सिविल प्रोसीजर कोड का आदेश 30: फर्मों द्वारा या उनके खिलाफ मुकदमा

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Civil Procedure Code
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यह लेख Deepa Rishi द्वारा लिखा गया है। इस लेख में सिवील प्रोसीजर कोड के आदेश 30 के तहत एक फर्म द्वारा या उनके खिलाफ़ मुकदमे के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

पार्टनरशिप क्या है?

इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 पार्टनरशिप को एक ऐसी इकाई (एंटिटी) के रूप में परिभाषित करता है जहां दो या दो से अधिक लोग फर्म के व्यवसाय को चलाने के एक सामान्य उद्देश्य के साथ जुड़ते हैं और सभी के लिए कार्य करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा व्यवसाय में होने वाले सभी लाभ और हानि को साझा (शेयर) करते हैं। एक फर्म की अपनी एक अलग कानूनी इकाई नहीं होती है। इसका मतलब है कि एक फर्म को स्वतंत्र रूप से मुकदमा करने या किसी के द्वारा मुकदमा किए जाने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह कानूनी व्यक्ति नहीं है।

सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 का आदेश 30

धोखाधड़ी, संविदात्मक (कॉन्ट्रैक्चुअल) विवाद, विश्वास भंग (ब्रीच) आदि कुछ बहुत ही सामान्य हैं जो पार्टनरशिप व्यवसायों में सुने जाते हैं। कभी-कभी धोखाधड़ी करने के इरादे से, कुछ फर्म अन्य फर्मों के साथ पार्टनरशिप में प्रवेश करते हैं और बाद में अपनी देनदारियों (लायबिलिटीज) और वादों से बचने की कोशिश करते हैं। सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 का आदेश (ऑर्डर) 30, एक फर्म पर मुकदमा करने और एक फर्म द्वारा मुकदमा चलाने के लिए और इन मुकदमों का संचालन (कंडक्ट) करने के तरीके के लिए कुछ प्रक्रियाओं को निर्धारित (लेड डाउन) करता है।

पुरुषोत्तम उमेदभाई एंड कंपनी बनाम मणिलाल एंड संस में भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिविल प्रोसीजर कोड के आदेश 30 के प्रावधान (प्रोविजन) विभिन्न फर्मों को अनुमति देने के प्रावधानों को सक्षम कर रहे हैं जो पार्टनर्स के रूप में मुकदमा करने के लिए कारोबार कर रहे हैं या फर्म के नाम पर उन पर मुकदमा चलाया जा सकता हैं और यह किसी फर्म के पार्टनर्स को उनके नाम पर मुकदमा करने या मुकदमा चलाने से प्रतिबंधित (रेस्ट्रिक्ट) नहीं करता है, न ही वे पार्टनर्स को, जो भारत के बाहर व्यापार कर रहे हैं, भारत में व्यक्तिगत रूप से उनके नाम पर मुकदमा करने से प्रतिबंधित नहीं करते हैं।

सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 के आदेश 30 के तहत कानूनी प्रावधान

सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 के आदेश 30 के तहत कानूनी प्रावधान इस प्रकार हैं;

  • फर्म के नाम पर पार्टनर्स पर मुकदमा

नियम (रूल) 1 प्रकृति का मूल विचार प्रदान करता है जिसे आदेश 30 के प्रावधान स्थापित (एस्टेब्लिश) करना चाहते हैं। इसमें कहा गया है कि दो या दो से अधिक व्यक्ति जो पार्टनर होने के लिए उत्तरदायी हैं, उस फर्म के नाम पर मुकदमा कर सकते हैं या उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है जिसमें वे कार्रवाई का कारण होने पर एक हिस्सा थे। यह मुकदमेबाजी (लिटिगेशन) प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में मदद करता है जहां व्यक्ति या पार्टनर एक व्यक्ति के बजाय पूरे पार्टनरशिप फर्म के लिए मुकदमेबाजी करके राहत की तलाश करते हैं।

यह उस फर्म के पार्टनर्स, जो कारवाई का कारण उत्पन्न होते ही संबंधित पार्टनर्स को सत्यापित (वेरिफाई) करने के लिए थे, की सूची (लिस्ट) के लिए कोर्ट में आवेदन (एप्लीकेशन) प्रदान करता है।

शंकर हाउसिंग कार्पोरेशन बनाम मोहन में, दिल्ली हाई कोर्ट ने समझाया कि दोषी पार्टनर को खोजने की कठिनाई को रोकने के लिए फर्म पर मुकदमा चलाने के लिए नियम 1 की आवश्यकता है। उस पर अलग से मुकदमा करने के बजाय, पीड़ित पक्ष फर्म के खिलाफ मुकदमा दायर कर सकता है जिसमें पार्टनर्स को समान रूप से और संयुक्त (जॉइंटली) रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

  • पार्टनर्स के नाम का खुलासा (डिस्क्लोजर)

आदेश 30 के नियम 2 में प्रावधान है कि जब पार्टनर फर्म के नाम पर मुकदमा करते हैं, तो प्रतिवादी (डिफेंडेंट) लिखित रूप में फर्म के पार्टनर्स के नाम उनके निवास स्थान के साथ खुलासा करने की मांग कर सकता है। नियम में कहा गया है कि मुकदमा फर्म के नाम पर आगे बढ़ेगा लेकिन कोर्ट द्वारा पास डिक्री सभी पार्टनर्स के नाम का गठन (कंस्टीट्यूट) करेगी। यह नियम आगे प्रावधान करता है कि यदि फर्म या पार्टनर दूसरे पक्ष द्वारा की गई मांग का पालन करने में विफल रहते हैं तो कार्यवाही कोर्ट के निर्देश (डायरेक्शन) से रोकी जा सकती है।

अलवर आयरन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में, यह देखा गया था कि यदि कोई फर्म मुकदमा दायर करती है और कुछ व्यक्तियों के नामों को पार्टनर्स के रूप में प्रकट करती है जो फर्म के पार्टनर्स के रूप में पंजीकृत (रजिस्टर) नहीं हैं, तो इसे कोर्ट में धोखाधड़ी माना जाएगा और वादी (प्लेंटिफ) के लिए बिना किसी कीमत के मुकदमा खारिज कर दिया जाएगा।

  • सर्विस

आदेश का नियम 3 फर्म के पार्टनर्स पर सम्मन की सर्विस के तरीको से संबंधित है, और यह प्रावधान करता है कि सर्विस की जाएगी;

  1. किसी एक या अधिक पार्टनर्स पर, या
  2. मुख्य स्थान पर जहां पार्टनरशिप फर्म का संचालन उस व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो उस समय कोर्ट द्वारा निर्देशित ऐसे स्थान के प्रबंधन (मेनेजमेंट) का प्रभारी (इन -चार्ज) होता है, इस तथ्य के बावजूद कि उस समय कोई भी पार्टनर भारत में है या नहीं।

हालांकि, यदि फर्म की पार्टनरशिप भंग (डिजोल्व) कर दी गई है और वादी को इसकी जानकारी थी, तो उन व्यक्तियों को सम्मन की सर्विस की जाएगी जो उस समय भारत में उपलब्ध हैं और जिन्हें उत्तरदायी बनाने की मांग की गई है।

आर.डी. खान बनाम बॉम्बे आयरन सिंडिकेट के मामले में, कोर्ट ने माना कि यदि पार्टनर्स या फर्म प्रबंधक (मैनेजर) को सम्मन दिया जाता है और प्राप्ति के समय पार्टनर भारत से बाहर हैं, तो यह तीसरे पक्ष का कर्तव्य है (जो सम्मन प्राप्त करता है) की वह फर्म के पार्टनर्स को सम्मन के बारे में सूचित करे। उसके द्वारा सम्मन की प्राप्ति पूर्ण सर्विस मानी जाएगी।

  • पार्टनर की मृत्यु पर मुकदमे का अधिकार

नियम 4 एक पार्टनर की मृत्यु पर परिणाम प्रदान करता है। इसमें कहा गया है कि मुकदमे के इंस्टीट्यूशन से पहले या मुकदमे के लंबित (पेंडिंग) रहने के दौरान यदि पार्टनर की मृत्यु हो जाती है तो मुकदमे में कानूनी प्रतिनिधि (रिप्रेजेंटेटिव) को शामिल करना आवश्यक नहीं होगा। हालांकि, यह मरने वाले के कानूनी प्रतिनिधियों के किसी भी अधिकार को सीमित या प्रभावित नहीं करेगा जो हो सकता है;

  1. मुकदमे का पक्ष बनाने के लिए आवेदन,
  2. उत्तरजीवी (सर्वाइवर) या उत्तरजीवियों के खिलाफ किसी भी दावे का प्रवर्तन (एनफोर्समेंट)।

अप्पर इंडिया केबल कंपनी बनाम बाल किशन के मामले में, माननीय सुप्रीम कोर्ट के सामने यह सवाल उठा कि क्या फर्म के मृत पार्टनर्स के वारिसों या कानूनी प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में अपील समाप्त हो जाती है। कोर्ट ने कहा कि मौत का कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और अपील को समाप्त नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, वारिसों और कानूनी प्रतिनिधियों को प्रतिस्थापित (सब्स्टीट्यूट) करने का प्रश्न नहीं उठना चाहिए।

  • नोटिस किस क्षमता में दिया गया है?

आदेश 30 का नियम 5 वादी की ओर से सम्मन की सर्विस के समय फर्म को लिखित रूप में नोटिस देने का दायित्व (ऑब्लिगेशन) डालता है। इस तरह के नोटिस को देने का मुख्य उद्देश्य फर्म के पार्टनर्स को यह सूचित करना है कि उन पर किस क्षमता (कैपेसिटी) में मुकदमा किया गया है।

श्रीनाथ ब्रदर्स बनाम सेंचुरी मिल्स के मामले में, कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति पर पार्टनर की क्षमता में मुकदमा चलाया जाता है या प्रबंधक की क्षमता में उस पर मुकदमा चलाया जाता है, तो दोनों मामलों में नियम 5 के तहत नोटिस जारी किया जाना चाहिए।

  • पार्टनर्स की उपस्थिति

आदेश 30 के नियम 6 के अनुसार जब पार्टनर्स पर फर्म के नाम पर मुकदमा चलाया जाता है, तो प्रत्येक पार्टनर को अपने नाम से कोर्ट में पेश होना होगा। हालांकि, बाद की सभी कार्यवाही फर्म के नाम पर जारी रहेगी।

  • पार्टनर्स के अलावा कोई उपस्थिति नहीं है

आदेश के नियम 7 में कहा गया है कि जिन व्यक्तियों पर पार्टनर की क्षमता में मुकदमा चलाया जाता है, उन्हें कोर्ट की कार्यवाही के दौरान उपस्थित रहने की आवश्यकता होती है। इसका मतलब यह है कि यदि किसी व्यक्ति पर प्रबंधक की क्षमता में मुकदमा चलाया जाता है, तो उसे कोर्ट के सामने पेश होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर उस पर पार्टनर की क्षमता से मुकदमा चलाया जाता है, तो वह कोर्ट के सामने पेश होगा।

  • विरोध के तहत उपस्थिति (अपीयरेंस अंडर प्रोटेस्ट)

आदेश के नियम 8 में कहा गया है कि जिस व्यक्ति को नियम 3 के तहत एक पार्टनर के रूप में सम्मन दिया गया है, वह यह कहते हुए कोर्ट के समक्ष केह सकता है कि वह विरोध के तहत एक उपस्थिति दर्ज करके भौतिक (मटेरियल) समय पर पार्टनर नहीं था।

वादी या उपस्थिति में प्रवेश करने वाला व्यक्ति यह निर्धारित करने के लिए कोर्ट में आवेदन कर सकता है कि वह फर्म का पार्टनर था या नहीं और इसके लिए वह उत्तरदायी होगा। तथापि, यह मुकदमे की सुनवाई और अंतिम निपटान के लिए तय की गई तारीख से पहले किसी भी समय किया जा सकता है।

यदि कोर्ट यह मानती है कि वह व्यक्ति भौतिक समय में पार्टनर था, तो वह प्रतिवादी के खिलाफ दावे के संबंध में फर्म पर लगाए गए दायित्व से इनकार करने के लिए बचाव दायर कर सकता है। दूसरी ओर, यदि कोर्ट यह मानती है कि वह व्यक्ति भौतिक समय में पार्टनर नहीं था और उत्तरदायी नहीं था, तो वादी को किसी भी डिक्री के निष्पादन (एग्जिक्यूशन) में पार्टनर के रूप में व्यक्ति के दायित्व का आरोप लगाने से रोका जाता है, जिसे फर्म के खिलाफ पास किया गया था। तथापि, वादी को फर्म को सम्मन की सर्विस करने और मुकदमे के साथ आगे बढ़ने से नहीं रोका जाता है।

  • को-पार्टनर्स के बीच मुकदमा

आदेश 30 का नियम 9 उन मुकदमों के बारे में बताया गया है जो एक फर्म और उसमें एक या एक से अधिक पार्टनर्स के बीच या एक या अधिक सामान्य पार्टनर्स वाली फर्मों के बीच स्थापित किए जाते हैं। ऐसे मामलों में, सभी पार्टनर्स के हितों की रक्षा के लिए कोर्ट की अनुमति के बिना कोई निष्पादन जारी नहीं किया जाता है। इस तरह के निष्पादन को जारी करने के लिए अनुमति के आवेदन पर कोर्ट निष्पादन के समय खातों और पूछताछ का निर्देश दे सकती है।

  • स्वयं के अलावा अन्य नाम से व्यवसाय करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा (सूट अगेंस्ट पर्सन कैरिंग ऑन बिजनेस इन नेम अदर देन हिज ओन)

आदेश 30 का नियम 10 उन मामलों में इसकी प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) की व्याख्या करता है जहां कोई व्यक्ति अपने या हिंदू अविभाजित (अंडिवाइडेड) परिवार के अलावा किसी अन्य नाम या शैली (स्टाइल) में व्यवसाय कर रहा है। ऐसे मामलों में, उन पर इस तरह से मुकदमा चलाया जा सकता है जैसे कि यह एक फर्म का नाम हो और इस आदेश के प्रावधानों के अनुसार निष्पादित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अशोक ट्रांसपोर्ट एजेंसी बनाम अवधेश कुमार में कहा कि आदेश 30 का नियम 10 इस आदेश के प्रावधानों को मालिकाना (प्रोप्रिएटरी) चिंताओं पर भी लागू करता है। यह व्यवसाय के मालिक को अपनी मालिकाना वाली फर्म के नाम पर मुकदमा चलाने में सक्षम बनाता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

आदेश 30 का सार (एसेंस) गैर-व्यक्तिगत स्तर (लेवल) पर एक फर्म से संबंधित सिविल मुकदमे के विभिन्न भेदों को बताता है। आदेश को फर्मों के खिलाफ मुकदमा दायर करने की सुविधा के लिए एक सक्षम प्रावधान के रूप में स्थापित किया गया था, क्योंकि अगर किसी के साथ अन्याय होता है तो वह उचित मुआवजा (कंपनसेशन) देने के लिए बाध्य है। इंडियन पार्टनरशिप एक्ट के अनुसार, किसी कंपनी का पंजीकरण महत्वपूर्ण है। यदि कोई कंपनी अपंजीकृत (अनरजिस्टर्ड) है, तो वह अपने पार्टनर्स या किसी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं कर सकती है।

यदि फर्म का कोई पार्टनर धोखाधड़ी करते हुए पाया जाता है, जिसमें व्यक्तिगत लाभ के लिए व्यापार संपत्ति का गबन (एंबेजलमेंट) या हस्तांतरण शामिल हो सकता है, फर्म की बौद्धिक (इंटेलेक्चुअल) संपत्ति का खुलासा करना, या अपनी देनदारियों को पूरा करना बंद कर देता है, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। फर्मों या व्यक्तियों द्वारा अपने स्वयं के अलावा अलग-अलग नामों से व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों द्वारा या उनके खिलाफ मुकदमा बहुत अच्छी तरह से अलग कानूनी व्यक्तित्व के कंपनी कानून सिद्धांत और कॉर्पोरेट वेल को पियर्सिंग करने की अवधारणा (कांसेप्ट) के समानांतर (पैरलल) कहा जा सकता है।

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