यह लेख पुणे के मराठवाड़ा मित्र मंडल के शंकरराव चव्हाण लॉ कॉलेज के Ishan Arun Mudbidri द्वारा लिखा गया है। यह लेख अंतर्राष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय कानून के बीच संबंध के बारे में बात करता है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash के द्वारा किया गया है।
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परिचय
अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को राष्ट्रीय कानूनों से बेहतर माना जाता है। यह बात बिलकुल स्पष्ट है क्योंकि राज्य अपने राष्ट्रीय कानून बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियमों को लागू करते हैं। लेकिन, दोनों के बीच का संबंध अभी भी जटिल है और अभी तक स्पष्ट नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून का अवलोकन
अंतर्राष्ट्रीय कानून से तात्पर्य उन नियमों या सिद्धांतों के सामान्य समूह से है जो अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं जैसे समुद्र के कानून, दो देशों के बीच विवाद, भूमि का कौन सा हिस्सा किस देश का है, अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार को कैसे बनाए रखा जाए आदि को हल करने में मदद करते हैं। हालाँकि, यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून नियमों की एक मानक प्रणाली है जो सभी देशों पर लागू होते है। इसलिए, यह प्रत्येक देश पर निर्भर करता है कि वह इन नियमों को कैसे लागू करता है और अपनी भूमि के लिए कानून कैसे पारित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून के घटक
वे संस्थाएं जिनका अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति दायित्व है:
राज्य
अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था पर राज्यों का प्रभुत्व है। राज्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनी नियमों को अपनाते हैं और उन्हें अपने देश के कानूनों के रूप में लागू करते हैं। ये राज्य ही हैं जो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और अन्य संगठनों के सदस्य बन सकते हैं। राज्यों को लगातार विकसित होना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखने के लिए, राज्यों को अन्य राज्यों द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए। नए मान्यता प्राप्त राज्यों के उदय के साथ, शक्ति संतुलन को बदला जा सकता है और अंतर्राष्ट्रीय संबंध सुचारू रूप से चल सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय संगठन
अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की स्थापना राज्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में संतुलन बनाए रखने के लिए की जाती है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति बनाए रखने के लिए राज्यों का एक संयुक्त प्रयास था। प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के पास अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा निर्धारित अलग-अलग दायित्व और कर्तव्य हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंगों में से एक, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के पास अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के संदर्भ में राज्यों के निर्णयों को चुनौती देने की शक्ति है।
व्यक्तियों की भूमिका
अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था के निर्माण में व्यक्तियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। अंतर्राष्ट्रीय कानून में वर्णित कानूनी नियमों में व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जाता है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों के लिए उल्लिखित दायित्व व्यक्तियों पर लागू होते हैं, क्योंकि यदि कोई व्यक्ति खुश है, तो राज्य समृद्ध होता है। व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता के द्वारा प्रत्येक राज्य से जुड़े होते हैं। राष्ट्रीयता जन्म, अधिग्रहण, प्राकृतिककरण आदि द्वारा प्राप्त की जाती है। प्रत्येक राज्य के पास राष्ट्रीयता प्राप्त करने के लिए अलग-अलग मानदंड हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कानून के स्रोत
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के क़ानून के अनुच्छेद 38(1) में अंतर्राष्ट्रीय कानून के कुछ स्रोतों का उल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार हैं:
संधियां
अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा दिए गए नियम मुख्य रूप से संधियों के रूप में होते हैं। संधियों को कई अन्य नाम दिए गए हैं जैसे सम्मेलन, समझौते, नियम, आदि। युद्ध के समय संधियाँ ही उम्मीद का एकमात्र स्रोत थीं। हालाँकि, कुछ संधियों ने युद्धों को भी भड़काया है, उदाहरण के लिए, वर्साय की संधि। युद्ध के चरण के बाद, संधियों के कानून पर वियना संधि (1969) की स्थापना की गई थी। इसे संधियों के कानून के रूप में भी जाना जाता है। इसमें संधियों को कैसे बनाया जाना चाहिए, इस बारे में सब कुछ शामिल है। यहाँ ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी संधियाँ केवल राज्यों पर बाध्यकारी होती हैं, किसी तीसरे पक्ष पर नहीं।
प्रथाएँ
दो राष्ट्रों द्वारा एक दूसरे के साथ अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाए रखते हुए प्रथाओं का पालन किया जाता है। प्रथा एक ऐसी रीति रिवाज है जिसे राज्यों द्वारा एक निश्चित समयावधि में कानून के रूप में स्वीकार किया जाता है। प्रथागत कानून के नियम सभी राज्यों में बाध्यकारी होते हैं। आम तौर पर एक नई प्रथा को स्थापित करने में राज्य मुख्य योगदानकर्ता होते हैं। उदाहरण के लिए, शीत युद्ध के दौर में, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने अंतरिक्ष कानूनों के संबंध में नई प्रथाओं को अपनाया। आईसीजे भी निर्णय सुनाते समय बहुत सी प्रथाओं का उल्लेख करता है।
अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग की स्थापना 1948 में हुई थी। आईएलसी में चौंतीस सदस्य हैं। आईएलसी का मुख्य कार्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को संहिताबद्ध (कोडीफाई) करना है। अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के लिए मसौदा लेख तैयार करता है और फिर मसौदा सम्मेलन के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा को मसौदा प्रस्तुत करता है।
कानून के सामान्य सिद्धांत
सामान्य सिद्धांतों को कई राष्ट्रों द्वारा मान्यता प्राप्त है, इसलिए वे अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। राष्ट्रों के बीच सभी विवादों का समाधान संधियों द्वारा नहीं किया जाता है। सामान्य सिद्धांतों का उपयोग तब किया जाता है जब संधियों के लिए कोई प्रावधान नहीं होता है। सामान्य सिद्धांतों को सभी कानूनी प्रणालियों में देखा जा सकता है। इन सामान्य सिद्धांतों के उदाहरण सद्भावना, न्यायाधीशों की निष्पक्षता, लापरवाही आदि हैं।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून के बीच संबंध
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, व्यक्तिगत अभिनेताओं के पास अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत कोई कानूनी दायित्व नहीं है, हालांकि, यह व्यक्ति ही हैं जिन्होंने कुछ सिद्धांतों का उल्लेख किया है जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के बारे में बात करते समय विशिष्ट विशेषता के रूप में सामने आते हैं। दो बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांतों को द्वैतवाद (ड्यूलिज्म) और अद्वैतवाद (मोनिज्म) के रूप में संदर्भित किया जाता है।
द्वैतवाद
द्वैतवादी परंपरा के तहत, राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था से पूरी तरह अलग माना जाता है। इस संदर्भ में, अंतर्राष्ट्रीय नियम केवल अंतर्राष्ट्रीय कानूनी सर्किट में ही मान्य होंगे, न कि घरेलू कानूनी व्यवस्था में। इस सिद्धांत के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय कानून राज्यों के बीच के कानूनों पर लागू होता है और राष्ट्रीय कानून प्रत्येक राज्य के भीतर के कानूनों पर लागू होता है।
अद्वैतवाद
अंतर्राष्ट्रीय कानून का अद्वैतवाद सिद्धांत द्वैतवादी सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत है। यह सिद्धांत कहता है कि अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों को एक कानूनी व्यवस्था में मिला दिया जाना चाहिए। इस आधार पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों कानूनों के बीच संतुलन बना रहेगा। इस सिद्धांत के मुख्य प्रतिपादक हैंस केल्सन और हर्श लॉटरपैच थे।
अद्वैतवाद पर हर्श लॉटरपैच के विचार
लॉटरपैच ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कानून व्यक्ति द्वारा ही संचालित होते हैं। राज्य अपने दम पर अस्तित्व में हैं। अंतर्राष्ट्रीय कानून व्यक्तियों और मानवीय मामलों के लिए न्याय का सबसे अच्छा स्रोत है।
अद्वैतवाद पर हंस केल्सन के विचार
केल्सन के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय कानून में अद्वैतवाद स्थापित है और राष्ट्रीय कानून उसी कानूनी व्यवस्था का हिस्सा है। केल्सन का मानना है कि राज्यों को प्रथाओं के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। इस प्रकार, केल्सन ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून के बीच संबंधों का एक अद्वैतवादी सिद्धांत विकसित किया।
सहमति सिद्धांत
सहमति सिद्धांत के प्रमुख प्रतिपादक त्रिपेल और एन्ज़िलोटी थे। सहमति सिद्धांत के अनुसार, राज्य की इच्छा अंतर्राष्ट्रीय कानून पर बाध्यकारी है। यह राज्य की इच्छा ही है जो अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों पर शासन करती है।
डायोनिसियो एन्ज़िलोटी और हेनरिक ट्राइपेल के विचार
इतालवी विधिवेत्ता डायोनिसियो एन्ज़िलोटी ने कहा कि ‘पैक्टा संड सर्वंडा’ की कहावत, जिसका अर्थ है कि राज्यों के बीच समझौतों का सम्मान किया जाना चाहिए, अंतर्राष्ट्रीय कानून के पीछे बाध्यकारी शक्ति है। उन्होंने आगे कहा कि संधियाँ और प्रथागत नियम सभी राज्यों की सहमति पर आधारित हैं। इसी तरह, हेनरिक ट्रिपेल ने भी कहा कि राज्यों की आम इच्छा और राज्यों के बीच समझौता ही अंतर्राष्ट्रीय कानून का आधार है।
सहमति सिद्धांत में सबसे बड़ी खामी यह है कि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के काम करने के लिए राज्यों की सहमति होना ज़रूरी है। इसके अलावा, संधियाँ और प्रथा ही अंतर्राष्ट्रीय कानून के एकमात्र स्रोत नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के क़ानून का अनुच्छेद 38(1) इस तथ्य को साबित करता है। आलोचनाओं के बावजूद, सहमति सिद्धांत ने अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को प्रभावित किया है।
कानूनी मामले
लैग्रैंड मामला (2001)
- दो लैग्रैंड भाई एरिजोना यू.एस.ए. में एक बैंक डकैती में शामिल थे और डकैती के दौरान एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। दोनों भाई जर्मनी से थे और यू.एस. में बिना अमेरिकी नागरिकता के रह रहे थे। उन पर हत्या का आरोप लगाया गया और उन्हें मृत्युदंड दिया गया। उन्हें वियना संधि के तहत कांसुलर सहायता प्रदान नहीं की गई और दोनों को फांसी पर लटका दिया गया।
- जर्मनी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ आईसीजे में मुकदमा दायर किया जिसमें कहा गया कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने वियना संधि के तहत भाइयों को उनके अधिकार नहीं दिए। अब, वियना संधि ऑन कॉन्सुलर संबंध, 1963 के अनुच्छेद 36(1)(b) में कहा गया है कि मृत्युदंड के मामले में शामिल विदेशियों को कॉन्सुलर सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। मामला आईसीजे में जाने से पहले, जर्मनों को फांसी पर लटका दिया गया था।
- न्यायालय ने पाया कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने वियना संधि के तहत दिए गए अपने दायित्वों का उल्लंघन किया है। न्यायालय ने आगे कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने वियना संधि के तहत विदेशियों को दिए गए व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन किया है।
एंग्लो-नॉर्वेजियन मत्स्य पालन मामला (1951)
- 1911 में, नॉर्वे के अधिकारियों ने कुछ ब्रिटिश नौकाओं को जब्त कर लिया था क्योंकि वे उन सीमाओं को पार कर रहे थे जिसके भीतर विदेशियों के लिए मछली पकड़ना प्रतिबंधित था। यूनाइटेड किंगडम ने इस घटना के लिए नॉर्वे सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया। नॉर्वे सरकार ने 1935 में नॉर्वे के मत्स्य पालन क्षेत्र के सीमांकन के संबंध में एक आदेश पारित किया था जिसमें मछली पकड़ने के लिए सीमाएँ निर्धारित की गई थीं।
- यूनाइटेड किंगडम ने नॉर्वे के अधिकारियों से क्षतिपूर्ति के रूप में हर्जाने का दावा किया और मत्स्य पालन रेखाओं की वैधता का भी दावा किया। आईसीजे ने मुख्य रूप से समुद्री कानूनों पर भरोसा किया और माना कि मत्स्य पालन क्षेत्र के सीमांकन के लिए नॉर्वे सरकार द्वारा खींची गई रेखा अंतर्राष्ट्रीय कानून के विपरीत नहीं थी। इसलिए, मामला नॉर्वे के पक्ष में चला गया।
बोस्नियाई नरसंहार मामला (1996)
- 1990 के दशक में जब यूगोस्लाविया टूट गया, तो बोस्निया और हर्जेगोविना ने स्वतंत्रता की घोषणा की। इसके बाद की घटनाओं में सर्बिया और मोंटेनेग्रो ने खुद को संघीय गणराज्य यूगोस्लाविया घोषित कर दिया। बोस्निया और हर्जेगोविना में चल रहे सशस्त्र विवादों के दौरान सर्बियाई सेना ने बोस्नियाई मुस्लिम आबादी पर हमला किया जिसमें लगभग आठ हज़ार लोग मारे गए।
- बोस्नियाई सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में संघीय गणराज्य यूगोस्लाविया के विरुद्ध मुकदमा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि सर्बियाई सेना ने नरसंहार अपराध की रोकथाम और दण्ड संबंधी संधि (प्रिवेंशन एंड पनिशमेंट ऑफ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड कन्वेंशन) का उल्लंघन किया है तथा इस कार्य के लिए संघीय गणराज्य यूगोस्लाविया जिम्मेदार है।
- आईसीजे ने माना कि राज्य के किसी अंग द्वारा किया गया कार्य राज्य द्वारा किया गया कार्य माना जाएगा। यह नियम अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग के राज्य उत्तरदायित्व के अनुच्छेद 4 में वर्णित है ।
कोर्फू चैनल मामला (1949)
- ग्रीस के गृहयुद्ध के दौरान, अल्बानिया और यूनाइटेड किंगडम के बीच मुठभेड़ में, दो ब्रिटिश युद्धपोत जो कोर्फू चैनल से गुजर रहे थे, उन पर अल्बानियाई सेना ने गोलीबारी की। अल्बानियाई सरकार ने यह कहते हुए अपना पक्ष रखा कि कोई भी विदेशी जहाज बिना पूर्व अनुमति के अल्बानियाई जलक्षेत्र से नहीं गुजर सकता। यूनाइटेड किंगडम ने तर्क दिया कि जहाज अंतरराष्ट्रीय नौवहन उद्देश्यों के लिए किसी भी जलडमरूमध्य या चैनल से गुजर सकते हैं। अल्बानियाई सरकार ने दावा किया कि कोर्फू चैनल अंतरराष्ट्रीय राजमार्गों का हिस्सा नहीं है, जिसके माध्यम से जहाजों को गुजरने का अधिकार है।
- यह विवाद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया। न्यायालय ने माना कि कोर्फू चैनल अंतर्राष्ट्रीय राजमार्गों का एक हिस्सा है, इसलिए, तटीय राज्य द्वारा शांति के समय में मार्ग के अधिकार पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। इसलिए निर्णय यूनाइटेड किंगडम के पक्ष में गया।
कुलभूषण जाधव मामला (2019)
हाल के दिनों में, एक और मामला जिसमें आईसीजे ने हस्तक्षेप किया है, वह है कुलभूषण जाधव मामला (2019)। इस मामले में, एक भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को जासूसी और आतंकवाद के आरोप में पाकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था और उसे मौत की सजा सुनाई गई थी। भारत ने पाकिस्तान द्वारा श्री जाधव को काउंसलर सहायता देने से इनकार करने के लिए आईसीजे का दरवाजा खटखटाया। आईसीजे ने माना कि पाकिस्तान को काउंसलर संबंधों पर वियना संधि के अनुच्छेद 36 के तहत श्री जाधव को काउंसलर साहयता प्रदान करना चाहिए। हालाँकि, यह मामला अभी भी आईसीजे में लंबित है।
निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय कानूनों और राष्ट्रीय कानूनों के बीच संबंध किसी भी देश के बीच बहस या विवाद का विषय नहीं रहा है। दोनों कानून बिना किसी व्यवधान के अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में काम कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखने में मदद करते हैं जबकि राष्ट्रीय कानून राष्ट्र-राज्यों की संप्रभुता और विकास में मदद करते हैं। कई लोगों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय कानून राष्ट्रीय कानूनों से बेहतर हैं लेकिन ऐसी बहस तभी शुरू होनी चाहिए जब दोनों के बीच कोई टकराव हो। अन्यथा, दोनों कानून समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
संदर्भ
- https://www.spacelegalissues.com/the-conditions-for-speaking-of-a-state-in-public-international-law/