यह लेख स्कूल ऑफ एक्सीलेंस इन लॉ, चेन्नई की छात्रा Vaishali N. द्वारा लिखा गया है। लेखका भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 504 के तहत प्रदान की गई सजा पर विस्तार से बताने का प्रयास करती है। लेख में धारा की जानकारी, इसकी अनिवार्यता, अपराध की प्रकृति और धारा के तहत संबंधित प्रक्रियाओं पर संक्षेप में चर्चा की गई है। इसीके साथ, यह महत्वपूर्ण मामलो के साथ-साथ हाल ही के मामलों पर प्रकाश डालते हुए सजा पर प्रकाश डालता है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है।
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परिचय
अपमान को आम तौर पर उन शब्दों या कार्यों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो किसी व्यक्ति के लिए अपमानजनक या नीचा दिखानेवाले कार्य हैं, जो उन्हें अपमानित करने या उनकी भावनाओं को चोट पहुंचाने का जानबूझकर किया गया प्रयास हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। कभी-कभी अपमान किसी व्यक्ति को भावनात्मक या मानसिक स्तर पर इस हद तक डरा सकता है कि यह उसे खुद के अपमान का बदला लेने के लिए दूसरों की शांति भंग करने के लिए उकसा सकता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 में न केवल शारीरिक नुकसान पहुंचाने वालों को बल्कि दूसरों को मानसिक नुकसान पहुंचाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान है। धारा 504, भाग XXII के तहत एक ऐसा प्रावधान है जो “शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान” के अपराध से संबंधित है” और यह दंड के प्रावधानों के साथ है, जिस पर लेख के आगे के भाग में चर्चा की जाएगी। हालाँकि, केवल अपमानजनक भाषा का उपयोग इस धारा के तहत अपराध नहीं है। इसमें कुछ शर्तें हैं जिनके पूर्ण होने पर अपमान को एक अपराध के रूप में और अपराधी को उस कार्य के लिए उत्तरदायी ठहराने की आवश्यकता है। इस लेख में आईपीसी की धारा 504 की जानकारी पर संक्षेप में चर्चा की गई है, जिसमें इस अपराध के लिए सजा पर ध्यान भी केंद्रित किया गया है।
आईपीसी की धारा 504 के तहत अपमान का मतलब
यह धारा मौखिक अनादर (इंसल्ट) को “अपमान” के रूप में वर्गीकृत करती है। एक व्यक्ति को दूसरे का अपमान करने के लिए जानबूझकर दूसरे का अनादर करना चाहिए। जब यह इतना गंभीर हो जाता है कि यह अपमानित व्यक्ति को बड़े पैमाने पर सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए प्रेरित करता है, तो यह धारा उस व्यक्ति के आपराधिक दायित्व को आकर्षित करती है जिसने उसका अपमान किया था। इस धारा के लागू होने के लिए या अपमान का गठन करने के लिए शब्दों का कोई भी उपयोग जिससे किसी को ठेस पहुँच सकती है वह पर्याप्त है। गाली-गलौज से युक्त या कठोर भाषा किसी व्यक्ति की गरिमा की अवमानना करने के लिए पर्याप्त है। यह एक बहुत ही सामान्य परिदृश्य है जहां दो व्यक्ति एक दूसरे के साथ बहस करते हैं और बाद में उनमें से एक दूसरे के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना शुरू कर देता है। यह अधिनियम उस व्यक्ति पर धारा 504 के तहत आरोप लगाने के लिए पर्याप्त है जो जानबूझकर ऐसी भाषा का उपयोग करता है, क्योंकि यह उक्त प्रावधान के अनुसार अपमान का गठन करता है।
यह उल्लेखनीय है कि इस तरह की अपमानजनक भाषा का प्रयोग जानबूझकर किया जाना चाहिए। इस धारा में अपराध स्थापित करने के लिए किसी व्यक्ति को भड़काने के इरादे से अपमान किया जाना चाहिए। किसी को संबोधित करने का मात्र अशिष्ट तरीका और दोस्तों के बीच आकस्मिक बातचीत को इस धारा के तहत अपराध नहीं माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी के विरुद्ध अपशब्दों का प्रयोग करता है परन्तु लोक शांति भंग करने के लिए उसे उकसाने का आशय नहीं रखता है तो उसे उक्त अपराध का दोषी नहीं ठहराया जाएगा। इसलिए, पहले यह निर्धारित करना होगा कि क्या उस व्यक्ति का दूसरे का अपमान करने का इरादा था या नहीं।
धारा 504 के तहत अपराध की अनिवार्यता
आईपीसी की धारा 504 जानबूझकर किसी व्यक्ति को उकसाने के लिए या किसी का अपमान करने के लिए सजा प्रदान करती है, इस ज्ञान के साथ कि उनके अपमान के कारण उकसाने से व्यक्ति को अपराध करने या इस तरह से कार्य करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है जिससे जनता की शांति भंग हो सकती है।
हालाँकि, मात्र अपमान, गाली-गलौज, या अभद्र भाषा का प्रयोग ही अपराध नहीं होगा। पुखराज बनाम राजस्थान राज्य (1953) के मामले में अभियुक्त (एक ग्राहक) ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता (एक दुकानदार) पर बहुत ही खराब टिप्पणियां (कमेंट) कीं। अभियुक्त शिकायतकर्ता की दुकान से खरीदे गए उत्पाद से असंतुष्ट था और शिकायतकर्ता द्वारा पैसे वापस करने से मना करने पर वह भड़क गया, जिसके कारण उसने गाली देना शुरू कर दिया। राजस्थान उच्च न्यायालय ने पाया कि वास्तव में क्या अपशब्द बोले गए थे वह अज्ञात थे, और मामले की परिस्थितियों को देखते हुए, ऐसा नहीं लगता था कि अभियुक्त ने शिकायतकर्ता को कोई अपराध करने के लिए उकसाने के इरादे से उसका अपमान किया था। इस प्रकार, न्यायालय ने टिप्पणी की कि केवल बुरे व्यवहार का प्रदर्शन धारा 504 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा और यह कि यदि शब्दों के माध्यम से किसी का अपमान किया जाता है, तो शब्दों का वास्तव में केवल ‘अश्लील दुरुपयोग’ होने से कुछ ज्यादा परिणाम होना चाहिए।
इसलिए, यह देखा जा सकता है कि किसी का अपमान करने की कार्रवाई इस धारा के तहत केवल तभी अपराध बन जाएगी जब अपमान इतना गंभीर था कि वह व्यक्ति को कुछ गलत करने या गंभीर अपराध करने के लिए उकसाता था जिसके लिए उसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता था।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि इसके तीन आवश्यक तत्व हैं जिन पर इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को आरोपित करते समय विचार किया जाना चाहिए।
- अभियुक्त का इरादा व्यक्ति का अपमान करना था,
- इरादा उकसाने का था, और
- अभियुक्त जानता था कि उकसावे से व्यक्ति सार्वजनिक शांति भंग करेगा या कोई अपराध करेगा।
अभियुक्त जानबूझकर व्यक्ति का अपमान करता है
सभी अपमानों को जानबूझकर किया गया अपमान नहीं माना जा सकता है। एक अच्छे व्यवहार की कमी वाला व्यक्ति कभी-कभी असावधानी से अपशब्दों का उपयोग कर सकता है या लोगों से अश्लील बातें कर सकता है। भले ही कुछ लोग अपराध कह सकते हैं और इसे अपमानजनक पाते हैं, फिर भी यह इस धारा के तहत अपमान के रूप में नहीं गिना जाएगा क्योंकि व्यक्ति वास्तव में किसी का अपमान करने का इरादा नहीं रखता है।
अगर दो दोस्त आपस में हंसी-मजाक में लगे हों और वे एक-दूसरे को भद्दी-भद्दी बातें कहते तो ऐसी स्थिति में कोई भी आसानी से समझ सकता है कि यह अपमान अनजाने में किया गया था।
एक उदाहरण लेते हैं-
‘X’ एक छात्र है जिसकी ‘Y’ के साथ प्रतिद्वंद्विता (राइवलेरी) है। एक गंभीर बहस के दौरान ‘X’ और ‘Y’ कलह पर हैं और ‘X’ मौखिक रूप से ‘Y’ को गाली देता है और लड़ाई शुरू करने के इरादे से उसका अपमान करता है। इस मामले में ‘X’ को आईपीसी की धारा 504 के तहत अपराधी बताया गया था।
अभियुक्त का इरादा व्यक्ति को उकसाने का था
अभियुक्त का इरादा होना चाहिए या उसे पता होना चाहिए कि अपमान व्यक्ति को कुछ गलत करने के लिए उकसाएगा।
उदाहरण – ‘X’ एक राजनीतिक नेता है जो एक सार्वजनिक रैली का नेतृत्व कर रहा है। दो समुदायों के बीच झगड़े भड़काने के लिए, वह सार्वजनिक रूप से ‘Z’, प्रतिद्वंद्वी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति को बुलाता है और उसे गालियाँ देता है और उसे उकसाता है।
इसलिए, यदि ‘A’ इस हद तक ‘B’ का अपमान करता है कि ‘B’ को पीड़ा की स्थिति में धकेल दिया जाता है, जो सामान्य परिस्थितियों में ‘B’ को शांति भंग करने के लिए प्रेरित करता है, तो ‘A’ को इस धारा के तहत ‘B’ को इस तरह का उकसावा देने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा है।
अभियुक्त यह जानता था कि वह व्यक्ति कोई अपराध कर सकता है या सार्वजनिक शांति भंग कर सकता है
यह सबसे महत्वपूर्ण तत्व है जो यह निर्धारित करने के लिए एक परीक्षण के रूप में कार्य करता है कि किसी का अपमान करने का कार्य इस धारा के दायरे में आएगा या नहीं।
अपमान से किसी को अपराध करने या जनता की शांति भंग करने का कारण बनना चाहिए। अगर किसी का अपमान करने से कोई नुकसान नहीं होता है, तो इस धारा के तहत उनके कार्यों को आरोपित नहीं किया जा सकता है। 1915 के कुप्पुसामी अय्यर मामले का उल्लेख करते हुए, वाज़ बनाम डायस (1929) के मामले में मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल शांति के उल्लंघन या यह ज्ञान कि इस तरह की शांति भंग की संभावना है आईपीसी की धारा 504 के तहत नहीं आएगी।
धारा 504 के तहत अपराध की प्रकृति
धारा 504 के तहत अपराध गैर-संज्ञेय (नॉन कॉग्नीजेबल), जमानती और प्रकृति में शमनिय (कन्पाउंडेबल) है, क्योंकि यह बहुत गंभीर स्वरूप का अपराध नहीं है। यह किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय (ट्रायबल) है।
गैर संज्ञेय
अपमान सहित अधिकांश छोटे अपराध गैर संज्ञेय अपराध हैं। यानी पुलिस या कोई अन्य जांच अधिकारी बिना गिरफ्तारी वारंट के अभियुक्त को गिरफ्तार नहीं कर सकता है। गैर-संज्ञेय अपराध प्रकृति में कम गंभीर होते हैं। इसलिए, गैर-संज्ञेय अपराध आमतौर पर 3 साल से कम की अवधि के साथ दंडनीय होते हैं। इसी तरह, धारा 504 के तहत किए गए अपराध के लिए कारावास की अवधि 2 वर्ष तक है।
जमानती
जमानत देने की संभावना किए गए अपराध की तीव्रता पर निर्भर करती है। प्रकृति में कम गंभीर मामलों में जमानत आसानी से मांगी जा सकती है, और यह न्यायालय के विवेक (डिस्क्रेशन) पर आरोपियों को दी जा सकती है। इस प्रकार, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 की धारा 436 के तहत, अभियुक्त इस तरह के अपराध के लिए जमानत मांगने का हकदार है।
शमनिय
ऐसे अपराध जो शमनिय हैं, वे वह हैं जिनके लिए दोनों पक्षों द्वारा समझौता किया जा सकता है, जिससे शिकायतकर्ता (जिस व्यक्ति को कुछ क्षति (डैमेज) हुई है) कुछ प्रतिफल (कंसीडरेशन) के बदले अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को छोड़ने के लिए सहमत हो सकता है।
धारा 504 के तहत विचारण की प्रक्रिया क्या है
चूंकि धारा 504 के तहत अपराध प्रकृति में गैर-संज्ञेय है, इसमें पुलिस अधिकारी सीधे जांच शुरू नहीं कर सके है या अभियुक्त के खिलाफ सीधे गिरफ्तारी नहीं कर सकते है। सीआरपीसी की धारा 155(2) के अनुसार, पुलिस संबंधित न्यायालय या मजिस्ट्रेट से कोई निर्देश या आदेश प्राप्त किए बिना गैर संज्ञेय अपराध की जांच नहीं कर सकती है। पुलिस गैर संज्ञेय अपराध की प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करने के लिए बाध्य नहीं है। इसलिए पीड़ित द्वारा मैजिस्ट्रेट के समक्ष अपराध दर्ज कराकर अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) की प्रक्रिया प्रारंभ की जानी चाहिए। इसके बाद मजिस्ट्रेट पुलिस को जांच शुरू करने का आदेश जारी कर सकते है। सीआरपीसी की धारा 158 के तहत जांच की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपी जानी चाहिए। यदि मुकदमे में अभियुक्त दोषी पाया जाता है, तो मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी वारंट जारी करेंगे, और तब पुलिस उनकी अंतिम गिरफ्तारी कर सकती है।
धारा 504 के तहत अपील की प्रक्रिया क्या है?
मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक जमानती और गैर-संज्ञेय अपराध में बरी होने के मामले में, शिकायतकर्ता सीआरपीसी की धारा 378 के प्रावधानों के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा उच्च न्यायालय में दिए गए फैसले के खिलाफ अपील दायर कर सकता है।
धारा 504 के तहत दोषी होने पर जमानत कैसे मिलेगी
एक अभियुक्त को जमानत पाने का अधिकार है यदि वह धारा 504 की तरह जमानती अपराध करता है। पुलिस/जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास जमानत अर्जी दाखिल करके जमानत मांगी जा सकती है। चूँकि इन मामलों में ज़मानत एक अधिकार का मामला है। लेकिन अगर अभियुक्त को, न्यायालय, या पुलिस के पास ज़मानत दी जा सकती है या नहीं, यह तय करने का विवेक सुरक्षित नहीं है, यह पुलिस या न्यायालय का कर्तव्य है कि वह ज़मानत दे अगर अभियुक्त इसके लिए अर्जी करता है। हालाँकि, अधिकारी ज़मानत-बंध (बेल बॉन्ड) में कुछ नियम और शर्तें रख सकते हैं और यदि अभियुक्त शर्तों का उल्लंघन करता है, तो वे शर्तो के उल्लंघन करने के लिए उसे वापस हिरासत में भेज सकते हैं।
धारा 504 के तहत सजा
एक अपराधी को दंडित करने का उद्देश्य उसे उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराना है। सजा उन लोगों के लिए एक निवारक (डिटरेंट) के रूप में काम करती है जो इस तरह का अपराध करने की संभावना रखते हैं, और एक अपराधी को दंडित करने से उन्हें इस बात की अधिक आत्म-जागरूकता होगी कि वे समाज में खुद को कैसे पेश करते हैं। दंड प्रतिशोधात्मक (रेट्रीब्यूटिव) भी होते हैं, क्योंकि वे नागरिकों और पीड़ितों को न्याय की भावना देते हैं। धारा 504 के तहत निर्धारित सजा के प्रावधान निवारक और मुख्य रूप से दंडात्मक हैं, क्योंकि यहां प्राथमिक उद्देश्य अपराधी को दंडित करना और दूसरों को भविष्य में इसी तरह के अपराध करने से रोकना है।
धारा के प्रावधानों के तहत, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का अपमान करता है, यह जानते हुए कि इससे वह व्यक्ति जनता को परेशान करेगा या अपराध करेगा, तो उसे धारा 504 के तहत दोषी ठहराया जाएगा, और तदनुसार नीचे दी गई सजा के साथ दंडित किया जाएगा-
- 2 साल तक की कैद;
- जुर्माना, या;
- ऊपर बताए दोनों का मेल।
कारावास या तो सरल या कठोर हो सकती है, जिसकी अवधि किए गए अपराध पर निर्भर करती है। जुर्माने की राशि भी न्यायालय के विवेक पर तय की जाती है। इस प्रकार, सजा की गंभीरता किए गए अपराध की तीव्रता पर निर्भर करती है, जिसे न्यायालय मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर सावधानीपूर्वक विचार करके तय करता है।
महत्वपूर्ण मामले
कुंती कुमारी बनाम झारखंड राज्य ( 2016) के मामले में, शिकायतकर्ता, जो ग्राम शिक्षा समिति के अध्यक्ष थे, उन्होंने एक बजट बैठक आयोजित की थी जिसमें अपीलकर्ता उपस्थित था। शिकायतकर्ता दोपहर के भोजन के लिए सदस्यों को भोजन के पैकेट दे रहा था। जब वह अपीलकर्ता को खाने का पैकेट दे रही थी, अपीलकर्ता ने उसके हाथ से पैकेट छीन लिया और उसके समुदाय के संबंध में उसे गाली देना शुरू कर दिया, उसके मामले के खिलाफ अपमानजनक बयान दिया, और कहा कि उसके द्वारा परोसे गए भोजन को एक कुत्ता भी नहीं खाएगा। अपीलकर्ता ने सभी शिक्षकों और प्रशिक्षुओं (ट्रेनर्स) के सामने उसके साथ दुर्व्यवहार किया था, जिससे उसका मानसिक उत्पीड़न हुआ था। इस प्रकार, झारखंड के उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 504 के तहत का आरोप लगाकर चार महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी।
फियोना श्रीखंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य ( 2013 ) में, अभियुक्त अपने पति के साथ मुंबई में एक फ्लैट में रहने लगी थी जो पति और उसके देवर का था। संपत्ति पर दावों/हक के संबंध में आंतरिक पारिवारिक झगड़े थे, और अभियुक्त अपने देवर और उसकी पत्नी को फ्लैट से बाहर निकालने के लिए कई गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल थी। अभियुक्त पूजा कक्ष में परिवार के सदस्यों के प्रवेश को रोकने की कोशिश करती थी और उन पर चिल्लाता थी। उसने “देवरा” (एक व्यवस्था जहां देवताओं की मूर्तियों को रखा जाता है) को फ्लैट से बाहर ले जाने की कोशिश की थी, और उस प्रयास में, उसने फोटो फ्रेम और मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया और हटा दिया। इन गतिविधियों ने शिकायतकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई और उसे पीड़ा पहुँचाई। मुंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले में धारा 504 के आवश्यक तत्वों को निम्नानुसार निर्धारित किया है-
- जानबूझकर अपमान।
- अपमान ऐसा होना चाहिए जिससे अपमानित व्यक्ति को उकसावा मिले।
- अभियुक्त का इरादा या उसे पता होना चाहिए कि उकसावे से दूसरे को सार्वजनिक शांति भंग करने या कोई अन्य अपराध करने का कारण होगा।
इसने माना कि आवश्यक तत्वों में से एक जानबूझकर अपमान का कार्य है, जो सार्वजनिक शांति भंग करता है, और केवल शिकायतकर्ता को गाली देना आईपीसी की धारा 504 के तहत वादी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।
किशोरी मोहन बनाम द्वारिका नाथ सिंह (1974) के मामले में ,किशोरी मोहन और द्वारिका नाथ एक अन्य मामले में याचिकाकर्ता थे, जिन्हें विचारणीय मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 504 के तहत दोषी ठहराया गया था और इस तरह पिछले फैसले के खिलाफ अपीलीय न्यायालय में आपराधिक पुनरीक्षण (रिवीजन) की मांग की गई थी। शिकायतकर्ता, कन्हैया लाल, एक घरका प्रखंड (ब्लॉक) का प्रधान सहायक-सह-लेखाकार (हेड असिस्टेंट कम अकाउंटेंट) था, और याचिकाकर्ता, किशोरी लाल और द्वारिका नाथ, घटना के समय क्रमशः प्रखंड के कनिष्ठ सांख्यिकीय पर्यवेक्षक (स्टेच्यूटिकल सुपरवाइजर) और पंचायत सेवक थे। अराजपत्रित (नॉन गैजेटेड) कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान शिकायतकर्ता किसी काम से बाहर आया था। इसी समय अचानक उन्हें कर्मचारियों ने घेर लिया और द्वारिका नाथ ने उन्हें जूतों की माला पहनाकर उनके सामने अपमानित किया और किशोरी नाथ ने उनकी तस्वीर खींच ली। मजिस्ट्रेट ने दोनों याचिकाकर्ताओं को धारा 504 के तहत आरोप लगाकर दोषी ठहराया था और दोनों को छह महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। अपीलीय न्यायालय ने, हालांकि, फैसले के पुनरीक्षण के बाद, किशोरी लाल के आरोपों को खारिज कर दिया। पटना उच्च न्यायालय ने गौरी शंकर बनाम बच्चा सिंह (1938) के मामले को संदर्भित किया और माना कि तस्वीरों के प्रकाशन या ब्रांडिंग का कोई सबूत नहीं था। इस प्रकार, केवल तस्वीरें लेने को न तो एक अशोभनीय आचरण माना जा सकता है और न ही इसे सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए उकसावे की तरह बताया जा सकता है।
इसलिए, ऊपर चर्चा किए गए मामलों से, यह देखा जा सकता है कि अपमान का अपराध आमतौर पर गैर-शारीरिक अपराधों के विभिन्न पहलुओं से जुड़ा होता है जैसे किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, सार्वजनिक अपमान, या किसी को उसकी जाति या समुदाय के संबंध में अपमानित करना, आदि। यह भी देखा जा सकता है कि न्यायालय अभियुक्त के इरादे का निर्धारण करने के लिए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को अत्यधिक महत्व देता है, जबकि सतर्क रहता है कि कोई भी निर्दोष व्यक्ति दोषी नहीं ठहराया जाए और अभियुक्त को किए गए अपराध के गुरुत्वाकर्षण के अनुपात (प्रोपोर्शनल) में उचित सजा दी जाए।
धारा 504 से संबंधित हाल ही के मामले
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मुख्तार अंसारी (2022)
मामले के तथ्य
इस मामले में शिकायतकर्ता जेलर था, और प्रतिवादी, पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी, 2003 में उसी जेल में एक कैदी था। घटना के दिन, कुछ लोग प्रतिवादी से मिलने आए थे, लेकिन शिकायतकर्ता प्रतिवादी के आगंतुकों (विजीटर्स) को बिना उसकी अनुमति और सामान्य सुरक्षा प्रक्रियाओं के एक भाग के रूप में उनकी तलाशी लिए बिना अंदर न जाने का आदेश दिया। इससे प्रतिवादी नाराज हो गया, और इस प्रकार, उसने मौखिक रूप से उसे गाली देना शुरू कर दिया और शिकायतकर्ता पर बंदूक तानते हुए उसे जान से मारने की धमकी दी।
न्यायालय का फैसला
इलाहाबाद के उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी को आईपीसी की धारा 353 (एक लोक सेवक को अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का अपराध); तथा धारा 506 (आपराधिक धमकी); और 504 (जानबूझकर अपमान) के तहत उत्तरदायी ठहराया था।
धारा 504 के तहत किए गए अपराध के संबंध में, न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी ने जानबूझकर शिकायतकर्ता का अपमान किया था, यह जानते हुए कि यह एक जेलर के रूप में उसके अधिकार को कम करेगा और एक लोक सेवक के रूप में उसकी सत्यनिष्ठा (इंटीग्रिटी) का परीक्षण करेगा, जिससे कारावास के अंदर और बाहर शांति भंग होने की संभावना है। इस प्रकार, न्यायालय ने उन्हें धारा 504 के तहत दोषी पाया और उन पर 2 साल के कठोर कारावास और 2,000 रुपये के जुर्माने का आरोप लगाया।
जी. शिवराज भूपति बनाम राज्य (2022)
मामले के तथ्य
इस मामले में, अभियुक्त शिवराज भूपति ने दिवंगत सीडीएस जनरल बिपिन रावत के संबंध में फेसबुक पर एक अपमानजनक पोस्ट साझा (शेयर) की, जिसमें उन्हें “तानाशाह” और “विरोध नापसंद करनेवाले (मर्सिनरी ऑफ फासिज्म)” कहा गया। उसके खिलाफ नागरकोइल में साइबर अपराध पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 153, 505 (2), और 504 के तहत शिकायत दर्ज की गई थी।
इस प्रकार अभियुक्त याचिकाकर्ता ने प्राथमिकी को रद्द करने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय का फैसला
उच्च न्यायालय ने धारा 504 के तहत एक अपराध के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त ने जानबूझकर पीड़ित को ‘सीधे’ दुर्व्यवहार/अपमान की सूचना दी होगी। हालांकि टिप्पणी असभ्य प्रकृति की थी, लेकिन वे आईपीसी का अपराध नहीं हैं। इसके अलावा, पोस्ट केवल एक विशिष्ट समूह के लोगों के लिए थी, यानी, उनके “फेसबुक दोस्तों” के लिए और भले ही कोई भी उन्हें देख सकता था। धारा 504 के मामलों में केवल आमने सामने बातचीत शामिल है। इस प्रकार, इस तर्क पर, याचिकाकर्ता को दोषी नहीं ठहराया गया था।
निष्कर्ष
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 504, सबसे आवश्यक धाराओं में से एक है जो समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह उन लोगों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करती है जो जानबूझकर सार्वजनिक शांति को भंग करने के लिए उकसाने के उद्देश्य से किसी का अपमान करते हैं। अपमान का अपराध आपराधिक अपराधों के एक विशाल क्षेत्र में फैलता है और ज्यादातर मामलों में, आईपीसी के तहत अन्य प्रकार के शारीरिक और गैर-शारीरिक अपराधों के साथ जुड़ा हुआ है। न्यायालय, विभिन्न पूर्ववर्ती मामलों (प्रिसिडेंट केस) की मदद से, अपराधियों को इस तरह से तर्कसंगत (रेशनल) दंड देने में बहुत सावधानी बरतती हैं कि यह पीड़ितों को न्याय की भावना प्रदान करता है, जबकि ऐसा अपराध करने वालों के लिए एक निवारक के रूप में कार्य करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
धारा 504 के तहत अपमान धारा 499 के तहत मानहानि (डिफामेशन) से कैसे अलग है?
किसी का अपमान करने से व्यक्ति के मान सम्मान को भी ठेस पहुँचती है। लेकिन अंतर मानहानिकारक या अपमानजनक बयान के “प्रकाशन” में निहित है। जबकि धारा 499 के तहत मानहानि के अपराध में, किसी व्यक्ति के खिलाफ अपमानजनक या भद्दी टिप्पणी प्रकाशित करना ही अपराध को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, अपमान के मामले में ऐसा ही है। इसके अलावा, मानहानि के लिए तीसरे पक्ष की उपस्थिति आवश्यक है, लेकिन अपमान के लिए नहीं। अपमान का उद्देश्य उन मामलों को शामिल करना है जहां बातचीत प्रकृति में आमने सामने है।
क्या कोई पुलिस अधिकारी धारा 504 के तहत गिरफ्तारी कर सकता है?
धारा 504 के तहत अपराध एक गैर-संज्ञेय अपराध है, इसलिए पुलिस अधिकारी के पास गिरफ्तारी वारंट के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का कोई अधिकार नहीं है।
धारा 504 के तहत मुकदमे के लिए आपको वकील की आवश्यकता क्यों है?
यदि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है, भले ही अपराध गंभीर हो या न हो, बचाव के लिए वकील नियुक्त करना आवश्यक है। यहां तक कि अगर कोई अपराध गैर-गंभीर प्रकृति का है, तो आपराधिक कार्यवाही अभी भी भारी होगी, और केवल एक वकील कार्यवाही के माध्यम से आपको रास्ता दिखाने में सहायता कर सकता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने बरी होने के लिए लड़ें या कम से कम सजा को कम करने का प्रयास करें। एक वकील आपको अपराध की प्रकृति, गिरफ्तारी से पहले और बाद में आपके लिए उपलब्ध अधिकारों को समझाने में मदद कर सकता है, और आपके दोषी होने की स्थिति में मुकदमे के बाद क्या उम्मीद की जा सकती है इसके बारे में जानकारी देता है।
संदर्भ
- Ratanlal & Dhirajlal – The Indian Penal code 36th edition
- https://www.scconline.com/blog/post/2022/09/24/allahabad-high-court-rigorous-imprisonment-mukhtar-ansari-examination-in-chief-jailer-cross-examination-hostile-witness-public-servant-public-duty-criminal-intimidation-intentional-insult-with-int/