सार्वजनिक दुराचार

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यह लेख Shivani Verma द्वारा लिखा गया है, और बाद मे  Shreeji Saraf द्वारा अद्यतन (अपडेट) किया गया है। इस लेख का उद्देश्य सार्वजनिक दुराचार की समस्या पर गहराई से जानकारी उपलब्ध कराना है। इसमें अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, जैसे कि सार्वजनिक दुराचार के कारण, महिलाओं पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है तथा इस मुद्दे के लिए मौजूद कानूनी ढांचे आदि। इसके अतिरिक्त, इसमें सार्वजनिक दुराचार के पीछे के मनोवैज्ञानिक कारण और सार्वजनिक दुराचार से बचने के लिए बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भी बताया गया है। इस लेख का अनुवाद Chitrangda Sharma के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

दुनिया भर में महिलाएं किसी न किसी रूप में प्रतिदिन सार्वजनिक दुराचार या यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। सार्वजनिक दुराचार को महिलाओं के प्रति यौन उत्पीड़न का एक प्रकार कहा जा सकता है। अजीब बात यह है कि महिलाओं को कार्यस्थल पर भी इस तरह के अपराधों का सामना करना पड़ता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। सार्वजनिक दुराचार का वह रूप जिसमें मौखिक और शारीरिक कृत्य शामिल हो सकते हैं। ये क्रियाएं आकस्मिक स्पर्श, सीटी बजाना, गाना गुनगुनाना आदि का भी रूप ले सकती हैं। इस कृत्य को प्रायः लिंग आधारित अपराध माना जाता है। यह देखना बहुत दुःखद है कि इस दुनिया में, जहां देश विकासशील हैं और लोग शिक्षित हैं, इस प्रकार के अपराधों में प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। 

सार्वजनिक दुराचार का क्या मतलब है?

सार्वजनिक दुराचार तब किया जाता है जब किसी सार्वजनिक स्थान पर किसी महिला के प्रति प्रतिकूल या अनुचित टिप्पणी की जाती है। सार्वजनिक स्थानों में सार्वजनिक वाहन, सड़कें, मॉल आदि शामिल होंगे। भारतीय कानून में सार्वजनिक दुराचार का अर्थ वर्णित या उल्लेखित नहीं किया गया है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह उस महिला को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है जो स्वयं पीड़ित है। 

सार्वजनिक दुराचार को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि जब महिलाओं पर मौखिक रूप से या अश्लील संकेतों के माध्यम से शारीरिक हिंसा या यौन उत्पीड़न किया जाता है। सार्वजनिक दुराचार शब्द को महिलाओं के उत्पीड़न के रूप में भी लिया जा सकता है। दक्षिण एशिया में, सार्वजनिक दुराचार को पुरुषों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के साथ किए जाने वाले यौन उत्पीड़न के लिए एक वैकल्पिक शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

सार्वजनिक दुराचार का हिंदी में मतलब

हिंदी में सार्वजनिक दुराचार को “छेड़-खानी” कहा जाता है।

सार्वजनिक दुराचार के पीछे का इतिहास

1970 के दशक में सार्वजनिक दुराचार की समस्या पर जनता और मीडिया का ध्यान गया। बाद में अधिकाधिक महिलाएं स्वतंत्र होने लगीं। वे अक्सर कार्यस्थलों, महाविद्यालयो आदि में जाने लगीं, जिसका अर्थ था कि अब उनके साथ पुरुष नहीं होते थे, जिसे पारंपरिक समाज में एक आदर्श माना जाता था। 

सार्वजनिक दुराचार जैसे सामाजिक मुद्दे को लेकर चिंता बढ़ रही थी, जो खतरनाक दर से बढ़ रहे थे। इसकी तत्काल आवश्यकता थी और भारत सरकार ने महसूस किया कि सार्वजनिक दुराचार की इन घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने न्यायिक और कानून प्रवर्तन दोनों ही तरीकों को अपनाया। पुलिस को जागरूक करने और इन कृत्यों को रोकने की आवश्यकता के महत्व को समझाने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए है। 

पुलिस द्वारा उठाए गए कदम

सार्वजनिक दुराचार की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस अधिकारियों ने जो पहल की, उनमें से कुछ यह थीं कि महिला अधिकारियों ने आम लोगों की तरह कपड़े पहनना शुरू कर दिया, ताकि अपराधी उन्हें पहचान न सकें और यदि वे सार्वजनिक दुराचार करने का प्रयास करें, तो ऐसे अधिकारी उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकें। कुछ राज्यों में पुलिस ने इस संबंध में कई अन्य कदम भी उठाए। पुलिस ने विभिन्न शहरों में महिलाओं के लिए समर्पित हेल्पलाइन स्थापित की तथा विशेष पुलिस प्रकोष्ठों और विभिन्न पुलिस थानों में महिलाओं को तैनात किया गया। 

प्रतिशोध के भय और सार्वजनिक शर्म के कारण कई मामले दर्ज नहीं कराए जाते। वर्ष 2008 में, 19 वर्ष की आयु के एक लड़के को राह चलती महिलाओं पर अश्लील और अभद्र टिप्पणियाँ करने के आरोप में पकड़ लिया गया था। परिणामस्वरूप, दिल्ली की एक अदालत ने एक आदेश पारित किया, जिसमें युवक को उसके अभद्र आचरण के लिए दंड के रूप में विद्यालयो और महाविद्यालयो के बाहर 500 पर्चे बांटने का निर्देश दिया गया। 

राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कदम

इस प्रथा के खिलाफ बदलते जनमत के कारण, इस अवधि में बहुत सारी महिलाएं इस मुद्दे की रिपोर्ट करने के लिए आगे आईं। लेकिन कुछ मामलों में ये घटनाएँ अधिक गंभीर हो गईं। एसिड फेंकने से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई, जिसके कारण तमिलनाडु जैसे राज्यों ने इसे गैर-जमानती अपराध घोषित कर दिया। 

महिला संगठनों की संख्या में चिंताजनक दर से वृद्धि हुई। 1970 के दौरान दुल्हनों को जलाने से संबंधित रिपोर्टें बढ़ गईं। महिलाओं से संबंधित अपराधों के प्रति लोगों के उदार रवैये को बदलने के लिए कई कानून लागू किए गए, जैसे कि दिल्ली सार्वजनिक दुराचार निषेध विधेयक, 1984। 

1998 में एक मामला सामने आया जिसमें एक छात्रा सारिका शाह की मृत्यु हो गई। इसके परिणामस्वरूप इस समस्या से निपटने के लिए कुछ कठोर कानून लागू किये गये। महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने चार लोगों पर इसलिए हमला कर दिया क्योंकि उन्होंने एसडी होटल में रहने वाली एक लड़की के बारे में कुछ अश्लील और घटिया टिप्पणियां की थीं। 

सार्वजनिक दुराचार से संबंधित कानूनी प्रावधान

भारतीय न्याय संहिता, 2023

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) (जिसने भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान लिया) में लिंग आधारित अपराध से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान हैं। ऐसे कृत्यों या आचरण के लिए जो महिलाओं के सम्मान या गरिमा को नुकसान पहुंचाते हैं या उन्हें चोट पहुंचाते हैं, उन्हें बीएनएस की धाराओं द्वारा समझा जाता है। बीएनएस. की धारा 296 और धारा 79 (पहले यह क्रमशः आई.पी.सी. की धारा 294 और धारा 509 थी) इससे संबंधित दो धाराएं हैं। 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 296

यदि किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई ऐसा कार्य किया जाता है जो अश्लील प्रकृति का है जैसे कोई अश्लील गीत या शब्द गाना, सुनाना या बोलना, और ऐसे कार्यों के कारण किसी अन्य व्यक्ति को परेशानी होती है, तो यह बीएनएस की धारा 296 के अनुसार अपराध माना जाएगा। उल्लिखित धारा ऐसे कृत्यों के अपराधी को दंडित करना अनिवार्य बनाती है। 

इस धारा के अनुसार ऐसे अपराध के लिए निर्धारित सजा 3 महीने तक का कारावास या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकती है। इस धारा में अपराधी या पीड़ित के रूप में किसी विशिष्ट लिंग का उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए पुरुष और महिला दोनों ही पीड़ित या अपराधी हो सकते हैं। लगाया जाने वाला दंड इस बात पर निर्भर करेगा कि अपराध कितना गंभीर है। यह एक संज्ञेय (कॉग्निजियबल) एवं जमानती अपराध है तथा इसका मुकदमा किसी भी मजिस्ट्रेट के समक्ष चलाया जा सकता है। 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 79

यदि कोई व्यक्ति महिलाओं की गरिमा या शील को ठेस पहुंचाने के इरादे से कोई कार्य करता है, कोई ऐसा शब्द व्यक्त करता है या कोई ऐसा इशारा प्रदर्शित या प्रयोग करता है, तो ऐसे व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 79 के तहत दंडित किया जाएगा। इस धारा को सार्वजनिक दुराचार की धारा भी कहा जाता है। 

इस धारा को पढ़ने के बाद कोई भी व्यक्ति यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि इस प्रावधान या धारा को लागू करने के पीछे विधायिका का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना था, और यदि कोई ऐसा कार्य करता है, जिससे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचती है, तो उसे दंडित किया जाएगा। 

इस धारा के अंतर्गत अपराध के लिए सजा का प्रावधान है, जो कि कारावास है, जो तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है तथा जुर्माना है। लगाया जाने वाला दंड इस बात पर निर्भर करेगा कि अपराध कितना गंभीर है। 

इस धारा के अंतर्गत अपराध संज्ञेय एवं जमानती प्रकृति का है। इस धारा पर कोई भी मजिस्ट्रेट मुकदमा चला सकता है। हालांकि, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यह धारा केवल तभी लागू होगी जब अपराधी की ओर से किसी महिला का अपमान करने या उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का इरादा हो। 

सार्वजनिक दुराचार से संबंधित विशाखा दिशा-निर्देश

1997 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) मामले में विशाखा दिशानिर्देश निर्धारित किए थे। इन दिशानिर्देशों के तहत सभी संगठनों, चाहे वे सार्वजनिक हों या निजी, के लिए एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना अनिवार्य कर दिया गया, जहां यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर विचार किया जा सके। इन दिशानिर्देशों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि कार्यस्थल पर ऐसा वातावरण स्थापित हो जो उस विशेष कार्यालय या संगठन में काम करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित हो। ये दिशानिर्देश कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लागू किए गए थे। 

जब यह घटना घटी, उस समय कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई कानून मौजूद नहीं था। सार्वजनिक दुराचार और यौन उत्पीड़न के कृत्यों में शामिल अपराधियों को दंडित करने के लिए कोई उचित कानून मौजूद नहीं था। अधिकांश अपराधियों ने उस समय मौजूद कानूनों का अपने लाभ के लिए उपयोग किया था। 

इस घटना के बाद, महिलाओं के कई समूह सड़कों पर उतर आए और उन्होंने ऐसे कानूनों के अस्तित्व के प्रति अपनी चिंता और सम्मान व्यक्त किया, जो कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे और अपराधी को दंडित करेंगे। उन्होंने उचित कानून की मांग की, जिससे कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और दुष्प्रयोग को रोका जा सके। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की संख्या में वृद्धि हुई थी, तथा नए नियमों या कानूनों की तत्काल आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई। 

न्यायालय ने पहली बार विशाखा दिशानिर्देश निर्धारित करते हुए महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर सम्मेलन (सीईडीएडब्ल्यू) का उल्लेख किया। दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया कि यह नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि महिलाओं की सुरक्षा और यौन उत्पीड़न से संबंधित नियमों के बारे में जागरूकता फैलाई जाए। दिशानिर्देशों में न केवल ये बातें निर्धारित की गईं, बल्कि यह भी कहा गया कि संगठन को अपनी महिला कर्मचारियों या श्रमिकों के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण बनाना और सुनिश्चित करना चाहिए। 

विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हमें उन कृत्यों पर दिशा-निर्देश दिए जो यौन उत्पीड़न के दायरे में आते हैं। इन कृत्यों में शामिल हैं: 

  1. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, यदि कोई अवांछित यौन व्यवहार होता है,
  2. यदि किसी प्रकार का शारीरिक संपर्क या कोई अन्य चीज होती है,
  3. यदि कोई व्यक्ति यौन संबंधों के लिए कहता है या निर्देश देता है,
  4. इसमें यौन रूप से रंगीन टिप्पणियाँ शामिल हैं,
  5. किसी भी अन्य प्रकार का शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण जो यौन प्रकृति का है, यौन उत्पीड़न माना जाएगा।

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013

विशाखा दिशानिर्देशों को लागू करके, सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया और उल्लेख किया कि कार्यस्थलों और उच्च प्राधिकार या पदों पर बैठे लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वे वहां काम करने वाली महिलाओं की गरिमा और समानता बनाए रखें। कार्यस्थलों और संस्थानों को तीन प्रमुख आवश्यकताओं अर्थात निषेध, रोकथाम और निवारण का पालन करने को कहा गया। 

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम (जिसे पोश अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है) वर्ष 2013 में लागू किया गया था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कार्यस्थल पर महिलाओं को किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न का सामना न करना पड़े। यदि किसी महिला को किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तो यह अधिनियम महिला को नागरिक उपचार का अधिकार भी देता है। 

महाराष्ट्र राज्य बनाम अबरार नूर मोहम्मद खान (2022) के मामले में, पीड़िता एक 16 वर्षीय लड़की थी, और उसने अपने पड़ोस के एक लड़के के खिलाफ आईपीसी की धारा 354, 354D, 504 और 506 (वर्तमान में क्रमशः धारा 74, धारा 78, धारा 352 और धारा 351) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो) की धारा 12 के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। अभियुक्त पर पीड़िता पर टिप्पणी करने और टिप्पणी में उसे “आइटम” कहकर संबोधित करने का आरोप लगाया गया था। लड़के ने लड़की के बाल भी खींचे थे, जिससे स्पष्ट है कि उसका इरादा लड़की की शील भंग करने का था। 

अदालत ने आगे कहा कि पोक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने के लिए यह स्थापित करना आवश्यक है कि वह पोक्सो अधिनियम की धारा 2(d) के तहत उल्लिखित परिभाषा के अनुसार बच्ची है। इसके बाद अदालत ने पीड़िता का जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वह नाबालिग है और परिभाषा के अनुसार बच्ची है। दोषी को आईपीसी की धारा 354 और पोक्सो अधिनियम की धारा 12 के तहत दंडित किया गया था। 

कानूनी निवारण

पुरानी आईपीसी को अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 से प्रतिस्थापित कर दिया गया है। इस प्रकार, पीड़ित बीएनएस, 2023 की धारा 296 के तहत सहारा ले सकते हैं, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई पुरुष किसी लड़की या महिला को अश्लील इशारों, टिप्पणियों आदि का निशाना बनाता है तो उसे दोषी ठहराया जाएगा। हालाँकि, कानून हमें सार्वजनिक दुराचार की कोई परिभाषा नहीं देता है। 

बीएनएस की धारा 294 (पूर्व में आईपीसी, 1860 की धारा 292) के प्रावधानों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को कोई कामोद्दीपक चित्र या अश्लील चित्र, पुस्तक या कागजात दिखाता है या देखता है, तो उस अपराधी को 5,000 रुपये का जुर्माना और 2 साल तक के कारावास की सजा दी जाएगी। यदि अपराधी ने यह अपराध दूसरी बार किया तो उसे 5 वर्ष तक के कारावास के साथ-साथ 10,000 रुपये तक का जुर्माना भी देना होगा। 

यौन उत्पीड़न के विरुद्ध दण्ड को भारतीय न्याय संहिता की धारा 75 (पूर्व में धारा 354 A) के प्रावधान के अंतर्गत एक अभिव्यक्त अपराध बनाया गया है। यौन उत्पीड़न को किसी भी अवांछित यौन व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो कदाचार से लेकर सबसे गंभीर प्रकार के अपराध तक हो सकता है। इस धारा के प्रावधानों के अनुसार अपराधी को 3 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है। 

इसके अलावा, सार्वजनिक दुराचार के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) द्वारा (नया कानून) 1988 भी प्रस्तावित किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं को सार्वजनिक दुराचार और यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए लिंग आधारित कानून के लिए आधार प्रदान करना था। हालाँकि, इसे अधिनियमित नहीं किया गया। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 एक ऐसा कानून है जो पहले उल्लिखित कानून से प्रेरित है। यह कार्यस्थल पर महिला श्रमिकों को सार्वजनिक दुराचार सहित विभिन्न प्रकार के यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है। 

सार्वजनिक दुराचार के प्रकार

2013 से पहले यौन उत्पीड़न कानून का दायरा संकीर्ण था। इससे पहले इसमें भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 294, धारा 354 और धारा 509 (वर्तमान में क्रमशः बीएनएस की धारा 296, धारा 74 और धारा 79) शामिल थीं। लेकिन आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के पारित होने के बाद, इसमें बीएनएस की धारा 76 (पूर्व में आईपीसी की धारा 354B) के तहत विवस्त्र करना, बीएनएस की धारा 77 (पूर्व में आईपीसी की धारा 354C) के तहत दृश्यरतिकता (वॉयेरिज्म) और बीएनएस की धारा 78 (पूर्व में आईपीसी की धारा 354D) के तहत पीछा करना भी शामिल है। 

सार्वजनिक दुराचार के प्रकार बीएनएस की धारा  विवरण दंड अपराध का वर्गीकरण
अश्लील कृत्य और गाने धारा 296 यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति के प्रति कोई ऐसा कार्य करता है जो अश्लील प्रकृति का है, जैसे कोई अश्लील गीत या शब्द गाना, सुनाना या बोलना तथा ऐसे कृत्यों के कारण किसी अन्य व्यक्ति को परेशानी होती है तो यह अपराध माना जाएगा। अधिकतम तीन माह तक का कारावास या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों। जमानती एवं संज्ञेय अपराध।
एक महिला की शील भंग करना धारा 74 यदि कोई व्यक्ति किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है और ऐसा जानबूझकर महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए करता है। न्यूनतम 1 वर्ष का कारावास तथा अधिकतम 5 वर्ष का कारावास और जुर्माना हो सकता है। गैर-जमानती एवं संज्ञेय अपराध।
किसी महिला की शील का अपमान करना धारा 79 यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की गरिमा या शील को ठेस पहुंचाने के इरादे से कोई कार्य करता है, कोई शब्द बोलता है, प्रदर्शित करता है या कोई इशारा करता है, तो ऐसे व्यक्ति को दंडित किया जाएगा। अधिकतम 3 वर्ष का कारावास और जुर्माना। जमानती एवं संज्ञेय अपराध।
यौन उत्पीड़न धारा 75 यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई अश्लील सामग्री दिखाता है या अपराधी कोई नकारात्मक टिप्पणी करता है या यौन अपराध करने के लिए कहता है, तो अपराधी द्वारा किया गया यह अपराध यौन उत्पीड़न के अंतर्गत आएगा। अधिकतम 3 वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों। यौन सूचक टिप्पणी के मामले में सजा एक वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों है। गैर-जमानती अपराध और संज्ञेय अपराध।
विवस्त्र करना   धारा 76 यदि कोई व्यक्ति किसी महिला के विरुद्ध किसी आपराधिक बल का प्रयोग करने का प्रयास करता है, जिसका उद्देश्य या तो उसे निर्वस्त्र करना हो या उसे नग्न होने के लिए मजबूर करना हो, तो उसे इस धारा के अंतर्गत उत्तरदायी ठहराया जाएगा। न्यूनतम 3 वर्ष का कारावास, लेकिन इसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है तथा जुर्माना भी लगाया जा सकता है। गैर-जमानती एवं संज्ञेय अपराध।
दृश्यरतिकता  धारा 77 यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की जासूसी करता है जो अंतरंग व्यवहार, कपड़े उतारने, यौन क्रियाकलाप या किसी भी ऐसे कार्य में संलग्न है जिसे निजी प्रकृति का माना जाता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत उत्तरदायी ठहराया जाएगा। न्यूनतम 1 वर्ष का कारावास, जिसे 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है तथा जुर्माना लगाया जा सकता है। दोबारा दोष सिद्ध होने पर, सजा न्यूनतम 3 वर्ष का कारावास होगी, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है तथा जुर्माना लगाया जा सकता है। जमानती अपराध। बाद के अपराध के मामले में, यह दोनों मामलों में गैर-जमानती और संज्ञेय है।
पीछा करना  धारा 78 अगर कोई पुरुष किसी महिला का पीछा करता है या उससे संपर्क करता है, भले ही महिला ने कई बार ऐसा करने में रुचि न दिखाई हो, तो वह इस धारा के तहत अपराध करता है। यह शारीरिक और इलेक्ट्रॉनिक दोनों तरह से हो सकता है। अधिकतम 3 वर्ष का कारावास और जुर्माना। दोबारा दोष सिद्ध होने पर कारावास 5 वर्ष तक होगा। जमानती अपराध। बाद के अपराध के मामले में, यह गैर-जमानती है और यह दोनों मामलों में संज्ञेय है

इसके अलावा, पोश अधिनियम जैसे अन्य विशेष कानून भी हैं, जो कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में यौन उत्पीड़न को विशेष रूप से दंडित करते हैं, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है। हालाँकि, बीएनएस एक सामान्य दंड संहिता है, जो सामान्य रूप से सार्वजनिक दुराचार जैसे अपराधों के लिए प्रावधान करती है।

जनता की प्रतिक्रिया

2002 में सार्वजनिक दुराचार की घटनाओं में वृद्धि के बाद, निर्भय कर्नाटक (जिसे फियरलेस कर्नाटक के नाम से भी जाना जाता है) जैसे संगठन और आंदोलन पूरे भारत में फैल गए। निर्भय कर्नाटक, वैकल्पिक कानून मंच, ब्लैंक नॉइज, मारा, संवाद और विमोचना सहित कई व्यक्तियों और समूहों के बीच एक प्रकार का गठबंधन है, जिसने टेक बैक द नाइट जैसी परियोजनाओं सहित विभिन्न जन जागरूकता अभियान आयोजित किए। ब्लैक नॉइज़ परियोजना 2003 में शुरू की गई थी। वर्ष 2008 में सार्वजनिक दुराचार के विरुद्ध एक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था। 

वर्ष 2010 में आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए शहर की व्यवस्था और संयोजन हेतु महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा एक संचालन समिति गठित की गई थी। मुंबई में एक बड़ी पहल की गई जब महिलाओं के लिए एक अलग विशेष डिब्बा शुरू किया गया, जहां वे बिना किसी सार्वजनिक दुराचार के डर के यात्रा कर सकती थीं और इस डिब्बे का नाम ‘लेडीज स्पेशल’ रखा गया। यहां तक कि मेट्रो में भी महिलाओं के लिए अलग कोच शुरू किए गए हैं। 

सार्वजनिक दुराचार को मीडिया और फेसबुक जैसी सोशल मीडिया वेबसाइटों से काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। इस मुद्दे पर कई आंदोलन हुए हैं, जिनमें #मीटू आंदोलन भी शामिल है, जिसमें यौन उत्पीड़न पीड़ितों और सार्वजनिक दुराचार से पीड़ित दोनों को शामिल किया गया। #मीटू आंदोलन वह आंदोलन था जिसके तहत यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर जागरूकता फैलाई गई। इससे कई महिलाओं को अपने भयावह अनुभवों को सामने लाने में मदद मिली। 

सार्वजनिक दुराचार को दीवानी अपराध या आपराधिक अपराध के रूप में मान्यता दी गई

सार्वजनिक दुराचार के कृत्य को एक दीवानी अपराध माना जाता है, क्योंकि यह देखा गया है कि इस कृत्य से न केवल शारीरिक क्षति होती है, बल्कि पीड़ित को मानसिक क्षति और क्षति भी होती है। इस अधिनियम को महिलाओं की निजता और सम्मान के अधिकार में अतिक्रमण, हमला या आक्रमण माना गया है। वहीं भारतीय न्याय संहिता, 2023 में भी सार्वजनिक दुराचार से संबंधित कई प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। 

सार्वजनिक दुराचार मूलतः एक दृष्टिकोण या मानसिकता है जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार द्वारा दर्शायी जाती है। उप पुलिस महानिरीक्षक बनाम एस. समुथिरम (2012) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सार्वजनिक दुराचार एक ऐसा आचरण है जिसके लिए दंडात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है, लेकिन यह केवल एक राज्य में देखा जाता है, जो तमिलनाडु राज्य है, क्योंकि उनके पास इससे निपटने के लिए एक विशिष्ट कानून है, जिसका नाम है तमिलनाडु सार्वजनिक दुराचार निषेध अधिनियम, 1998 है। 

1998 में सार्वजनिक दुराचार के कारण एक महिला की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद सरकार ने एक अध्यादेश लाया जिसे तमिलनाडु सार्वजनिक दुराचार निषेध अध्यादेश, 1998 के नाम से जाना जाता है। सरकार का मानना है कि सार्वजनिक दुराचार एक बुराई है जिसे समाज से समाप्त किया जाना चाहिए, इसलिए तमिलनाडु राज्य सरकार ने विशेष अधिनियम बनाया। यह अधिनियम सार्वजनिक दुराचार की परिभाषा प्रदान करता है। 

इस अधिनियम के अनुसार, सार्वजनिक दुराचार का अर्थ है कि कोई व्यक्ति जिसका आचरण इस प्रकार का हो कि वह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास करता हो और ऐसा कृत्य महिला के मन में भय उत्पन्न करने या महिलाओं के विरुद्ध बल प्रयोग करने का कारण बनता हो, तो इसे सार्वजनिक दुराचार कहा जाएगा। सार्वजनिक दुराचार का दायरा बढ़ाकर इसमें शैक्षणिक संस्थान, मंदिर, पूजा स्थल, बस स्टॉप, सड़क, रेलवे आदि जैसे स्थानों को भी शामिल कर दिया गया। यदि इनमें से किसी भी स्थान पर सार्वजनिक दुराचार की घटना घटित होती है तो इसे अपराध माना जाएगा। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक दुराचार एक दीवानी अपराध के साथ-साथ एक आपराधिक अपराध भी है। 

सार्वजनिक दुराचार निजता के अधिकार का उल्लंघन के रूप में

सार्वजनिक दुराचार के कृत्य को संवैधानिक रूप से भी अनैतिक माना जाता है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति के निजी जीवन में हस्तक्षेप करके उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है क्योंकि यह न केवल महिला की गरिमा को प्रभावित करता है, बल्कि उसके आत्मसम्मान को भी प्रभावित करता है। 

सार्वजनिक दुराचार के प्रभाव

महिलाओं की दुर्दशा

सार्वजनिक दुराचार की समस्या के कारण महिलाओं को जो परिणाम भुगतना पड़ता है, वह विनाशकारी होता है। इससे न केवल उनकी भावनात्मक भलाई प्रभावित होती है, बल्कि व्यक्ति को भावनात्मक आघात भी पहुँच सकता है। इसके परिणामस्वरूप प्रायः उनका आत्म-सम्मान कम हो जाता है और वे सार्वजनिक स्थानों पर जाने से डरते हैं। महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर जाने में सुरक्षित महसूस नहीं करतीं हैं। इसके अलावा, महिलाएं कुछ सीमाएं भी तय करती हैं, जैसे वे देर रात तक काम करने से बचती हैं। इस तरह उनकी आज़ादी पर प्रतिबंध लग जाते हैं। महिलाएं अपने पहनावे में भी बदलाव करती हैं। 

समाज पर प्रभाव

सार्वजनिक दुराचार की गतिविधियों में वृद्धि के बारे में लगातार चिंता बनी हुई है। समाज अक्सर महिलाओं को आसान निशाना बना देता है और स्पष्ट रूप से यह बता देता है कि इन कार्यों के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। वे इस कृत्य को हानिरहित मानते हैं तथा इसके प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखाते हैं। इस मुद्दे के बारे में लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है। एक समाज के रूप में सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए और यह एक गंभीर मामला है, मजाक का विषय नहीं है। इससे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचती है। 

सबसे खराब स्थिति में, सार्वजनिक दुराचार कई जघन्य अपराधों की पहली सीढ़ी बन सकती है। महिलाओं के साथ सार्वजनिक दुराचार से शुरुआत हो सकती है, जिसके बाद यह एसिड हमला, बलात्कार, व्यपहरण आदि जैसे अपराधों में बदल जाता है। इसकी शुरुआत छोटे कदमों और कार्रवाइयों से होती है, जैसे सार्वजनिक दुराचार करना, पीछा करना, हल्का उत्पीड़न और यदि समय रहते इसे न रोका जाए तो यह बहुत बड़े स्तर पर पहुंच जाती है। उदाहरण के लिए, जब कोई पुरुष मादा के पास जाता है और मादा बदले में नर को धमकाना शुरू कर देती है, तो इससे पुरुष के अहंकार को ठेस पहुंचती है। इसके परिणामस्वरूप, अपराधी उस महिला का पीछा करना शुरू कर देता है और अंततः उस महिला का अपहरण कर लेता है या इससे भी बुरा कुछ कर सकता है। 

कानून बनाने के क्षेत्र में अनेक प्रयास हुए हैं, लेकिन इसके समुचित क्रियान्वयन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। सार्वजनिक दुराचार के मुद्दे पर जागरूकता फैलाने की जरूरत है और दूसरी ओर लोगों को महत्वपूर्ण विषयों जैसे सहमति एक महत्वपूर्ण कारक है, लैंगिक समानता आदि पर शिक्षित करने की जरूरत है। ऐसा वातावरण और समाज बनाना जहां महिलाएं सुरक्षित और सम्मानित हों। 

सार्वजनिक दुराचार के पीछे का मनोविज्ञान

जो भी महिला किसी न किसी तरह से घर से बाहर निकलती है, उसे सार्वजनिक दुराचार की समस्या का सामना करना पड़ता है। चाहे वह सिनेमा हॉल, सार्वजनिक परिवहन, कार्यस्थल, सड़क आदि कोई भी स्थान हो, किसी न किसी रूप में सार्वजनिक दुराचार होता रहता है। कुछ स्थितियों में, जब पुरुष किसी महिला से उसका फोन नंबर मांगते हैं और उन्हें वह नहीं मिलता, तो इससे उनके पुरुष अहंकार को ठेस पहुंचती है। उदाहरण के लिए, किसी पार्टी में कोई लड़की अपने दोस्तों के साथ कुछ मनाने गई है और कई बार ऐसा हुआ है कि लड़के लड़की के पास आते हैं और उससे उसका नंबर मांगते हैं। पुरुष उनसे बात करने की कोशिश भी करते हैं लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता। ऐसा लगता है कि उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची है और वे अपने अहंकार में आकर महिलाओं को धमकाने की कोशिश करते हैं। इससे सार्वजनिक दुराचार की घटना घट सकती है।

आज के समाज में सार्वजनिक दुराचार की समस्या आम होती जा रही है, क्योंकि इसका एक प्रमुख कारण लोगों में ज्ञान या शिक्षा की कमी है। वर्तमान समाज में लैंगिक असमानता अभी भी मौजूद है और यह इसके पीछे एक कारण भी हो सकता है। 

वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए, यह देखा गया है कि सिनेमा और टीवी शो का लोगों के दिमाग पर बहुत अधिक प्रभाव और छाप है और यह देखा गया है कि इस तरह की छाप या प्रभाव के तहत, पुरुष महिलाओं को अपनी निजी वस्तु या सामान के रूप में मानते हैं। 

लोकप्रिय संस्कृति में चित्रण

फिल्मों में दिखाया गया है कि एक लड़का पहले लड़की के साथ सार्वजनिक दुराचार करने की कोशिश करता है, जिसके साथ गाना भी होता है और बदले में लड़की लड़के के सामने आत्मसमर्पण कर देती है, यह अक्सर युवा पुरुषों को एक उदाहरण के रूप में अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है। यहां तक कि रोडसाइड रोमियो शब्द का इस्तेमाल फिल्म रोडसाइड रोमियो (2007) में भी किया गया था। 

लोकप्रिय संस्कृति में यह भी दर्शाया गया है कि यदि कोई लड़की मुसीबत में है और लड़के उसे छेड़ रहे हैं तो नायक आता है और लड़की को बचाने के लिए उनसे लड़ता है। इस प्रकार के उदाहरण या चित्रण बॉलीवुड फिल्मों जैसे कबीर सिंह, एनिमल, मैं तेरा हीरो आदि में दिखाए गए हैं। 

सार्वजनिक दुराचार की शिकायत

जो व्यक्ति सार्वजनिक दुराचार की घटना का शिकार हुआ है, उसे तुरंत अपने नजदीकी पुलिस थाने या महिला पुलिस थाने में एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज करानी चाहिए। यह ध्यान रखना उचित होगा कि यदि एफआईआर दर्ज की जाती है तो पीड़ित को उसकी एक प्रति उपलब्ध कराई जाती है। दूसरी ओर, पीड़ित को एफआईआर दर्ज होने के बाद उसकी प्रति लेने का अधिकार और दायित्व भी है। 

चूंकि पीड़िता एक महिला है, इसलिए वह पुलिस से अपने घर आने और घटना के संबंध में आगे की पूछताछ करने के लिए भी कह सकती है। पीड़िता घटना के समय 100 (पुलिस कंट्रोल रूम) या 1091 (महिला हेल्पलाइन नंबर) पर भी कॉल कर सकती है।  

महिलाओं और उत्पीड़न पीड़ितों की बेहतर सुरक्षा के लिए जीरो एफआईआर का प्रावधान शुरू किया गया है, जिसके अनुसार पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकते, भले ही संबंधित मामला पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में न आता हो। जीरो एफआईआर के प्रावधान से बाद में शिकायत को उस पुलिस थाने में हस्तांतरित किया जा सकता है, जिसके अंतर्गत मामला आता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 173 (पहले यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154(1) के अंतर्गत आती थी) में शून्य एफआईआर का प्रावधान है। यह अवधारणा 2012 में दिल्ली में निर्भया सामूहिक बलात्कार के क्रूर मामले में पेश की गई थी और यह न्यायमूर्ति वर्मा समिति के मार्गदर्शन और निर्देशन में थी। 

सार्वजनिक दुराचार की शिकायत पत्र

संबंधित क्षेत्र में सार्वजनिक दुराचार के खिलाफ पुलिस अधीक्षक या किसी भी पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को पत्र लिखा जा सकता है। शिकायत पत्र का प्रतिदर्श (सैम्पल) इस प्रकार दिया गया है: 

सेवा में, 

पुलिस अधीक्षक

नई दिल्ली-110052

विषय: कस्बे में सार्वजनिक दुराचार के विरुद्ध शिकायत पत्र

आदरणीय महोदय,

मैं शिवानी वर्मा हूँ और अशोक विहार इलाके से हूँ। हाल ही में हमारे इलाके में स्थानीय पुरुषों द्वारा सार्वजनिक दुराचार की कई घटनाएँ हुई हैं। वे पुरुष आमतौर पर महिलाओं के खिलाफ अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हैं या अभद्र टिप्पणियां करते हैं। हमारे क्षेत्र में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं। कल, मेरी पड़ोसन के साथ ऐसा ही हुआ जो अपने महाविद्यालय से वापस आ रही थी। कृपया इस बारे में सोचें क्योंकि यह समस्या खतरनाक दर से बढ़ रही है। 

इसलिए, मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि इस क्षेत्र में अधिक पुलिस बल तैनात करें और इस मुद्दे पर सख्त कार्रवाई करें। 

सादर,

शिवानी वर्मा

इसके बाद पीड़ित पत्र में अपना संपर्क विवरण भी संलग्न कर सकती है या इसे और अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए कोई साक्ष्य (तस्वीर या अन्य) भी जोड़ सकती है। जो लोग गुमनाम रूप से रिपोर्ट करना चाहते हैं, उनके लिए ईमेल बेहतर होगा, लेकिन पत्र से भी ऐसा किया जा सकता है। उन्हें या तो पत्र में यह उल्लेख करना होगा कि वे गुमनाम रहना चाहते हैं या फिर अपने बारे में अधिक विवरण दिए बिना ही पत्र को डाक द्वारा भेजना होगा। 

इसके अलावा, किसी अख़बार के संपादक को भी सार्वजनिक दुराचार की शिकायत लिखी जा सकती है। शिकायत पत्र का प्रतिदर्श नीचे दिया गया है: 

संपादक,

द टाइम्स ऑफ इंडिया,

जे.पी. रोड,

दिल्ली

दिनांक: 5 सितंबर 2024

विषय: हमारे शहर में सार्वजनिक दुराचार की समस्या चिंताजनक दर से बढ़ रही है।

महोदय,

मैं यह पत्र हमारे शहर में सार्वजनिक दुराचार की समस्या के बारे में अपनी गहरी चिंता व्यक्त करने के लिए लिख रही हूँ। विद्यालय जाने वाली लड़कियां और महाविद्यालय जाने वाली लड़कियां आवागमन करते समय बहुत असुरक्षित महसूस करती हैं। उपद्रवी लड़के अक्सर अभद्र टिप्पणियां करते हैं, जिसके कारण लड़कियों को शर्मिंदा होना पड़ता है। 

सार्वजनिक दुराचार की समस्या केवल कुछ स्थानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह समस्या सड़कों, बसों, रेलगाड़ियों, ऑटो-रिक्शा आदि हर जगह है। इतने सारे कानून लागू होने के बाद भी हमारे शहर में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। सार्वजनिक क्षेत्रों में पुलिस द्वारा लगातार गश्त की जानी चाहिए। 

सार्वजनिक दुराचार की बुराई को रोकने के लिए समाज को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। यदि कोई भी सार्वजनिक दुराचार करने वाला किसी लड़की के साथ दुराचार करने कोशिश करता है तो लोगों को तुरंत आगे आकर उसकी मदद करनी चाहिए। लोगों की मदद से इस समस्या का आसानी से और कुशलतापूर्वक समाधान किया जा सकता है। मैं संबंधित प्राधिकारी से अनुरोध करती हूं कि वे इस मामले पर गौर करें और आवश्यक कार्रवाई करें। 

आपका धन्यवाद

भवदीय,

शिवानी वर्मा।

ऑनलाइन शिकायत

ऑनलाइन शिकायत कई महिला हेल्पलाइन नंबरों और ईमेल आईडी की मदद से दर्ज की जा सकती है जो ऑनलाइन उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के माध्यम से सार्वजनिक दुराचार और अन्य लिंग आधारित अपराधों की ऑनलाइन शिकायत के लिए संपर्क विवरण नीचे दिए गए हैं:

संपर्क का प्रकार संपर्क विवरण
24/7 हेल्पलाइन नंबर 7827-170-170
एनसीडब्ल्यू शिकायत एवं जांच प्रकोष्ठ ईमेल आईडी complaintcell-ncw@nic.in
एनसीडब्ल्यू लीगल सेल ईमेल आईडी lo-ncw@nic.in
एनसीडब्ल्यू आरटीआई सेल ईमेल आईडी rticell-ncw@nic.in
एनसीडब्लू एनआरआई सेल nricell-ncw@nic.in
एनसीडब्लू उत्तर पूर्व सेल northeastcell-ncw@nic.in
केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड -पुलिस हेल्पलाइन 1091/ 1291, (011) 23317004 

सार्वजनिक दुराचार कैसे रोकें?

सार्वजनिक दुराचार करने वाले अपराधी को उसके कृत्य के परिणाम के बारे में अवश्य अवगत कराया जाना चाहिए। इस संबंध में मौजूद कानूनों के बारे में लोगों को शिक्षित करके इन कृत्यों को रोका जा सकता है। इस पहलू में प्रौद्योगिकी मामलों की संख्या को कम करने में बहुत मददगार हो सकती है, व्यक्ति अपने फोन पर अपने करीबी लोगों के एसओएस नंबर सेट कर सकता है। 

यदि कोई व्यक्ति इन प्रकार की स्थितियों में खुद को बचाने और सुरक्षित रखने के विभिन्न तरीकों को जानता है तो सार्वजनिक दुराचार के मामलों में कमी आ सकती है। स्वयं की सुरक्षा के विभिन्न तरीकों में आत्मरक्षा प्रशिक्षण शामिल हो सकता है, व्यक्ति मिर्च स्प्रे, पॉकेट चाकू जैसे उपकरण अपने साथ रख सकता है, व्यक्ति मौजूदा ऐप्स के माध्यम से अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपना लाइव स्थान साझा कर सकता है। इन ऐप्स के माध्यम से व्यक्ति की लाइव लोकेशन पूरे दिन के लिए साझा की जाती है और वे जान सकते हैं कि वह व्यक्ति कहां है। 

सख्त, कठोर एवं सख्त  कानून बनाए जाने चाहिए और उनका अनुपालन किया जाना चाहिए ताकि कोई व्यक्ति इस प्रकार के अपराध करने के बारे में सोच भी न सके। सरकार सार्वजनिक दुराचार करने वालों पर भारी जुर्माना लगा सकती है। संयुक्त अरब अमीरात जैसे कई देशों में ऐसे कृत्यों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है और निर्धारित सजा एक वर्ष की कैद तथा 100,000 दिरहम (भारतीय रुपयों में 22,82,855 रुपये) का जुर्माना है, ताकि लोग ऐसे कृत्य करने के बारे में सोचें भी नहीं। 

सार्वजनिक दुराचार के मामलों की जांच

जब पीड़िता निकटतम पुलिस थाने में सार्वजनिक दुराचार के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराती है, तो घटना की जांच लगभग तुरंत शुरू कर दी जाती है। बेहतर होगा कि पीड़िता मदद के लिए पहले महिला हेल्पलाइन नंबर यानी 1091 पर संपर्क करे। यह मान कर चला जा रहा है कि पीड़िता अधिक सहज महसूस करेगी, क्योंकि वह फोन पर एक महिला से अपनी समस्या बता रही होगी। पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज होने के बाद पीड़ित या शिकायतकर्ता को उसकी रसीद दी जाएगी। 

सार्वजनिक दुराचार रोकने के लिए सावधानियां या उपाय

लोगों को लैंगिक समानता के बारे में सिखाया जाना चाहिए और इसके प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि महिलाओं का सम्मान कैसे किया जाए और ऐसा कोई कार्य न किया जाए जिससे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचे या उन्हें ठेस पहुंचे। इसके अलावा, महिलाओं को आत्मरक्षा के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में यह उपयोगी होती है। यदि महिलाएं देर रात या अकेले यात्रा कर रही हों तो उन्हें अपने साथ मिर्च स्प्रे, पॉकेट चाकू या ऐसी ही अन्य सुरक्षा वस्तुएं रखनी चाहिए। उन्हें रात में अंधेरी और सुनसान सड़कों पर जाने से बचना चाहिए। 

कुछ ऐसे उपाय या कार्यवाहियां हैं जो सरकार और लोग भी कर सकते हैं। वे सार्वजनिक दुराचार से संबंधित जागरूकता फैला सकते हैं। यह काम पोस्टरों के माध्यम से किया जा सकता है। और भी कई कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे सड़कों और उद्यानों पर अधिक स्ट्रीट लाइटें लगाना, शहरों के अधिक अपराध वाले क्षेत्रों में पुलिस की गश्त को सामान्य बनाना आदि। यहां तक कि, जब अन्य लोगों के साथ सार्वजनिक दुराचार किया जाता है, तो लोग इसे नजरअंदाज करने के बजाय सक्रिय रुख अपनाएं, जिससे ऐसे मामलों में काफी कमी आएगी। 

कई महिलाएं अभी भी सार्वजनिक दुराचार की शिकायत करने से डरती हैं। पुरुषों के दृष्टिकोण और व्यवहार में परिवर्तन की अत्यधिक आवश्यकता है, क्योंकि महिलाएं जिस तरह के कपड़े पहनती हैं, उससे पुरुषों को ऐसे कार्य करने की प्रेरणा नहीं मिल सकती हैं। शिक्षा प्रणाली में ऐसे ज्ञान और मूल्यों को शामिल किया जाना चाहिए जो लोगों को नैतिकता सिखाएं। महिलाओं के साथ सार्वजनिक दुराचार के लिए कानून मौजूद हैं; इनका उचित क्रियान्वयन और प्रवर्तन विनियमित किया जाना चाहिए ताकि महिलाओं के खिलाफ मामलों की संख्या में कमी आए। 

सार्वजनिक दुराचार के आंकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) हमें 2023 के लिए अपराध के आंकड़े उपलब्ध कराता है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कुल संख्या 2020 में 3,71,503 मामलों से बढ़कर 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज किये गये। वर्ष 2002 में भारत में एसिड हमले के लगभग 202 मामले दर्ज किये गये तथा एसिड हमले के प्रयास के 71 मामले दर्ज किये गये। 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के संबंध में 28 हजार शिकायतें प्राप्त हुईं थी। 

प्रासंगिक कानूनी मामले 

केरल राज्य बनाम हम्सा (1988)

केरल राज्य बनाम हम्सा (1988) के मामले में, अभियुक्त एक महिला की ओर अनुचित तरीके से आंखें मार रहा था और यह वहां मौजूद अन्य लोगों ने देखा था। यह कृत्य उसकी शील का अपमान करने वाला था। अदालत ने कहा कि भले ही उन इशारों को महिला के अलावा किसी अन्य व्यक्ति ने नहीं देखा हो, फिर भी यह उसकी शील का अपमान होगा क्योंकि उसका इन कार्यों का प्रतिदान करने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए, अभियुक्त ने अपराध किया था और उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (बीएनएस की धारा 74) के तहत उत्तरदायी ठहराया गया, क्योंकि उसे महिला की बांह पकड़ते हुए भी पकड़ा गया था, जो उसकी शील भंग करने के लिए किया गया हमला था। 

श्रीमती रूपन देयोल बजाज बनाम कंवर पाल सिंह गिल (1995)

श्रीमती रूपन देओल बजाज बनाम कंवर पाल सिंह गिल (1995) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह पता लगाना कि किसी महिला की गरिमा का हनन हुआ है या नहीं, पूरी तरह से अपराधी के कृत्य पर निर्भर करेगा। यह आईपीसी (अब बीएनएस) के तहत अपराध स्थापित करने के लिए अंतिम परीक्षण है। यह कार्य महिला की शालीनता की भावना को झकझोरने वाला होना चाहिए। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, श्री गिल द्वारा श्रीमती बजाज को थप्पड़ मारना उनकी शील  को भंग करना था, क्योंकि यह कृत्य न केवल स्त्रियोचित शालीनता की सामान्य भावना के विरुद्ध था, बल्कि एक महिला की गरिमा का भी अपमान था। 

संथा बनाम केरल राज्य (2005)

संथा बनाम केरल राज्य (2005) में, अदालत ने माना कि यदि कोई पुरुष किसी महिला के सामने अपने निजी अंगों को अभद्र तरीके से प्रदर्शित करता है, अश्लील शब्दों का प्रयोग इस इरादे से करता है कि वे शब्द महिला को सुनाई देंगे या उसे अपने अश्लील चित्र दिखाने की कोशिश करता है, तो उसे धारा 509 आईपीसी (बीएनएस की धारा 79) के तहत उत्तरदायी ठहराया जाएगा। 

एंपरर बनाम तारक दास गुप्ता (1925)

एम्परर बनाम तारक दास गुप्ता (1925) मामले में अभियुक्त ने एक अंग्रेज नर्स को पत्र भेजा, जिससे वह परिचित नहीं था। पत्र में अभद्र बातें थीं। अदालत ने माना कि अभियुक्त का इरादा नर्स की शील को भंग करना था और इसलिए उसे दोषी ठहराया गया था। 

सब्यसाची दत्ता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (2023)

सब्यसाची दत्ता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (2023) के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही सभी कार्यवाहियों को निरस्त कर दिया और कहा कि मामले में पर्याप्त ठोस सबूत नहीं हैं। यदि कार्यवाही की अनुमति दी गई तो यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इस विशेष मामले में न्यायालय ने तारकेश्वर साहू बनाम बिहार राज्य (2006) के निर्णय का भी हवाला दिया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया था। उपर्युक्त मामले में कुछ आवश्यक शर्तें थीं जिन्हें धारा 354 आईपीसी (बीएनएस की धारा 74) के तहत अपराध का गठन करने के लिए साबित करना आवश्यक था। यह कहा गया कि दोषपूर्ण इरादा महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे मामलों में महिलाओं की ओर से हमेशा प्रतिक्रिया हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह निर्णायक है। कोई भी व्यक्ति जिसने महिलाओं की शील को भंग करने के लिए किसी भी प्रकार के आपराधिक बल का प्रयोग किया है, उसने अपराध किया है। 

निष्कर्ष

हमारे समाज में सार्वजनिक दुराचार की समस्या अभी भी व्याप्त है और यह मुद्दा अब गंभीर चिंता का विषय बन गया है। कानूनों को उचित ढंग से बनाया, क्रियान्वित और लागू किया जाना चाहिए। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि कानून बनाए जा रहे हैं और उनका सख्ती से पालन किया जा रहा है। 

जब भी संबंधित पुलिस थाने में शिकायत दर्ज की गई हो, तो पुलिस अधिकारियों को इस मामले में तत्काल और कठोर कदम उठाने चाहिए। सार्वजनिक दुराचार का यह मुद्दा चिंताजनक मुद्दों में से एक बन गया है और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यद्यपि भारतीय कानून में इसके लिए दंड का प्रावधान है, फिर भी इसे गंभीर अपराधों में से एक माना जाना चाहिए। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

सार्वजनिक दुराचार की सजा क्या है?

सार्वजनिक दुराचार के अपराध के लिए तीन महीने की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। यह सजा बीएनएस की धारा 296 के तहत उल्लिखित है। यदि सार्वजनिक रूप से कोई ऐसा कृत्य या कोई ऐसा शब्द बोला जाता है जो अश्लील प्रकृति का हो, तो उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 296 के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। उल्लिखित धारा के अनुसार ऐसे कृत्यों के अपराधी को दंडित किया जाना अनिवार्य है। 

क्या सार्वजनिक दुराचार की समस्या एक सामाजिक मुद्दा बनती जा रही है?

सार्वजनिक दुराचार की समस्या एक सामाजिक मुद्दा और चिंता का विषय बनती जा रही है। इस मुद्दे का प्रभाव सभी उम्र की महिलाओं पर पड़ता है। सार्वजनिक दुराचार का यह कृत्य बलात्कार, मारपीट आदि जैसे गंभीर अपराधों को भी जन्म दे सकता है। ऐसे कठोर कानून बनाये जाने चाहिए जिनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। 

सार्वजनिक दुराचार के कुछ उदाहरण क्या हैं?

सार्वजनिक दुराचार के कुछ उदाहरण हैं अनुचित टिप्पणी करना, घूरना, पीछा करना आदि। सार्वजनिक दुराचार के इन कृत्यों से यौन उत्पीड़न, मारपीट, बलात्कार, एसिड हमले आदि जैसे गंभीर अपराधों में भी वृद्धि हो सकती है। 

कोई व्यक्ति स्वयं को सार्वजनिक दुराचार से कैसे रोक सकता है?

कोई भी व्यक्ति जो सार्वजनिक दुराचार का शिकार होता है, वह सार्वजनिक स्थानों पर अभद्र कृत्य होने पर अपनी आवाज उठा सकता है। इस मुद्दे के बारे में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए और गंभीर मामलों में तुरंत पुलिस हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करना चाहिए। 

सार्वजनिक दुराचार के क्या-क्या रूप हैं?

सार्वजनिक दुराचार के मूलतः दो रूप हैं, मौखिक और गैर-मौखिक। मौखिक रूप में अश्लील टिप्पणियां, यौन रंजित टिप्पणियां आदि शामिल होंगी, तथा गैर-मौखिक रूप में पीछा करना, सीटी बजाना, अश्लील प्रकृति के इशारे आदि शामिल होंगे। 

सार्वजनिक दुराचार के क्या प्रभाव हैं?

सार्वजनिक दुराचार के शिकार लोगों को न केवल शारीरिक पीड़ा बल्कि भावनात्मक और मानसिक आघात का भी सामना करना पड़ता है। ये पीड़ित अक्सर खुद को सीमित रखने की कोशिश करते हैं, जैसे रात में यात्रा न करना, तथा कुछ मामलों में तो परिवार भी उन पर प्रतिबंध लगा देते हैं। 

संदर्भ

 

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