यह लेख Moej Akhtar द्वारा लिखा गया है। इस लेख में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुशा के सिद्धांत के साथ-साथ सिद्धांत की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। साथ ही इसमें मुशा के उपहार के अर्थ, दायरे और सीमा पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुशा के उपहारों का वर्गीकरण और उनकी वैधता के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है।
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परिचय
उचित वैध तंत्र के माध्यम से संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करने के लिए, भारत में संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (जिसे आगे 1882 का अधिनियम कहा जाएगा) है। हालाँकि, भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं आदि का पालन करने वाले लोगों का एक विविध संप्रदाय है, और इसलिए, हमारे पास विवाह, तलाक, उत्तराधिकार (सक्सेशन), भरणपोशन, संरक्षकता (गार्डियनशिप) आदि से संबंधित मामलों के लिए विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून भी हैं। इस लेख में, हम उपहार के माध्यम से संपत्ति के हस्तांतरण (सटीक रूप से, अविभाजित हिस्से का हस्तांतरण) की एक ऐसी अवधारणा को समझेंगे, जिसमें मुस्लिम कानून में “बिना किसी विनिमय के” संपत्ति में अधिकार प्रदान किया जाता है।
आम आदमी की भाषा में, ‘उपहार’ एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के पक्ष में बिना किसी प्रतिफल के अपनी इच्छा से किया गया स्वामित्व हस्तांतरण है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, भारत में संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाला कानून संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 है, हालांकि, मुसलमानों द्वारा निष्पादित उपहारों को 1882 के अधिनियम की प्रयोज्यता से बाहर रखा गया है। 1882 के अधिनियम की धारा 129 में प्रावधान है कि 1882 के अधिनियम के प्रावधान उन उपहारों पर लागू नहीं होंगे जो मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दिए गए हैं। अधिनियम मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दिए गए उपहारों के लिए अपवाद प्रदान करता है और यह उपहार केवल मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत ही विनियमित होगा।
मुस्लिम कानून द्वारा शासित एक व्यक्ति या लोगों के एक विशिष्ट समूह को दो तरीकों से अपनी संपत्ति का प्रबंधन या हस्तांतरण करने की लचीलापन होती है, अर्थात्; इंटर-विवोज़ ट्रांसफर (सरल शब्दों में मालिक के जीवनकाल के दौरान संपत्ति का हस्तांतरण) और वसीयती निपटान (वसीयत, उपहार या विलेख के माध्यम से हस्तांतरण)। मुस्लिम कानून में उपहार विलेख के माध्यम से हस्तांतरण को ‘हिबा’ कहा जाता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हालांकि भारत में, उपहार शब्द को हिबा के समकक्ष (इक्विवलेंट) माना जाता है, जिसमें बिना किसी प्रतिफल के संपत्ति का हस्तांतरण होता है, एक उपहार का दायरा हिबा से बहुत व्यापक है। कानूनी तौर पर, ‘हिबा’ शब्द को अब्दुल रहीम ने अपनी पुस्तक मुस्लिम न्यायशास्त्र में परिभाषित किया है, जिसका अर्थ है “एक अनुबंध जिसमें दाता की ओर से कोई चीज़ देने का प्रस्ताव या उपहार स्वीकारने वाला और प्राप्तकर्ता / आदाता (डोनी) द्वारा इसे स्वीकार करना”। आम आदमी की भाषा में, हिबा शब्द का अर्थ ऐसी चीज़ देना या दान करना है, जिससे उपहार स्वीकारने वाला और प्राप्तकर्ता को लाभ मिल सके।
हिबा को चार उपशीर्षकों में विभाजित किया गया है, अर्थात्;
- हिबा (सादा उपहार)
- हिबा-बिल-इवाज़ (किसी चीज़ के बदले उपहार)
- हिबा-बिल-शारतुल-इवाज़ (शर्त के साथ दिया गया उपहार)
- हिबा-बिल-मुशा (अविभाजित भागो का उपहार)
यह लेख हिबा-बिल-मुशा के विभिन्न पहलुओं की चर्चा तक सीमित है। हिबा-बिल-मुशा या मुशा का उपहार मुस्लिम कानून के तहत उपहार की एक श्रेणी है जिसमें उपहार का विषय अन्य भागधारकों के साथ संयुक्त होता है और विभाजित नहीं होता है। यहां, दानकर्ता का हिस्सा संपत्ति के अन्य भागधारकों के भागो के साथ संयुक्त होता है।
मुशा या हिबा-बिल-मुशा के सिद्धांत पर आगे बढ़ने से पहले, आइए पहले हिबा की अवधारणा पर एक संक्षिप्त नज़र डालें।
हिबा
मुस्लिम कानून में उपहार को हिबा के नाम से जाना जाता है, जो एक अरबी शब्द है। मुस्लिम कानून में, निष्पादित उपहार विलेख (एग्जीक्यूटेड गिफ्ट डीड) को हिबानामा कहा जाता है। किसी मुस्लिम द्वारा दिया गया उपहार सुन्नी स्कूल ऑफ़ लॉ या शिया स्कूल ऑफ़ लॉ द्वारा विकसित प्रावधानों के अनुसार होना चाहिए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि दाता किस संप्रदाय से संबंधित है। भारत में बड़े पैमाने पर सुन्नी मुसलमान रहते हैं और इसलिए भारत में सुन्नी कानून के प्रावधानों का बड़े पैमाने पर पालन किया जाता है। इस्लाम के सुन्नी संप्रदाय के तहत लोकप्रिय स्कूलों में से एक हनफ़ी लॉ स्कूल है जिसकी स्थापना इराक के एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान अबू हनीफ़ा ने की थी। हनफ़ी विधि विद्यालय जो सुन्नी इस्लाम का एक संप्रदाय है, में उपहारों को हनफ़ी न्यायविदों (ज्यूरिस्ट) द्वारा विकसित कई प्रावधानों और सिद्धांतों के तहत विनियमित किया जाता है।
हिबा की अवधारणा को विस्तार से समझने के लिए इस लेख पर क्लिक करें – हिबा – मुस्लिम कानून के तहत उपहार।
वर्तमान लेख में हिबा-बिल-मुशा (अविभाजित भागो का उपहार) या मुशा के सिद्धांत पर विस्तार से चर्चा की गई है, जो मुस्लिम कानून या हिबा के तहत उपहार के विभाजनों में से एक है। लेख में मुशा के अर्थ, इसके प्रकार, इसके अपवाद और मुशा से संबंधित मामले के सिद्धांत को शामिल किया जाएगा।
मुशा का मतलब
मुशा शब्द अरबी शब्द “शायू” से आया है जिसका अर्थ है ‘संपत्ति में अविभाजित हिस्सा’। मुल्ला द्वारा मुस्लिम कानून के सिद्धांत 104 में, “मुशा को संपत्ति में अविभाजित हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है, चाहे वह चल हो या अचल”। जब कोई व्यक्ति संयुक्त रूप से रखी गई संपत्ति में अपना हिस्सा उपहार में देता है, तो अविभाजित हिस्से के उस उपहार को मुशा कहा जाता है। चूंकि संपत्ति बिना किसी विभाजन या बंटवारे के अपने हिस्सेदारों के बीच संयुक्त रूप से रखी जाती है, इसलिए किसी एक भाग को उपहार में देने से भ्रम पैदा होता है। ऐसे अस्पष्ट उपहार, जिनमें उपहार का विषय विभाजित नहीं होता है, वह मुशा के उपहारों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाते हैं। हेदया (मुस्लिम न्यायशास्त्र पर एक पुस्तक) में ‘मुशा’ की अवधारणा को इस प्रकार समझाया गया है, “विभाजन योग्य किसी चीज़ के हिस्से का उपहार तब तक वैध नहीं होता जब तक कि उक्त हिस्से को विभाजित करके दाता की संपत्ति से अलग न कर दिया जाए।
मुशा का सार (सब्जेक्ट मैटर)
यदि हिबा या उपहार का सार दाता से आदाता को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता, क्योंकि विषय-वस्तु संयुक्त रूप से धारित संपत्ति में अविभाजित हिस्सा है, तो ऐसी स्थिति में मुशा का सिद्धांत लागू होगा।
उदाहरण- A ने B को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में अपने भाग उपहार में दिए। हालाँकि, A के पास मौजूद कंपनी के भाग तुरंत समाप्त नहीं किए जा सकते और B को हस्तांतरित नहीं किए जा सकते। इसलिए, भले ही A ने कंपनी का अपना हिस्सा B को उपहार में दिया हो, लेकिन कब्जे का वास्तविक हस्तांतरण नहीं हुआ है। कंपनी का स्वामित्व उसके कई सह-हिस्सेदारों के पास है और कंपनी के भाग अभी तक उसके सह-हिस्सेदारों के बीच विभाजित नहीं हुए हैं। इस मामले में, मुशा के सिद्धांत को लागू किया जा सकता है क्योंकि भले ही यह स्पष्ट हो कि A ने कंपनी में अपना हिस्सा B को उपहार में दिया है, कंपनी में A के हिस्से के कब्जे का वास्तविक विवरण और सीमा अभी तक निर्धारित नहीं हुई है।
मुस्लिम कानून में मुशा के सिद्धांत को जिस एकमात्र उद्देश्य से पेश किया गया है, वह है अविभाजित भागो के मामलों में दानकर्ता द्वारा उपहार प्राप्तकर्ता को दिए गए उपहार के बारे में समाधान और स्पष्टता लाना। आम तौर पर यह माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली संपत्ति में से किसी को अपना हिस्सा उपहार में दे रहा है, तो पहले संपत्ति को ठीक से विभाजित किया जाना चाहिए और फिर संपत्ति का उपहार वाला हिस्सा उपहार प्राप्तकर्ता को हस्तांतरित किया जाना चाहिए।
मुशा के प्रकार
हनफ़ी विधि विद्यालय ने मुशा को दो श्रेणियों में विभाजित किया है। दोनों श्रेणियों पर नीचे विस्तार से चर्चा की गई है-
अविभाज्य होने में असमर्थ संपत्ति में मुशा
हिबा की अविभाज्यता (इंडिविजिबल) का प्रश्न और तथ्य तब उठता है जब हिबा का विषय ऐसा हो कि उसका विभाजन हिबा के निहित स्वार्थ को ही नष्ट कर दे। कुछ गुण ऐसे होते हैं जिनका विभाजन व्यावहारिक नहीं होता और उन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता। अविभाज्य मुशा को विभाजित करने की आवश्यकता नहीं है और वह अविभाजित रहने पर भी वैध माना जाएगा।
उदाहरण के लिए, स्नान घाट, सीढ़ी या सिनेमा हॉल को विभाजित नहीं किया जा सकता क्योंकि इन संपत्तियों का विभाजन या बंटवारा उस उद्देश्य को नष्ट कर देगा जिसके लिए ये संपत्तियां बनाई गई हैं। साथ ही, इस तरह की संपत्तियों का विभाजन संपत्ति के आर्थिक मूल्य और पहचान को बाधित करेगा। मान लीजिए, अगर दो घरों की एक आम सीढ़ी को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया जाए, तो इसका उपयोग करने वालों के लिए कोई मूल्य नहीं रह जाएगा। अगर सीढ़ी को लंबाई में विभाजित किया जाए, तो यह उपयोग करने के लिए बहुत संकरी (नैरो) हो जाएगी। अगर सीढ़ी को इस तरह से विभाजित किया जाए कि सीढ़ी का ऊपरी आधा हिस्सा एक व्यक्ति का हो और निचला आधा हिस्सा दूसरे व्यक्ति का हो, तो भी विभाजन सीढ़ी की पहचान और उपयोग को नष्ट कर देगा।
इस तरह की संपत्ति में, विभाजन न तो अनुकूल है और न ही इसमें शामिल पक्षों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक है। मुस्लिम पर्सनल लॉ हिबा या अविभाजित संपत्ति के उपहार की अनुमति देता है जिसमें संपत्ति प्रकृति में अविभाज्य है। इस तरह के उपहारों को मुशा अविभाज्य के रूप में जाना जाता है और ये वैध हैं। इसलिए, मुशा अविभाज्य की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) उन संपत्तियों तक बढ़ा दी गई है जो प्रकृति में अविभाज्य हैं।
उदाहरण- A और B दोनों संयुक्त रूप से एक मशीन या उपकरण के मालिक थे। A ने उपकरण में अपने हिस्से का हिबा C को किया। इस मामले में, उपकरण का विभाजन उस उपकरण की उपयोगिता को नष्ट कर देगा। इसलिए, यह मुशा का उपहार है जो अविभाज्य है और वैध माना जाएगा।
एक संपत्ति में मुशा विभाज्य होने में सक्षम है
वह उपहार या हिबा जिसमें उपहार की विषय-वस्तु विभाजन योग्य तो हो, लेकिन अविभाजित रहे, तो वह उपहार विभाज्य (डिविजिबल) मुशा कहलाएगा। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति ने अविभाजित भूमि में से अपना हिस्सा किसी को उपहार में दिया है। तो दाता द्वारा दिया गया उपहार या हिबा विभाज्य मुशा कहलाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि संयुक्त संपत्ति का अभी विभाजन नहीं हुआ है, इसे उसके हिस्सेदारों में विभाजित किया जा सकता है और भूमि का संबंधित हिस्सा दानकर्ता को हस्तांतरित किया जा सकता है। इस मामले में, भूमि के उचित विभाजन के बाद ही दाता से आदाता को कब्जे का हस्तांतरण संभव है। इसलिए, इस तरह के हिबा को विभाज्य मुशा कहा जाता है।
मुशा का विभाज्य उपहार शून्य नहीं माना जाता है, हालाँकि, इसे ‘फ़ासिद’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है अनियमित। यह ध्यान रखना उचित है कि, यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता या वैध नहीं बनाया जा सकता। इसे सुधारा जा सकता है, जिससे बाद में विभाजन और उपहार प्राप्तकर्ता को निर्दिष्ट हिस्से को प्रदान करने के माध्यम से उपहार वैध हो जाता है। एक बार कब्जा ले लेने के बाद, उपहार वैध हो जाता है।
मुशा विभाज्य की अवधारणा को आगे लाया गया है क्योंकि यह हिबा के निष्पादन, हस्तांतरण के साथ-साथ कब्जे को प्रदान करने की प्रक्रिया को सरल बनाता है। एक संपत्ति जो अच्छी तरह से विभाजित, सीमांकित और दानकर्ता के कब्जे में है, हिबा के लिए इष्टतम रूप से योग्य है। इसके अलावा, संयुक्त संपत्ति का उपहार देने से पहले दानकर्ता के हिस्से का विभाजन दानकर्ता को बिना किसी कठिनाई के उपहार का दावा करने में मदद करता है। यदि दानकर्ता का हिस्सा संयुक्त संपत्ति में विभाजित है, तो उपहार के निष्पादक के लिए उपहार को निष्पादित करना आसान और व्यावहारिक है। चूंकि दानकर्ता का हिस्सा विभाजित है, इसलिए उपहार में दिया गया हिस्सा बिना किसी जटिलता के आसानी से आदाता को हस्तांतरित किया जा सकता है। इसलिए, मुशा विभाज्य हिबा में कब्जे के हस्तांतरण और हिबानामा के निष्पादन की प्रक्रिया को सरल बनाता है।
उदाहरण- A ने संयुक्त रूप से धारित भूमि में से B को अपना हिस्सा उपहार में दिया। तब, यह उपहार मुशा विभाज्य का उपहार होगा। यह उपहार मुशा विभाज्य है क्योंकि भूमि विभाजन योग्य है और इसे विभाजित किया जा सकता है। भूमि के विभाजन के बाद, उपहारों को आगे आसानी से निष्पादित किया जा सकता है। इस मामले में, हिबा या उपहार को अनियमित घोषित किया जाएगा और A को संयुक्त रूप से धारित भूमि से अपने हिस्से का विभाजन करना होगा ताकि एक स्पष्ट और सीमांकित भूमि A के कब्जे में आ जाए। अपने हिस्से का कब्ज़ा लेने के बाद ही, A जो यहाँ दाता है, B को दिए गए उपहार को निष्पादित कर सकता है। मुशा विभाज्य के मामले में, हिबा का निष्पादन केवल संपत्ति या उपहार में दी जानेवाली चीज के विभाजन के बाद होगा।
मुशा विभाज्य के सिद्धांत के अपवाद
मुशा के सिद्धांत के प्रावधानों और प्रयोज्यता पर ऊपर चर्चा की गई है, लेकिन फिर भी, उपहार या हिबा की कुछ श्रेणियां हैं जिनमें विभाज्य मुशा का सिद्धांत लागू नहीं होता है। मुल्ला द्वारा मुस्लिम कानून के सिद्धांतों के अनुसार, मुशा विभाज्य के उपहार के अपवादों पर नीचे चर्चा की गई है-
एक उत्तराधिकारी द्वारा दूसरे उत्तराधिकारी को दिया गया उपहार
अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली संपत्ति में अपने हिस्से का मुशा किसी ऐसे व्यक्ति को उपहार में देता है जो उस मुस्लिम व्यक्ति के कानूनी वारिसों या सह-वारिसों में से एक है, तो उसे वैध माना जाएगा। उदाहरण के लिए, एक मुस्लिम महिला अपने बेटे और बेटी के पक्ष में उपहार देते समय मर जाती है, तो महिला द्वारा अपने वारिसों में से किसी एक या दोनों को वैध उपहार दिया जा सकता है।
मुस्लिम कानून दानकर्ता को अविभाजित संपत्ति में से किसी एक हिस्से को अपने किसी सह-उत्तराधिकारी (को हेयर्स) को उपहार में देने की अनुमति देता है और यह उपहार वैध होगा। इस मामले में, मुशा के सिद्धांत को लागू नहीं किया जाएगा और इस प्रकार के उपहार या हिबा जिसमें दाता आदाता का सह-उत्तराधिकारी या कानूनी उत्तराधिकारी है, तो उसे मुशा की श्रेणी से छूट प्राप्त होती है। इसलिए, मुशा का सिद्धांत तब भी लागू नहीं होगा, जब संपत्ति अविभाजित रहे और दाता ने अपने हिस्से को सह-उत्तराधिकारियों में से किसी एक को उपहार में दे दिया हो।
किसी कंपनी में अपना भाग दान करना
अगर कोई मुसलमान किसी लिमिटेड कंपनी में अपना हिस्सा किसी को उपहार में देता है, तो वह उपहार वैध माना जाएगा और इस मामले में मुशा का सिद्धांत लागू नहीं होगा, भले ही दाता के भाग लिमिटेड कंपनी में अविभाजित रहें। कोई व्यक्ति लिमिटेड कंपनी में अपने अविभाजित हिस्से को उपहार में देने के लिए स्वतंत्र है, वह भी कंपनी में अपने हिस्से के बंटवारे के बिना। इस मामले में मुशा का सिद्धांत लागू नहीं होता क्योंकि भविष्य में भागो का बंटवारा हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन उपहार वैध माना जाएगा। यह मामला मुशा के सिद्धांत का अपवाद है।
इब्राहिम गुलाम आरिफ बनाम सैबू (1907) के मामले में, इब्राहिम गुलाम आरिफ की संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर विवाद हुआ, जो रंगून का एक धनी निवासी था। इस मामले में विवाद का कारण कुछ उपहार विलेख थे जो इब्राहिम गुलाम ने अपने नाबालिग बच्चों और पत्नियों के पक्ष में बनाए थे। उन्होंने एक मूल्यवान व्यावसायिक संपत्ति और कंपनियों में कुछ अविभाजित भाग उपहार में दिए, जिसका उल्लेख उपहार विलेख में किया गया था। इब्राहिम गुलाम की वसीयत के निष्पादक ने उपहार विलेख को इस आधार पर चुनौती दी कि दाता जब उपहार दे रहा था, तब वह बीमार था और उपहार में छह कंपनियों में अविभाजित भाग और भूमि शामिल थी। चूंकि भाग अविभाजित थे, इसलिए उपहार निष्पादित नहीं किया जा सकता और मुशा के सिद्धांत के आधार पर यह अमान्य है। बाद में, महामहिम (मेजेस्टी) के समक्ष यह निर्धारित किया गया कि इस मामले में शामिल संपत्तियां कंपनियों में भाग और एक बड़े वाणिज्यिक शहर में पूर्ण स्वामित्ववाली (फ्रीहोल्ड) संपत्ति थीं। इसलिए, यह तर्क कि उपहार मुशा के सिद्धांत द्वारा वर्जित है, अच्छी तरह से स्थापित नहीं है और इसी मुद्दे पर अदालत ने उपहार को वैध माना। इस मामले से, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि एक सीमित कंपनी और पूर्ण स्वामित्व वाली वाणिज्यिक संपत्ति में अविभाजित भागो का उपहार मुशा के लिए अपवाद है।
वाणिज्यिक शहरों में पूर्ण स्वामित्ववाली संपत्ति का उपहार
पूर्ण स्वामित्ववाली संपत्ति वह संपत्ति होती है जिसमें मालिक के पास न केवल जमीन पर बने घर या संपत्ति का अधिकार होता है, बल्कि उस जमीन का भी अधिकार होता है जिस पर वह संपत्ति बनी है। पूर्ण प्रकार के स्वामित्व में, मालिक के पास जमीन के साथ-साथ जमीन पर खड़ी इमारत दोनों का स्वामित्व होता है। पूर्ण स्वामित्ववाली संपत्ति के मामले में, संपत्ति का मालिक या सह-मालिक अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति को अपना हिस्सा उपहार में दे सकता है। आधुनिक समाज की विकासशील जरूरतों को पूरा करने और किसी संपत्ति में भागो के हस्तांतरण को अधिक सरल और कानूनी झंझट से मुक्त बनाने के लिए, वाणिज्यिक शहर किसी भी संपत्ति में अविभाजित भागो को उपहार में देने की अनुमति देते हैं, चाहे वह घर हो या जमीन। इस मामले में, मुशा का सिद्धांत लागू नहीं होगा। यहां बिना किसी बाधा के संपत्ति के लाभकारी आर्थिक लाभों का आनंद लेने के लिए अपवाद बनाया गया था।
ऐसे मामले में जहां उपहार किसी बड़े वाणिज्यिक शहर में स्थित मकान के हिस्से का दिया गया हो, तो उसे पूर्व विभाजन के बिना भी वैध उपहार माना जाएगा और इसलिए ऐसे उपहार को मुशा के उपहार का अपवाद माना जाएगा।
खुर्शीदा बेगम बनाम मोहम्मद फारूक (2016) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जयपुर शहर में पिता द्वारा अपने नाबालिग बेटे को दिया गया उपहार वैध है। अदालत ने माना कि संपत्ति जयपुर में स्थित है जो राजस्थान राज्य की राजधानी है, एक बड़ा वाणिज्यिक शहर है। इस मामले में, पिता ने अपने नाबालिग बेटे के पक्ष में जयपुर में स्थित एक अविभाजित संपत्ति का उपहार विलेख निष्पादित किया। नाबालिग बेटे के पिता, जो इस मामले में दाता हैं, उन्होंने संपत्ति में रहने वाले किरायेदारों को यह स्पष्ट कर दिया कि उनके बेटे, जो इस मामले में दाता हैं, उसे उक्त संपत्ति से किराया वसूलने का अधिकार है। इसलिए किराया वसूलने का अधिकार बेटे को हस्तांतरित कर दिया गया। अदालत ने माना कि हालांकि मुकदमे में संपत्ति अविभाजित है, इस तथ्य के कारण कि संपत्ति एक बड़े वाणिज्यिक शहर में स्थित है उक्त उपहार मुशा के सिद्धांत द्वारा बाधित नहीं माना जायेगा।
हाजिरा भीमल बनाम सरू बाई एवं अन्य (1990) के मामले में, एक जमीन के टुकड़े को लेकर वादी और प्रतिवादी के बीच विवाद उत्पन्न हुआ। वादी अब्दुल करीम इस्माइल सैत की दूसरी पत्नी है। प्रतिवादी उसकी पहली पत्नी और उसकी पहली पत्नी से हुए बच्चे थे। अब्दुल करीम इस्माइल ने वादी के पक्ष में जमीन का आधा टुकड़ा उपहार में दिया था। उपहार विलेख में यह भी उल्लेख किया गया था कि आधी जमीन वादी की है और उसे इसे विभाजित करने और बाद में इसे अपने कब्जे में लेने का अधिकार है। प्रतिवादियों ने इस आधार पर जमीन के विभाजन पर आपत्ति जताई कि उपहार भूमि का एक अविभाजित हिस्सा है जो मुशा के सिद्धांत के आवेदन के कारण अमान्य है। विचारणीय न्यायालय ने प्रतिवादियों की दलीलों का समर्थन किया और वादी के पक्ष में फैसला देने से इनकार कर दिया केरल उच्च न्यायालय ने माना कि किसी संपत्ति में अविभाजित हिस्से का उपहार अनियमित (फासीद) है, लेकिन शून्य (बतिल) नहीं है। न्यायालय ने माना कि उपहार विलेख में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि भूमि का आधा हिस्सा वादी का है और उसे विभाजन करने और इसे अपने कब्जे में लेने का अधिकार है। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी माना कि थोप्पुमपडी शहर जो कोचीन निगम का हिस्सा है, इस प्रकार, भूमि एक बड़े वाणिज्यिक शहर में स्थित है। चूंकि भूमि एक वाणिज्यिक शहर में है, भले ही उपहार अपनी शुरुआत से ही अविभाजित रहा हो, लेकिन यह वैध है।
किसी सह-हिस्सेदार द्वारा जमींदारी या तलौका में हिस्सा दान करना
ज़मींदारी व्यवस्था में सह-हिस्सेदार द्वारा मुशा को दिया गया हिस्सा वैध माना जाता है क्योंकि ऐसे मामले में उपहार व्यक्तिगत रूप से एक विशेष भाग या भाग का किराया प्राप्त करने और एकत्र करने का अधिकार है। उदाहरण के लिए, यदि दो व्यक्ति, A और B, ज़मींदारी प्रणाली में एकत्रित आय के सह-हिस्सेदार हैं, जिसमें उन दोनों का एक विशिष्ट हिस्सा है, और B ज़मींदारी का अपना हिस्सा A को उपहार में देता है, तो ऐसा उपहार वैध है।
ज़मींदारी व्यवस्था ब्रिटिश भारत में कर वसूलने के लिए अंग्रेजों द्वारा व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली अवधारणा है। आम तौर पर, ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा किसी खास ज़मींदार को दिया जाता था और वह ज़मींदार उन किसानों से कर वसूलने के लिए ज़िम्मेदार होता था जो उस ज़मीन पर काम करते थे और फ़सल उगाते थे। हर ज़मींदार उसे आवंटित ज़मीन से कर वसूलने के लिए ज़िम्मेदार होता है। भले ही आज़ादी के बाद अब तक इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया हो, लेकिन अनुकूल कृषि उत्पादन के कारण ज़मीन के बड़े हिस्से को रखने की अवधारणा को अभी भी प्रोत्साहित किया जाता रहा है। अक्सर ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा एक से ज़्यादा लोगों के पास होता था और उनमें से कोई भी ज़मीन की ज़मींदारी व्यवस्था से अपना हिस्सा बांटे बिना किसी को भी अपना हिस्सा उपहार में दे सकता था। इसलिए, इस मामले में, मुशा का सिद्धांत तब भी लागू नहीं होता जब उपहार अविभाजित रहता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन (एबोलिशन) के बाद इस अपवाद की कोई प्रासंगिकता (रेलिवेंस) और व्यावहारिक महत्व नहीं रह गया है।
एक निश्चित शर्त के साथ मुशा उपहार
किसी उपहार में जहां यह निश्चित शर्त हो कि दाता को निश्चित राशि या आवधिक राशि का भुगतान करना होगा, ऐसे मामले में, इसे मुशा के उपहार के अपवाद के रूप में माना जाता है।
शिया कानून में दोनों प्रकार के मुशा की स्वीकार्यता
शिया कानून में मुशा का उपहार, चाहे वह विभाज्य मुशा हो या अविभाज्य मुशा, दोनों ही वैध हैं। हालांकि, यहां जरूरी बात यह है कि कब्जा दाता से आदाता को हस्तांतरित किया जाना चाहिए, और इस प्रकार संपत्ति खाली हो जाती है और आदाता का उस पर पूरा नियंत्रण होता है।
शिया और सुन्नी कानून के तहत मुशा सिद्धांत की मान्यता
पूरी दुनिया में मुस्लिम समुदाय को दो श्रेणियों में बांटा गया है, यानी सुन्नी मुस्लिम और शिया मुस्लिम। शिया और सुन्नी मुसलमानों के लिए विभिन्न व्यक्तिगत और प्रशासनिक मामलों को नियंत्रित करने वाले कानून अलग-अलग हैं। एक ही घटना की व्याख्या शिया मुसलमान और सुन्नी मुसलमान अलग-अलग तरीके से हो सकती है।
भारत में मुख्य रूप से सुन्नी मुसलमान रहते हैं, इसलिए भारत में मुसलमानों के मामलों को नियंत्रित करने वाले अधिकांश नियम और कानून सुन्नी विधि-विद्यालयों से लिए गए हैं। जबकि इराक, ईरान, लेबनान और अन्य देशों में शिया मुसलमान रहते हैं और उन देशों द्वारा अपनाए गए मुस्लिम कानून सुन्नी मुसलमानों के कानूनों से अलग हैं। भारत में सुन्नी मुसलमानों के प्रमुख विधि-विद्यालयों में से एक हनफ़ी विधि-विद्यालय है और हनफ़ी विधि-विद्यालय द्वारा विकसित कानून और विनियमन मुस्लिम पर्सनल लॉ में संरचित हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मामलों का शासन न केवल सुन्नी विधि-विद्यालय से लिया गया है, बल्कि कुरानिक ग्रंथों और हदीस से भी लिया गया है।
जहाँ तक मुशा के उपहार का सवाल है, सुन्नी कानून किसी को उपहार देने से पहले संपत्ति को विभाजित करने की अवधारणा को बढ़ावा देता है। इसका मतलब है कि अगर कोई संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली संपत्ति में अपना हिस्सा उपहार में दे रहा है तो उसे पहले संपत्ति का विभाजन करना चाहिए और फिर वह संपत्ति के अपने हिस्से को किसी को भी उपहार में दे सकता है।
यह जानना उचित है कि जहां तक मुशा के सिद्धांत की वैधता और प्रयोज्यता का सवाल है, मुस्लिम कानून के विभिन्न स्कूलों के बीच बहुत अधिक सहमति और एकमतता नहीं है। जबकि हनफ़ी विधि विद्यालय की बात करें, जिसकी शिक्षाओं का पालन सुन्नी मुसलमान करते हैं, तो वहा मुशा को बहुत मान्यता नहीं है। हालाँकि, शिया कानून में, मुशा विभाज्य और मुशा अविभाज्य को वैध माना जाता है, बशर्ते कि कब्ज़ा आदाता को हस्तांतरित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
यद्यपि मुशा की अवधारणा और सिद्धांत मुस्लिम पर्सनल लॉ का एक हिस्सा है, लेकिन इस सिद्धांत की प्रयोज्यता बहुत सीमित दायरे में है। इसे केवल मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दिए गए उपहारों या हिबा पर ही लागू किया जा सकता है, यानी, दाता मुस्लिम होना चाहिए। इसके अलावा, उपहार संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली संपत्ति के हिस्से से बिना विभाजन या विभाजन के अक्षम होना चाहिए। यहां तक कि अगर किसी उपहार को मुशा के तहत वर्गीकृत किया जाता है, तो भी वहा सिद्धांत से छूट पाने के तरीके हैं, जैसे कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 के तहत उपहार देना, या संपत्ति को विभाजित करने के बाद उपहार देना आदि। भारतीय समाज में एक महानगरीय संस्कृति विकसित करना पूरे भारत में संपत्ति के सामान्य हस्तांतरण के लिए एक समान कानून को प्रोत्साहित करता है। जहां तक मुशा के सिद्धांत का सवाल है, यह आजकल बहुत लोकप्रिय नहीं है और अगर यह कुछ नगण्य मामलों में लागू भी है, तो इसकी प्रयोज्यता की सीमा बहुत कम मामलों तक ही सीमित है। इसलिए, कानून और समाज के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उन्नयन (अपग्रेडेशन) के कारण, मुशा का सिद्धांत आज की दुनिया में बहुत प्रासंगिक नहीं हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
मुशा का सिद्धांत सामान्यतः किस संपत्ति में लागू होता है?
मुशा का सिद्धांत केवल मुस्लिम द्वारा दी गई चल या अचल संपत्ति में अविभाजित भागो के उपहार पर लागू होता है। मुशा के सिद्धांत में कहा गया है कि किसी संपत्ति में अविभाजित हिस्से का उपहार अमान्य है लेकिन शून्य नहीं है। संबंधित संपत्ति को आगे विभाजित या उसके भाग करके उपहार को नियमित बनाया जा सकता है। यदि उपहार में दी गई संपत्ति विभाजित करने में असमर्थ है तो उपहार को अविभाज्य मुशा कहा जाता है और यह वैध है। मुशा केवल मुसलमानों द्वारा दिए गए उपहारों पर लागू होता है।
क्या मुशा संपत्ति को बेचा और आगे स्थानांतरित किया जा सकता है?
यदि संपत्ति मुशा विभाज्य है तो संयुक्त संपत्ति का विभाजन करके और उसके बाद आदाता को कब्ज़ा देकर उपहार को पहले नियमित किया जाना चाहिए। संपत्ति के विभाजन के बाद, आदाता का हिस्सा स्पष्ट रूप से चिह्नित किया जाता है और इसलिए आदाता आगे संपत्ति को बेच सकता है या किसी को भी संपत्ति हस्तांतरित कर सकता है। मुशा अविभाज्य उपहारों के मामले में, आदाता संपत्ति में अपना हिस्सा हस्तांतरित या बेच सकता है और संपत्ति का नया मालिक अन्य पूर्व-सह-मालिकों के साथ संयुक्त रूप से संपत्ति का हिस्सा रखेगा।
मुशा और विभाजित संपत्ति में क्या अंतर है?
मुशा एक सिद्धांत है जो किसी व्यक्ति को संपत्ति में अविभाजित हिस्सा उपहार में देने पर रोक लगाता है। मुशा विभाज्य के मामले में संपत्ति का विभाजन किया जाना चाहिए और फिर उपहार में दिया गया हिस्सा आदाता को हस्तांतरित किया जाना चाहिए। अविभाजित संपत्ति का विभाजन मुशा के उपहार को निष्पादित करने में मदद करता है। एक अच्छी तरह से सीमांकित और विभाजित संपत्ति को आसानी से आदाता को हस्तांतरित किया जा सकता है।
मुशा के सिद्धांत के कारण क्या कानूनी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं?
आज के विकासशील समाज में मुशा का सिद्धांत बहुत प्रासंगिक नहीं है। मुशा के उपहार के लिए कई अपवाद हैं, जैसे सह-उत्तराधिकारी को दिया गया उपहार, जमींदारी भाग का उपहार, पूर्ण स्वामित्ववाली संपत्ति का उपहार आदि। जैसे-जैसे समाज विकसित होता है, सिद्धांत की प्रयोज्यता नगण्य होती जाती है। कई मामलों में न्यायालयों ने माना है कि सिद्धांत की प्रयोज्यता एक प्रगतिशील समाज के लिए अनुपयुक्त है और सिद्धांत को सख्त नियमों के भीतर सीमित रखा जाना चाहिए।
संदर्भ