एक मनोरोगी अपराधी से कैसे निपटें- भारत और अन्य देशों में कानूनी प्रावधान

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Legal Provisions in India and Other Countries
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यह लेख दयानंद कॉलेज ऑफ लॉ से बीए-एलएलबी (ऑनर्स) करने वाले छात्र Revati Magaonkar द्वारा लिखा गया है। इस लेख में मनोरोगी (साइकोपैथिक) अपराधी की सटीक जानकारी देते हुए मनोचिकित्सा के विस्तृत प्रावधान और उससे संबंधित प्रावधान संक्षिप्त रूप से दिए गए हैं। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

जैसा कि हम सभी की एक विशिष्ट प्रकृति, सोच और अलग-अलग मानसिकता होती है, यह हर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग – अलग है। किसी व्यक्ति का स्वभाव, व्यवहार या सोच उसके सराउंडिंग, परवरिश और कभी-कभी आनुवंशिक गुणों पर निर्भर करता है। मनोरोगी शब्द व्यक्ति के व्यवहार को निर्धारित करता है। यह आमतौर पर किसी व्यक्ति की मानसिक बीमारी का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। साइकोपैथी का अपराधों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है, जो एक अपराधी की मानसिकता से संबंधित है। मनोरोगी शब्द मनोवैज्ञानिक कारकों (साइकोलॉजिकल फैक्टर्स) से संबंधित है। मनोरोगी व्यक्तित्व का इतिहास प्राचीन काल से लेकर इस आधुनिक युग तक पाया जा सकता है जिसका वैज्ञानिक ईवैल्यूएशन है। मनोरोगी अपराधियों का भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली (सिस्टम) पर एक अप्रासंगिक (इरेलेवेंट/इनकंसिक्वेंशनल) प्रभाव पड़ता है।

मनोरोगी शब्द का डिसएडवांटेज अक्सर पुलिस, बचाव पक्ष (डिफेंस) के वकील, पैरोल या जेल अधिकारियों जैसे कई अधिकारियों द्वारा अपने लिए लिया जाता है। यह मनोवैज्ञानिक लक्षणों का एक चयनित समूह है जो विशेष रूप से बचपन में शुरू होता है जो पीड़ित के जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है, यह प्रभाव उस व्यक्ति के जीवन के काम, परिवार, दोस्तों आदि के संबंधों में रिफ्लेक्ट होता है।

अपराधबोध (लेक ऑफ़ फीलिंग ऑफ़ गिल्ट), सहानुभूति, पश्चाताप और गैरजिम्मेदारी की भावना की कमी जैसे मनोरोगी लक्षणों वाले व्यक्ति। वर्तमान समय में कैलकुलेशन से पता चलता है कि 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुष जो गैर-संस्थागत (नॉन-इंस्टीट्यूशनल) हैं, वे मनोरोगी प्रतीत होते हैं। साइकोपैथिक डिसऑर्डर बाइपोलर डिसऑर्डर, पैनिक डिसऑर्डर, स्व-पूजा (सेल्फ वर्शिप्ड), पैनिक डिसऑर्डर आदि के समान ही सामान्य है।

मनोरोगी का व्यवहार

मनोरोगी का अर्थ

मनोरोगी शब्द का वर्णन एक ऐसे व्यक्तित्व के साथ किया जा सकता है जो कठोर है, जिसका कोई नैतिक मूल्य (मोरल वैल्यूज) नहीं है, वह भावुक (इमोशनल) नहीं है। यह शब्द आधिकारिक स्वास्थ्य निदान (ऑफीशियल हैल्थ डायग्नोसिस) नहीं है और आमतौर पर कानूनी और चिकित्सा क्षेत्र (मेडिकल फील्ड) द्वारा इसका उपयोग किया जाता है।

मूल रूप से इस शब्द का प्रयोग उन व्यक्तियों को निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) करने के लिए किया जाता था जो बेईमान, हृदयहीन और मेन्युपुलेटिव होते हैं। इस शब्द को अंत में समाजोपथ (सोशियोपाथ) में बदल दिया गया, इस तथ्य (फैक्ट) को हाईलाइट करने के लिए कि ऐसी मानसिकता वाले व्यक्ति समाज के लिए हानिकारक और खतरनाक हैं। इसलिए, कुछ समय बीतने के बाद रिसर्चर्स ने मनोरोगी शब्द का उपयोग करना पसंद किया, मनोरोगी विकार का निदान एक असामाजिक व्यक्तित्व विकार (एंटिसोशल पर्सन्यालीटी डिसऑर्डर) के साथ किया जा सकता है।

मनोरोगी का व्यवहार

मनोरोगी व्यवहार वाले व्यक्ति हिंसक, अमानवीय (इनह्यूमन) व्यवहार, कोल्ड हार्टेड होने की अधिक संभावना रखते हैं। इस तरह के विकार वाले व्यक्तियों में सहानुभूति के साथ सामान्य मनुष्यों की तरह भावनात्मक भावनाएं नहीं होती हैं। वे आमतौर पर गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार करते हैं, दूसरों के अधिकारों की अवहेलना (डिसगार्ड) या उल्लंघन करते हैं, सही और गलत के बीच अंतर नहीं करते हैं और पछतावा या सहानुभूति नहीं दिखाते हैं। वे आमतौर पर झूठ बोलते हैं, मेन्युपुलेट करते हैं और दूसरों को चोट पहुँचाते हैं। उन्हें सुरक्षा और जिम्मेदारी के बारे में जागरूकता नहीं है, मनोरोगी उनके बारे में एक सतही आकर्षण (सुपर फिशियल चार्म) रखते हैं और उनमें अधिक आक्रामकता और गुस्सा होता है। एक मनोरोगी के लक्षण अक्सर महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाए जाते हैं।

मनोरोगी के व्यवहार के पीछे के कारण

उदासी के कारण

मनोरोग से पीड़ित कुछ व्यक्तियों में अक्सर अपने परिवार के लिए भावनाएँ होती हैं लेकिन समाज पर भरोसा करने और उनके साथ व्यवहार करने यह उनके लिए मुद्दे होते हैं। अपनों से बिछड़ने या उनके मरने पर उनके मन को अक्सर चोट लग जाती है। वे प्यार चाहते हैं और देखभाल करना पसंद करते हैं लेकिन हिंसक स्वभाव वाले ऐसे व्यक्तित्व से प्यार करना हर किसी के लिए अक्सर संभव नहीं होता है, प्यार न मिलने से उन्हें और अधिक चिंता और अपराध की ओर धकेलते है।

कुछ मनोरोगी दुनिया को अपनी एक अलग तस्वीर दिखाते हैं ताकि वे यह सोचकर अपने वास्तविक स्वरूप को छिपाकर लोकप्रिय हो सकें जिससे दूसरे लोग उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे। मनोरोगी ज्यादातर अपने चरम उत्तेजना (एक्स्ट्रीम एक्साइटमेंट) के लिए जाने जाते हैं, लेकिन युक्तियों के रोमांच (टीप्सी एडवेंचर्स) के कारण यह केवल निराशा के साथ समाप्त होता है जिससे कन्फ्लिट्स और अवास्तविक अपेक्षाएं होती हैं।

जीवन में रोमांच की तलाश करने की अपनी इच्छा को नियंत्रित करने में असमर्थता और हमेशा अपनी कमजोरी का सामना करने के कारण कई मनोरोगी निराश हो जाते हैं। मनोरोगी अपने अनुभव से नहीं सीख सकते, निडर स्वभाव, हमेशा एक निराशाजनक जीवन का सामना करना उन्हें एक आशा नहीं देता है, भले ही अगर वे बदलने का प्रयास करना चाहते हों।

हिंसा और भावनाएं

अकेलेपन की भावना, समाज से आइसोलेटेड या सेपरेट होने और भावनाओं के दर्द के परिणामस्वरूप मनोरोगी अधिक क्रूर और हिंसक अपराधी हो सकते हैं। दुनिया के बारे में उनकी अलग-अलग मान्यताएं होती है और ऐसा लगता है कि पूरा समाज और दुनिया उनके खिलाफ है और अंत में वे खुद को कन्विंस करते हैं कि उन्हें अपने इंक्लिनेशन्स को पूरा करने के लिए एक विशेष लाभ, अधिकारों की आवश्यकता है। 

कुछ मनोरोगी अपराधियों ने खुद कहा है कि वे जीवन में ऐसे मुकाम पर पहुंच जाते हैं जहां कोई ‘यू-टर्न’ नहीं होता और उन्हें सामान्य दुनिया से दूर हो जाने का अहसास होता है। ये भावनाएँ उन्हें और अधिक खतरनाक और विचित्र अपराधी बनने के लिए प्रेरित करती हैं।

डेहमर और नेल्सन मनोरोगी अपराधियों के उदाहरण हैं जिन्होंने अकल्पनीय अकेलेपन और सामाजिक असफलताओं का सामना किया जो उनके द्वारा व्यक्त की गई असहनीय चीजें बन गईं। वे न चाहते हुए भी लोगों को मार देते हैं क्योंकि लाशें उन्हें कभी भी जीवित इंसानों की तरह नहीं छोड़तीं है।

सुरेंद्र कोली (नोएडा सीरियल मर्डर, निठारी केस)

इस केस को नोएडा मर्डर केस या निठारी सीरियल मर्डर, निठारी कांड के नाम से जाना जाता है। यह सबसे दिल दहला देने वाला और क्रूर आपराधिक मामला था जो 2006 के वर्ष में एक सामने आया गया मामला है। यह अपराध निठारी गांव में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढर के घर में किया गया था, जो कि नोएडा (दिल्ली), भारत में 2005 और 2006 वर्ष में स्थित था। इस मामले में सेक्शुअल असॉल्ट, हत्या, नरभक्षण (कैनीबलिज्म) और नेक्रोफिलिया (मृत मानव शरीर के प्रति यौन आकर्षण या (लाशों) के साथ यौन क्रिया जैसे क्रूर और विचित्र अपराध शामिल हैं।

उक्त मामले में निठारी गांव (नोएडा) सेक्टर 31 से बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं गायब थे। यह तब हुआ जब सुरिंदर कोली नाम का व्यक्ति व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढर के बंगले में घरेलू सहायक के रूप में आया, जिसका घर भी सेक्टर 31 में स्थित था। निठारी गांव के सबसे पहले एक 14 वर्षीय लड़की 8 फरवरी 2005 की तारीख से लापता हो गई, उसके माता-पिता की रिपोर्ट दर्ज करने के प्रयास असफल रहे। 

तथ्य (फैक्ट्स)

  • 7 मई 2006 को, पायल नाम की एक लड़की अपने पिता को बताकर मोनिंदर सिंह के बंगले में गई, लेकिन वह घर नहीं लौटी और लापता हो गई, उसके पिता ने उसे उल्लिखित बंगले में खोजा लेकिन कोली और मोनिंदर दोनों ने इस बयान से इनकार किया कि पायल बंगले पर आई थी। 
  • पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया तो काफी एफर्ट्स के बाद वह एसएसपी के पास गया और पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली। पायल के सेलफोन की कॉल हिस्ट्री का पता लगाया गया और कोली ने उसे बंगले पर बुलाने के लिए आखिरी कॉल की थी यह सामने आया। उस नेतृत्व के साथ पुलिस ने आगे की जांच के लिए कोली को गिरफ्तार कर लिया लेकिन वह पंढर की मदद से जल्द ही रिहा कर दिया गया। 
  • साथ ही, पुलिस को ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो उन्हें पायल तक ले जा सके लेकिन कॉल हिस्ट्री के आधार पर उन्हें लीड मिल गई थी। पुलिस से सहयोग न मिलने पर पायल के पिता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और अदालत ने जांच का आदेश दिया, जिसमें पुलिस को मोनिंदर सिंह के बंगले के पीछे के नाले से भारी संख्या में मानव कंकालों से भरे प्लास्टिक बैग मिले।
  • उस सबूत पर, मोनिंदर सिंह पंढर और कोली दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके बाद अधिक कंकाल मिले। इस जांच ने अन्य लापता बच्चों के मामले को खोल दिया, बहुत दबाव था, जिसके परिणामस्वरूप यूपी सरकार ने मामला सीबीआई को दे दिया।
  • 60 दिनों के प्रयासों के बाद सीबीआई ने कोली के कबूलनामे (कन्फेशन) के लिए मजिस्ट्रेट के पास आवेदन (एप्लिकेशन) किया, उसने कबूल किया कि उसने कैसे 9 लड़कियों, 5 वयस्क महिलाओं और 2 लड़कों को कैसे योजना बनाकर और उस योजना को पूर्ण किया, जिसके कारण वे बंगले में आए। उसने उन सभी की हत्या कर दी और उन शवों के साथ यौन संबंध (सेक्शुअल इंटरकोर्स) बनाने की कोशिश की, उसने सभी शवों को काट दिया और उसका कुछ हिस्सा खा लिया और शेष को बंगले के पीछे के नाले में फेंक दिया। 
  • निचली अदालत द्वारा पंढर और कोली दोनों को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद कोली को विशेष सीबीआई अदालत ने हत्या और बलात्कार के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन पंढर को उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था और कोली की मौत की सजा की पुष्टि की थी, लेकिन उसके बाद कई स्टे ऑर्डर और देरी से विभिन्न अधिकारियों को शामिल करके सीबीआई ने दोनों को पिंकी सरदार मामले में हत्या और बलात्कार के लिए दोषी ठहराया, यह उन 16 हत्याओं के मामले में से 8 वां था और अन्य 8 मामलों में अभी तक फैसला नहीं दिया गया है।

यह मामला मनोरोगी अपराधी द्वारा अपराध की ब्रुटल, क्रूर और विचित्र प्रकृति का एक उदाहरण है। 

कानूनी कमी (लीगल लैक्युना)

हर कानून में कुछ कमियां और गैप्स होते हैं, जो अपराधियों को बरी होने, सजा कम करने का रास्ता देती हैं। कानून में, यह शब्द उस स्थिति को संदर्भित करता है जहां कोई लागू कानून नहीं है। जब किसी निश्चित स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून नहीं होता है, उस समय कानून के निर्णायक निकाय (लॉ एडजूडीकेटिंग बॉडीज) यह निष्कर्ष निकालते हैं कि कानून में एक कमी है। इस तरह की खामियां ज्यादातर आंतरराष्ट्रीय कानून में पाई जा सकती हैं क्योंकि आंतरराष्ट्रीय न्यायालय और अन्य तदर्थ अदालतें (एड हॉक कोर्ट्स) बीच के अंतर को भरने के लिए ऐसे नए कानूनों का अविष्कार करने में असमर्थ हैं।

विकलांग व्यक्ति (समान अवसर और अधिकारों की सुरक्षा, पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, (पर्सन्स विथ डिसएबिलिटी (इक्वल अपॉर्च्युनिटी एंड प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स, फुल पार्टिसिपेशन) एक्ट) 1995

यह अधिनियम भारत सरकार द्वारा विकलांगों के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए ईनैक्ट किया गया है कि वे भी राष्ट्र के निर्माण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह अधिनियम विकलांग लोगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है, यह रोजगार, शिक्षा के लिए पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन), आरक्षण, विकलांग लोगों के लिए बेरोजगारी भत्ता (अलाउंस) आदि के लिए निवारक (प्रिवेंटिव) और प्रचार (प्रोमोशनल) दोनों पहलुओं को प्रदान करता है। इस अधिनियम में विकलांग व्यक्तियों जैसे व्यक्तियों के लिए प्रावधान किए गए हैं जिन व्यक्तियों में नीचे दी गई अक्षमताएं है: 

विकलांगता में विशेष रूप से अंधापन, ठीक किया हुआ कुष्ठ (क्योर्ड लेप्रोसी), सुनने की समस्या, लोकोमोटिव (जैसे दौड़ना, चलना, तैरना आदि) विकलांगता, मानसिक मंदता (सोच और विचार प्रक्रिया की धीमी प्रक्रिया), मानसिक बीमारी-चिंता, द्विध्रुवी (बिपोलार), दर्दनाक (ट्रॉमेटिक) तनाव, अवसाद (डिप्रेशन), और जुनूनी-बाध्यकारी विकार (ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसआर्डर) आदि से संबंधित विकार शामिल हैं।

मानसिक स्वास्थ्य के साथ विकलांगता अपराधी के विशेष रूप से मनोरोगी द्वारा सबसे अधिक दुरुपयोग की जाने वाली अक्षमता है, क्योंकि मानसिक मुद्दे को साबित करना या अस्वीकार करना आसान नहीं है, यह अंधेपन, सुनने की समस्या वाले अन्य व्यक्तियों के रूप में अस्वीकृत होने वाली सबसे महत्वपूर्ण अक्षमताओं में से एक है। लोकोमोटर डिसऑर्डर को विज्ञान और तकनीक की मदद से साबित किया जा सकता है जो चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपलब्ध हैं। यहां तक ​​कि विज्ञान भी इतना विकसित हो चुका है और इतने सारे नए आविष्कारों के साथ मानव मन या मानसिक स्थिति की जांच करने में अभी भी एक कमी है।

अधिकतर दुरुपयोग किए गए विकलांग (डिसएबिलिटीज)

मानसिक मंदता (मेंटल रीटार्डेशन)

यह एक ऐसी स्थिति है जहां एक व्यक्ति के दिमाग का पूर्ण विकास नहीं हो रहा है और इसे असामान्य बुद्धि (सबनॉर्मल इंटेलिजेंस) स्तर वाले व्यक्ति के रूप में बताया जा सकता है।

मानसिक बीमारी

इसे मानसिक मंदता के अलावा किसी अन्य मानसिक विकार के रूप में परिभाषित किया गया है।

विकलांग व्यक्ति अधिनियम (पर्सन्स विथ डिसएबिलिटीज), 1995 के तहत प्रदान किए गए लाभ और अधिकार

प्रत्येक विकलांग बच्चे को शैक्षिक सुविधाएं प्रदान की जाएंगी और उन्हें 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक मुफ्त शिक्षा का अधिकार है।

  • विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए उपर दिए गए विकलांग से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेकेंसीज के लिए 3% आरक्षण होगा।
  • विकलांग व्यक्तियों को सहायता और उपकरण मिलेंगे और उन्हें आवासीय उपयोग या विकलांग एंटरप्रेनूर्स आदि व्यवसाय या कारखानों के लिए कंसेशनल प्राइस पर भूमि अलॉट की जानी चाहिए।
  • विकलांग लोगों के लिए रेल, बस, सार्वजनिक भवन, विमान तक आसान पहुंच की सुविधा होनी चाहिए।
  • विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के गैर सरकारी संगठनों को फाइनेंशियल सहायता मिलनी चाहिए।

अधिनियम का दुरुपयोग 

इस अधिनियम का कई अपराधियों द्वारा दुरुपयोग किया गया है, विशेष रूप से मनोरोगी अपराधियों द्वारा और कई समय अधिकारियों द्वारा कुछ अपराधियों को बरी करने के लिए, सजा को कम करने के लिए, प्रावधानों के अन्य लाभों में मदद की है। इसमें मनोरोगियों, जेल अधिकारियों, पुलिस, बचाव पक्ष के वकीलों आदि की मदद करने में अधिकांश सरकारी अधिकारी शामिल हैं। यह इस कानून की एक बड़ी कमी है। मनोरोगी अपराधी आमतौर पर विकलांग व्यक्तियों को प्रदान किए गए प्रावधानों का उपयोग करते हैं, वे विभिन्न मानसिक विकारों के साथ खुद को पागल, अस्वस्थ या मानसिक रूप से बीमार बताते हैं। जो भारत की न्याय व्यवस्था के लिए खतरा बनता जा रहा है। 

नेशनल ट्रस्ट एक्ट, 1999

नेशनल ट्रस्ट एक्ट, 1999 नीचे दिए गए विकारों या विकलांग से पीड़ित व्यक्तियों के कल्याण के लिए काम कर रहा है:

ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-विकलांगता। इन अक्षमताओं को नेशनल ट्रस्ट द्वारा निम्नानुसार परिभाषित किया गया है:

  1. ऑटिज़्म असमान कौशल विकसित होने की एक स्थिति है जो मुख्य रूप से किसी व्यक्ति की सामाजिक और संचार क्षमताओं को प्रभावित करती है जिसे दोहराव और कर्मकांडीय व्यवहार द्वारा चिह्नित किया जा सकता है।
  2. सेरेब्रल पाल्सी को किसी व्यक्ति की गैर-प्रगतिशील स्थितियों के समूह के रूप में जाना जाता है, जिसे असामान्य मोटर नियंत्रण मुद्रा के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो मस्तिष्क के घाव या जन्म के पूर्व के घाव, प्रसवकालीन या शिशु अवधि के दौरान हुई चोटों के कारण होता है।
  3. बहु-विकलांगता का अर्थ है दो या दो से अधिक विकलांगों का संयुक्त होना, जिन्हें विकलांग व्यक्ति अधिनियम, 1995 की धारा 2(1) के तहत वर्णित किया गया है ।
  4. गंभीर विकलांगता का अर्थ है 80% या एक या एक से अधिक बहु विकलांगताओं में से अधिक की विकलांगता होना।

इस अधिनियम का उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों को सक्षम और सशक्त बनाना है ताकि वे अधिक से अधिक स्वतंत्रता के साथ रह सकें और अपने कम्युनिटी के करीब भी रह सकें। यह उन व्यक्तियों की सहायता करने के लिए सुविधाओं को मजबूत करके उनकी मदद करता है ताकि वे अपने परिवारों के साथ रह सकें और उन लोगों की भी मदद कर सकें जिनके परिवार नहीं हैं। इसने समान अवसर की प्राप्ति और उन व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा आदि की सुविधा प्रदान की है।

यद्यपि यह अधिनियम विकलांग व्यक्तियों, मंदबुद्धि और सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए इनेक्ट किया गया है, कई अन्य आपराधिक अपराधी इस अधिनियम का उपयोग अपने लाभ के लिए कर रहे हैं ताकि उन्हें आपराधिक न्याय प्रणाली से सुरक्षा मिल सके। यह ज्यादातर मनोरोगियों द्वारा किया जाता है, जिनके पास विभिन्न कानूनों में खामियों को खोजने में असामान्य बुद्धि होती है। तो हम कानून की कमी का पता लगा सकते हैं जो अन्य निर्दोष व्यक्तियों के लिए एक बड़ा नुकसान हो सकता है जिन्हें मनोरोगी अपराधियों के कारण न्याय नहीं मिलता है। अधिकांश समय कानूनी अधिकारियों के लिए यह साबित करना कठिन होता है कि अपराधी को कोई विकलांग या कोई मानसिक बीमारी या मंदता आदि नहीं है।

यह अधिनियम मनोरोगी अपराधियों को उनके मानसिक विकार के कारण सुरक्षा भी प्रदान करता है, इसका उद्देश्य है और उन्हें स्वतंत्र और उनके सामाजिक लोगों के पास रखने का प्रयास करता है ताकि ऐसे व्यक्तियों के संचालन (ऑपरेटिंग) के विभिन्न माध्यमों से उन्हें ठीक किया जा सके। 

विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिए यूनाईटेड नेशन (यूएन) कन्वेंशन 2006 और भारतीय कानून

विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन यह संयुक्त राष्ट्र के आंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों की एक ट्रीटी है जिसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करना है। कन्वेंशन के दलों को कानून के तहत समानता के पूर्ण आनंद के बारे में सुरक्षा, प्रचार और सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। यह सम्मेलन दुनिया के वैश्विक विकलांगता अधिकारों और आंदोलन में एक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहा है। यह विकलांग व्यक्तियों को न केवल दान या किसी चिकित्सा उपचार के लिए एक वस्तु के रूप में देखता है बल्कि अक्सर उन सभी व्यक्तियों को समाज के समान सदस्यों के रूप में देखता है।

भले ही यूनाईटेड नेशन द्वारा किसी नए अधिकार के आधिकारिक कार्य को अधिकृत नहीं किया गया हो, ये प्रावधान मानवाधिकारों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करते हैं, साथ ही राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए समर्थन प्रदान करने के लिए बाध्य करता हैं कि अधिकारों का अभ्यास किया जा सकता है। विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर यह यूनाईटेड नेशन कन्वेंशन पहला साधन है जिसने स्पष्ट रूप से और विस्तार से विकलांगता को संबोधित किया है।

इसके अलावा, सीआरपीडी के अनुच्छेद 12 के सामान्य सिद्धांत और ऑब्लिगेशन विकलांग लोगों को अधिक शक्ति और समर्थन देते हैं, इसलिए उनके पास सम्मेलन के तहत उपलब्ध अन्य अधिकारों को प्राप्त करने की क्षमता होनी चाहिए। कन्वेंशन के अनुच्छेद 5 में आश्वासन दिया गया है कि राज्यों की पार्टियां यह मानती हैं कि कानून के समक्ष और कानून के तहत सभी समान हैं और बिना भेदभाव के समान सुरक्षा और समान लाभ पाने के हकदार हैं। कन्वेंशन के अनुच्छेद 13 के तहत यह बताया गया है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि सभी विकलांग व्यक्तियों को न्याय की समान पहुंच हो।

प्रत्येक राज्य को अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के माध्यम से वर्तमान कन्वेंशन के ऑब्लिगेशन को प्रभावी करने के लिए किए गए उपायों और इसके संबंध में की गई प्रगति के बारे में समिति को प्रस्तुत करनी होती है। भारत ने विकलांग व्यक्तियों पर इस यूनाईटेड नेशन कन्वेंशन (सीआरपीडी) 2006 की 2007 के वर्ष में पुष्टि (रेटिफाय) किया गया है। 2013 का बिल स्पष्ट रूप से सीआरपीडी के साथ भारतीय लेजीस्लेचर का सामंजस्य (हार्मोनाइज) स्थापित करना चाहता है ।

मानसिक और शारीरिक अक्षमता के लिए भारत में अन्य कानून

  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, 2013 को 19 अगस्त 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया था, इसका उद्देश्य मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सुरक्षा प्रदान करना है। यह लेजिस्लेटिव इनिशिएटिव मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों की स्थिति में सुधार करने और अच्छी मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के उनके अनुभव को बढ़ाने के लिए असाधारण रूप से महत्वपूर्ण शुरुआत है।
  • विकलांग व्यक्तियों का अधिकार (आरपीडब्ल्यू) अधिनियम, 2016 

इस अधिनियम ने सभी जिम्मेदारी उपयुक्त सरकार पर डाल दी है ताकि वे यह सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी उपाय करें कि विकलांग व्यक्तियों को उनके अधिकारों की समानता का आनंद मिलता है। इसमें शारीरिक अक्षमता, बौद्धिक अक्षमता, मानसिक व्यवहार, एक अन्य चिकित्सा रोग, बहु-विकलांगता के कारण होने वाली अक्षमता शामिल है।

टेस्टामेंट्री क्षमता

टेस्टामेंट्री क्षमता किसी व्यक्ति की वैध वसीयत बनाने या बदलने की कानूनी और मानसिक क्षमता है। टेस्टामेंट्री क्षमता का ईवैल्यूएशन कानूनी या चिकित्सा पेशेवरों द्वारा किया जा सकता है जिनका उपयोग विभिन्न कारणों से किया जाता है, लेकिन कानूनी रूप से इसका उपयोग कानूनी उपकरणों के लिए किया जाता है। किसी व्यक्ति की चिकित्सा स्थिति किसी व्यक्ति की वसीयत को निष्पादित करने की कानूनी क्षमता को बाधित या समाप्त कर सकती है। इसलिए प्रक्रिया का आकलन (कोलाबोरेट) करते समय चिकित्सा और कानूनी पेशेवरों के साथ सहयोग करना महत्वपूर्ण है। 

टेस्टामेंट्री क्षमता का ईवैल्यूएशन करते समय मानसिक क्षमता को जानना अधिक उपयोगी और महत्वपूर्ण है ताकि व्यक्ति किसी भी लेनदेन या कानून द्वारा मान्यता प्राप्त स्थिति में प्रवेश करने के लिए किसी व्यक्ति की समझ के उद्देश्य, महत्व और इसके परिणामों और कानूनी क्षमता को समझ सके। जैसा कि संज्ञानात्मक शिथिलता (कॉग्निटिव डिस्फंक्शन) के विभिन्न पैटर्न के ईवैल्यूएशन में चिकित्सा समझ विकसित की गई है और पागलपन ने टेस्टामेंट्री क्षमता को और अधिक जटिल बना दिया है। चूंकि कानूनी पेशेवरों को कानूनी क्षमता में और इसके विपरीत किसी व्यक्ति की चिकित्सा स्थिति जानने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। किसी व्यक्ति की टेस्टामेंट्री क्षमता को जानने के लिए दोनों कॉम्बिनेशन का होना आवश्यक है, संचार की कमी, चिकित्सा और कानूनी पेशेवरों दोनों के बीच शब्दावली की स्पष्टता में ईवैल्यूएशन की उचित प्रक्रिया का अभाव हो सकता है।

असेसमेंट व्यक्ति के द्वारा किए गए किसी भी विकल्प के पीछे के कारणों या कारणों को समझने, संवाद करने और उनकी सराहना करने की क्षमता पर विचार करके किया जाना चाहिए। पर्याप्त ईवैल्यूएशन के लिए व्यक्ति की प्रासंगिक जानकारी को वापस बुलाने या बाधित करने की क्षमता पर विचार करने की आवश्यकता है, निर्णय के पीछे के कारण को समझें, और विशेष पसंद के लाभों और जोखिमों का ईवैल्यूएशन करने और उसी को संप्रेषित करने और उसे बनाए रखने की क्षमता होनी चाहिए।

असेसमेंट तीन रूपों में होना चाहिए, पहला कानूनी पेशेवर द्वारा प्रारंभिक असेसमेंट, दूसरा चिकित्सकीय पेशेवर द्वारा नैदानिक असेसमेंट और तीसरा विशिष्ट कार्य करने के लिए व्यक्ति की कानूनी क्षमता का निर्धारण करने के लिए।

तो मनोरोगी की टेस्टामेंट्री क्षमता का ठीक से आकलन नहीं किया जा सकता है। क्योंकि उसके पास मानसिक स्थिरता और सही और गलत को समझने में असमर्थता नहीं है।

अपराधी दायित्व (लाएबिलिटी)

मनोरोगी की पहचान नैतिक रूप से दोषपूर्ण और संभावित रूप से अत्यधिक विघटनकारी (पोटेंशियली हाईली डिसरप्टिव) व्यक्ति के रूप में की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि मनोरोगी जानबूझकर बुरे होते हैं, जो एक गंभीर सजा के पात्र होते हैं। मनोचिकित्सक ने वर्तमान में इस बात का समर्थन किया कि मनोरोगियों में मनोरोगी के बजाय असामाजिक व्यक्तित्व विकार हैं। कई विद्वान और प्रख्यात वकील इसी निष्कर्ष का समर्थन करते हैं कि मनोरोगियों को उनके द्वारा किए गए आपराधिक कृत्यों के लिए आपराधिक रूप से दंडनीय नहीं ठहराया जाना चाहिए।

मनोरोगी और न्यायिक प्रतिक्रिया 

सदियों से यह साबित हो चुका है कि मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति या मनोरोगी स्वयं न्यायिक व्यवस्था के लिए एक बड़ी कठिनाई हैं। लेकिन टेक्नोलॉजी के विकास के कारण, विभिन्न मानसिक विकारों के प्रभावों को समझना आसान हो गया है, ज्ञान की वृद्धि के साथ अदालतें अब खतरनाक प्रतिवादियों (रिस्पॉडेंट्स) के असेसमेंट का निर्णय लेने और उनका उपयोग करने के लिए तैयार हैं। न्यायिक प्रणाली की दृष्टि में, मनोरोगी निडर होते हैं, जिससे मनोरोगी को दूसरों के साथ मेलजोल करना अधिक कठिन हो जाता है।

जैसा कि उनका निदान करना कठिन है, कानून कहता है कि मनोरोगी फैक्चुअल रूप से पागल नहीं हैं और उनके द्वारा किए गए आपराधिक अपराधों के लिए दंडनीय होना चाहिए। लेकिन यह साबित करना मुश्किल है कि उन्होंने अपराध नहीं किया है और बस उस रास्ते को चुनने के लिए थोड़ा सा जाना है। लेकिन केवल इस वजह से यह कहना वाकई मुश्किल है कि वे मनोरोगी नहीं हैं और कुछ अलग हैं। 

यह एक ऑब्जर्वेशन है कि मनोरोगी एक ऐसी बीमारी है जो बचपन में आक्रामकता, सजा के प्रति विरोध, भावनात्मक लगाव या अन्य लोगों के लिए चिंता की कमी, सामाजिक रूप से बातचीत करते समय स्वार्थी, बेईमान आदि की विशेषता वाले व्यक्ति की निरंतर आजीवन स्थिति है। कई शोधकर्ताओं और प्रख्यात व्यक्तित्वों द्वारा उनका वर्णन भी किया गया है, कॉल्ड ब्लडेड वाले अंतःस्रावी शिकारियों (इंट्रा स्पीसीज प्रेडियाटर्स) के रूप में जो केवल दूसरों का उल्लंघन करने के लिए उनके करीबी लोगों के लिए भी हैं।

मनोरोगी अन्य यौन अपराधों से भ्रमित हैं

बड़े समुदाय के नमूने में मनोरोगी लक्षण और विचलित यौन हित (डेविएंट सेक्शुअल इंटरेस्ट) लिंग के पार हैं। इसके सहसंबंध विश्लेषण ने विचलित यौन रुचियों और मनोरोगी लक्षणों के बीच सकारात्मक संबंध का समर्थन किया है। वापसी विश्लेषण ने संकेत दिया कि मनोरोगी के असामाजिक पक्ष में अद्वितीय परिवर्तन ने मनोरोगी के छह विचलित यौन हितों को पहले से दिखाया। हाल के एक अध्ययन में, यह पाया गया कि रिहाई के 10 साल के भीतर इतने सारे यौन अपराधियों को नए यौन अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

मनोरोगी लोगों ने यौन अपराधों के कुछ सबसे बुरे रूप किए हैं। इतने सारे शोधकर्ताओं ने मनोरोगी अपराधियों का वर्णन किया है जिन्होंने विचित्र क्रूरता के साथ यौन अपराध किए हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश भयावह रूप से दुखद, ठंडे, क्रूर, कठोर, शून्य भावनाओं के साथ अत्यधिक खतरनाक, जोड़ तोड़ करने वाले व्यक्ति हैं । 

मनोरोगी व्यक्तित्व में नैतिकता और विवेक की कमी होती है, यह एक विशेषता है जो यौन उत्पीड़न की सुविधा प्रदान करती है। यदि किसी व्यक्ति को अपने कार्यों के लिए थोड़ी सहानुभूति या पछतावा नहीं है तो कोई भी उसे दूसरे व्यक्तियों का यौन शोषण करने से नहीं रोक सकता है। ऐसे मनोरोगी अपराधी हैं जो एक विशिष्ट अवधि के लिए एक साथ विभिन्न पीड़ितों जैसे वयस्क महिलाओं, बच्चों, कैदियों आदि के साथ यौन अपराध करते हैं। 

कुछ मनोरोगी अपराधियों ने स्वयं अपराध के फैक्ट्स और इसके पीछे के कारणों का वर्णन किया है, कुछ ने कहा कि वे एक प्रकार के यौन अपराध और पीड़ित से ऊब जाते हैं इसलिए वे पीड़ितों को इस्तेमाल करने और मारने के बाद एक साथ बदल देते हैं।

भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड) के तहत दिए गए प्रावधान: विकलांग व्यक्ति

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली और कानून ने विभिन्न अपराधों के लिए दंड को कवर किया है, लेकिन कुछ अपवाद (एक्सेप्शन) ऐसे भी हैं जहां आपराधिक अपराधी को अपराध के लिए दंडित नहीं किया जाता है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 सामान्य अपवादों के तहत अध्याय 4 के तहत ऐसे बचावों से निपट रहा है जो धारा 76 से 106 तक दिए गए हैं । इसमें उन सभी अपराधों को शामिल किया गया है जो उन अनुमानों पर आधारित हैं जो कहते हैं कि सभी व्यक्ति अपने द्वारा किए गए अपराधों के लिए सजा के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।

इस कानून के तहत दिए गए कुछ सामान्य बचाव पागलपन, शैशवावस्था और नशा हैं जो अपराधों के लिए प्रतिवादी के दायित्व को कम करते हैं। पागलपन को कानूनी बचाव या अपराध के बहाने के रूप में इस्तेमाल करने के लिए, व्यक्ति को अपनी अक्षमता दिखानी होगी।

धारा 84 सामान्य बचाव से संबंधित है, यह कहता है कि अपराध जो विकृत दिमाग के व्यक्ति द्वारा किया जाता है वह अपराध नहीं है क्योंकि वह अधिनियम की प्रकृति को जानने में असमर्थ है या फैक्ट यह है कि वह गलत है या कानून के विपरीत है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, ऐसे बहुत से कानून हैं जो मानसिक विकलांगों आदि की मदद करते हैं और उन्हें समान सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये अधिनियम और कानून मनोरोगियों के इलाज की कोशिश करते हैं ताकि वे सामान्य जीवन में वापस आ सकें। लेकिन जैसा कि हम देखते हैं कि मनोरोगी को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए बहुत सारे कानून हैं, लेकिन जब एक सीरियल किलर मनोरोगी की बात आती है, जिसने दुनिया का ध्यान आकर्षित करने और खबरों में रहने के लिए खुद अपना व्यक्तित्व बनाया है, तो उसने क्रूर और विचित्र की गंभीर प्रकृति की है। क्या मानवता और समाज के खिलाफ अपराधों को इन कानूनों के तहत सुरक्षा की जरूरत है। विकलांगों और मानसिक विकारों वाले व्यक्तियों के साथ सामान्य लोगों के समान व्यवहार करना सही है लेकिन मनोरोगी अपराधी अपराधियों या सीरियल किलर के साथ ऐसा नहीं हो सकता। मनोरोगी अपराधी जिन्होंने तथ्य और कानून को जाने बिना वास्तव में अपराध किए हैं।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

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