भारत में रेप के पीड़ितों के सामने आने वाली समस्याओं पर चर्चा

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Indian penal Code
Image Source- https://rb.gy/racwmd

इस ब्लॉग पोस्ट में, केरल के एर्नाकुलम के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के छात्र Sreeraj K.V., भारत में रेप के पीड़ितों को न्याय देने के विषय पर लिखते हैं। इस लेख में भारत में रेप से संबंधित कुछ आपराधिक कानून के  प्रावधानों (प्रोविजंस), ऐसी परिस्थितियाँ (सरकमस्टांसेस) जो रेप के पीड़ितों को न्याय से वंचित (डिप्राइव) करती हैं और साथ ही कुछ वर्तमान उदाहरण को शामिल किया गया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन) 

रेप आजकल सबसे अधिक सुने जाने वाले शब्दों में से एक है। हम आए दिन, रेप सहित महिलाओं के खिलाफ होने वाले सेक्शुअल अत्याचारों (एट्रोसिटीज) और उनके शरीर पर किए गए कुछ अमानवीय (इन ह्यूमन) कार्यों, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ितों की मृत्यु भी हो जाती है, के संबंध में कई मामले सुनते हैं। दिल्ली निर्भया केस, महिलाओं के खिलाफ सेक्शुअल हिंसा के सबसे विवादित (कॉन्ट्रोवर्शियल) मामलों में से एक था। दोषियों ने न केवल पीड़िता को असहनीय (अनबियरेबल) दर्द दिया बल्कि सबके मन में एक डर बैठा दिया। यह मामला इस क्षेत्र में ऐतिहासिक मामलों में से एक साबित हुआ क्योंकि इसके परिणामस्वरूप जुवेनाइल्स की सजा पर विभिन्न बहस हुई थी। इस मामले ने, इस बहस को सुर्खियों में लाया, कि क्या रेप के अपराधियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए या नहीं। हाल ही के आंकड़े लोकप्रिय (पॉपुलर) राय को दिखाते हैं कि उन अपराधियों को मौत की सजा के साथ दंडित किया जाना चाहिए।

महिलाओं के खिलाफ सेक्शुअल हिंसा के मामलों से निपटने के लिए, हमारे पास इंडियन पीनल कोड, कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर के साथ-साथ क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2013, प्रोटेक्शन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट, 2005, प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट, 2012 के साथ-साथ विभिन्न अन्य क़ानून भी मौजूद है जो इस मुद्दे से निपटते हैं। लेकिन रेप करने वाले अपराधियों के लिए, उनके द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति और क्रूरता (ब्रूटलिटी) के आधार पर मृत्युदंड के संबंध में कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। दिल्ली निर्भया केस के बाद भी दिल्ली में 2 साल की बच्ची के साथ बेरहमी से रेप हुआ था और 5 साल की बच्ची भी अपने घर में इसी तरह के अपराध का शिकार हुई थी। ऐसे सभी उदाहरण साबित करते हैं कि इस तरह के क्रूर अपराध करने वाले व्यक्तियों को रिफॉर्मेशन या सुधार (डिटरेंस) के बजाय प्रतिशोध (रेट्रिब्यूशन) के आधार पर सजा दी जाना चाहिए।

इंडियन पीनल कोड की धारा 375 रेप के अपराध से संबंधित है। एक पुरुष द्वारा किया गया कार्य रेप का अपराध तब माना जाता है, जब वह महिलाओं के साथ सेक्शुअल संबंध रखता है; जो

  • उसकी इच्छा के विरुद्ध (अगेंस्ट);
  • उसकी सहमति के बिना;
  • उसकी सहमति से, जो मृत्यु या चोट के भय से प्राप्त की गई थी;
  • उसकी सहमति से, इस विश्वास के तहत कि उसका उस व्यक्ति से कानूनी रूप से आगे जा के विवाह होगा;
  • उसकी सहमति से, लेकिन जब वह विकृत दिमाग की हो या नशे के प्रभाव में इस तरह हो कि वह कार्य के परिणामों को समझने में असमर्थ (अनेबल) हो
  • उसकी सहमति से या उसके बिना, जब वह 16 वर्ष से कम आयु की हो

इस धारा के प्रावधानों को बाद में क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2013 द्वारा अमेंड किया गया, जिसमें अब यह बदलाव आए है;

  • जब वह सहमति को कम्यूनिकेट करने में असमर्थ होती है।
  • इस धारा के प्रयोजन (पर्पज) के लिए, वजीना शब्द में ‘लेबिया मेजोरा’ भी शामिल है।
  • सहमति का मतलब एक स्पष्ट स्वैच्छिक समझौता (वॉलंटरी एग्रीमेंट) है जब महिला शब्दों, इशारों या बोलकर या बिना बोले या कम्युनिकेशन के किसी भी रूप में, विशिष्ट (स्पेसिफिक) सेक्शुअल कार्य में भाग लेने की अपनी इच्छा को कम्यूनिकेट करती है।

इस समय एक प्रश्न उठता है कि सिर्फ भारत ही क्यों? इस सब-कॉन्टिनेंट में रेप कोई अनोखा कार्य नहीं है, लेकिन अब भारत में इसका पैमाना एक बिल्कुल नए स्तर पर है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों (एक्सपर्ट्स) का कहना है कि यह पुरुष की तुलना में महिला मार्जिनलाइजेशन के कारण होता है। यह स्थिति गरीब घरों में बहुत सच है जहां महिला को कम पौष्टिक (न्यूट्रीशियस) भोजन मिलता है, और उनको अपने स्कूल और कॉलेज को जल्दी छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, ताकि वह घर पर घरेलू काम संभाल सकें। यह स्थिति मुख्य रूप से हमारे देश के ग्रामीण (रूरल) इलाकों में देखने को मिलती है।

अब, रेप के पीड़ितों द्वारा सामना किए जाने वाली विभिन्न स्थितियों को देखते हुए, पीड़ितों को हर संभव शारीरिक और मानसिक टॉर्चर और हैरेसमेंट का सामना करने के बाद भी, समाज उनके साथ इस तरह से व्यवहार करता है की उन्हें समुदाय (कम्युनिटी) से अलग कर दिया जाता है और कुछ मामलों में उन्हें घर से बाहर जाने से प्रतिबंधित (प्रोहिबिट) कर दिया जाता है और उन्हें अपने घर की चार दीवारी के भीतर रहने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भारतीय लोग स्वयं महिलाओं की गरिमा (डिग्निटी) की रक्षा करने के बजाय समाज में अपने परिवार की गरिमा को ज्यादा महत्व देते हैं।

रेप के पीड़िताओं द्वारा सहन की गई समस्या (प्रॉब्लम फेस्ड बाय रेप विक्टिम्स)

  • उन्हे जीवन और व्यक्तिगत (पर्सनल) स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित किया जाता है।
  • कोर्ट के अंदर और साथ ही बाहर के लोगों से असहज (अनकंफर्टेबल) प्रक्रियाओं (प्रोसीजर्स) और पूछताछ से गुजरने के लिए मजबूर किया जाता है।
  • समाज द्वारा बहिष्कृत (ओस्ट्रासाइज़) और कभी-कभी शिक्षा के अधिकार से भी प्रतिबंधित किया जाता है।
  • उसे पब्लिक फिगर बनाकर मीडिया और संबंधित लोगों द्वारा उसका शोषण (एक्सप्लॉयटेशन) किया जाता है।
  • मामले में विभिन्न राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप (इंटरफेयर) करना या इस मामले को राजनीतिक मुद्दे के रूप में बदलना।
  • पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) और बाद की देखभाल उपचार से पीड़ित को वंचित करना।
  • ट्रायल कार्यवाही में देरी होना, जिसके परिणामस्वरूप न्याय देने में देरी होती है।
  • इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी की ओर से असली दोषियों का पता लगाने में देरी करना।

ये केवल सांकेतिक (इंडिकेटिव) हैं, और इनके अलावा भी कई समस्याएं हैं जिनका सामना एक रेप की पीड़िता को करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, सूर्यनेल्ली रेप के केस में जिसने केरल के लोगों, सरकार और ज्यूडिशियरी को डरा कर रख दिया था। इस मामले में, पीड़िता जो सिर्फ 16 साल की थी, लगभग 40 लोगों द्वारा क्रूर सेक्शुअल हिंसा का शिकार हुई थी और कोर्ट ने, उचित सबूत ना होने के कारण, उनमें से ज्यादातर अपराधियों को बरी कर दिया। लोग अभी भी उस लड़की को परेशान कर रहे है और मीडिया द्वारा भी उसका शोषण किया जा रहा है। अभी के लिए, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है। सिर्फ इस मामले में ही नहीं, बल्कि रेप के ज्यादातर मामलों में रेप की पीड़िता को पूरा न्याय नहीं मिलता और यह मुख्य रूप से, संबंधित एजेंसी द्वारा प्रभावी जांच की कमी, कोर्ट में उचित सबूत पेश करने की कमी और कुछ हद तक राजनीतिक दलों के हस्तक्षेप के कारण भी होता है। हमने इस घटना के बारे में भी सुना है कि केरल के एक गरीब गांव की लड़की शरण्या के साथ गोविंदाचामी ने बेरहमी से रेप किया और फिर उसे मार डाला। भले ही कोर्ट ने अपराधी को मौत की सजा सुनाई हो, लेकिन सजा की कार्यवाही अभी भी कोर्ट में लंबित (पेंडिंग) है। इसमें कहा गया है कि ज्यूडिशियरी, जो प्रभावी (इफेक्टिव) निर्णय लेने में सक्षम है, कार्रवाई करने और यह देखने में असमर्थ है कि निर्णय को ठीक से लागू किया जा रहा है या नहीं। हाल ही में कानून की एक युवा छात्रा का केरल में रेप और हत्या का एक मामला और सामने आया है। इस मामले में यह कहा गया कि यह अपराध निर्भया केस से कहीं ज्यादा क्रूर था। पहले तो इन्वेस्टीगेशन एजेंसी के साथ-साथ सरकार भी मामले को लेकर इतनी गंभीर नहीं थी, लेकिन विभिन्न छात्र संगठनों (आर्गनाइजेशन) के साथ-साथ अन्य वूमेन वेलफेयर फोरम्स के लगातार विरोध के कारण इस मामले ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा और पुलिस ने इस मामले पर गंभीरता से ध्यान दिया। इस संदर्भ (कंटेक्स्ट) में यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि, भारत एक ऐसी जगह में बदल गया है जहां महिलाओं के लिए उनके ही घर में भी सुरक्षा का अभाव (लेक) है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

इस समय, यह कहा जा सकता है कि हम वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं, जिसमें एक लड़की अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है। पुलिस, सरकार और मीडिया को इस मामले को और अधिक गंभीरता से देखना होगा और खुद को लाभ पहुंचाने के बजाय उन्हें आम लोगों की समस्याओं को देखना चाहिए ताकि लोगों को विरोध के लिए सड़कों पर इकट्ठा न होना पड़े। यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार और कानून लागू करने वाली एजेंसीज की जिम्मेदारी है कि इस देश में प्रत्येक नागरिक सुरक्षित रहे, और यह मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह विवाद पैदा करने के बजाय, लोगों के अधिकारों के उल्लंघन (इंफ्रिंजमेंट) से जुड़े मामलों को देखें। समाज के दृष्टिकोण (एटीट्यूड) में बदलाव आना चाहिए ताकि जब एक लड़की अकेली हो तो यह दूसरों के लिए अवसर न हो बल्कि दूसरों की जिम्मेदारी हो कि वह उसकी सुरक्षा की देखभाल करे। बदलाव, न केवल कानूनों में बल्कि लोगों की मानसिकता में भी किए जाने चाहिए ताकि रेप के पीड़ितों को अब और शिकार न बनाया जा सके।

फुटनोट:

  • Retrieved on: https://en.wikipedia.org/wiki/Suryanelli_rape_case

 

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