इस लेख में, Priyanship Pandey मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इद्दत के प्रावधान पर चर्चा करते हैं। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय
इदाह या इद्दत एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है प्रतीक्षा की अवधि और यह मुस्लिम महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह पवित्रता की अवधि है जो एक मुस्लिम महिला अपने पति की मृत्यु के कारण, तलाक के कारण या अपनी शादी के विघटन के बाद पालन करने के लिए बाध्य है उसे इस इद्दत की अवधि पूर्ण करनी होती है इससे पहले की वह फिर से कानूनी रूप से शादी करे। इद्दत की अवधि का पालन करने का कारण यह पता लगाना है कि महिला गर्भवती है या नहीं और साथ ही होने वाले बच्चे के पितृत्व की निश्चितता को पता लगाने के लिए है।
अलग-अलग मामलों में इद्दत की अवधि अलग-अलग होती है
- एक तलाकशुदा महिला इसे 3 महीने तक निभाती है जबकि एक महिला जिसके पति की मृत्यु हो गई है, वह अपने पति की मृत्यु के बाद चार चंद्र महीनों (लुनर मंथ्स) और दस दिनों तक इसे निभाती है, चाहे उनकी शादी के बाद उनका वैवाहिक जीवन संपन्न हुआ हो या नहीं।
- इद्दत की अवधि गर्भवती तलाकशुदा महिला के लिए तब तक होती है जब तक कि वह बच्चे को जन्म दे देती है या गर्भपात कराती है।
- यदि पति की मृत्यु के समय एक महिला गर्भवती है, तो वह पूरे एक वर्ष के लिए इद्दत मनाती है जिसमें गर्भावस्था के लिए नौ महीने और तीन महीने की इद्दत अवधि होती है।
इस अवधि को कुछ इस्लामी विद्वानों द्वारा अपने पति की मृत्यु के लिए शोक करने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करके संतुलन के रूप में माना जाता है और विधवा को आलोचना (क्रिटिसिजम) से भी बचाता है कि उसे अपने पति की मृत्यु के बाद बहुत जल्दी पुनर्विवाह के अधीन किया जा सकता है। यह अवधि मुख्य रूप से यह निर्धारित करने में मदद करती है कि महिला गर्भवती है या नहीं, क्योंकि साढ़े चार महीने सामान्य गर्भावस्था की अवधि का आधा है, यदि वह गर्भवती हो। मुस्लिम कानून में, पति अपनी पत्नियों के पक्ष में एक वर्ष के निवास और भरण पोषण के प्रावधान के लिए एक वसीयत बना सकता है, जब तक कि पत्नियां अपनी मर्जी से घर नहीं छोड़ती हैं।
(अल-बकराह 2:234-235) कुरान की आयतों (एनलिस्ट) में इद्दत के बारे में निम्नलिखित बातें लिखी गई हैं –
- विधवा के लिए पालन की जाने वाली अवधि चार महीने और दस दिन है,
- इस अवधि के दौरान एक महिला दूसरे पुरुष से शादी नहीं कर सकती है,
- यदि कोई व्यक्ति विधवा या तलाकशुदा महिला से शादी करना चाहता है, और जब इद्दत की अवधि चल रही है, तो वह सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके से अपने इरादों की घोषणा कर सकता है, विधवा के साथ विवाह की कोई गुप्त प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) नहीं होनी चाहिए।
- एक बार चार महीने और दस दिनों की अवधि पूरी हो जाने के बाद, एक विवाह अनुबंध को अंतिम रूप दिया जा सकता है जिसमें विवाह की रस्मों के लिए समय और स्थान होता है।
इद्दाह मनाने का स्थान
- इद्दत की अवधि उसी घर में मनाना अनिवार्य है जहां महिला अपने पति की मृत्यु के समय या विवाह के विघटन के समय स्थायी रूप से निवास कर रही थी।
- यदि किसी महिला को यात्रा के दौरान अपने पति की मृत्यु की खबर मिलती है, तो उसे तुरंत अपने निवास स्थान पर इद्दत का पालन करने के लिए लौटना चाहिए, बशर्ते कि उसका घर पहुंच के बाहर न हो, वरना वह अपनी मंजिल तक पहुंच सकती थी।
- जिस स्त्री को उसके माता-पिता के घर भेजा गया था, उसे अपने पति की मृत्यु पर अपने पति के घर वापस लौटकर इद्दत पूरी करनी चाहिए क्योंकि नियम के अनुसार इद्दत उस घर में पूरी होती है जो पत्नी का स्थायी निवास होता है। उसके माता-पिता के घर को स्थायी निवास नहीं माना जाता है।
इद्दत के नियम
इद्दत के समय मुस्लिम महिलाओं के लिए कुछ चीजें वर्जित हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ में ‘हराम’ शब्द का प्रयोग सख्त वर्जित चीजों के लिए किया जाता है जैसे –
- इद्दत के दौरान मेकअप या किसी अन्य तरीके से खुद को सुंदर बनाने की गतिविधियों में शामिल होना एक महिला पर हराम है।
- पत्नी को रेशमी कपड़े या अन्य भड़कीले कपड़े पहनने की मनाई होती है। इस अवधि के दौरान पहनने के लिए कोई विशेष रंग निर्दिष्ट नहीं है जैसे काला या सफेद या ऐसा कोई भी, केवल एक साधारण और सादा कपड़े ही पर्याप्त होंगे।
- पत्नी को इद्दत की अवधि पूरी होने तक घर छोड़ने की अनुमति नहीं है जब तक कि कोई आपात (इमर्जेंसी) स्थिति जैसे बुनियादी जरूरतों या चिकित्सा बीमारी की आवश्यकता इस हद तक न हो कि एक चिकित्सक को घर बुलाने की व्यवस्था करना असंभव हो।
- वह अपने पति के लिए अल्लाह (ईश्वर) से प्रार्थना करके और अपने पति के लिए और अपने लिए अल्लाह-सुभानहू की याचना करके शोक करने के लिए बाध्य है।
- चाँद या दर्पण को देखने पर कोई प्रतिबंध नहीं है क्योंकि इस्लाम के नाम पर कुछ लोग इन प्रतिबंधों को लागू करने की कोशिश करते हैं।
इद्दत/इद्दत की शुरुआत
इद्दत की अवधि मुस्लिम पत्नी के लिए पति की मृत्यु के ठीक बाद या तलाक के बाद शुरू होती है। इद्दत का पालन करने के लिए उसकी अज्ञानता के बावजूद, यह किसी भी तरह से उचित या प्रभावित नहीं होगा।
- यदि उसे अपने पति की मृत्यु के समय समाचार प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन निर्धारित इद्दत अवधि के भीतर इसके बारे में पता चला, तो वह इद्दत अवधि के शेष दिनों के लिए इसका पालन करने के लिए बाध्य है।
- यदि इद्दत की अवधि बीत जाने के बाद उसे खबर मिलती है, तो वह इसका अनुभव करने के लिए बाध्य नहीं है। इद्दत का समय पति के निधन के समय से या तलाक दिए जाने के समय से गिना जाता है।
इद्दत के दौरान शादी पर रोक
कुरान इद्दत का पालन करने वाली महिला से शादी करने के इरादे की घोषणा करने के लिए केवल सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके की अनुमति देता है, अन्य सभी प्रत्यक्ष प्रस्ताव या गुप्त प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) सख्त वर्जित हैं। इद्दत की अवधि पूरी होने के बाद, महिलाएं कानूनी रूप से दूसरी शादी के अनुबंध में प्रवेश कर सकती हैं। इद्दत की अवधि के दौरान की गई शादी को इस्लामी कानून में मान्यता नहीं दी जाती है और इसे शून्य माना जाता है।
इद्दत के दौरान घर पर रहना
- इद्दत अवधि के दौरान, पत्नी अपने मृत पति के घर के बाहर की सारी चीजों से वंचित हो जाती है। अगर उसके पास बुनियादी जरूरतों के पर्याप्त संसाधन हैं तो उसे (हराम) अपना घर छोड़ने की अनुमति नहीं है।
- उसे घर छोड़ने की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब वह अकेली कमाने वाली हो जिसके पास अपनी आजीविका चलाने के लिए आय का कोई अन्य स्रोत न हो। उसे केवल दिन के समय काम करने की अनुमति है और उसे रात होने से पहले घर लौटना होता है।
- उसे खुद को एक निश्चित कमरे तक सीमित रखने या चुप रहने की आवश्यकता नहीं है, वह घर का काम कर सकती है या खुद को अच्छे कामों में लगा सकती है या अल्लाह से प्रार्थना कर सकती है।
- उसे मेहरम (परिवार का एक पुरुष सदस्य जिससे वह इस्लामी कानून के तहत शादी नहीं कर सकती) के साथ किसी भी आपातकालीन चिकित्सा उपचार के लिए घर छोड़ने की अनुमति है।
- उसे किसी भी अंतिम संस्कार में शामिल होने या बीमार लोगों से मिलने से मना किया जाता है, हालांकि वे करीबी रिश्तेदार या तत्काल पड़ोसी हो सकते हैं।
- यदि घर के अंदर उचित आवास (एकोमोडेशन) नहीं है, या शेष वारिस उसे मृतक की संपत्ति का उपयोग करने की अनुमति नहीं देते हैं या उसे इस्लाम के तहत आवश्यक पर्दा बनाए रखने में परेशानी का सामना करना पड़ता है, तो उसे मृत पति के घर से स्थानांतरित करने की अनुमति है।
- यदि पत्नी किराए के घर का भाड़ा भरने में असमर्थ है, तो वह नजदीक के सुरक्षित स्थान पर जा सकती है, जहाँ उसे अपनी इद्दत की अवधि पूरी करनी होगी।
- यदि वह उस घर की एकमात्र रहने वाली है जहाँ इद्दत पारित करनी है, लेकिन अकेले होने का डर इस हद तक है कि मानसिक बीमारी या कोई दोष हो सकता है, तो उसे दूसरे घर में जाने की अनुमति है। उचित मात्रा में भय घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं देता है।
- यदि घर जीर्ण-शीर्ण (डिलापीडेटेड) स्थिति में है और यह जोखिम है कि यह जल्द ही किसी भी समय गिर सकता है या ढह सकता है या यह सुरक्षित नहीं है जो महिला की शुद्धता या सम्मान या जीवन के लिए खतरा हो सकता है, तो उसे उस स्थान से स्थानांतरित करने की अनुमति है। लेकिन जैसे ही जोखिम का कारण दूर हो जाता है, वह अपने घर लौटने के लिए बाध्य होती है।
ऊपर बताए गए सभी मामलों में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए जैसे –
- कारण सही और वास्तविक होना चाहिए।
- उसे निकटतम उपलब्ध सुरक्षित स्थान पर जाना चाहिए।
- एक बार घर बदलने के बाद, वह बिना किसी वैध कारण के अपनी इद्दत पूरी करने से पहले दूसरी जगह नहीं जा सकती है।
इद्दत के दौरान भरण पोषण
इद्दत की अवधि के दौरान, एक मुस्लिम पत्नी अपने पति की संपत्ति से भरण पोषण का दावा करने की हकदार नहीं होती क्योंकि वह स्वयं उसकी उत्तराधिकारी होती है। इसका कारण यह है कि पत्नी के भरण पोषण का दायित्व केवल पति पर होता है न कि अन्य उत्तराधिकारियों पर। अगर उसे अपना दहेज (मेहर) नहीं मिला और न ही उसने इसे त्यागा है, तो वह इसे अपनी संपत्ति से पहले शुल्क के रूप में प्राप्त करने की हकदार होगी।
इद्दत के पालन के नियम
कुरान में ‘मृत्यु की इद्दत’ के पालन के संबंध में दो छंद हैं जिन्हें अयाह के रूप में जाना जाता है। ये अयाह इद्दत के महत्व को दर्शाती हैं –
- (ए.आई. बकराह – 234) के अनुसार –
‘और तुम में से जो मर जाते हैं और पत्नियों को छोड़ देते हैं, ऐसी स्त्रियां चार महीने दस दिन तक प्रतीक्षा में रहेगी।’
2. गर्भवती महिलाओं के लिए, (अल-तलाक – 4) के अनुसार –
‘और गर्भवती महिलाओं के पास, उनका निर्धारित समय है जब वे अपना बोझ किसी पर डाल सकती है’।