महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधो से सुरक्षा के लिए भारतीय कानून

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Indian penal code
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यह लेख गवर्नमेंट न्यू लॉ कॉलेज, इंदौर के Aadarsh Kumar Shrivastava ने लिखा है। इस लेख में महिलाओ के खिलाफ होने वाले अपराध और उनकी सुरक्षा के लिए भारतीय कानूनो पर चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

मानव समाज के निर्माण (क्रिएशन) के बाद से ही महिलाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है और उन्हें हमेशा एक देवी के रूप में सम्मान दिया गया है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य (सिनेरियो) में, दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और कई तरह के अपराध बढ़ते जा रहे है। यह गंभीर चिंता का विषय है और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार (टॉर्चर) और अपराध पूरी मानव जाति के लिए शर्म की बात है। भारत में हर किसी को अपनी मर्जी से जीने और बढ़ने का समान अधिकार है, लेकिन ये अधिकार केवल संविधान और कानून तक सीमित हैं, जिसे व्यावहारिक (प्रैक्टिकल) दुनिया में लागू नहीं किया जाता है, जिसके कारण महिलाओं पर अत्याचार होता है, भारत में महिलाओ ने सदियों से जघन्य (हिनियस) अपराधों का सामना किया है।

महिलाओं की सुरक्षा की आवश्यकता

प्राचीन भारत के सांस्कृतिक (कल्चरल) इतिहास और विभिन्न धार्मिक ग्रंथों से प्राचीन काल की महिलाओं की स्थिति का पता चलता है यानी सैद्धांतिक (थियोरिटिकली) रूप से महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता था और उन्हें हमेशा देवी की तरह सम्मान दिया जाता था, लेकिन पिछली कुछ शताब्दियों में महिलाओं की स्थिति बदल गई और धीरे-धीरे बिगड़ती गई है। ग्लोबल पर्सपेक्टिव में, महिलाओं के खिलाफ अपराध हर मिनट में 3 में से 1 महिला के साथ होता हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे असॉल्ट, उत्पीड़न (हैरेसमेंट), इंटिमेट पार्टनर हिंसा, बलात्कार, इमोशनल अब्यूज आदि हर देश में एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन जाती है। रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत में हर घंटे में महिलाओं के खिलाफ एक अपराध होता है। महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वे अपने घरों में हों या सार्वजनिक स्थानों पर या कार्यस्थल पर।

भारत में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों और अपराधों को देखते हुए देश में महिलाओं के लिए मजबूत कानूनों की आवश्यकता है। यह धारणा (नोशन) कि महिलाएं कमजोर हैं और पुरुषों पर निर्भर हैं, हमारे समाज में गहराई से समाई हुई हैं। एक तरफ हम समाज के साथ आगे बढ़ रहे हैं और अपने विकासशील (डेवलपिंग) देश को आसमान पर ले जा रहे हैं लेकिन महिलाओं के बारे में हमारी सोच और समाज में उनकी जगह अभी भी नहीं बदली है और हम आज भी उन्हें कमाने वाले के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में पर्सपेक्टिव में बदलाव और उन्हें सम्मान और गौरव (डिग्निटी) के साथ समान रूप से बढ़ावा देने की सख्त जरूरत है।

भारत के संबंध में महिलाओं के खिलाफ अपराध 

भारत में अपराध बर्दाश्त करने योग्य नहीं है और गलत काम करने वाले और अपराधी सजा के पात्र हैं। भारतीय संदर्भ (कॉन्टेक्स्ट) में, बढ़ते अपराधों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए विभिन्न कानून है। महिलाओं के खिलाफ विभिन्न प्रकार के अपराध होते हैं और इनकी लिस्ट बढ़ती रहती है। ये महिलाओं के खिलाफ होने वाले कुछ अपराध है-

  • एसिड अटैक
  • बलात्कार;
  1. अलग होने के दौरान पति द्वारा अपनी पत्नी से यौन संबंध (सेक्सुअल इंटरकोर्स) बनाना।
  2. अथॉरिटी में किसी व्यक्ति द्वारा यौन संभोग।
  3. सामूहिक (गैंग) बलात्कार।
  • बलात्कार करने की कोशिश
  • विभिन्न उद्देश्यों के लिए किडनैपिंग और एबडक्शन:
  1. महिलाओं को शादी के लिए मजबूर करने के लिए प्रेरित (इंड्यूस), किडनैप या एब्डक्ट करना।
  2. नाबालिग लड़कियों का प्रोक्युरेशन करना।
  3. विदेशों से लड़कियों को इंपोर्ट करना।
  4. गुलामों की हैबिचुअल डील करना।
  5. प्रॉस्टिट्यूशन आदि के लिए नाबालिग को बेचना।
  6. प्रॉस्टिट्यूशन, आदि के लिए नाबालिग ख़रीदना।
  • हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना आदि।
  • पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता।
  • दहेज हत्या।
  • महिलाओं की मोडेस्टी भंग करना।
  • यौन उत्पीड़न (सेक्शुअल हैरेसमेंट)।
  • महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से महिलाओं पर असॉल्ट।
  • ताक-झांक (वॉयरिज्म)।
  • पीछा करना (स्टॉकिंग)।
  • लड़कियों का इंपोर्टेशन।
  • किसी महिला की मोडेस्टी का अपमान करने के इरादे से शब्द, हावभाव (जेस्चर) या कार्य
  • ऑनर किलिंग

महिलाओ के खिलाफ होने वाले अपराधों से सुरक्षा के लिए भारतीय कानून

हर एक नागरिक की रक्षा, सुरक्षा और समग्र (ओवरऑल) विकास सरकार की सर्वोच्च (अटमोस्ट) प्राथमिकता (प्रायोरिटी) है। बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा करना और उनके खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकना स्टेट की एक महत्वपूर्ण नीति (पॉलिसी) है। मिनिस्ट्री ऑफ़ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट भारत के समान (यूनिफॉर्म) आपराधिक कानूनों यानी इंडियन पीनल कोड और क्रिमिनल प्रोसिजर कोड के साथ-साथ महिलाओं से संबंधित विभिन्न विशेष कानूनों का संचालन (एडमिनिस्टर) कर रही है।

इंडियन पीनल कोड, 1860 अपराधियों को अपराध करने पर दंड का प्रावधान (प्रोविजन) करती है। जबकि, मुकदमे की प्रक्रिया क्रिमिनल प्रोसिजर कोड, 1973 द्वारा शासित (गवर्नड) होती है।

महिलाओ के खिलाफ होने वाले अपराधों से सुरक्षा के लिए विभिन्न क़ानून इस प्रकार हैं-

इंडियन पीनल कोड, 1860

धारा अपराध सज़ा
मौत की सज़ा आजीवन कारावास कठोर कारावास साधारण कारावास जुर्माना
376 बलात्कार नहीं हाँ 10 साल से ज्यादा नहीं   —— हाँ
376A बलात्कार से मौत हाँ हाँ 20 साल से ज्यादा नहीं —— नहीं
376B अलग होने के दौरान पति द्वारा संभोग नहीं नहीं किसी भी विवरण (डिस्क्रिप्शन) की पर 2 साल से ज्यादा नहीं हाँ
376AB 12 साल से कम उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार हाँ हाँ 20 साल से ज्यादा नहीं —— नहीं
376C अथॉरिटी में व्यक्ति द्वारा बलात्कार नहीं नहीं 5 साल से ज्यादा नहीं —— हाँ
376D सामूहिक बलात्कार नहीं हाँ 20 साल से ज्यादा नहीं —— हाँ
376 DA 16 साल से कम उम्र की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार नहीं हाँ —— —— हाँ
376 DB 12 साल से कम उम्र की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हाँ हाँ —— —— हाँ
376E रिपीटेड ऑफेंडर्स हाँ हाँ —— —— नहीं
302 हत्या हाँ हाँ —— —— हाँ
304B दहेज हत्या नहीं हाँ किसी भी विवरण की पर 7 साल से ज्यादा नहीं नहीं
306 आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं नहीं किसी भी विवरण की जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। हाँ
498A पति/रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता नहीं नहीं किसी भी विवरण की जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। हाँ
509 महिलाओं की मोडेस्टी भंग करने के लिए कार्य नहीं नहीं नहीं 3 साल तक बढ़ाई जा सकती है। हाँ
326A तेजाब के प्रयोग से गंभीर चोट नहीं हाँ किसी भी विवरण की पर 10 साल से कम नहीं होनी चाहिए। हाँ
326B अपनी इच्छा से तेजाब फेंकना या उसका प्रयास करना नहीं नहीं किसी भी विवरण की पर 5 साल से कम नहीं होनी चाहिए लेकिन इसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। हाँ
354 महिलाओं की मोडेस्टी भंग करने के लिए असॉल्ट नहीं नहीं किसी भी विवरण की पर 1 साल से कम नहीं होनी चाहिए लेकिन इसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। हाँ
354A यौन उत्पीड़न नहीं नहीं 3 साल तक बढ़ाई जा सकती है। —— हाँ
किसी भी विवरण की जिसे 1 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
354B कपड़े उतारने के इरादे से असॉल्ट नहीं नहीं 5 साल से कम नही होनी चाहिए लेकिन इसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। हाँ
354C ताक-झांक नहीं नहीं पहली सजा: 1 साल से कम नहीं होनी चाहिए लेकिन इसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। हाँ
दूसरी सजा: 3 साल से कम नहीं होनी चाहिए लेकिन इसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
354D पीछा करना नहीं नहीं पहली सजा: 3 साल तक बढ़ाई जा सकती है। हाँ
दूसरी सजा: 5 साल तक बढ़ाई जा सकती है।
366 शादी के लिए मजबूर करने के लिए किडनैप करना नहीं नहीं 10 साल तक बढ़ाई जा सकती हैं। हाँ
366A नाबालिग बच्चे का प्रोक्युरेशन नहीं नहीं 10 साल तक बढ़ाई जा सकती है। हाँ
366B विदेश से लड़की का इंपोर्टेशन नहीं नहीं 10 साल तक बढ़ाई जा सकती है। हाँ
372 प्रॉस्टिट्यूशन के उद्देश्य से नाबालिग को बेचना नहीं नहीं 10 साल तक बढ़ाई जा सकती है। हाँ

इम्मोरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट, 1956

एक्ट को शुरू में सप्रेशन ऑफ इम्मोरल ट्रैफिक इन वूमेन एंड गर्ल्स एक्ट, 1956 के रूप में जाना जाता था, इस एक्ट को 1986 में अमेंड किया गया था जिसका उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों के व्यावसायिक (कॉमर्शियल) यौन शोषण के लिए तस्करी (ट्रैफिकिंग) को रोकना है और यह महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रॉस्टिट्यूशन और यौन कार्यों को प्रतिबंधित (प्रोहिबिट) करने के लिए प्रमुख कानून है। मिनिस्ट्री ऑफ़ वूमेन एंड चाइल्ड द्वारा 2006 में इम्मोरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) अमेंडमेंट बिल प्रस्तावित (प्रपोज्ड) किया गया था, जो अभी तक पास नहीं हुआ है। 

डॉउरी प्रोहिबिशन एक्ट, 1961

दहेज पापपूर्ण (सिनफुल) गतिविधियों (एक्टिविटीज) और अभिशापों में से एक है जिसे लोग प्रथा कहते हैं। शादी के लिए दूल्हे और उसके परिवार द्वारा दहेज मांगा जाता है और इस प्रथा ने समाज में लंबी जड़ें जमा ली हैं। यह माना जाता है कि लड़की ससुराल जा रही है जहां उसे अपने परिवार के लिए एक नया घर बनाना है, जिसके लिए उसे सभी आवश्यक सामान और चीजें दहेज के रूप में दी जाती हैं। दहेज पिछले कुछ वर्षों से एक मजबूरी बन गया है और अगर दहेज की मांग लड़की के माता-पिता द्वारा पूरी नहीं की जाती है, तो उसे ससुराल वालों द्वारा गाली-गलौज, गंभीर अपराध, जलन, मानसिक प्रताड़ना (टॉर्चर) आदि का सामना करना पड़ता है और हर प्रकार के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। ससुराल वालों की मांग पूरी करने के बाद भी ससुराल में महिलाओं को इस तरह के अपराधों का सामना करना पड़ता है। इसलिए महिलाओं को ऐसे अपराधों से बचाने के लिए इस एक्ट को इनेक्ट और लागू किया गया था।

इंडिसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ़ वूमेन (प्रोहिबिशन) एक्ट, 1986

यह एक्ट विज्ञापन (एडवरटाइजमेंट) या प्रकाशन (पब्लिकेशन) या लेखन, पेंटिंग, आंकड़े (फिगर्स) आदि सहित महिलाओं के किसी भी प्रकार के इंडीसेंट रिप्रजेंटेशन को प्रतिबंधित करने के लिए बनाया गया था।

कमिशन ऑफ सती (प्रिवेंशन) एक्ट, 1987

सती प्रथा प्राचीन काल में एक प्रथा थी जहां पत्नी को उसके मृत पति के साथ चिता में जिंदा जला दिया जाता था और यह एक स्वैच्छिक (वॉलंटरी) प्रथा थी। यह एक्ट 1987 में विधवाओं को जिंदा जलाने से रोकने के लिए लागू किया गया था और यह एक्ट इस तरह की प्रथाओं के लिए किसी भी जुलूस, या वित्तीय ट्रस्ट या मंदिर के निर्माण में भाग लेने पर रोक लगाता है और विधवा की स्मृति (मेमोरी) जो सती हुई है के प्रचार (प्रमोशन) और सम्मान को भी प्रतिबंधित करता है।

प्रोटेक्शन ऑफ़ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट, 2005

घरेलू (डोमेस्टिक) हिंसा एक ऐसा कार्य या चूक (ऑमिशन) है जो महिलाओं को किसी भी रूप में शारीरिक और मानसिक रूप से घायल करने के लिए किया जाता है। यह एक ऐसा कार्य है जो घरेलू हिंसा को मानवाधिकारों (ह्यूमन राइट्स) के उल्लंघन के रूप में मान्यता देता है और प्रत्येक महिला को उनकी इच्छा के अनुसार हिंसा मुक्त घर में रहने का अधिकार प्रदान करता है।

सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ़ वूमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) एक्ट, 2013

यौन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार या असॉल्ट का एक कार्य है जो यौन एहसानों (फेवर्स) के बदले में पुरस्कार के अवांछित (अनवांटेड) या अनुचित (अनरीजनेबल) वादे सहित स्पष्ट (एक्सप्लिसिट) या निहित (इंप्लिसिट) यौन ओवरटोन का उपयोग करता है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं के समानता, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। यह एक असुरक्षित और शत्रुतापूर्ण (हॉस्टाइल) कार्य वातावरण बनाता है, जो काम में महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित (डिस्करेज) करता है, और उनके सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण (एंपावरमेंट) को प्रभावित करता है। यह मानसिक और मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) स्वास्थ्य के मुद्दों जैसे डिप्रेशन, बाईपोलर डिसऑर्डर आदि पैदा करता है।

विशाखा बनाम राजस्थान स्टेट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, लेजिस्लेचर ने सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ़ वूमेन एट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के तहत एक कानून बनाया और इनेक्ट किया ताकि कामकाजी महिलाओं को यौन उत्पीड़न की बुराई से बचाने के उपाय किए जा सकें।  सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 14, 15, 19(1)(g) और 21 के तहत भारत के संविधान में निहित (इंश्राइन) मानवाधिकारों के बुनियादी सिद्धांतों (बेसिक प्रिंशिपल्स) और कंवेंशन ऑन एलिमिनेशन ऑफ़ ऑल फॉर्म्स ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमेन (सीडॉ) के प्रावधानों को शामिल किया है और 1993 में भारत सरकार द्वारा इसे रैक्टिफाई किया गया था।

प्रोहिबिशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006

ज्यादातर परिवारों में बाल-विवाह की प्रथा होती है जिसमें छोटी लड़कियों का विवाह किसी भी आयु के लड़कों से उनकी इच्छा के विरुद्ध किया जाता है, और इन कम उम्र की लड़कियों को वैवाहिक घर में क्रूरता, बलपूर्वक यौन संबंध आदि के अधीन किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप लड़कियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर हानि होती है। इस एक्ट का उद्देश्य माता-पिता को बाल विवाह करने से रोकना है और इसे दंड के साथ एक अवैध कार्य बनाना है। ऐसा करने का प्रयास करना भी एक अवैध कार्य है।

मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, 1861 

मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट गर्भावस्था (प्रेगनेंसी) के दौरान और बाद में नौकरियों और मजदूरी के मामले में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। यह एक्ट डिलीवरी की तारीख से पहले और बाद में 26 सप्ताह की पेड मेटरनिटी अवकाश की सुविधा प्रदान करता है। यह एक्ट सेरोगेट माताओं या कमीशनिंग माताओं के लिए डिलीवरी की तारीख से पहले और बाद में 12 सप्ताह की मैटरनिटी अवकाश प्रदान करता है। यह एक्ट कॉर्पोरेशन या इंस्टीट्यूशन को महिला श्रमिकों (वर्कर्स) को उनकी गर्भावस्था के कारण नौकरी से हटाने से रोकता है और उन्हें किसी भी रिम्यूनरेशन या वेतन में कटौती करने से रोकता है। यह एक्ट उन महिलाओं के लिए घर से काम करने की सुविधा प्रदान करता है जो शारीरिक रूप से कार्यालयों में आने में सहज (कंफर्टेबल) नहीं हैं। नियोक्ता (एंप्लॉयर) इस बारे में महिला कर्मचारियों को शिक्षित और जागरूक करने और सभी गर्भवती महिलाओं को मैटरनिटी बेनिफिट प्रदान करने के लिए बाध्य हैं।

इंडियन डायवोर्स एक्ट, 1969 

इंडियन डायवोर्स एक्ट, तलाक प्रक्रियाओं के लिए इनेक्ट किया गया है जिसमें आपसी सहमति से विवाह का डिजोल्यूशन, विवाह की अमान्यता, ज्यूडिशियल सेपरेशन और कंजूगल राइट्स का रेस्टिट्यूशन शामिल है। तलाक या ज्यूडिशियल सेपरेशन या कंजूगल राइट्स का रेस्टिट्यूशन से संबंधित मामला एडीजे द्वारा फैमिली कोर्ट में निपटाया जाता है जो ऐसे मामलों को दर्ज करने, सुनने और निपटाने के लिए स्थापित (एस्टेब्लिश) होते हैं।

इक्वल रिन्यूमेरेशन एक्ट, 1976 

यहां लिंग के बीच भेदभाव है क्योंकि यह सामान्य अनुमान है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम काम करती हैं और वे पुरुषों की तुलना में कम उत्पादक (प्रोडक्टिव) होती हैं। यह अनुमान वेजेस और रिम्यूनरेशन के लिए भेदभाव की ओर ले जाता है इसलिए यह एक्ट रिम्यूनरेशन के मामले में भेदभाव को रोकता है और पुरुष और महिला श्रमिकों को समान रिकंपेंस प्रदान करता है।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971

एक्ट 1972 में लागू किया गया था, जिसे क्रमशः 1975 और 2002 में विभिन्न अमेंडमेंट्स के साथ अपडेट किया गया था। इस एक्ट का उद्देश्य अवैध गर्भपात (इल्लीगल अबॉर्शन) को रोकना और गर्भावस्था की अवैध समाप्ति के कारण मृत्यु दर (मॉर्टलिटी रेट) को रोकना है। यह एक्ट उन शर्तों को भी प्रदान करता है कि कब कोई भी गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति का विकल्प चुन सकता है जो एक चिकित्सक के प्रमाणीकरण (सर्टिफिकेशन) के बाद ही संभव है और जब मां के स्वास्थ्य के लिए ऐसा करना महत्वपूर्ण है।

नेशनल कमिशन फॉर वूमेन एक्ट, 1990

नेशनल कमिशन फॉर वूमेन (एनसीडब्ल्यू) जनवरी 1992 में स्थापित की गई थी, यह भारत सरकार की एक स्टेच्यूटरी बॉडी है जो भारत में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करती है और उनके मुद्दों और चिंताओं के लिए एक आवाज प्रदान करती है। नेशनल कमिशन फॉर वूमेन एक्ट का उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार करना और उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कार्य करना है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

भारतीय सभ्यता (सिविलाइजेशन) में महिलाएं हमेशा से एक महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान रही हैं। यहां उन्हें मां के रूप में ग्लोरिफाई किया जाता है और देवी के रूप में पूजा की जाती है। उन्हें भारत में सबसे कमजोर समूह माना जाता है, लेकिन पिछली शताब्दियों में उन्हें कई व्यापक श्रेणियों (कैटेगरीज) में हिंसा सहना पड़ी है, उनमें से कुछ बलात्कार, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या (फेटिसाइड) आदि हैं और उनकी सुरक्षा दांव पर है। पड़ोस, सार्वजनिक परिवहन (ट्रांसपोर्ट), सार्वजनिक स्थानों, कार्यस्थल आदि में हर दिन हर एक महिला को ऐसे जघन्य अपराधों का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब चुप्पी तोड़ने और सम्मान प्रदान करने और उन्हें भेदभाव मुक्त वातावरण प्रदान करने का समय आ गया है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • Indian Penal Code 1860 sixth edition KD Gaur Universal Law Publications.
  • Gender Justice: women rights- A legal Panorama by Yatindra Singh, University of Allahabad Publications.
  • Vishakha & ors. v/s State of Rajasthan judgment-  https://indiankanoon.org/doc/1031794/ 

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