भारत में जाँच एजेंसियाँ

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यह लेख Trisha Prasad द्वारा लिखा गया है। यह लेख भारत में वर्तमान में कार्यरत विभिन्न जांच एजेंसियों की स्थापना, कार्यों, शक्तियों और चुनौतियों का विश्लेषण करता है। भारत में जांच एजेंसियों की अवधारणा (कॉन्सेप्ट) को समझने की कोशिश में, यह लेख जांच एजेंसियों को उन खुफिया एजेंसियों से अलग करता है जिनकी देश के कामकाज में भी प्रमुख भूमिका होती है। इस लेख का अनुवाद Shubham Choube द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

जांच एजेंसियों में संगठनों, प्राधिकरणों (ऑथोरिटी), निकायों (बॉडी) या एजेंसियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होती है जिन्हें विशेष रूप से उचित कानून प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) सुनिश्चित करने, व्यवस्था और न्याय को बढ़ावा देने में सहायता करने और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने के उद्देश्य से जांच और अन्य संबंधित गतिविधियों को अंजाम देने का काम सौंपा जाता है। ये एजेंसियां आम तौर पर किसी अपराध या उसके पीछे की सच्चाई को उजागर करने और अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) के लिए मामला बनाने या किसी भी खतरे को रोकने के लिए जांच करती हैं, साक्ष्य इकट्ठा करती हैं, साक्ष्यों का विश्लेषण करती हैं और अन्य जांच उपाय अपनाती हैं।

भारतीय संदर्भ में, जांच एजेंसियां कानून प्रवर्तन तंत्र का एक अभिन्न अंग हैं और अपराधियों का पता लगाने, जांच करने और उसके बाद मुकदमा चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन एजेंसियों के पास अलग-अलग अधिकार क्षेत्र (जूरिस्डिक्शन) और विशिष्ट जनादेश (मैंडेट) हैं, जो राष्ट्रीय स्तर, राज्य स्तर और विशेष इकाइयों के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर कार्य करते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी एजेंसियां क्रमशः आतंकवाद से लड़ने और प्रमुख अपराधों की जांच करने वाली प्रमुख एजेंसियां हैं। राज्य स्तर पर, अपराध जांच विभाग (सीआईडी) एजेंसियों का एक प्रमुख समूह है जो अपने संबंधित राज्यों की सीमा के भीतर कार्य करते हैं और अपने अधिकार क्षेत्र में किए गए या प्रभावी होने वाले अपराधों के संबंध में जांच करते हैं।

भारत में जांच एजेंसियों के उद्देश्य

भारतीय संदर्भ में और साथ ही विश्व स्तर पर, कानून और व्यवस्था बनाए रखने, अपराधों को रोकने और जांच करने, न्याय को बनाए रखने में सहायता करने और देश के नागरिकों की सुरक्षा की रक्षा करने के उद्देश्य से जांच एजेंसियों की स्थापना की गई है और उन्हें विशिष्ट शक्तियां प्रदान की गई हैं। भारत में जांच एजेंसियों के मूल उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • अपराध का पता लगाना और जांच करना
  • अपराध की रोकथाम
  • आपराधिक गिरोह को नष्ट करना
  • सुरक्षा और पुलिस बलों के सुधार और विकास को सुदृढ़ बनाना और सुविधा प्रदान करना
  • समाज की सुरक्षा और सार्वजनिक सुरक्षा
  • कानूनों के कार्यान्वयन में सहायता करना
  • आतंकवाद सहित राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों का मुकाबला करना
  • जनता के शामिल होने पर जवाबदेही सुनिश्चित करना और पारदर्शिता (ट्रांसपेरेंसी) को बढ़ावा देना।

भारत में जांच एजेंसियां

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई)

सीबीआई भारत में एक जांच एजेंसी है जो भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्य करती है। सीबीआई को प्रमुख अपराधों, भ्रष्टाचार के मामलों, धोखाधड़ी और ऐसे अन्य मामलों की जांच करने का काम सौंपा गया है जिनमें केंद्र सरकार के कर्मचारी या सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय या केंद्र सरकार द्वारा संदर्भित मामले शामिल हैं। यह न्याय, जवाबदेही बनाए रखने और भ्रष्टाचार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इतिहास

सीबीआई के इतिहास और स्थापना का पता विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (एसपीई) से लगाया जा सकता है, जिसे 1941 में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। सरकार को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारी व्यय से जुड़े बढ़ते भ्रष्टाचार को संबोधित करने की आवश्यकता का एहसास हुआ। एसपीई की स्थापना 1941 में सरकार के युद्ध और आपूर्ति विभाग के साथ लेनदेन की जांच करने के लिए की गई थी, जहां भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी प्रमुख थी। अगले वर्ष में, रेलवे पर लेनदेन को शामिल करने के लिए एसपीई का अधिकार क्षेत्र भी बढ़ा दिया गया। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 ने एसपीई पर पर्यवेक्षण को गृह विभाग को स्थानांतरित कर दिया। हालाँकि, जैसा कि हम आज जानते हैं, सीबीआई का गठन केवल भ्रष्टाचार निवारण पर संथानम समिति (1964) की सिफारिशों के परिणामस्वरूप किया गया था, जिसने केंद्रीय सतर्कता आयोग की आवश्यकता और एसपीई को मजबूत करने पर जोर दिया था। सीबीआई की आधिकारिक तौर पर स्थापना 1963 में गृह मंत्रालय के माध्यम से पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से की गई थी। बाद के वर्षों में सीबीआई की भूमिका को न केवल भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी बल्कि अन्य आर्थिक अपराधों और पारंपरिक अपराधों को भी शामिल करने के लिए बढ़ाया गया।

संगठनात्मक संरचना

2019 तक, सीबीआई में 5000 सदस्य, फोरेंसिक टीम के 125 सदस्य और लगभग 250 कानून अधिकारी थे। सीबीआई के प्रशासन का नेतृत्व पुलिस महानिदेशक स्तर का एक आईपीएस अधिकारी करता है, जिसे सीबीआई निदेशक के रूप में नामित किया जाता है। सीबीआई में अन्य सदस्यों के अलावा विशेष निदेशक, पुलिस उप महानिरीक्षक, अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पद के सदस्य भी शामिल हैं।

केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 (सीवीसी अधिनियम) ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में संशोधन किया, जिससे केंद्रीय सतर्कता आयोग को उन मामलों में अधीक्षण की शक्ति मिल गई, जहां भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत एक अपराध की जांच की जा रही है, वहीं विशेष पुलिस प्रतिष्ठान या सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा की शर्तों के प्रावधानों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। सीवीसी अधिनियम के अनुसार, निदेशक का कार्यकाल 2 वर्ष की अवधि के लिए होता है। इसके अलावा, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अनुसार, निदेशक की नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, जिसमें प्रधान मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश, या भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित कोई अन्य न्यायाधीश शामिल होते हैं। यदि लोकसभा में विपक्ष का कोई मान्यता प्राप्त नेता नहीं है, तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता समिति का सदस्य बनेगा।

प्रभाग

  • सीबीआई के भ्रष्टाचार निरोधक प्रभाग को विशेष रूप से सार्वजनिक अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों और किसी भी सार्वजनिक कार्यालय या सार्वजनिक संस्थान में प्राधिकारी पद पर बैठे व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने का काम सौंपा गया है। भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी, गबन (एम्बेजजलेमेंट) या व्यक्तियों, समूहों या संघों द्वारा अपनाए गए किसी अन्य माध्यम के रूप में हो सकता है।
  • सीबीआई का आर्थिक अपराध प्रभाग उन मामलों की जांच करता है जो आर्थिक अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसमें हवाला (मनी लॉन्ड्रिंग), धोखाधड़ी, बैंकिंग घोटाले और अन्य समान सफेदपोश अपराधों (व्हाइटकॉलर क्राइम्स) जैसे अपराधों के लिए पूछताछ, जांच, साक्ष्य एकत्र करना और अभियोजन शामिल है।
  • सीबीआई के विशेष अपराध प्रभाग या क्षेत्र को उन प्रमुख अपराधों की जांच करने का काम सौंपा गया है जो राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय महत्व के हैं। इस मामले में अतिव्यापी क्षेत्राधिकार हो सकता है क्योंकि विशेष अपराध प्रभाग अन्य प्रमुख और गंभीर अपराधों के साथ-साथ आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार जैसे मामलों से भी निपटता है। हालाँकि, इसके कार्य क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय सीमा और साथ ही सबसे उच्च-प्रालेख (हाई-प्रोफाइल) मामलों से निपटने की इसकी क्षमता, इस प्रभाग की शक्तियों, जनादेश और क्षेत्राधिकार को पहले उल्लिखित प्रभागों से अलग बनाती है।
  • अभियोजन निदेशालय को सीबीआई का कानूनी प्रभाग माना जा सकता है। यह जांच की पूरी प्रक्रिया के दौरान कानूनी सलाह और मार्गदर्शन देता है। इस प्रभाग से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि एकत्र किए गए साक्ष्य स्वीकार्य हैं और जांच प्रक्रिया के दौरान सभी कानूनी प्रक्रियाओं और प्रावधानों का पालन किया जाता है।
  • प्रशासन प्रभाग सीबीआई के सामान्य प्रशासन, प्रचालन (लॉजिस्टिक्स) और संगठन का प्रबंधन करता है। इस प्रभाग में विभिन्न उप-विभाग शामिल हैं, जिनमें कानूनी विभाग, मानव संसाधन प्रबंधन विभाग, आईटी विभाग, संसाधन प्रबंधन विभाग, बजट और वित्त, जनसंपर्क आदि शामिल हैं।
  • नीति और समन्वय प्रभाग सीबीआई के कुशल कामकाज के लिए नीतियां, नियम, रूपरेखा, रणनीति और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। यह विभिन्न अनुसंधान और विश्लेषण पहल करता है और सीबीआई के विभिन्न प्रभागों और विभागों के बीच काम का समन्वय (को-ऑर्डिनेट) करता है ताकि उनके बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित किया जा सके और साथ ही दिन-प्रतिदिन के कामकाज के संदर्भ में प्रभागों के बीच अधिक कार्यात्मक और कुशल संबंध सुनिश्चित किया जा सके।
  • केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला सीबीआई के लिए एक महत्वपूर्ण विभाग है क्योंकि यह एजेंसी को फोरेंसिक सहायता प्रदान करता है। यह डीएनए, उंगलियों के निशान (फिंगर प्रिंट), लिखावट, साइबर साक्ष्य आदि सहित विभिन्न भौतिक फोरेंसिक साक्ष्यों का विश्लेषण करता है। यह प्रभाग साक्ष्यों को पुष्ट करने, जांच के उद्देश्य से अपराध दृश्यों को फिर से बनाने और वैज्ञानिक निष्कर्षों के साथ-साथ महत्वपूर्ण विशेषज्ञ साक्ष्य प्रदान करने में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करता है।
  • प्रशिक्षण प्रभाग कौशल, विशेषज्ञता, व्यावसायिकता और व्यक्तिगत विकास को बढ़ाने के उद्देश्य से मौजूदा सीबीआई कर्मियों के साथ-साथ नए रंगरूटों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित करता है। यह प्रभाग सुनिश्चित करता है कि सीबीआई के सभी अधिकारी और सदस्य कानून प्रवर्तन के क्षेत्र में नवीनतम विकास के जानकार बने।

शक्तियाँ और कार्य

समय के साथ, सीबीआई को निम्नलिखित शक्तियां और कार्य प्राप्त हो गए हैं:

  • धोखाधड़ी, हत्या, भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध जैसे गंभीर अपराधों और अन्य मामलों की जांच करना जिन्हें “उच्च-प्रालेख मामले” कहा जा सकता है;
  • सीबीआई और उसके अधिकारियों की शक्तियाँ और कार्य राज्य या केंद्र शासित प्रदेश पुलिस के समान हैं;
  • अपराधों की गहन जांच के लिए भारत में मौजूद अन्य जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करना;
  • संबंधित विभागों के परामर्श से आर्थिक कानूनों के उल्लंघन के संबंध में मामलों को उठाना और जांच करना;
  • जब भी आवश्यक हो, भ्रष्टाचार विरोधी निकायों के साथ-साथ राज्य पुलिस की गतिविधियों का समन्वय करना;
  • अपराधों के आँकड़े बनाए रखें और आवश्यकता पड़ने पर आपराधिक जानकारी प्रसारित करना;
  • इंटरपोल के लिए “राष्ट्रीय केंद्रीय ब्यूरो” के रूप में कार्य करना। इसका मतलब यह है कि सीबीआई भारत से जुड़ी सभी इंटरपोल गतिविधियों के लिए नामित एजेंसी या संपर्क बिंदु है।

जाँच पड़ताल

सीबीआई अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे में आने वाले किसी भी अपराध के बारे में जानकारी मिलने पर अपनी जांच शुरू करती है। हालाँकि, सीबीआई द्वारा अपनी जाँच शुरू करने से पहले निम्नलिखित में से किसी एक शर्त या पूर्वापेक्षा को पूरा करना आवश्यक है।

  • यदि सीबीआई स्वत: संज्ञान (सुओ-मोटो) लेकर जांच शुरू करना चाहती है तो वह ऐसा केवल केंद्र शासित प्रदेशों में ही कर सकती है। यह उन अपराधों तक ही सीमित है जो दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 3 के तहत केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से अधिसूचित हैं।
  • यदि सीबीआई किसी अन्य राज्य के क्षेत्र में किसी अपराध की जांच करना चाहती है, तो राज्य की पूर्व सहमति लेनी होगी। केंद्र सरकार भी किसी राज्य में किसी अपराध की जांच करने का निर्देश तभी दे सकती है, जब संबंधित राज्य सरकार जांच के लिए सहमति दे। विचाराधीन सहमति एक विशिष्ट सहमति हो सकती है जो सीबीआई द्वारा अनुरोध किए जाने पर मामले-दर-मामले के आधार पर दी जा सकती है या एक सामान्य सहमति जो आमतौर पर छह महीने से एक वर्ष की अवधि के लिए सीबीआई को दी जाती है और समय-समय पर नवीनीकृत की जाती है। सामान्य सहमति वापस ली जा सकती है, जिससे सीबीआई को विशिष्ट सहमति प्राप्त किए बिना नए मामलों की जांच करने से रोका जा सकता है।
  • यदि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी अपराध की जांच के लिए सीबीआई को आदेश देते हैं, तो संबंधित राज्य सरकार को जांच के लिए सहमति देने की कोई आवश्यकता नहीं है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए)

एनआईए भारत में एक विशेष जांच एजेंसी है जिसे आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों से निपटने का काम सौंपा गया है। सरल शब्दों में, एनआईए भारत में प्रमुख आतंकवाद विरोधी निकाय है। यह स्वायत्त (ऑटोनोमस) निकाय 2009 में केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किया गया था और गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में कार्य करता है। देश की अन्य जांच एजेंसियों की तुलना में एनआईए का दायरा और क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र अपेक्षाकृत (कंपेयर्ड) व्यापक (वाइडर) है।

इतिहास

एनआईए का गठन उसी वर्ष मुंबई में हुए 26/11 आतंकवादी हमले के परिणामस्वरूप 31 दिसंबर 2008 को किया गया था। 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले में लगभग 150 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। ये हमले उस समय देश में मौजूद खुफिया जानकारी, जांच और सुरक्षा उपायों में कमी को दर्शाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भारत सरकार के निकाय और देश में समग्र सुरक्षा प्रबंधन आतंकवादी हमलों की घटना और परिणामों की भविष्यवाणी करने, रोकने और उनसे निपटने के लिए कम तैयार थे।

दिसंबर 2008 में, राष्ट्रीय जांच एजेंसी विधेयक 2008 को तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा संसद में पेश किया गया था। विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई और इसे आधिकारिक तौर पर 31 दिसंबर, 2008 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 के रूप में अधिनियमित किया गया। बाद में देश में आतंकवाद का मुकाबला करने के उद्देश्य से, अधिनियम के अनुसार एनआईए की स्थापना की गई।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की विशेषताएं

अधिनियम में 5 अध्याय, या 26 खंड, और 1 अनुसूची शामिल है;

  • यह अधिनियम संपूर्ण भारत पर लागू है। अधिनियम की प्रयोज्यता (ऍप्लिकेबिलिटी) भारतीय क्षेत्र के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों के साथ-साथ सरकार की सेवा में शामिल किसी भी व्यक्ति पर भी लागू होती है, भले ही वे भारत के भीतर या बाहर मौजूद हों। इसके अतिरिक्त, अधिनियम के प्रावधान भारत में पंजीकृत जहाजों और विमानों पर सवार व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं;
  • अधिनियम उन अपराधों की जांच और मुकदमे की प्रक्रिया प्रदान करता है जो एनआईए के अधिकार क्षेत्र में आते हैं;
  • अधिनियम विशेष रूप से केंद्र सरकार द्वारा आतंकवाद विरोधी निकाय के रूप में एनआईए की स्थापना का प्रावधान करता है;
  • अधिनियम केंद्र या राज्य सरकार द्वारा कुछ सत्र न्यायालयो को “विशेष न्यायालयो” के रूप में गठित करने या पदनाम देने का प्रावधान करता है, जिनसे इन न्यायालयो की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के बारे में विस्तार से बताने की भी उम्मीद की जाती है। ऐसा पदनाम बनाने से पहले संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किया जाना चाहिए;
  • अधिनियम से जुड़ी अनुसूची उन अपराधों की एक सूची प्रदान करती है जो 8 मौजूदा क़ानूनों के अंतर्गत आते हैं जिनकी जांच एनआईए द्वारा की जा सकती है।

संगठनात्मक संरचना

  • केंद्र सरकार एनआईए पर पर्यवेक्षी भूमिका निभाती है, जो गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करती है।
  • एनआईए का नेतृत्व एक आईपीएस अधिकारी करता है जिसे महानिदेशक के रूप में नामित किया जाता है और वह पुलिस महानिदेशक के समान शक्तियों का निर्वहन करता है।
  • महानिदेशक की सहायता एक विशेष या अतिरिक्त महानिदेशक द्वारा की जा सकती है।
  • एनआईए में महानिरीक्षक भी होते हैं जो महानिदेशकों की सहायता करते हैं। इन आईजी को अक्सर एनआईए की उन 19 क्षेत्रीय शाखाओं का नेतृत्व या पर्यवेक्षण (सुपरवाइसिंग) करने का काम सौंपा जा सकता है जो आज देश भर में काम कर रही हैं।

शक्तियाँ और कार्य

एनआईए को निम्नलिखित शक्तियां और कार्य निहित हैं:

  • देश के किसी भी हिस्से में मामलों और अपराधों की जांच करना;
  • उन मामलों की जांच करना जो भारत की संप्रभुता (साव्रन्टी), अखंडता (इंटीग्रिटी) और सुरक्षा को खतरे में डालते हैं, साथ ही ऐसे किसी भी कार्य की जांच करते हैं जो अन्य देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण (फ्रेंडली) संबंधों में बाधा डालते हैं;
  • अंतरराष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों को लागू करने के लिए बनाए गए कानून के उल्लंघन की जांच करना;
  • आतंकवादी गतिविधियों, हवाई जहाजों और जहाजों के अपहरण, बम विस्फोट, मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग), साइबर आतंकवाद, आदि की जांच करना;
  • त्वरित जांच प्रक्रिया के लिए केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति से जांच को राज्य सरकार को स्थानांतरित करें।

जाँच पड़ताल

यदि निम्नलिखित प्रक्रिया या शर्तें पूरी होती हैं तो एनआईए के पास जांच करने की शक्ति है:

एफआईआर या संप्रेषण (रेफरल)

जब किसी अनुसूचित अपराध (एनआईए अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत अपराध) से संबंधित एफआईआर राज्य पुलिस के पास दर्ज की जाती है, तो राज्य पुलिस ऐसी जानकारी राज्य सरकार को भेज देगी। इसके बाद राज्य सरकार इसे केंद्र सरकार को भेजेगी। बाद वाले के पास विश्लेषण करने और यह निर्धारित करने के लिए 15 दिनों की अवधि होती है कि क्या एफआईआर में शामिल अपराध एक अनुसूचित अपराध है। यदि केंद्र सरकार संतुष्ट हो जाती है कि कोई अनुसूचित अपराध है, तो एनआईए को उक्त अपराध की जांच शुरू करने का निर्देश दिया जाएगा।

केंद्र सरकार अपराध का स्वत: संज्ञान लेती है

केंद्र सरकार भी किसी अपराध का स्वत: संज्ञान ले सकती है यदि उसे लगता है कि कोई अनुसूचित अपराध हुआ है। संज्ञान लेने पर एनआईए को जांच शुरू करने का निर्देश दिया जायेगा।

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी)

बीपीआरएंडडी गृह मंत्रालय के तहत एक संगठन है जो भारत में पुलिस बलों की दक्षता (एफिशिएंसी) और व्यावसायिकता (प्रोफेशनलिज़्म) को आधुनिक बनाने और सुधारने के उद्देश्य से अनुसंधान और नीति-निर्माण गतिविधियां चलाता है।

इतिहास

बीपीआरएंडडी की स्थापना भारत सरकार द्वारा 1970 में गृह मंत्रालय के तहत की गई थी, जो प्रभावी रूप से मौजूदा पुलिस अनुसंधान और सलाहकार परिषद की जगह ले रही थी। यह कदम भारत के पुलिस बलों को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से उठाया गया था।

संगठनात्मक संरचना

  • महानिदेशक का कार्यालय बीपीआरएंडडी का प्रमुख होता है। समग्र नेतृत्व, प्रबंधन, निर्देशन या अंतिम निर्णय लेने का कार्य इस प्रभाग के पास है। महानिदेशक का कार्यालय एक पर्यवेक्षी भूमिका निभाता है और संगठन की नीतियों, नियमों, पहलों और उद्देश्यों के कार्यान्वयन की देखरेख करता है। यह प्रभाग अन्य सरकारी एजेंसियों और हितधारकों के साथ बातचीत में बीपीआरएंडडी का प्रतिनिधित्व करने का भी प्रभारी है।
  • अनुसंधान प्रभाग को अपराध के विभिन्न पहलुओं, पुलिसिंग प्रवृत्तियों और स्वरूप, कानून प्रवर्तन और आपराधिक न्याय के मुद्दों के संबंध में अनुसंधान, विश्लेषण, मूल्यांकन और सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया है। प्रभाग द्वारा अपने शोध एवं अध्ययन के आधार पर सिफ़ारिशें की जाती हैं।
  • बीपीआरएंडडी का विकास और आधुनिकीकरण प्रभाग भारत में पुलिस बलों की आधुनिक कार्यप्रणाली, प्रौद्योगिकी और कुशल विकास को बढ़ावा देने पर काम करता है। प्रचार-प्रसार के अलावा, विभाग देश में संबंधित पुलिस बलों में नई तकनीक और प्रथाओं की तैनाती की सुविधा भी प्रदान करता है।
  • प्रशासनिक प्रभाग एजेंसी के प्रशासनिक, वित्तीय, साजो-सामान और सामान्य संगठनात्मक पहलुओं से संबंधित है। यह मानव संसाधन, संसाधन प्रबंधन, बजट आदि का प्रभारी है।
  • प्रशिक्षण प्रभाग पुलिस बल के सभी स्तरों पर मौजूदा कर्मियों के साथ-साथ नए रंगरूटों के लाभ के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं, अभ्यास और अन्य पहल योजना भी वितरित करता है। यह प्रभाग आवश्यकता पड़ने पर मापदंड (मॉड्यूल) और प्रशिक्षण सामग्री भी बनाता है और इसे नियमित आधार पर अद्यतन (अपडेट) करता है।

शक्तियाँ और कार्य

  • भारत में पुलिस बलों की आवश्यकताओं और समस्याओं की पहचान करना;
  • भारतीय पुलिस बलों में सुधार से संबंधित अनुसंधान और अध्ययन करना;
  • चुनौतियों पर काबू पाने और पुलिस बल में सुधार के तरीके सुझाना;
  • नवीनतम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ वैश्विक मानकों के साथ बने रहना;
  • भारतीय पुलिस बलों के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की निगरानी करना और उसे बनाए रखना;
  • पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के साथ-साथ अन्य सुधारात्मक सुविधाओं को सुनिश्चित करने में सहायता करना;
  • उपकरण और बुनियादी ढांचे के लिए मानकों और गुणवत्ता आवश्यकताओं के साथ गृह मंत्रालय की सहायता करना;
  • राष्ट्रीय पुलिस मिशन के कार्यों का समन्वय करना।

अपराध जांच विभाग (सीआईडी)

सीआईडी राज्य स्तर की एक जांच एजेंसी है। इसे राज्य पुलिस की एक विस्तारित जांच शाखा माना जा सकता है। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक राज्य की अपनी सीआईडी होती है जो राज्य पुलिस के अधीन और उसके सहयोग से काम करती है। सीआईडी को उन जटिल मामलों की जांच करने का काम सौंपा गया है जो संबंधित राज्य की सीमा के भीतर पुलिस की नियमित शक्तियों से परे हैं।

इतिहास

सीआईडी की उत्पत्ति का पता 1902 में लगाया जा सकता है, जब ब्रिटिश सरकार ने फ्रेज़र आयोग की सिफारिशों के आधार पर इसे पहली बार भारत में स्थापित किया था। यह ब्रिटिश पुलिस बलों के आपराधिक जांच विभागों पर आधारित है, जिन्हें पहली बार 1878 में ब्रिटेन में स्थापित किया गया था। पहली सीआईडी आधिकारिक तौर पर बॉम्बे में स्थापित की गई थी और 1905 से कार्यात्मक है।

संगठनात्मक संरचना

सीआईडी का नेतृत्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर का एक अधिकारी करता है। सीआईडी के भीतर अन्य पदो में अधीक्षक, उपाधीक्षक, निरीक्षक और उप-निरीक्षक भी शामिल हैं। सीआईडी के सभी अधिकारियों या सदस्यों को आम तौर पर “जासूस” के रूप में नामित किया जाता है, और यह उनके द्वारा धारण किए गए पुलिस पद से पहले उनके पदनामों में भी परिलक्षित (डेसिग्नेटेड) होता है। अन्य अधिकारियों में कानूनी सलाहकार, मंत्रालयिक कर्मचारी और लेखा परीक्षक (ऑडिटर्स) भी शामिल हैं।

शक्तियाँ और कार्य

  • राज्य और जिला स्तर पर जटिल आपराधिक मामलों की जांच जो अक्सर स्थानीय पुलिस बलों की शक्तियों या क्षमताओं से परे होती है;
  • विशेष कौशल, विशेषज्ञता और संसाधनों की आवश्यकता वाले मामलों की जांच और समाधान में स्थानीय पुलिस की सहायता करना;
  • नशीले पदार्थों, मानव तस्करी, सफेदपोश अपराधों आदि जैसे विशिष्ट प्रकार या श्रेणियों के अपराधों से निपटने के लिए विशेष इकाइयों की स्थापना और प्रशासन करना;
  • प्रकृति में बहु-क्षेत्राधिकार वाले अपराधों की जांच के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों में कार्य करने वाली कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच समन्वय और सहयोग की सुविधा प्रदान करना;
  • जांच कौशल को बढ़ाने और अपराध का पता लगाने और रोकथाम में उपयोग की जाने वाली नई प्रौद्योगिकियों और तरीकों पर पुलिस कर्मियों को अद्यतन करने के लिए स्थानीय पुलिस बलों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करना;
  • एक जांच एजेंसी के रूप में, सीआईडी की भूमिका मुख्य रूप से जटिल अपराधों का पता लगाने और जांच करने पर केंद्रित है। साथ ही, सीआईडी संवेदनशीलता के आधार पर समाज के सभी वर्गों में प्रासंगिक हितधारकों के साथ जुड़कर अपराधों की रोकथाम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सीआईडी को अपराधों को रोकने के उद्देश्य से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने और बाहरी पहुंच (आउटरीच) कार्यक्रम चलाने का भी काम सौंपा गया है।
  • राज्य सरकार या पुलिस महानिदेशक द्वारा सौंपे गए विशिष्ट वर्गों के अपराधों का पंजीकरण, पता लगाना, जांच और उसके बाद मुकदमा चलाना;
  • मानव तस्करी जैसे मामलों में बचाव अभियान चलाना।

सीबीआई, एनआईए और सीआईडी के बीच अंतर

क्र.सं.  आधार एनआईए सीबीआई सीआईडी
1. क्षेत्राधिकार आतंकवाद और इसी तरह के राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों से निपटने में विशेषज्ञता वाली राष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसी। हत्या और धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराधों की जांच और अभियोजन में विशेषज्ञता वाली राष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसी। राज्य स्तरीय जांच एजेंसी जो राज्यों के भीतर जटिल आपराधिक मामलों से निपटती है।
2. प्राथमिक कार्य आतंकवाद, विद्रोह और राष्ट्रीय संप्रभुता और सुरक्षा के लिए अन्य खतरों का मुकाबला करने के तरीकों की जांच करना और उन्हें शामिल करना। प्रमुख अपराधों और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करना जिनमें केंद्र सरकार के कर्मचारी या सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों द्वारा संदर्भित किसी अन्य मामले शामिल हों। किसी राज्य की क्षेत्रीय सीमा के भीतर मानव तस्करी, हत्या, साइबर अपराध आदि जैसे अपराधों की जांच करना, मुकदमा चलाना और रोकना।
3. संरचना गृह मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त एजेंसी। इसका नेतृत्व महानिदेशक स्तर का एक अधिकारी करता है। केंद्र सरकार के अधीन कार्मिक, व्यक्तिगत शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्य करता है। इसका नेतृत्व एक निदेशक करता है और इसे विभिन्न प्रभागों में विभाजित किया जाता है जो या तो विशिष्ट अपराधों या सीबीआई के आंतरिक प्रशासन और संगठन से निपटते हैं। संबंधित राज्य की राज्य पुलिस के अधीन कार्य। प्रत्येक सीआईडी इकाई का नेतृत्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर का एक अधिकारी करता है और उसका अपना पदानुक्रम होता है।
4. क़ानून और कानूनी प्राधिकारी राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 के तहत सशक्त। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 और लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 जैसे अन्य प्रासंगिक अधिनियमों के तहत सशक्त। आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 जैसे मौजूदा आपराधिक कानूनों के अनुसार अपराधों की जांच करने का अधिकार।
5. समन्वय एवं सहयोग राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और अन्य देशों में समकक्षों के साथ सहयोग करता है। व्यक्तिगत मामलों की आवश्यकताओं के आधार पर राज्य पुलिस, राष्ट्रीय और राज्य खुफिया और कानून-प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग करता है। राज्य के भीतर स्थानीय पुलिस बलों और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग करता है। कुछ मामलों में, सीआईडी अन्य राज्यों में अन्य सीआईडी शाखाओं या अन्य राज्यों में पुलिस बलों के साथ उन मामलों में सहयोग करती है जो प्रकृति में बहु-क्षेत्राधिकार वाले हैं।

 

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)

ईडी भारत में एक आर्थिक खुफिया और जांच एजेंसी है जिसे मुख्य रूप से धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) के प्रावधानों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है।

इतिहास

ईडी की स्थापना का पता 1956 में लगाया जा सकता है। इसे विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आर्थिक मामलों के विभाग के तहत एक इकाई के रूप में स्थापित किया गया था। पिछले कुछ वर्षों में ईडी का दायरा पीएमएलए और फेमा जैसे अन्य आर्थिक नियमों को शामिल करने के लिए विस्तारित हुआ है।

शक्तियाँ और कार्य

  • विदेशी मुद्रा की तस्करी, अवैध लेनदेन और अनधिकृत विदेशी निवेश जैसे विदेशी मुद्रा उल्लंघनों की जांच करना;
  • धोखाधड़ी और हवाला के प्रमुख मामलों के साथ-साथ कर चोरी और अपराध के रूप में वर्गीकृत गतिविधियों के माध्यम से आय या “आय” उत्पन्न करने के अन्य रूपों की जांच करना;
  • अवैध तरीकों से अर्जित की गई या वित्तीय धोखाधड़ी और हवाला में शामिल किसी भी संपत्ति को फ्रीज करना और बाद में जब्त करना;
  • फेमा के प्रावधानों के अनुसार, ईडी के पास किसी भी व्यक्ति या स्थान की जांच करने, किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने, किसी भी स्थान या किसी व्यक्ति की तलाशी लेने और संपत्ति जब्त करने की शक्ति है।

संगठनात्मक संरचना

ईडी वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के नियंत्रण में कार्य करता है। निदेशालय का नेतृत्व एक निदेशक करता है जिसे अतिरिक्त निदेशकों, संयुक्त निदेशकों और उप निदेशकों के साथ-साथ अन्य सहायक कर्मचारियों द्वारा सहायता प्रदान की जा सकती है।

आयकर महानिदेशालय (अन्वेषण)

आयकर महानिदेशालय (अन्वेषण) वित्त मंत्रालय के तहत एक एजेंसी है जिसे आयकर कानूनों के किसी भी उल्लंघन की जांच करने का कर्तव्य सौंपा गया है, जिसमें हवाला, धोखाधड़ी और कर चोरी शामिल है, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) का जांच विभाग आयकर महानिदेशालय (अन्वेषण) के कामकाज को नियंत्रित करते हुए एक पर्यवेक्षी भूमिका निभाता है। निदेशालय के कार्यालय पूरे भारत के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों में हैं।

इसके अतिरिक्त, नई दिल्ली के साथ-साथ भारत के अन्य प्रमुख शहरों में आयकर महानिदेशालय (खुफिया और आपराधिक जांच) की स्थापना विशिष्ट न्यायक्षेत्रों और विशिष्ट वर्ग के लोगों के बीच आयकर से संबंधित आपराधिक मामलों में खुफिया कार्यों के साथ-साथ जांच कार्यों को करने के लिए की गई थी।

भारत में खुफिया और जांच एजेंसियों के बीच अंतर

क्र.सं आधार जांच एजेंसी  खुफिया एजेंसी
1. प्राथमिक कार्य विशिष्ट अपराधों या अपराधों की जांच करें और अपराधी पर मुकदमा चलाने या उसे दोषी ठहराने के लिए सबूत सहित जानकारी इकट्ठा करें। राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों से निपटने के उद्देश्य से, आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में जानकारी या खुफिया जानकारी इकट्ठा करना और उसकी व्याख्या करना।
2. संचालन का दायरा/क्षेत्राधिकार जांच एजेंसियों का काम का दायरा विशिष्ट क्षेत्राधिकार (राज्य, केंद्र शासित प्रदेश, क्षेत्रीय या केंद्रीय स्तर) के साथ-साथ विशिष्ट विषय मामलों तक ही सीमित होता है। उदाहरण के लिए, एनआईए आतंकवाद-निरोध से संबंधित मामलों से निपटने तक ही सीमित है। ख़ुफ़िया एजेंसियाँ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कार्य कर सकती हैं। ये एजेंसियां देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को सुरक्षित रखने के लिए किसी भी प्रकार की और किसी भी हद तक खुफिया जानकारी या जानकारी एकत्र कर सकती हैं।
3. कार्य की प्रकृति जांच एजेंसियां आम जनता के लिए अपेक्षाकृत अधिक खुले या पारदर्शी तरीके से कार्य करती हैं। किए गए कार्य की प्रकृति अधिक स्पष्ट है और इसमें फोरेंसिक विश्लेषण, पूछताछ, निगरानी, गुप्त ऑपरेशन आदि जैसे तरीकों को अपनाकर अभियोजन के लिए साक्ष्य एकत्र करना शामिल है। ख़ुफ़िया एजेंसियाँ अधिक गुप्त और गोपनीय तरीके से कार्य करती हैं। वे अक्सर विभिन्न खतरों और सुरक्षा जोखिम कारकों के दीर्घकालिक रणनीतिक विश्लेषण में संलग्न होते हैं। गुप्त कार्रवाइयों के माध्यम से संवेदनशील जानकारी एकत्र की जाती है और उसकी व्याख्या की जाती है, जिसमें पैटर्न का विश्लेषण करना, रुझानों का अवलोकन करना और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संभावित खतरों की भविष्यवाणी करना या भविष्यवाणी करना शामिल है।
4. कानून प्रवर्तन गतिविधियों के साथ संबंध जांच एजेंसियां देश में कानून प्रवर्तन में सहायता करती हैं या उसका पूरक बनती हैं। ऐसी एजेंसियों द्वारा किया गया कार्य अक्सर कानून प्रवर्तन गतिविधियों के साथ-साथ चलता है। ख़ुफ़िया एजेंसियाँ कानून प्रवर्तन से स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। हालाँकि, जरूरत पड़ने पर इन एजेंसियों द्वारा कानून प्रवर्तन निकायों के साथ कभी-कभी खुफिया जानकारी साझा की जा सकती है।
5. उदाहरण राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अनुसंधान और विश्लेषण विंग (रॉ), इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी)

 

निष्कर्ष

एनआईए एक विशेष एजेंसी है जो आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित करती है। बड़े अपराधों, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और राष्ट्रीय महत्व वाले अन्य मामलों की जांच करने के लिए एनआईए की तुलना में सीबीआई के पास व्यापक अधिकार क्षेत्र और कार्य क्षेत्र है। इसी प्रकार, सीआईडी भी राज्य पुलिस के सहयोग से कार्य करते हुए राज्य स्तर पर प्रमुख अपराधों और जटिल आपराधिक गतिविधियों से निपटती है। बीपीआरएंडडी एक प्रबुद्ध मंडल (थिंक टैंक) और विकास एजेंसी है जो मुख्य रूप से भारत में पुलिस बलों के सुधार, विकास और आधुनिकीकरण की दिशा में काम करती है। अंत में, ईडी और आयकर महानिदेशालय (अन्वेषण)) आर्थिक मामलों से निपटते हैं। पहला हवाला और आर्थिक धोखाधड़ी जैसे आर्थिक अपराधों से संबंधित है, जबकि दूसरा विशेष रूप से भारत में कर कानूनों के प्रवर्तन और अनुपालन को सुनिश्चित करने से संबंधित है।

निष्कर्षतः, भारत में जांच एजेंसियां जवाबदेही सुनिश्चित करने, कानून के शासन को कायम रखने और राष्ट्रीय और सार्वजनिक सुरक्षा और हितों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एनआईए, सीबीआई, सीआईडी, बीपीआरएंडडी, ईडी और आयकर महानिदेशालय (अन्वेषण) सहित ये जांच एजेंसियां, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, कानून प्रवर्तन और सुरक्षा के एक सामान्य उद्देश्य के साथ विभिन्न शासनादेशों और न्यायक्षेत्रों के तहत कार्य करती हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

क्या कोई राज्य सरकार एनआईए से किसी मामले की जांच करने का अनुरोध कर सकती है?

कोई राज्य सरकार किसी मामले को संदर्भित कर सकती है या केंद्र सरकार के माध्यम से एनआईए से किसी भी मामले की जांच करने का अनुरोध कर सकती है। संबंधित राज्य सरकार को अनुरोध करना चाहिए कि केंद्र सरकार किसी विशिष्ट मामले में जांच की प्रक्रिया एनआईए को सौंप दे, बशर्ते कि यह मानने का पर्याप्त और संतोषजनक कारण हो कि एनआईए अधिनियम के तहत निर्धारित कोई अनुसूचित मामला या अपराध शामिल है।

कोई व्यक्ति सीबीआई के पास शिकायत कैसे दर्ज कर सकता है या कोई जानकारी कैसे दर्ज कर सकता है?

कोई व्यक्ति केवल केंद्र सरकार के कर्मचारियों से जुड़े भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध या विशेष अपराधों के संबंध में शिकायत लेकर सीबीआई से संपर्क कर सकता है। शिकायत दर्ज करने के लिए देश भर के विभिन्न क्षेत्रों और शहरों में स्थित सीबीआई की किसी भी शाखा से संपर्क किया जा सकता है। जानकारी सीबीआई को डाक, एसएमएस, ई-मेल, फोन कॉल, सीबीआई की वेबसाइट या व्यक्तिगत रूप से संबंधित शाखा से संपर्क करके भेजी जा सकती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सीबीआई गुमनाम या छद्म (सूडानमस) नाम से प्राप्त शिकायतों पर विचार नहीं करती है।

क्या विभिन्न जाँच एजेंसियाँ एक दूसरे के साथ सहयोग करती हैं?

ऐसे मामले या स्थितियाँ हैं जिनकी जांच की जा रही समस्या, मामले या स्थिति की जटिल और बहुआयामी प्रकृति के कारण विभिन्न जांच एजेंसियों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करने और समन्वय में काम करने की आवश्यकता होती है। ये सहयोग आम तौर पर सूचना या खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त अभियानों के रूप में होते हैं।

क्या व्यक्ति भारत में जांच एजेंसियों से संपर्क कर सकते हैं?

हाँ, व्यक्ति, जिनमें आम जनता के सदस्य, पीड़ित, गवाह, मुखबिर (इन्फॉर्मन्ट), कानूनी व्यवसायी आदि शामिल हैं, अधिकांश जांच एजेंसियों से या तो उस एजेंसी के अधिकार क्षेत्र से संबंधित किसी भी अपराध के बारे में जानकारी प्रदान करने या स्वयं या किसी और की ओर से शिकायत दर्ज करने के लिए संपर्क कर सकते हैं। अधिकांश एजेंसियों की अपनी हेल्पलाइन, ईमेल-आईडी, डाक पते होते हैं जिन पर शिकायतें या जानकारी भेजी जा सकती हैं। व्यक्ति शिकायत दर्ज करने के लिए शाखा कार्यालयों या एजेंसियों के मुख्य कार्यालय से भी संपर्क कर सकते हैं।

संदर्भ

 

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