इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन में प्रीएम्ब्ल का महत्व

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Constitution of India
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ह लेख इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ के छात्र, Parshav Gandhi द्वारा लिखा गया है। यह लेख मुख्य रूप से इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन में प्रीएम्ब्ल के महत्व पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

परिचय (इंट्रोडक्शन)

प्रीएम्ब्ल को इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन की आत्मा और मुख्य सहारे के रूप में भी जाना जाता है। प्रीएम्ब्ल को न पढ़कर, कॉन्स्टीट्यूशन को पढ़ने का कोई मतलब नहीं है। यह प्रीएम्ब्ल है जो इस बारे में एक संक्षिप्त विचार देती है कि कॉन्स्टीट्यूशन क्यों तैयार किया गया था। प्रीएम्ब्ल को 3 भागों में वर्गीकृत (क्लासिफाइड) या तोड़ा जा सकता है:

पहले भाग के अनुसार, भारत के लोगों ने भारत को “सॉवरेन, सोशियलिस्ट, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक, रिपब्लिक” के रूप में गंभीरता से लिया। प्रीएम्ब्ल के प्रत्येक शब्द को बुद्धिमानी से चुना गया और ऐसे व्यवस्थित (अरेंज्ड) किया जाता है, ताकि इसको पढ़कर नागरिकों के मन में भारत के रुख की स्पष्ट तस्वीर बन सके।

दूसरा भाग लिबर्टी, एक्वालिटी, जस्टिस को सुरक्षित करने और सभी के बीच यूनिटी और इंटीग्रिटी को बढ़ावा देने के लिए कहता है।

अंतिम भाग घोषणात्मक (डेक्लेरेट्री) है, जहां भारत के लोगों ने अपनी कॉन्स्टीट्यूशनल असेंबली में इस कॉन्स्टीट्यूशन को अपनाया, अधिनियमित (एनक्टेड) किया और खुद को दिया है।

प्रीएम्ब्ल का अर्थ और अवधारणा (मीनिंग एंड कांसेप्ट ऑफ़ प्रीएम्ब्ल)

प्रीएम्ब्ल, विधियों (स्टेट्यूट्) का परिचय यानी की कॉन्स्टीट्यूशन का परिचय है। प्रीएम्ब्ल का अर्थ है लेजिस्लेचर द्वारा क़ानून को पास करने के उद्देश्य से की गई घोषणा और यह किसी भी क़ानून की व्याख्या में सहायक है।

प्रीएम्ब्ल का उचित कार्य कुछ शब्दों के अर्थ की व्याख्या करना है और कुछ तथ्यों का पाठ करना है जिन्हें समझाया जाना आवश्यक है। एक प्रीएम्ब्ल का उपयोग अन्य कारणों से भी किया जा सकता है, जैसे, कुछ उक्ति (एक्सप्रेशन) के दायरे को सीमित करने या तथ्यों की व्याख्या करने या परिभाषाओं को पेश करने के लिए।

प्रीएम्ब्ल का कार्य क्षेत्र (स्कोप ऑफ़ प्रीएम्ब्ल)

प्रीएम्ब्ल देश के भाग्य को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रीएम्ब्ल, कॉन्स्टीट्यूशन के निर्माताओं को एक संक्षिप्त (ब्रीफ) अंदाजा देता है, ताकि कॉन्स्टीट्यूशन असेंबली योजना बना सके और कॉन्स्टीट्यूशन का निर्माण कर सके।

प्रीएम्ब्ल के कार्य क्षेत्र को लेकर एक ही सवाल उठाया गया है, कि क्या यह इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन का हिस्सा है या नहीं? इस प्रश्न का उत्तर इस लेख में बाद में दिया गया है। लेकिन प्रीएम्ब्ल का मुख्य उद्देश्य कॉन्स्टीट्यूशन के पीछे के विचार को स्पष्ट करना है, अर्थात इसका स्रोत (सोर्स) क्या है, इसके पीछे लक्ष्य और उद्देश्य क्या है।

प्रीएम्ब्ल किसी को कोई शक्ति प्रदान नहीं करता लेकिन यह वह संरचना देता है जिस पर इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन खड़ा है:

  1. देश “सॉवरेन, सोशियलिस्ट, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक, रिपब्लिक ” होना चाहिए।
  2. सरकार जनता द्वारा चुनी जानी चाहिए, जनता के लिए और जनता की होनी चाहिए।
  3. वास्तविक सॉवरेन शक्ति भारत के नागरिकों पर निहित होनी चाहिए।
  4. लोगों को जस्टिस, लिबर्टी और एक्वालिटी मिलनी चाहिए।

मूल रूप से कॉन्स्टीट्यूशन के सभी प्रोविज़न/आर्टिकल्स इन्हीं सब को ध्यान में रखकर बनाए गए थे, ताकि यह सार्वजनिक सॉवरेनिटी का उल्लंघन न करे।

प्रीएम्ब्ल का इतिहास  

मुख्य प्रीएम्ब्ल,  श्री बी.एन.राव द्वारा तैयार किया गया था और बाद में कॉन्स्टीट्यूशन असेंबली में प्रस्ताव रखा। प्रीएम्ब्ल की मूल संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर) में केवल ‘सॉवरेन, डेमोक्रेटिक, रिपब्लिक’ शामिल थे, लेकिन बाद में ‘सेक्युलर और सोशियलिस्ट’ शब्द को 42वें अमेंडमेंट द्वारा शामिल किया गया था। प्रीएम्ब्ल केवल कॉन्स्टीट्यूशन और देश की आवश्यक विशेषताओं को परिभाषित करने तक ही सीमित था, इस वजह से प्रीएम्ब्ल पर सवाल उठाए गए थे कि क्या प्रीएम्ब्ल कॉन्स्टीट्यूशन का हिस्सा है या नहीं।

प्रीएम्ब्ल के तत्त्व (कंटेंट्स)

प्रीएम्ब्ल में शामिल शब्दों का चयन सोच-समझ कर किया गया था और शब्दों की व्यवस्था और उनका क्रम, कॉन्स्टीट्यूशन के निर्माण में उनके महत्व और भागीदारी (पार्टिसिपेशन) को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।

प्रीएम्ब्ल में मुख्य शब्द:

“हम, भारत के लोग (वी, द पीपल ऑफ़ इंडिया)”

“हम लोग” शब्द स्पष्ट रूप से देश के नागरिकों की भागीदारी को बताता है। यह परिभाषित करता है कि सॉवरेन प्राधिकरण (ऑथॉरिटीज़) भारत के नागरिक हैं। यह इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि सरकार में निहित सारी शक्ति लोगों द्वारा स्वयं दी जाती है। यह नागरिक है जो सरकार को चुनते है। शब्द ‘हम भारत के लोग कहते हैं कि कॉन्स्टीट्यूशन के लेखक, लोग ही हैं।

दरअसल, सवाल यह है कि क्या और कैसे हर नागरिक ने कॉन्स्टीट्यूशन के लिए वोट किया है? लोग/नागरिक सीधे वोट नहीं करते हैं क्योंकि लाखों लोगों के लिए कॉन्स्टीट्यूशन बनाने की प्रक्रिया (प्रोसेस) में प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) भाग लेना असंभव है। लोगों के नाम पर, लोगों के प्रतिनिधियों (रिप्रेजेंटेटिव्स) द्वारा कॉन्स्टीट्यूशन बनाया गया था।

यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम मदनगोपाल के मामले में,

यहां अदालत ने ‘हम भारत के लोग’ शब्द का उल्लेख किया और कहा कि “हमारे कॉन्स्टीट्यूशन का संक्षिप्त जो की प्रीएम्ब्ल है वह अपनी शक्ति यानी भारत के नागरिकों से प्राप्त करता है।

सॉवरेनिटी 

सॉवरेनिटी शब्द का अर्थ सर्वोच्च और पूर्ण शक्ति होता है। शक्ति वास्तविक (रियल) या नाममात्र (नॉमिनल) हो सकती है। सॉवरेनिटी की अवधारणा (कांसेप्ट) आयरलैंड के कॉन्स्टीट्यूशन के आर्टिकल 5 से ली गई है। सॉवरेनिटी का अर्थ है भारत सर्वोच्च शक्ति है और कोई अन्य राष्ट्र देश पर शासन नहीं कर सकता या अपना प्रभुत्व (डोमिनेन्स) नहीं दिखा सकता। भारत के लोग भारत की सॉवरेन शक्ति है, वे अपनी शक्ति अपने निर्वाचित (इलेक्टेड) प्रतिनिधि को हस्तांतरित (ट्रांसफर) करते हैं।

भारत, 26 जनवरी 1950 को एक सॉवरेन देश बन गया था, जिसका अंतरराष्ट्रीय समुदाय (इंटरनेशनल कम्युनिटी) के अन्य सदस्यों के साथ समान दर्जा बन गया था, और उसने राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) राष्ट्रों में बने रहने का फैसला किया।

सोशियलिस्ट 

सोशियलिस्ट शब्द को 42वें अमेंडमेंट द्वारा कॉन्स्टीट्यूशन में शामिल किया गया था। सामान्यतः सोशियलिस्ट का अर्थ राजनीतिक-आर्थिक (पोलिटिकल-इकोनॉमिकल) व्यवस्था से है। प्रीएम्ब्ल में शब्द क्यों डाला गया, इसका मुख्य कारण लोगों को हर परिस्थिति में इक्वालिटी और बेहतर जीवन प्रदान करना और निर्माताओं को संक्षेप देना था ताकि वे सोशियलिस्ट की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए कॉन्स्टीट्यूशन बना सकें।

डी.एस. नाकारा बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में,

अदालत ने कहा कि सोशियलिस्ट शब्द को शामिल करने का मूल कारण निर्माताओं को जानकारी देना था ताकि वे कॉन्स्टीट्यूशन के लिए ऐसा प्रावधान बना सकें, जो नागरिकों को एक सभ्य जीवन प्रदान कर सके और विशेष रूप से उनके बचपन से मृत्यु तक उनको सुरक्षा प्रदान कर सके।

एयर इंडिया स्टेट्यूटोरी कॉर्पोरेशन बनाम यूनाइटेड लेबर यूनियन, के मामले में,

अदालत का कहना था कि सोशयलिज़्म की अवधारणा का मुख्य उद्देश्य कानून के शासन के माध्यम से सामाजिक (पब्लिक) व्यवस्था स्थापित करना था।

सेक्युलर

सेक्युलर शब्द को 1976 में 42वें अमेंडमेंट के माध्यम से डाला गया था, सेक्युलर शब्द का अर्थ है कि भारत का कोई धर्म नहीं है और सभी धर्मों को समान रूप से और समान सम्मान के साथ मान्यता दी जाएगी। व्यक्ति अपना धर्म चुनने के लिए स्वतंत्र है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत एक सौंदर्यवादी (एस्थेटिक) स्टेट या धर्म विरोधी है, यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि भारत में विभिन्न धर्मों के लाखों लोग रहतें हैं, और एक सेक्युलर स्टेट के रूप में भारत उनके धर्म का सम्मान करता है, लेकिन किसी भी धर्म का पालन नहीं करता है और न ही उनके धार्मिक अभ्यास में हस्तक्षेप (इंटरफेयर) करता है।

सेंट जेवियर्स कॉलेज बनाम स्टेट ऑफ़ गुजरात,

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सेक्युलरिज्म की अवधारणा की व्याख्या करता है और कहता है की इसका मतलब धर्म विरोधी नहीं है, बल्कि इसका मतलब है कि स्टेट हर धर्म का सम्मान करता है और उनकी प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करता और न किसी भी धर्म का पालन नहीं करता है।

डेमोक्रेटिक

डेमोक्रेसी शब्द, ग्रीक शब्द ‘डेमो’ से लिया गया है जिसका अर्थ है लोग और ‘क्रेटोस’ जिसका अर्थ है अधिकार। डेमोक्रेसी का अर्थ है जनता द्वारा सरकार। यह सरकार का वह रूप है जिसमें लोग अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं और अप्रत्यक्ष (इंडायरेक्टली) रूप से सरकारी गतिविधियों में भाग लेते हैं।

डेमोक्रेसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो सकता है। प्रत्यक्ष डेमोक्रेसी में, प्रत्येक व्यक्ति को न केवल सरकार चुनने में बल्कि कॉन्स्टीट्यूशन को बदलने में भी वोट की शक्ति प्राप्त होती है। वहीं अप्रत्यक्ष डेमोक्रेसी में, लोगों को वोट देने और अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होता है और वे प्रतिनिधि प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन) में नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मोहन लाल बनाम डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, रायबरेली,

अदालत ने डेमोक्रेसी को राजनीतिक अवधारणा के रूप में परिभाषित किया, जिसमें लोग सीधे ही या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से प्रशासन में अपनी भागीदारी देते हैं।

यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, में

अदालत ने कहा कि डेमोक्रेसी कल्याणकारी (वेलफेयर) स्टेट के लिए महत्वपूर्ण है, लोगों को अपने नेता को चुनने का मौका मिलना चाहिए जो लोगों के लिए कार्य कर सके।

रिपब्लिक 

रिपब्लिक की अवधारणा का अर्थ है, स्टेट के लोगों के पास सर्वोच्च शक्ति है और वे अपनी शक्ति अपने प्रतिनिधि को हस्तांतरित करके, उन्हें स्टेट के प्रमुख के रूप में नियुक्त करते हैं। यह राजतंत्र (मोनार्की) की अवधारणा से बिल्कुल अलग है, राजतंत्र में राजा, रानी और फिर उनका बच्चा स्टेट का मुखिया बन जाता है यानी वंशानुगत (हेरेडिटरी) का पालन किया जाता है, लेकिन रिपब्लिक की अवधारणा में स्टेट का मुखिया नागरिकों द्वारा चुनकर स्टेट का मुखिया बनता है।

भारत में स्टेट के मुखिया को प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता है, जिसे लोगों द्वारा वोट के माध्यम से चुना जाता है, सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार है। उन्हें पांच साल की अवधि के लिए चुना जाता है।

जस्टिस 

जस्टिस की अवधारणा को प्रीएम्ब्ल में इसलिए डाला गया था ताकि नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक (सोशियल), आर्थिक (इकोनोमिकल) जस्टिस की सुरक्षा दी जा सके। आम तौर पर जस्टिस शब्द का अर्थ है लोगों को धन, अवसर, जाति (कास्ट), धर्म आदि जैसी सभी प्रकार की असमानताओं (इनक्वॉलिटी) से और उनके आर्थिक हितों जैसे समान काम, उनके कार्यों के लिए भुगतान आदि से सुरक्षित किया जा सके।

एयर इंडिया स्टेट्यूटरी कारपोरेशन बनाम यूनाइटेड लेबर यूनियन, में

अदालत ने कहा कि जस्टिस का उद्देश्य नागरिक के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक हितों की रक्षा करना और उन्हें अवसर और जीवन स्तर (स्टैंडर्ड) प्रदान करना और उन्हें सम्मान के साथ जीने की अनुमति देना है।

लिबर्टी 

लिबर्टी का मतलब स्वतंत्रता है। लिबर्टी शब्द को लोगों की भावना, विचार, विश्वास आदि की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए शामिल किया गया था। नागरिकों को उनके व्यक्तिगत विकास के लिए लिबर्टी प्रदान करना और नागरिक की स्वतंत्रता में गैरकानूनी हस्तक्षेप से स्टेट को प्रतिबंधित (रेस्ट्रिक्ट) करना आवश्यक है।

मेयर बनाम नेब्रास्का

इस मामले में, अदालत ने कहा कि लिबर्टी शब्द का अर्थ पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि अन्य लोगों के हितों की रक्षा के लिए कुछ वैध (लॉफुल) सामाजिक नियंत्रण (कंटरोल)  वाली स्वतंत्रता है।

इक्वालिटी

इक्वालिटी की अवधारणा का मतलब है कि देश का प्रत्येक नागरिक समान है और स्टेट, कानून के समक्ष इक्वालिटी की अवधारणा पर काम करता है। प्रत्येक व्यक्ति को काम के लिए समान अवसर, उनकी स्थिति (स्टैटस) में इक्वालिटी अर्थात धर्म, जाति, मज़हब (क्रीड), लिंग, आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। एक देश के लिए यह महत्वपूर्ण है, कि वह व्यक्ति के विकास के लिए अपने नागरीको के साथ समान व्यवहार करें और अपने सर्वश्रेष्ठ भाग को सामने लाए।

फ्रेटर्निटी

सामान्यतः, फ्रेटर्निटी का अर्थ है भाईचारे की भावना। फ्रेटर्निटी की अवधारणा को इसलिए पेश किया गया था ताकि लोगों को लगे कि वे एक ही मिट्टी के हैं और, एक ही मातृभूमि के सभी लोग उनके भाई-बहन हैं और स्थिति में उनसे समान हैं।

भारत, धर्म, नस्ल, जाति के आधार पर विविधताओं (डाइवर्सिटी) वाला देश है, इसलिए उन सभी के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।

प्रीएम्ब्ल की स्थिति के बारे में तर्क (आर्गुमेंट्स रिगार्डिंग द स्टैटस ऑफ़ प्रीएम्ब्ल)

क्या प्रीएम्ब्ल कॉन्स्टीट्यूशन का हिस्सा है?

यह, तर्क और चर्चा का विषय रहा है कि प्रीएम्ब्ल कॉन्स्टीट्यूशन का हिस्सा है या नहीं। ऐसे दो मामले हैं जो प्रीएम्ब्ल की स्थिति के बारे में बताते हैं:

री-बेरूबारी मामला:

इस मामले के तहत, आठ न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि भले ही प्रीएम्ब्ल, कॉन्स्टीट्यूशन के परिचय के रूप में कार्य करता है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक अवधारणा है जो निर्माताओं के दिमाग को खोलती है और उन्हें कॉन्स्टीट्यूशन बनाने में मदद करती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि प्रीएम्ब्ल कॉन्स्टीट्यूशन का हिस्सा है।

केशवानंद भारती मामला

इस मामले ने कॉन्स्टीट्यूशन का एक नया इतिहास बनाया, 13 न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि प्रीएम्ब्ल कॉन्स्टीट्यूशन का एक हिस्सा है:

  1. प्रीएम्ब्ल कॉन्स्टीट्यूशन का परिचय है।
  2. प्रीएम्ब्ल शक्ति का स्रोत नहीं है बल्कि इसने स्टेट्यूट्स की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रीएम्ब्ल में अमेंडमेंट 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा केशवानंद भारती मामले में प्रीएम्ब्ल को कॉन्स्टीट्यूशन का हिस्सा घोषित करने के बाद, यह स्पष्ट हुआ कि इसे इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन के आर्टिकल 368 के तहत अमेंडेड किया जा सकता है। प्रीएम्ब्ल में 1976 में अमेंडमेंट किया गया और सोशियलिस्ट, सेक्युलर, इंटीग्रिटी शब्द जोड़े गए थे।

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

प्रीएम्ब्ल, स्टेट्यूट्स का परिचय यानी कॉन्स्टीट्यूशन का परिचय है। प्रीएम्ब्ल का अर्थ है लेजिस्लेचर द्वारा क़ानून को पास करने के उद्देश्य से की गई घोषणा और यह किसी भी कानून की व्याख्या करने में सहायक है। प्रीएम्ब्ल देश के भाग्य को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रीएम्ब्ल के दायरे को लेकर एक ही सवाल उठता है कि क्या यह कॉन्स्टीट्यूशन का हिस्सा है या नहीं? लेकिन केशवानंद भारती मामले में, 13 न्यायधिशो की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला सुनाया और प्रीएम्ब्ल को कॉन्स्टीट्यूशन का एक हिस्सा घोषित किया। प्रीएम्ब्ल किसी को कोई शक्ति नहीं देती लेकिन यह, वह संरचना देता है जिसका सहारा कॉन्स्टीट्यूशन लेता है, देश “सॉवरेन, सोशियलिस्ट, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक, रिपब्लिक” होना चाहिए, सरकार लोगों द्वारा , लोगों की, और लोगों के लिए होनी चाहिए, वास्तविक सॉवरेन शक्ति भारत के लोगों में निहित होती है, लोगों को जस्टिस, लिबर्टी और इक्वालिटी प्रदान की जानी चाहिए।

 

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