हिंदू कानून के तहत वसीयतनामा संरक्षकता

0
2259
Hindu Minority and Guardianship Act
Image Source- https://rb.gy/npownw

यह लेख सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, हैदराबाद के Nishant Vimal ने लिखा है, जो हिंदू कानून के तहत वसीयतनामा संरक्षकता (टेस्टामेंट्री गार्डियनशीप) पर है। इस लेख में लेखक वसीयत के माध्यम से एक अभिभावक (गार्डियन) की नियुक्ति की अवधारणा पर चर्चा करते है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

वसीयतनामा अभिभावक की अवधारणा और इसकी उत्पत्ति

वसीयतनामा अभिभावक एक अभिभावक होता है जिसे वसीयत के माध्यम से नियुक्त किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि प्राकृतिक अभिभावक की मृत्यु के बाद भी बच्चे के पास एक अभिभावक हो, जिसे बच्चे पर या उसकी संपत्ति पर पर्यवेक्षण (सुपरविजन) की आवश्यकता हो सकती है। यदि प्राकृतिक अभिभावक जीवित हैं तो एक वसीयतनामा अभिभावक, अभिभावक के रूप में कार्य नहीं कर सकता है।

ब्रिटिश काल के दौरान, हिंदुओं को वसीयतनामा की शक्तियां प्रदान की गईं और फिर, यह एक पिता के लिए बच्चे के प्राकृतिक अभिभावक होने के अधिकार से मां को बाहर करने का एक तरीका था।

1956 के हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम (हिंदू माइनोरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट) के अधिनियमन के बाद, यह स्पष्ट है कि प्राकृतिक अभिभावकों की किसी भी अन्य अभिभावक पर वरीयता (प्रिफरेंस) होगी। यदि पिता एक वसीयतनामा अभिभावक नियुक्त करता है और माता उससे अधिक जीवित रहती है, तो वह प्राकृतिक संरक्षक होगी। वसीयतनामा अभिभावक केवल माता के गुजरने के बाद ही अपने अधिकारों और शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

संरक्षकता के अन्य रूप

  1. प्राकृतिक अभिभावक: ये प्राथमिक अभिभावक होते हैं, और ये आमतौर पर पिता, माता और पति होते हैं। पिता को प्राकृतिक अभिभावक माना जाता है और उसके बाद माता को। समानता का मुद्दा गीता हरि हरन बनाम भारतीय रिजर्व बैंक के मामले में उठाया गया था, जहां धारा 6 (a) की संवैधानिकता को उठाया गया था क्योंकि इसमें कहा गया था कि, पहले पिता प्राकृतिक अभिभावक होंगे और फिर उनके बाद मां होगी। इसे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना गया जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है। अदालत ने जवाब दिया कि ‘फिर उसके बाद’ शब्द को ‘अनुपस्थिति में’ के रूप में समझा और व्याख्या किया जाना है और इसलिए यह अल्ट्रा वायर्स यानी असंवैधानिक नहीं है।
  2. न्यायालय द्वारा नियुक्त अभिभावक: न्यायालय अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890 के तहत अभिभावकों की नियुक्ति करते हैं। आमतौर पर, जिला अदालत इस शक्ति का प्रयोग करती है, और कुछ आवश्यकताएं हैं जिन्हें नियुक्त व्यक्ति को पूरा करने की जरूरत होती है। प्रस्तावित व्यक्ति की उम्र, लिंग और बच्चे की आवश्यकताओं के साथ माता-पिता की इच्छाओं पर विचार किया जाता है। बच्चे के कल्याण को अत्यधिक महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि यह सर्वोपरि है।
  3. कोई भी व्यक्ति जिसे किसी भी न्यायालय के वार्ड से संबंधित किसी अधिनियम के तहत कार्य करने का अधिकार है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 32 के अनुसार, उस संपत्ति को बनाए रखने के उद्देश्य से एक अभिभावक की नियुक्ति की जा सकती है, जो फिलहाल वार्ड के न्यायालय की हिरासत में है। नाबालिग के अभिभावक को उसकी और उसकी संपत्ति की देखभाल के लिए कोर्ट ऑफ वार्ड्स एक्ट के प्रावधानों के तहत नियुक्त किया जा सकता है।

वसीयतनामा अभिभावक की नियुक्ति कौन कर सकता है?

निम्नलिखित व्यक्तियों के पास एक वसीयतनामा अभिभावक को नियुक्त करने की शक्ति और अधिकार है:

  1. एक हिंदू पिता, या तो प्राकृतिक या दत्तक (एडोप्टिव)
  2. एक हिंदू मां, या तो प्राकृतिक या दत्तक।
  3. एक हिंदू विधवा मां, या तो प्राकृतिक या दत्तक।

वसीयतनामा अभिभावक की शक्तियां

हिंदू अप्राप्तवयता और अभिभावक अधिनियम 1956 की धारा 9 में वसीयतनामा अभिभावक और उसकी शक्तियों के बारे में बताया गया है।

धारा 9 (1) में कहा गया है कि एक हिंदू पिता, जो एक नाबालिग वैध बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है, उसके पास किसी भी व्यक्ति को अपनी वसीयत में शामिल करके उस बच्चे का अभिभावक नियुक्त करने का अधिकार और शक्ति है। वह व्यक्ति और उसकी संपत्ति की देखभाल करने वाला अभिभावक होगा।

क्या पिता द्वारा की गई नियुक्ति माता द्वारा की गई नियुक्ति पर प्रभावी होगी?

जैसा कि धारा 9(2) में उल्लेख किया गया है, यदि माता अपनी वसीयत में किसी वसीयतनामा अभिभावक को नियुक्त करती है, तो पिता द्वारा की गई नियुक्ति अप्रभावी हो जाएगी। माता द्वारा नियुक्त वसीयतनामा अभिभावक की वरीयता होगी। लेकिन अगर माँ अपनी वसीयत में किसी का उल्लेख करने में विफल रहती है, तो पिता द्वारा नियुक्त वसीयतनामा अभिभावक, अभिभावक बन जाएगा।

उदाहरण के लिए, A वह पिता है जिसने अपनी मृत्यु के बाद के लिए C को वसीयतनामा अभिभावक नियुक्त किया। उनकी मृत्यु हो गई और B, मां, धारा 6 (a) के अनुसार प्राकृतिक अभिभावक बन जाती है। वह D को उनके बेटे, X के वसीयतनामा अभिभावक के रूप में नियुक्त करती है। B की मृत्यु के बाद, D वसीयतनामा अभिभावक बन जाएगा क्योंकि पिता मां से पहले मर जाता है, इसलिए यदि मां किसी को नियुक्त करती है तो पिता के द्वारा की गई नियुक्ति अमान्य हो जाएगी। ऐसी स्थिति में मां ने D को नियुक्त किया, इसलिए वह अभिभावक बन जाएगा।

एक नाबालिग वैध बच्चे के मामले में, धारा 9 (3) में कहा गया है कि एक हिंदू विधवा और एक हिंदू मां, दोनों बच्चे और उसकी संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए एक अभिभावक नियुक्त कर सकते हैं। बशर्ते कि बच्चे का पिता प्राकृतिक अभिभावक होने के लिए कानूनी रूप से अयोग्य हो।

धारा 9 (4) में कहा गया है कि एक हिंदू मां, जो प्राकृतिक अभिभावक होने की हकदार है, किसी भी नाबालिग नाजायज बच्चे के लिए उसकी और उसकी संपत्ति की देखभाल के लिए एक वसीयतनामा अभिभावक नियुक्त कर सकती है।

एक वसीयतनामा अभिभावक बनने से कौन अयोग्य है?

श्रीमती विनोद कुमारी बनाम श्रीमती द्रौपदी देवी के मामले में हिंदू महिला ने अपने दो बेटों की संरक्षकता के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। एक बच्चे का जन्म, मृत पति के साथ विवाह से हुआ था और एक का जन्म दूसरे विवाह में दूसरे पति से हुआ था। अदालत ने यह माना कि वह पिछले विवाह से पैदा हुए एक बेटे की सौतेली मां है और इसलिए अदालत ने माना कि सौतेली मां कभी भी एक वसीयतनामा अभिभावक नहीं हो सकती है और इस मामले में, दादी को सौतेला बेटे का वसीयतनामा अभिभावक बनाया गया था।

क्या वसीयतनामा के संरक्षक के पास प्राकृतिक अभिभावक के समान अधिकार हैं

धारा 9 (5) के अनुसार, एक वसीयतनामा अभिभावक के पास प्राकृतिक अभिभावक के समान शक्तियां होती हैं और वह प्राकृतिक अभिभावक में निहित सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। प्राकृतिक अभिभावक द्वारा की गई वसीयत और अधिनियम में निर्धारित की गई वसीयत से ही उसके अधिकार के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। हालांकि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वसीयतनामा अभिभावक की शक्तियां एक प्राकृतिक अभिभावक से अधिक नहीं हैं।

नाबालिग लड़की की संरक्षकता लड़की के विवाह पर समाप्त हो जाती है क्योंकि विवाह के बाद लड़की का प्राकृतिक अभिभावक उसका पति हो जाता है। इसका उल्लेख हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 9 (6) में किया गया है।

क्या एक वसीयतनामा अभिभावक नाबालिग की संपत्ति को अलग कर सकता है?

वसीयतनामा अभिभावक किसी भी नाबालिग की संपत्ति को अलग कर सकता है जो नाबालिग के लाभ के लिए है। लेकिन, वसीयतनामा अभिभावक को ऐसा करने से पहले अदालत की अनुमति लेनी होगी। न्यायालय पूछताछ करेगा कि संपत्ति को अलग करना नाबालिग के कल्याण के लिए है या नहीं। वह ऐसा तभी कर सकता है जब ऐसी स्थिति हो जहां संपत्ति को बेचना पड़े।

एक वसीयतनामा अभिभावक और एक प्राकृतिक अभिभावक के बीच क्या अंतर है?

प्राकृतिक अभिभावक वसीयतनामा अभिभावक
परिचय

अभिभावक वह व्यक्ति होता है जिसे कानूनी रूप से पर्यवेक्षण प्रदान करने और बच्चे के हितों और उसकी संपत्ति की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया जाता है। ऐसे अभिभावक की नियुक्ति न्यायालय की सहायता से की जा सकती है यदि माता-पिता बच्चे के कल्याण के पक्ष में निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। माता-पिता या कोई भी व्यक्ति जिसे अदालत अभिभावक के लिए, और बच्चे के लाभ के लिए उपयुक्त समझे, उसे बच्चे के अभिभावक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

परिचय

वसीयतनामा अभिभावक किसी भी प्राकृतिक अभिभावक द्वारा वसीयत द्वारा नियुक्त व्यक्ति है। यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि प्राकृतिक अभिभावक की मृत्यु के बाद या जब प्राकृतिक अभिभावक उस स्थिति में हो जब वह बच्चे की देखभाल करने में सक्षम नहीं है, तब भी बच्चे के पास एक अभिभावक होगा। यदि प्राकृतिक अभिभावक जीवित या सक्रिय हैं तो वसीयतनामा अभिभावक, अभिभावक के रूप में कार्य नहीं कर सकता है। एक वसीयतनामा अभिभावक की शक्तियाँ एक प्राकृतिक अभिभावक की शक्ति से अधिक नहीं होती हैं।

संरक्षकता की अवधि

प्राकृतिक अभिभावक की मृत्यु तक प्राकृतिक संरक्षकता मौजूद रहती है।

संरक्षकता की अवधि

बच्चे के 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर वसीयतनामा अभिभावक की नियुक्ति समाप्त हो जाती है। एक नाबालिग लड़की की संरक्षकता उसकी शादी पर समाप्त हो जाती है।

प्राकृतिक संरक्षक से संबंधित प्रावधान

  1. हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 4 (c) “प्राकृतिक अभिभावक’ की परिभाषा देती है,
  2. हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण (हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस) अधिनियम की धारा 6 प्राकृतिक अभिभावक के पहलुओं से संबंधित है और
  3. हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम की धारा 8 प्राकृतिक अभिभावक की शक्तियों को निर्धारित करती है।
वसीयतनामा अभिभावक से संबंधित प्रावधान

  1. हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 9 में वसीयतनामा अभिभावक और उसकी शक्तियों के बारे में बताया गया है।
  2. अभिभावक और वार्ड अधिनियम की धारा 39 एक वसीयतनामा अभिभावक की अयोग्यता के आधार से संबंधित है।
अभिभावकों के प्रकार

चार प्रकार के अभिभावक निम्नलिखित हैं:

  1. प्राकृतिक अभिभावक,
  2. वसीयत द्वारा नियुक्त अभिभावक,
  3. एक अदालत द्वारा नियुक्त अभिभावक, और
  4. वार्ड के किसी भी न्यायालय से संबंधित किसी भी अधिनियम द्वारा नियुक्त अभिभावक।
संरक्षकों के प्रकार

वसीयतनामा अभिभावक, हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के तहत दिए गए अभिभावकों के प्रकारों में से एक है।

कौन नियुक्त कर सकता है?

प्राकृतिक अभिभावक को अदालत द्वारा बच्चे की देखभाल करने, उसकी संपत्ति की देखभाल करने और बच्चे के लिए निर्णय लेने के लिए सौंपा गया है जो उसके कल्याण के लिए होगा।

कौन नियुक्त कर सकता है?

निम्नलिखित व्यक्तियों के पास एक वसीयतनामा अभिभावक नियुक्त करने की शक्ति और अधिकार है:

  1. एक हिंदू पिता, या तो प्राकृतिक या दत्तक,
  2. एक हिंदू मां, या तो प्राकृतिक या दत्तक,
  3. एक हिंदू विधवा मां, या तो प्राकृतिक या दत्तक।

क्या एक वसीयतनामा अभिभावक को किसी रिश्तेदार पर वरीयता दी जा सकती है?

राम चंद्र बनाम सयारभाई के मामले में, जहां पति की मृत्यु हो गई थी और उसने अपनी वसीयत में, अपने चचेरे भाई को अपनी पत्नी के वसीयतनामा अभिभावक के रूप में नियुक्त किया था। अदालत के समक्ष सवाल मृतक की पत्नी की संरक्षकता का था। यहां, भले ही पत्नी के ससुर जीवित थे, लेकिन तब भी अदालत ने मृतक के चचेरे भाई को संरक्षकता का अधिकार दिया क्योंकि ससुर पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करता था और किसी भी अभिभावक को पक्ष के कल्याण को ध्यान में रखते हुए नियुक्त किया जाना चाहिए इसलिए उसे संरक्षकता का अधिकार दिया गया था। कल्याण सिद्धांत को सर्वोपरि माना जाना चाहिए और इसलिए चचेरे भाई को अधिकार दिए गए थे।

एक वसीयतनामा अभिभावक को कैसे अयोग्य ठहराया जा सकता है?

ऐसी स्थितियां होती हैं जब वसीयतनामा अभिभावक को अभिभावक होने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है और इसलिए, उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। अभिभावक और वार्ड अधिनियम की धारा 39 में एक वसीयतनामा अभिभावक को हटाने के लिए कुछ आधार बताए गए हैं:

  1. यदि बच्चे के प्रति वसीयतनामा अभिभावक की ओर से दुर्व्यवहार होता है।
  2. यदि वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहता है।
  3. यदि वह अपने कर्तव्य को करने में असमर्थ है।
  4. उसके भरोसे का दुरुपयोग करता है।
  5. यदि वह किसी भी तरह से कार्य करता है जो अधिनियम के किसी भी प्रावधान के विरुद्ध है।
  6. किसी भी मामले में किसी भी अपराध के लिए सजा मिली है।
  7. वार्ड में प्रतिकूल रुचि है।
  8. यदि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार (ज्यूरिसडिक्शन) की स्थानीय सीमाओं के भीतर रहना बंद कर देता है, और
  9. यदि वह दिवालिया (इंसोल्वेंट) है।

इन आधारों के अलावा, हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 अयोग्यता के लिए निम्नलिखित आधार निर्धारित करता है:

  1. यदि वह हिंदू नहीं रहता है, या
  2. अगर उसने पूरी तरह से दुनिया को त्याग दिया है।

निष्कर्ष

संरक्षकता एक वैध या नाजायज बच्चे या विवाहित बेटी की देखभाल करने की अवधारणा है। इसलिए यह समझा जा सकता है कि यह समाज के लिए महत्वपूर्ण है ताकि जिस किसी को भी संरक्षकता की आवश्यकता हो, यदि उसकी उचित देखभाल न की जाए तो वह अपने अधिकारों का उल्लंघन देख सकता है। किसी भी बच्चे की देखभाल करने और निर्णय लेने के लिए संरक्षकता दी जाती है। यह देखा जा सकता है कि वर्तमान विश्व व्यवस्था में कई कारणों से एक अभिभावक का होना आवश्यक है।

वसीयतनामा संरक्षकता, संरक्षकता का एक महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि प्राकृतिक अभिभावकों का उपस्थित होना संभव नहीं है इसलिए वसीयतनामा अभिभावक पेश किया गया जो कि अभिभावक के प्रकार में से एक है जो बच्चे के जीवित माता-पिता या कानूनी अभिभावक की मृत्यु पर प्रभावी होता है। प्राकृतिक अभिभावक में से कोई भी वसीयत के माध्यम से किसी भी वसीयतनामा अभिभावक को नियुक्त कर सकता है। इस लेख में वास्तविक जीवन के प्रश्न हैं जिनका उत्तर लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार दिया गया है।

संदर्भ

  • एआईआर 1999 एससी 1149।
  • मुल्ला द्वारा हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here