आई.पी.सी. 1860 के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध

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Indian Penal Code
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यह लेख सस्त्र यूनिवर्सिटी की  M.Subhadra और ओडिशा के मधुसूदन लॉ कॉलेज की छात्रा Neelam Prusty द्वारा लिखा गया है। यह लेख आई.पी.सी. के तहत महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से संबंधित प्रावधान के बारे में बताता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा जितनी दिखती है, उससे कहीं अधिक संख्या में मौजूद है। अब समाज का यह मानना ​​है कि विवाह अब आर्थिक (इकोनॉमिक) जाल नहीं रह गया है, तलाक आसान हो गया है, एकल (सिंगल) परवरिश और गर्भपात (अबॉर्शन) व्यापक रूप से स्वीकार किए जाते हैं और समझे जाते हैं। भारत ने एक महिला प्रधान मंत्री का अनुभव किया है और ऐसी कई महिलाएं हैं जो मीडिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाएं आगे बढ़ी हैं और उन्होंन, अपने समाज में रहने के स्तर को भी बढ़ाया हैं। हमें कुछ ऐसे पुरुष मिलते हैं जो नहीं बदले हैं। यह स्थिति तब बदलने लगी जब राष्ट्र ने महिलाओं के लिए सामाजिक (पब्लिक) समानता को मान्यता दी और उनके खिलाफ अपराधों को दंडित किया, पर ऐसा करके उन्होंने महिलाओं के लिए मजबूती सुनिश्चित की। 

महिलाओं के खिलाफ अपराध (ऑफेंसेस अगेंस्ट वूमेन)

मिसकैरेज कराने या अजन्मे बच्चों को चोट लगाने, शिशुओं के संपर्क में आने और जन्म को छुपाने का कारण बनना।

मिसकैरेज में महिलाओं और बच्चे दोनों के खिलाफ अपराध शामिल होता हैं।

सेक्शन  प्रावधान (प्रोविज़न) सजा 
सेक्शन 312 मिसकैरेज का कारण बनना।  7 साल की सजा, और जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
सेक्शन 313  महिला की सहमति के बिना मिसकैरेज कराना।    10  साल की सजा, और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा
सेक्शन 314  गर्भपात करने के आशय (इंटेंशन) से किए गए कार्य के कारण मृत्यु होना, यदि कार्य महिला की सहमति के बिना किया जाता है। 10  साल की सजा, और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा

सेक्शन 312: मिसकैरेज का कारण बनना

जो कोई स्त्री की जान बचाने के लिए किसी स्त्री का बिना गुड फेथ के मिसकैरेज करवाता है, वह अपराध करता है।

इंग्रेडिएंट्स:

  • मिसकैरेज गुड फेथ में नहीं किया गया था।
  • महिला ने मिसकैरेज के लिए सहमति नहीं दी।

स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र बनाम फ्लोरा सैंटुनो कुटिनो, 2007 सी.आर.आई. एल.जे. 2233 (बी.ओ.एम.):

इस मामले में, प्रतिवादी (रेस्पोंडेंट) के एक महिला के साथ अवैध संबंध थे और उसने उसे गर्भवती कर मिसकैरेज भी कराया। अत्यधिक रक्तस्राव (ब्लीडिंग) के कारण उसकी मृत्यु हो गई और मामले के अन्य प्रतिवादियों ने उसे दफना दिया। ट्रायल कोर्ट ने उसे बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया और कहां कि उसके द्वारा किया गया मिसकैरेज गुड फेथ में महिला की जान बचाने के लिए नहीं था।

सेक्शन 313: महिलाओं की सहमति के बिना मिसकैरेज का कारण बनना

जो कोई भी महिला की सहमति के बिना ऊपर दिया गया अपराध करता है, उसे दंडित किया जाता है।

सेक्शन 314: मिसकैरेज का कारण बनने के इरादे से किए गए कार्य के कारण हुई मृत्यु

कोई भी व्यक्ति जो महिला के मिसकैरेज करने के इरादे से इस तरह से कार्य करता है, और इस तरह के कार्य से महिला की मृत्यु हो जाती है, तो उसे दंडित किया जाता है।

मानव शरीर के विरुद्ध अपराध (ऑफेंसेस अगेंस्ट ह्यूमन बॉडी)

सेक्शंस प्रावधान  सजा
सेक्शन 304-B डाउरी डेथ 7 साल तक का कारावास जो आजीवन कारावास तक हो सकता है।
सेक्शन 354 महिला पर हमला या आपराधिक बल (फोर्स) 1 साल का कारावास जो 5 साल तक का हो सकता है और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
सेक्शन 354-A सेक्शुअल हैरेसमेंट और उसके लिए सजा।  शारीरिक मांग के लिए और यौन अनुग्रह (फेवर्स) के लिए पूछने के लिए 1 साल का कारावास जो 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडनीय होगा।

अश्लील साहित्य (पोर्नोग्राफी) दिखाने और यौन रंगीन टिप्पणी (कलरफुल रिमार्क्स) करने के लिए, किसी भी अवधि तक का कारावास जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ। 

सेक्शन 354-B कपड़े उतारने के इरादे से महिलाओं पर हमला और आपराधिक बल का प्रयोग करना।  3 साल की सजा जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
सेक्शन 354-C वॉयरिज़्म 3 साल की सजा जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
सेक्शन 354-D स्टॉकिंग 5 साल तक का कारावास और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

सेक्शन 304 B: डाउरी डेथ

डाउरी, नकद या किसी वस्तु के रूप में हो सकती है जो दुल्हन का परिवार दूल्हे को शादी की शर्तों पर देता है। दुल्हन के परिवार पर इसका बहुत बड़ा आर्थिक बोझ होता है।

इस सेक्शन के तहत कहा गया है कि जब एक महिला की विवाहित जीवन के 7 साल के भीतर मृत्यु हो जाती है और यह साबित हो जाता है कि वह डाउरी के लिए अपने पति या उसके किसी रिश्तेदार द्वारा क्रूरता और उत्पीड़न (हेररेस्मेंट) के अधीन थी, तो उन्हें उसकी मृत्यु का कारण माना जाता है। .

इंग्रेडिएंट्स:

  • शादी के 7 साल के भीतर महिला की मृत्यु हो जानी चाहिए।
  • शरीर पर चोटें होनी चाहिए।
  • क्रूरता और उत्पीड़न स्थापित किया जाना चाहिए।
  • डाउरी की मांग के संबंध में ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न किया जाना चाहिए।

कुलदीप सिंह और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब:

इस मामले में, यह निर्णय लिया गया कि सभी इंग्रेडिएंट्स को संतुष्ट किया जाना चाहिए और उत्पीड़न और क्रूरता को साबित किया जाना चाहिए, जो मृत्यु से ठीक पहले हुआ था।

जब किसी महिला की मृत्यु उसके पति या उसके पति के किसी रिश्तेदार द्वारा डाउरी की मांग के कारण उसकी शादी के 7 साल के भीतर शारीरिक चोट या जलने से होती है, तो ऐसी मृत्यु को डाउरी डेथ के रूप में माना जाता है और अपराधी को 7 साल की अवधि की सजा मिलेगी जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

मुस्तफा शाहबोदल शेख बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र में, मृतक की शादी के 7 महीने के भीतर ससुराल में उसकी  मृत्यु हो गई। मृतका के माता-पिता ने कहा कि मृतक ने डाउरी की मांग को लेकर हो रही प्रताड़ना के बारे में उन्हें बताया था। पति और ससुराल वालो को कोर्ट ने 7 साल कारावास की सजा सुनाई है।

सेक्शन 354: महिलाओं पर हमला या आपराधिक बल

जो कोई व्यक्ति किसी महिला की मॉडेस्टी को भंग करने के लिए आपराधिक बल का प्रयोग करता है या जानता है कि यदि ऐसा कार्य किया जाता है, तो वह महिला की मॉडेस्टी को ठेस पहुंचाएगा, तो यह माना जाता है कि उसने अपराध किया है और उसे कम से कम 5 वर्ष के कारावास तक की सजा दी जाएगी।

इंग्रेडिएंट्स:

  • महिला पर हमला होना चाहिए।
  • व्यक्ति ने उसके खिलाफ आपराधिक बल का प्रयोग किया हो।
  • एक महिला की मॉडेस्टी भंग करने के लिए आपराधिक बल का प्रयोग किया जाना चाहिए।

रूपन देओल बजाज बनाम कंवर पाल सिंह गिल, ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 309:

याचिकाकर्ता (पिटीशनर) एक आई.ए.एस. अधिकारी थी, जिसे आई.जी कार्यालय में बुलाया गया था। आरोपित ने शिकायतकर्ता की पीठ थपथपाई। इस तरह के अपराध के लिए आई.जी. पर सेक्शन 354 के तहत आरोप लगाया गया था।

क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट

क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट ने, आई.पी.सी. के तहत महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ सेक्शन अमेंड किये और शामिल किये। स्टॉकिंग, वॉयरिज़्म जैसे नए अपराध; एसिड अटैक को आई.पी.सी. में शामिल किया गया था। लॉ बिल, 3 फरवरी, 2013 को एक एक्ट बन गया। इसे लोकप्रिय रूप से एंटी-रेप बिल के रूप में जाना जाता है।

अमेंडमेंट से पहले और अमेंडमेंट के बाद के प्रावधान:

अमेंडमेंट के पहले  अमेंडमेंट के बाद
आईपीसी में पहले भी सेक्शुअल हैरेसमेंट से सम्बंधित मामले होते थे लेकिन कोई विशेष प्रावधान नहीं थे। सेक्शन 354 सभी यौन अपराधों को शामिल करता था।  यौन अपराधों के लिए प्रावधान बनाए गए और उन्हें अपराधों के अनुसार अलग किया गया। 

  1. सेक्शुअल हैरेसमेंट
  2. हमला या आपराधिक बल का प्रयोग
  3. स्टॉकिंग
  4. वॉयरिज़्म
सेक्शन 376: रेप 

सजा: आजीवन कारावास या 10 साल और जुर्माना।

रेप:

कम से कम 7 साल की सजा या आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। 

नौकर या लोक (पब्लिक) सेवक द्वारा किया गया रेप:

कम से कम 10 साल की कैद।

मृत्यु या पीड़ित की वेगिटेटिवे अवस्था पर:

आजीवन कारावास की सजा, जिसे मृत्यु तक बढ़ाया जा सकता है।

गैंग रेप:

कम से कम 20 साल की सजा।

सेक्शन 376 D:

16 साल से कम उम्र की महिलाओं से गैंग रेप के लिए सजा;

आजीवन कारावास और जुर्माने के साथ सजा।

सेक्शन 376 DB:

12 साल से कम उम्र की महिलाओं से गैंग रेप के लिए सजा:

आजीवन कारावास, जुर्माना सहित।

सेक्शन 509: किसी महिला की मोडेस्टी का अपमान करने के इरादे से कोई भी शब्द बोलना या कोई इशारा करना। 

सजा: 1 साल की कैद, या जुर्माना, या दोनों

किसी महिला की मॉडेस्टी भंग करने के इरादे से कोई शब्द या कोई इशारा करना।

1 वर्ष के लिए कारावास जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही जुर्माना।  

अजहर अली बनाम स्टेट ऑफ़ पश्चिम बंगाल, (2013) 10 एस.सी.सी. 31:

अपराधी ने अपने दोस्त के साथ, पीड़िता को पकड़ा जब वह ट्यूशन के लिए जा रही थी और जबरन (फोर्सिबली) किस किया, जिसके परिणामस्वरूप उसके खून बहने लगा। यह तर्क दिया गया कि इसमें किया गया अपराध आई.पी.सी. के सेक्शन 354 के तहत आएगा, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह एक जघन्य (हीनस) अपराध और महिला की मॉडेस्टी को भंग किया गया था।

महिलाओं की मॉडेस्टी भंग करना (सेक्शन 354)

यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की मॉडेस्टी भंग करने के इरादे से उस पर हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, तो व्यक्ति को न्यूनतम (मिनिमम) 1 वर्ष की अवधि और अधिकतम (मेक्सिमम) 5 वर्ष की कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

रूपन देओल बजाज बनाम के.पी.एस. गिल, के मामले में अदालत ने कहा कि जब कोई अपराध महिलाओं की मॉडेस्टी से जुड़ा होता है, तो यह किसी भी परिस्थिति में तुच्छ नहीं हो सकता। इसलिए आरोपी को आई.पी.सी. के सेक्शन 354 के तहत जिम्मेदार ठहराया गया।

स्टेट ऑफ़ पंजाब बनाम मेजर सिंह में, यह माना गया कि आरोपी आई.पी.सी. के सेक्शन 354,  के तहत बच्चे की मॉडेस्टी भंग करने के लिए उत्तरदायी था। कोर्ट ने कहा कि एक महिला की मॉडेस्टी का सार उसका लिंग है। जवान हो या बुढ़ी, बुद्धिमान हो या मूर्ख, जाग्रत, या सो रही हो; महिलाओं में एक मॉडेस्टी होती है जो भांग होने में सक्षम होती है।

किसी महिला की मॉडेस्टी का अपमान करने के इरादे से शब्द, इशारा या कार्य (सेक्शन 509)

जब कोई व्यक्ति इरादे से किसी महिला की निजता (प्राइवेसी) में दखल देकर महिला की मॉडेस्टी का अपमान करता है; या कोई इशारा या आवाज करना, कोई शब्द बोलना या कोई वस्तु दिखाना, तो यह आई.पी.सी. के सेक्शन 509 के तहत आता है।

ऐसा अपराध करने वाले व्यक्ति को साधारण कारावास से, अधिकतम तीन वर्ष तक और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

तारक दास गुप्ता, के मामले में आरोपी एक यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट था, जिसने एक अंग्रेजी नर्स को अश्लील प्रस्तावों वाला एक पत्र लिखा था और उसे एक लिफाफे में भेजा था। अदालत ने उन पर एक महिला की मॉडेस्टी भंग करने का आरोप लगाया। 

सेक्शन 354 A: सेक्शुअल हैरेसमेंट और इसके लिए सजा

कोई भी व्यक्ति जो निम्न में से कोई भी कार्य करता है, तो यह मन जाता है कि उसने अपराध किया है:

  1. यौन संबंधों के लिए पूछता है;
  2. यौन सम्बन्ध बनाने की मांग;
  3. बदला अश्लील साहित्य; तथा
  4. अश्लील कलरफुल रिमार्क्स करता है। 

सेक्शन 354 B: कपड़े उतारने के इरादे से महिलाओं पर हमला और आपराधिक बल का प्रयोग करना 

कोई भी व्यक्ति, जो किसी महिला पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है या उसे नग्न होने के लिए उकसाता है या उसके कपड़े उतारता है, वह अपराध करता है।

इंग्रेडिएंट्स:

  • आरोपी एक पुरुष होना चाहिए।
  • पुरुष का इरादा आपराधिक बल के प्रयोग से महिला के कपड़े उतारने का होना चाहिए।

सेक्शन 354 C: वॉयरिज़्म

वॉयरिज़्म एक संतुष्टि की भावना है जो एक महिला को उसकी सहमति के बिना उसकी यौन गतिविधियों में लिप्त (एंगेज) देखने से प्राप्त होती है। इसमें 2 तरह के अपराध शामिल हैं।

  1. निजी गतिविधियों में लिप्त महिला को देखना या उसकी फोटो खीचना।
  2. फोटो का प्रचार (पुब्लिसाइज़) करना ।

इंग्रेडिएंट्स:

  1. आरोपी ने महिला को ऐसी अवस्था में देखा हो या फिर उसकी फोटो खींची हो। 
  2. महिला खींची हुई फोटो में कोई निजी कृत्य कर रही होनी चाहिए।
  3. उसने किसी के द्वारा देखे जाने की सहमति नहीं दी होगी।
  4. आरोपी फोटो का प्रचार करता है।

सेक्शन 354 D: स्टॉकिंग

यह शारीरिक रूप से और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से किया जा सकता है। यह किसी महिला की अरुचि (डिसइंटरस्ट) के बावजूद बार-बार संपर्क करने का प्रयास हो सकता है।

इंग्रेडिएंट्स:

  1. आरोपी एक पुरुष होना चाहिए।
  2. आरोपी  महिला से संपर्क करने का प्रयास कर रहा हो।
  3. आरोपी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी महिला से संपर्क करने की कोशिश कर सकता है।
  4. संपर्क, महिला की रूचि के बिना किया जाना चाहिए।

यौन अपराध (सेक्शुअल ऑफेंसेस)

सेक्शन 375: रेप 

यह एक पुरुष के प्रजनन (रिप्रोडक्टिव) अंग का, एक महिला में धोखाधड़ी या बल द्वारा, उसकी इच्छा और सहमति के विरुद्ध, शारीरिक प्रवेश है। इसने निजता के अधिकार और महिला की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन किया।

इंग्रेडिएंट्स:

  • मेन्स रीआ: मेन्स रीआ का तत्व मौजूद होना चाहिए। संभोग (इंटरकोर्स) को सेक्शन 375 के तहत सात इंग्रेडिएंट्स को संतुष्ट करना चाहिए।
  • एक्टस रीआ: मेन्स रीआ के तत्व के अनुसार ही संभोग होना चाहिए।

मुकेश और अन्य बनाम स्टेट फॉर एन.सी.टी. ऑफ़ दिल्ली और अन्य:

पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया और उसके दोस्त, पी.वी.आर. सेलेक्ट सिटी मॉल, साकेत में फिल्म देखकर घर लौट रहे थे। उन्हें एक खाली बस में बैठने के लिए मजबूर किया गया और एक नाबालिग सहित 6 पुरुषों द्वारा हमला किया गया।

निर्भया का न केवल यौन शोषण किया गया, बल्कि उसके शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाया गया था, उसकी आंतें तक बाहर निकल दी गयी थी जिसकी वजह से बहुत रक्तस्राव (ब्लीडिंग) हुई, उसके निजी अंग नष्ट हो गए थे। बाद में कार्डियक अरेस्ट और मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर के कारण उसकी मौत हो गई।

इसके परिणामस्वरूप, भारत में विरोध और प्रदर्शन हुए। उसके मामले ने कानूनों को बदल दिया, महिलाओं के अधिकारों को मान्यता दी। 2013 के क्रिमिनल अमेंडमेंट का जन्म हुआ। अमेंडमेंट ने महिलाओं के सभी प्रकार के शोषण के निवारण का मार्ग प्रशस्त किया।

सुप्रीम कोर्ट ने छह में से 4 पुरुषों को मौत की सजा दी, एक ने आत्महत्या कर ली और दूसरे को एक रिफॉर्मेट्री में 3 साल की अवधि दी गई।

तुका राम और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र:

मथुरा 14-16 वर्ष की आयु की एक बच्ची थी। वह एक घरेलू सहायिका (हेल्पर) थी, जो सुश्री नुशी के साथ काम करती थी। वह उसके भतीजे से शादी करना चाहती थी जिसे मथुरा के भाई ने स्वीकार नहीं किया। उसने स्थानीय थाने में शिकायत की कि उसके भतीजे (अशोक) ने मथुरा का किडनैप किया है।

मथुरा और अशोक दोनों के घरवालों को जाने के लिए कहा गया और मथुरा के साथ 2 पुलिसकर्मियों ने रेप किया। सेशंस कोर्ट ने कहा कि यह रेप की श्रेणी में नहीं आता और उन्होंने यह कहा कि उसे संभोग की आदत थी और केवल संभोग ही रेप नहीं हो सकता।

बाद में सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि मथुरा ने उन कार्यो का कोई विरोध नहीं किया और उसके शरीर पर कोई निशान नहीं थे। इसमें कहा गया है मथुरा को संभोग की आदत हो सकती है और हो सकता है कि उसने पुलिस को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए बोला हो।

इस तरह की घोषणा के बाद, प्रोफेसरों द्वारा लिखे गए कई पत्र सुप्रीम कोर्ट में चले गए, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ नागरिकों द्वारा विभिन्न समितियों का गठन किया गया, देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके परिणामस्वरूप, इंडियन पीनल कोड में एक अमेंडमेंट किया गया।

सेक्शन 375 रेप को परिभाषित करती है जबकि सेक्शन 376 रेप  के लिए सजा को परिभाषित करती है। जब कोई पुरुष किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना उसके वजाइना, माउथ, यूरेथ्रा और एनस में अपने पेनिस का प्रवेश करता है तो उसे रेप कहा जाता है। कभी-कभी, रेप का अपराध तब भी माना जाता है जब महिला ने विभिन्न स्थितियों में सहमति दी हो जैसे:

  1. जब मौत या चोट के डर से उसे या उस व्यक्ति को, जिसके बारे में वह चिंतित है, मजबूर करके उसकी सहमति प्राप्त की जाती है।
  2. जब वह 18 वर्ष से कम उम्र की होती है।
  3. जब वह किसी दूसरे पुरुष को अपना पति मानकर सहमति देती है।
  4. जब महिला सहमति देने के दौरान विकृत (अनसाउंड) दिमाग या नशे में हो।

रेप,  महिलाओं के खिलाफ एक जघन्य अपराध है जो न केवल महिलाओं को शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी प्रभावित करता है। रेप न केवल एक महिला की निजता और पवित्रता के अधिकार पर अवैध आक्रमण है, बल्कि उसके सम्मान के लिए एक गंभीर चोट भी है। यह उसके विवेक (कॉनसाइंस) पर एक दर्दनाक और अपमानजनक प्रभाव छोड़ता है, उसके आत्मसम्मान और गरिमा (डिग्निटी) को ठेस पहुंचाता है, रेप न केवल एक महिला के खिलाफ अपराध बल्कि पूरे समाज के खिलाफ अपराध है। यह एक महिला के सबसे महत्वपूर्ण अधिकार यानी उसकी गरिमा, सम्मान, प्रतिष्ठा (रेप्युटेशन), और कम से कम उसकी शुद्धता पर एक न हटने वाला निशान छोड़ देता है। यह एक महिला के पूरे मनोविज्ञान को नष्ट कर देता है और उसे एक गहरे भावनात्मक (इमोशनल) संकट में धकेल देता है।

इंडियन पीनल कोड में दो सब-सेक्शन के तहत रेप के लिए सजा का प्रावधान है।

  • सेक्शन 376(1) न्यूनतम 7 साल के कठोर कारावास की सजा का प्रावधान करती है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • सेक्शन 376(2) कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान करती है जो या तो आजीवन कारावास, या जुर्माना, या यहां तक ​​कि मौत की सजा तक हो सकती है।

राम कृपाल बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश, में पीड़िता घास लेने खेत में गई थी। वापस आते समय आरोपी ने बीच-बचाव किया और शारीरिक संबंध बनाने का प्रस्ताव रखा। मना करने पर आरोपी ने जबरन शारीरिक संबंध बनाए। यह माना गया कि रेप के अपराध के इस मामले में, महिला अंग में पुरुष अंग का प्रवेश एक अनिवार्य शर्त है जो इस मामले में हुआ था, और इसलिए रेप के अपराध के लिए आरोपी को दोषी ठहराया जाना उचित था।

क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट, 1983 लाया गया था।

  • इसके अनुसार; अगर पीड़िता कहती है कि उसने संभोग के लिए सहमति नहीं दी तो इसको दुबारा साबित नहीं किया जा सकता।
  • इसने सेक्शन 376A, 376B, 376C और 376D जैसे प्रावधान किए।
  • हिरासत में किये गए रेप को दंडनीय बनाया।
  • एक बार संभोग साबित हो जाने पर सबूत का बोझ (बर्डन ऑफ़ प्रूफ) आरोप लगाने वाले से आरोपी पर स्थानांतरित (ट्रांसफर) कर दिया गया।
  • पीड़िता की पहचान उजागर करने पर रोक लगाई गयी।
  • इन-कैमरा कार्यवाही शुरू की गयी।
  • कड़ी सजा के प्रावधान दिए गए।

क्रिमिनल इंटिमीडेशन, इंसल्ट और अन्नोयेंस

सेक्शन 509: शब्द, इशारा  या कोई कार्य करना जिसका उद्देश्य महिलाओं की मॉडेस्टी का अपमान करना है

कोई व्यक्ति जो किसी महिला की मॉडेस्टी का अपमान करने का इरादा रखता है, शारीरिक रूप से नहीं बल्कि इशारों, कार्यों के माध्यम से या किसी भी शब्द का उच्चारण करके, महिला की निजता में बाधा डालना, सेक्शन 509 के तहत अपराध है।

इंग्रेडिएंट्स:

  1. पुरुष की मंशा स्त्री की मॉडेस्टी भंग करने की होनी चाहिए।
  2. यह ध्वनि, शब्दों, इशारों आदि का उच्चारण करके उसकी निजता में घुसपैठ करके किया जाना चाहिए।

विवाह से संबंधित अपराध

सेक्शन  प्रावधान  सजा
सेक्शन 494 पुनर्विवाह 7 साल की कारावास, और जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा। 
सेक्शन 498 विवाहित महिला को बहकाना या ले जाना या डिटेन करना 2 साल की कैद या जुर्माना या दोनों।
सेक्शन 498-A डाउरी क्रूरता 3 साल की कैद और जुर्माना भी देना होगा।

सेक्शन  494: पुनर्विवाह

जो कोई भी पति या पत्नी पुनर्विवाह करता है, ऐसा विवाह अमान्य होगा और गलत करने वाले को दंडित किया जाता है।

सेक्शन 498: एक विवाहित महिला को बहकाना या ले जाना या डिटेन करना

जो कोई  किसी महिला को डिटेन करता या छुपाता है यह जानते हुए कि वह किसी अन्य पुरुष की पत्नी है या जो उसके पति की ओर से उसके साथ है, इस आशय से की वह किसी भी पुरुष के साथ अवैध संभोग कर सकती है, उसे अपराध कहा जाता है।

इंग्रेडिएंट्स:

  1. महिला को किसी पुरुष द्वारा किसी अन्य पुरुष (उसके पति) से या किसी भी पुरुष से, जो उसके पति की ओर से उसके साथ हो, बहकावे में आना चाहिए।
  2. पुरुष को यह विश्वास करने का ज्ञान होना चाहिए कि वह दूसरे पुरुष या किसी अन्य पुरुष की पत्नी के साथ है।
  3. किसी अन्य पुरुष के साथ अवैध संबंध बनाने के इरादे से उसे फुसलाना।

सेक्शन 498-A- डाउरी क्रूरता

यदि पति या पति का कोई रिश्तेदार महिला (पुरुष की पत्नी) के साथ कोई क्रूरता करता है, तो वह एक अपराध माना जाता है।

अरुण व्यास बनाम अनीता व्यास (1999) 4 एससीसी 690:

यह माना गया कि सेक्शन 498-A का सार क्रूरता है और जब हर बार एक महिला के साथ क्रूरता की जाती है, तो उसके पास एक नया प्रारंभ होना चाहिए।

क्रूरता को सेक्शन 498A के एक्सप्लनेशन के तहत परिभाषित किया गया है। किसी महिला को पति या पति के संबंधियों द्वारा क्रूरता का शिकार होने पर, उसके पति और पति के संबंधियों को अधिकतम 3 साल की कैद और जुर्माना भी देना होगा।

रसेल बनाम रसेल में, क्रूरता को ऐसे चरित्र के आचरण (कंडक्ट) के रूप में परिभाषित किया गया था, जिससे जीवन, अंग, या स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक, या इसकी उचित आशंका (अप्प्रेहेंशन) को खतरा हो। क्रूरता का अर्थ है कठोर आचरण और ऐसी तीव्रता (इंटेंसिटी) और दृढ़ता (पर्सिस्टेंस) जो पीड़ा, यातना, या संकट या किसी भी पक्ष के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य की वजह से, पति या पत्नी के लिए विवाह को कायम रखना असंभव बना देती हो। क्रूरता का अर्थ है “उचित आशंका” कि पति या पत्नी के लिए एक दूसरे के साथ रहना हानिकारक होगा।

शोबा रानी बनाम मधुकर रेड्डी में, अदालत ने देखा है कि क्रूरता मानसिक या शारीरिक, जानबूझकर या अनजाने में हो सकती है। यदि आचरण स्वयं सिद्ध या स्वीकार किया जाता है तो क्रूरता स्थापित की जाएगी। क्रूरता में इरादा एक आवश्यक तत्व नहीं है।

अन्य अपराध

सेक्शन 299: कल्पेबल होमीसाइड

सेक्शन 299 के तहत, जो कोई किसी इरादे से किसी दूसरे की मौत का कारण बनता है और यह जानते हुए कार्य करता है कि इससे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है या कोई शारीरिक चोट लग सकती है, तो यह माना जाता है की उसने कल्पेबल होमीसाइड का अपराध किया है और उसे दंडित किया जाता है।

इंग्रेडिएंट्स:

  1. मेन्स रीआ की उपस्थिति होनी चाहिए।
  2. एक्टस रीअस उपस्थित होना चाहिए।
  3. पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। ज्ञान, इरादे से अलग है। एक व्यक्ति यह जानते हुए कि उसका कार्य एक व्यक्ति को मार डालेगा और जानबूझकर उस कार्य को कर रहा है।

सत्यदेव व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश,

आरोपी जानता था कि अगर वह ऐसा करता है तो यह गर्भवती महिला का मर्डर हो सकता है, लेकिन वह तब भी अपने कार्य को अंजाम देता है। महिला तो बच जाती है लेकिन उसका बच्चा मर जाता है। आरोपी को आई.पी.सी. की सेक्शन 299 के तहत जिम्मेदार ठहराया जाता है।

सेक्शन 300: मर्डर

सेक्शन 300 के तहत, जो कोई किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या चोट लगाने के आशय से कोई कार्य करता है यह जानते हुए भी की उस कार्य से मृत्यु को सकती है कि और यदि कारित शारीरिक चोट किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है, तो इसे मर्डर कहा जाता है और सेक्शन 302 के अनुसार अपराधी आजीवन कारावास से दंडित किया जाता है और जुर्माना भरने के लिए भी उत्तरदायी है।

इंग्रेडिएंट्स:

  1. मेन्स रीआ होना चाहिए।
  2. एक्टस रीआ होना चाहिए।
  3. इरादा और कार्य एक साथ किया जाना चाहिए।
  4. कार्य और इरादा एक साथ काम करना चाहिए।
  5. कार्य को इच्छित नुकसान का कारण बनना चाहिए।

एसिड अटैक के खिलाफ अपराध

सेक्शंस  प्रावधान  सजा 
सेक्शन 326 A  एसिड के प्रयोग से अपनी इच्छा से गंभीर चोट पहुँचाना। 10 साल की सजा जो आजीवन कारावास तक हो सकती है, और जुर्माने के साथ।
सेक्शन 326 B अपनी इच्छा से एसिड फेंकना या फेंकने का प्रयास करना। 5 साल की सजा जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा। 

सेक्शन 326 A : एसिड के प्रयोग से अपनी इच्छा से गंभीर चोट पहुँचाना

कोई भी व्यक्ति, जो गंभीर चोट पहुंचाने के इरादे से एसिड या किसी अन्य माध्यम से गंभीर चोट पहुंचाकर, किसी व्यक्ति को विकृत (डिस्फ़िगर) करता है, उसे दंडित किया जाता है।

सेक्शन 326 A: अपनी इच्छा से एसिड फेंकना या फेंकने का प्रयास करना

कोई भी व्यक्ति जो एसिड फेंकने का प्रयास करता है, या किसी अन्य माध्यम से, किसी व्यक्ति के विकृति होने का कारण बनता है या यह जानता है कि इस तरह के कार्य से वह विकृति हो सकती है, उसे अपराध कहा जाता है और उसे दंडित किया जाता है।

परिवर्तन केंद्र बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, 2016 3 एस.सी.सी. 571:

इस मामले में, बिहार की एक दलित लड़की एसिड अटैक का शिकार हो गई थी, उन्हें स्टेट गवर्नमेंट से कोई कम्पन्सेशन नहीं मिला। तब यह निर्णय लिया गया कि अदालत स्टेट गवर्न्मेंट पर 3 लाख तक का मुआवजा देने पर रोक नहीं लगाती है, इससे ज्यादा मुआवजा गवर्नमेंट दे सकती है।

किडनैपिंग, ट्रैफिकिंग और स्लेवरी 

सेक्शंस  प्रावधान  सजा
सेक्शन 361 वैध संरक्षकता (गार्जियनशिप) से किडनैप करना।  7 साल की कारावास और जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा
सेक्शन 366

सेक्शन 366 A

सेक्शन 366 B

किसी महिला को किडनैप, ऐब्डक्ट या इंड्यूस करना

नाबालिग लड़की की खरीद (प्रोक्योरेशन)

विदेश से लड़की का आयात (इम्पोर्टेशन)

10 साल का कारावास और जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा। 

10 साल का कारावास और जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा

10 साल का कारावास और जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा

सेक्शन 372 प्रॉस्टिट्यूशन के लिए नाबालिग को बेचना 10 साल का कारावास और जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा

 

सेक्शन 361: वैध संरक्षकता से किडनैप करना

18 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़की को, अस्वस्थ दिमाग की लड़की को उसके या उसके संरक्षक की सहमति के बिना जबरन ले जाना, अपराध माना जाता है।

इंग्रेडिएंट्स:

  1. व्यक्ति को किडनैप कर लिया जाना चाहिए।
  2. आरोपी के पास यह जानने की उचित पारदर्शिता (फोरसीइंग) होनी चाहिए कि पीड़ित को उसके द्वारा या उसके किसी कृत्य से किडनैप कर लिया था।
  3. आरोपी को किडनैप की जानकारी थी इसलिए वह सक्रिय (एक्टिव) रूप से किडनैप किए गए व्यक्ति को छुपाता है।

सेक्शन 366: किसी महिला को किडनैप, ऐब्डक्ट या इंड्यूस करना

कोई भी व्यक्ति जो किसी महिला का किडनैप और एब्डक्शन करता है और उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध शादी करने के लिए मजबूर करता है या उसे संभोग करने के लिए मजबूर करता है, या यह जानकर किडनैप करता है की उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध शादी करने या किसी के साथ संभोग करने के लिए मजबूर किया जाएगा, तो वह अपराध माना जाता है। 

सेक्शन 366 A: नाबालिग लड़की की खरीद करना

जो कोई भी नाबालिग लड़की को किसी स्थान पर जाने और कोई काम करने के लिए प्रेरित करता है, यह जानते हुए कि यह उसे किसी अन्य व्यक्ति के लिए अवैध संभोग करने के लिए मजबूर कर सकता है, उसे दंडित किया जाएगा।

जिनीश लाल शाह बनाम स्टेट ऑफ बिहार, (2003) 1 एस.सी.सी. 605

इस मामले में यह कहा गया की, आरोपी के द्वारा की गयी जबरदस्ती या इंड्यूस्मेन्ट का उचित सबूत देना होगा। यदि नहीं, तो आरोपी को बरी कर दिया जाएगा। 

सेक्शन 366B: विदेश से लड़की का आयात

जो कोई भी भारत में या भारत के बाहर किसी भी 21 साल से कम उम्र की लड़की का आयात करता है, यह जानकर कि इस तरह के आयात से उसे अवैध संभोग करने के लिए मजबूर किया जाएगा, वह अपराध करता है। 

सेक्शन 372: प्रॉस्टिट्यूशन के लिए नाबालिग को बेचना

जो कोई भी 18 वर्ष से कम उम्र की किसी भी महिला को बेचता है, काम पर रखता है, किराए पर देता है, यह जानते हुए कि उसे प्रॉस्टिट्यूशन के लिए या किसी भी अवैध उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, तो यह माना जाता है की उसने अपराध किया है।

सेक्शन 494: पुनर्विवाह

ऊपर चर्चा की गई इंडियन पीनल कोड में महिलाओं के खिलाफ सभी अपराध हैं। महिलाओं को समाज की बुरी गतिविधियों से बचाने के लिए विशेष कानून भी बनाए गए हैं। महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों को मान्यता देने के लिए बनाए गए कुछ विशेष कानूनों का उल्लेख नीचे किया गया है:

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

भारत में महिला के खिलाफ हिंसा उसकी सहोदर (सिबलिंग) बन जाती है। एक महिला अपने जीवन के सभी चरणों को अशांत, समाज के माध्यम से पार करती है। जन्म से पूर्व, जन्म, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था (एडल्टहुड) से लेकर मृत्यु तक। कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो अपने ही घरों में दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं जहां इसे प्राकृतिक रिजर्व का स्थान माना जाता है। हमारे समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराध आज भी जिंदा हैं। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न विशेष और सामान्य कानून लाए गए हैं लेकिन तब भी अपराध में वृद्धि हुई है।

एल.जी.बी.टी.क्यू अधिकारों और एन.ए.एल.एस.ए. निर्णय की मान्यता के साथ, ऐसी संभावनाएँ हैं जहाँ तीसरे लिंग के लोगों को पीड़ित किया जा सकता है और उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा सकता है। इंडियन पीनल कोड, भारत की प्रमुख आपराधिक कोड है और सभी पीड़ितों को आश्रय (शेलटर) देते हुए, अपने सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए लिंग-तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) बनाया जाना चाहिए। दंड के सिद्धांत (प्रीवेंटिव, डेटेरेनेस रिट्रीब्यूशन और रिफॉर्मेशन) सभी मामलों में सार्वजनिक सुरक्षा के लिए और किसी भी अन्य कृत्य को आपराधिक इतिहास से अवतरित (इंकार्नेटिड) होने से रोकने के लिए लागू किया जाना चाहिए।

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