भारत में श्रम अनुबंध कानून कार्यान्वयन

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यह लेख Ansari Qamar Zarfishan द्वारा लिखा गया है जो लॉसिखो से एडवांस्ड कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्टिंग, नेगोटिएशन एंड डिस्प्यूट रेसोलुशन में डिप्लोमा कर रहे हैं। यह लेख भारत में श्रम अनुबंध कानून कार्यान्वयन (इम्प्लीमेंटेशन) के बारे में बात करता है। इस लेख का अनुवाद Vanshika Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय

ठेका मजदूर वे मजदूर होते हैं जिन्हें एक अस्थायी अवधि के लिए कुछ काम करने के लिए एक अनुबंध के माध्यम से नियोजित किया जाता है। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत एक ‘अनुबंध’ एक समझौता है जिसे कानून की अदालत में लागू किया जा सकता है। एक वैध अनुबंध का गठन करने के लिए पारस्परिक (म्यूच्यूअल) दायित्व, स्वतंत्र सहमति होनी चाहिए और पक्षों को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए सक्षम होना चाहिए। अनुबंध, ‘अनुबंध पर मजदूरी पर रखने’ के लिए भी हो सकता है जो एक निश्चित अवधि (नियोक्ता और कर्मचारी के बीच) या अप्रत्यक्ष लचीला रोजगार नियोक्ता, कर्मचारी और तीसरे पक्ष के एजेंट या ठेकेदार के बीच) के लिए हो सकता है।

निश्चित अवधि के अनुबंध का उपयोग उच्च श्रेणी के श्रमिको श्रमिकों में किया जाता है, और अप्रत्यक्ष लचीले रोजगार अनुबंध का उपयोग शारीरिक श्रमिकों (शारीरिक नौकरियों) में किया जाता है। इस लेख में हम अप्रत्यक्ष लचीले रोजगार अनुबंध पर चर्चा करेंगे, भारत में लागू श्रम अनुबंध कानूनों से संबंधित प्रावधान क्या हैं, विशेष रूप से ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन (रेगुलेशन एंड एबोलिशन)) अधिनियम, 1970, कानूनों को लागू करने में आने वाली समस्याएं और अनुशंसित समाधान पर बात करेंगे।

श्रम अनुबंध से संबंधित अधिनियम और संविधियां क्या हैं?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इस अधिकार में गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है जिसे श्रमिकों को सभ्य काम की स्थिति और उचित मजदूरी प्रदान करके सुनिश्चित किया जा सकता है जैसा कि सर्वोच्च नियालय द्वारा एक मामले में कहा गया है।

राज्य के नीति निर्देशक तत्व राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि श्रमिकों के स्वास्थ्य और शक्ति का दुर्व्यवहार या दुरुपयोग उन कार्यों के कारण नहीं किया जाता है जो उनकी उम्र या ताकत के अनुरूप नहीं हैं। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 43 के तहत राज्य को श्रमिकों के जीवन यापन की मजदूरी और जीवन स्तर को सुरक्षित करने का प्रावधान है जो अवकाश का पूर्ण आनंद और सामाजिक और सांस्कृतिक अवसरों को सुनिश्चित कर सकता है। 

श्रमिकों के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने वाले अन्य कानून हैं, जिनमें से ठेका श्रमिकों से संबंधित सबसे प्रासंगिक कानून हैं: 

ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 क्या है?

यह अधिनियम एक कंपनी या प्रतिष्ठान पर लागू होता है जो अनुबंध के आधार पर पिछले बारह महीनों के किसी भी दिन 20 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देता है। एक ‘अनुबंध कर्मचारी’ एक ऐसा श्रमिक है जिसे ठेकेदार द्वारा अनुबंध के आधार पर नियोजित किया जाता है, न कि सीधे मुख्य नियोक्ता द्वारा। एक ‘ठेकेदार’ वह व्यक्ति होता है जो मुख्य नियोक्ता को संविदात्मक श्रम की आपूर्ति करता है। एक ‘प्रमुख नियोक्ता’ वह व्यक्ति है जो कंपनी या प्रतिष्ठान (खदान का मालिक; किसी कारखाने का मालिक या कब्जाधारक या प्रबंधक; कार्यालय या विभाग का प्रमुख या सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा अधिसूचित एक अधिकारी) को नियंत्रित करता है।

ठेका श्रमिक कहां कार्यरत होते हैं?

ठेका श्रमिकों को केवल अस्थायी अवधि के लिए नियोजित किया जाता है और यह निरंतर नहीं होता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्थायी कर्मचारियों के काम को करने के लिए उनका शोषण नहीं किया जा सकता है जो प्रतिष्ठान के कामकाज के लिए आवश्यक है। हालांकि, अनुबंधित मजदूर को कुछ ‘मुख्य गतिविधियों’ के लिए नियोजित किया जा सकता है जैसे:

  • लोडिंग और अनलोडिंग ऑपरेशन,
  • खानपान सेवाएं,
  • वार्डन या सुरक्षा सेवा,
  • स्वच्छता कार्य (सफाई, कचरे का निपटान, झाड़ू लगाना),
  • बागवानी (गार्डनिंग) और लॉन का रखरखाव, आदि,
  • गृह व्यवस्था (हाउस-कीपिंग) और कपड़े धोने की सेवाएं,
  • कूरियर सेवाएं, यदि यह प्रतिष्ठान का आवश्यक हिस्सा नहीं है,
  • एम्बुलेंस सेवाओं सहित परिवहन सेवाएं, 
  • शैक्षणिक, अस्पतालों और प्रशिक्षण संस्थानों, क्लबों, गेस्ट हाउस, आदि का संचालन और
  • कोई अन्य गतिविधि जो किसी प्रतिष्ठान की ‘मुख्य गतिविधि’ का गठन करती है और निरंतर आधार पर नहीं होती है।

ठेकेदार और प्रमुख नियोक्ता के कर्तव्य क्या हैं?

अधिनियम नियोक्ता और ठेकेदारों के कर्तव्यों को निर्धारित करता है।

ठेकेदार के कर्तव्य इस प्रकार हैं: 

  • सीएलआरए की धारा 21 में प्रावधान है कि ठेकेदार मजदूरी के भुगतान और काम करने की स्थिति के लिए जिम्मेदार होगा। मजदूरी अवधि तय की जानी चाहिए और एक महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए। मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा 3 के अनुसार, यदि ठेकेदार श्रमिकों को भुगतान करने में विफल रहता है, तो प्रमुख नियोक्ता भुगतान करने और ठेकेदार से उक्त राशि वसूलने के लिए उत्तरदायी होगा। ठेकेदार बोनस संदाय अधिनियम, 1965 के अंतर्गत श्रमिकों को बोनस का भुगतान भी करेगा।
  • सीएलआरए, 1970 की धारा 1621 में अनुबंध कर्मियों के कल्याण के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के संबंध में ठेकेदार के कर्तव्य का प्रावधान है, जैसे:

कैंटीन, शौचालय, वाशिंग की सुविधा, पीने का पानी, शौचालय, मूत्रालय, प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएं। यदि ठेकेदार इन आवश्यक सुविधाओं को प्रदान करने में विफल रहता है, तो प्रमुख नियोक्ता इसे प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होगा। 

  • धारा 12: यदि ठेका श्रमिक अंतरराज्यीय प्रवासी है, तो यह ठेकेदार का कर्तव्य है कि वह पासबुक बनाए और अनुबंध समाप्त होने के बाद श्रमिक को वापस भेजे।
  • धारा 14: यदि प्रवासी श्रमिक को कम वेतन वाले पद पर नियोजित किया जाता है, तो ठेकेदार का कर्तव्य है कि वह ‘विस्थापन (डिस्प्लेसमेंट) भत्ता’ (यानी, 75 रुपये या मासिक मजदूरी का 50%) के रूप में क्षतिपूर्ति (कंपनसेश) करे।
  • धारा 15: ठेकेदार को श्रमिकों को यात्रा भत्ता भी प्रदान करना चाहिए। 
  • धारा 29: ठेकेदार को एक मस्टर रोल, मजदूरी का रजिस्टर, नियोजित व्यक्तियों, क्षति या हानि के लिए जुर्माना और कटौती का रजिस्टर, ओवरटाइम और अग्रिम का रजिस्टर रखना चाहिए।

प्रमुख कर्मचारियों के कर्तव्य निम्नानुसार हैं:

  • यह प्रमुख नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह केवल लाइसेंस प्राप्त ठेकेदारों से अनुबंधित श्रमिकों को नियुक्त करे और ठेका श्रमिकों को काम पर रखने के लिए प्रतिष्ठान या कंपनी को पंजीकृत करे। 
  • यदि प्रमुख नियोक्ता उपरोक्त मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है, तो नियोजित श्रमिक को नियोक्ता द्वारा सीधे नियोजित माना जाएगा और उसे ठेका श्रमिक नहीं माना जाएगा। (सीएलआरए, 1970 की धारा 712, भारतीय खाद्य निगम श्रमिक संघ बनाम भारतीय खाद्य निगम और अन्य, 1992)
  • यह सुनिश्चित करना भी प्रमुख नियोक्ता का कर्तव्य है कि ठेकेदार लागू श्रम कानूनों का अनुपालन करता है। 
  • प्रमुख नियोक्ता श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए अनुबंधित श्रमिकों को आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए कर्तव्यबद्ध है;

कारखाना अधिनियम, 1948 के तहत, नियोक्ता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कारखाना श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर एक नीति बनाए रखता है।

नियोक्ता को  हवादार और तापमान, पर्याप्त स्थान, स्वच्छता, पीने का पानी, मूत्रालय और शौचालय सुनिश्चित करना चाहिए। अन्य सुविधाएं जैसे प्राथमिक चिकित्सा, कैंटीन, लंचरूम, धुलाई और बैठने की सुविधा, शिशु गृह, आदि।

  • भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम, 1996 में निर्माण श्रमिकों के लिए समान आवश्यक सुविधाओं का प्रावधान है।
  • मजदूरी संदाय अधिनियम, 1936 की धारा 13A के अंतर्गत नियोक्ता को भुगतान की गई मजदूरी, किए गए कार्य, प्राप्तियों, ठेकेदारों के रजिस्टर आदि का एक रजिस्टर रखने के लिए बाध्य किया गया है।
  • सीएलआरएए, 1970 की धारा 29 में कहा गया है कि यह प्रमुख नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह कार्य परिसर में उस भाषा में नोटिस लगाए जिसे अधिकांश अनुबंधित मजदूर आसानी से समझ सकें, नोटिस में काम के घंटे, मजदूरी के वितरण का स्थान और समय, मजदूरी अवधि, मजदूरी के भुगतान की तारीख और अवैतनिक मजदूरी जैसी जानकारी होनी चाहिए।

ठेका श्रमिकों के अधिकार क्या हैं?

कारखाना अधिनियम, 1948 में ठेके पर काम करने वाले मजदूरों या कर्मचारियों के अधिकारों का प्रावधान है।

  • धारा 54 में कहा गया है कि श्रमिकों को सप्ताह में 48 घंटे और दिन में केवल 9 घंटे काम करने के लिए कहा जाना चाहिए;
  • धारा 61 में प्रावधान है कि यदि श्रमिक ओवरटाइम करता है, तो श्रमिक को काम के घंटों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए और उसे सामान्य दर से दोगुना वेतन दिया जाना चाहिए। 
  • कारखाना अधिनियम, 1948 के अध्याय VIII के तहत, जहां किसी श्रमिक ने 240 दिनों या उससे अधिक समय तक काम किया है, उसे मजदूरी के साथ वार्षिक अवकाश दिया जाना चाहिए, साथ ही काम के हर 20 दिनों के लिए एक दिन की छुट्टी दी जानी चाहिए। 
  • धारा 111A, श्रमिकों को कार्य परिसर में स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबंधित जानकारी प्राप्त करने और इसके लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने का अधिकार है।
  • कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 की धारा 9 (iii) में कहा गया है कि यदि श्रमिक 15,000 रुपये का मासिक वेतन प्राप्त करता है तो वे सामाजिक सुरक्षा कवर प्राप्त करने के हकदार हैं।
  • कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 में श्रमिक की सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) के बाद भविष्य निधि लाभ का प्रावधान है। उपदान संदाय अिधिनयम, 1972 में कहा गया है कि यदि कर्मचारी ने एक ही नियोक्ता के तहत रोजगार में पांच साल पूरे कर लिए हैं, तो कर्मचारी आनुतोषिक (ग्रेच्युटी) प्राप्त करने का हकदार है।
  • अन्य लाभ भी हैं जो श्रमिक दावा कर सकते हैं जैसे:

यदि श्रमिक रोजगार के दौरान घायल हो जाता है और रोजगार बीमा योजना के तहत कवर नहीं किया जाता है, तो ऐसा श्रमिक कर्मकार मुआवजा अधिनियम के तहत दावा कर सकता है। 

यदि कोई महिला श्रमिक रोजगार बीमा योजना के तहत शामिल नहीं है, तो ऐसी श्रमिक मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत मजदूरी के साथ मातृत्व अवकाश का दावा कर सकती है।

कार्य अनुबंध का उन्मूलन क्या है?

जब जिस अनुबंध के लिए श्रमिक नियोजित किया जाता है, वह समाप्त हो जाता है, तो सीएलआरएए की धारा 10 के अनुपालन में अनुबंधश्रम समाप्त हो जाता है और श्रमिक को निर्दिष्ट शर्तों से अधिक के लिए नियोजित नहीं किया जा सकता है।

कोविड के दौरान अनुबंध कर्मियों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है?

महामारी के दौरान, श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा एक परामर्श जारी की गई थी, जिसमें नियोक्ताओं या प्रतिष्ठानों से अनुरोध किया गया था कि वे ठेका श्रमिकों को बर्खास्त न करें और उनके वेतन का समय पर भुगतान सुनिश्चित करें। हालांकि, यह सलाह बाध्यकारी सलाह नहीं है, इसलिए नियोक्ताओं के पास अनुबंधित मजदूरों को समाप्त करने की शक्ति थी।

कानूनों को लागू करने में क्या समस्याएं हैं?

ठेका श्रम (विनियम और उन्मूलन) केन्द्रीय नियम, 1971 का अध्याय III, नियम 25(2)(v)(a) में कहा गया है कि यदि किसी ठेकेदार द्वारा नियोजित श्रमिक प्रधान नियोक्ता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नियोजित श्रमिक के समान कार्य करता है, तो ऐसा श्रमिक प्रधान नियोक्ता द्वारा नियोजित श्रमिक के समान ही कार्य के घंटे, मजदूरी दर, छुट्टियां और सेवा की अन्य शर्तें प्राप्त करने का हकदार होगा। हालांकि, नियोक्ता के एक साथ कर्तव्यों को सुनिश्चित करने के लिए प्रावधानों की कमी के कारण इस प्रावधान को लागू नहीं किया गया है।

यह अधिनियम केवल उन नियोक्ताओं तक सीमित है जो 20 या अधिक श्रमिकों को नियोजित करते हैं या जहां काम 120 दिनों के आकस्मिक कार्य या 60 दिनों से कम मौसमी काम है। अधिनियम उन श्रमिकों के बारे में बात नहीं करता है जो संख्या में कम हैं।

धारा 10(2)(b) में ठेका श्रम को समाप्त करने का प्रावधान है जब कार्य बारहमासी या स्थायी हो। इस प्रावधान का उद्देश्य अनुबंध समाप्त होने पर श्रम को हटाना है, लेकिन वास्तविक कार्यान्वयन में, श्रमिकों को विस्तारित अवधि के लिए नियोजित किया जाता है और प्रवर्तन अधिकारी इस तथ्य के बावजूद ठेका श्रमिकों के उपयोग को प्रतिबंधित करने में असमर्थ हैं कि यह कानून के खिलाफ है।

और अंत में, ठेका श्रम (विनियम और उन्मूलन) नियम, 1970 के अध्याय III, नियम 25(2)(v)(a) में ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ का प्रावधान किया गया है, अस्पष्ट है और इसमें कार्यान्वयन का अभाव है क्योंकि ज्यादातर प्रतिष्ठान अनुभवी श्रमिकों को अधिक भुगतान करते हैं।

समाधान

ठेका श्रम (विनियम और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 को 20 से कम श्रमिकों पर भी लागू किया जाना चाहिए। नियोक्ता का एक साथ कर्तव्य उन परिदृश्यों में प्रदान किया जाना चाहिए जहां कार्यकर्ता नियोक्ता द्वारा नियोजित श्रमिक के समान काम करता है। कानून प्रदान किए जाने के बावजूद ठेका मजदूरों का शोषण किया जा रहा है, सरकार को विभिन्न राज्यों में कानूनों के वास्तविक कार्यान्वयन की जांच करने के प्रयास करने चाहिए, चाहे वह सुरक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित हो, श्रमिकों का बीमा सुनिश्चित करने के लिए, आदि। और न केवल सरकार, बल्कि नियोक्ता और ठेकेदार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे दोनों लागू श्रम कानूनों का पालन करें।

मामले

कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी (2006) 4 एससीसी 1

इस मामले में, अनिश्चित रोजगार पर रोक लगाने का मुद्दा अदालत के समक्ष उठाया गया था। अदालत ने यह कहते हुए मामले से इनकार कर दिया था कि यदि अनिश्चित रोजगार निषिद्ध है तो इसका मतलब यह होगा कि जिन लोगों को कम से कम अनुबंधत्मक, अस्थायी या आकस्मिक आधार पर नियोजित किया जा सकता है, उन्हें नौकरी नहीं करने के बजाय रोजगार पाने के अवसर से वंचित कर दिया जाएगा। इस तरह की अनिश्चित या अस्थायी नौकरी उन्हें कम से कम कुछ राहत देगी। इसलिए अदालत ने लंबे समय से काम कर रहे श्रमिकों को स्थायी दर्जा देने से इनकार कर दिया था, हालांकि, अदालत ने इस बात पर भी फिर से जोर दिया था कि ‘समान काम के लिए समान वेतन’ राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत में स्पष्ट रूप से दिया गया है और यह भारतीय संविधान में निहित समानता के सिद्धांत का एक हिस्सा है।

निष्कर्ष 

इस प्रकार, संक्षेप में, भारत में श्रम मामलों से निपटने के लिए 44 केंद्रीय श्रम कानून और 200 राज्य कानून हैं। इन कानूनों में मजदूरी, श्रमिकों की संख्या, अवधि, कार्य की शर्तें, ठेकेदारों और कर्मचारियों के कर्तव्यों, श्रमिकों के अधिकारों आदि से संबंधित प्रावधान हैं।

संदर्भ

  • Contract Labour in India: In Law and Public Policy by Pankaj Kumar, Jaivir Singh

 

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