बुराड़ी मौत का मामला

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यह लेख Oishika Banerji द्वारा लिखा गया है और Shweta Singh द्वारा अद्यतन किया गया है। यह लेख बहुचर्चित बुराड़ी मौत मामले का विवरण प्रस्तुत करता है, जिसने 2018 में अपने रहस्यमयी मामले से पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इसमें उन घटनाओं के संबंध में मनोवैज्ञानिकों की राय पर भी प्रकाश डाला गया है। इसके अलावा, इस लेख में इसी तरह की घटनाओं के इतिहास और बुराड़ी मौत मामले के बाद सामने आए हालिया मामलों पर चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Chitrangda Sharma के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

2018 में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरने वाला भयावह मामला बुराड़ी मौत का मामला था। दिल्ली के बुराड़ी जिले में रहने वाले 11 सदस्यों वाले एक परिवार ने फांसी लगाकर सामूहिक आत्महत्या कर ली थी। जब बुराड़ी मौत मामले की खबर फैली तो परिवार के 11 सदस्यों की रहस्यमय मौतों के बारे में जनता के बीच बड़े पैमाने पर अटकलें लगाई जाने लगीं। मीडिया ने भी इस मामले को सनसनीखेज बना दिया तथा ध्यान आकर्षित करने तथा दर्शकों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से घटना से संबंधित विभिन्न पहलुओं को बिना तथ्यात्मक आधार के प्रचारित किया। 

हालांकि, बुराड़ी मामले से जुड़ी सच्ची जानकारी और अंदर की गहरी कहानी को नेटफ्लिक्स पर लीना यादव की दस्तावेजी (डॉक्यूमेंट्री) ‘हाउस ऑफ सीक्रेट्स: द बुराड़ी डेथ्स’ ने बेहतर तरीके से उजागर किया। 2007 में भोपाल सिंह की मौत ने इस मामले से जुड़े भाटिया परिवार (जिन्हें चूंडावत भी कहा जाता है) के लिए सब कुछ बदल दिया। उनकी मृत्यु से पहले, परिवार किसी भी अन्य मध्यमवर्गीय परिवार की तरह ही था, जो व्यवस्थित था और सामान्य परिवार की तरह पारिवारिक मामलों की देखभाल करता था। जांच के दौरान जिन लोगों से पूछताछ की गई उनमें से कई लोगो ने कहा कि उन्हें लगता है कि भोपाल सिंह की मौत के बाद परिवार ने कठिन समय से उबरने के लिए अध्यात्म का सहारा लिया था। लेकिन परिवार में कोई भी यह नहीं बता पाया कि बुराड़ी परिवार में वास्तव में क्या हुआ था। 

इस लेख में उपलब्ध जानकारी के माध्यम से विभिन्न दृष्टिकोणों से विभिन्न तथ्यों और कारणों को उजागर करने का प्रयास किया गया है। यह लेख पाठकों को 11 सदस्यीय परिवार के बंद दरवाजे के भीतर जो कुछ हुआ उसके पीछे के वास्तविक कारण को समझाने में मदद करेगा। 

एक ही परिवार के 11 सदस्यों की रहस्यमयी मौत

वर्ष 2018 में 1 जुलाई का दिन था, जब बुराड़ी में हुई मौतों की भयावह घटना को पूरे देश ने देखा था। इस घटना के बारे में सबसे पहले गुरचरण सिंह, कुलदीप सिंह और प्रितपाल कौर को पता चला, जो भाटिया परिवार के पड़ोसी थे। जब पड़ोसियों ने देखा कि न तो भाटिया परिवार की किराने की दुकान खुली है, न ही उनके दरवाजे पर दूध वाला जो दूध रखता था, वह उठाया जा रहा है और न ही पड़ोसियों के फोन का जवाब दिया जा रहा है, तो वे चिंतित हो गए और उनके घर जाकर हालचाल पूछा। 

जब पड़ोसी उनके घर आए तो उन्होंने देखा कि मुख्य दरवाजा खुला था, इसलिए वे ऊपर चले गए। जब वे ऊपर पहुंचे तो यह देखकर चौंक गए कि परिवार के 10 सदस्यों ने छत पर लगी लोहे के जंगले से फांसी लगा ली थी और परिवार का एक सदस्य दूसरे कमरे में अपने बिस्तर के पास जमीन पर पड़ा था। सभी सदस्यों की आंखों पर पट्टी बंधी थी तथा उनके हाथ-पैर भी बंधे हुए थे। उनके पास एक कुत्ता भी था, जिसे उन्होंने छत पर बांध रखा था और जो लगातार भौंक रहा था। 

परिवार में तीन पीढ़ियाँ शामिल थीं। इसमें 11 सदस्य थे और सभी दिल्ली के बुराड़ी में एक ही घर में रह रहे थे। वे सभी सुशिक्षित और सामाजिक रूप से सामंजस्यपूर्ण व्यक्ति थे। परिवार की सबसे बुजुर्ग सदस्य नारायणी देवी विधवा थीं और उनके तीन बेटे और दो बेटियाँ थीं। उनमें से केवल दो बेटे और एक बेटी ही उस घर में रह रहे थे। दो बेटों में भुवनेश बड़ा था और ललित छोटा था। उनका विवाह क्रमशः सविता और टीना से हुआ था। भुवनेश और सरिता की दो बेटियाँ और एक बेटा था। ललित और टीना का केवल एक ही बेटा था। उस घर में रहने वाली नारायणी देवी की एक बेटी प्रतिभा की केवल एक ही बेटी थी।

परिवार के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन, किराना स्टोर के अलावा उनका प्लाईवुड का व्यवसाय भी था, जिसकी देखभाल छोटा बेटा ललित करता था। जब रिपोर्टर ने परिवार के बारे में पूछा तो पड़ोसियों ने बताया कि परिवार का एक अच्छा-खासा व्यवसाय था और हर साल उसका कारोबार बढ़ रहा था। उनके पड़ोसियों, रिश्तेदारों और सहकर्मियों सभी ने दावा किया कि परिवार धार्मिक था और सभी सदस्य अच्छे आचरण वाले, दयालु और उदार थे। वे कभी भी बाहर या आपस में किसी से झगड़ा नहीं करते थे और जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे। परिवार के बच्चे पढ़ाई में अच्छे थे और उनका चरित्र भी अच्छा था। परिवार के जीवित सदस्य, अर्थात् एक बेटा (दिनेश सिंह चूंडावत) और एक बेटी (सुजाता), जो उस घर में नहीं रहते थे, उन्होंने भी इस परिवार के बारे में यही दावा किया था। 

परिवार के रिश्तेदार सदमे में थे और इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि परिवार इस दुखद घटना से कई दिन पहले से सामूहिक आत्महत्या की योजना बना रहा था और प्रयास कर रहा था। इस अस्वीकृति का कारण यह था कि परिवार ने अपनी बेटी प्रियंका की सगाई का समारोह बड़े धूमधाम से मनाया था। ऐसा ही जश्न बुराड़ी हत्याकांड से ठीक 14 दिन पहले मनाया गया था। 

दिल्ली पुलिस की भूमिका

इस भयावह घटना को, जिसे प्रारम्भिक चरण में आत्महत्या माना गया था, सबसे पहले परिवार के पड़ोसियों ने देखा, जिन्होंने बाद में बुराड़ी पुलिस थाने के प्रधान सिपाही श्री राजीव तोमर को इसकी सूचना दी। घटना को प्रत्यक्षदर्शी (विटनेसिंग) होने के नाते उन्होंने पाया कि आत्महत्या इस प्रकार की गई थी मानो वह बरगद का पेड़ हो। जब बुराड़ी पुलिस थाने के थाना गृह अधिकारी मनोज कुमार से पत्रकारों ने इस घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने पूरे करियर में कभी भी इस तरह के मामले की जांच नहीं की थी। पुलिस अधिकारी मौत के कारण को लेकर असमंजस में थे। उन्हें इसे चोरी का मामला कहने के लिए कोई सबूत नहीं मिला क्योंकि परिवार की सभी महिला सदस्यों के आभूषण उनके पास सुरक्षित थे। वे इसे आत्महत्या का मामला भी नहीं मान सकते थे, क्योंकि सभी की आंखों पर पट्टी बंधी थी और आत्महत्या लेख (सुसाइड नोट) का कोई सबूत नहीं था। 

अपराध स्थल की सावधानीपूर्वक जांच करने के बाद पुलिस ने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल, दिल्ली) को इस भयावह घटना के बारे में सूचित किया। एफएसएल दिल्ली अपने विशेषज्ञों की टीम के साथ आगे की जांच के लिए सभी महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्र करने के लिए पहुंची। इस मामले को सुलझाने के लिए परिवार के सदस्यों की मौत के पीछे के मकसद का पता लगाना पुलिस अधिकारियों की सर्वोच्च प्राथमिकता थी। इस उद्देश्य के लिए पुलिस ने घर की एक दीवार पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की जांच की, जो कि गली के सामने था। सीसीटीवी फुटेज की जांच इस उद्देश्य से की गई कि यह पता लगाया जा सके कि अपराध स्थल पर किसी तीसरे व्यक्ति का प्रवेश तो नहीं हुआ था और यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि मामले में कोई तीसरा व्यक्ति शामिल तो नहीं है। सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के अनुसार, परिवार के सदस्य स्टूल, तार या पट्टियाँ जैसे आवश्यक सामान खरीदते हुए देखे गए थे, जिनका इस्तेमाल फांसी लगाने में किया गया था, जिसके कारण अंततः परिवार के 11 सदस्यों की मौत हो गई। पुलिस ने सामूहिक आत्महत्या के सिद्धांत को समर्थन देने के लिए इस फुटेज को ध्यान में रखा था। 

पुलिस ने जीवित बचे परिवार के सदस्यों के अनुरोध पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया। 11 शवों को पैक करके शवगृह भेज दिया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी सदस्यों की मौत फांसी के कारण हुई थी और परिवार का सबसे बुजुर्ग सदस्य जो फर्श पर पड़ा मिला था, उसकी मौत आंशिक रूप से फांसी लगाने के कारण हुई थी। रिपोर्ट में बड़ी आंत में पाचन अपशिष्ट की उपस्थिति का भी उल्लेख किया गया है, जो परिवार के सदस्यों में तनाव या अवसाद (डिप्रेशन) के किसी भी लक्षण को समाप्त कर देता है। यह बात सिद्ध हो चुकी है कि तनाव से पीड़ित व्यक्ति को अक्सर पाचन संबंधी समस्याएं होती हैं। मामले को सुलझाने में दिल्ली पुलिस की अक्षमता के बाद इसे आगे की जांच के लिए अपराध शाखा (क्राइम ब्रांच) को सौंप दिया गया। डॉ. जॉय एन तिर्की (पुलिस उपायुक्त, अपराध शाखा, दिल्ली) को उनकी टीम के साथ इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 

अपराध शाखा द्वारा की गई जांच

जैसा कि पहले ही चर्चा हो चुकी है, जब पुलिस अधिकारी बुराड़ी मौत मामले को सुलझाने में असमर्थ रहे, तो मामला अपराध शाखा को सौंप दिया गया। अपराध शाखा ने अपनी जांच करते समय इस मामले से संबंधित हर विवरण को ध्यान में रखा। अपनी जांच में उन्हें कई महत्वपूर्ण तथ्य मिले, जिनसे इस मामले को सुलझाने में मदद मिली। उन्होंने पाया कि परिवार के सबसे बड़े बेटे भुवनेश ने अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश की थी, जो अपराध स्थल पर बंधे हुए पाए गए थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उसकी उंगलियों में संघर्ष के निशान पाए गए। परिवार के सभी बच्चों के हाथ-पैर टेलीफोन के तारों से बांध दिए गए थे। उनकी आंखों और मुंह में रुई ठूंस दी गई थी और बच्चों में संघर्ष के कोई निशान नहीं पाए गए। 

परिवार की सबसे बुजुर्ग सदस्य नारायणी देवी का शव दूसरे कमरे में मिला। उसका शरीर आधा मुड़ा हुआ था और उसकी गर्दन के चारों ओर एक बेल्ट थी, जिसके कारण उसकी गर्दन के किनारे पर कुछ निशान थे। परिवार के अन्य सभी सदस्यों ने गले में दुपट्टा बांधकर फांसी लगा ली थी। 

अपराध शाखा को उस अनुष्ठान के साक्ष्य मिले जो परिवार द्वारा उनकी मृत्यु से एक रात पहले किया गया था। सीसीटीवी फुटेज खंगालने पर पता चला कि टीना अपने बेटे के साथ चार स्टूल खरीदने गई थी। ललित के बेटे को प्लाइवुड की दुकान खोलते और तारों के कुछ बंडल ऊपर ले जाते देखा गया। रसोईघर में फ्रिज में दूध का एक पैकेट और कुछ भीगे हुए चने मिले, जिन्हें परिवार अगले दिन इस्तेमाल करने वाला था। ललित के बेटे ने परिवार के सभी सदस्यों के फोन भी रिचार्ज करा दिए थे। 

सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य जो मिला वह एक रजिस्टर था जो घर में मंदिर के पास रखा हुआ था। घर में 11 डायरियाँ भी मिलीं जिनमें वर्ष 2007 से 2018 तक की प्रविष्टियाँ थीं, जिनके बारे में इस लेख में विस्तार से चर्चा की गई है। 

आत्महत्या लेख का अभाव 

प्रारंभ में जब पुलिस ने बुराड़ी मौत मामले की जांच शुरू की और कोई गड़बड़ी का पता नहीं चल पाया तो उन्होंने इसे आत्महत्या का मामला माना था।  हालाँकि, आत्महत्या लेख न मिलने के कारण पुलिस इस आधार पर मामला समाप्त नहीं कर सकी। आत्महत्या लेख न मिलने से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई तथा परिवार के 11 सदस्यों की मौत के मामले में रहस्य और गहरा गया। 

किसी भी मामले में, जहां मृत्यु हुई है, यदि आत्महत्या लेख मौजूद है तो यह आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मंशा और भावनात्मक स्थिति को स्पष्ट करता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दुखद घटना के पीछे के अंतिम विचार, कारण और इरादे के बारे में जानकारी प्रदान करने में सहायता करता है। बुराड़ी मामले में आत्महत्या लेख की अनुपस्थिति ने जांच को मुश्किल बना दिया और मामले में विभिन्न संदेह और अटकलों को जन्म दिया, जैसे कि साजिश, अनुष्ठानों का प्रदर्शन और मनोवैज्ञानिक टूटना, क्योंकि इस तरह की सामूहिक आत्महत्या के पीछे की मंशा का पता लगाने के लिए कुछ भी नहीं था।

आत्महत्या लेख के बिना, पुलिस को परिस्थितिजन्य साक्ष्य, गवाहों के बयानों और 11 डायरियों के आधार पर मामले की जांच करने के लिए छोड़ दिया गया, जो मनोवैज्ञानिक कारकों की उपस्थिति की ओर इशारा करते थे। 

11 डायरियों के पीछे की कहानियाँ

अपराध स्थल पर मिली 11 डायरियों का अपराध शाखा द्वारा विस्तार से अध्ययन किया गया और पाया गया कि डायरियों में प्रयुक्त भाषा बातचीत, आदेश और निर्देशों के रूप में थी। डायरियों के अंतिम पृष्ठ पर वे सभी निर्देश अंकित थे जिनका उस दिन पालन किया जाना आवश्यक था जिस दिन घटना घटी थी।  

मृतक पिता भोपाल सिंह का उल्लेख पहली बार डायरी में वर्ष 2007 में 7 सितम्बर को किया गया था। लेख में कहा गया है कि मृतक ने परिवार से कहा था कि वे उसकी श्वेत-श्याम तस्वीर को उनके सामने रखकर उसे याद रखें। 

डायरियों में अंतिम प्रविष्टि, जो वर्ष 2018 में 24 जून को की गई थी, में ‘बरगद वृक्ष अनुष्ठान’ के रूप में ज्ञात एक अनुष्ठान का उल्लेख था। इस अनुष्ठान को बध पूजा के साथ सात दिनों की अवधि तक पालन करने का उल्लेख किया गया था। बध मूलतः एक वृक्ष है जिसकी जड़ें शाखाओं से लटकती रहती हैं। 

बध पूजा के विषय में बताया गया कि; 

  • यह पूजा धार्मिक रूप से सात दिनों तक की जाती थी और यदि कोई परिवार से मिलने आता था तो अगले दिन पूजा की जाती थी।
  • पूजा से संबंधित अनुष्ठान को परिवार के सदस्यों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को नहीं देखना चाहिए। 
  • पूजा मंद प्रकाश में की जानी चाहिए और परिवार के सभी सदस्यों की आंखें पूरी तरह बंद रहनी चाहिए। 
  • फांसी लगाते समय उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाएगी और मुंह में रूमाल ठूंस दिया जाएगा। यह भी निर्देश दिया गया कि फांसी लगाते समय प्रत्येक सदस्य का मन एकाग्र होना चाहिए तथा कोई विचार नहीं होना चाहिए। मन पूरी तरह से खाली होना चाहिए। 
  • परिवार की सबसे बुजुर्ग सदस्य को उसकी वृद्धावस्था और अधिक वजन के कारण फर्श पर लेटकर यह कार्य करने की अनुमति दी गई थी। 
  • पूजा करते समय यह कल्पना करनी चाहिए कि बरगद के पेड़ की शाखाएं परिवार के सभी सदस्यों के शरीर को लपेट रही हैं। 
  • पूजा पूर्ण दृढ़ संकल्प और एकता के साथ की जानी चाहिए क्योंकि इससे उन्हें अपनी गलतियों का पश्चाताप करने में मदद मिलेगी। 

अपराध शाखा ने अपनी जांच में परिवार से जुड़े कुछ लोगों से संपर्क करने की कोशिश की, जिनकी धार्मिक या आध्यात्मिक पृष्ठभूमि थी, लेकिन ऐसा कोई संपर्क नहीं मिल सका। डायरियों में घर के प्रत्येक सदस्य के दैनिक जीवन के आचरण के बारे में प्रत्येक विवरण का उल्लेख था।

बुराड़ी मौत मामले में विशेषज्ञ साक्ष्य

नारायणी देवी के पति और परिवार के मुखिया भोपाल सिंह की 2007 में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद परिवार में ऐसा कोई नहीं था जो कठिन समय में परिवार के सदस्यों का मार्गदर्शन कर सके। क्लिनिकल हिप्नोथेरेपिस्ट अनीता आनंद द्वारा किए गए अवलोकन के अनुसार, जब परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाती है तो परिवार में खालीपन पैदा हो जाता है। इसी तरह, भोपाल सिंह की मौत से परिवार में एक खालीपन पैदा हो गया, क्योंकि वह ही परिवार की हर चीज की देखभाल करता था। 

भोपाल सिंह की मृत्यु के बाद ललित ने अपने पिता की भूमिका संभाली। परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करने लगे क्योंकि उनका मानना था कि सबसे छोटा बेटा होने के बावजूद वह अधिक परिपक्व (मैच्योर) है और प्रभावी निर्णय लेने की क्षमता रखता है। 

पड़ोसियों और परिवार के अन्य रिश्तेदारों द्वारा दिए गए बयानों से पता चला कि भोपाल सिंह बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे। उनकी मानसिकता बहुत व्यापक थी और वे कभी भी ऐसे आदेशों की पूर्ति की मांग नहीं कर सकते थे। 

डायरियों में पहली प्रविष्टि भोपाल सिंह की मृत्यु के तुरंत बाद की गई थी। यह पाया गया कि डायरी में दर्ज अधिकांश प्रविष्टियों या निर्देशों का मुख्य केंद्र ललित ही था। अपराध शाखा ने अपनी जांच में पाया कि घटना में मुख्य भूमिका ललित की थी। पड़ोसियों से परिवार के स्वभाव और रहन-सहन के बारे में पूछताछ करने पर पता चला कि नीतू (बच्चों में से एक) ने पड़ोसियों को बताया था कि उसके चाचा पर उनके दिवंगत दादा की आत्मा का वास है। ललित को सपने में अपने पिता से सीधा संवाद होता था, जो उसे परिवार के कल्याण के बारे में मार्गदर्शन देते थे। वह अपने परिवार के सदस्यों को भी बातचीत के बारे में बताते थे ताकि हर कोई ललित के पिता द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन कर सके। अपने पिता से प्राप्त बातचीत और निर्देशों को अपने परिवार को बताते समय वह अपने पिता की आवाज की नकल करता था। 

घर से मिली डायरियों की प्रतियां हस्तलेखन विशेषज्ञ को भेजी गईं, जिन्होंने बताया कि अधिकांश नोट्स प्रियंका और नीतू द्वारा तैयार किए गए थे, जो क्रमशः प्रतिभा और भुवनेश की बेटियां थीं।

चुण्डावतों ने अपनी जीवन शैली भी बदल दी। उन्होंने मांसाहारी भोजन खाना बंद कर दिया तथा परिवार के कुछ पुरुष सदस्य जो शराब पीते थे, उन्होंने भी शराब पीना छोड़ दिया। अनुष्ठान और अन्य धार्मिक प्रथाएँ निभाना दैनिक कार्य बन गया। परिणामस्वरूप, परिवार के स्वामित्व वाली दुकानों की संख्या बढ़ गई और उनका कारोबार फैल गया। जो दुकानें खोली गईं, उनमें ललित की प्लाईवुड की दुकान, भुवनेश की किराने की दुकान शामिल थी और परिवार संयुक्त रूप से तीसरी दुकान खोलने जा रहा था। 

अपराध शाखा द्वारा एकत्र साक्ष्यों के आधार पर जिस विशेषज्ञ से सुझाव मांगे गए थे, उन्होंने पाया कि ललित ही घटना का मुख्य सूत्रधार था, क्योंकि सब कुछ उसके निर्देशों के अनुसार किया गया था, जो संभवतः उसके दिवंगत पिता ने उसे दिए थे। अनीता आनंद ने यह भी बताया कि कई बार ऐसा भी हुआ जब ललित को लगा कि वह नियंत्रण से बाहर हो गया है, जो उसकी मानसिक स्थिति को दर्शाता है। 

बुराड़ी मौत मामले में ललित की भूमिका

1988 में एक गंभीर बाइक दुर्घटना में ललित को सिर में कुछ चोटें आईं। दुर्घटना इतनी बड़ी थी कि उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा और गंभीर चिकित्सा उपचार से गुजरना पड़ा। उनके करीबी दोस्तों ने पुलिस को बताया कि सिर में लगी चोटों के कारण वह बहुत जल्दी सो जाते थे। 

26 मार्च 2004 को ललित के साथ एक और विचलित करने वाली घटना घटी। किसी ने उसे मारने की कोशिश की थी। वह दिल्ली में अपनी प्लाईवुड की दुकान पर थे, जब किसी ने उन्हें दुकान में बंद कर दिया और आग लगा दी। यह घटना उनके लिए इतनी दर्दनाक थी कि उनकी आवाज चली गई। डॉ. अम्बरीश सात्विक, जो एक संवहनी (वैस्कुलर) सर्जन थे, के अनुसार, आमतौर पर कोई व्यक्ति अपनी आवाज नहीं खोता है, बशर्ते कि स्वरयंत्र में कोई शारीरिक चोट, आघात या बीमारी हो। 

डॉ. रोमा कुमार के अनुसार, इस मामले में, परिवार ललित को पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) से उबरने में मदद करने के लिए पेशेवर मदद लेने में विफल रहा। ललित की मानसिक स्थिति को देखते हुए उसका इलाज कर रहे डॉक्टर ने परिवार के सदस्यों को मनोचिकित्सक की सहायता लेने की सलाह दी, लेकिन परिवार ने सलाह पर ध्यान नहीं दिया। 

मनोविज्ञान के अनुसार, अनुपचारित आघात या मनोवैज्ञानिक गड़बड़ी व्यक्ति को मनोविकृति (सायकोसिस) का शिकार बना सकती है, जिसमें व्यक्ति अपनी तर्कसंगत क्षमताओं को खो देता है। ऐसी स्थिति का पहला प्रमुख लक्षण यह है कि मनोविकृति से पीड़ित व्यक्ति को आवाजें सुनाई देने लगती हैं। अपने पिता की मृत्यु के ठीक एक वर्ष बाद ललित की आवाज वापस आ गयी। परिवार के पड़ोसियों ने बताया कि ललित के व्यवहार में बदलाव आया था। ऐसा परिवर्तन प्रियंका (प्रतिभा की बेटी) की सगाई से कुछ दिन पहले हुआ था। 

जांच का निष्कर्ष

गहन जांच के बावजूद जब कोई नतीजा नहीं निकला तो अपराध शाखा ने मनोवैज्ञानिक शव परीक्षण का सहारा लिया। मनोवैज्ञानिक शव-परीक्षण वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा मृत लोगों के मन का अध्ययन है। यह पाया गया कि ललित मनोविकृति से पीड़ित था और उसने धीरे-धीरे इसे अपने परिवार के अन्य सदस्यों में भी फैला दिया। इस घटना को साझा मनोविकृति कहा जाता है। 

इस घटना के कारण परिवार के सभी सदस्य ललित के हर निर्देश का आँख मूंदकर पालन करने लगे। जांच के दौरान पता चला कि परिवार का आत्महत्या करने का कोई इरादा नहीं था, बल्कि परिस्थिति के कारण ही उन्हें यह विश्वास हुआ कि उनके पिता आएंगे और उन्हें बचा लेंगे। इस मामले को सुलझाने में अपराध शाखा को तीन साल लग गए और यह निष्कर्ष निकला कि चूंकि इसमें किसी भी तरह की गड़बड़ी की संलिप्तता नहीं थी, इसलिए परिवार के सदस्यों की मौत न तो हत्या थी और न ही आत्महत्या थी। 

यह पूर्णतः आकस्मिक मृत्यु का मामला है। यह भी पता चला कि सबसे बड़े भाई ने परिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार करने से पहले उनकी आंखें दान कर दी थीं। 

अदालत में मामले की स्थिति

शुरुआत में पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया था, लेकिन जब अपराध शाखा ने गहन जांच की और कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई तो अपराध शाखा ने अदालत में समापन रिपोर्ट पेश कर फाइल बंद कर दी। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने अपनी समापन रिपोर्ट में कहा कि ये मौतें परिवार के सदस्यों के बीच आत्महत्या समझौते का परिणाम प्रतीत होती हैं। उनका मानना था कि उनके दादाजी आएंगे और उन्हें बचाएंगे तथा ऐसा करने से उनके दादाजी की आत्मा मुक्त हो जाएगी। 11 डायरियों में उल्लिखित विवरण ही मुख्य साक्ष्य थे जिन पर पुलिस ने अपनी जांच पूरी करने के लिए भरोसा किया। अपराध शाखा द्वारा समापन रिपोर्ट पेश करने के बाद अदालत ने नवंबर 2021 में मामले की सुनवाई की और मामले को बंद कर दिया। हालांकि, परिवार के जीवित सदस्य दिनेश सिंह चूंडावत और उनकी बहन सुजाता इस सामूहिक आत्महत्या के सिद्धांत पर विश्वास नहीं करते हैं और दावा करते हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि परिवार किसी पंथ का अनुसरण करता है। इसलिए, उन्होंने घोषणा की कि वे सीबीआई जांच की मांग करेंगे। 

बुराड़ी मौत मामले से जुड़ी अफवाहें और कहानियां

जनता में 11 पाइपों, 11 डायरियों और 11 मौतों के बारे में अजीब कहानियाँ प्रसारित हुई हैं। जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइपें लगी हुई थीं, जो कहीं और नहीं जाती थीं। इन 11 पाइपों में से 7 नीचे की ओर तथा 4 ऊपर की ओर थे। लोगों ने पाइपों की ऐसी व्यवस्था को परिवार के 7 पुरुष सदस्यों और 4 महिला सदस्यों के चित्रण से जोड़ा। यह भी बताया गया कि पाइपें उसी तरह से लगाई गई थीं जिस तरह से परिवार के शव पाए गए थे। 10 पाइप एक दूसरे के करीब लगाए गए थे, जबकि एक पाइप एक निश्चित दूरी पर लगाया गया था, जिससे यह समानता प्रदर्शित होती है कि 10 शव छत से लटके हुए पाए गए थे और एक शव दूसरे कमरे में जमीन पर पड़ा हुआ पाया गया था। समाचार चैनल ने दावा किया कि आत्माओं को बाहर निकालने के उद्देश्य से ऐसे पाइप लगाए गए थे। हालांकि, इन पाइपों को लगाने वाले व्यक्ति ने कहा था कि उसने ये पाइपें परिवार के सदस्यों के निर्देशानुसार लगाई थीं। 

इस घटना के बारे में जानने वालों को एक और बात हैरान कर देने वाली लगी, वह यह कि मुख्य प्रवेश द्वार पर भी 11 जंगले लगे हुए थे। छत की रेलिंग में भी केवल 11 छड़ें थीं। घर में ठीक 11 खिड़कियों और झरोखों की मौजूदगी मामले का 11 नंबर से जुड़ाव और भी रहस्यमय बना देती है। इन तथ्यों से लोगों को विश्वास हो गया कि बुराड़ी मौत मामले में संख्या 11 का महत्वपूर्ण महत्व है। 

जनता द्वारा फैलाई गई इन अफवाहों के कारण निर्दोष लोगों को अनावश्यक रूप से मामले में फंसाकर परेशान किया गया। पाइप लगाने वाले व्यक्ति और उसकी बेटी को तांत्रिक कहा गया और उन्हें काले जादू से जोड़ा गया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है और मीडिया द्वारा उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है। 

बुराड़ी मौत मामले के पीछे के कारक

जनता में इस बात को लेकर कई सवाल उठ रहे थे कि 11 सदस्यों वाले परिवार ने बिना किसी प्रतिरोध के ऐसा कार्य कैसे कर दिया। इन प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास कई मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया गया, जिन्होंने इस घटना को दो मनोवैज्ञानिक घटनाओं का परिणाम बताया। पहले को साझा मनोविकृति के रूप में जाना जाता है और दूसरे को अनुरूपता (कंफॉर्मिटी) के रूप में जाना जाता है। 

साझा मनोविकृति

जमीनी जांच पूरी होने के बाद अपराध शाखा ने मनोवैज्ञानिक शव परीक्षण का सहारा लिया था। मनोवैज्ञानिक शव-परीक्षा वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा मृत लोगों के मन का अध्ययन है। यह पाया गया कि ललित मनोविकृति से पीड़ित था और उसने धीरे-धीरे इसे अपने परिवार के अन्य सदस्यों में भी फैला दिया, जिससे यह साझा मनोविकृति का मामला बन गया। इसलिए, बुराड़ी मौत मामले को बेहतर ढंग से समझने के लिए यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि साझा मनोविकृति का क्या अर्थ है। 

साझा मनोविकृति, जैसा कि यह शब्द स्वयं परिभाषित करता है, का अर्थ ऐसी स्थिति से है जिसमें लोगों का एक समूह एक-दूसरे से इतना निकटता से जुड़ा होता है कि वे सभी एक ही भ्रम को साझा करते हैं, जो समूह के किसी एक सदस्य द्वारा विकसित किया जाता है। बुराड़ी मौत मामले में परिवार के सभी सदस्यों का एक-दूसरे के साथ गहरा रिश्ता था, जिसके कारण उनमें ललित जैसा ही भ्रम पैदा हो गया था, उन्हें विश्वास हो गया था कि उनके मृतक पिता ललित के माध्यम से उनसे बात कर रहे हैं। इस भ्रम के परिणामस्वरूप, वे ललित द्वारा बार-बार बताई गई हर आज्ञा या अनुष्ठान का पालन करने लगे। 

विशेषज्ञों और अधिकारियों की राय के अनुसार, यह विशेष स्थिति एक पंथ के समान है, जिसमें योजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सभी सदस्यों को स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करना और कथित नेता के आदेशों का पालन करना आवश्यक है। 

हालाँकि, परिवार के सभी सदस्यों के स्वैच्छिक समर्पण के उद्देश्य से, एक नेता के पास सतही गुण होने चाहिए या उनका प्रदर्शन होना चाहिए। पूरे देश को परेशान करने वाला मुख्य प्रश्न यह था कि कैसे तीन पीढ़ियों वाला एक परिवार एक साथ आत्महत्या कर सकता है, जबकि किसी ने भी इसका विरोध या सवाल नहीं उठाया। 

ललित को ही परिवार का नेता माना जाता था। परिवार का मानना था कि उस पर उनके मृत पिता का साया है और इसलिए वह उनके आदेशों का पालन करने लगा। परिणामस्वरूप, उन्होंने स्वयं को समाज से अलग कर लिया और बाहरी दुनिया को यह दिखाने के लिए रहस्य बनाए रखना शुरू कर दिया कि वे एक सामान्य जीवन जी रहे हैं। 

बुराड़ी मौत मामले में जो गलत हुआ वह यह कि सबसे पहले ललित के दुखद अतीत को नजरअंदाज किया गया और उस पर ध्यान नहीं दिया गया। दूसरा, परिवार के सभी सदस्य ललित के हर आदेश का पालन करने लगे, यह मानकर कि यह उनके पिता ही हैं जो यह आदेश दे रहे हैं और उनमें से किसी ने भी ऐसे कार्यों का विरोध नहीं किया। परिवार के सभी सदस्य इस भ्रम में इतने फंसे हुए थे कि उन्हें इसमें कोई अजीब या बेतुकी बात नजर ही नहीं आई। तीसरा, स्थिति से निपटने के लिए किसी पेशेवर की मदद लेने के बजाय, उन्होंने खुद को ऐसे रास्ते पर जाने दिया, जहां से वापसी संभव नहीं थी। 

अनुरूपता

इस मामले को बेहतर ढंग से समझने के लिए यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि अनुरूपता की अवधारणा का क्या अर्थ है जो सामाजिक मनोविज्ञान का एक हिस्सा है। अनुरूपता एक अवधारणा है जो ऐसी स्थिति से संबंधित है जिसमें कोई व्यक्ति किसी विशेष समूह के कार्यों के अनुरूप व्यवहार में परिवर्तन करता है, भले ही वह व्यक्तिगत रूप से असहमत हो। संक्षेप में, यह “भीड़ के साथ चलने” के बारे में है। इस अवधारणा की खोज सबसे पहले 1950 के दशक में सोलोमन एश ने की थी। इस खोज से सामाजिक मनोविज्ञान के क्षेत्र के विशेषज्ञों को यह समझने में मदद मिली कि लोग समूह में किस प्रकार व्यवहार करते हैं। 

बुराड़ी मौत मामले में, कई चौंकाने वाले सवाल हैं, जैसे कि, “तीन पीढ़ियों का एक परिवार, जो एक साथ रह रहा था, ऐसा करने के लिए कैसे और क्यों सहमत हुआ?” एक 14 वर्षीय बच्चा अपने दोस्तों से यह बात कैसे नहीं कह सकता?” एक 60 वर्षीय व्यक्ति युवाओं को समझदारी की बातें कैसे नहीं सिखा सकता?” इतने पढ़े-लिखे लोग अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के पंजे में कैसे फंस सकते हैं? इन प्रश्नों का उत्तर अनुरूपता पर आधारित शोध के निष्कर्षों के माध्यम से दिया जा सकता है। 

रॉब बॉण्ड और पीटर स्मिथ (मनोविज्ञान के प्रोफेसर) के अनुसार, अनुरूपता को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं। वे इस प्रकार हैं: 

  • प्रतिभागी पुरुष है या महिला
  • बहुसंख्यक समूह का आकार
  • क्या बहुसंख्यक समूह अंतःसमूह सदस्यों से बना है
  • संस्कृति व्यक्तिवादी है या सामूहिक

अब इन तथ्यों को बुराड़ी मौत मामले में लागू करने पर पता चलता है कि ललित ने परिवार के नेता की भूमिका निभाई। चूंकि परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बहुत करीब से जुड़े हुए थे, इसलिए सभी अपने मृत पिता के अस्तित्व पर विश्वास करने लगे और उनकी आज्ञाओं का पालन करने का निर्णय लिया। यह व्यवस्था परिवार की सामूहिक संस्कृति को दर्शाती है। अनुरूपता की अवधारणा सामूहिक संस्कृति में दृढ़ता से काम करती है। इस प्रकार की संस्कृति में एक विशेष समूह के सदस्य समाज के अन्य सदस्यों की स्वीकृति के अनुसार कार्य करते हैं जो व्यक्तिवादी संस्कृति के विपरीत है। 

ये कारक यह समझाने में सहायता करते हैं कि क्यों परिवार के सभी सदस्यों ने अपनी सामाजिक गतिशीलता और सांस्कृतिक मूल्यों से प्रभावित होकर एक ही मार्ग का अनुसरण किया होगा। 

बुराड़ी मौत मामले से सबक

पांच साल पहले सरकार ने भारत की पहली मानसिक स्वास्थ्य नीति पेश की थी। इस नीति का मुख्य उद्देश्य मानसिक रूप से बीमार लोगों को प्रभावी देखभाल प्रदान करना था। विशेष रूप से, इसने आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को देखभाल सुविधाएं प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि वे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। संसाधनों तक सीमित पहुंच और खराब जीवन स्थितियों के कारण उन्हें अक्सर अधिक तनाव का सामना करना पड़ता है। नीति का उद्देश्य कलंक से लड़ना भी है (यह किसी व्यक्ति के साथ उसकी कथित विशेषताओं या व्यवहार के आधार पर नकारात्मक व्यवहार करने की प्रक्रिया है, जिसे सामाजिक रूप से अस्वीकार्य माना जाता है)। यह पाया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं महानगरीय क्षेत्रों में अधिक प्रचलित हैं। ऐसे क्षेत्रों में सिज़ोफ्रेनिया, मनोदशा विकार (मूड डिसॉर्डर) और न्यूरोटिक या तनाव-संबंधी रोग जैसी समस्याएं अधिक होती हैं। तेज गति से जीवन जीना, तनाव, वित्तीय अस्थिरता या कमजोर सहायता प्रणाली जैसे कारक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। 

यह आश्चर्यजनक तथ्य कि बुराड़ी मामले में आत्महत्या करने वाले सभी लोग शिक्षित और आर्थिक रूप से स्थिर थे, भारतीय समाज की गुणवत्ता और इसकी व्यवस्था में निहित खामियों की ओर इशारा करता है। उन्होंने लगभग 11 वर्षों तक जिस आदर्श भारतीय परिवार की तस्वीर को इतने आत्मविश्वास के साथ प्रदर्शित किया, उससे उनके बीच छिपे गहरे रहस्य पर पूरी तरह से पर्दा पड़ गया। 

भारत में लोग प्रायः मनोचिकित्सक से मदद लेने में झिझकते हैं, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों को कलंकित माना जाता है और नजरअंदाज किया जाता है। यह सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों में प्रचलित है। वे यह मानते हैं कि लोग उन्हें पागल समझेंगे और उनकी उपेक्षा करने लगेंगे। परिणामस्वरूप, वे चिंता, उदासी या व्यसन (एडिक्शन) से उत्पन्न अपनी मानसिक स्वास्थ्य स्थिति को स्वीकार करने में असफल हो जाते हैं। इस मामले में ललित को भी ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। स्थिति को सामान्य बनाने से स्थिति और बिगड़ गई तथा स्थिति और खराब हो गई। 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने और उनकी जांच के लिए बुनियादी ढांचा अभी तक अच्छी तरह से स्थापित नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप प्रशिक्षण और फोरेंसिक उद्देश्यों के लिए मनोचिकित्सा इकाइयों की संख्या बहुत कम है। मौजूदा अस्पतालों में उचित मनोरोग वार्डों का अभाव है। यहां तक कि इन इकाइयों में काम करने वाले कर्मचारी भी शौकिया हैं। उनके पास फोरेंसिक जांच के लिए उचित प्रशिक्षण नहीं है। परिणामस्वरूप, फोरेंसिक जांच के परिणाम सही या सटीक नहीं होते हैं और वास्तव में, त्रुटियों पर आधारित होते हैं। इसके अलावा, फोरेंसिक मनोचिकित्सा प्रशिक्षण से संबंधित कार्यक्रमों की कमी के कारण भी इस क्षेत्र में ऐसी घटनाएं प्रमुख हो रही हैं। 

अन्य देशों में, जैसे यूनाइटेड किंगडम में, 3-वर्षीय बुनियादी मनोचिकित्सा प्रशिक्षण के बाद फोरेंसिक मनोचिकित्सा में 3-वर्षीय उन्नत कार्यक्रम होता है। भारत को मामलों के बेहतर विश्लेषण के लिए फोरेंसिक प्रशिक्षण में ऐसे संरचित और उन्नत कार्यक्रमों की आवश्यकता है। 

बुराड़ी मौत का मामला एकमात्र ऐसा मामला नहीं है जिसमें मनोवैज्ञानिक शव परीक्षण किया गया हो। ऐसे असंख्य मामले हैं जो वास्तविकता में मौजूद हैं लेकिन अंततः गुमनामी में चले गए क्योंकि उन्हें उचित मीडिया व्याप्ति (कवरेज) नहीं मिला। उपरोक्त उदाहरणों से यह तथ्य सामने नहीं आता कि बुराड़ी मामले से संबंधित जांच किसी भी तरह से गलत या लापरवाहीपूर्ण थी। हालाँकि, यह निश्चित रूप से अपने नागरिकों के लिए समाज में स्पष्ट संचार और खुलेपन के लिए उचित वातावरण बनाने में देश की अक्षमता की ओर इशारा करता है। 

बुराड़ी मामले की ख़ासियत यह है कि इसमें कोई गवाह, पीड़ित या अपराधी नहीं था। ऐसे मामले में, जो जंगल में आग लगने की अफवाहों और अंधविश्वासों के इर्द-गिर्द घूमता है, निष्कर्ष पर पहुंचना एक कठिन काम है। यहां तक कि जब जांचकर्ताओं, अपराध शाखा और अन्य जांच निकायों ने इस मामले को आकस्मिक मृत्यु का मामला मानकर निष्कर्ष निकाला, तब भी जीवित परिवार के सदस्यों ने इसे खारिज कर दिया। 

बुराड़ी मौत मामले पर नेटफ्लिक्स की दस्तावेजी

बुराड़ी मौत मामले पर नेटफ्लिक्स की दस्तावेजी में मामले को उजागर करने और सुलझाने से उभरे विभिन्न दृष्टिकोणों को दर्शाया गया है। इस दस्तावेजी में निम्नलिखित दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं जिनसे बुराड़ी मौत मामले को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली है:

  • इस दस्तावेजी में उजागर किए गए महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक यह तथ्य है कि भारतीय परिवार बाहरी दुनिया के सामने खुद को एक खुशहाल संयुक्त परिवार के रूप में दिखाने के लिए प्रवृत्त होते हैं, जबकि साथ ही आंतरिक रूप से रहस्यों को छिपाते हैं। मनोवैज्ञानिक रचना जौहरी ने बताया कि यह परिवार जिस स्थिति से गुजर रहा था, वह विश्व स्तर पर अनेक परिवारों में देखी जाने वाली स्थिति का चरम रूप थी। वे स्वयं को एक परिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण परिवार के रूप में प्रस्तुत करते हैं, लेकिन बड़ी कीमत चुकाकर एक गहरा रहस्य छिपाते रहते हैं।
  • दस्तावेजी में परिवार द्वारा वर्ष 2007 से 2018 तक रखी गई डायरियों का भी खुलासा किया गया। विशेषज्ञों के अनुसार, डायरियों में लिखी प्रविष्टियाँ बातचीत के लहजे में लिखी गई थीं। ऐसा लग रहा था जैसे परिवार के सदस्य पन्नों के माध्यम से एक-दूसरे से बात कर रहे हों। प्रत्येक परिवार का सदस्य प्रतिदिन डायरियों में योगदान देता था। समय के साथ स्वर बदल गया और अधिक अलौकिक एवं आधिकारिक हो गया। लेखन में सामान्य बातचीत से हटकर निर्देश और मार्गदर्शन की बात कही गई।
  • सबसे छोटे बेटे ललित को कई घटनाओं के कारण गंभीर आघात पहुंचा, जिसमें उसे आग लगाकर मारने का प्रयास भी शामिल था, जिससे उसकी स्वर तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो गईं। परिवार ने पेशेवर सहायता लेने के बजाय इस मुद्दे को नजरअंदाज करना चुना। इसके अलावा, उन्होंने दूसरों को इस पर चर्चा करने से भी हतोत्साहित किया। यह अज्ञानता ही ललित के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक संघर्ष का कारण बनी। 
  • बाद में ललित ने बताया कि उसने अपने मृत पिता की आवाज सुनी और महसूस किया कि उसकी आत्मा उसके शरीर में प्रवेश कर गई है। इससे यह भ्रम पैदा हो गया कि क्या ये अनुभव अलौकिक थे या मनोवैज्ञानिक थे। ललित की नाजुक स्थिति के दौरान पेशेवर सहायता की कमी ने जटिलता को और बढ़ा दिया था। 
  • ललित के पिता के कथित आगमन ने परिवार के सभी सदस्यों के व्यवहार को प्रभावित किया। इस तरह के व्यवहार से विश्वास और भ्रम के बीच की रेखा धुंधली हो गई। यह विश्वास कि यह मृत पिता ही है जो आदेश दे रहा है, इस कारण परिवार के सभी सदस्यों, जिनमें 14 वर्ष से लेकर 60 वर्ष तक के वृद्ध सदस्य भी शामिल थे, ने अजीब प्रथाओं और अनुष्ठानों का पालन करते हुए आत्महत्या कर ली थी। 

बुराड़ी मौत मामले के बाद भारत में भी ऐसी ही घटनाएं

बुराड़ी मौत मामले के कुछ साल बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में इसी तरह के मामले सामने आए। वे इस प्रकार हैं: 

मध्य प्रदेश में एक ही परिवार के 5 सदस्यों ने की आत्महत्या

हाल ही (2024) में बुराड़ी मौत मामले जैसी ही एक दुखद घटना मध्य प्रदेश में घटी थी। मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के रावड़ी गांव में एक किसान और उसकी पत्नी और तीन बच्चों सहित उसका परिवार अपने घर में मृत पाया गया। इस मामले की जांच कर रही पुलिस को संदेह है कि यह आत्महत्या का मामला है। मृतकों की पहचान राकेश डोडवा (27 वर्ष), उनकी पत्नी ललिता डोडवा (25 वर्ष), उनके बेटे प्रकाश (7 वर्ष) और अक्षय (5 वर्ष) तथा एक बेटी लक्ष्मी (9 वर्ष) के रूप में हुई है। राकेश, उनकी पत्नी ललिता और उनके बेटे छत से लटके पाए गए। हालाँकि, उनकी बेटी लक्ष्मी फर्श पर पड़ी मिली। मामले की जांच कर रहे अलीराजपुर के अनुविभागीय अधिकारी पुलिस (एसडीओपी) ने दावा किया कि कोई आत्महत्या लेख नहीं मिला है। ऐसा माना जा रहा है कि यह मौत रविवार शाम 7 बजे से सोमवार सुबह 6 बजे के बीच हुई। जांच अभी भी जारी है। श्वान दस्ते (डॉग स्क्वायड) और फोरेंसिक टीम ने उंगलियों के निशान एकत्र कर लिए हैं तथा आगे की समीक्षा के लिए पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी भी की गई है। पुलिस को बुराड़ी मौत मामले की तरह ही मौत के कारणों को लेकर समस्या का सामना करना पड़ा, क्योंकि इस मामले में अभी तक कोई संदिग्ध बात सामने नहीं आई है। 

महाराष्ट्र में 9 सदस्यीय परिवार ने की आत्महत्या

जून 2022 में महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक ही परिवार के 9 सदस्यों द्वारा आत्महत्या की घटना ने बुराड़ी मौत मामले में लोगों द्वारा देखी गई भयावहता को पुनर्जीवित कर दिया। मामले की जांच कर रही पुलिस को संदेह है कि बाहरी चोटों के अभाव के कारण यह आत्महत्या का मामला हो सकता है। परिवार के सदस्यों के शव दो भाइयों के घर में पाए गए। यह 1.5 किमी दूर म्हैसल गांव में स्थित था जो मुंबई से 350 किमी दूर है। एक घर में छह शव मिले जबकि दूसरे घर में तीन शव मिले। संदेह है कि आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या की गई। मामले की जांच मिराज संभाग (डिवीजन) के पुलिस उपाधीक्षक अशोक वीरकर को सौंपी गई, जिन्होंने बताया कि एक नोट मिला है जिसे आत्महत्या लेख माना जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि प्रारंभिक साक्ष्यों से पता चलता है कि परिवार ने भारी मात्रा में धन उधार लिया था, जिसे उनकी आत्महत्या का कारण माना जा रहा है। 

दुनिया भर में सामूहिक आत्महत्या के मामले

बुराड़ी मौत मामले में पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि परिवार के 11 सदस्यों की फांसी लगाकर आत्महत्या करने की वजह कुछ धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होना था। इस प्रकार की सामूहिक आत्महत्या कोई नई घटना नहीं है। ऐतिहासिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि सदी के शुरुआती दशकों से ही धार्मिक लोगों में अनुष्ठानिक सामूहिक आत्महत्या के कई उदाहरण देखे गए हैं। धार्मिक और पारंपरिक प्रथाओं के परिणामस्वरूप सामूहिक आत्महत्या के उदाहरणों में मसादा के यहूदी, मोंटानिस्ट ईसाई और जौहर करने वाली राजपूत महिलाएं शामिल हैं। कुछ घटनाएँ इस प्रकार हैं: 

गुयाना में सामूहिक आत्महत्या

वर्ष 1987 में 18 नवंबर को गुयाना में सामूहिक आत्महत्या की घटना सामने आई थी। रिपोर्ट के अनुसार, ‘पीपुल्स टेम्पल’ नाम से प्रसिद्ध उत्तरी अमेरिकी धार्मिक समूह के 900 से अधिक सदस्यों ने आत्महत्या कर ली। इस समूह के संस्थापक जेम्स वॉरेन जोन्स, जो मेथोडिस्ट उपदेशक बन गए, काले सदस्यों को शामिल करने के प्रति चर्च के प्रतिरोध से निराश होने लगे। परिणामस्वरूप, उन्होंने मेथोडिज्म छोड़ दिया और पीपुल्स टेम्पल की स्थापना की। व्यक्तिगत कारणों से जोन्स 1970 के दशक के मध्य में जोन्सटाउन, गुयाना चले गए और एक कृषि समुदाय की स्थापना की। जोन्सटाउन में रहने के दौरान उनके व्यवहार में आमूलचूल (रेडिकल) परिवर्तन आया और उन्होंने सामूहिक आत्महत्या का आह्वान किया। उन्होंने सामूहिक आत्महत्या का कारण यह बताया कि वे अब उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। उन्होंने कहा, “शायद हम यह रात नहीं जी पाएंगे; हम इस निरंतर उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।”मंदिर के सदस्यों ने निर्णय लिया है कि जब तक स्थिति सुधर नहीं जाती, वे यहीं रहेंगे, अन्यथा मर जाएंगे।” परिणामस्वरूप, उन्होंने नस्लवाद के खिलाफ विरोध स्वरूप अपने अनुयायियों (फॉलोअर्स) को साइनाइड मिश्रित कॉकटेल पीने का आदेश दिया। हालाँकि, यह बताया गया कि कुछ सदस्यों ने स्वेच्छा से अपनी जान ले ली, जबकि कुछ ऐसे भी थे जिन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया। इस घटना में जोन्स की भी मृत्यु हो गई थी। 

सौर मंदिर सामूहिक आत्महत्या

ऑर्डर ऑफ द सोलर टेम्पल एक गुप्त समूह था, जो एलेस्टर क्रॉले और फ्रीमेसनरी की शिक्षाओं से प्रभावित था। समूह का मानना था कि सर्वनाश निकट है और परिणामस्वरूप, वे एक नई दुनिया पर शासन करने में सक्षम होंगे। हालाँकि, उनकी भविष्यवाणी सच नहीं हुई और उन्होंने 1994 और 1995 के बीच कठोर कार्रवाई की, कनाडा, स्विट्जरलैंड और फ्रांस के लगभग 50 सदस्यों ने दम घुटने, गोली मारने और जहर देकर आत्महत्या कर ली थी। 

इंजीनियरों द्वारा सामूहिक आत्महत्या

26 मार्च 1997 को सैन डिएगो में 39 शीर्ष-स्तरीय कंप्यूटर पेशेवर मृत पाए गए। ये पेशेवर लोग ‘डब्ल्यूडब्ल्यू हायर सोर्स’ नामक संप्रदाय के सदस्य थे। इस संप्रदाय के सदस्य पवित्र त्रिदेव के एक अलग संस्करण (वर्जन) में विश्वास करते थे। उनके अनुसार, पवित्र त्रिमूर्ति में बाइबल, कंप्यूटर और यूएफओ शामिल हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से “स्वर्ग का द्वार” माना जाता है। इस संप्रदाय की अपनी वेबसाइट थी और उनका मानना था कि सर्वनाश निकट है और इसलिए मोक्ष पाने का एकमात्र साधन इस दुनिया को छोड़कर अपने विदेशी रचनाकारों के साथ एक हो जाना है। परिणामस्वरूप, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी सदस्यों ने जहर मिला हुआ वोदका पी लिया और प्लास्टिक की थैलियों से दम घोंट दिया था। 

बांग्लादेशी परिवार द्वारा सामूहिक आत्महत्या

बांग्लादेश के मैमनसिंह में वर्ष 2007 में एक परिवार के नौ सदस्यों द्वारा आत्महत्या कर लेने की खबर आई, जिससे पूरा देश स्तब्ध (शॉक्ड) रह गया था। उनके घर से मिली नोटबुक से पता चला कि वे पांच दिनों से आत्महत्या की कोशिश कर रहे थे। नोटबुक से यह भी पता चला कि वे धार्मिक बंधनों से मुक्त होने और आदम और हव्वा की तरह विशुद्ध जीवन जीने के लिए आत्महत्या करने की कोशिश कर रहे थे। परिवार में नौ से साठ वर्ष की आयु के सदस्य थे और वे सभी स्वेच्छा से ट्रेन के सामने आकर मर गये। उन्होंने अपने घास के मैदान मे एक कब्र भी खोद ली थी और अपना ताबूत भी तैयार कर लिया था। उनके पड़ोसियों ने बताया कि यद्यपि वे किसी विशेष पंथ से जुड़े नहीं थे, फिर भी वे एकान्तप्रिय थे और धार्मिक समारोहों में भाग नहीं लेते थे। 

निष्कर्ष

पारिवारिक रहस्य रखना सामान्य बात है, लेकिन इसका चरम स्तर हानिकारक और विघटनकारी हो सकता है। बुराड़ी मौत मामला पारिवारिक रहस्यों के चरम स्तर का आदर्श उदाहरण है। इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कभी-कभी परिवार में क्या चल रहा है, इसका खुलासा करना आवश्यक हो जाता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर सहायता मिल सके और बड़े नुकसान को रोका जा सके। 

जब भाटिया परिवार का मनोवैज्ञानिक शव-परीक्षण किया गया, तो एक सामान्य मुद्दा सामने आया, वह यह कि लोग मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने में अनिच्छुक हैं। लोगों में यह अनिच्छा समझ और सत्य की कमी का कारण बनती है। मनोचिकित्सक आलोक सरीन ने कहा कि इन कठिन वार्तालापों का विरोध करने और उनसे बचने से भविष्य में ऐसी ही समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। 

चूंकि भारतीय समाज पारंपरिक मान्यताओं और मिथकों पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए वे अक्सर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को अलौकिकता (सुपरनैचुरल) से जोड़ देते हैं या इसे अंधविश्वास का परिणाम मानते हैं। तथ्य यह है कि भाटिया परिवार के अनसुलझे आघातों (ललित के पिता की मृत्यु और ललित के अतीत के भावनात्मक घाव) को ठीक से संबोधित नहीं किया गया, जिसके कारण उन्हें पीड़ा हुई हैं। यह जनता के बीच मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और शिक्षा के महत्व पर बल देता है। इसमें उचित मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है ताकि मनोवैज्ञानिक आघात का उचित ढंग से समाधान किया जा सकता है। 

यह तथ्य कि भाटिया परिवार की अंदरूनी घटनाओं के बारे में किसी को पता नहीं था, मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा के प्रति समाज के अलगाव को दर्शाता है। मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत ही संवेदनशील विषय है और जनता को इस पर चर्चा शुरू करनी चाहिए, भले ही इससे उन्हें असहजता महसूस हो। भाटिया परिवार मामले के माध्यम से, जनता को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए इसके प्रति संवेदनशील होने के महत्व का एहसास होना चाहिए। इन मुद्दों को नजरअंदाज करना समाधान नहीं है। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए इस मुद्दे से निपटने के लिए खुले मन से प्रयास करने की आवश्यकता है। 

बुराड़ी जैसे मामले मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में संवेदनशीलता की कमी की ओर इशारा करते हैं। बुराड़ी का मामला लोगों के बीच खुली चर्चा की आवश्यकता को रेखांकित करता है ताकि हम स्वयं को और अपनी आने वाली पीढ़ियों को ऐसे कष्टदायक अंत से बचाया जा सकता है। 

बुराड़ी की घटना के बारे में, प्रसिद्ध पत्रकार बरखा दत्त ने कहा है कि बुराड़ी मौत मामले को लोगों की समझ में न आने का कारण इसकी रिपोर्टिंग का तरीका है, खासकर इसे एक अपराध नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस मामले को आम जनता के सामने प्रस्तुत करने का एकमात्र उद्देश्य तांत्रिक और अलौकिक शक्तियों का अतिरंजित (इग्ज़ैजरैट) चित्रण रहा है। बुराड़ी की घटना समाज में आपसी जुड़ाव की कमी को दर्शाती है। बुराड़ी में हुई मौत का मामला अवसाद और मानसिक आघात जैसे मुद्दों के प्रति सतर्क रहने के महत्व को रेखांकित करता है और जो कोई भी इससे पीड़ित है, उसे यह प्रयास करना चाहिए कि तुरंत ही पेशेवर मदद ली जाए। ऐसे गंभीर मुद्दे की अनदेखी का परिणाम बुराड़ी मौत मामले जैसा हो सकता है। यह न केवल ऐसी स्थिति से पीड़ित व्यक्ति के लिए हानिकारक है, बल्कि उस व्यक्ति के आस-पास के लोगों और पूरे समाज के लिए भी हानिकारक है। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

क्या बुराड़ी मौत मामला सामूहिक आत्महत्या या हत्या था?

पुलिस ने जब जांच शुरू की तो पहले तो हत्या का मामला दर्ज किया। हालाँकि, जैसे-जैसे उन्होंने अपनी जांच आगे बढ़ाई, उन्हें कोई गड़बड़ी या किसी तीसरे पक्ष की संलिप्तता का पता नहीं चला। 11 डायरियों  और सीसीटीवी फुटेज सहित उनके द्वारा एकत्र साक्ष्य के आधार पर, अपराध शाखा ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला कि यह एक सामूहिक आत्महत्या थी। 

क्या बुराड़ी मौत मामले के पीछे कोई अंधविश्वास या धार्मिक पहलू था?

हां, परिवार के छोटे बेटे ललित द्वारा बनाए गए 11 डायरियों में उल्लिखित विवरणों के अनुसार, पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि धार्मिक विश्वास और अंधविश्वास के कारण परिवार ने सामूहिक आत्महत्या की थी। 

क्या कुत्ते को भी परिवार के सदस्यों ने ही मारा था?

नहीं घटना को सबसे पहले देखने वाले पड़ोसियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, जब वे परिवार के घर में दाखिल हुए तो उन्होंने देखा कि कुत्ता छत पर बंधा हुआ था और लगातार भौंक रहा था।

बुराड़ी मौत मामले के बाद कुत्ते का क्या हुआ?

जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो उन्होंने कुत्ते को जंजीरों से बंधा हुआ, तेज बुखार से पीड़ित तथा निर्जल अवस्था में पाया था। वे कुत्ते को नोएडा के पशु देखभाल केंद्र ले गए जहां उसका इलाज किया गया। कुछ समय बाद कुत्ते की सैर के दौरान गिर जाने के कारण दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी। 

परिवार के जीवित सदस्य कौन थे?

परिवार का एकमात्र जीवित सदस्य चुण्डावत परिवार का सबसे बड़ा पुत्र दिनेश सिंह चुण्डावत था। वह अपराध शाखा की जांच से असंतुष्ट थे और उन्होंने इस तथ्य को नकार दिया कि परिवार ने सामूहिक आत्महत्या की थी। 

परिवार के सदस्यों ने फांसी लगाकर आत्महत्या क्यों की थी?

डायरियों में दर्ज विवरण के अनुसार पुलिस को फांसी लगाकर सामूहिक आत्महत्या करने की पूरी प्रक्रिया पता चली थी। डायरियों के अनुसार, परिवार को कुछ धार्मिक अनुष्ठान या पूजा करनी थी और हाथ बांधकर तथा आंखों पर पट्टी बांधकर फांसी लगाना उसी पूजा का हिस्सा था। 

बुराड़ी मौत मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट की क्या भूमिका थी?

यद्यपि पुलिस को आत्महत्या की पूरी प्रक्रिया बताने वाली डायरियाँ मिल गई थीं, फिर भी पुलिस अपने निष्कर्षों की पुष्टि के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रही थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, परिवार के सदस्यों की मृत्यु से पहले किसी भी प्रकार के प्रतिरोध या संघर्ष के संकेत नहीं मिले। इससे यह बात साबित हो गई कि बुराड़ी मौत मामला सामूहिक आत्महत्या का परिणाम था। 

वह मुख्य साक्ष्य क्या था जिससे अपराध शाखा को बुराड़ी मौत मामले का निष्कर्ष निकालने में मदद मिली?

बुराड़ी मौत मामले में पुलिस को अपनी जांच पूरी करने में जिन सबूतों से मदद मिली, वे थी 11 डायरियाँ, सीसीटीवी फुटेज और पोस्टमार्टम रिपोर्ट। 11 डायरियों में पूजा करने का पूरा विवरण था, जिसमें हाथ बांधकर और आंखों पर पट्टी बांधकर फांसी लगाकर सामूहिक आत्महत्या करने की विधि भी शामिल थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि मरने से पहले सदस्यों के बीच कोई प्रतिरोध या संघर्ष नहीं हुआ था। सीसीटीवी फुटेज में परिवार के सदस्यों द्वारा आत्महत्या के लिए स्टूल और तार जैसे कई उपकरण लाने की बात सामने आई है, जिससे पुलिस के इस निष्कर्ष की पुष्टि होती है कि परिवार के सदस्यों ने सामूहिक आत्महत्या की थी। 

क्या घर में लगाए गए 11 पाइपों और बुराड़ी में हुई मौतों के बीच कोई संबंध है?

पुलिस और जीवित बचे बेटे दिनेश चूंडावत दोनों ही 11 पाइपों और मौतों के बीच किसी भी संबंध को नकारते हैं। दिनेश चूंडावत के अनुसार, 11 पाइपों का होना महज संयोग था। यह वे ही थे जिन्होंने उचित वायु-संचार के लिए दीवार में छेद बनाने का सुझाव दिया था। इसलिए, जैसा कि सुझाव दिया गया था, ललित ने मेसन को छेद बनाने और पाइप लगाने के लिए कहा था। न तो ललित और न ही मेसन ने पाइपों की संख्या गिनी थी, इसलिए यह महज एक संयोग था। पुलिस ने भी पाइप और मौत के बीच किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने दीवार पर पाइप लगाने वाले मेसन से पूछताछ की और उसने बताया कि कमरे में वायु-संचार बढ़ाने के लिए पाइप लगाया गया था। 

संदर्भ

 

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