भारत में मानव तस्करी के खिलाफ कानून

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Indian Penal Code
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Saylee Chaugule द्वारा लिखा गया है, जो एडवांस्ड क्रिमिनल लिटिगेशन एंड ट्रायल एडवोकेसी में सर्टिफिकेट कोर्स कर रहीं है, जिसे लॉशिखो ने अपने कोर्सवर्क के हिस्से के रूप में पेश किया था। Saylee वर्तमान में पार्टनरशिप फर्मों के पंजीकरण के क्षेत्र में एक स्वतंत्र व्यवसायी के रूप में कार्य कर रहीं हैं। इस लेख में वह मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) के अपराध पर चर्चा करते हुए, उसके खिलाफ मौजूदा कानूनों के बारे में बताती है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

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परिचय (इंट्रोडक्शन)

मानव तस्करी का अर्थ, जबरन श्रम (फोर्स्ड लेबर) या यौन शोषण (सेक्शुअल एक्सप्लोइटेशन) के उद्देश्य से लोगों को एक देश या क्षेत्र से दूसरे देश में अवैध रूप से ले जाने का कार्य या प्रथा है।

मानव तस्करी एक गंभीर अपराध है और मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन भी है। किसी भी देश के लिए बच्चों का यौन शोषण, बच्चों के खिलाफ किसी भी अन्य अपराध की तुलना में सबसे खराब है। संविधान का आर्टिकल 51A (e) अनिवार्य रूप में भारत के प्रत्येक नागरिक पर कर्तव्य लागू करता है जो कहता है कि “भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह महिलाओं की गरिमा (डिग्निटी) के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करे”। लेकिन, असलियत में स्थिति, भारत के संविधान में दी गयी भावना से अलग है।

मानव तस्करी निम्नलिखित के लिए हो सकती है-

  1. यौन शोषण
  2. बंधुआ मजदूर (बोंडेड लेबर)
  3. घरेलू गुलामी
  4. भीख मांगना
  5. नशीली दवाओं की तस्करी
  6. ज़बरदस्ती की गयी शादी
  7. जबरन अपराध
  8. जबरदस्ती बनाये गए सैनिक  बच्चे
  9. अंग काट देना। 

तस्करी के लिए अग्रणी कारक (लीडिंग फैक्टर्स) निम्नलिखित हैं:

  1. गरीबी
  2. रोजगार के अवसरों की कमी
  3. धार्मिक/पारंपरिक वेश्यावृत्ति (प्रोस्टिट्यूशन)
  4. बाल विवाह
  5. नौकरी/शादी के झूठे वादे
  6. प्रवास (माइग्रेशन)
  7. सेक्स पर्यटन (टूरिज्म)
  8. इंटरनेट पर अश्लीलता (पोर्नोग्राफी)

न ही केवल महिलाएं और बच्चे बल्कि पुरुष भी मानव तस्करी का शिकार होते हैं। भारत में न केवल देह व्यापार के लिए बल्कि अन्य विभिन्न प्रकार की गुलामी के लिए भी बड़ी संख्या में लोगों का अवैध व्यापार किया जाता है।

बच्चों के विभिन्न प्रकार के यौन शोषण

बच्चों का यौन शोषण, आपराधिक प्रथाओं को संदर्भित करता है जो बच्चों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक अखंडता (साइकोलॉजिकल इंटीग्रिटी) को नीचा दिखाता है, और उन्हें धमकी देता है, विशेष रूप से, एक वयस्क (एडल्ट) द्वारा किया गया यौन शोषण है जिसके बदले में किसी बच्चे या तीसरे व्यक्ति को नकद या किसी तरह का पारिश्रमिक (रिम्यूनरेशन) दिया जाता है। महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों के अलावा, बच्चों के व्यावसायिक (कमर्शियल) यौन शोषण के निम्नलिखित रूप हैं: 

  1. बाल वेश्यावृत्ति, 
  2. बाल अश्लीलता, सामान्य रूप से इंटरनेट पर, 
  3. यौन शोषण के लिए तस्करी, 
  4. अनाचार (इंसेस्टस) यौन शोषण,
  5. बाल यौन पर्यटन और
  6. बाल विवाह।

कानूनी ढांचा (लीगल फ्रेमवर्क)

भारत में संविधान के प्रावधानों (प्रोविजंस) के अलावा संसद और कुछ राज्य विधायिकाओं (लेजिस्लेचर) द्वारा अधिनियमित (इनैक्ट) कानूनों की एक विस्तृत श्रृंखला (वाइड रेंज) है जो देश के मूल कानून है।

भारत का संविधान

  • आर्टिकल 23- यह आर्टिकल शोषण से रक्षा करता है, मानव और भिखारी के व्यापार पर रोक लगाता है और इस प्रथा को कानून के तहत दंडनीय बनाता है।
  • आर्टिकल 24– यह आर्टिकल 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों (फैक्ट्रीज), खानों (माइन) या अन्य खतरनाक रोजगार में काम करने से बचाता है।

भारतीय दंड संहिता

भारतीय दंड संहिता में अवैध व्यापार के लिए लगभग 25 प्रावधान हैं लेकिन उनमें से कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान, इस प्रकार हैं-

  • धारा 366A– 18 वर्ष से कम उम्र की किसी भी नाबालिग लड़की को किसी अन्य व्यक्ति के साथ जबरदस्ती या बहकावे में आकर अवैध संबंध बनाने के इरादे से किसी जगह जाने के लिए प्रेरित करना एक दंडनीय अपराध होगा।
  • धारा 366B– 21 वर्ष से कम उम्र की किसी भी लड़की को इस आशय से आयात (इंपोर्ट) करना कि उसे किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संभोग (सेक्शुअल इंटरकोर्स) करने के लिए मजबूर किया जाएगा या बहकाया जाएगा, तो यह एक दंडनीय अपराध है।
  • धारा 374– यह प्रावधान, किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध श्रम करने के लिए मजबूर करने वाले व्यक्ति को दंडित करता है।

अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (इम्मोरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट) 1956

अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956, महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण की रोकथाम के लिए प्राथमिक (प्राइमरी) कानून है। “तस्करी” शब्द को केवल गोवा बाल अधिनियम, 2003 द्वारा परिभाषित किया गया है, जो एक राज्य का कानून है। जबकि आई.टी.पी.ए बच्चों के व्यावसायिक यौन शोषण से संबंधित मुख्य कानून है, लेकिन यह तब भी यह तस्करी को परिभाषित नहीं करता है।

इस अधिनियम में निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) किए गए अपराध हैं:

  • वेश्यालय (ब्रोथल) रखना या परिसर (प्रीमाइस) को वेश्यालय के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति देना।
  • वेश्यावृत्ति की कमाई पर गुजारा करना।
  • वेश्यावृत्ति के लिए व्यक्ति को लेने का प्रयास करना, प्राप्त करना।
  • वेश्यावृत्ति के लिए परिसर में किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना।
  • सार्वजनिक स्थानों के आसपास वेश्यावृत्ति।
  • हिरासत में लिए व्यक्ति का प्रलोभन (सिडक्शन) करना।

बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम (चाइल्ड लेबर (प्रोहिबिशन एंड रेगुलेशन) एक्ट) 1986

यह अधिनियम विशिष्ट आयु से कम और कुछ निर्दिष्ट व्यवसायों में बच्चों के नियोजन (एम्प्लॉयमेंट) पर रोक लगाता है। यह नाबालिग बच्चों के रोजगार के लिए सजा का भी प्रावधान करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट), 2000

यह अधिनियम इलेक्ट्रॉनिक रूप में ऐसी किसी भी सुचना के प्रसारण (ट्रांसमिशन) को दंडित करता है जो अनुचित और कामुक (लैसिवियस) है। यह अधिनियम अश्लीलता की समस्या को भी संबोधित करता है।

  • धारा 67A– इलेक्ट्रॉनिक रूप में स्पष्ट यौन कार्य वाली सामग्री के प्रकाशन (पब्लिकेशन) या प्रसारण को दंडित करता है।
  • धारा 68B– इलेक्ट्रॉनिक रूप में स्पष्ट यौन कार्यों में बच्चों का चित्रण (डिपिक्ट) करने वाली सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण को दंडित करता है।

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट), 2000

यह कानून उन बच्चों के लिए प्रासंगिक (रिलेवेंट) है, जो असुरक्षित हैं और इसलिए उनके अवैध व्यापार के शिकार होने की संभावना है। यह देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले किशोरों की रक्षा करता है।

कर्नाटक देवदासी (समर्पण निषेध (प्रोहिबिशन ऑफ़ डेडीकेशन)) अधिनियम, 1982

इस अधिनियम के तहत, किसी भी लड़की को वेश्यावृत्ति में लिप्त (एंगेज) समर्पित व्यक्तियों की सहमति से या उसके बिना समर्पण का कार्य (एक्ट ऑफ़ डेडिकेशन) गैरकानूनी और दंडनीय है।

आंध्र प्रदेश देवदासी (समर्पण निषेध) अधिनियम, 1989

यह कानून किसी भी तरह से देवदासी के रूप में समर्पित किसी भी समारोह (सेरेमनी) को प्रतिबंधित (प्रोहिबिट) करता है और 3 साल के कारावास और जुर्माना का प्रावधान करता है।

गोवा बाल अधिनियम, 2003

इस अधिनियम को तस्करी में परिभाषित किया गया है। इसमें यौन उत्पीड़न (असॉल्ट) की परिभाषा में हर प्रकार के यौन शोषण को शामिल किया गया है। होटल परिसर में नाबालिगों या बच्चों की सुरक्षा के लिए होटल के प्रबंधक (मैनेजर) और मालिक जिम्मेदार हैं। बच्चों की सुरक्षा और अश्लील सामग्री प्रकाशित (पब्लिश) करने को लेकर सख्त कानून हैं।

अंतर्राष्ट्रीय उपकरण (इंटरनेशनल इंस्ट्रूमेंट्स)

बच्चों के यौन शोषण को खत्म करने के लिए सम्मेलनों (कन्वेंशन) और सामग्री की सूची-

  1. व्यक्तियों में तस्करी को रोकने और दूसरों की वेश्यावृत्ति के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1949 – (9 मई 1950 को भारत द्वारा हस्ताक्षरित)।
  2. विवाह की सहमति, विवाह के लिए न्यूनतम आयु और विवाह के लिए पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) पर सम्मेलन– सम्मेलन को 9 दिसंबर 1964 से लागू किया गया था।
  3. महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन (एलिमिनेशन) पर सम्मेलन (सी.ई.डी.ए.डब्ल्यू.)– इस सम्मेलनों को 3 सितंबर 1981 से लागू किया गया था।
  4. किशोर न्याय प्रशासन के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियम (बीजिंग नियम) (यूनाइटेड नेशंस स्टैंडर्ड मिनिमम रूल्स फॉर द एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ जुवेनाइल जस्टिस) 1985, इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा (जनरल असेंबली) द्वारा नवंबर 1985 में अपनाया गया था।
  5. बाल अधिकारों पर सम्मेलनों (सी.आर.सी.), इसे 1989 2 सितंबर 1990 को अपनाया गया था (भारत ने नवंबर 1992 में इसकी पुष्टि की थी)।
  6. किशोर अपराध की रोकथाम (जुवेनाइल डेलिनक्वेन्सी) के लिए संयुक्त राष्ट्र दिशा निर्देश (गाइड लाइन) (रियाद दिशानिर्देश), 1990, इन्हें दिसंबर 1990 में महासभा द्वारा अपनाया गया था, यह पहले से अपनाए गए बीजिंग नियमों के पूरक (कॉम्प्लीमेंट) हैं।
  7. महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन पर घोषणा, 1993
  8. बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों के उन्मूलन के लिए निषेध और तत्काल कार्रवाई से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आई.एल.ओ. सम्मेलन 182), 1999– यह सम्मेलन 19 नवंबर 2000 से लागू हुआ था।
  9. व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों में अवैध व्यापार को रोकने, दबाने और दंडित करने के लिए प्रोटोकॉल (तस्करी प्रोटोकॉल), 2001
  10. बच्चों की बिक्री, बाल वेश्यावृत्ति और बाल अश्लीलता पर वैकल्पिक प्रोटोकॉल, 2000– इसे संयुक्त राष्ट्र ने 18 जनवरी 2002 को अपनाया था।

क्षेत्रीय उपकरण (रीजनल इंस्ट्रूमेंट्स) (सार्क कन्वेंशन)

क्षेत्रीय (दक्षिण एशिया स्तर (साउथ एशिया लेवल)) पर हम यौन शोषण से संबंधित दो उपकरणों के हस्ताक्षरकर्ता हैं। वे उपकरण हैं: 

  1. वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और उनका मुकाबला करने पर सार्क कन्वेंशन, 2002; और 
  2. दक्षिण एशिया में बाल कल्याण को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय व्यवस्थाओं पर सार्क सम्मेलन, 2002

बाल तस्करी पर न्यायिक दृष्टिकोण (ज्यूडिशियल व्यू)

चूंकि भारत ने विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के अवैध व्यापार को रोकने, दबाने और दंडित करने के लिए वैकल्पिक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं, प्रोटोकॉल में परिभाषा को तब तक लागू किया जाएगा जब तक स्थानीय कानून में एक परिभाषा पेश नहीं की जाती है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने दो प्रमुख निर्णयों में यह माना कि अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ (ट्रीटी)/सम्मेलन जिनमें राज्य एक पक्ष है, वह घरेलू कानून के अभाव में देश भर में लागू होता है या इसके विपरीत फाइल होता है। संविधान के आर्टिकल 14 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू होता है, यह तर्क दिया जा सकता है कि इन अंतर्राष्ट्रीय परिभाषाओं को स्थानीय रूप से लागू किया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से, इस परिभाषा को अभी तक भारतीय अदालतों ने स्वीकार नहीं किया है।

यू.एस.ए., फ़ेडरल ने मानव तस्करी के शिकार लोगों को 1,00,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक का पुरस्कार दिया है। 30 अप्रैल, 2004 की स्थिति के अनुसार, अवैध व्यापार की लंबित (पेंडिंग) 152 जांच, जनवरी 2001 की तुलना में दोगुने से अधिक थी।

तस्करी की रोकथाम

मानव तस्करी को कई प्रकार के हस्तक्षेप (इंटरवेंशन) से रोका जा सकता है। इसे सार्वजनिक रूप से संवेदीकरण (सेंसटाइजेशन) और जागरूकता के क्षेत्रों और उन कमजोर क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो मानव तस्करी के लिए ऐसा वातावरण बनाने के लिए जिम्मेदार हैं।

भूमिकाएँ

1. राज्य

  • एक अनिवार्य उच्च गुणवत्ता (क्वालिटी) वाली शिक्षा, आय सृजन (इनकम जनरेशन) और रोजगार के अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
  • सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
  • तस्करी को रोकने में देशों की मदद करने के लिए विभिन्न राष्ट्रों द्वारा एक निवारक (प्रिवेंटिव) उपाय को एक दूसरे के बीच साझा किया जाना चाहिए।

2. गैर सरकारी संगठन (नॉन गवर्नमेंट आर्गेनाइजेशन)

  • समुदाय (कम्युनिटी) को तस्करों के क्षेत्र के बाल पीड़ितों की आवाजाही (मूवमेंट) पर सतर्क नजर रखनी चाहिए।
  • उन्हें शिक्षित करना चाहिए और माता-पिता को सुरक्षित प्रवासन अभ्यास (माइग्रेशन प्रैक्टिस) के बारे में जागरूक करना चाहिए।

3. मीडिया

दर्शकों की बड़ी संख्या के कारण मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।

  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके पास बैकअप है और वे अकेले नहीं हैं, पीड़ित को उपयुक्त संदेश प्रेषित (ट्रांसमिट) करना।
  • नागरिकों को पीड़ित होने की स्थिति में मदद लेने के लिए स्थानों और संस्थानों के बारे में जागरूक करने के लिए एक कार्यक्रम।
  • शिक्षित करना और जागरूकता फैलाना कि मानव तस्करी अवैध और अनुचित है और इसके नकारात्मक (नेगेटिव) परिणाम हैं।

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