यह लेख बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लॉ स्कूल में प्रथम वर्ष के छात्र Aniket Tiwari द्वारा लिखा गया है। यह लेख फंडामेंटल ड्यूटीज के बारे में बहुत ही रोचक (इंटरेस्टिंग) तरीके से विस्तृत (डिटेल्ड) जानकारी देता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
हमारे देश भारत में दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसमें हर व्यक्ति के अधिकारों को ध्यान मे रखा गया है। हालांकि, स्टेट के 3 अंग इस देश को तब तक आत्मनिर्भर (सेल्फ-रिलायंट) नहीं बना सकते जब तक उन्हें नागरिकों से भी उचित समर्थन नहीं मिलता है। इसलिए कुछ फंडामेंटल ड्यूटीज हैं जो नागरिकों से पालन किए जाने की उम्मीद (एक्सपेक्ट) की जाती है। इस लेख में, हम उन फंडामेंटल ड्यूटीज पर चर्चा करेंगे जो हमारे देश के नागरिकों द्वारा पालन किए जाने की उम्मीद है। देश के सभी नागरिकों में देशभक्ति और एकता की भावना को बनाए रखना नागरिकों का नैतिक (मोरल) दायित्व (ओब्लिगेशन) है।
मुझे एक उदाहरण याद है जहां एक लोकप्रिय हस्ती को फंडामेंटल ड्यूटी का उल्लंघन (ब्रीच) करते पाया गया था। लाइव क्रिकेट मैच की कमेंट्री के दौरान साड़ी पहने हुए एक महिला थी और उस साड़ी में तिरंगे का प्रतिबिंब (रिफ्लेक्शन) था। ऐसे में भारतीय झंडा उस एंकर के पैर छूते हुए नजर आया था। विभिन्न लोगों ने और कोर्ट में उनकी क्रूर (ब्रूटली) आलोचना (क्रिटिसाइज) की गई, क्योंकि यह फंडामेंटल ड्यूटी के उल्लंघन का मामला था, इसलिए उस एंकर के खिलाफ आगे कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती।
यह वर्ष 2007 का एक उदाहरण था जब मैं एक बच्चा था और फंडामेंटल ड्यूटीज के बारे में कुछ भी नहीं जानता था। हालांकि, आज मैं स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ कि यह फंडामेंटल ड्यूटी का उल्लंघन था। फंडामेंटल ड्यूटीज देश के नागरिकों पर ही लागू होती हैं, स्टेट के किसी अंग पर नहीं होती है।
फंडामेंटल ड्यूटीज की आवश्यकता
यह समझना महत्वपूर्ण है कि कोई भी लोकतांत्रिक (डेमोक्रेटिक) व्यवस्था (सिस्टम) कभी भी सफल नहीं हो सकती है यदि नागरिक अपने ड्यूटीज का निर्वहन (डिस्चार्ज) करके सक्रिय (एक्टिवली) रूप से भाग लेने के इच्छुक नहीं हैं, जो उनके द्वारा किए जाने की उम्मीद है।
हमारे संविधान ने हमें विभिन्न अधिकार प्रदान किए हैं और उम्मीद करते हैं कि हम वापसी के रूप में कुछ ड्यूटीज का पालन करेंगे। आर्टिकल 51(A) इन फंडामेंटल ड्यूटीज के बारे में बात करता है और इसमें 11 फंडामेंटल ड्यूटीज हैं जो नागरिकों द्वारा पालन किए जाने की उम्मीद है (पहले 10 थी और बाद में 86वें अमेंडमेंट द्वारा 11वी ड्यूटी जोड़ी गई थी)। सबसे पहले, हम इन 11 फंडामेंटल ड्यूटीज पर चर्चा करेंगे और फिर हम अगले विषय पर आगे बढ़ेंगे कि इसकी आवश्यकता है या नहीं।
- हमें अपने संविधान का पालन करना चाहिए और अपने राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए।
- स्वतंत्रता संग्राम (स्ट्रगल) के आदर्शों (आइडियल्स) का पालन करना चाहिए।
- हमारे देश की संप्रभुता (सोवर्निटी) और अखंडता (इंटेग्रिटी) की रक्षा करनी चाहिए।
- हमे राष्ट्र की रक्षा करनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करनी चाहिए।
- एक समान भाईचारे की भावना होनी चाहिए।
- हमें देश की संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।
- हमे देश के पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।
- प्रत्येक विचार के लिए वैज्ञानिक तर्क (साइंटिफिक रेशनल) उत्पन्न करना चाहिए।
- सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए।
- उत्कृष्टता (एक्सीलेंस) के लिए प्रयास करना चाहिए।
- प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है कि उन्हे अपने 6-14 वर्ष के बीच के बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए।
इन फंडामेंटल ड्यूटीज से कोई भी हमारे संविधान में इनकी आवश्यकता को आसानी से समझ सकता है। यह हमारे राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा के लिए आवश्यक है। हमारे देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। अधिकार और ड्यूटीज साथ-साथ चलते हैं और इन्हें किसी भी कीमत पर अलग नहीं किया जा सकता है। फंडामेंटल ड्यूटीज और फंडामेंटल राइट्स एक सिक्के के दो पहलू हैं जिन्हें हम जानते हैं कि इसे अलग नहीं किया जा सकता है। साथ ही, हमारे संविधान में फंडामेंटल ड्यूटीज को शामिल करना समय की आवश्यकता के रूप में पाया जाता है।
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स्टेट की संप्रभु प्रकृति को बनाए रखना
फंडामेंटल ड्यूटीज को सम्मिलित (इंसर्ट) करने का मुख्य उद्देश्य हमारे स्टेट की संप्रभु प्रकृति को बनाए रखना था। हालांकि ये कानूनी रूप से लागू नहीं होते हैं, फिर भी हमारे स्टेट को कुछ संप्रभु शक्ति प्रदान करते हैं।
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राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखना
वर्तमान परिदृश्य (सिनेरियो) में, हम देख सकते हैं कि लोग अक्सर “असहिष्णुता (इनटोलरेंस)” शब्द के बारे में बात करते हैं। वे असहिष्णुता को एकता से जोड़ते हैं। उनके अनुसार यदि लोग असहिष्णु हो जाते हैं तो अन्य लोगों के साथ संगतता (कंपेटिबिलिटी) प्रभावित होती है और अंत में विभिन्न लोगों के बीच एकता बुरी तरह से प्रभावित होती है। हमारी फंडामेंटल ड्यूटीज नागरिकों के बीच सहिष्णुता (टोलरेंस) विकसित करने में मदद करती हैं और अंत में हमारे देश के नागरिकों के बीच एकता और अखंडता की भावना को विकसित करने में मदद करती हैं।
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लेजिस्लेचर द्वारा बनाए गए विभिन्न कानूनों की व्याख्या (इन द इंटरप्रिटेशन ऑफ़ डिफरेंट स्टेट्यूट्स विच आर मेड बाय द लेजिस्लेचर)
फंडामेंटल ड्यूटीज लेजिस्लेचर द्वारा बनाए गए कानून की व्याख्या में मदद करती हैं। कई मामलों में यह माना जाता है कि फंडामेंटल राइट्स की व्याख्या में फंडामेंटल ड्यूटीज की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। मोहन कुमार सिंघानिया बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में कोर्ट ने माना कि हमारे संविधान के आर्टिकल 51(A) के अनुसार बनाए गए कानून वैध हैं। इस प्रकार, हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि फंडामेंटल ड्यूटीज कंस्टीट्यूशनल प्रावधान की व्याख्या करने में मदद करती हैं।
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व्यक्तिगत नागरिक और सिविल समाज के दावों के बीच संतुलन बनाने के लिए (इन ऑर्डर टू क्रिएट ए बैलेंस बिटवीन द क्लैम्स ऑफ़ द इंडिविजुअल सिटिजन एंड दोज ऑफ द सिविल सोसाइटी)
लेट जस्टिस जे.एस. वर्मा की समिति (कमिटी) ने वर्ष 1999 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस समिति द्वारा फंडामेंटल ड्यूटीज (विशेषकर आर्टिकल 51A के तहत) की आवश्यकता और महत्व को समझाया गया था। इस रिपोर्ट की सिफारिश संख्या 3.38.1 और 3.38.2 में है। इस समिति के अनुसार, व्यक्तिगत नागरिकों की उम्मीदों के बीच संतुलन (बैलेंस) बनाना और एक नागरिक समाज का निर्माण (क्रिएट) करना महत्वपूर्ण है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमारे देश के नागरिकों को उनकी सामाजिक और नागरिकता की जिम्मेदारी के प्रति जागरूक (अवेयर) किया जाए और ऐसा करके हम अंत में नागरिक समाज को आकार देंगे (‘नागरिक समाज’ शब्द से, हमारा मतलब है कि एक ऐसा समाज जहां सभी चिंतित हों और साथी नागरिकों के अधिकारों पर विचार करते हो)।
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वर्तमान स्थिति के लिए आवश्यक है
जब हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा हमारे संविधान का मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार किया गया था, तो उन्होंने पाया कि उन्हें हमारे संविधान में फंडामेंटल ड्यूटीज को सम्मिलित करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया फंडामेंटल ड्यूटीज की आवश्यकता और महत्व को महसूस किया गया, इसलिए उन्हें बाद में हमारे संविधान में 42वें अमेंडमेंट द्वारा शामिल किया गया था। पहले देशभक्ति, सद्भाव (हार्मनी), भाईचारे को बढ़ावा देने की भावना, धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) की भावना निहित (इन्हेरेंट) थी और इसके लिए नागरिक पर कोई नैतिक या कानूनी दायित्व डालने की आवश्यकता नहीं थी। देश की सेवा करने और किसी भी कीमत पर देश की रक्षा करने की भावना देश के नागरिकों में थी। लोग भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत (रिच हेरिटेज) की रक्षा के लिए तैयार थे।
हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया लोगों में इन गुणों की कमी होने लगी। पहले ऊपर दिए गए गुण परिवार और स्कूल और कॉलेजों के शिक्षकों द्वारा भी सिखाए जाते थे। लेकिन समय बीतने के साथ सभी लोग अपने जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि वे इन मूल्यों को आपस में विकसित (इंकल्केट) करना भूल जाते हैं। वे गुण जो कभी भारत के नागरिकों के जीवन का अभिन्न (इंटीग्रल) अंग थे, वे फंडामेंटल ड्यूटीज के रूप में लागू किए गए है।
चंद्र भवन बोर्डिंग एंड लॉजिंग बैंगलोर बनाम मैसूर स्टेट और अन्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे संविधान के लिए नागरिकों के सभी अधिकारों की, बिना कुछ ड्यूटीज को सौंपे, रक्षा करना संभव नहीं है। हालांकि, यह निर्णय भारतीय संविधान में फंडामेंटल ड्यूटीज को सम्मिलित करने से पहले लिया गया था। यह स्पष्ट रूप से कल्याणकारी (वेलफेयर) समाज बनाने के लिए फंडामेंटल ड्यूटीज की आवश्यकता की व्याख्या करता है।
फंडामेंटल ड्यूटीज के सोर्स
आजकल हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि लोग किसी बात या किसी चीज विरोध (प्रोटेस्ट) करना शुरू कर देंते है और यह कितनी बार हिंसक (वाॅयलेंट) हो जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां विरोध हिंसक हो जता है और लोग सार्वजनिक संपत्ति को तोड़ना शुरू कर देते हैं और सरकार का अपमान करना शुरू कर देते हैं। यहां नागरिक सीमा से परे जाते हैं और अक्सर राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक ड्यूटी को भूल जाते हैं। 1976 के राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमर्जेंसी) के दौरान हमारे देश में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी जब हमारे देश की सत्ताधारी (रूलिंग) पार्टी यानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सरदार स्वर्ण सिंह कमिटी का गठन (फॉर्मेशन) किया था।
इस कमिटी का मुख्य उद्देश्य भारत के संविधान में अमेंडमेंट का सुझाव देना था (मुख्य रूप से फंडामेंटल ड्यूटीज की सिफारिशों के लिए)। इस कमिटी ने सुझाव दिया कि नागरिकों को पता होना चाहिए कि उनके अधिकारों के आनंद के लिए उनकी कुछ ड्यूटी भी हैं और उन्हें उन ड्यूटीज का पालन करना चाहिए। इस कमिटी ने फंडामेंटल ड्यूटीज के 8 बिंदुओं की सिफारिश की थी। ये इस प्रकार थी:
- हमारे देश के संविधान का सम्मान करने के लिए।
- संप्रभुता को बनाए रखने और राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं (इंस्टीट्यूशन) का सम्मान करने के लिए।
- हमारे देश की रक्षा करने और जरूरत होने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करने के लिए।
- किसी भी रूप में सांप्रदायिकता (कम्युनलिज्म) की पुष्टि (अफर्म) करने के लिए।
- सामान्य भलाई को बढ़ावा देना और डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी के कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) में सहयोग करने के लिए।
- सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा के लिए।
- नियमों और विनियमों (रेगुलेशंस) के अनुसार टैक्सेस का भुगतान करने के लिए।
हालांकि, सभी सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया था और स्वर्ण सिंह कमिटी की सिफारिशों में कुछ और बदलाव किए गए थे और फंडामेंटल ड्यूटीज को अंत में 1976 में भारतीय संविधान में 42वें अमेंडमेंट द्वारा जोड़ा गया था। हालांकि, शुरुआत में, केवल 10 फंडामेंटल ड्यूटीज थी और 11वी ड्यूटी को बाद में 2002 में 86वें अमेंडमेंट द्वारा जोड़ा गया था।
इस दुनिया के कई देशों के संविधान में फंडामेंटल ड्यूटीज वर्णित (मेंशन) हैं। उदाहरण के लिए, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ वियतनाम के आर्टिकल 43-45 राष्ट्र के प्रति नागरिकों की ड्यूटीज के बारे में बात करते हैं। इसी तरह, नेदरलैंड के आर्टिकल 194 में भी इसी के बारे में उल्लेख किया गया है। जापान ने देश के निवासियों (रेसीडेंट्स) की फंडामेंटल ड्यूटीज का भी उल्लेख किया है। फंडामेंटल ड्यूटीज का विचार जिसका उल्लेख हमारे संविधान में किया गया है, मूल रूप से रूस (यूएसएसआर) के संविधान से लिया गया है। इन फंडामेंटल ड्यूटीज का उल्लेख यूएसएसआर के संविधान के अध्याय (चैप्टर) 10 में किया गया है। फंडामेंटल ड्यूटीज की अवधारणा (कंसेप्ट) पर यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स और इंटरनेशनल कोविनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स में भी चर्चा की गई है।
ड्यूटीज का एनफोर्समेंट
डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी (जो भारतीय संविधान के अध्याय IV में दिए गए है) और फंडामेंटल ड्यूटीज को एक साथ पढ़ने की जरूरत है। दोनों का क्रमशः (रिस्पेक्टेवली) स्टेट और नागरिकों पर नैतिक दायित्व है।
फंडामेंटल ड्यूटीज के उल्लंघन के लिए कोई कानूनी खामियाजा (डीवॉर) नहीं है। 6 पॉजिटिव ड्यूटीज हैं जो हमारे देश के नागरिकों द्वारा पालन किए जाने की उम्मीद है और 5 नेगेटिव ड्यूटीज हैं जिनकी नागरिकों द्वारा पालन किए जाने की उम्मीद नहीं है। इसके उल्लंघन के लिए कोई कानूनी एंफोर्सिएबिलिटी नहीं है, ऐसा फंडामेंटल ड्यूटीज की प्रकृति के कारण है। हम स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि इन ड्यूटीज को लागू करना व्यावहारिक (प्रैक्टिकली) रूप से असंभव है।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि फंडामेंटल ड्यूटीज केवल सार्वजनिक कार्यालय धारण (होल्ड) करने वाले नागरिकों के लिए लागू करने योग्य हैं। यह आचरण (कंडक्ट) के डिपार्टमेंटल नियमों के माध्यम से और उपयुक्त कानून बनाकर संभव है। सार्वजनिक कार्यालयों में फंडामेंटल ड्यूटीज के उल्लंघन के लिए उचित प्रतिबंध (सैंक्शन) हैं।
भारत में ऐसे कई स्थान हैं जहां सार्वजनिक कार्यालय धारण करने वाले व्यक्ति को डिपार्टमेंटल प्रोमोशन से रोका जा सकता है, साथ ही उन्हे वेतन वृद्धि (इंक्रीमेंट) से भी इनकार किया जा सकता है। एक अधिकारी जो हड़ताल में भाग लेता है और संस्था के खिलाफ रैली का आयोजन (ऑर्गेनाइज) करता है, उसे उस दिन के लिए अपना वेतन (सैलरी) देने के लिए कहा जा सकता है।
प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल हॉनर एक्ट, 1971 की धारा 3
प्रिवेंशन ऑफ़ इंसल्ट टू नेशनल हॉनर एक्ट, 1971 एक ऐसा एक्ट है जो हमारे देश के नागरिकों को देश का अपमान करने से रोकता है। इसमें भारत के राष्ट्रीय ध्वज और संविधान का अनादर करना शामिल है। हालांकि, ये यथोचित (रीजनेबली) रूप से लागू करने योग्य हैं।
इस एक्ट की धारा 3 राष्ट्रगान के गायन की रोकथाम (प्रिवेंशन) के बारे में बात करती है। सभी नागरिकों को दंडित किया जाना चाहिए यदि वे जानबूझकर राष्ट्रगान के गायन को रोकते हैं या इस तरह के गायन में व्यस्त सभा (असेंब्ली) को परेशान करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति उस स्थान पर शोर करना शुरू कर देता है जहाँ एक सभा राष्ट्रगान कर रही है, तो उसे इस धारा के तहत दंडित किया जाएगा।
श्याम नारायण चौकसे बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के हाल ही के मामले में जिसमें माननीय जस्टिस दीपक मिश्रा और माननीय जस्टिस रॉय ने एक इंटरीम आदेश पास किया था, जिसमें यह अनिवार्य था:
- प्रत्येक फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले राष्ट्रगान बजाना था।
- राष्ट्रगान के दौरान सभी दर्शकों के लिए खड़े रहना अनिवार्य था।
यह निर्णय भारतीय संविधान के आर्टिकल 19(1) का उल्लंघन करने वाला पाया गया क्योंकि देश के नागरिकों पर अनुचित (अनरीजनेबल) प्रतिबंध लगाए गए थे। आर्टिकल 19(1)(g) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि स्टेट कोई भी कानून बना सकता है जो आर्टिकल 19(1) पर प्रतिबंध लगाता हो, हालांकि ये प्रतिबंध उचित होने चाहिए। इस मामले में निर्णय नागरिकों के फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन करने वाला पाया गया था। यह फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन करने वाला पाया गया क्योंकि यह अनुचित प्रतिबंध लगाता थाजो स्टेट द्वारा नहीं किया जा सकता था। चूंकि हमारा देश एक उदार (लिबरल) देश है जहां सभी को स्वतंत्र रूप से सोचने, बिना किसी दायित्व के अपने विचार व्यक्त (एक्सप्रेस) करने और बिना किसी मजबूरी के अपने विश्वास का पालन करने का अधिकार है।
इस मामले ने भारतीय समाज में उथल-पुथल (टर्मोइल) मचा दी थी क्योंकि कई लोगों ने इस फैसले का समर्थन किया था क्योंकि उन्होंने इसे हमारे देश के सम्मान की रक्षा के लिए पाया था। ऐसे लोग भी थे जो कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि उन्हें लगता है कि यह नागरिकों के फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन है। यह भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक ऐतिहासिक मामला था। किसी की मर्जी के बिना राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने के लिए किसी को कैसे मजबूर किया जा सकता है? साथ ही इससे किसी व्यक्ति की देशभक्ति का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है? इधर, इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि फंडामेंटल ड्यूटीज, फंडामेंटल राइट्स से ऊपर हैं। यहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई खामियां (लूपहोल्स) थीं।
एम.सी. मेहता बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, 1988 एससीआर (2) 530
भारतीय संविधान के आर्टिकल 51A(g) में दी गई फंडामेंटल ड्यूटीज में स्पष्ट रूप से पर्यावरण की रक्षा के लिए नागरिक की ड्यूटी का उल्लेख है। इस आर्टिकल के अनुसार प्राकृतिक पर्यावरण (प्राकृतिक पर्यावरण में जंगल, नदियां, झीलें और वन्य जीवन (वाइल्ड लाइफ) शामिल हैं) की रक्षा और संरक्षण (प्रिजर्व) करना प्रत्येक नागरिक की ड्यूटी है। स्वस्थ वातावरण किसी भी समाज के कल्याण का एक अनिवार्य तत्व (एसेंशियल एलिमेंट) है।
एम.सी.मेहता बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आर्टिकल 51A(g) लागू किया गया था। इस मामले में प्रतिदिन 274.50 मिलियन लीटर सीवेज का पानी गंगा नदी में छोड़ा जा रहा था। यह मामला कानपुर शहर का है, जो गंगा नदी के किनारे बसा सबसे बड़ा शहर है। यहां जल प्रदूषण काफी हद तक था इसलिए याचिकाकर्ता (पेटिशनर) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका (पिटीशन) दायर की। यहां देश के सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कानपुर में म्युनिसिपल बॉडीज और इंडस्ट्री नदी को प्रदूषित करने का मुख्य कारण थे। इसलिए कानपुर नगर महापालिका के खिलाफ फैसला लिया गया था। इस मामले में, नगर महापालिका और म्युनिसिपल बोर्ड्स को उत्तरदायी ठहराया गया था क्योंकि कानपुर के क्षेत्रों में पर्यावरण को बनाए रखने और सुरक्षित करने की उनकी जिम्मेदारी थी।
इसके अलावा यहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि जल और वायु प्रदूषण के कई गंभीर परिणाम हैं और प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार की आवश्यकता है, इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित (इंश्योर) करना सरकार का नैतिक दायित्व बन गया था। साथ ही, यह हमारे संविधान में दिए गए फंडामेंटल ड्यूटीज में से एक है जो पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों की ओर से नैतिक दायित्व भी बनाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह हमारे देश के सभी शिक्षण संस्थानों को नागरिकों को पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के बारे में सप्ताह में कम से कम एक घंटे सिखाने और प्रशिक्षित (ट्रेन) करने का निर्देश दे।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को उसी उद्देश्य के लिए पाठ्यपुस्तक (टेस्ट बुक) लिखने की जरूरत है। इन पाठ्यपुस्तकों को आगे हमारे देश के सभी शिक्षण संस्थानों में वितरित (डिस्ट्रीब्यूट) किया जाएगा। ऐसे शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण होना चाहिए जो बच्चों को इस तरह की शैक्षिक शिक्षा देने जा रहे हैं।
फंडामेंटल ड्यूटीज: कंस्टीट्यूशनल प्रावधानों की व्याख्या के लिए एक सहायता
सभी फंडामेंटल राइट्स और फंडामेंटल ड्यूटीज को एक साथ पढ़कर हम एक स्पष्ट समझ बना सकते हैं कि फंडामेंटल राइट्स और फंडामेंटल ड्यूटीज के बीच एक सीधा संबंध है। वे किसी न किसी तरह से जुड़े हुए हैं। अक्सर किसी के लिए उनसे संबंध बनाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन अगर हम इसे एक साथ पढ़ लें तो काम बहुत आसान हो जाता है। उदाहरण के लिए, आर्टिकल 21A, आर्टिकल 51A(k) के समान है। ये दोनों आर्टिकल 6-14 वर्ष के बीच के बच्चे की शिक्षा के बारे में बात करते हैं। जबकि आर्टिकल 21A ने स्टेट पर यह देखने का दायित्व रखा कि कोई भी शिक्षा के अधिकार से वंचित न हो, दूसरी ओर आर्टिकल 51A(k) यह सुनिश्चित करने के लिए नागरिक का कर्तव्य बनाता है कि कोई भी बच्चा स्कूल जाने के अधिकार से वंचित न रहे। इस प्रकार यहां बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के आर्टिकल 21A के तहत कांस्टीट्यूशनल प्रावधान का अंतिम उद्देश्य इस फंडामेंटल ड्यूटी (आर्टिकल 51A(k)) द्वारा प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार इस उदहारण से, हम स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि फंडामेंटल ड्यूटीज किसी भी कांस्टीट्यूशनल प्रावधान की व्याख्या में मदद करते हैं।
हम फंडामेंटल ड्यूटीज के महत्व को केवल इसलिए नकार नहीं सकते क्योंकि वे कोर्ट में लागू नहीं करवाए जाते हैं। एक और उदाहरण लेंते है, आर्टिकल 21 जो “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” के बारे में बात करता है, यह आर्टिकल 51A(g) द्वारा प्राप्त किया गया है जो एक फंडामेंटल ड्यूटी है। जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार भीbशामिल है। यह (आर्टिकल 21) सुप्रीम कोर्ट द्वारा पॉजिटिव तरीके से समझाया गया है और सुप्रीम कोर्ट ने माना कि “जीवन के अधिकार” का अर्थ है “स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार”। साथ ही आर्टिकल 51A(g) की बात करें तो यह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने की नागरिक की ड्यूटी बनाता है। इस प्रकार यहाँ भी हम देख सकते हैं कि एक स्वस्थ वातावरण प्राप्त करने के नागरिक के अधिकार को अंत में इसकी रक्षा करना नागरिक की फंडामेंटल ड्यूटी बनाकर प्राप्त किया जाता है।
एम्स छात्र यूनियन बनाम एम्स, एआईआर 2001 एससी 3262
एम्स छात्र यूनियन बनाम एम्स के मामले में, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के स्नातकोत्तर (पोस्टग्रेजुएशन) चिकित्सा पाठ्यक्रमों (कोर्सेज) के लिए प्रवेश प्रक्रिया में आरक्षण (रिजर्वेशन) पर योग्यता (अंकों के आधार पर) की परीक्षा थी।
इस मामले में तीन मेधावी (मेरिटोरियस) छात्रों ने प्रेस्टिजियस इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में प्रवेश पाने के उद्देश्य से रिट याचिका दायर कर दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। यहां इस संस्थान से ही ग्रेजुएशन करने वालों के लिए 33% सीटों का आरक्षण था। मुद्दा यह उठाया गया कि क्या एम्स को छात्रों को ऐसा आरक्षण देने का अधिकार है। यहां सुप्रीम कोर्ट ने खुद कॉलेज के छात्र के लिए एक सीट आरक्षित करना और एम्स के ऐसे कार्यों को रद्द करना अनुचित पाया क्योंकि यह संविधान के खिलाफ थे।
यहां सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि हालांकि फंडामेंटल ड्यूटी कोर्ट की रिट द्वारा लागू नहीं हो सकती हैं, वे कंस्टीट्यूशनल प्रावधान की व्याख्या में एक मूल्यवान मार्गदर्शन (गाइड) प्रदान करती हैं। यहां, इस मामले में, स्टेट (जिसमें हमारे देश के नागरिक शामिल हैं) ने फंडामेंटल ड्यूटी का ध्यान रखा है, अर्थात राष्ट्र की बेहतरी के लिए व्यक्तियों की उत्कृष्टता और सामूहिक (कलेक्टिव) गतिविधि की दिशा में प्रयास किया है। फंडामेंटल ड्यूटीज स्टेट पर स्पष्ट रूप से कोई ड्यूटी नहीं डालती है, प्रत्येक व्यक्ति की ड्यूटी स्टेट की सामूहिक ड्यूटी बन गई है।
अरुणा रॉय बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, एआईआर 2002 एससी 3176
अरुणा रॉय बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के बहुत प्रसिद्ध मामले में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) दायर की गई थी। यह तर्क दिया गया था कि नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर स्कूल एज्यूकेशन (एनसीएफएसई) जिसे एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित (पब्लिश) किया गया था, कंस्टीट्यूशनल मैंडेट, धर्मनिरपेक्ष विरोधी (एंटी-सेक्युलर) और सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एज्यूकेशन (सीएबीई) के सुझाव के बिना था और इसलिए इसे रद्द करने की आवश्यकता थी। एनसीएफएसई के कार्यान्वयन को चुनौती दी गई थी क्योंकि इसे सीएबीई की मंजूरी नहीं मिली थी। इसके अलावा, एनसीएफएसई को संविधान के खिलाफ पाया गया था क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करता था।
हालांकि, याचिका को रद्द कर दिया गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को फ्रेमवर्क (एनसीएफएसई) को रद्द करने का कोई कारण नहीं मिला था। हमारे संविधान में क्या दिया गया है कि छात्रों को सिखाया जाना चाहिए कि हर धर्म समान है? आगे आर्टिकल 51A(e) स्पष्ट रूप से इस स्थिति की व्याख्या करता है। इस फंडामेंटल ड्यूटी के अनुसार भिन्न धर्म के लोगों के बीच सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देना नागरिक की ड्यूटी है और सत्य, सही आचरण, प्रेम और शांति जैसे इन सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) मूल्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा का आधार होना चाहिए।
गुजरात स्टेट बनाम मिर्जापुर मोती कुरैशी कसाब जमात, एआईआर 2006 एससी 212
आजकल एक सबसे बड़ा मुद्दा जो अक्सर चर्चा में रहता है वह गोहत्या को लेकर है। गुजरात स्टेट बनाम मिर्जापुर मोती कुरैशी कसाब जमात का मामला स्पष्ट रूप से गोहत्या के सभी पहलुओं की व्याख्या करता है। याचिका बॉम्बे एनिमल प्रिजर्वेशन में किए गए अमेंडमेंट्स को चुनौती देते हुए दायर की गई थी और यह अमेंडमेंट गुजरात स्टेट पर लागू था। अमेंडमेंट में बैल और बैलों के वध (स्लॉटर) पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था। याचिका में चुनौती दी गई थी कि चूंकि 16 साल से अधिक उम्र की गायों और बैलों से कोई आर्थिक लाभ नहीं होता है, इसलिए जो लोग ऐसा करने के इच्छुक (विलिंग) हैं, वह इनका वध कर सकते है।
हालांकि, एपेक्स कोर्ट ने माना कि गुजरात की अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी) अभी भी कृषि पर निर्भर है। कृषि प्रक्रियाओं में, इन जानवरों का बहुत महत्व है। इसलिए, यह इन जानवरों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। इनका उपयोग पुराने होने के बाद बायोगैस बनाने के लिए किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि अमेंडमेंट हमारे संविधान के आर्टिकल 14 और आर्टिकल 19 का उल्लंघन नहीं करते हैं क्योंकि इस अमेंडमेंट ने नागरिक के इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगा दिया है।
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि आर्टिकल 51A(g) के अनुसार, जो नागरिकों पर पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने के लिए एक ड्यूटी रखता है और जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित पर्यावरण को बेहतर बनाता है। तो कोर्ट ने कहा कि हमारे संविधान के इस आर्टिकल के अनुसार स्टेट पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कानून बना सकता है। यह आर्टिकल हमारे संविधान के आर्टिकल 21 की व्याख्या में मदद करता है जिसके अनुसार जैसा कि इस लेख में पहले उल्लेख किया गया है, स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार के बारे में बात करता है।
भारत सरकार बनाम जॉर्ज फिलिप, एआईआर 2007 एससी 705
भारत सरकार बनाम जॉर्ज फिलिप के इस प्रसिद्ध मामले में, अनिवार्य सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) के उद्देश्य को प्रतिवादी (रिस्पॉन्डेंट) द्वारा चुनौती दी गई थी। प्रतिवादी, जो बार्क केंद्र में काम करता था, को डिपार्टमेंट द्वारा उसकी सेवा के प्रारंभ में 2 वर्ष शेष रहने की अनुमति दी गई थी। यह उन्हें उन्नत शोध (एडवांस्ड रिसर्च) प्रशिक्षण करने के लिए दिया गया था। कई अनुस्मारक (रिमाइंडर) के बाद, याचिकाकर्ता विदेश में रहा और उसी उद्देश्य के लिए एक जांच गठित की गई थी और उसके खिलाफ आरोप साबित हुआ था। उन्हें (हाई कोर्ट का निर्णय) उनकी सेवा में शामिल होने की अनुमति दी गई थी, लेकिन उन दिनों के लिए कोई मजदूरी देने का निर्णय नहीं लिया गया था, और वे सेवा में शामिल नहीं हो पाए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया था। अपने फैसले के पीछे सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया तर्क यह था कि पहले का फैसला यानी हाई कोर्ट का फैसला आर्टिकल 51A(j) के खिलाफ था।
आर्टिकल 51A(j) स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी व्यक्ति के जीवन के सभी क्षेत्रों में हमेशा उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना एक व्यक्ति की ड्यूटी है और यह सामूहिक गतिविधि के बारे में भी बात करता है ताकि राष्ट्र ऊंचा उठे और ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक कर्मचारी अनुशासन (डिसिप्लिन) बनाए नही रखते हैं।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
अंत में, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इस लेख में हमें फंडामेंटल ड्यूटीज के हर पहलू के बारे में पता चला है और इसके हर पहलू को पढ़कर हम फंडामेंटल ड्यूटीज की आवश्यकता और महत्व को स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं। इसे हमारे संविधान में जोड़ा गया क्योंकि हमारी सरकार ने महसूस किया कि एक नागरिक समाज (इस लेख में पहले चर्चा की गई) केवल स्टेट द्वारा नहीं बनाया जा सकता है। हमारे देश के नागरिकों को हमारे संविधान के मूल उद्देश्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है। वे हमारे संविधान के आर्टिकल 51A में वर्णित राष्ट्र के प्रति अपनी ड्यूटीज का पालन करके ऐसा कर सकते हैं।
साथ ही यदि कोई व्यक्ति उन्हें सौंपे गए ड्यूटी का पालन नहीं करता है तो वह कोई अधिकार नहीं मांग सकता है।
संदर्भ (रेफरेंसेस)
- SCC Online.
- D.D. Basu -” Constitution of India”