यह लेख Ilashri Gaur ने लिखा है, जो बी.ए. एलएलबी (ऑनर्स) तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय से कर रही है। यह एक विस्तृत लेख है, जो अब्यूज़ और पोर्नोग्राफी के साथ-साथ उसी से संबंधित कानूनों से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sonia Balhara द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
भारत में, चाइल्ड अब्यूज़ और पोर्नोग्राफी जैसी समस्याओं को लापरवाही से लिया जाता है, क्योंकि इस संबंध में विभिन्न कानून हैं लेकिन फिर भी ऐसा हो रहा है। यह लेख बताता है कि चाइल्ड अब्यूज़ और पोर्नोग्राफी को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है और यह भी चर्चा कि गई है कि चाइल्ड अब्यूज़ आमतौर पर कहां किया जाता है और ऐसी चीजें क्या प्रभाव पैदा कर रही हैं।
इन सभी पहलुओं से निपटने से पहले “चाइल्ड अब्यूज़” और “पोर्नोग्राफी” को समझना आवश्यक है। ‘चाइल्ड अब्यूज़’ का अर्थ है जब बच्चों का फिजिकल , मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) और सेक्शुअल माल्ट्रीटमेंट ज्यादातर माता-पिता या उनकी स्थायी (परमानेंट) नौकरानी द्वारा किया जाता है या यहां तक कि यह कोई और भी हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप बच्चों को नुकसान होता है। यह घर में या स्कूल में, या किसी भी संगठन (आर्गेनाईजेशन) में कहीं भी हो सकता है। दूसरी ओर ‘पोर्नोग्राफी’ का अर्थ सेक्शुअल उत्तेजना (अरोज़ल) के अनन्य (एक्सक्लूसिव) उद्देश्य के लिए सेक्शुअल विषय वस्तु का चित्रण है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने के लिए मीडिया के विभिन्न तरीके हैं जैसे मैगजीन्स, एनीमेशन, वीडियो, फिल्म आदि।
अगर भारत में संख्या की बात करें तो 2018 की रिपोर्ट के अनुसार हर दिन 109 बच्चों का सेक्शुअल अब्यूज़ होता देखा गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 से 22 फीसदी का उछाल आया है और लॉकडाउन में भारत में पोर्नोग्राफी का आकर्षण और भी बढ़ गया है। 3 सप्ताह के लॉकडाउन के दौरान वयस्क (एडल्ट) साइटों पर ट्रैफ़िक में 95% की वृद्धि हुई है। दिए गए आंकड़ों के मुताबिक पहले से ही पोर्न कंटेंट के सेवन में 20 फीसदी का उछाल आया है।
चाइल्ड अब्यूज़
चाइल्ड अब्यूज़ को गंभीरता से न लेने से बच्चे के साथ-साथ समाज पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि सबसे पहले, यदि बच्चा इस तरह की चीजों में गहराई तक लिप्त (डेप्थ) होता है तो यह बलात्कार जैसे बड़े परिणाम निकल कर आ सकते है और दूसरा, वह व्यक्ति जो अपराध कर रहा है, चाइल्ड अब्यूज़ ऐसे अपराधों की संभावना को बढ़ा देगा यदि उसे उसी के संबंध में सजा ना मिले तो, क्योंकि उस व्यक्ति को दूसरों के साथ भी ऐसा ही करने की प्रेरणा मिलती है। इसलिए, जब भी किसी के सामने या किसी के साथ या खुद के साथ ऐसी चीजें हो रही हों, तो उन्हें ऐसी घटनाओं को दूसरों के साथ साझा करना चाहिए।
चाइल्ड अब्यूज़ के प्रकार
चाइल्ड अब्यूज़ के विभिन्न प्रकार हैं। 2006 में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने चार विशिष्ट प्रकार के चाइल्ड अब्यूज़ को सामने रखा और वे हैं:
फिजिकल अब्यूज़
फिजिकल अब्यूज़ एक बच्चे को फिजिकल संपर्क (कॉन्टैक्ट) के कारण जानबूझकर किया गया नुकसान है। यह एक फिजिकल चोट है जो बच्चे को बुरे या क्रूर इरादे से थोपी जाती है। यह पता लगाने के लिए कि एक बच्चे का फिजिकल अब्यूज़ किया गया है, चोट के निशान, जलन, टूटी हुई हड्डियों या खोपड़ी और यदि बच्चा किसी से डरता है, जैसे विभिन्न लक्षण हैं ।
सेक्शुअल अब्यूज़
सेक्शुअल अब्यूज़ का अर्थ है जब कोई वयस्क व्यक्ति किसी बच्चे को सेक्शुअल गतिविधियों से अब्यूज़ करता है या हम सेक्शुअल क्रिया के संदर्भ में नाबालिग पर किसी व्यक्ति की भागीदारी कह सकते हैं। यह एक अलग तरीके से होता है, या तो सीधे फिजिकल संपर्क से या बच्चे को पोर्नोग्राफी दिखाने से। इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जैसे अपराधबोध (गिल्ट), आत्म-दोष, बुरे सपने आदि भी आ सकते है।
भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक अब्यूज़ (इमोशनल और साइकोलॉजिकल अब्यूज़)
मनोवैज्ञानिक अब्यूज़ को फिजिकल और सेक्शुअल अब्यूज़ के समान ही हानिकारक माना जाता है। इसका सीधा सा अर्थ है एक ऐसा कार्य जो माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जिससे बच्चे को गंभीर व्यवहार, भावनात्मक या मानसिक विकार (डिसऑर्डर) हो सकता है।
उपेक्षा (नेग्लेक्ट)
केवल बच्चों की मूलभूत आवश्यकता को पूरा करना ही काफी नहीं है क्योंकि इसके लिए समय और देखभाल की आवश्यकता होती है। लेकिन, माता-पिता की उपेक्षा के कारण बच्चे चाइल्ड अब्यूज़ का शिकार होते हैं। यह बच्चे के फिजिकल और मनोवैज्ञानिक विकास में देरी का कारण बन सकता है।
चाइल्ड अब्यूज़ के प्रभाव
चाइल्ड अब्यूज़ के परिणामस्वरूप बच्चे पर मानसिक, फिजिकल, भावनात्मक आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बच्चे के साथ अब्यूज़ और उपेक्षा के प्रभावों को प्रबंधित (मैनेज्ड) करने का कोई सही या गलत तरीका नहीं है।
फिजिकल अब्यूज़ या उपेक्षा से बच्चे को जिन प्रभावों का सामना करना पड़ता है वे हैं:
- कमजोर मस्तिष्क विकास
- सिर में चोट
- जले के निशान
- मोच या टूटी हड्डियाँ
- चलने और बैठने में कठिनाई
- फटे, दागदार या खूनी कपड़े
- जननांग (जेनिटल) क्षेत्र में दर्द या खुजली
- सेक्शुअल ट्रांसमिटेड डिसीज
- खराब फिजिकल स्वास्थ्य
- खराब स्वच्छता
भावनात्मक अब्यूज़ या सेक्शुअल अब्यूज़ से बच्चे को जिन प्रभावों का सामना करना पड़ता है वे हैं:
- चिंता
- अवसाद (डिप्रेशन)
- कम आत्म-सम्मान
- दूसरे के साथ संबंध बनाने और बनाए रखने में कठिनाई
- अनुभव फ्लैशबैक
- लगातार डर
- आइसोलेशन में रहने की कोशिश
- कभी-कभी यह बच्चे पर ऐसा प्रभाव डालता है कि वह खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है
- स्कूल जाने से बचने की कोशिश या घर पर खुद को अधिक सुरक्षित रखना
भारत में चाइल्ड अब्यूज़ दर (रेट)
ऐसा देखा गया है कि भारतीय परिवार अपने बच्चों की देखभाल बेहद सावधानी और चिंता से करते हैं लेकिन घर में भी चाइल्ड अब्यूज़ होने की संभावना पर कोई विचार नहीं करता है। घर की दीवारों के भीतर परिवार के सबसे वरिष्ठ (सीनियर) सदस्य द्वारा सेक्शुअल, फिजिकल या मानसिक चाइल्ड अब्यूज़ की संभावना पर कोई विचार नहीं करता है। यह देखा गया है कि हर पल एक बच्चा भावनात्मक अब्यूज़ के लिए रिपोर्ट कर रहा है, जिसकी चर्चा आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में की गई थी।
कुछ सामान्य समस्याएं भी होती हैं या हम कह सकते हैं कि ऐसा माना जाता है कि बेटियों की देखभाल करने की जरूरत है लेकिन लड़कों की देखभाल करने की जरूरत नहीं है क्योंकि वे खुद की देखभाल कर सकते हैं। लेकिन, जैसा कि आजकल देखा गया है कि लड़कों की निगरानी की कमी के कारण हर दिन बलात्कार के कई मामले सामने आते हैं। जैसा कि देखा गया है कि यदि कोई बच्चा कम उम्र में चाइल्ड अब्यूज़ का सामना करता है और यह जारी रहता है तो बच्चे को आदत हो जाती है और वयस्कता में वह बलात्कार जैसे अपराध करता है। यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि 69% बच्चे अपने परिवार में फिजिकल अब्यूज़ से पीड़ित हैं और 13 सैंपल स्टेट में यह देखा गया कि 54.68% लड़के थे, और भावनात्मक अब्यूज़ में लड़के और लड़कियों की समान रिपोर्ट है।
एन.सी.आर.बी की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में 32,608 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2018 में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंस एक्ट (पी.ओ.सी.एस.ओ) के तहत 39,827 मामले सामने आए। अगर हम कुल अपराध की बात करें तो 2008 से 2018 तक यह छह गुना से अधिक बढ़ गया है, 2008 में यह संख्या 22,500 से बढ़कर 2018 में 1,41,764 हो गई है।
चाइल्ड अब्यूज़ से संबंधित कानून
बच्चों को एक्सप्लॉयटेटिव गतिविधियों से सुरक्षित रहने का अधिकार है जो उनके साथ हुई हैं या जिनके बारे में हमने ऊपर चर्चा की है। आप इसे निम्न चरणों (स्टेप्स) से शुरू कर सकते हैं:
- पुलिस या चाइल्ड हेल्पलाइन को सूचित करें।
- उसके बारे में कानून की उचित जानकारी होनी चाहिए।
- सामुदायिक समर्थन जुटाएं (मोबिलाइज कम्युनिटी सपोर्ट)
- बच्चे को परामर्श (काउंसलिंग) देना चाहिए और उस व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
बच्चों की सुरक्षा के लिए कानूनी प्रोविजन
इंटरनेशनल कन्वेन्शन एंड डिक्लेरेशन
1992 में, राइट्स ऑफ चिल्ड्रन पर यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन (यू.एन.सी.आर.सी) को भारत द्वारा अनुमोदित (एप्रूव्ड) किया गया था। 2005 में, भारत सरकार ने सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी और बच्चों की बिक्री, बाल अभियोजन (प्रॉसीक्यूशन), बाल पोर्नोग्राफ़ी को संबोधित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र-बाल अधिकारों पर कमिटी के प्रोटोकॉल को स्वीकार किया। भारत ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर इंटरनेशनल कन्वेंशन पर भी हस्ताक्षर किए हैं। इसने सी.आर.सी. के लिए एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं जिसे 1989 में यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली द्वारा अपनाया गया था, जिसमें मानक (स्टैंडर्ड) निर्धारित किए गए थे कि बच्चे के सर्वोत्तम हित को पकड़ने के लिए सभी स्टेट दलों को पालन करना होगा। यह बच्चों के मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव की रूपरेखा देता है जो 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों पर लागू होता है और अभियोजन के लिए महिलाओं और बच्चों में तस्करी की रोकथाम पर सार्क सम्मेलन।
भारत का संविधान, 1949
भारत के संविधान में बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के संबंध में कई प्रावधान हैं। इसने लेजिस्लेचर को भारतीय संविधान के आर्टिकल 14, आर्टिकल 15 और उसके क्लॉज़ (3), आर्टिकल 19(1)(a), आर्टिकल 21, आर्टिकल 23, आर्टिकल 24, आर्टिकल 39 (e) और (f) के तहत बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष कानून और नीतियां बनाने के लिए अधिकृत (ऑथोराइज़्ड) किया है। जिसमें बच्चों की प्रोटेक्शन, सेफ्टी, सिक्योरिटी और भलाई शामिल है।
बच्चों के लिए नेशनल पॉलिसीज
एक बच्चे के अधिकारों और समाज में बच्चों की स्थिति को बनाए रखने के लिए विभिन्न नेशनल पॉलिसीज बनाई गई हैं।
- नेशनल पॉलिसी फॉर चिल्ड्रन, 1974
- नेशनल पॉलिसी ऑन एज्युकेशन, 1986
- नेशनल पॉलिसी ऑन चाइल्ड लेबर, 1987
- नेशनल न्यूट्रिशन पॉलिसी, 1993
- रिपोर्ट ऑफ द कमिटी ऑन द चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूशन एंड चिल्ड्रन ऑफ प्रॉस्टिट्यूट
- नेशनल प्लान ऑफ एक्शन फॉर चिल्ड्रन , 2005
- ट्रैफिकिंग एंड कमर्शियल सेक्शुअल एक्सप्लॉयटेशन ऑफ वूमेन एंड चिल्ड्रन, 1998
इंडियन पीनल कोड, 1860
इंडियन पीनल कोड बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से चाइल्ड अब्यूज़ से सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रावधान प्रदान करती है। आईपीसी की धारा 317 में 12 साल से कम उम्र के बच्चे के एक्सपोजर और अबेंडनमेंट का प्रावधान है, यह कहता है कि माता-पिता या अन्य लोगों द्वारा बच्चों के खिलाफ अपराध को उजागर करने या छोड़ने के इरादे से उन्हें अबेंडन करने के लिए है।
जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन एक्ट, 2000
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट बच्चों की उचित देखभाल और सुरक्षा प्रदान करता है, जब भी कोई बच्चा होता है जिसे विशेष उपचार और विकास की आवश्यकता होती है, जुवेनाइल जस्टिस देखभाल प्रदान करता है। चाइल्ड अब्यूज़ के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने वाली विशेष धाराएँ हैं और वे हैं धारा 23, धारा 24 और धारा 26। धारा 23 कहती है कि जो कोई भी बच्चे या जुवेनाइल के साथ क्रूरता करेगा उसे छह महीने की कैद और जुर्माना या यह हो सकता है दोनों जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत हो। धारा 24 में कहा गया है कि जो कोई भी जुवेनाइल बच्चे को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करेगा, उसे एक साल की कैद की सजा और जुर्माना भी देना होगा। धारा 26 में कहा गया है कि जो कोई भी स्पष्ट रूप से किसी भी खतरनाक रोजगार के उद्देश्य से बच्चे की खरीद करता है तो उसे कारावास की सजा दी जाएगी जो 3 साल तक की हो सकती है और जुर्माना भी हो सकता है।
इम्मोरल ट्रैफिक एक्ट, 1956
यह एक्ट कमर्शियल उद्देश्यों के लिए बच्चों के सेक्शुअल एक्सप्लॉयटेशन से संबंधित अपराधों से संबंधित है और जो लोग बच्चे के साथ इस तरह के अपराध करते हैं, वे उसी के संबंध में दंड देंगे।
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्शुअल ऑफेंस्स एक्ट, 2012
यह एक्ट बच्चों के चाइल्ड अब्यूज़ और एक्सप्लॉयटेशन से बच्चों की सुरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान प्रदान करता है। यह एक्ट परिभाषित करता है कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे को सेक्शुअल एसॉल्ट, सेक्शुअल हरासमेंट और पोर्नोग्राफी के अपराधों से सुरक्षा मिलती है। एक्ट कठोर दंड प्रदान करता है जिसे अपराधों की गंभीरता के अनुसार वर्गीकृत किया गया है और जुर्माना भी जो अदालत द्वारा तय किया गया है।
पोर्नोग्राफी
आजकल युवाओं में पोर्नोग्राफी बहुत लोकप्रिय है, खासकर महामारी की स्थिति में पोर्नोग्राफी साइटों को देखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। पोर्नोग्राफी का अर्थ है विभिन्न माध्यमों से सेक्शुअल सामग्री उपलब्ध कराना। भारत में, यह मुद्रित पत्रिकाओं जैसे विभिन्न रूपों में उपलब्ध है, लेकिन इसका उपयोग मुख्य रूप से इंटरनेट के माध्यम से किया जाता है। स्मार्टफोन और इंटरनेट सुविधाओं में वृद्धि के साथ यह खपत (कंजप्शन) बढ़ रही है।
पोर्नोग्राफी के प्रकार
उप-शैलियों (सब-जेनरेस) के साथ विभिन्न प्रकार की पोर्नोग्राफ़ी हैं। पोर्नोग्राफी में विभिन्न सेक्शुअल गतिविधियों के साथ चाइल्ड पोर्नोग्राफी भी शामिल है, कभी-कभी यह उनकी अनुमति के बिना भी होता है कि उन्हें ऐसी चीजें करने के लिए मजबूर किया जाता है। पोर्नोग्राफ़ी के प्रकार ग्रुप, टीन, 18 वर्ष से कम उम्र की पोर्नोग्राफ़ी और कई अन्य हैं।
पोर्नोग्राफी का प्रभाव
कई परिणामों के साथ पोर्नोग्राफ़ी के विभिन्न प्रभाव हैं। ऐसी चीजें बलात्कार, घरेलू हिंसा, सेक्शुअल डिसफंक्शन, सेक्शुअल रिलेशनशिप्स में कठिनाई और बाल सेक्शुअल अब्यूज़ के रूप में प्रभाव डालती हैं,और, कुछ शोधकर्ता (रिसर्चर्स) यह भी कहते हैं कि ऐसी चीजें व्यसनी (एडिक्टिव) हो सकती हैं।
पोर्नोग्राफी से संबंधित कानून
जैसा कि भारत में, चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध (रेस्ट्रिक्शन्स) लगा दिया है। सरकार ने पोर्नोग्राफिक सामग्री वाली कई वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगा दिया है। पी.ओ.सी.एस.ओ एक्ट के तहत, इसके लिए विभिन्न दंड दिए गए हैं।
- पी.ओ.सी.एस.ओ एक्ट की धारा 13 में कहा गया है कि जो कोई भी सेक्शुअल संतुष्टि के उद्देश्य से मीडिया के रूप में बच्चे का इस्तेमाल करेगा, उसे इस धारा के तहत दंडित किया जाएगा।
- पी.ओ.सी.एस.ओ एक्ट की धारा 14 में कहा गया है कि जो कोई भी पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए बच्चे का इस्तेमाल करेगा, उसे कम से कम 5 साल की सजा दी जाएगी और बाद में 7 साल की सजा और जुर्माना लगाया जाएगा।
- पोर्नोग्राफिक प्रयोजनों (पर्पस) के लिए बच्चे का उपयोग करने के परिणामस्वरूप मर्मज्ञ (पेनेट्रेटिंग) सेक्शुअल एसॉल्ट 10 साल से कम नहीं होगा और 16 साल से कम उम्र के बच्चे के मामले में 20 साल से कम की कारावास की सजा नहीं मिलेगी।
- जिन बच्चों का उपयोग उन उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है जिनके परिणामस्वरूप बढ़े हुए सेक्शुअल एसॉल्ट को कम से कम 20 साल की सजा दी जाएगी।
- पी.ओ.सी.एस.ओ एक्ट की धारा 15 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी भी रूप में पोर्नोग्राफिक सामग्री को संग्रहीत या रखता है, जिसमें बच्चे शामिल हैं, लेकिन बाल पोर्नोग्राफ़ी को साझा या प्रसारित (ट्रांसमिटेड) करने के इरादे से हटाने या नष्ट करने में विफल रहता है, उसे कम से कम 5,000 रुपये के जुर्माने से दंडित किया जाएगा। बाद के अपराध की दूसरी घटना, 10,000 रुपये से कम का जुर्माना और तीन साल तक की कैद या दोनों के साथ।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
भारत में चाइल्ड अब्यूज़ और पोर्नोग्राफी से संबंधित समस्याएं आम हैं लेकिन इससे बचाव के लिए कई प्रावधान किए गए हैं लेकिन केवल इन कानूनों को लागू करने से काम नहीं चल रहा है लेकिन लोगों को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि ज्यादातर मामलों में लोग ऐसी समस्याओं की अनदेखी करते थे लेकिन इससे भविष्य में कठोर प्रभाव पड़ सकता है इसलिए जब भी आपको ऐसी चीजें मिलती हैं तो ऐसी समस्याओं से बचने के लिए इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। सरकार को भी इसके संबंध में और सख्त प्रावधान करने चाहिए।