ज्यूडिशियरी पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव: यह अदालतों का बोझ कैसे कम करेगा

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Judicial System
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यह लेख Alfaiz Nizami द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से इन-हाउस काउंसल के लिए बिजनेस लॉ में डिप्लोमा कर रहा है। इस लेख में लेखक आर्टिशियल इंटेलिजेंस और ज्यूडिशियरी में उसके उपयोग के बारे में बात करते है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

“न्याय में देरी होना, न्याय से वंचित (डिनाइ) करना ही है।”- विलियम इवार्ट ग्लैडस्टोन

निःसंदेह हम सभी को अपनी न्यायपालिका (ज्यूडिशियरी) पर भरोसा है। हमारी न्यायिक प्रणाली (जुडिशियल सिस्टम) में हमारा यह भरोसा वर्षों से विकसित हुआ है, लेकिन ऐसे समय में जब हमारे जीवन को डिजिटल किया जा रहा है और एक ऐसी पीढ़ी में, जो जल्दी के परिणामों के लिए उत्सुक (कीन) होती है, तो ऐसे में हमारी न्यायिक प्रणाली की दक्षता (एफिशिएंसी) में सुधार करना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि लोगों का भरोसा इस पर ऐसे ही बना रहे। कानून और न्याय मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ़ लॉ एंड जस्टिस) के अनुसार, हमारी न्यायिक प्रणाली में लंबित (पेंडिंग) मामलों की संख्या, लगभग 4 करोड़ है।

यह अच्छी तरह से तय है कि इस बोझ को बांटने की जरूरत है और इसे कंप्यूटर को आवंटित (एलोकेट) करने से बेहतर तरीका क्या हो सकता है। नोवेल कोरोना वायरस ने हमें तकनीकी रूप से मजबूत होने की जरूरत सिखाई है। बहुत से वकीलों, न्यायाधीशों और न्यायिक कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट में ऑनलाइन सुनवाई करने, याचिकाओं (पिटीशन) की ई-फाइलिंग की सेटिंग को समझने में बेहद मुश्किल लगा। हालांकि, लगातार बढ़ती दुनिया में, डिजिटल विकास के बारे में जागरूक होना आवश्यक है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) केवल मशीन लर्निंग का उपयोग करके, मानव दिमाग की तरह सोचने और कार्य करने के लिए एक मशीन विकसित कर रहा है। कंप्यूटर को सीखना होता है कि कुछ क्रियाओं का जवाब कैसे दिया जाता है, इसलिए यह एक प्रोपेंसिटी मॉडल नामक बनाने के लिए एल्गोरिथम और ऐतिहासिक डेटा का उपयोग करता है। हम अनजाने में हर दिन ए.आई. से मदद लेते हैं। उदाहरण के लिए-

  • जब हम एक अक्षर टाइप करते हैं, तो गूगल खोज करता है और यह बताना करना शुरू कर देता है कि हम क्या खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
  • यू ट्यूब, जैसे ही हमारे द्वारा देखे जाने वाले वीडियो की शैली (जेनरे) सीखता है और वीडियो की समान शैलियों की अनुशंसा (रिकमेंड) करना शुरू कर देता है।

न्यायपालिका में तकनीकी विकास

ऑक्सफोर्ड इनसाइट्स और इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर द्वारा संकलित (कंप्लाइड), सरकारी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रेडिनेस इंडेक्स में भारत 17वें स्थान पर है। जबकि शीर्ष (टॉप) 5 देश अवरोही क्रम (डिसेंडिंग ऑर्डर) में हैं- सिंगापुर, यूके, जर्मनी, यूएसए, फिनलैंड।

2020 में, कोरोना वायरस के फैलने के कारण, दुनिया को रुकना पड़ा। लेकिन कोर्ट में लंबित मामलों को जानते हुए सुप्रीम कोर्ट अपनी सभी सेवाओं को खारिज करने का जोखिम नहीं उठा सकता था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सभी 17 बेंचों को पेपरलेस बनाने के लिए एस.सी.आई.-इंटरेक्ट नामक एक पोर्टल विकसित किया। “लिंब्स (एल.आई.एम.बी.एस.)” जैसी एक अन्य पहल, एक वेब आधारित एप्लीकेशन है, जो अधिक पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट) तरीके से मामलों की डिजिटल रूप से निगरानी करने में सक्षम बनाता है।

6 अप्रैल, 2021 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले ए.आई. पोर्टल का उद्घाटन किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंस इन कोर्ट्स एफिशिएंसी (एस.यू.पी.ए.सी.ई.) कहा जाता है। इससे, न्यायाधीशों के काम का बोझ कम होने की उम्मीद है। चीजों को और उनके उपयोग को आसान बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट काफी एक्सपेरिमेंट कर रही है।

एस.यू.पी.ए.सी.ई. कोर्ट्स की कैसे सहायता करेगा

भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने कहा कि “वे ए.आई. को निर्णय लेने की लिए अनुमती नहीं देंगे।”

यह समझना महत्वपूर्ण है कि किसी भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में आने वाला प्रत्येक मामला भी, दस्तावेजों की एक श्रृंखला (सिरीज) बनाता है जिसमें आरोप पत्र (चार्ज शीट), आदेश, निचली कोर्ट से निर्णय आदि शामिल होते हैं। सभी दस्तावेजों को पढ़ना और उसमे से प्रासंगिक (रिलेवेंट) जानकारी प्राप्त करने का काम बहुत ही कठिन है। यह पूरी प्रक्रिया, न्याय प्रणाली को बहुत ही धीमा और अक्षम (इनएफिशिएंट) बनाती है। यहीं से एस.यू.पी.ए.सी.ई. का काम शुरू होता है। यह ऐसी सभी सूचनाओं को प्रोसेस करता और निर्णय लेने के लिए न्यायाधीशों को प्रासंगिक डेटा प्रदान करता है, ए.आई. सबसे महत्वपूर्ण चेहरे और पार्टियों द्वारा उठाए गए मुद्दों को फ़िल्टर करता है। यह कानूनी शोध (लीगल रिसर्च) और किसी मामले की प्रगति पर नज़र रखने में मदद करेगा। हालांकि, यह निर्णय लेने में कोई हिस्सा नहीं लेगा।

मान लीजिए कि ‘A’ सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश है और एक दिन में उनकी कुल 4 सुनवाई होती है। प्रत्येक सुनवाई अलग-अलग तथ्यों के साथ एक अलग स्तर पर होती है। ए.आई. प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करेगा क्योंकि यह न्यायाधीश को मामले से संबंधित सभी महत्वपूर्ण डेटा देगा और न्यायाधीश को फाइलों के ढेर को पढ़ना नहीं पड़ेगा, साथ ही यह कानूनी शोध को आसान बना देगा और यह मामलों का समय पर निपटान करने के लिए अन्य उपयोग प्रदान करेगा।

एस.यू.पी.ए.सी.ई. पोर्टल को आपराधिक मामलों से निपटने के लिए, बॉम्बे और दिल्ली हाई कोर्टों में एक मार्गदर्शक के रूप में लॉन्च किया गया है। एक समिति, मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल से निपटने के लिए ए.आई. का उपयोग करने के तरीकों की भी खोज कर रही है।

न्यायपालिका में ए.आई. के संभावित उपयोग (पॉसिबल यूजेस)

कल्पना कीजिए कि अगर कोर्ट्स 24/7 खुली होतीं, लेकिन न्यायाधीशों और कोर्ट के कर्मचारियों की, सीमित संख्या के कारण यह संभव नहीं है। हालांकि, कंप्यूटर, मनुष्यों के विपरीत है, वह न तो सोते हैं और न ही ग्लूकोज पर चलते हैं।

भविष्य में न्यायपालिका के बोझ को कम करने के लिए ए.आई. का उपयोग कैसे किया जा सकता है, इस पर कुछ सुझाव दिए गए हैं-

  • आयोजन (ऑर्गेनाइजिंग) में ए.आई. का उपयोग: ए.आई. साक्ष्य के लंबे दस्तावेजों को स्कैन कर सकता है और व्यवस्थित (सिस्टेमेटिक) वेन डायग्राम और ग्राफ प्रस्तुत कर सकता है जो, सबूत की वैधता को उन ग्राफों में, मजबूत, स्वीकार्य (एक्सेप्टेबल), कमजोर साक्ष्य के रूप में विभाजित (डिवाइड) कर सकता है। यह सारी प्रक्रिया एक न्यायाधीश द्वारा अपने दिमाग में की जाती है जिसमें समय लगता है। लेकिन उन ग्राफ का विश्लेषण (एनालिसिस) करना और फिर उनकी मदद से निर्णय लेना आसान होगा।
  • विवाद समाधान में ए.आई. का उपयोग: जैसे हर कांट्रेक्ट में हम एक विवाद समाधान खंड (डिस्प्यूट रेजोल्यूशन क्लॉज) डालते हैं, जिसे आर्बिट्रेशन या मिडियेशन आदि के माध्यम से निपटाया जाता है। ए.आई., न्यायिक प्रणाली की एक शाखा के रूप में कार्य कर सकता है। कांट्रेक्ट में एक खंड डाला जा सकता है कि विवाद के मामले में मामला ए.आई. द्वारा तय किया जाएगा। ए.आई. की भूमिका, तथ्यों और सबूतों का विश्लेषण करने और फिर फैसला करने या पार्टी को हुए नुकसान का अनुमान लगाने की होगी, जिसकी भरपाई करने की जरूरत है। निर्णय को स्वीकार करना या न करना पक्षों पर निर्भर करता है। इसके बाद लोग कभी भी कोर्ट जा सकते हैं। इससे महंगे आर्बिट्रेटर्स को काम पर रखने और कार्यवाही के खर्च में कमी आएगी।
  • छोटे आर्थिक (पेक्यूनियर) मामलों में ए.आई. का उपयोग: हालांकि आपराधिक मामलों में निर्णय लेने में मानवीय बुद्धि और भावनाएं शामिल होती हैं, लेकिन नागरिक (सिविल) मामलों में जहां विवाद एक छोटी राशि के बारे में है, तो वह ए.आई. द्वारा तय किया जा सकता है। उदाहरण के लिए- यदि कोई ट्रैफिक चालान का मामला है तो ए.आई. लाइसेंस की वैधता, पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) प्लेट, पुलिस चालान, उस यातायात उल्लंघन की वीडियो रिकॉर्डिंग का विश्लेषण कर सकता है और उसके आधार पर एक सजा तय कर सकता है, जिसे संबंधित कोर्ट द्वारा लागू किया जा सकता है। इस तरह न्यायाधीशों का बोझ कम हो जाएगा और उनका उपयोग बहुत महत्वपूर्ण मामलों में किया जाएगा।
  • अन्य मामलों में ए.आई. का उपयोग: कोर्ट में निर्णय देने के अलावा अन्य मामले भी हैं, जैसे कि पार्टियों का ज्वाइंडर, मिसज्वाइंडर, मामले का क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र (टेरिटोरियल ज्यूरिस्डिक्शन) तय करना आदि। मशीन लर्निंग का उपयोग यह जानकारी देने के लिए किया जा सकता है कि पार्टियों का ज्वाइंडर कब किया गया है, या जो मामले न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं उनका भी पता आसानी से लगाया जा सकता है। इन सभी मामलों में न्यायालय का समय लगता है, यह कार्य ए.आई. द्वारा किया जा सकता है और समय की भी बचत होती है। बहुत सारे न्यायाधीशों को प्रशासनिक कार्य करने के लिए सौंपा जाता है, कल्पना कीजिए कि क्या वह कार्य कंप्यूटर द्वारा किया जा सकता है और न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य संबंधित व्यक्ति द्वारा पर्यवेक्षण (सुपरवाइज) किया जा सकता है। ताकि उन न्यायधीशों का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।

ए.आई. से जुड़े जोखिम और आशंका (रिस्क एंड एप्रीहेंशन)

ए.आई. न्यायिक सेवाओं से जुड़े लोगों के मन में कुछ आशंका पैदा कर सकता है, क्योंकि उन्हें लग सकता है कि ए.आई. की शुरुआत के बाद भविष्य में उनकी नौकरी की भूमिका की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन ऐसा नहीं है, हम अभी भी ए.आई के पहले के चरण में है क्योंकि, ए.आई. से सहायता लेते समय, मानव पर्यवेक्षण का अत्यधिक महत्व है।

हां, फाइलों और अभिलेखों (रिकॉर्ड) को बनाए रखने का पारंपरिक तरीका अप्रचलित (ऑब्सोलीट) हो सकता है, लेकिन लोगों को ए.आई. के साथ संसाधित (प्रोसेस्ड) डेटा के कामकाज और प्रमाणीकरण (ऑथेंटिकेशन) की निगरानी करने की आवश्यकता स्थिर (कॉन्स्टेंट) रहेगी।

क्या यह निष्पक्ष सुनवाई (फेयर ट्रायल) के अधिकार को प्रभावित करेगा?

यह सलाह दी जाती है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करते समय, यह सुनिश्चित किया जाए कि ए.आई. हमारे संविधान के बुनियादी मूल सिद्धांतों (बेसिक फंडामेंटल प्रिंसिपल्स) को समझेगा।

ए.आई. मशीन लर्निंग पर आधारित है, यह उन विभिन्न कारकों (फैक्टर) का अध्ययन (स्टडी) करेगा जिन पर एक न्यायाधीश के निर्णय अधारित होते है। उसी के आधार पर वह नतीजे का अनुमान लगाएगा। हालांकि निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधीश को अपने निर्णय पर कारण बताने के लिए बाध्य होना चाहिए कि ऐसा निर्णय सही क्यों है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली, इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी भी निर्दोष को दोषी नहीं ठहराया जाएगा, भले ही उसके लिए 100 दोषी बरी हो जाएं। ए.आई. को इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए प्रोग्राम किया जाना चाहिए। 2020 में हमने देखा कि कैसे कुछ महीनों में दुनिया बदल सकती है। ए.आई. वरदान होगा या अभिशाप (बेन) यह भारत के लोगों द्वारा तय किया जाएगा।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लाखों परिवार कोर्ट से सही फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लंबी कोर्ट कार्यवाही, वकील की बहुत अधिक फीस के कारण लोग कर्ज में हैं। इसलिए, न्यायपालिका और उससे जुड़े लोगों की ओर से भविष्य की कुंजी (की) यानी ए.आई. को स्वीकार करना और कुल लंबित मामलों को कम करने और पीड़ित लोगों को राहत देने के लिए साथ काम करना अपरिहार्य (इनेस्केपेबल) है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

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