यह लेख सत्यबामा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के छात्र Michael Shriney द्वारा लिखा गया है। इस लेख में भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 332 का एक संक्षिप्त अवलोकन (ओवरव्यू) शामिल है, जिसमें इसकी अनिवार्यता, प्रक्रियाएं, निर्णय और आई.पी.सी. की धारा 332 और 333 के बीच अंतर शामिल हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।
परिचय
एक लोक सेवक को उसकी नौकरी करने से रोकने के लिए नुकसान का स्वैच्छिक कारण भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 332 के अंतर्गत आता है। यह धारा कोविड लॉकडाउन के दौरान लोकप्रिय था, जब सार्वजनिक अधिकारियों, विशेष रूप से पुलिस और कानून प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) अधिकारियों के खिलाफ हमलों में वृद्धि हुई थी, जो देश के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। लोग बनाए गए नए कानूनों से निराश थे और जब ये लोक सेवक अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे, तब उन्होंने देश भर में पुलिस के खिलाफ लड़ना शुरू कर दिया।
महामारी के दौरान, ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनमें लोगों ने विभिन्न राज्यों में ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। लोक सेवकों के अधिकारों की रक्षा के लिए आई.पी.सी. की धारा 332 और 353 महामारी के हाल ही के समय में आवश्यक और प्रासंगिक हैं। यदि अपराधी जानबूझकर अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले किसी लोक सेवक को नुकसान पहुंचाता है, तो उस पर आई.पी.सी., 1860 की धारा 332 के तहत आरोप लगाया जाता है।
निम्नलिखित लेख प्रासंगिक निर्णयों और प्रक्रियाओं सहित, संहिता की धारा 332 का एक संक्षिप्त अवलोकन प्रदान करेगा।
आई.पी.सी. के तहत लोक सेवक कौन है
धारा 332 को समझने के लिए सबसे पहले आई.पी.सी. की धारा 21 को समझना जरूरी है। आई.पी.सी. की धारा 21 लोक सेवकों से संबंधित है। वे इस प्रकार हैं:
- भारत की सेना, नौ सेना या वायु सेना का हर आयुक्त (कमीशन) अधिकारी;
- किसी भी न्यायाधीश या अन्य कानूनी प्राधिकारी (अथॉरिटी) को लोक सेवक के रूप में संदर्भित किया जाता है;
- न्याय की अदालत में कोई भी व्यक्तिगत अधिकारी एक लोक सेवक होता है;
- न्याय की अदालत की सहायता करने वाला प्रत्येक जूरीमैन, मूल्यांकनकर्ता (एसेसर) या पंचायत का सदस्य;
- कोई भी मध्यस्थ (मेडिएटर) या अन्य व्यक्ति जिसे कोई विषय जांच या समाधान के लिए संदर्भित किया गया है, को भी शामिल किया जाता है और एक लोक सेवक के रूप में माना जाता है;
- किसी व्यक्ति को कारावास में रखने के लिए कानून द्वारा सशक्त कोई भी व्यक्ति, भी एक लोक सेवक है;
- सरकार का प्रत्येक अधिकारी जिसके पास अपराधों को रोकने, गलत काम करने वालों को पकड़ने, जांच करने या सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा की रक्षा करने का अधिकार है, को लोक सेवक के रूप में शामिल किया गया है;
- सरकार की ओर से अनुबंधों (कॉन्ट्रैक्ट) को निष्पादित (एग्जिक्यूट) करने के लिए सरकार द्वारा स्थापित कोई भी अधिकारी, जो सरकार के नाम पर बिक्री विलेख (डीड) या खरीद निष्पादित करता है, सभी प्रमाणित (सर्टिफाइड) दस्तावेजों का रिकॉर्ड रखता है, और कानून के उल्लंघन को रोकता है। इन अधिकारियों को भी लोक सेवक माना जाता है।
- लोक सेवक वह अधिकारी होता है जिसका काम सरकार की ओर से किसी शहर, गांव या संपत्ति के लाभ के लिए कर वसूलना होता है।
- मतदाता सूची को संकलित (कंपाइल) करने, बनाए रखने या अद्यतन (अपडेट) करने, या चुनाव या चुनाव के एक हिस्से का संचालन करने का अधिकार रखने वाला कोई भी व्यक्ति लोक सेवक के रूप में माना जाता है;
- कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 427 के तहत सरकारी कार्यों को करने के लिए या किसी सरकारी फर्म की सेवा में पारिश्रमिक (रिम्युनरेशन) या कमीशन प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त कोई भी व्यक्ति भी एक लोक सेवक है।
आई.पी.सी. की धारा 332
धारा 332 किसी लोक सेवक को उसके कर्तव्यों को करने से रोकने के लिए, स्वैच्छिक नुकसान या चोट पहुँचाने के लिए दंडित करता है।
- कोई भी व्यक्ति जो स्वेच्छा से किसी ऐसे व्यक्ति के कर्तव्यों के निर्वहन (डिस्चार्ज) में नुकसान या चोट पहुंचाता है, जो अपने कर्तव्य से एक लोक सेवक है; या
- कोई भी व्यक्ति जिसका इरादा उस व्यक्ति को रोकना है; या
- कोई अन्य लोक सेवक जो लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हो; या
- कोई भी व्यक्ति जिसने लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्य के वैध निर्वहन में उस व्यक्ति द्वारा कुछ किया है या करने का प्रयास किया है।
- यदि उपरोक्त परिस्थितियाँ होती हैं, तो कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर किसी लोक सेवक को नुकसान पहुँचाता है, उसे तीन साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 332 का उदाहरण: यदि ‘A’ एक पुलिस अधिकारी है, तो वह एक लोक सेवक है, और एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करते समय, जैसे कि एक महामारी के दौरान, सभी लोगों को सलाह दी जाती है कि जब तक की कोई बहुत जरूरी कार्य न हो तब तक वे अपने घरों से बाहर न निकलें। उस अवधि के दौरान चीजों को नियंत्रण में रखने के लिए ‘A’ जिम्मेदार है। इस समय, एक राहगीर ‘B’ अनावश्यक रूप से बाहर आया, और जब ‘A’ ने ‘B’ की जांच करने का प्रयास किया तब ‘B’ ने ‘A’ को चोट पहुंचाई, जिससे शारीरिक नुकसान हुआ। ऐसे में ‘B’ पर आई.पी.सी., 1860 की धारा 332 के तहत आरोप लगाया जा सकता है।
धारा 332 आई.पी.सी. की आवश्यक सामग्री
आई.पी.सी. की धारा 332 के लिए संतुष्ट होने के लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार हैं:
- लोक सेवक को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लगा रहना चाहिए;
- लोक सेवक को नुकसान या चोट लगनी चाहिए;
- कार्य लोक सेवक को अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के इरादे से किया जाना चाहिए;
- किसी भी अन्य मामले में, कोई भी व्यक्ति लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्य के वैध निर्वहन में कुछ भी करता है या करने का प्रयास करता है।
आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत दोषी ठहराए जाने के लिए जरूरी साक्ष्य
आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए आवश्यक साक्ष्य हैं:
- आरोपी को स्वेच्छा से पीड़ित को शारीरिक दर्द, बीमारी, चोट या नुकसान पहुंचाना चाहिए;
- पीड़ित को एक लोक सेवक होना चाहिए जिसे नुकसान पहुँचाया गया हो;
- लोक सेवक को नुकसान पहुँचाने के समय, उसे लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा करने में लगा होना चाहिए।
- आरोपी को लोक सेवक को अपने कर्तव्यों को करने से रोकना चाहिए।
- उसकी भूमिका के निर्वहन के लिए यह कार्य जानबूझकर किया जाना चाहिए।
आई.पी.सी. की धारा 322 के तहत अपराध की प्रकृति
- धारा 332 का अपराध संज्ञेय (कॉग्निजेबल) हैं, जिसका अर्थ है कि आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है। इस प्रकार की परिस्थितियों में, पुलिस कांस्टेबल के पास न्यायालय के आदेश के बिना अधिकार का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है।
- ये अपराध गैर-जमानती भी हैं, जिसका अर्थ है कि जमानत जारी करना एक व्यक्ति के अधिकार की बात नहीं है; इसके बजाय, एक व्यक्ति को अदालत में पेश होना चाहिए, जहां न्यायाधीश तय करते हैं कि जमानत दी जाए या नहीं।
- ये गैर-शमनीय (नॉन कंपाउंडेबल) अपराध हैं, जिसका अर्थ है कि पीड़ित समझौता स्वीकार करने और आरोपी के खिलाफ आरोप दायर करने को तैयार नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 332 पर प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय न्यायालय में मुकदमा चलाया जा सकता है। आंतरिक सुरक्षा विभाग संबंधित गृह मंत्रालय का हिस्सा है।
आई.पी.सी. की धारा 332 के लिए सजा
आई.पी.सी. की धारा 332 का उल्लंघन, जो एक लोक सेवक को अपने कर्तव्यों को करने से रोकने के लिए स्वेच्छा से नुकसान पहुंचाने के अपराध के लिए दंड से संबंधित है, वह तीन साल की जेल की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकता है। कोई भी मजिस्ट्रेट न्यायालय इस मामले की सुनवाई कर सकता है।
धारा 332 आई.पी.सी. के तहत मामला दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है
आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत अपराध दर्ज करने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- जब अपराध संज्ञेय हो, तो पीड़ित को स्थानीय पुलिस थाने जाना चाहिए और प्राथमिकी (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज करनी चाहिए।
- यदि आरोपी द्वारा किए गए अपराध से संबंधित कोई साक्ष्य मिलता है, तो पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर लेगी। यदि आरोप का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है, तो मामला खारिज कर दिया जाएगा।
- इस प्रक्रिया का पालन करते हुए आरोप पत्र दाखिल किया जाएगा और इसमें जुटाए गए सभी साक्ष्यों को दर्ज किया जाएगा।
- अदालत में दोनों पक्षों की ओर से मामले की सुनवाई होगी, वकील की नियुक्ति की जाएगी और फैसला लिया जाएगा।
अधिक सुविधा के लिए व्यक्ति ई-एफआईआर के तहत भी शिकायत दर्ज कर सकता है। आई.पी.सी. की धारा 295 का उल्लंघन संज्ञेय अपराध है। ई-एफआईआर दर्ज करने के लिए निम्नलिखित चरण हैं:
- पीड़ित को स्थानीय या संबंधित पुलिस स्टेशन की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा।
- वेबसाइट खुलने पर “सर्विसेज” विकल्प चुनना होगा।
- सर्विस विकल्प को चुनने के बाद एक ड्रॉप-डाउन मेनू दिखाई देगा, जिसमें से आपको पीड़ित के मामले के प्रकार का चयन करना होगा।
- एक बार विकल्प चुने जाने के बाद, एक नया पृष्ठ प्रकट होता है, जिसमें पीड़ित को जानकारी दर्ज करने के लिए कहा जाता है जैसे-
- शिकायतकर्ता का नाम,
- माता या पिता का नाम,
- शिकायतकर्ता का ईमेल पता,
- घटना की तिथि और स्थान,
- शिकायतकर्ता का फोन नंबर, और
- मामले के बारे में कोई अन्य महत्वपूर्ण विवरण।
5. सबमिट करने से पहले, सभी सूचनाओं को दोबारा जांचें और सुनिश्चित करें कि ईमेल पता मान्य है क्योंकि एफआईआर उस पते पर भविष्य के संदर्भ के लिए ईमेल की जाएगी।
6. फॉर्म जमा करने के बाद, उपयोगकर्ता को फॉर्म पर कैप्चा कोड दर्ज करके अपना सबमिशन सत्यापित (वेरिफाई) करना होगा।
पुलिस एफआईआर प्रक्रिया का पालन करते हुए जांच कर सकती है, और यदि कोई ठोस सबूत है, तो आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है क्योंकि यह एक संज्ञेय अपराध है। यदि कोई सबूत नहीं दिया जाता है, तो मामला खारिज कर दिया जाता है। अगर कोई गंभीर सबूत मिलता है तो पुलिस आरोप पत्र बनाती है। आरोप पत्र पूरा होने के बाद, मामले को मुकदमे के लिए अदालत में ले जाया जाता है, जहां अभियोजन पक्ष धारा 332 के तत्वों को साबित करने का प्रयास करता है, और सफल होने पर, आरोपी को दो साल तक की जेल, जुर्माना, या दोनों, जो की अदालत के विवेक के अनुसार होता है।
निर्णय
राजेश राय बनाम सिक्किम राज्य, (2012)
मामले के तथ्य
इस मामले में विचाराधीन कैदी ने जेल वार्डन के सिर पर लकड़ी से वार कर दिया था। जेल से बचने के लिए उसने एक अन्य वार्डन को भी पीटा था। आरोपी बार बार अपराध करता था और पहले भी कई वारदातों में शामिल था। पीड़ितों को गंभीर चोटें आई हैं।
इस मामले में शामिल मुद्दे
सवाल यह था कि क्या एक आरोपी को एक लोक सेवक के खिलाफ उसके अपराध के लिए दंडित किया जाना चाहिए क्योंकि वह पिछले कई अपराधों में शामिल एक बार-बार अपराध करने वाला अपराधी था और अपराध के समय पहले से ही जेल में था।
इस मामले का फैसला
निचली अदालत ने फैसला किया कि न्यायिक विवेकाधिकार मामले के सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद अधिकतम सजा सुनाएगा। उच्च न्यायालय के उचित निर्णय के अनुसार, आरोपी को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए आजीवन कारावास और 20,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी, और यदि उसके द्वारा चूक की जाती है, तो उसे और 6 महीने के कारावास लिए सजा होगी।
डी.एस. सरवनन बनाम राज्य पुलिस उपाधीक्षक (सुपरीटेंडेंट) द्वारा प्रतिनिधित्व (2018)
मामले के तथ्य
इस मामले में, पीड़ित एक मंदिर में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (एंडोमेंट) के प्रभारी कार्यकारी (इन चार्ज एक्जीक्यूटिव) अधिकारी थे। उनका कार्यालय मंदिर से जुड़े विवाह हॉल में से एक में है जहां वह काम कर रहे थे। आरोपी मंदिर के पास के एक प्लाट पर कब्जा कर रहा था, और उसे अपने घर में कुछ मरम्मत की जरूरत थी। पीड़ित की सहमति के बिना, उसने अपने घर की मरम्मत शुरू कर दी। पीड़िता को घटना की जानकारी हुई और उसने काम बंद करने की शिकायत की। हालांकि मरम्मत का काम अभी भी जारी था। इसके बाद पीड़ित ने कर्मचारियों से काम बंद करने का आग्रह किया। तभी आरोपी पीड़िता के कार्यालय पहुंचा, उसने उसकी शर्ट पकड़ी, उसे खींचकर बाहर निकाला और उसके सीने पर घूंसा मारा। इस अपराध के लिए पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है। आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 332 के तहत दोषी ठहराया गया था।
इस मामले में शामिल मुद्दे
सवाल उठता है कि क्या निचली अदालत ने अपीलकर्ता को आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत अपराध के लिए पर्याप्त सजा नहीं दी थी।
इस मामले का फैसला
प्रधान जिला एवं सत्र न्यायालय के अनुसार आरोपी को 1,000/- रुपये का जुर्माना भरना होगा और निचली अदालत द्वारा लगाई गई सजा बनी रहेगी। यदि अपराधी को फिर से चूक में पाया जाता है, तो उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 332 के तहत तीन महीने की जेल की सजा दी जाएगी। यह मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय था।
सरवन बनाम राज्य (2020)
मामले के तथ्य
इस मामले में शिकायतकर्ता वायु सेना सर्जेंट था। वह और उसकी पत्नी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंचे, अपना बैग इकट्ठा किया और चलने लगे। एक युवक शिकायतकर्ता की पत्नी का सोने का हार ले कर भाग गया। रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के एक अधिकारी ने उसे पकड़ने का प्रयास किया, और अपराधी ने उसके हाथ में चाकू मार दिया। कांस्टेबल ने लूट के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और उसे थाने ले जाया गया। फिर एक शिकायत दर्ज कराई गई। आरोपी को आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत दोषी पाया गया है।
इस मामले का फैसला
दिल्ली जिला अदालत ने माना कि आरोपी को 18 महीने जेल की सजा होगी और उसे पीड़ित को मुआवजे के रूप में 5000/- रुपये का भुगतान करना होगा। दोषी पाए जाने पर उसे 15 दिन की जेल होगी।
आई.पी.सी. की धारा 332 और 333 के बीच अंतर
विषय वस्तु | आई.पी.सी. की धारा 332 | आई.पी.सी. की धारा 333 | |
1. | दायरा | कोई भी व्यक्ति, जो लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए स्वेच्छा से किसी लोक सेवक को नुकसान या चोट पहुँचाता है; या | कोई भी व्यक्ति, जो लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए स्वेच्छा से किसी लोक सेवक को गंभीर नुकसान पहुंचाता है; या |
2. | अपराध | यह धारा कम गंभीर अपराध से संबंधित है। | यह धारा अधिक गंभीर अपराध से संबंधित है। |
3. | अपराध की प्रकृति | यह एक कम गंभीर अपराध है जिससे गंभीर चोट नहीं लगती है। | यह एक अधिक गंभीर अपराध है जिससे गंभीर चोट लगती है। |
4. | दंड प्रक्रिया | धारा 333 की तुलना में इस धारा में कम कठोर सजा का प्रावधान है। | धारा 332 की तुलना में इस धारा में कठोर सजा का प्रावधान है। |
5. | धारा के तहत परिभाषा | आई.पी.सी. की धारा 319 में चोट की परिभाषा है। | आई.पी.सी. की धारा 320 में गंभीर चोट की परिभाषा है |
6. | सज़ा | इस धारा के तहत सजा तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों है। | इस धारा के तहत दस साल तक की कैद और जुर्माना भी हो सकता है। |
निष्कर्ष
यह लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 322 पर एक संक्षिप्त विवरण के साथ समाप्त होता है, जो मुख्य रूप से लोक सेवकों से संबंधित है और भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अंतर्गत आता है। यह धारा विशेष रूप से सार्वजनिक कर्मचारियों की सुरक्षा के उद्देश्य से है। यदि उन पर हमला किया जाता है या घायल किया जाता है, तो यह धारा अपराधी को दंडित करने और लोक सेवक की रक्षा करने के लिए लागू होगी। सार्वजनिक अधिकारियों को उनके कर्तव्यों का पालन करने से रोकने के लिए अपराधी इस अपराध को हिंसक तरीके से करते हैं। इस धारा में तीन साल तक की अवधि के लिए गंभीर कारावास की सजा, साथ ही जुर्माना या दोनों शामिल हैं।
इस अपराध पर किसी भी मजिस्ट्रेट की अदालत का अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) है। प्रकृति में, यह एक गैर-जमानती, गैर-शमनीय और संज्ञेय अपराध है। साक्ष्य अपराधी द्वारा किए गए अपराध से जुड़ा होना चाहिए। यदि अपराधी के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, तो मामला खारिज कर दिया जाएगा। ऐसे में सबूत की जरूरत होती है। इन विवरणों को भरने और अपराधी के अपराध को दिखाने के लिए उन्हें अदालत में उपलब्ध कराने के लिए एक आरोप पत्र भी दाखिल होता है। अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट की कोई आवश्यकता नहीं है; अपराधी को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है, जो न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफ.ए.क्यू.)
1. आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत किस अपराध को परिभाषित किया गया है?
एक लोक सेवक को अपने कर्तव्यों को करने से रोकने के लिए स्वेच्छा से चोट पहुँचाने का अपराध आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत परिभाषित किया गया है।
2. आई.पी.सी. की धारा 332 के लिए क्या सजा है?
आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत तीन साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा है।
3. आई.पी.सी. की धारा 332 संज्ञेय अपराध है या असंज्ञेय अपराध?
भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 332 एक संज्ञेय अपराध है।
4. धारा 332 आई.पी.सी. एक जमानती या गैर-जमानती अपराध है?
भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 332 एक गैर-जमानती अपराध है।
5. आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत एक मामला किस अदालत में चल सकता है?
आई.पी.सी. की धारा 332 के तहत का मामला, मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की अदालत में चल सकता है।
संदर्भ