधान हैं जो कर्मचारी को कुछ प्रतिबंधों के अधीन नियोक्ता से मुआवजा प्राप्त करने की अनुमति देता हैं। यदि कर्मचारी की अधिनियम की धारा 2(kkk) के दायरे के तहत छंटनी कर दी गई है, तो उसे कुछ शर्तों के अधीन जिन्हें पूरा करना आवश्यक है, अपने नियोक्ता से मुआवजा लेने की अनुमति है। शर्तें इस प्रकार हैं:

उद्योगों की बिना किसी मुआवज़े के कर्मचारियों की छंटनी की अनुमति: औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25A

अधिनियम की धारा 25A कुछ उद्योग प्रतिष्ठानों के बारे में बताती है जिन पर कर्मचारियों के मुआवजे से संबंधित प्रावधान लागू नहीं होंगे। वे औद्योगिक प्रतिष्ठान इस प्रकार हैं:

  • औद्योगिक प्रतिष्ठान जिनमें पिछले कैलेंडर माह में किसी भी दिन औसतन 50 से कम कर्मचारी थे।
  • ऐसी प्रकृति के औद्योगिक प्रतिष्ठान जिनमें मौसमी अथवा रुक-रुक कर कार्य होता हो।
  • औद्योगिक प्रतिष्ठान जो औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अध्याय V-B के दायरे में आते हैं।

निरंतर सेवा: औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25B

अधिनियम की धारा 25B, निरंतर सेवा की परिभाषा बताती है। धारा के अनुसार, एक कर्मचारी को निरंतर सेवा में तब कहा जाता है जब उसने उस विशेष औद्योगिक प्रतिष्ठान में बिना किसी रुकावट के कम से कम एक वर्ष पूरा कर लिया हो; तभी वह कर्मचारी मुआवजा लेने का हकदार होगा। कर्मचारियों की गलती के कारण किसी भी प्रकार की अधिकृत छुट्टी, बीमारी, दुर्घटना, कानूनी हड़ताल, तालाबंदी या काम की समाप्ति से निरंतर सेवा में रुकावट प्रभावित नहीं होती है।

इस धारा में दो अपवाद दिए गए हैं, जहां भले ही कर्मचारी निरंतर सेवा में न हो, फिर भी उसे निरंतर सेवा में माना जाएगा। वे इस प्रकार हैं:

  • यदि कर्मचारी उस तारीख से पिछले 12 महीनों के लिए नियोजित था जिस दिन गणना की जा रही है।
  • यदि कर्मचारी खदान में 190 दिनों या उससे अधिक की अवधि के लिए नियोजित है, और किसी अन्य रोजगार के मामले में 240 दिनों की अवधि के लिए कार्यरत है।

इस खंड से जुड़े स्पष्टीकरण के अनुसार, कर्मचारी ने नियोक्ता के लिए काम करने के दिनों की संख्या निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित दिनों को ध्यान में रखा जाएगा:

  • उन दिनों की संख्या जिनके दौरान कर्मचारी को किसी स्थायी आदेश, समझौते, इस अधिनियम, या औद्योगिक प्रतिष्ठान से संबंधित किसी अन्य कानून के तहत छंटनी की गई थी। 
  • उन दिनों की संख्या जिनके दौरान कर्मचारी सवैतनिक (पेड) अवकाश पर था।
  • उन दिनों की संख्या जिनके दौरान कर्मचारी अपने कार्य के दौरान किसी अस्थायी विकलांगता के कारण आराम पर था।
  • एक महिला कर्मचारी के मामले में, मातृत्व अवकाश पर बिताए गए दिनों की अधिकतम संख्या 12 सप्ताह तक थी।

मुआवज़ा प्राप्त करने के लिए अनुपालन की शर्तें: औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25C

अधिनियम की धारा 25C के अनुसार, जिस कर्मचारी की छंटनी कर दी गई है, वह छंटनी की अवधि के लिए अपनी कुल मूल कमाई का 50 प्रतिशत और महंगाई भत्ता प्राप्त करने का हकदार है।

हालाँकि, कर्मचारी को दिया गया यह मुआवजा अधिकार निम्नलिखित शर्तों के अधीन है:

  • काम करने वाला कोई बदली या साधारण कर्मचारी नहीं है। बदली कर्मचारी वह व्यक्ति होता है जिसे किसी अन्य कर्मचारी जिसका नाम औद्योगिक प्रतिष्ठान के मस्टर रोल पर होता है के स्थान पर काम पर रखा गया है। हालाँकि, ऐसे कर्मचारी को बदली कर्मचारी नहीं माना जाएगा यदि वह उस विशेष औद्योगिक प्रतिष्ठान के साथ एक वर्ष की अवधि पूरी कर लेता है।
  • कर्मचारी का नाम औद्योगिक प्रतिष्ठान के मस्टर रोल पर होना चाहिए।
  • कर्मचारी को एक कर्मचारी के रूप में उस विशेष प्रतिष्ठान में एक वर्ष की अवधि की गणना करनी होगी।

ऐतिहासिक निर्णयों में से एक वेइरे बनाम फर्नांडीस (1956) के अनुसार, अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या कानून केवल कर्मचारी को मुआवजे का अधिकार देता है और नियोक्ता को कर्मचारी की छंटनी का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि विधायिका, कानून बनाते समय, नियोक्ताओं को कर्मचारियों की छंटनी का अधिकार देने का इरादा रखती है, और रोजगार बनाए रखने और कर्मचारियों को पूरे साल का वेतन देने के लिए उनकी ओर से कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं है। इसलिए, कर्मचारियो को छंटनी मुआवजा देने के बाद उनकी छंटनी को वैध माना गया है।

ऐसी स्थितियाँ जहाँ कोई कर्मचारी मुआवज़े से छूट पाने का हकदार नहीं है

अधिनियम की धारा 25E कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बताती है जहाँ कर्मचारी नियोक्ता से कोई छंटनी मुआवजा प्राप्त करने का हकदार नहीं है; वे शर्तें इस प्रकार हैं:

  • यदि कर्मकार उसे दिए गए वैकल्पिक कार्य को स्वीकार करने से इंकार करता है, बशर्ते कि:

उसे दिया गया वैकल्पिक रोजगार उसी प्रतिष्ठान में है जिसमें वह काम कर रहा था। साथ ही, उसे दिया गया वैकल्पिक रोजगार वैकल्पिक प्रतिष्ठान में है लेकिन उसी नियोक्ता के अधीन उस प्रतिष्ठान से 5 मील के दायरे में है जहां वह पहले काम कर रहा था।

नियोक्ता द्वारा कर्मचारी को सौंपे गए नए कार्य के लिए कर्मचारी द्वारा किए जा सकने वाले कार्य की तुलना में किसी विशेष कौशल सेट या पिछले अनुभव की आवश्यकता नहीं होती है। बशर्ते कि वेतन में कोई कटौती नहीं होगी, कर्मचारी उसी वेतन का हकदार होगा जो वह नियोक्ता के लिए अपने पिछले रोजगार में प्राप्त कर रहा था।

  • यदि कर्मचारी दिन में एक बार भी नियत समय एवं कार्यस्थल पर उपस्थित नहीं होता है।
  • यदि कर्मचारी की औद्योगिक प्रतिष्ठान के किसी अन्य हिस्से में हड़ताल या मंदी के कारण छंटनी कर दी गई है तो वह छंटनी मुआवजे का हकदार नहीं है।

मस्टर रोल बनाए रखने के लिए नियोक्ता का कर्तव्य: औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25D

अधिनियम की धारा 25D में कहा गया है कि यह नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह मस्टर रोल बनाए रखे और प्रतिष्ठान के कार्य घंटों के दौरान उपस्थित होने वाले कर्मचारियों का उचित रिकॉर्ड रखे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कर्मचारियों को प्रतिष्ठान के कार्य घंटों के दौरान कार्यस्थल पर उपस्थित रहना होगा; अन्यथा, वे मुआवजा प्राप्त करने के पात्र नहीं होंगे। नियोक्ता को मस्टर रोल ठीक से बनाए रखना चाहिए; अन्यथा, वह काम करने वालों को मुआवज़ा न देने के लिए धारा 25E के तहत बचाव नहीं कर सकते है।

छंटनी पर रोक: औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25M

1970 के दशक के दौरान, बहुत छंटनी हुई जिसके कारण उस समय बड़े पैमाने पर बेरोजगारी हुई। इसके चलते सरकार को नियोक्ताओं द्वारा अस्वास्थ्यकर छंटनी पर रोक लगाने वाले प्रावधान लाने पड़े। औद्योगिक विवाद संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में एक नया अध्याय, अध्याय V-B पेश किया गया था।

अधिनियम की धारा 25M कर्मचारी की छंटनी के समय नियोक्ता पर कुछ प्रतिबंध लगाती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये प्रतिबंध केवल उन उद्योगों पर लागू होते हैं जिनमें 100 से अधिक कर्मचारी हैं और मौसमी रूप से काम नहीं करते हैं। इसके अलावा, नियोक्ता किसी ऐसे कर्मचारी की छंटनी नौकरी नहीं कर सकता जिसका नाम प्रतिष्ठान के मस्टर रोल में उल्लिखित है, सिवाय तब जब उस छंटनी का कारण बिजली की कमी या प्राकृतिक आपदा हो। यदि कार्य खनन से संबंधित है तो इसका कारण विस्फोट, आग, ज्वलनशील गैस की अधिकता या बाढ़ भी हो सकता है।

धारा 25M के अनुसार, नियोक्ता संबंधित सरकार या सरकार द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकारी से अनुमति प्राप्त करने के बाद कर्मचारी की छंटनी कर सकता है। इसी उद्देश्य के लिए प्रक्रिया इस प्रकार है:

  • नियोक्ता को सरकार या सरकार द्वारा निर्दिष्ट संबंधित प्राधिकारी को कर्मचारी की छंटनी का कारण बताते हुए एक आवेदन लिखना होगा और आवेदन की एक प्रति कर्मचारी को प्रदान करनी होगी।
  • आवेदन प्राप्त होने के बाद संबंधित प्राधिकारी या सरकार स्वयं इस तरह की छंटनी के बारे में पूछताछ और जांच कर सकती है।
  • ऐसी जांच के बाद, संबंधित प्राधिकारी या सरकार का आदेश नियोक्ता और छंटनी किए जाने वाले कर्मचारियों को सूचित किया जाएगा।
  • इसके बाद, ऐसे संबंधित प्राधिकारी या सरकार का आदेश निर्णायक माना जाएगा और ऐसे आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए बाध्यकारी होगा।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि संबंधित प्राधिकारी या सरकार आवेदन दाखिल करने की तारीख से 60 दिनों के भीतर छंटनी के संबंध में अपने निर्णय की सूचना नहीं देती है, तो छंटनी के लिए ऐसा आवेदन स्वीकृत माना जाएगा। इसके अलावा, संबंधित प्राधिकारी या सरकार के आदेश को न्यायनिर्णयन (एडज्यूडिकेशन) के लिए न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) को भेजा जा सकता है, या इसकी समीक्षा अपने स्वयं के प्रस्ताव या नियोक्ता या कर्मचारी द्वारा दिए गए आवेदन के माध्यम से की जा सकती है।

यदि नियोक्ता संबंधित प्राधिकारी या सरकार द्वारा दिए गए आदेश का पालन करने से इनकार करता है और संबंधित प्राधिकारी या सरकार के इनकार के बाद भी अपने कर्मचारियों को छंटनी करता है, तो ऐसा पालन न करना अवैध माना जाएगा, और जो कर्मचारी ऐसी छंटनी का शिकार है वो कानून में दिए गए लाभ के हकदार होंगे। हालाँकि, यदि नियोक्ता उसके लिए वैकल्पिक रोजगार प्रदान करता है तो उसे छंटनी नहीं माना जाएगा।

ऐतिहासिक फैसले पापनासम लेबर यूनियन बनाम मदुरा कोट्स लिमिटेड (1995), में सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ (डिवीजन बेंच) के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या धारा 25M संवैधानिक रूप से उचित है या नहीं? सर्वोच्च न्यायालय ने धारा की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा का मूल उद्देश्य अस्वस्थ छंटनी के कारण कर्मचारियों को होने वाली कठिनाइयों से बचना और औद्योगिक सौहार्द को प्रोत्साहित करना है। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्दिष्ट किया कि चरम मामलों में पूर्व अनुमोदन लेने की कोई आवश्यकता नहीं है, जैसा कि उप-धारा (3) के तहत उल्लिखित है। अवैध या अस्वास्थ्यकर छंटनी से बचने और औद्योगिक शांति के उद्देश्य से, इस तरह के प्रावधान को प्रकृति में असंवैधानिक और मनमाना नहीं माना गया था। अशोक कुमार जैन बनाम बिहार राज्य (1995) के मामले में भी यही दृष्टिकोण अपनाया गया था, यह माना गया था कि प्रावधान की संवैधानिक वैधता पहले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय की गई थी, और यह अपने आप में सही है।

कानून के उल्लंघन के परिणाम: औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25Q

अधिनियम की धारा 25Q में कहा गया है कि जब कोई नियोक्ता ऐसी परिस्थितियों में धारा 25M के तहत उल्लिखित प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो उसे इस धारा 25Q के तहत सजा के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा, जो कारावास है, जिसे एक महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना है जिसे एक हजार तक बढ़ाया जा सकता या दोनों हो सकता है। 

औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के तहत छंटनी

सितंबर 2020 के महीने में, संसद ने औद्योगिक संबंध संहिता 2020 (“संहिता”) पारित की, जिसका उद्देश्य निम्नलिखित तीन अधिनियमों को प्रतिस्थापित करना है जो इस प्रकार हैं:

औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 की धारा 2(t) छंटनी को परिभाषित करती है, जो कमोबेश उस परिभाषा के समान है जो औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2(kkk) के तहत प्रदान की गई है। संहिता की धारा 2(t) में कहा गया है कि छंटनी का मतलब कोयले, बिजली या कच्चे माल की कमी या स्टॉक के संचय या मशीनरी के टूटने या प्राकृतिक आपदा या किसी अन्य संबंधित कारण से, ऐसे श्रमिक जिसका नाम उसके औद्योगिक प्रतिष्ठान के मस्टर रोल में उल्लिखित है और जिसे निकाला नहीं गया है, को रोजगार देने में नियोक्ता की विफलता, इनकार या अक्षमता है।

औद्योगिक संबंध संहिता मुख्य रूप से छंटनी और विभिन्न अन्य औद्योगिक कानूनों से संबंधित उपनियमों से संबंधित है जैसा कि ऊपर बताया गया है। संहिता अपने आप में उल्लेख करती है कि इस संहिता का उद्देश्य “ट्रेड यूनियनों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों या उपक्रमों (अंडरटेकिंग) में रोजगार की शर्तों, औद्योगिक विवादों की जांच और निपटान, और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों से संबंधित कानूनों को समेकित और संशोधित करना है।”

औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 का आलोचनात्मक विश्लेषण

संहिता के अध्याय XI और X विशेष रूप से छंटनी, हटाना और समापन से संबंधित कानूनों से संबंधित हैं। आश्चर्यजनक रूप से, संहिता के निर्माताओं ने कानूनों में न्यूनतम बदलाव किए जब उनके पास प्रत्येक औद्योगिक प्रतिष्ठान पर कानूनों के अनुप्रयोग को सार्वभौमिक बनाने का अवसर था, इसलिए हर प्रकार के औद्योगिक प्रतिष्ठान में नियोक्ता और कर्मचारी के अधिकार बरकरार रहे। हालाँकि, निर्माताओं ने प्रावधानों को मौजूदा कानूनों के समान ही छोड़ दिया। एकमात्र बड़ा और परेशानी भरा बदलाव जो संशोधित किया गया है, वह यह है कि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार श्रम कानूनों की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) की सीमा को 100 या अधिक कर्मचारियों से बढ़ाकर 300 या अधिक कर्मचारियों तक कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि यदि नियोक्ताओं के विशेष औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की संख्या 300 से कम है, तो उन्हें छंटनी, हटाने और समापन के लिए सरकार या स्वयं सरकार द्वारा निर्दिष्ट संबंधित प्राधिकारी से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। आधिकारिक अनुमोदन प्रक्रिया को अनावश्यक मानते हुए केंद्र सरकार का रुख पहले से ही रक्षात्मक था। इसने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार या सरकार द्वारा निर्दिष्ट संबंधित प्राधिकारी से आधिकारिक अनुमोदन प्राप्त करने की कठिन प्रक्रिया फर्मों के घाटे और देनदारियों को बढ़ाती है। हालाँकि ध्यान अनुमोदन लेने की प्रक्रिया को त्वरित और परेशानी मुक्त बनाने पर होना चाहिए था। छंटनी, हटाने और समापन से संबंधित मानदंडों को आसान बनाने से नियोक्ता द्वारा कानून का दुरुपयोग हो सकता है और अंततः पीड़ित एक कर्मचारी होगा।

सुझाव

नए औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 सहित मौजूदा कानून कर्मचारी कल्याण में सुधार के लिए किए गए प्रयास हैं, लेकिन अभी भी सुधार की संभावनाएं हैं।

कुछ सुझाव हैं जो कर्मचारियों की छंटनी से संबंधित कानूनों को बेहतर बना सकते हैं और नियोक्ताओं द्वारा शोषण और अस्वास्थ्यकर छंटनी के खिलाफ कमजोर कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। सुझाव इस प्रकार हैं:-

  • सबसे पहले, संसद कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए वर्तमान कानूनों में आवश्यक संशोधन लाएगी, चाहे वे किसी भी प्रकार के औद्योगिक प्रतिष्ठान के हों, क्योंकि हर प्रकार के प्रतिष्ठान के कर्मचारी अपने नियोक्ताओं द्वारा शोषण के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • सरकार को समय पर आर्थिक और नीतिगत हस्तक्षेप के माध्यम से उद्योगों में छंटनी से महामारी के दौरान कर्मचारियों की रक्षा करनी चाहिए।
  • नागरिक समाज समूहों और ट्रेड यूनियनों को कर्मचारियों को समय पर मुआवजा और बहाली के लिए मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • एजेंसियों को नियमित आधार पर और एक निश्चित समय अंतराल में कर्मचारियों की छंटनी के संबंध में डेटा एकत्र करने की आवश्यकता है जिससे कमजोर कर्मचारियों के लाभ के लिए अधिक प्रभावी नीति निर्माण हो सके।
  • अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि उद्योग द्वारा दिए गए मुआवजे के अलावा, सरकार को कुछ हद तक 50% मजदूरी की कमी को पूरा करने के लिए नौकरी से निकाले गए और छंटनी किए गए कर्मचारियों के लिए अधिक कल्याणकारी योजनाएं भी बनानी चाहिए।

निष्कर्ष

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान में काम करने वाला प्रत्येक कर्मचारी उसकी रीढ़ होता है। औद्योगिक प्रतिष्ठानों को केवल लाभ के लिए अपने कर्मचारियों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए और थोड़ा अधिक लाभ के लिए अस्वास्थ्यकर छंटनी से सख्ती से बचना चाहिए। अन्य बातों के साथ-साथ, सरकार को कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक संशोधन भी लागू करने चाहिए क्योंकि श्रम सुरक्षा कानूनों के मौजूदा प्रावधानों में अभी भी कई खामियां हैं। हमारा देश दुनिया के सबसे बड़े कार्यबलों में से एक है। शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत में 600 मिलियन से अधिक लोगों की आबादी है, जिनकी आयु 18 से 35 वर्ष के बीच है, जिनमें लगभग 65% लोग 35 वर्ष से कम आयु के हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश कम से कम 2055-56 तक जारी रहने का अनुमान है और 2041 के आसपास चरम पर होगा, जब कामकाजी उम्र की आबादी का हिस्सा, यानी, 20-59 आयु वर्ग, 59% तक पहुंचने की उम्मीद है, जो अपने आप में बहुत बड़ा है। उपर्युक्त आंकड़ों पर विचार करते हुए, सरकार को बेहतर ध्यान रखना चाहिए कि कानून ऐसे प्रकृति के होने चाहिए जिससे नियोक्ता द्वारा अस्वास्थ्यकर छंटनी के कारण कर्मचारियों का शोषण न हो, और उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित प्रावधान श्रम कानून नियोक्ता और कर्मचारी को समान सुरक्षा प्रदान करते हैं 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

छंटनी और हटाने में क्या अंतर है?

  • छंटनी के कारण की गई बर्खास्तगी अस्थायी होती है, जबकि हटाने के मामले में कर्मचारी की बर्खास्तगी स्थायी होती है।
  • छंटनी की स्थिति में, छंटनी की समय अवधि समाप्त होने के बाद कर्मचारियों को वापस नियुक्त किया जाता है। दूसरी ओर, हटाने के मामलों में कर्मचारी का रोजगार तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाता है; इसके बाद, नियोक्ता और कर्मचारी के बीच कोई और संबंध नहीं रह जाता है।

छंटनी और तालाबंदी में क्या अंतर है?

  • तालाबंदी नियोक्ता द्वारा कर्मचारी पर दबाव डालने या मजबूर करने के लिए किया जाने वाला कार्य है, दूसरी ओर, छंटनी व्यापारिक कारणों से होती है जो नियोक्ता के नियंत्रण से परे होते हैं।
  • औद्योगिक विवाद के कारण तालाबंदी होती है और विवाद की अवधि के दौरान भी जारी रहती है; दूसरी ओर, नियोक्ता और कर्मचारियो के बीच किसी भी विवाद के बावजूद छंटनी की जाती है और इसका कर्मचारियो के साथ विवाद से कोई लेना-देना नहीं है।

तालाबंदी और बंद होने के बीच क्या अंतर है?

  • तालाबंदी अस्थायी है; दूसरी ओर, औद्योगिक प्रतिष्ठान का बंद होना स्थायी है।
  • तालाबंदी एक ऐसी स्थिति है जिसका उपयोग आमतौर पर नियोक्ता द्वारा कर्मचारी पर दबाव डालने के लिए किया जाता है; दूसरी ओर, भारी घाटे या व्यापारिक कारणों से बंद होना होता है।
  • तालाबंदी आमतौर पर औद्योगिक विवादों के कारण होती है; दूसरी ओर, बंद होने के मामलों में, कोई विवाद होने की आवश्यकता नहीं है।

संदर्भ

 

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