मार्बरी बनाम मैडिसन (1803)

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यह लेख Easy Panda द्वारा लिखा गया है। वर्तमान लेख मार्बरी बनाम मैडिसन (1803) मामले का गहन अध्ययन प्रदान करता है, साथ ही फैसले के पीछे के तथ्य, मुद्दे और तर्क भी प्रदान करता है। इस लेख में मामले में शामिल कानूनों की भी व्याख्या की गई है और दिए गए निर्णय का विश्लेषण भी प्रदान किया गया है। इसका अनुवाद Pradyumn Singh के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

“न्यायिक समीक्षा (रिव्यू) व्यक्तियों के लिए राज्य द्वारा लिए गए निर्णयों को चुनौती देने के एक तरीके के रूप में विकसित हुई है।” – क्रिस ग्रेलिंग

न्यायिक समीक्षा का अर्थ है किसी देश की विधायिका द्वारा पारित किसी भी कानून या आदेश की वैधता की समीक्षा और मूल्यांकन करने की न्यायपालिका की शक्ति। यह एक प्रकार का विचार है, अमेरिकी प्रणाली के अनुसार, सरकार के कार्यकारी और विधायी निकायों के कार्यों की समीक्षा और संभावित निरस्तीकरण (अब्रोगेशन) न्यायपालिका द्वारा किया जाता है। यह न्यायालयों द्वारा किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित करने की शक्ति है यदि यह संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है या उनके विरुद्ध है। संविधान में ऐसा कोई विशिष्ट खंड मौजूद नहीं है जो विशेष रूप से न्यायिक समीक्षा की शक्ति पर चर्चा करता हो।

मार्बरी बनाम मैडिसन का मामला विश्व इतिहास का पहला मामला है जिसमें इस सिद्धांत की अवधारणा उत्पन्न हुई थी। यह पहला सर्वोच्च न्यायालय का मामला था जिसमें कांग्रेस के अधिनियम को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का निर्णय लिया गया था।

मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल द्वारा एक प्रसिद्ध पंक्ति दी गई थी:यह न्यायिक विभाग का स्पष्ट कर्तव्य है कि वह यह कहे कि कानून क्या है। जो लोग विशेष मामलों में नियम लागू करते हैं, उन्हें आवश्यक रूप से नियम की व्याख्या करनी चाहिए। यदि दो कानून एक दूसरे के साथ विरोध करते हैं, तो न्यायालय को प्रत्येक के संचालन पर निर्णय लेना होगा।”

मामले का विवरण

शामिल कानून

1789 का न्यायपालिका अधिनियम 

न्यायपालिका अधिनियम की धारा 13

1789 की न्यायपालिका अधिनियम की धारा 13 में कहा गया है कि संयुक्त राज्य के सर्वोच्च न्यायालय का सभी नागरिक प्रकृति के विवादों पर विशेष अधिकार क्षेत्र होगा जहां राज्य एक पक्षकार हो, सिवाय राज्य और उसके नागरिकों के बीच के मामलों को छोड़कर। ऐसे मामलों में जहां विवाद एक राज्य और अन्य राज्यों के नागरिकों या विदेशियों के बीच होता है, राज्य का मूल अधिकार क्षेत्र होगा। धारा में आगे कहा गया है कि राजदूतों, सार्वजनिक मंत्रियों या उनके घरेलू नौकरों के खिलाफ किसी भी मुकदमे या कार्यवाही से संबंधित मामलों में, न्यायालय का उन मामलों पर भी विशेष अधिकार क्षेत्र होगा। ऐसे प्रत्येक मामले का मुकदमा एक जूरी द्वारा किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय का सर्किट न्यायालय और कई राज्यों की न्यायालय से अपीलीय अधिकार क्षेत्र भी होगा। इस धारा के तहत सर्वोच्च न्यायालय को जिला न्यायालय को निषेध (प्रोहिबिशन) जारी करने की शक्ति है जहां विवाद नौसैनिक और समुद्री अधिकार क्षेत्र से संबंधित है। निषेधाज्ञा के साथ-साथ, सर्वोच्च न्यायाल य संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकार के तहत नियुक्त किसी भी न्यायालय या किसी भी व्यक्ति को कानून के सिद्धांतों और उपयोगों से संबंधित मामलों में परमादेश जारी कर सकता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान

अमेरिकी संविधान का अनुच्छेद 1

अमेरिकी संविधान का अनुच्छेद 1 अमेरिकी सरकार की विधायी शाखा, यानी कांग्रेस की रूपरेखा के बारे में बात करता है। इस अनुच्छेद का मुख्य भाग सरकार की विभिन्न शाखाओं, सीनेट और अन्य प्रतिनिधियों की चुनाव प्रक्रिया, कानून बनाने की प्रक्रिया और कांग्रेस की शक्ति के बीच शक्ति के पृथक्करण (सेपरेशन) के बारे में बात करता है। इस अनुच्छेद में 10 खंड हैं। इस अनुच्छेद के प्रत्येक खंड का संक्षिप्त अवलोकन नीचे दिया गया है।

खंड 1 इसमें कहा गया है कि प्रत्येक विधायी शक्ति कांग्रेस को उपलब्ध होगी, जिसमें सीनेट और प्रतिनिधि सभा शामिल होगी। 

खंड 2 यह प्रतिनिधि सभा के लिए सदस्यता की आवश्यकता के बारे में बात करता है। यह धारा न्यूनतम योग्यताएं और उनका कार्यकाल निर्धारित करती है। 

खंड 3 यह खंड प्रत्येक राज्य से सीनेटरों की नियुक्ति और उनके मतदान अधिकारों के बारे में बात करता है।

खंड 4यह खंड सीनेटरों और प्रतिनिधियों के लिए चुनाव कराने के समय, स्थान और तरीके के बारे में बात करता है।

खंड 5 यह खंड सीनेट और प्रतिनिधि सभा की विधायी कार्यवाही के लिए नियम निर्धारित करता है।

खंड 6 यह खंड उन विशेषाधिकारों और लाभों के बारे में बात करता है जिनके सीनेटर और प्रतिनिधि अपने कर्तव्यों के प्रदर्शन के बाद हकदार हैं। 

खंड 7 इसमें कहा गया है कि राजस्व (रेवेन्यू) से संबंधित प्रत्येक बिल प्रतिनिधि सभा में उत्पन्न होगा। हालांकि, सीनेट के पास किसी अन्य विधेयक में संशोधन प्रस्तावित करने की शक्ति है। 

खंड 8 यह राष्ट्र के कल्याण और रक्षा के लिए कर लगाने और एकत्र करने के संबंध में कांग्रेस की शक्ति के बारे में बात करता है। 

खंड 9 यह कांग्रेस के कुछ क्षेत्रों में कानून बनाने जैसे 1808 से पहले दासों के आयात पर रोक के बारे में बात करता है।

खंड 10 यह खंड राज्य को कांग्रेस की सहमति के बिना किसी भी सेना, जहाज आदि को रखने से रोकता है। 

अमेरिकी संविधान का अनुच्छेद 3

अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद 3 में संघीय न्यायपालिका की स्थापना की बात कही गई है। अनुच्छेद में 3 खंड हैं, जिन पर संक्षेप में चर्चा की गई है।

खंड 1 – यह संविधान का निहित खंड है, जिसमें कहा गया है कि संयुक्त राज्य की न्यायिक शक्ति एक सर्वोच्च न्यायालय और अन्य निचली न्यायालयो में निहित होगी, जिन्हें समय-समय पर कांग्रेस द्वारा स्थापित किया जाएगा।

खंड 2 यह खंड न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बारे में बात करती है और कहती है कि महाभियोग के मामलों को छोड़कर, मामलों की सुनवाई जूरी द्वारा की जाएगी। 

खंड 3 यह खंड राजद्रोह के अपराध के बारे में बात करता है, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ युद्ध में जाने या किसी दुश्मन को ऐसा करने में सहायता देने में किसी भी व्यक्ति की भागीदारी के रूप में परिभाषित किया गया है। 

मामले की पृष्ठभूमि

200 साल पहले लिखे गये निर्णय की भाषा आधुनिक पाठकों के लिए विश्लेषण करना मुश्किल हो सकता है। जिस परिस्थिति में यह निर्णय लिया गया था, उसे जाने बिना इसका महत्व निकालना भी बहुत मुश्किल है। मामले के मौलिक तथ्य दिलचस्प हैं, कम से कम अगर किसी को संस्थापक पिताओं से जुड़ी राजनीतिक चालाकी पसंद है। 1800 के समय की राजनीति प्रकृति में विवादास्पद थी।

मार्बरी बनाम मैडिसन अमेरिकी न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मामला है। इस मामले में संघवादी नेता जॉन एडम्स और प्रजातांत्रिक गणतंत्र (डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन) नेता थॉमस जेफरसन के बीच विवाद शामिल था। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, जॉन मार्शल ने मामले की अध्यक्षता की और एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने अमेरिका और दुनिया के लिए न्यायिक समीक्षा की अवधारणा के लिए दरवाजे खोल दिए।

मामले के तथ्य

यह घटनाएँ 1790 के अंत और 1800 की शुरुआत में हुईं, जब अमेरिकी राजनीतिक जीवन संघवादी नेता जॉन एडम्स और प्रजातांत्रिक गणतंत्र नेता थॉमस जेफरसन के इर्द-गिर्द घूमता था। नवंबर 1800 के कांग्रेस और राष्ट्रपति चुनावों में प्रजातांत्रिक गणतंत्र ने संघवादियों को हराया, लेकिन हार के बावजूद, संघवादियों ने मार्च 1801 तक पद पर कब्जा जमाए रखा।

जिस अतिरिक्त समय के लिए संघवादियों ने पद संभाला, उन्होंने कई नए न्यायिक पदों का निर्माण किया, जिन पर संघवादी राष्ट्रपति जॉन एडम्स ने अपने करीबी सहयोगियों को नियुक्त करने का प्रयास किया, ये नियुक्तियां प्रजातांत्रिक गणतंत्र सरकार को प्रभावित करने के लिए की गई थी जब वे सत्ता में नहीं थे। तथाकथित अस्थायी न्यायाधीशों की इन नियुक्तियों ने अमेरिका में विवाद पैदा कर दिया।

इस बीच, अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश ओलिवर एल्सवर्थ ने भी राष्ट्रपति चुनाव के कुछ समय बाद स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जॉन एडम्स ने इसे अपने किसी सहयोगी को रिक्त पद भरने के अवसर के रूप में देखा। उन्होंने न्यायाधीश जॉन को रिक्त पद भरने के लिए कहा। न्यायाधीश जॉन, जो पहले मुख्य न्यायाधीश के पद पर कार्य कर चुके थे, लेकिन 1795 में न्यूयॉर्क के राज्यपाल बनने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे, ने इस पद को ठुकरा दिया।

बाद में, जॉन एडम्स ने अपने राज्य सचिव मार्शल को मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया। सीनेट ने मार्शल को पद पर नियुक्त करने में तेजी दिखाई। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के बाद भी उन्होंने राज्य सचिव के रूप में कार्य करना जारी रखा। संघवादी कांग्रेस ने 13 फरवरी 1801 को सर्किट न्यायालय अधिनियम को अपनाया। इस कानून ने सर्किट ड्यूटी के सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीशों को बदलकर और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या छह से घटाकर पांच करके संघीय न्यायपालिका में परिवर्तन लाया। इसने सोलह न्यायाधीशों के साथ छह नए सर्किट न्यायालय की स्थापना की। इन न्यायाधीशों को जॉन एडम्स द्वारा नियुक्त किया गया था और उन्हें कांग्रेस द्वारा शीघ्र ही अनुमोदित कर दिया गया था। ये सभी घटनाएँ प्रजातांत्रिक गणतंत्र नेता थॉमस जेफरसन द्वारा पदभार संभालने से पहले हुईं।

2 मार्च 1801 को, राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल से एक दिन पहले, जॉन एडम्स ने विलियम मार्बरी को कोलंबिया जिले में शांति के न्यायिक पद पर नियुक्त किया। सीनेट ने अगले दिन उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी। एडम ने विधिवत रूप से मार्बरी के कमीशन का उल्लेख करते हुए दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए और दस्तावेज़ पर एक आधिकारिक मुहर लगा दी।

मार्शल के भाई जेम्स को सर्किट न्यायालय अधिनियम के तहत नियुक्त न्यायाधीशों को कमीशन देने थे। हालांकि, कमीशन देते समय, जब उन्होंने पाया कि वह हर दस्तावेज़ नहीं ले जा सकते थे, तो उन्होंने मार्बरी के कमीशन पत्र सहित कई दस्तावेज छोड़ दिए।

बाद में, जब थॉमस जेफरसन ने पदभार संभाला, तो उन्होंने अपने नए राज्य सचिव जेम्स मैडिसन को सभी कमीशन रोकने का आदेश दिया जो वितरित नहीं किए गए थे। इसमें विलियम मार्बरी का कमीशन पत्र भी शामिल था।

21 दिसंबर, 1801 को विलियम मार्बरी ने सर्वोच्च न्यायालय में एक वाद दायर किया, जिसमें जेम्स मैडिसन को नियुक्ति पत्र देने के लिए परमादेश जारी करने की मांग की गई, जिसमें कहा गया कि उसे नियुक्ति रोकने का कोई अधिकार नहीं है। 

उठाए गए मुद्दे

मार्बरी बनाम मैडिसन, (1803) के मामले में निम्नलिखित मुद्दे उठाए गए–

  1. क्या विलियम मार्बरी न्यायिक आयोग के हकदार हैं?
  2. क्या कानून विलियम मार्बरी के लिए कोई उपाय प्रदान करता है?
  3. क्या परमादेश की रिट सर्वोच्च न्यायालय का एक उचित उपाय था?

मामले का फैसला

जब मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा, तो जेम्स मैडिसन ने इस विश्वास के आधार पर न्यायालय में पेश होने से इनकार कर दिया कि न्यायालय के पास मार्बरी को उसका कमीशन देने के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए न्यायालय ने केवल मार्बरी के तर्कों को सुना, जिनका प्रतिनिधित्व चार्ल्स ली ने किया था, जिन्होंने पहले जॉन एडम्स के तहत महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) के रूप में कार्य किया था।

जॉन मार्शल सर्वसम्मति से न्यायालय के लिए एक राय लिखने के प्रभारी थे। वह मार्बरी के न्यायिक कमीशन के हकदार होने और उसे उपचार प्रदान करने के प्रावधान के संबंध में पहले दो मुद्दों से सहमत थे। न्यायालय ने कहा कि एक बार कमीशन पर हस्ताक्षर और मुहर लगा दी जाती है, तो मार्बरी को एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है। डिलीवरी केवल एक औपचारिकता है जिसे जेम्स मैडिसन द्वारा किया जाना बाध्य है। तीसरे मुद्दे के संबंध में, न्यायालय ने पाया कि उसके पास परमादेश जारी करने की शक्ति है क्योंकि यह 1789 के न्यायपालिका अधिनियम द्वारा उसे प्रदान की गई है। हालांकि, जॉन मार्शल ने कहा कि शक्ति का यह अनुदान संविधान के अनुच्छेद III के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से अधिक था।

फैसले के पीछे का तर्क

क्या विलियम मार्बरी को न्यायाधीश के रूप में कमीशन प्राप्त करने का अधिकार है?

न्यायालय ने विलियम मार्बरी को न्यायिक कमीशन के हकदार होने के पहले मुद्दे के संबंध में निम्नलिखित तर्क दिया। न्यायिक कमीशन के हकदार होने का अधिकार फरवरी 1801 में कांग्रेस द्वारा पारित सर्किट न्यायालय अधिनियम के बाद उत्पन्न हुआ, जो कोलंबिया जिले से संबंधित था। इस कानून की धारा 11 में शांति के न्यायाधीशों की स्थापना के बारे में बात की गई है, जिनके न्यायाधीशों की नियुक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा पांच साल की अवधि के लिए की जाएगी। दिए गए हलफनामे से यह स्पष्ट था कि विलियम मार्बरी को संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एडम्स द्वारा एक मुहर के साथ शांति के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। लेकिन उसे कभी कमीशन नहीं मिला।

कमीशन के हकदार होने के अपने दावे का निर्धारण करने के लिए, न्यायालय के लिए यह जांच करना आवश्यक था कि उसे उचित रूप से कार्यालय में नियुक्त किया गया था या नहीं। अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद II की धारा 2 राष्ट्रपति को राजदूतों और संयुक्त राज्य के अन्य सार्वजनिक मंत्रियों को नियुक्त करने की शक्ति से संबंधित है, जिनकी नियुक्तियों का उल्लेख संविधान में नहीं किया गया है।

अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद II की धारा 3 संयुक्त राज्य के अधिकारियों के कमीशन से संबंधित है। इसमें राज्य सचिव से संयुक्त राज्य की मुहर रखने की आवश्यकता होती है, जो संयुक्त राज्य के सभी नागरिक कमीशन तैयार करेगा, रिकॉर्ड करेगा और उस पर मुहर लगाएगा, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा सीनेट की सहमति से या केवल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। हालांकि संविधान के इस खंड को केवल उन अधिकारियों पर लागू किया गया है जिन्हें स्वयं राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया गया था, लेकिन इसकी विधायी शक्ति को किसी भी परिस्थिति में नकारा नहीं जा सकता है। 

उपर्युक्त प्रावधान तीन अलग-अलग कार्यों, यानी नामांकन, नियुक्ति और कमीशन के बारे में बात करते हैं। 

अब न्यायालय के सामने सवाल यह था कि क्या अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद II की धारा 2 और धारा 3 निर्णायक प्रकृति की होगी। न्यायालय ने उत्तर दिया कि राष्ट्रपति का प्रत्येक कार्य जो यह दर्शाता है कि उन्होंने सभी प्रोटोकॉल का पालन किया है, उसे किसी और सबूत की आवश्यकता नहीं है। राष्ट्रपति का अंतिम कार्य कमीशन पर हस्ताक्षर करना है, जिसके बाद वह सीनेट की सलाह और सहमति से कार्य करता है। सीनेट द्वारा नामांकन को मंजूरी देने के बाद ही अधिकारी की नियुक्ति होती है।

कमीशन पर हस्ताक्षर करने के बाद, इसे संबंधित व्यक्ति को सौंपना सचिव का कर्तव्य है। यह कर्तव्य कानून द्वारा निर्देशित होता है न कि राष्ट्रपति की इच्छा द्वारा। यह समझा जाना चाहिए कि मुहर लगाने की औपचारिकता न केवल कमीशन की वैधता के लिए बल्कि नियुक्ति की पूर्णता के लिए भी आवश्यक है। न्यायालय सहमत हुई कि सरकार की ओर से किसी अन्य औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है।

न्यायालय ने पाया कि कमीशन में अधिकारी की तारीख और वेतन होता है और यह एक ऐसा दस्तावेज नहीं है जो उसके पद के संचरण या स्वीकृति को प्रदान करता है। जब कोई व्यक्ति किसी पद पर नियुक्त होने से इनकार कर देता है, तो उस व्यक्ति के स्थान पर एक नए व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है, जिसने पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया है, न कि उस मूल व्यक्ति के स्थान पर जिसने पहले पद संभाला था और जिसने मूल रिक्ति पैदा की थी।

न्यायालय ने अंततः फैसला किया कि जब किसी कमीशन पर राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं और एक नियुक्ति की जाती है, तो कहा जाता है कि कमीशन पूरा हो गया है जैसे ही संयुक्त राज्य की मुहर राज्य सचिव द्वारा उस पर लगा दी जाती है। इसने मार्बरी को कार्यकारी की राय की परवाह किए बिना पांच साल के लिए कार्यालय रखने का अधिकार दिया। कमीशन को रोकना एक ऐसा कार्य है जिसे न्यायालय द्वारा कानून द्वारा वारंटेड नहीं माना जाता है, बल्कि यह विलियम मार्बरी के कानूनी अधिकारों का उल्लंघन है।

क्या विलियम मार्बरी के पास कोई कानूनी सहारा है?

इस विशेष मुद्दे के संबंध में न्यायालय की दलील – यदि विलियम मार्बरी के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो क्या कोई उपचार उपलब्ध है, आगे बताया गया है। न्यायालय ने पाया कि नागरिक स्वतंत्रता की मूल विशेषता यह है कि जब भी किसी कानून का उल्लंघन होता है तो उससे कानूनों से सुरक्षा का दावा किया जाए। किसी भी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य उस सुरक्षा को प्रदान करना है। न्यायालय ने ग्रेट ब्रिटेन का उदाहरण दिया, जहां राजा को एक याचिका के सम्मानजनक रूप में मुकदमा किया जाता है और वह न्यायालय के फैसले का पालन करने में कभी असफल नहीं होता है।

न्यायालय ने ब्लैकस्टोन की तीसरी भाग में टिप्पणी का भी उल्लेख किया, जहां उन्होंने दो मामले बताए जिनमें उपचार कानून के एक साधारण संचालन द्वारा दिया गया था। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मामले में, एक सामान्य और निर्विवाद नियम होता है कि जब भी किसी कानूनी अधिकार का उल्लंघन होता है, तो उसके लिए मुकदमे या कानून द्वारा एक कानूनी उपचार होता है। वे आगे कहते हैं कि इस तरह की क्षति जो सामान्य कानून की न्यायालयों द्वारा संज्ञेय हैं और जो सैन्य या समुद्री न्यायाधिकरणों के दायरे में नहीं आती हैं, उनमें कानून में एक निश्चित सिद्धांत है कि उन्हें एक उपचार प्रदान करना होगा।

संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार को कानूनो की सरकार के रूप में जाना जाता है न कि पुरुषों की। यदि कानून निहित कानूनी अधिकारों के उल्लंघन के लिए कोई उपचार प्रदान नहीं करता है, तो यह निश्चित रूप से अपनी स्थिति खो देगा। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह यह पता लगाए कि क्या कोई ऐसी परिस्थिति है जो पीड़ित पक्ष को कानूनी लाभ प्राप्त करने से रोक सकती है।

न्यायालय ने पाया कि अमेरिकी संविधान ने राष्ट्रपति को कुछ राजनीतिक शक्ति दी है, जिसका उपयोग वह अपने विवेक पर कर सकता है। उन्हें कुछ अधिकारियों को नियुक्त करने का अधिकार है जो अपने कर्तव्य के पालन में उनकी मदद कर सकते हैं। ये अधिकारी राष्ट्रपति के आदेशों के अनुसार कार्य करते हैं। इन अधिकारियों के कृत्यों को राष्ट्रपति का कृत्य माना जाता है। न्यायालय का इस कथन के माध्यम से यह कहने का मतलब था कि हालांकि विभागों के प्रमुख अपनी इच्छा को क्रियान्वित करने के लिए कार्यपालिका के राजनीतिक एजेंट हैं, जब भी कानून द्वारा कोई विशिष्ट कर्तव्य उन्हें सौंपा जाता है और किसी व्यक्ति का अधिकार उनके कर्तव्य के प्रदर्शन पर निर्भर करता है, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि व्यक्ति का दावा करने का अधिकार है उनके खिलाफ अगर वह अपने कर्तव्य के प्रदर्शन या गैर-प्रदर्शन से खुद को घायल मानता है।

वर्तमान मामले में, सीनेट और किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति की शक्ति एक राजनीतिक शक्ति है जिसका प्रयोग राष्ट्रपति अपने विवेकानुसार करता है। यदि, कानून के आधार पर अधिकारी को राष्ट्रपति द्वारा हटा दिया जाता है, तो तुरंत एक नई नियुक्ति की जा सकती है और ऐसे अधिकारी के अधिकार समाप्त हो जाते हैं। लेकिन इस बात को बदला नहीं जा सकता कि उसके पास ऐसे अधिकार थे। यह सवाल कि कोई अधिकार उपलब्ध है या नहीं, न्यायालय द्वारा तय किया जाता है। श्री मार्बरी ने एक मजिस्ट्रेट के रूप में शपथ ली थी और इसलिए उन्हें तदनुसार कार्य करने की आवश्यकता थी।

न्यायालय का यह मत था कि श्री मार्बरी के शांति के न्यायिक के रूप में कमीशन पर हस्ताक्षर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा किए गए थे। राज्य सचिव द्वारा लगाई गई संयुक्त राज्य की मुहर नियुक्ति का निर्णायक प्रमाण है। श्री मार्बरी को कमीशन का कानूनी अधिकार है और इस तरह के कमीशन को देने से इनकार करना कानूनी अधिकार का उल्लंघन है जिसके लिए देश का कानून उन्हें उपचार प्रदान करता है।

क्या सर्वोच्च न्यायालय का परमादेश एक उचित उपाय था?

तीसरे मुद्दे के संबंध में कि क्या परमादेश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक उपयुक्त उपाय था, न्यायालय ने ब्लैकस्टोन द्वारा टिप्पणी के तीसरे खंड में परमादेश की परिभाषा को देखा। ब्लैकस्टोन के अनुसार, परमादेश राजा के नाम से उसके पीठ की न्यायालय से जारी किया गया एक आदेश है जो किसी व्यक्ति, निगम या उसके अधिकार क्षेत्र के भीतर निचले न्यायालय को अपने आधिकारिक कर्तव्य से संबंधित किसी विशेष प्रकार की चीजें करने का निर्देश देता है जो अधिकार और न्याय के अनुरूप हो।

न्यायालय ने किंग बनाम बेकर, (1994) के मामले के माध्यम से इस रिट के उपयोग का निर्धारण किया, जहां लॉर्ड मैन्सफील्ड ने कहा कि जब भी किसी कार्यालय को निष्पादित करने, सेवा करने या किसी कानून को निष्पादित करने का अधिकार होता है जो सार्वजनिक चिंता का विषय होता है या लाभ से संबंधित होता है, और व्यक्ति को कब्जे से बाहर रखा जाता है या उससे वंचित किया जाता है। ऐसा अधिकार, तो, किसी विशिष्ट उपचार की कमी के कारण, न्यायालय न्याय की पूर्ति के लिए परमादेश घोषित करती है। न्यायालय ने आगे कहा कि किसी विशिष्ट कानूनी उपचार की अनुपस्थिति में, न्याय और सुशासन के लिए परमादेश जारी किया जा सकता है।

अधिकारियों के अलावा, न्यायालय ने विभिन्न अन्य परिस्थितियों में इस रिट के उपयोग को साबित करने के लिए कई अन्य स्रोतों पर भरोसा किया। न्यायालय ने पाया कि इस मामले में, श्री मार्बरी उचित व्यक्ति थे क्योंकि उनके अधिकारों का उल्लंघन किया गया था और उनके पास कोई उचित कानूनी उपचार नहीं बचा था।

न्यायालय ने इस मामले की आवश्यकताओं का विश्लेषण किया। 1792 में अधिनियम में पारित एक अधिनियम पर ध्यान दिया, जिसमें युद्ध सचिव को विकलांग सैनिकों के नाम पेंशनधारियों की सूची में डालने का निर्देश दिया गया था। इन सैनिकों को सर्किट न्यायालयों द्वारा उसकी रिपोर्ट करने की आवश्यकता थी। हालांकि न्यायालय पर लगाए गए कर्तव्य को असंवैधानिक माना गया, लेकिन कुछ न्यायाधीशों ने आयुक्तों के चरित्र में कानून को निष्पादित किया। अब यह सवाल उठा कि आयुक्तों के रूप में कार्य करने वाले न्यायाधीशों द्वारा रिपोर्ट किए गए व्यक्ति लाभ के हकदार हैं। कांग्रेस ने 1792 के अधिनियम में संशोधन करने के बाद 1793 में एक और अधिनियम पारित किया, जिसने युद्ध सचिव के कर्तव्य को महान्यायवादी की मदद से ऐसे कदम उठाने के लिए बनाया जो संयुक्त राज्य के सर्वोच्च न्यायालय के अधिनियम के तहत दावा किए गए नियुक्ति की वैधता पर निर्णय के लिए आवश्यक हो सकते हैं। इस कानून के पारित होने के बाद, परमादेश युद्ध सचिव को निर्देशित किया गया था, जिसमें उन्हें प्रत्येक व्यक्ति को पेंशन सूची में रखने का आदेश दिया गया था, जिनके नाम न्यायाधीशों द्वारा की गई रिपोर्ट में उल्लिखित थे। इससे यह साबित हुआ कि किसी भी कानूनी अधिकार के उल्लंघन के लिए परमादेश जारी करना संयुक्त राज्य के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपयोग किया जाता है।

न्यायालय पहले संदेह में थी कि क्या परमादेश श्री मार्बरी के लिए उनके कमीशन को रोकने के लिए एक उचित उपाय होगा। लेकिन चूंकि आवेदक पद के हकदार थे, इसलिए न्यायालय की अनिश्चितता का समाधान हो गया। श्री मार्बरी को या तो कमीशन प्राप्त करके या रिकॉर्ड से उसकी एक प्रति प्राप्त करके कार्यालय में शामिल होना था।

न्यायालय ने पाया कि संयुक्त राज्य के न्यायालयों की स्थापना करने वाले कानून ने इसे परमादेश जारी करने की शक्ति दी थी, ऐसे मामलों में जहां, कानून के सिद्धांतों और उपयोग द्वारा, संयुक्त राज्य के अधिकार के तहत कार्यालय धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति एक सार्वजनिक अधिकारी या निगम, न्यायाधिकरण, कोई भी निम्नतर न्यायालय या सरकार है। राज्य सचिव एक ऐसा व्यक्ति है जो संयुक्त राज्य के अधिकार के तहत कार्यालय धारण करता है और यदि न्यायालय को ऐसे अधिकारी को रिट जारी करने का अधिकार नहीं है, तो यह केवल कानून की असंवैधानिकता के कारण हो सकता है।

संयुक्त राज्य में शक्ति का वितरण घोषित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय के पास उन सभी मामलों पर मूल अधिकार क्षेत्र है जिनमें राजदूत, अन्य सार्वजनिक मंत्री, वकील या ऐसे मामले शामिल हैं जहां कोई राज्य एक पक्षकार हो। उल्लिखित मामलों को छोड़कर, सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय अधिकार क्षेत्र है।

वर्तमान मामले में, मार्बरी का मामला किसी भी तरह से निचली न्यायालय से अपील के दायरे में नहीं आता था, इसलिए उन्हें न्यायालय को यह साबित करना पड़ता था कि यह न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है। हालांकि, विलियम मार्बरी ऐसा साबित नहीं कर पाए और इसलिए, न्यायालय का यह मत था कि कांग्रेस न्यायालय को संविधान में शामिल नहीं की गई शक्तियां नहीं दे सकती थी। इसलिए न्यायपालिका अधिनियम का वह हिस्सा जिसने न्यायालय को परमादेश के माध्यम से मूल वाद सुनने की शक्ति दी थी, असंवैधानिक है।

मामले का गंभीर विश्लेषण

मार्बरी बनाम मैडिसन अमेरिकी कानूनी व्यवस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। हालांकि इस मामले की कुछ आलोचना की जा सकती है, जैसे कि न्यायालय को पहले मामले के अधिकार क्षेत्र को देखना चाहिए था। न्यायालय को पहले इस प्रारंभिक प्रश्न का समाधान करना चाहिए था कि क्या उसके पास मामले की कोशिश करने का अधिकार है। मार्बरी ने 1789 के न्यायपालिका अधिनियम की धारा 13 के आधार पर न्यायालय का रुख किया, जिसके अनुसार, उसने न्यायालय को परमादेश जारी करने की शक्ति दी। यदि न्यायालय ने पहले उदाहरण में इस मुद्दे को हल किया होता, तो मामला इस हद तक आगे नहीं बढ़ता।

दूसरी आलोचना यह है कि मुख्य न्यायाधीश, जॉन मार्शल को इस मामले का फैसला नहीं करना चाहिए था क्योंकि वह मामले की पृष्ठभूमि में शामिल थे। न्यायालय ने यह निर्णय लेने में समय लिया कि क्या मार्बरी का कमीशन हटाए जाने से पहले हस्ताक्षरित और सीलबंद था, यह निर्धारित करने के लिए कि उसका निहित स्वार्थ था। हालांकि, इस बात से स्पष्ट था कि मार्बरी की नियुक्ति और कमीशन मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल को ज्ञात थे और कमीशन को उनके छोटे भाई जेम्स द्वारा मार्बरी को उपलब्ध कराने की योजना थी, जो राज्य सचिव के कार्यालय में थे।

मामले की एक और आलोचना उस प्रक्रिया के संबंध में है जिसके माध्यम से जॉन मार्शल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय अमेरिकी सरकार की अन्य शाखाओं पर श्रेष्ठ है। आज के समय में अमेरिकी न्यायालय संवैधानिक परिहार के सिद्धांत का पालन करती हैं, जिसका अर्थ है कि यदि किसी कानून की व्याख्या से कुछ संवैधानिक समस्याओं के बारे में चिंता उत्पन्न होती है, तो वे उन समस्याओं से बचने के लिए एक वैकल्पिक व्याख्या की तलाश करते हैं। जॉन मार्शल ने विभिन्न फैसलों के माध्यम से इन समस्याओं से परहेज किया, जिससे कार्यवाही में देरी हुई। यदि न्यायालय ने यह फैसला किया होता कि मार्बरी का कोई अधिकार तब तक नहीं था जब तक कि उसे कमीशन या इसके विपरीत नहीं दिया गया, तब तक न्यायालय मामले के संवैधानिक मुद्दों पर नहीं पहुंची होती। 

इस मामले पर भारतीय दृष्टिकोण

भारत में न्यायिक समीक्षा की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से स्वीकार की गई है, जिसे भारत के संविधान के स्रोतों में से एक माना जाता है। न्यायिक समीक्षा का सिद्धांत भारत के सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी राज्य की विधायिका द्वारा बनाए गए किसी भी कानून या प्रावधान को रद्द करने की शक्ति प्रदान करता है यदि यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है। इस अवधारणा की व्याख्या और अपनाने को पहली बार भारत में ऐतिहासिक मामले शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951) के माध्यम से किया गया था, जिसकी सुनवाई छह न्यायाधीशों की पीठ ने की थी। उन छह न्यायाधीशों में से पांच न्यायाधीश भारतीय संविधान के तहत आवश्यक अधिकारों के संशोधन के खिलाफ थे। इस मामले में, पहला संशोधन अधिनियम (1951) को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि “संपत्ति के अधिकार” पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि इसे लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि अनुच्छेद 13 के तहत मौलिक अधिकार संक्षिप्त नहीं हो सकते हैं।

जबकि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के मामले में,तेरह में से सात न्यायाधीशों ने बहुमत की राय दी कि संसद के लचीले प्रभाव में है और संविधान के सभी आवंटन में संशोधन किया जा सकता है और इस मामले में उन्होंने गोलकनाथ मामले को खारिज कर दिया। इस मामले में, गोलकनाथ मामले के विवाद का फैसला किया गया था, और न्यायालय अभी भी सहमत थी कि संसद संविधान में संशोधन करने से प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन उसने मूल संरचना के सिद्धांत की एक चेतावनी भी दी। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आवश्यक अधिकारों को इस तरह से नहीं बदला जा सकता है, जो संविधान के मूल निर्माण में जोड़ देगा। इस मामले में, न्यायालय ने देखा कि संविधान में संशोधन संविधान की मूल संरचना को ध्यान में रखकर किया जाना है।

गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) के मामले में, यह सवाल उठाया गया था कि क्या संशोधन एक कानून है और क्या मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है या नहीं। न्यायालय ने कहा कि संसद भारतीय संविधान के भाग III में दिए गए अधिकारों को छीनने के लिए केवल संविधान में संशोधन नहीं कर सकती है। और इसके कारण 24वां संशोधन अधिनियम (1971) का पारित होना हुआ, जिसने संसद की संवैधानिक शक्तियों को प्रतिबंधित कर दिया। उपरोक्त मामलों के विपरीत, कई अन्य मामले हैं जहां न्यायिक समीक्षा के मामले पर विस्तार से चर्चा की गई थी।

इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975) के मामले के बाद, न्यायिक समीक्षा को संविधान की एक मूल संरचना माना जाता है। हालांकि, न्यायिक समीक्षा कुछ कमियों के अधीन है, जैसे कि नीतियों के कार्यान्वयन में देरी होना और सरकार में लोगों की आशा और विश्वास को कमजोर करना।

भारत में न्यायिक समीक्षा का दायरा संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में सीमित है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यायिक समीक्षा कानून की उचित प्रक्रिया पर आधारित है, जबकि भारतीय न्यायिक समीक्षा कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया पर आधारित है। कानून की उचित प्रक्रिया इन अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कानूनों को न केवल गैरकानूनी होने के महत्वपूर्ण आधार पर, बल्कि अनुचित होने के प्रक्रियात्मक आधार पर भी शून्य घोषित कर सकती है। जबकि भारत का सर्वोच्च न्यायालय, कानून की वैधता का निर्धारण करते समय, केवल महत्वपूर्ण आधारों के आधार पर जांच करता है, यानी यह कि क्या कानून संबंधित अधिकार के अधिकार के भीतर है या नहीं।

निष्कर्ष

मार्बरी बनाम मैडिसन का मामला अमेरिकी न्यायपालिका और कांग्रेस के बीच संबंधों पर एक स्थायी प्रभाव पड़ा। यह इतिहास का पहला मामला था जहां सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस के एक अधिनियम के खिलाफ न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया था। मार्शल के फैसले की उस समय व्यापक प्रशंसा हुई जब न्यायपालिका पर थॉमस जेफरसन और उनके अनुयायियों(फॉलोवर्स) द्वारा लगातार दबाव डाला जा रहा था। हालांकि यह शक्ति विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में उल्लेखित नहीं थी, लेकिन कई संघवादी इस अवधारणा के समर्थन में थे।

न्यायिक समीक्षा की नई घोषित शक्ति के बाद भी, इस अवधारणा का अमेरिका में लंबे समय तक उपयोग नहीं किया गया। हालांकि, समय के साथ इस अवधारणा का महत्व बढ़ता गया और अब यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों में से एक बन गया है। भारत ने भी अमेरिका से न्यायिक समीक्षा की अवधारणा को अपनाया और इसका उपयोग पहली बार प्रसिद्ध शंकर प्रसाद बनाम भारत संघ, (1951) के मामले में किया। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

संघवादी नेताओं और प्रजातांत्रिक गणतंत्र नेताओं की विचारधारा क्या थी?

संघवादी दल एक मजबूत केंद्रीय सरकार बनाकर सत्ता के केंद्रीकरण, आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के पक्ष में थी जो आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकती थी और क्रांतिकारी फ्रांस के बजाय ग्रेट ब्रिटेन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को बरकरार रख सकती थी। दूसरी ओर, प्रजातांत्रिक गणतंत्र दल ने अलग-अलग राज्यों के गणतंत्र के रूप में सरकार पर ध्यान केंद्रित किया और माना कि केंद्र सरकार के पास सारी शक्ति नहीं होनी चाहिए; इसके बजाय, राज्य सरकारों को अपने निर्णय लेने की शक्ति होनी चाहिए। 

भारत में न्यायिक समीक्षा की सीमाएँ क्या हैं?

भारत में न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत व्यापक है। हालाँकि, इसकी कुछ सीमाएँ हैं। यह सीमा कुछ विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों (इम्यूनिटी) के रूप में है जो राष्ट्रपति, राज्यपाल और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को दी जाती हैं जब तक कि उन्होंने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में कोई कार्य नहीं किया हो।

क्या भारत में न्यायिक समीक्षा एक मौलिक अधिकार है?

भारत के संविधान में न्यायिक समीक्षा शब्द का कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि, विभिन्न अनुच्छेदों के तहत अप्रत्यक्ष संदर्भ दिए गए हैं जैसे अनुच्छेद 13, जिसमें कहा गया है कि कोई भी कानून जो मौलिक अधिकार के साथ असंगत है, उसे शून्य घोषित किया जाएगा। अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय से संपर्क कर सकता है। अनुच्छेद 142 आगे यह प्रदान करता है कि सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे मामलों में न्याय देने की शक्ति है जहां कानून कोई उपचार प्रदान नहीं करता है।

संदर्भ

 

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