डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन प्राप्त होने पर न्यायालय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

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Civil Procedure Code

यह लेख Karan Sharma द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से एडवांस्ड सिविल लिटिगेशन: प्रैक्टिस, प्रोसीजर एंड ड्राफ्टिंग में सर्टिफिकेट कोर्स कर रहे हैं। इसे Prashant Baviskar (एसोसिएट, लॉसिखो) और Smriti Katiyar (एसोसिएट, लॉसिखो) ने एडिट किया है। इस लेख में डिक्री के निष्पादन (एग्जिक्यूशन) के लिए आवेदन प्राप्त होने पर न्यायालय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय

डिक्री के निष्पादन की अवधारणा उतनी पुरानी है जितनी की सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) पुरानी है। सामान्य अर्थ में, शब्द “निष्पादन” एक योजना, आदेश या कार्रवाई के क्रम को पूरा करने का प्रतीक है। लेकिन, कानूनी भाषा में, निष्पादन का अर्थ कानूनी निर्णय को लागू करने की प्रक्रिया है। लेकिन ऋणी (डेटर) कौन है? इस अवधारणा का क्या महत्व है? यह कैसे तय किया जाता है कि निष्पादन की प्रक्रिया की जाएगी? निष्पादन से संबंधित सभी बातों के बारे में हम अगले लेख में बात करेंगे।

“डिक्री के निष्पादन” की आवश्यकता कहाँ से उत्पन्न होती है?

चूंकि अदालत में समय की अवधि में और उचित प्रक्रियाओं के साथ वाद (सूट) दायर किया जाता है, इसलिए मामले में शामिल होने वाले किसी भी पक्ष के पक्ष में मामला तय किया जाता है। जब कोई न्यायाधीश निर्णय की घोषणा करते है, तो निर्णय का निर्देशन भाग एक डिक्री होता है। उदाहरण के लिए; यदि A पैसे की वसूली के लिए B के खिलाफ वाद दायर करता है और समय की अवधि के बाद और उचित प्रक्रियाओं के साथ, मामला A (डिक्री धारक) के पक्ष में और B (निर्णित ऋणी (जजमेंट डेंटर)) के खिलाफ तय किया जाता है, और निर्णय में, यह निर्देश दिया गया कि B को विवादित राशि का भुगतान A को करना है, तो निर्देशन भाग डिक्री होता है क्योंकि यह B पर प्रदर्शन का दायित्व प्रदान करता है। 

अब, एक उचित समय के बाद भी, जब B माननीय न्यायालय द्वारा लगाए गए अपने दायित्व का पालन नहीं करता है, तो A को कानूनी उपायों के माध्यम से निर्णित ऋणी को उसके दायित्व को निभाने के लिए कहने का अधिकार है। इस विशेष कानूनी उपाय को डिक्री का निष्पादन कहा जाता है और यह उपाय आमतौर पर उस अदालत में निष्पादन याचिका दायर करके शुरू किया जाता है जहां डिक्री पारित की गई थी।

डिक्री के निष्पादन के लिए कैसे आवेदन कर सकते हैं?

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अनुसार, डिक्री के निष्पादन के लिए मौखिक रूप से या लिखित आवेदन के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXI के नियम 11 में मौखिक रूप से एक डिक्री को निष्पादित करने के लिए आवेदन के बारे में बात की गई है। इस तरीके का उपयोग पक्षों द्वारा तब किया जाता है जब न्यायाधीश अदालत में निर्णय की घोषणा करते है।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXI के नियम 12 में डिक्री की प्रमाणित (सर्टिफाइड) प्रति के साथ लिखित आवेदन के माध्यम से एक डिक्री को निष्पादित करने के बारे में बात की गई है। नियम यह भी बताता है कि लिखित निष्पादन याचिका का मसौदा (ड्राफ्ट) कैसे तैयार किया जाएगा। निष्पादन याचिका में वाद की संख्या; पक्षों के नाम; डिक्री की तारीख; क्या डिक्री के निष्पादन के लिए पहले कोई आवेदन किए गए हैं, ऐसे आवेदनों की तारीखें और उनके परिणाम; क्या डिक्री से कोई अपील की गई है; प्रदान की गई लागतों की राशि (यदि कोई हो); उस व्यक्ति का नाम जिसके विरुद्ध डिक्री के निष्पादन की मांग की गई है; और आदि, जैसे विभिन्न प्रश्न पूछे जाते है।

डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन प्राप्त होने पर न्यायालय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

जब न्यायालय में निष्पादन याचिका दायर की जाती है, तो न्यायालय निम्नलिखित कार्य करता है:

  1. अदालत का पहला कदम यह जांचना है कि क्या निष्पादन याचिका समय सीमा के भीतर दायर की गई है और पुष्टि करें कि प्रस्तुत निष्पादन याचिका परिसीमन (लिमिटेशन) के कानून द्वारा वर्जित (बार) नहीं है। वी. नागराजन बनाम एस.के.एस इस्पात एंड पावर लिमिटेड के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, भले ही डिक्री के निष्पादन के साथ एक आवेदन दायर किया गया हो, जो ऐसी याचिका दायर करने में देरी को माफ करता है, लेकिन प्रमाणित प्रति की आवेदन तिथि अभी भी समय सीमा अवधि के भीतर होनी चाहिए।

सरल शब्दों में, यदि आप किसी डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन कर रहे हैं और याचिका को सीमित समय अवधि के लिए रोक दिया गया है, तो उक्त याचिका को अभी भी समय सीमा के भीतर माना जाएगा यदि डिक्री की प्रमाणित प्रति के लिए अनुरोध समय सीमा अवधि में किया जाता है।

2. अगली बात जो अदालत को करने की ज़रूरत है वह सुनवाई के लिए निष्पादन मामले को सूचीबद्ध करना, प्रतिवादी को नोटिस जारी करना और याचिकाकर्ता द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण (सबमिशन) को सुनना और उचित निर्णय लेना है।

3. कुछ मामलों में, माननीय न्यायालय प्रतिवादी को कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए कानून द्वारा बाध्य नहीं है। यह विशेष पहलू सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXI के नियम 22 के तहत निपटाया जाता है। उपर्युक्त प्रावधान यह भी बताता है कि किन मामलों में नोटिस जारी करना अनिवार्य है। ऐसे मामले निम्नलिखित है:

  • यदि डिक्री को निष्पादित करने के लिए याचिका दायर करने की तारीख से 2 साल पहले पारित किया गया था या;
  • पक्ष के कानूनी प्रतिनिधि के खिलाफ डिक्री निष्पादित की जा रही है और; 
  • यदि वह पक्ष जिसके विरुद्ध डिक्री निष्पादित होनी है उसे दिवालिया (इंसोल्वेंट) घोषित कर दिया गया है।

4. यदि नोटिस जारी किया गया पक्ष सूचीबद्ध मामले के लिए उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय ऐसे पक्ष के खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित करने और अदालत में मौजूद पक्ष के पक्ष में एक अनुकूल निर्णय जारी करने के अपने अधिकार के भीतर है।

5. यदि जिस पक्ष को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, वह दी गई तारीख को अदालत के समक्ष पेश होने में सफल होता है, तो उस पक्ष को डिक्री के निष्पादन पर आपत्ति करने का अधिकार है, जिसकी याचिका दायर की गई है। अदालत को आपत्तियों की सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए और ऐसा आदेश देना चाहिए जो अदालत को ठीक लगे।

जहां एक निष्पादन याचिका में निर्णित ऋणी आदेश XXI, नियम 22 के तहत नोटिस की तामील (सर्विस) के बाद भी उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय आदेश XXI, नियम 23(1) के तहत एक आदेश पारित कर सकते है, जिसमें निर्णित ऋणी की संपत्तियों की कुर्की (अटैचमेंट) द्वारा निष्पादन को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया जाता है और यह आदेश अंतिम होता है और एक डिक्री के बराबर होता है। उक्त आदेश के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं की जा सकती है। इसलिए, बाद के चरण में सीमा के बारे में आपत्ति उठाने के लिए निर्णित ऋणी के लिए खुला नहीं रहेगा; पी. साईनाथ रेड्डी बनाम जी. नारायण रेड्डी, एआईआर 1982 एपी 247

6. दोनों पक्षों को सुनने के बाद, यह देखते हुए कि नोटिस जारी करने की आवश्यकता उत्पन्न हुई और दोनों पक्षों को उपस्थित होने की आवश्यकता थी, और याचिका की अनुमति दी गई थी, तब अदालत निर्णित ऋणी को उस पर लगाए गए दायित्व को पूरा करने का निर्देश देती है, और डिक्री के निष्पादन की प्रक्रिया जारी करती है।

7. अदालत तब एक अधिकारी का समर्थन करती है जिसके तहत डिक्री का निष्पादन होगा। फिर अधिकारी को निष्पादन की तारीख और तरीका बताया जाता है कि डिक्री कैसे निष्पादित की जाएगी यह बताया जाता है। यदि अधिकारी किसी निर्देश का पालन करने में विफल रहता है, तो वह अधिकारी निष्पादन में देरी के कारणों या किसी अन्य कारण को बताते हुए न्यायालय को एक लिखित स्पष्टीकरण, जो डिक्री को निष्पादित करने में असमर्थता से संबंधित है, देने के लिए उत्तरदायी है।

8. अधिकारी तब डिक्री धारक के पक्ष में डिक्री को निष्पादित करता है और न्याय प्रदान करता है।

क्या होगा यदि निर्णित ऋणी अदालत द्वारा घोषित निर्देश के लिए बाध्य नहीं है?

उन वादों में जहां डिक्री जो पारित की गई है वह डिक्री धारक को पैसे के भुगतान के लिए है, तो निर्णित ऋणी को अपने दायित्व को पूरा करना होगा और उस पैसे का भुगतान करना होगा जो डिक्री धारक को देय है। कुछ मामलों में, निर्णित ऋणी या तो राशि का भुगतान नहीं करता है, या किसी अन्य कारण से, उस राशि का भुगतान करने में असमर्थ है जिसे भुगतान करने के लिए उसे निर्देशित किया गया है, तो न्यायालय के पास सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI के नियम 40-46 के तहत निर्णित ऋणी की अचल और चल संपत्ति को कुर्क करने और बेचने की शक्ति है।

क्या माननीय न्यायालय डिक्री के निष्पादन पर रोक लगा सकता है?

ऊपर इस लेख में, हमने बार-बार दोहराया है कि, अदालतें मामलों को तय करने में लंबा समय लेती हैं। अदालतें दोनों पक्षों द्वारा उन्हें प्रदान की जाने वाली हर चीज से गुजरती हैं। और, अंत में, अदालत, गुण और दोष के आधार पर मामले का फैसला करती है। जब एक पक्ष को डिक्री धारक के रूप में घोषित किया जाता है, तो तथ्यों, सबूतों और बयानों के कई अवलोकन (ऑब्जर्वेशन) के बाद इसकी घोषणा की जाती है।

फिर, निष्पादन पर रोक लगाने की आवश्यकता क्यों उत्पन्न होती है? सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश XXI के नियम 26 एक डिक्री के निष्पादन पर रोक के बारे में बात करता है। यह प्रावधान कहता है कि यदि अदालत को कोई पर्याप्त कारण मिलता है जो डिक्री के निष्पादन पर रोक का समर्थन करता है, तो न्यायालय अपनी अंतर्निहित (इन्हेरेंट) शक्तियों में, डिक्री के निष्पादन पर रोक लगा सकती है।

निष्कर्ष

अंत में, मैं यह कहकर समाप्त करना चाहता हूं कि एक डिक्री का निष्पादन केवल कानूनी विषय या प्रयोग करने का विकल्प नहीं है, बल्कि यह वास्तव में एक सहायता है जो न्याय तक पहुंचने में मदद करती है। एक डिक्री का निष्पादन एक अवधारणा है जो तब काम करती है जहां न्याय विफल हो जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश XXI डिक्री धारक को न्याय प्राप्त करने में मदद करने के लिए एक वास्तविक सहायता के रूप में काम करता है और इस प्रकार पक्षों के अधिकारों और हितों की रक्षा करता है।

संदर्भ

  • Code of Civil Procedure, 1908 Bare Act: indiacode.nic.in
  • Code of Civil Procedure, 1908 Bare Act: Universal Publications
  • Writinglaw.com
  • LiveLaw.com
  • Aaptaxlaw.com
  • Merriam Webster Dictionary

 

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