आई.पी.आर. कानून के तहत संगीत का संरक्षण

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यह लेख Safiya Zahid Shaikh द्वारा लिखा गया है, जो इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, मीडिया एंड एंटरटेनमेंट लॉ में डिप्लोमा कर रही हैं, और इसे Oishika Banerji (टीम लॉसीखो) द्वारा संपादित किया गया है। इस लेख में लेखक आई.पी.आर. कानून के तहत संगीत के संरक्षण से संबंधित पहलुओं पर चर्चा करते है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय 

बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) अधिकारों (आई.पी.आर.) के पीछे का उद्देश्य कलाकार, निर्माता, या आविष्कारक को एक सुरक्षा प्रदान करना है जो उन्हें एक तरफ सीमित समय के लिए मौद्रिक (मॉनेटरी) उद्देश्यों के लिए अपनी रचना का प्रयोग करने में मदद करेगा और दूसरी तरफ, दूसरों को ऐसे अधिकारों का शोषण करने से प्रतिबंधित करेगा। जब संगीत उद्योग (इंडस्ट्री) की बात आती है, तो आई.पी.आर. की प्राथमिक भूमिका होती है। आज के युग में, जब नकल करना और रीमिक्स करना सामान्य गतिविधियाँ बन गई हैं, संगीत उद्योग में व्यक्तियों के वैधानिक अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान आकर्षित हो रहा है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि संगीत उद्योग से संबंधित किसी भी कार्य की अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) तरीके से नकल नहीं की जा सकती है। इसी तरह, जब गानों के प्रसारण (ब्रॉडकास्टिंग) और वितरण की बात आती है, तो उन्हें भी उनके मालिक की उचित अनुमति के साथ ही किया जाना चाहिए। इसके साथ वहन करने वाले राजस्व (रिवेन्यू) को सुविधाजनक बनाने के लिए यह आवश्यक है। यह लेख आई.पी.आर. कानूनों द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा और संगीत उद्योग की बारीकियों को समझने में मदद करता है। 

एक गीत का मालिक कौन है

गीत बनाना केवल एक व्यक्ति का काम नहीं है; इसमें गीत लेखन, अरेंजमेंट, ट्रैकिंग, एडिटिंग, मिक्सिंग और मास्टरिंग जैसे अलग-अलग चरण शामिल होते हैं और अलग-अलग लोग इन भूमिकाओं को निभाते रहे हैं। तो बड़ा सवाल यह है कि किसी गीत की बौद्धिक संपदा का कानूनी मालिक कौन है? माननीय मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा मैसर्स इंडियन रिकॉर्ड मैन्युफैक्चरिंग बनाम अग्नि म्यूजिक एसडीएन बीएचडी (2010) के एक फैसले में, यह माना गया कि संगीत के काम के लेखक एक संगीतकार हैं, लेकिन निर्माता काम का मालिक है जब तक कि वह (निर्माता) जिसने संगीतकार को काम पर रखा है, संगीतकार के पक्ष में अपने अधिकार छोड़ देता है।  

संगीत में कॉपीराइट 

कॉपीराइट बौद्धिक संपदा का एक रूप है जहां एक कॉपीराइट मालिक को अपने काम (कलात्मक, नाटकीय, साहित्यिक (लिटरेरी), सिनेमैटोग्राफ फिल्में, साउंड रिकॉर्डिंग, फोटोग्राफ, मरणोपरांत प्रकाशन, अनाम (एनोनिमस) और छद्म नाम (सूडोनॉनिमस) के प्रकाशन, सरकार के काम, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के काम और सॉफ्टवेयर) को नकल करने से बचाने की रक्षा करने का अधिकार है। किसी गीत या संगीत पर कॉपीराइट होना दूसरों को काम को पुन: प्रस्तुत करने से रोकता है। यह केवल कॉपीराइट के मालिक को ही प्रदर्शन करने का अधिकार प्रदान करता है। भारत और यूके जैसे देशों में, कलात्मक कार्य के अस्तित्व में आते ही कॉपीराइट प्रदान कर दिया जाता है, बशर्ते इसे मूर्त रूप में लिया जाए, और यह अमेरिका के विपरीत है, जहां कॉपीराइट पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अनिवार्य है। साहित्यिक और संगीत कार्यों के लिए कॉपीराइट, स्वामी के जीवनकाल के साथ-साथ स्वामी की मृत्यु के 60 वर्ष बाद तक रहता है, और यदि कार्य में एक से अधिक व्यक्तियों का योगदान शामिल है, तो यह अंतिम लेखक/ कलाकार की मृत्यु से 60 वर्ष की अवधि होती है।

भारत में, कॉपीराइट कानून 1957 के कॉपीराइट अधिनियम द्वारा शासित होते हैं। संगीत में विभिन्न तत्व होते हैं और यह कई लोगों और उनकी बुद्धि का योगदान है। एक गीत के निर्माण में अलग-अलग चरण होते हैं, जिसमें एक गीतकार द्वारा लिखे गए गीत शामिल होते हैं, संगीतकार इसमें संगीत जोड़ता है, और उसके बाद एक गायक उस गीत को गाता है। अब इस गाने को गायक द्वारा स्टूडियो में रिकॉर्ड किया जाता है और गाने के निर्माता इसे रिकॉर्ड करते हैं। तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह कई लोगों का संयुक्त प्रयास है। 

संगीत के लिए कॉपीराइट कानूनों में प्रावधान 

संगीत को संपूर्ण नहीं माना जाता है; कॉपीराइट कानूनों के तहत, एक गीत को विभिन्न भागों में विभाजित किया जाता है, और उस भाग का स्वामी गीत के केवल उस भाग पर अपने अधिकारों का दावा कर सकता है। अधिनियम की धारा 2(d)(i) में कहा गया है कि साहित्यिक और नाटकीय कार्यों के संबंध में, जो व्यक्ति इन कार्यों को लिखता है उसे उस काम का लेखक कहा जाता है; इसी तरह, गीतों में, गीतकार कार्य का लेखक होता है, ताकि गीतकार एक लेखक के रूप में गीतों के बोलों पर अपने कॉपीराइट का दावा कर सके।

अधिनियम की धारा 2(d)(ii) में कहा गया है कि संगीत कार्यों के संबंध में संगीतकार को कार्य का लेखक माना जाएगा। इसके अलावा, धारा 2 (p) “संगीत कार्य” का वर्णन संगीत से युक्त एक कार्य के रूप में करती है और इसमें ऐसे कार्य के किसी भी चित्रमय अंकन (ग्राफिकल नोटेशन) को शामिल किया गया है, लेकिन इसमें कोई भी शब्द या कोई क्रिया शामिल नहीं है जिसे संगीत के साथ गाया, बोला या प्रदर्शन किया जाता है। एक संगीतकार वह व्यक्ति होता है जो किसी गीत के बोल में संगीत जोड़ता है, और इसलिए उसे गीत के संगीत पर कॉपीराइट का दावा करने का अधिकार है। 

धारा 2(qq) एक अभिनेता, गायक, संगीतकार, नर्तक, कलाबाज, लोगो का मनोरंजन करने वाला बाजीगर, जादूगर, सपेरा, व्याख्यान (लेक्चर) देने वाले व्यक्ति, या प्रदर्शन करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के रूप में “कलाकार” का वर्णन करती है। इस प्रकार, इस धारा के तहत, एक गायक उस कार्य पर अपने कॉपीराइट का दावा कर सकता है जिसके लिए उसने योगदान दिया है। 

कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 2(uu) के तहत सिनेमैटोग्राफ फिल्म या ध्वनि रिकॉर्डिंग के संबंध में एक निर्माता का वर्णन किया गया है। एक निर्माता वह व्यक्ति होता है जो काम करने के लिए पहल और जिम्मेदारी लेता है। जैसे कि संगीत निर्माता वह है जो विभिन्न रचनात्मक/ तकनीकी नेतृत्व भूमिकाओं के साथ-साथ रिकॉर्डिंग और प्रसारण जिम्मेदारियों को भी लेता है, वह गीत की रिकॉर्डिंग का स्वामी होता है।   

कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत दिए गए विशेष अधिकार

लेखक के अधिकारों की रक्षा के लिए, विभिन्न प्रावधान निर्धारित किए गए हैं जो लेखक को विभिन्न अधिकार प्रदान करते हैं, और इन अधिकारों का उल्लेख कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 14 के तहत किया गया है और इन्हें विशेष अधिकार के रूप में जाना जाता है। तीन अलग-अलग प्रकार के अनन्य (एक्सक्लूसिव) अधिकार होते हैं, अर्थात्, आर्थिक अधिकार, नैतिक (मॉरल) अधिकार और संबंधित अधिकार।  

आर्थिक अधिकार 

किसी लेखक या कलाकार के मूल्य की रक्षा के लिए कॉपीराइट महत्वपूर्ण है, और उनके योगदान के कारण कई क्षेत्रों में वृद्धि और विकास होता है। इन कलाकारों को क्षेत्र में और योगदान देने के लिए प्रेरित करने के लिए, यह प्रमुख महत्व है कि उन्हें उनके काम के लिए पर्याप्त मुआवजा दिया जाए। केवल कार्य की सराहना ही काफी नहीं है; कलाकार के मौद्रिक हित की रक्षा की जानी चाहिए, और यह उनके लिए प्रेरणा का काम करता है। आर्थिक अधिकारों को आगे छह और अधिकारों में विभाजित किया गया है।

प्रतिकृति  (रिप्रोडक्शन) का अधिकार

यह लेखक के मौलिक अधिकारों में से एक माना जाता है, क्योंकि यह लेखक को अपने काम को पुन: प्रस्तुत करने और इसे किसी भी रूप या माध्यम में संरक्षित करने की अनुमति देता है। यह अधिकार केवल लेखक का है, और किसी के पास यह अधिकार नहीं है; इसलिए, यदि कोई अन्य व्यक्ति काम का उपयोग कर रहा है, तो उन्हें लेखक से अनुमति लेनी होगी।

वितरण का अधिकार

वितरण का अधिकार वह अधिकार है जिसके तहत कार्य का स्वामी अपने कार्य को बिक्री, किराए, पट्टे (लीज) या जनता को उधार देने के लिए उपलब्ध करा सकता है। यह लेखक को अनधिकृत कार्य के वितरण को रोकने में मदद करता है। इसमें पहली बिक्री के सिद्धांत की अवधारणा भी शामिल है जिसके अनुसार एक बार किसी व्यक्ति ने कॉपीराइट स्वामी से कॉपीराइट किए गए कार्य की एक प्रति खरीद ली, तो उसे उस विशेष प्रति को बेचने, प्रदर्शित करने या निपटाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। 

रूपांतर (एडेप्टेशन) का अधिकार

कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 2 (a) के अनुसार, एक संगीत कार्य में रूपांतर, कार्य की किसी भी व्यवस्था या प्रतिलेखन (ट्रेसिशन) को दर्शाता है। यह कॉपीराइट स्वामी का अनन्य अधिकार है कि वह अपने काम को रूपांतर करे या दूसरों को अपने काम को रूपांतर या संशोधित करने की अनुमति दे। 

प्रसारण का अधिकार

प्रसारण का अधिकार कॉपीराइट स्वामी का अपने काम को प्रसारित करने का अधिकार है, जो पहले ही प्रकाशित हो चुका है। इस अधिकार को कार्य संप्रेषित (कम्यूनिकेट) करने का अधिकार भी कहा जा सकता है।

किराए का अधिकार

किराए के अधिकार, ध्वनि रिकॉर्डिंग या कॉपीराइट कानूनों के तहत मान्यता प्राप्त किसी अन्य कार्य की एक प्रति किराए पर लेने का अधिकार है। संगीत या गीत के निर्माता को ध्वनि रिकॉर्डिंग के उत्पादन, बिक्री और वितरण को स्वीकृत या अस्वीकृत करने का अधिकार है।

सार्वजनिक प्रदर्शन का अधिकार

कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 38, कलाकार के अधिकार को पहचानती है, जिससे ‘कलाकार के अधिकार’ की अवधारणा का परिचय मिलता है। कलाकार के अधिकारों को एक तरह के समझौते के रूप में माना जा सकता है, जहां कलाकार लाइव संगीत कार्यक्रम, प्रसारण या केबल टेलीविजन या रेडियो आदि में संगीत का उपयोग करने के लिए कॉपीराइट कार्य के मूल स्वामी की अनुमति प्राप्त करता है। बदले में, उस कलाकार को संगीत के संगीतकार के लिए एक राशि भुगतान करने की आवश्यकता होती है। ‘सार्वजनिक’ प्रदर्शन का अर्थ है सार्वजनिक व्यवस्था में प्रदर्शन, और दर्शक केवल रिश्तेदारों या करीबी परिचितों तक ही सीमित नहीं हैं।     

नैतिक अधिकार 

लेखकों को कोई मौद्रिक लाभ प्रदान करने में नैतिक अधिकार कोई भूमिका नहीं निभाते हैं। बल्कि वे लेखक और उसके काम के सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा करते है। 1957 के कॉपीराइट अधिनियम की धारा 57 नैतिक अधिकारों से संबंधित है। ये अधिकार कलाकार या लेखक के काम में किसी भी तरह के संशोधन या बदलाव से बचने में मदद करते हैं। भले ही कॉपीराइट के मालिक ने अपना कॉपीराइट किया हुआ काम दूसरों को हस्तांतरित (ट्रांसफर) कर दिया हो, नैतिक अधिकार मूल निर्माता के पास ही रहता है। यदि कोई कलाकार के काम का इस तरह से उपयोग कर रहा है जिससे कलाकार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है, तो कलाकार नैतिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला दर्ज कर सकता है। पहले, नैतिक अधिकार केवल साहित्यिक कार्यों के लिए ही उपलब्ध थे, लेकिन मन्नू भंडारी बनाम कला विकास पिक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य (1986) में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि दृश्य (विजुअल) और श्रव्य (ऑडियो) कार्य के लिए भी नैतिक अधिकार उपलब्ध हैं। 

संगीत के मामले में उल्लंघन के लिए दंड 

कॉपीराइट के संबंध में ‘उल्लंघन’ शब्द का अर्थ समझना चाहिए। कॉपीराइट का उल्लंघन निम्न कारणों से होता है:

  1. कॉपीराइट किया गया कार्य मूल लेखक का है और यह एक मौलिक रचना भी है। 
  2. कॉपीराइट उल्लंघन के काम को वास्तव में लेखक के काम से नकल किया गया है।

यह नोट करना आदर्श है कि कॉपीराइट के कॉपीराइट उल्लंघन के लिए न्यूनतम सजा 50,000/- रुपये के न्यूनतम जुर्माना के साथ छह महीने की कैद है। इसके अलावा, दूसरी और बाद की सजा से जुड़े मामलों में, न्यूनतम सजा 1 लाख रुपये के जुर्माने के साथ एक वर्ष के कारावास की है। 

संगीत में ट्रेडमार्क 

हाल के दिनों में, बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में जागरूकता में वृद्धि हुई है, और काम के मालिक अपने काम को सबसे प्रभावी तरीके से मुद्रीकृत करने में सक्षम हैं। किसी गीत के शीर्षक के लिए या किसी संगीतकार के नाम पर ट्रेडमार्क पंजीकरण कराना आजकल एक आम बात है। भारत में, ट्रेडमार्क पंजीकरण प्राप्त करने वाला पहला गीत 2011 में “वाई  दिस कोलावेरी डी” था, जो रातोंरात एक बड़ी सफलता थी। यह भारत में सबसे अधिक खोजा जाने वाला वीडियो और पूरे एशिया में एक इंटरनेट की असाधारण घटना बन गया था। सोनी म्यूजिक एंटरटेनमेंट इंडिया ने इस गीत को रिकॉर्ड किया और ट्रेडमार्क के लिए दायर किया। इस पंजीकरण ने सोनी एंटरटेनमेंट को कॉम्पैक्ट डिस्क, एसडी कार्ड और कैसेट के माध्यम से गीत का मुद्रीकरण करने की क्षमता प्रदान की। 

संगीत उद्योग में सबसे प्रसिद्ध नामों में से एक टेलर स्विफ्ट है। वह न केवल एक महान गायिका हैं, बल्कि उनके पास व्यापार कौशल भी है। मिस स्विफ्ट के पास 200 से अधिक अमेरिकी ट्रेडमार्क पंजीकरण हैं, जिसने उन्हें अपने संगीत और उससे जुड़ी प्रतिष्ठा को बनाए रखने की अनुमति दी, जिससे उन्हें अपनी छवि और करियर पर नियंत्रण रखने की अनुमति मिली, और जिससे उन्होंने खुद को शीर्ष रिकॉर्डिंग कलाकारों में से एक के रूप में सुरक्षित कर लिया। उसने अपना नाम, आद्याक्षर (इनिशियल), अपने दौरे का नाम, अपने एल्बम, फैन क्लब (स्विफ्टी) का नाम और ” द ओल्ड टेलर कांट कम टू द फोन राइट नाओ”, “लुक वॉट यूमेड मि डू” और “आई विल राइट योर नेम” आदि जैसे गीत के बोल दर्ज किए हैं। 

जबकि पश्चिम में कई कलाकार हैं, जैसे बेयॉन्से, एडेल, और कई अन्य, जिन्होंने अपने नाम को ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत किया है, गायकों द्वारा उनके नाम के लिए ट्रेडमार्क पंजीकरण की यह प्रवृत्ति भारत में बहुत आम नहीं है। डीएम एंटरटेनमेंट बनाम बेबी गिफ्ट हाउस और अन्य (2018) के मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक गायक के अधिकार और प्रतिष्ठा को मान्यता दी थी। इस मामले में, अदालत ने प्रतिवादी को रोक दिया, जिसका एक पंजीकृत डोमेन नाम ‘दिलेरमेहंदी.नेट’ था, जो भ्रामक रूप से पंजीकृत ट्रेडमार्क ‘दिलेर मेहंदी’ के समान था। 

ट्रेडमार्क उल्लंघन के लिए दंड 

ट्रेडमार्क का उल्लंघन तब होता है जब कोई व्यक्ति समान वस्तुओ/ सेवाओं के लिए मूल स्वामी के अनुमति के बिना पंजीकृत ट्रेडमार्क के समान ट्रेडमार्क का उपयोग करता है। ट्रेडमार्क उल्लंघन के एक संज्ञेय (कॉग्निजेबल) अपराध होने के कारण, निम्नलिखित उपाय हैं: 

  1. अस्थायी निषेधाज्ञा (टेंपररी इंजंक्शन);
  2. स्थायी निषेधाज्ञा;
  3. हर्जाना;
  4. लाभ का हिस्सा (उल्लंघन से अर्जित लाभ के बराबर हर्जाना);
  5. अनधिकृत ट्रेडमार्क वाले उन सभी सामानों को नष्ट करना; और
  6. कानूनी कार्यवाही में शामिल लागत।

ट्रेडमार्क उल्लंघन के लिए उपलब्ध आपराधिक उपाय हैं: 

  1. छह महीने से कम की अवधि के लिए कारावास जो तीन साल तक भी बढ़ाया जा सकता है; और
  2. कम से कम ₹50,000 का जुर्माना, जो ₹2 लाख तक हो सकता है।

निष्कर्ष

अमेरिका जैसे विकसित देश की तुलना में भारत में संगीत और मनोरंजन उद्योग से जुड़े अधिकारों की रक्षा का दायरा बहुत प्रारंभिक चरण में है। बड़े रिकॉर्डिंग लेबल अपने अधिकारों की रक्षा करने में बहुत मेहनती होते हैं, जबकि स्वतंत्र कलाकार या जिसने अभी-अभी अपना करियर शुरू किया है, वह अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानता है और इन रिकॉर्डिंग लेबलों से भोला हो जाता है; इसलिए, कलाकार के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह अपने अधिकारों और उन अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में संभावित उपायों के बारे में जाने।  

संदर्भ

 

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