ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 के तहत ट्रेड यूनियन का पंजीकरण

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Trade Union Act
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यह लेख एमिटी लॉ स्कूल, लखनऊ, की छात्रा Sonal Shrivastava और Tanu Mehta द्वारा लिखा गया है। इस लेख का संपादन (एडिट) Khushi Sharma (ट्रेनी एसोसिएट, ब्लॉग आईप्लेडर्स) और Vanshika Kapoor (सीनियर मैनेजिंग एडिटर, ब्लॉग आईप्लेडर्स) द्वारा किया गया है। इस लेख में ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 के तहत ट्रेड यूनियन के पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) की प्रक्रिया के बारे में चर्चा की  गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

पृष्ठभूमि (बैकग्राउंड)

जैसे-जैसे आधुनिकीकरण (मॉडर्नाइजेशन) और औद्योगीकरण (इंडस्ट्रिलाइजेशन) का उदय और विकास हुआ है, अंततः ट्रेड यूनियनों का भी गठन हुआ है। ट्रेड यूनियन मूल रूप से कर्मचारियों का एक संघ है जो प्राप्त करने के लिए समान लक्ष्यों को साझा करते हैं। विभिन्न सामाजिक और आर्थिक बुराइयों के कारण, कर्मचारियों के लिए ट्रेड यूनियनों के रूप में नियोक्ताओं (एंप्लॉयर) से निपटने के लिए प्रभावी साधन तैयार करना आवश्यक हो गया है।

बिगड़ती आर्थिक स्थिति और कम वेतन के परिणामस्वरूप ट्रेड यूनियनों का और विकास हुआ है।

एक ट्रेड यूनियन सदस्यों (सदस्यता-आधारित संगठन) से बना एक संगठन है और इसकी सदस्यता मुख्य रूप से कर्मचारियों से बनी होती है।

एक ट्रेड यूनियन का मुख्य उद्देश्य कार्यस्थल में अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना और उन्हें आगे बढ़ाना होता है।

अधिकांश ट्रेड यूनियन किसी भी नियोक्ता से स्वतंत्र हैं। हालांकि, ट्रेड यूनियन नियोक्ताओं के साथ घनिष्ठ कार्य संबंध विकसित करने का प्रयास करते हैं। यह कभी-कभी नियोक्ता और ट्रेड यूनियन के बीच एक साझेदारी समझौते का रूप ले सकता है जो उनके सामान्य हितों और उद्देश्यों की पहचान करता है।

ट्रेड यूनियन:

  • वेतन और शर्तों पर नियोक्ताओं के साथ समझौते पर बातचीत करना,
  • कार्यस्थल में बड़े पैमाने पर अतिरेक (रेड्यूडेंसी) जैसे बड़े बदलावों पर चर्चा करना,
  • नियोक्ताओं के साथ सदस्यों की चिंताओं पर चर्चा करना,
  • अनुशासनात्मक और शिकायत बैठकों में सदस्यों का साथ देना,
  • सदस्यों को कानूनी और वित्तीय सलाह प्रदान करना,
  • शिक्षा सुविधाएं और कुछ उपभोक्ता (कंज्यूमर) लाभ जैसे रियायती बीमा प्रदान करना।

परिचय

1925 के अंत के दौरान, ट्रेड यूनियनों की संख्या में अत्यन्त वृद्धि हुई थी। उन्होंने औद्योगिक विवादों के निपटारे और रोकथाम से निपटने वाले तंत्र और कर्मचारियो के अधिकारों को सुरक्षित करने की मांग की थी। नियोक्ताओं द्वारा कर्मचारियों के निरंतर शोषण के परिणामस्वरूप उनके हितों की रक्षा और उनकी वास्तविक मांगों को पूरा करने के लिए ‘ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926’ का गठन किया गया। इस अधिनियम ने यूनियन बनाने और संगठित करने के अधिकार को वैध बनाया और इसलिए, कर्मचारियों को ट्रेड यूनियन बनाने की अनुमति दी गई।

अधिनियम ने प्रक्रिया, गठन, ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण के लिए शर्तों, प्रक्रिया के लाभ, पंजीकरण के लाभ और एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन की गतिविधियों के लिए सिविल और आपराधिक कानूनों से संघ के लीडर को उपलब्ध छूट के विस्तृत प्रावधान निर्धारित किए है।

परिभाषा

भारतीय ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 ट्रेड यूनियनों को परिभाषित करता है। इसकी धारा 2 (h) में कहा गया है कि कोई भी संयोजन (कॉम्बिनेशन), चाहे अस्थायी या स्थायी, मुख्य रूप से कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच या कर्मचारियों और कर्मचारियों के बीच, या नियोक्ताओं और नियोक्ताओं के बीच संबंधों को विनियमित (रेग्यूलेट) करने के लिए, या किसी भी व्यापार या व्यवसाय के संचालन पर प्रतिबंधात्मक (रिस्ट्रिक्टिव) शर्तें लगाने के लिए बनाया गया संघ और इसमें दो या दो से अधिक ट्रेड यूनियनों का कोई भी संघ भी शामिल हो सकता है। इस प्रकार, वर्तमान लेख ट्रेड यूनियन के सबसे महत्वपूर्ण पहलू से निपटेगा, जो ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण है।

ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 का अध्याय II ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण के प्रावधानों से संबंधित है।

ट्रेड यूनियन के पंजीकरण की प्रक्रिया

रजिस्ट्रार की नियुक्ति

धारा 3 के तहत ट्रेड यूनियन के पंजीकरण की प्रक्रिया के लिए रजिस्ट्रार की नियुक्ति की जाती है।

साथ ही, उपयुक्त सरकार किसी विशेष राज्य के लिए जहां एक ट्रेड यूनियन का रजिस्ट्रार शक्तियों और कार्यों का निर्वहन (डिस्चार्ज) करने में असमर्थ है, अतिरिक्त और डिप्टी रजिस्ट्रार नियुक्त करने के लिए अधिकृत है। एक स्थानीय सीमा के भीतर, वह इस उद्देश्य के लिए निर्धारित रजिस्ट्रार के रूप में शक्ति और कार्यों का प्रयोग कर सकता है।

पंजीकरण का तरीका

अधिनियम की धारा 4(1), ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण के बारे में बात करती है। जिसमें कहा गया है कि ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के लिए कम से कम 7 सदस्य होने चाहिए। न्यूनतम 7 सदस्यों के निर्धारण के पीछे का कारण अधिक से अधिक ट्रेड यूनियनों के गठन को प्रोत्साहित करना है।

इसके बाद दो शर्तें हैं जो ट्रेड यूनियन के पंजीकरण को पूरा करने के लिए आवश्यक है। यह निम्नलिखित है:-

  1. पहला कर्मचारियों का कोई भी ट्रेड यूनियन तब तक पंजीकृत नहीं किया जाएगा जब तक कि कम से कम 10% या 100 कर्मचारी, जो भी कम हो प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिशमेंट) के रोजगार में लगे हों, वह इसके आवेदन करने की तिथि पर इसके सदस्य भी हो।
  2. दूसरी बात यह है कि कोई भी ट्रेड यूनियन तब तक पंजीकृत नहीं होगा जब तक कि आवेदन करने की तिथि पर, उसके कम से कम 7 सदस्य जो कर्मचारी हैं, प्रतिष्ठान या उद्योग में कार्यरत हैं।

साथ ही, इस तरह के आवेदन को केवल इस आधार पर अमान्य नहीं माना जाएगा कि आवेदन की तारीख के बाद किसी भी समय, लेकिन ट्रेड यूनियन के पंजीकरण से पहले कुछ सदस्य लेकिन आवेदन करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या के आधे से अधिक सदस्य नहीं रह गए हैं या उन्होंने अपने अलग होने का जिक्र करते हुए रजिस्ट्रार को लिखित में एक नोटिस दिया है।

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (1993)

इस मामले में, अदालत ने कहा कि कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच संबंधों को विनियमित करने के उद्देश्य से, कर्मचारियों के किसी भी समूह को अधिनियम के तहत ट्रेड यूनियन के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है।

पंजीकरण के लिए आवेदन

धारा 5 के अनुसार, ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार के पास आवेदन किया जाएगा और इसके बाद ट्रेड यूनियन के नियमों की प्रति (कॉपी) और निम्नलिखित विवरणों का पालन किया जाना चाहिए:

  1. उन सभी सदस्यों का नाम, व्यवसाय और पता जो आवेदन कर रहे हैं;
  2. ट्रेड यूनियन का नाम और उसके प्रधान कार्यालय का पता; और
  3. ट्रेड यूनियन के पदाधिकारियों (ऑफिस बीयरर) के शीर्षक, नाम, उम्र, पते और व्यवसाय।

यदि कोई ट्रेड यूनियन पहले से ही एक वर्ष से अधिक समय से मौजूद है, तो पंजीकरण के लिए आवेदन के साथ ट्रेड यूनियन की संपत्ति और देनदारियों (लायबिलिटीज़) की एक प्रति भी प्रस्तुत की जाएगी।

ट्रेड यूनियन के नियमों में शामिल किए जाने वाले प्रावधान

अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, एक ट्रेड यूनियन अधिनियम के तहत पंजीकरण का हकदार नहीं होगा जब तक कि अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कार्यकारी (एग्जिक्यूटिव) समिति की स्थापना नहीं की गई हो और प्रदान किए गए नियम निम्नलिखित हैं-

  1. ट्रेड यूनियन का नाम;
  2. वे सभी उद्देश्य जिनके लिए ट्रेड यूनियन की स्थापना की गई है;
  3. वे सभी उद्देश्य जिनके लिए ट्रेड यूनियन की सामान्य निधियां (फंड) लागू होंगी;
  4. ट्रेड यूनियन के सदस्यों की सूची का रखरखाव;
  5. साधारण सदस्यों का प्रवेश जो वास्तव में ऐसे उद्योग में लगे या नियोजित व्यक्ति होंगे जिससे ट्रेड यूनियन जुड़ा हुआ है;
  6. किन शर्तों के तहत कोई भी सदस्य नियमों द्वारा सुनिश्चित किसी लाभ का हकदार होगा और जिसके तहत सदस्यों पर कोई जुर्माना या जब्ती लगाई जा सकती है;
  7. किस तरीके से नियमों में संशोधन किया जाएगा, उसमें बदलाव किया जाएगा या रद्द किया जाएगा;
  8. किस तरीके से कार्यकारिणी (एग्जिक्यूटिव) के सदस्य और ट्रेड यूनियन के अन्य पदाधिकारियों को चुना और हटाया जाएगा;
  9. ट्रेड यूनियन की निधियों, वार्षिक ऑडिट, की सुरक्षित अभिरक्षा (कस्टडी), उस तरह से की जाएगी जैसा कि निर्धारित किया गया हो, और पदाधिकारियों और ट्रेड यूनियन के सदस्यों द्वारा लेखा पुस्तकों के निरीक्षण के लिए पर्याप्त सुविधाएं दी जाएगी, और;
  10. किस तरह से ट्रेड यूनियन को भंग किया जा सकता है।

एम. टी. चंद्रसेनन बनाम एन सुकुमारन के मामले में अदालत ने माना कि ट्रेड यूनियनों के सदस्य धारा 6 के तहत सदस्य हैं। अधिनियम की धारा 6 के तहत सदस्यों को ट्रेड यूनियन की सदस्यता के लिए भुगतान अनिवार्य कर दिया है। ट्रेड यूनियन अपने सदस्यों से सदस्यता प्राप्त करने से इंकार नहीं कर सकती हैं।

बोकाजन सीमेंट कॉरपोरेशन एम्प्लॉइज यूनियन बनाम सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, के मामले में अदालत ने माना कि यूनियन के सदस्य रोजगार की समाप्ति पर स्वतः समाप्त नहीं होते हैं।

सदस्यों को बुलाने की शक्ति

धारा 7 के अनुसार, रजिस्ट्रार आवेदन के सदस्यों को यह जांचने के लिए और जानकारी प्राप्त करने के लिए बुला सकता है कि क्या आवेदन धारा 5 के प्रावधान के अनुसार पूरा है, या ट्रेड यूनियन धारा 6 के तहत पंजीकरण के लिए सक्षम है, और यदि ऐसी सभी जानकारी अधूरी है तो रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन को पंजीकृत करने से मना कर सकता है।

रजिस्ट्रार के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को ट्रेड यूनियन का नाम बदलने के लिए बुलाने की शक्ति है, यदि पंजीकरण के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति द्वारा प्रस्तावित ट्रेड यूनियन का नाम मौजूदा पंजीकृत ट्रेड यूनियन के नाम के समान है या यदि रजिस्ट्रार इसे थोड़ा समान पाता है, जो जनता या ट्रेड यूनियन के सदस्यों को मूर्ख बनाता है। यदि ऐसा परिवर्तन नहीं होता है, तो रजिस्ट्रार यूनियन को पंजीकृत करने से मना कर सकता है।

पंजीकरण

अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, यदि रजिस्ट्रार को लगता है कि ट्रेड यूनियन ने अधिनियम के सभी प्रावधानों का अनुपालन किया है, तो वह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सभी विवरणों को एक रजिस्टर में दर्ज करके ट्रेड यूनियन को पंजीकृत कर सकता है।

नॉर्थर्न सेंट्रल रेलवे कर्मचारी संघ और अन्य (2017)

इस मामले में, अदालत ने कहा कि यह जांचने के लिए कि पंजीकरण सही तरीके से दिया गया है या नहीं, इसकी जांच ट्रेड यूनियन अधिनियम के तहत स्थापित सक्षम वैधानिक प्राधिकरण (स्टेच्यूटरी अथॉरिटी) द्वारा ही की जा सकती है। पुलिस जैसे अन्य अधिकारियों की इसमें कोई भूमिका नहीं है।

इन्लैंड सीम नेविगेशन वर्कर्स यूनियन (1968)

इस मामले में कर्मचारी यूनियन की ओर से रजिस्ट्रार को पंजीकरण के लिए आवेदन दिया गया था। लेकिन आवेदन को रजिस्ट्रार द्वारा यह कारण बताते हुए गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था कि उल्लिखित सभी उद्देश्य व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए हैं।

मामले में अदालत ने कहा कि रजिस्ट्रार के कर्तव्यों में आवेदन की जांच करना, उन उद्देश्यों को देखना शामिल है जिनके लिए यूनियन का गठन किया गया है। यदि पंजीकरण के उद्देश्य अधिनियम के अनुसार मिलते हैं और अधिनियम के अनुसार बनाई गई सभी आवश्यकताओं और विनियमों का अनुपालन किया जाता है, तो यूनियन को पंजीकृत करना रजिस्ट्रार का कर्तव्य है।

ओएनजीसी वर्कर्स एसोसिएशन (1988)

इस मामले में अदालत ने स्पष्ट किया कि रजिस्ट्रार को अर्ध-न्यायिक (क्वासी ज्यूडिशियल) प्राधिकारी नहीं माना जाता है। वह तथ्य या कानून के किसी भी विवादित प्रश्न को तय करने का हकदार नहीं है। रजिस्ट्रार के पास पक्षों को सबूत पेश करने या किसी गवाह से जिरह (क्रॉस एग्जामिनेशन) करने के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं है।

टेल्को वर्कर्स का मामला

इस मामले में, उच्च न्यायालय ने निर्धारित किया है, “ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो रजिस्ट्रार, ट्रेड यूनियनों को पक्षों के बीच आपसी विवाद पर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है। ट्रेड यूनियन के निजी सदस्यों की शिकायतों पर विचार करने के लिए रजिस्ट्रार के पास अधिनियम के तहत कोई शक्ति नहीं है, हालांकि, अधिनियम की धारा 9 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए एक राय बनाने के लिए शिकायत रजिस्ट्रार को सूचना का स्रोत बन सकती है।

आर.के. महिला यूनियन

इस मामले में धारा 8 के तहत आदेश देने से पहले रजिस्ट्रार की सुनवाई के दायित्व के बारे में एक प्रश्न था। न्यायालय ने उत्तर दिया और देखा कि एक बार, रजिस्ट्रार संतुष्ट हो जाता है कि क़ानून की आवश्यकता का अनुपालन किया गया है, उसके लिए आवेदक यूनियन को रजिस्टर में प्रवेश करना अनिवार्य है और धारा 8 के तहत आदेश देने से पहले उसे क्षेत्र में मौजूदा यूनियन को सुनने में कोई आपत्ति नहीं है।

अतः यह कहा जा सकता है कि धारा-8 के अन्तर्गत रजिस्ट्रार को दिया गया अधिकार सीमित प्रकृति का होता है।

पंजीकरण का प्रमाणपत्र

धारा 9 के अनुसार, रजिस्ट्रार, धारा 8 के तहत ट्रेड यूनियन को पंजीकृत करने के बाद, पंजीकरण का प्रमाण पत्र जारी करेगा। जो इस बात का निर्णायक प्रमाण होगा कि एक ट्रेड यूनियन विधिवत पंजीकृत है। ट्रेड यूनियन साक्ष्य के रूप में प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर सकता है कि यह इस अधिनियम के तहत सही तरीके से पंजीकृत है। 

पंजीकरण रद्द करना

अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, एक ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के प्रमाण पत्र को रद्द या वापस लिया जा सकता है या ट्रेड यूनियन के आवेदन को इस तरह से सत्यापित (वेरिफाई) किया जा सकता है जैसा कि निर्धारित किया गया हो; जहां रजिस्ट्रार संतुष्ट है कि प्रमाणपत्र जानबूझकर धोखाधड़ी या गलती से प्राप्त किया गया है या ट्रेड यूनियन का अस्तित्व समाप्त हो गया है या रजिस्ट्रार के अन्य नोटिस ने अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन किया है और यदि रजिस्ट्रार संतुष्ट है कि एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन में सदस्यों की अपेक्षित (रिक्विसाइट) संख्या समाप्त हो गई है तो ट्रेड यूनियन भी समाप्त हो जाता है।

अपील (धारा-11)

अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, रजिस्ट्रार द्वारा ट्रेड यूनियन को पंजीकृत करने से इनकार करने या पंजीकरण वापस लेने आदि से व्यथित कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय में एक अपील दायर कर सकता है जहां ट्रेड यूनियन मुख्यालय एक प्रेसीडेंसी शहर की सीमा के भीतर स्थित है या जहां प्रधान कार्यालय किसी ऐसे क्षेत्र में स्थित है, जो किसी श्रम न्यायालय या किसी औद्योगिक न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) के अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) में आता है, उस न्यायालय या न्यायाधिकरण, जैसा भी मामला हो; जहां प्रधान कार्यालय किसी भी क्षेत्र में स्थित हो, ऐसे न्यायालय में, जो मूल अधिकार क्षेत्र के प्रधान सिविल न्यायालय के अतिरिक्त या सहायक न्यायाधीश के न्यायालय से कम न हो, जैसा कि उपयुक्त सरकार नियुक्त कर सकती है।

उपयुक्त फोरम में आवेदन पर, अदालत या तो अपील को खारिज कर सकती है या रजिस्ट्रार को उचित उपाय करने का निर्देश देने वाला आदेश पारित कर सकती है।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत न्यायालय के पास सिविल न्यायालय के समान शक्तियाँ होंगी और वह समान प्रक्रियाओं का पालन कर सकता है।

उच्चतम अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है।

अनिवार्य/स्वैच्छिक पंजीकरण

अधिनियम के अनुसार, एक ट्रेड यूनियन का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, बल्कि प्रकृति में केवल स्वैच्छिक है।

यह माना जाता है कि अनिवार्य पंजीकरण बोझिल और महंगा साबित होगा और इसलिए, यह स्वैच्छिक प्रकृति का है।

दूसरी ओर, यह तर्क दिया जाता है कि ट्रेड यूनियन के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि वे एक समान तरीके से निर्धारित प्रावधानों और नियमों द्वारा शासित हो सकें।

पंजीकृत कार्यालय

अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, सभी संचार (कम्यूनिकेशन) ट्रेड यूनियन के पंजीकृत कार्यालय पर किए जाएंगे।

एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन की कानूनी स्थिति

धारा 13 में ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के बाद उसकी कानूनी स्थिति के बारे में बताया गया है। जिसमे कहा गया है:-

  1. ट्रेड यूनियन जो पंजीकृत है, वह पंजीकृत नाम के तहत एक कॉर्पोरेट निकाय (अर्थात ट्रेड यूनियन की एक अलग कानूनी इकाई) होगा।
  2. ट्रेड यूनियनों का शाश्वत (परपेक्चुअल) उत्तराधिकार होता है जिसका अर्थ है यूनियन का अस्तित्व या किसी की भी मृत्यु, सदस्यता में परिवर्तन आदि की परवाह किए बिना जारी रहना है और इसकी एक सामान्य मुहर होती है।
  3. इसके पास चल और अचल (मूवेबल एंड इंमूवेबल) संपत्ति को प्राप्त करने और धारण करने की शक्ति भी है और अनुबंध करने के लिए यह एक पक्ष हो सकता है,
  4. यह पंजीकृत नाम से मुकदमा कर सकता है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

एक निश्चित स्थिति में व्यापार विवाद की खोज में किए गए किसी भी कार्य से संबंधित ट्रेड यूनियन के खिलाफ कोई सिविल मुकदमा या कानूनी कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकती है।

अधिनियम जो पंजीकृत ट्रेड यूनियनों पर लागू नहीं होते (धारा -14)

धारा 14 के तहत जो अधिनियम पंजीकृत ट्रेड यूनियनों पर लागू नहीं होते हैं वे हैं: –

  1. सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21)
  2. को-ऑपरेटिव सोसायटी अधिनियम, 1912 (1912 का 2)
  3. कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1)

इस तरह के अधिनियम किसी भी पंजीकृत ट्रेड यूनियन पर लागू नहीं होंगे, और यदि कोई ट्रेड यूनियन इनमें से किसी भी अधिनियम के तहत खुद को पंजीकृत करवाती है, तो ऐसा पंजीकरण शून्य प्रकृति का होगा।

ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के लिए समय अवधि

ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 में पंजीकरण की स्वीकृति या अस्वीकृति के लिए किसी समय अवधि का उल्लेख नहीं किया गया है। यदि पंजीकरण की सभी आवश्यकताओं को विधिवत पूरा किया जाता है, तो ट्रेड यूनियन को पंजीकृत करना रजिस्ट्रार का एक वैधानिक कर्तव्य है। लेकिन यदि कोई प्रावधान पूरा नहीं किया जाता है तो पंजीकरण करने या करने से इनकार करने की कोई समय सीमा नहीं है।

मामला- एसीसी रजंका लाइम स्टोन खदान मजदूर यूनियन बनाम ट्रेड यूनियन के रजिस्ट्रार (1958)

तथ्य- याचिकाकर्ता ने 31 जुलाई 1957 को बिहार सरकार, पटना के ट्रेड यूनियन के रजिस्ट्रार को एक पंजीकृत डाक कवर के तहत पावती (एक्नोलेजमेंट) के साथ एक आवेदन भेजा। ट्रेड यूनियन के रजिस्ट्रार को 3 अगस्त, 1957 को आवेदन प्राप्त हुआ था। लंबे समय तक, ट्रेड यूनियन के रजिस्ट्रार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

याचिकाकर्ता ने पंजीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए रजिस्ट्रार को कई रिमाइंडर भेजे और 23 सितंबर को याचिकाकर्ता की ओर से टेलीग्राफिक रिमाइंडर भेजा गया, लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आया था।

3 महीने से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए यूनियन ने पटना उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की। उसने अनुरोध किया कि ट्रेड यूनियन के रजिस्ट्रार को यूनियन को अपने वैधानिक कर्तव्य के रूप में पंजीकृत करने या करने से इनकार करने के लिए शासित किया जाना चाहिए।

निर्णय– पटना उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया था कि यदि रजिस्ट्रार संतुष्ट है कि पंजीकरण का आवेदन अधिनियम की सभी आवश्यकताओं के साथ पूरा किया गया है, तो धारा 8 के अनुसार ट्रेड यूनियन को पंजीकृत करना उसका वैधानिक कर्तव्य है। अदालत ने रजिस्ट्रार को कानून के मुताबिक ट्रेड यूनियन के आवेदन पर जल्द से जल्द कार्रवाई करने का आदेश दिया था।

ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण के लाभ

एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन एक अलग कानूनी इकाई का दर्जा प्राप्त करता है, जिसका अर्थ है कि यह अनुबंधों में प्रवेश कर सकता है और दूसरों पर मुकदमा भी कर सकता है।

ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के लाभ निम्नलिखित है:- 

  • पंजीकरण के बाद सभी ट्रेड यूनियन एक निगमित निकाय बन जाते हैं और एक सामान्य मुहर प्राप्त करते हैं।
  • ये किसी भी चल और अचल प्रकार की संपत्तियों को खरीदने और रखने के लिए अधिकृत होते हैं।
  • ये अन्य पक्षों के साथ अनुबंध भी कर सकते हैं।
  • ये इसके नाम पर कोई भी कानूनी कार्रवाई भी कर सकते हैं।

पंजीकृत ट्रेड यूनियनों के विशेषाधिकार (प्रिविलेज)

ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 ने धारा 17 और 18 के तहत प्रावधान दिए गए हैं। धारा 17 आपराधिक साजिश की सजा से छूट प्रदान करती है, जो:

  • छह महीने तक की कैद।
  • जुर्माना या दोनों हो सकती है।

एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन के सदस्यों या पदाधिकारियों के लिए, एक ट्रेड यूनियन के उद्देश्य को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से सदस्यों के बीच किए गए किसी भी समझौते से संबंधित है।

धारा 18 सिविल कार्यवाही से उन्मुक्ति (इम्यूनिटी) प्रदान करती है:-

  • पंजीकृत ट्रेड यूनियन को,
  • कोई भी सदस्य या पदाधिकारी को।

एक व्यापार विवाद की खोज में किए गए किसी भी कार्य से संबंधित, जिसमें व्यापार का एक सदस्य इस आधार पर एक पक्ष है कि ऐसे कार्य किसी अन्य व्यक्ति को उत्तेजित करते हैं:

  • रोजगार के अनुबंध का उल्लंघन करने के लिए,
  • व्यापार, व्यवसाय, रोजगार या किसी अन्य व्यक्ति में हस्तक्षेप करने के लिए,
  • किसी अन्य व्यक्ति के अपनी पूंजी या उसके श्रम को नष्ट करने के अधिकार में हस्तक्षेप करने के लिए।

ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण से उन्मुक्ति

  • धारा 17 आपराधिक दायित्व से उन्मुक्ति प्रदान करती है।
  • धारा 18 सिविल दायित्व से उन्मुक्ति प्रदान करती है।
  • धारा 19 व्यापार पर रोक लगाने के लिए समझौते करने का विशेषाधिकार देती है।

ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण और मान्यता के बीच अंतर

ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण और मान्यता के बीच मुख्य अंतर यह है कि पंजीकरण रजिस्ट्रार द्वारा किया जाता है और मान्यता प्रबंधन द्वारा सामूहिक सौदेबाजी (कलेक्टिव बारगेनिंग) एजेंट के रूप मे दी जाती है।

इनमें से कोई भी ट्रेड यूनियन अधिनियम के तहत अनिवार्य नहीं है। पंजीकृत ट्रेड यूनियन के पास इसके साथ कुछ अंतर्निहित (इन्हेरेंट) लाभ भी होते हैं। जबकि ट्रेड यूनियन की मान्यता का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है और एक बार उन्हें मान्यता मिल जाने के बाद, यह उन्हें कुछ अधिकार प्रदान करता है।

ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण पर राष्ट्रीय श्रम आयोग की रिपोर्ट

ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 के मद्देनजर राष्ट्रीय श्रम आयोग ने वर्ष 1969 में विभिन्न सिफारिशें प्रस्तावित की गई हैं –

  1. ट्रेड यूनियन का पंजीकरण जो स्वैच्छिक है, उसे अनिवार्य किया जाना चाहिए।
  2. पंजीकरण के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए रजिस्ट्रार के लिए कुछ समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।
  3. यदि यूनियन द्वारा अधिनियम में उल्लिखित शर्तों का अनुपालन नहीं किया जाता है, तो पंजीकरण को रद्द करने के लिए प्रभावी उपाय प्रदान किए जाने चाहिए।

उपर्युक्त सिफारिशों के बाद, विभिन्न अधिनियम पारित किए गए।

इसके बाद, एक दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग की स्थापना की गई और परिणामस्वरूप, वर्ष 2002 में एक दूसरी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

इस रिपोर्ट में आयोग ने सिफारिश की थी कि असंगठित (अनऑर्गेनाइज्ड) क्षेत्र में यूनियन के मामले में पात्रता (एलिजिबिलिटी) शर्त यानी 10% सदस्यता की आवश्यकता लागू नहीं होगी।

निष्कर्ष

ट्रेड यूनियन की उपस्थिति नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी की भावना के साथ एक स्वस्थ संबंध स्थापित करती है। कर्मचारी यूनियन कर्मचारियों के अधिकारों को परिभाषित और व्यवस्थित करते हैं और नियोक्ता पर दबाव डालते हैं कि वे उन्हें धोखा न दें। ट्रेड यूनियन का पंजीकरण सुनिश्चित करता है कि एक ट्रेड यूनियन विधिवत रूप से प्रमाणित और मान्यता प्राप्त है और इसके लिए अधिनियम में इसके प्रावधान व्यापक रूप से निर्धारित किए गए हैं।

यह ट्रेड यूनियनों के कारण है कि कर्मचारियों को लगता है कि उनके अधिकारों की विधिवत रक्षा की गई है और वे कभी भी नियोक्ताओं पर दबाव बना सकते हैं यदि उन्हें लगता है कि नियोक्ता उन पर अनावश्यक रूप से हावी हो रहे हैं।

इसके अलावा ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 के तहत ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण ने ट्रेड यूनियनों को मान्यता और प्रमाण पत्र प्राप्त करने में मदद की है। अधिनियम के विस्तृत प्रावधान एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन की गतिविधियों के लिए सिविल और आपराधिक कानूनों से यूनियन लीडर को उपलब्ध ट्रेड यूनियनों को पंजीकृत करने की प्रक्रिया, लाभ और विभिन्न उन्मुक्ति के बारे में भी बात करते हैं।

 

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