यह लेख Rahul Ranjan द्वारा लिखा गया है, जो नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची के छात्र हैं। इस लेख मे वह वैवाहिक बलात्कार के अपराधिकरण और उससे जुड़ी परेशानियों पर चर्चा करते हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय (इंट्रोडक्शन)
“किसी राष्ट्र की सभ्यता की गुणवत्ता (क्वालिटी) को, उसके आपराधिक कानून को लागू करने में उपयोग किए जाने वाले तरीको से काफी हद तक मापा जा सकता है।” -पी. वेंकटरामा रेड्डी
प्राचीन काल से लेकर वर्तमान परिदृश्य (सिनेरियो) तक, यदि किसी से, विवाह की संस्था के तहत एक पत्नी के लिए कुछ ऐसे दिनों के बारे में पूछा जाए जहां उसे पुरुष समकक्ष (काउंटर पार्ट) से ऊपर या यहां तक कि समान रूप में रखा गया था, तो इसका कोई जवाब नहीं होगा। महिलाओं को पूर्ण स्वामित्व (ओन्ड) वाली सहायक सम्पत्ति के रूप में माना जाता है और विशेष रूप से उन्हे स्वतंत्र प्राणी के रुप में नहीं माना जाता। गॉर्डन बी. हिंकले (एक अमेरिकी धार्मिक नेता) के अनुसार, विवाह, अपने सच्चे अर्थों में, बराबरी की साझेदारी (पार्टनरशिप) है, जिसमें कोई भी साथी दूसरे पर प्रभुत्व (डोमिनियन) का प्रयोग नहीं करता है, और, प्रत्येक साथी एक दूसरे की जिम्मेदारियों में एक दुसरे को प्रोत्साहित करता है और उसकी सहायता करता है और उसकी आकांक्षाओ (एस्पिरेशन्स) में साथ देता है। हालाँकि भारतीय देश में, जहाँ देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना, उसको संभोग (सेक्स) करने के लिए मजबूर करके अपनी मर्दानगी साबित करते हैं, जो कि बलात्कार से कम नहीं है; लेकिन इसे शादी के टैग के भीतर किया जाता है।
यह कार्य अपने आप में भारतीय समाज में महिलाओं के वंचित (डेप्रिवेशन) होने का सबसे बुरा हिस्सा नहीं है, लेकिन इस जघन्य (हीनियस) कार्य में लिप्त (एंगेज्ड) व्यक्ति को छोड़ना निश्चित रूप से इसका एक अन्य बुरा हिस्सा है। अपने व्यापक अर्थों में न्याय तक पहुंच को किसी भी कार्य के खिलाफ कानूनी उपचार के अधिकार के रूप में समझा जा सकता है जो किसी भी तरह से कानून के सिद्धांतों (प्रिंसिपल्स) का उल्लंघन है। हालांकि, इस देश में, वैवाहिक बलात्कार भारतीय कानून के खिलाफ नहीं है; जो अंततः एक पति को राज्य द्वारा आपराधिक कार्रवाई के डर के बिना अपनी पत्नी से बलात्कार करने का लाइसेंस देता है। यह भारतीय न्याय प्रणाली (लीगल सिस्टम) का एक हिस्सा है जो भारतीय पत्नियों के लिए दुर्गम (इनएक्सेसिबल) रहा है और इसके लिए संबंधित नियमों के एक सेट की सख्त जरूरत है। कानून स्थिर (स्टेटिक) रहने का जोखिम नहीं उठा सकता है। अलग-अलग परिस्थितियों और समाज के परिदृश्य के साथ उत्पन्न होने वाली नई समस्याओं को शामिल करने के लिए कानून की व्याख्या (इंटरप्रिटेशन) की जानी चाहिए। लगातार बढ़ती साक्षरता दर (लिटरेसी रेट) और दुनिया से जुड़ने में आसानी के साथ, महिलाओं ने धीरे-धीरे अपने अधिकारों और उसी के उल्लंघन के बारे में जानना शुरू कर दिया है। यह वह समय है जब विधायिका (लेजिस्लेचर) और न्यायपालिका (ज्यूडिशियरी) को हाथ मिलाकर उन पीड़ित महिलाओं को न्याय के इस दुर्गम हिस्से को उपलब्ध कराने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, जिन्हें कभी भी एक तरह के अपराध के खिलाफ बोलने का मौका नहीं मिला है, जो कि जीवन भर के लिए उनकी आत्मा पर छाप छोड़ने के लिए पर्याप्त है। फिर भी, अब वह समय आ गया है जब पूरे भारत को एक आम सहमति पर खड़ा होना चाहिए कि वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण (क्रिमिनलाइजेशन) को किए बिना, महिला सशक्तिकरण (एंपावरमेंट) और लैंगिक समानता (जेंडर इक्वालिट) की कोई संभावना नहीं है।
विवाह, वैवाहिक बलात्कार और भारतीय समाज
सामान्य परिभाषा के अनुसार, विवाह एक ऐसी स्थिती है जिसमे एक व्यक्ती किसी अन्य विपरीत लिंग के व्यक्ती के साथ, पति या पत्नी के रूप में संबंध में आता है और यह संबंध कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होता है और सहमति और संविदा (कॉन्ट्रेक्ट) द्वारा बनाया जाता है। कानूनी स्थिति या संबंध जो एक संविदा से उत्पन्न होता है जिसके द्वारा एक पुरुष और एक महिला, जो इस तरह के समझौते में प्रवेश करने की क्षमता रखते हैं, जीवन के लिए पति और पत्नी के रिश्ते में एक साथ रहने का या रिश्ते की कानूनी समाप्ति तक का वादा करते हैं। भारतीय समाज में विवाह मूल रूप से विपरीत लिंग के दो लोगों का मिलन है, जो वैवाहिक और धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने और परिजनों (किन) को आगे ले जाने के लिए एक साथ आते हैं। भारतीय समाज में, यह एक सामान्य धारणा (नोशन) थी कि पुरुष को परिवार को चलाने और संभालने के लिए बनाया जाता है और महिला को पति के मार्गदर्शन (गाइडेंस) के तहत काम कर रहे परिवार की देखभाल करने के लिए बनाया जाता है। यह पूर्वकल्पित (प्रीकन्सीव्ड) धारणा अभी भी समाज में प्रचलित है और अंततः पुरुष सदस्यों को एक उच्च स्थिती दी हुई है, जो विभिन्न रूपों में महिलाओं के वंचित होने का एक मूल कारण है और वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ चुप रहना उन कारणों में से एक है।
वैवाहिक बलात्कार पति-पत्नी के बीच सहमति के बिना किया गया यौन कार्य है जो वांछित (डिजायर्ड) परिणाम प्राप्त करने का माध्यम है, जैसे कि किसी अन्य व्यक्ति को अभिभूत (ओवरवेल्म) करना, प्रबल (ओवरपावर) करना, शर्मिंदा करना और अपमानित करना। वैवाहिक बलात्कार का तात्पर्य किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ बलपूर्वक, बल की धमकी, या शारीरिक हिंसा द्वारा, या जब वह सहमति देने में असमर्थ हो, तो प्राप्त किए गए अवांछित संभोग से है। यह एक पति द्वारा पत्नी के खिलाफ हिंसक विकृति (परवर्जन) का एक गैर-सहमतिपूर्ण कार्य है जहां उसका शारीरिक और यौन शोषण किया जाता है। जैसा कि ऑक्सफोर्ड लिविंग डिक्शनरी ने वैवाहिक बलात्कार का वर्णन किया है, इसका सरल और बहुत ही सरल भाषा में अर्थ है, “उस व्यक्ति द्वारा किया गया बलात्कार जिससे पीड़िता विवाहित है”।
ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी द्वारा दी गई यह परिभाषा वैवाहिक बलात्कार के संबंध में कोई कसर नहीं छोड़ती है, जो विवाह की एक पवित्र संस्था के नाम पर उन बंद दरवाजों के पीछे होता है; फिर भी, भारतीय विधायिका इस मामले पर चुपचाप बैठी है और महिला सुरक्षा के लिए कानून बनाने और महिला सशक्तिकरण की बात करने का श्रेय ले रही है। फिर भी, यह रूढ़िवादी (कंजर्वेटिव) भारतीय समाज, जिसने एक महिला को यह सोचने के लिए मजबूर किया है कि वह न केवल एक द्वितीय श्रेणी (सेकेंड क्लास) की नागरिक है, बल्कि एक द्वितीय श्रेणी का लिंग भी है, जो महिलाओं के इस उच्च सहिष्णुता स्तर (हाई टॉलरेंस वैल्यू) का सबसे बड़ा कारण है। एक बार दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के मुद्दे पर पूछे जाने पर, केंद्र ने उत्तर दिया कि इसे अपराधी बनाना विवाह की संस्था को बाधित और अस्थिर (डिस्टेबलाइज) बना सकता है, और यह पतियों के उत्पीड़न का एक आसान साधन बन सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में बदलाव लाने के लिए जिस सोच या मानसिकता और दृष्टिकोण (एप्रोच) की आवश्यकता है, उसमें पीड़ितों और शेष समाज दोनों में स्पष्ट रूप से कमी है। लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वैवाहिक बलात्कार एक बलात्कार है और उन्हें डर है कि इससे महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की स्थिति प्रभावित हो सकती है।
वैवाहिक बलात्कार भी बलात्कार है
अपनी प्रारंभिक वाचाओं (कवनेंट्स) को लिखने के लिए एक साथ आए प्राचीन कुलपतियों (पैट्रियार्क्स) ने अपनी पुरुष शक्ति को गढ़ने के लिए एक महिला के बलात्कार का इस्तेमाल किया था- फिर वे बलात्कार को एक महिला के खिलाफ पुरुष के अपराध के रूप में कैसे देख सकते हैं? इस तथ्य पर टिप्पणी करने से पहले कि वैवाहिक बलात्कार बलात्कार से कम नहीं है, आइए पहले समझते हैं कि भारत के दंड कानून के अनुसार बलात्कार का क्या अर्थ है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत परिभाषित बलात्कार के अपराध को बनाने के लिए, बलात्कार या तो:
- महिला की इच्छा के विरुद्ध, या
- उसकी सहमति के बिना होना चाहिए।
अदालतों ने स्पष्ट किया है कि बलात्कार को साबित करने के लिए ये दो अलग-अलग ट्रैक हैं: ‘उसकी इच्छा के विरुद्ध’ का अर्थ है कि महिला ने विरोध किया है, जबकि ‘उसकी सहमति के बिना’ का अर्थ, विचार-विमर्श (डेलीबेरेशन) के साथ कार्य के तर्क को समझना है।
इससे हमें उन उदाहरणों की स्पष्ट तस्वीर मिलती है जो बलात्कार की परिभाषा के तहत आ सकते हैं और जिन्हें आई.पी.सी. की धारा 376 के तहत दंडित किया जाना चाहिए। जहां कहीं भी किसी भी प्रकार की यौन अंतरंगता (सेक्शुअल इंटिमेसी) के तहत महिला साथी द्वारा इच्छा या सहमति का अभाव होता है, तो इसे बलात्कार कहा जाएगा और इस प्रकार इसके तहत सजा दी जाएगी। हालांकी, विवाह को एक महिला की सहमति और इच्छा देने के रूप में माना जाता है। एक भारतीय संदर्भ के अनुसार विवाह का अर्थ है की जब भी पति किसी भी प्रकार के यौन संबंध बनाने के लिए कहता है तो पत्नी को खुद को अपने आप को उसे सौपना पढ़ता है। मनु और याज्ञवल्क्य जैसे प्राचीन इतिहासकारों के अनुसार, हिंदू धर्म में विवाह एक धार्मिक संस्था है जो प्रकृति में पवित्र और संस्कारी है, और विभिन्न धार्मिक कर्तव्यों को निभाने के लिए आवश्यक है। एक पुरुष का जीवन विवाह के बिना अधूरा है, और वह एक महिला को अपनी पत्नी के रूप में अपनाकर खुद को पूरा करता है। विवाह का सबसे बुनियादी कार्य, धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना है और दोनों पक्षों को समान स्तर पर रखा जाता है। कहा जाता है कि जिस घर में नारी का सम्मान होता है, वहां भगवान का वास होता है। मनु का विचार था कि पत्नी देवताओं द्वारा दी गई एक दैवीय संस्था है और किसी को भी यह सोचना चाहिए कि उसे उसकी (पति की) पसंद मिली है।
हालाँकि, हाल के दिनों में विवाह के वास्तविक अर्थ में एक बदलाव आया है। यह पुरुषों की प्रधानता वाली धार्मिक-आधारित संस्था से अधिक यौन संबंध बनाने पर आधारित संस्था बनती जा रही है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति अभी भी बिगड़ती जा रही है और अभिजात वर्ग (इलाइट क्लास) अभी भी एक महिला के मूल अधिकार के उल्लंघन के विषय पर शांत है।
सर मैथ्यू हेल, इंग्लैंड में मुख्य न्यायाधीश, ने 1600 के दशक के दौरान अपने ग्रंथ हिस्टोरिया प्लासीटोरम कोरोने या द हिस्ट्री ऑफ द प्लेज़ ऑफ द क्राउन में लिखा है की, “पति अपनी वैध पत्नी पर स्वयं द्वारा किए गए बलात्कार के लिए दोषी नहीं हो सकता है, क्योंकि उनके आपसी वैवाहिक सहमति और अनुबंध के द्वारा, पत्नी ने अपने आप को पति को दे दिया है, जिसे वह वापस नहीं ले सकती।”
यह कथन 1600 के दशक के दौरान दिया गया था लेकिन आज भी यह प्रचलित है, और खासकर भारत के मामले में। लैंगिक समानता के लिए बहुत शोर-शराबा हुआ है लेकिन एक महिला को पत्नी की भूमिका में लाने के लिए कुछ खास नहीं किया गया है। हाल ही में नई दिल्ली में एक विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि पति और पत्नी के बीच संभोग, भले ही जबरन हो, बलात्कार नहीं है और आरोपी पर कोई दोष नहीं लगाया जा सकता है। वैवाहिक बलात्कार की परिभाषा के तहत, एक महिला के शारीरिक अखंडता (बॉडिली इंटीग्रिटी) और अपने पति के साथ यौन संबंध बनाने से इनकार करने का अधिकार वैधानिक रूप से छीन लिया गया है और अपने पति के साथ सहमति के बिना यौन संबंध बनाना आई.पी.सी. के तहत अपराध नहीं है।
निम्नलिखित तीन प्रकार के वैवाहिक बलात्कार होते हैं, जो आमतौर पर समाज में प्रचलित हैं;
- बैटरिंग बलात्कार: इस प्रकार के वैवाहिक बलात्कार में महिलाओं को रिश्ते में और कई तरह से शारीरिक और यौन हिंसा दोनों का अनुभव करना पढ़ता है।
- बलपूर्वक बलात्कार: इस प्रकार के वैवाहिक बलात्कार में पति केवल उतने ही बल का प्रयोग करते हैं, जितना कि अपनी पत्नी को मजबूर करने के लिए आवश्यक होता है।
- ऑब्सेसिव बलात्कार: ऑब्सेसिव बलात्कार में, हमलों में क्रूर यातना और/या विकृत (परवर्स) यौन कार्य शामिल होते हैं और ये आमतौर पर हिंसक रूप में होते हैं।
परिभाषाओं को देखते हुए हम आसानी से पता लगा सकते हैं कि प्रत्येक परिभाषा में बल, हमले, शारीरिक हिंसा जैसे शब्द शामिल हैं, और प्रत्येक में इरादे की अनुपस्थिति की विशेषता है। इतने सारे सुरागों के साथ, कोई भी आम आदमी कह सकता है कि यौन संबंध बनाने से जुड़े ये शब्द बलात्कार से कम नहीं हैं। जब यह बहुत स्पष्ट और पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट) होता है कि पत्नी को बल के प्रयोग से पति को अपने आप को सौंपने के लिए मजबूर किया जाता है और उसे अपनी इच्छा और सहमति को छोड़ना पड़ता है, तो यहां पर उन लोगों के साथ कोई समस्या नहीं होनी चाहिए जो इस बारे में कानून बनाते हैं और जो इस जबरन संभोग को, एक महिला से उसकी शारीरिक स्वायत्तता (ऑटोनोमी) छिनने को और उसकी इच्छा और सहमति के उल्लंघन को, एक दंडनीय अपराध बनाते है।
ऐसा कहा जाता है कि “एक अच्छा पति पत्नी को अच्छा बनाता है”, लेकिन हम भारतीयों ने इसे थोड़ा अलग तरीके से लिया है, और यह कहा है कि ‘एक अच्छी पत्नी वह है जो अपने पति को हर समय संतुष्ट करती है, जो इसे अपने प्यार के रूप में मानता है। और एक अच्छा पति वह है जो अपने स्वयं के जीवन साथी पर अपनी मर्दानगी दिखा सकता है। भारत के कानून में सबसे बड़ी विडंबना (आईरनी) यह है कि दहेज के संबंध में पीछा करने के खिलाफ, दृश्यरतिकता (वोयरिज्म), वैवाहिक उत्पीड़न के खिलाफ कानून हैं, लेकिन कानून की वही किताबें, वैवाहिक बलात्कार को एक अपराध के रूप में नहीं मानती हैं। ये कानून की किताबें एक महिला की शील (मोडेस्टी) के बारे में बात करती हैं और उन लोगों सजा देती है जो या तो हमला करते है या आपराधिक बल का उपयोग करते है या शब्द, हावभाव या कार्य द्वारा महिलाओं का अपमान करते है और उनकी शील भंग करने का इरादा रखते है, लेकिन इन किताबों में इस विषय पर कोई बात नहीं की जाती है जहां एक महिला की वास्तविक शील, उसका स्वाभिमान और अपने शरीर पर उसकी स्वायत्तता खत्म हो जाती है। वह सिर्फ अपने पति के लिए सिर्फ संभोग करने का एक खिलौना बन जाती है, जो घर आता है और उसका बलात्कार करता है, घरेलू हिंसा और शारीरिक यातना के माध्यम से अपनी सारी परेशानियां अपनी पत्नी पर छोड़ देता है, जिसे अपने आप में ही वैवाहिक बलात्कार के रूप में माना जाता है। बलात्कार को आई.पी.सी. की धारा 375 द्वारा परिभाषित किया गया है, हालांकि दी गई परिभाषाएं स्वयं-विरोधाभासी (सेल्फ कोंट्राडिक्टरी) हैं, जिसमें एक तरफ खंड (क्लॉज) एक से छह के तहत या तो महिलाओं की इच्छा या सहमति के बारे में बात की जाती है, पति-पत्नी के बीच यौन संबंध होने पर उपरोक्त शब्दों का कोई संदर्भ नहीं है जहां महिला साथी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं है और इसे अपवाद कहा जाता है। यदि हम बलात्कार की मूल परिभाषा पर ध्यान देते हैं और साथ ही वैवाहिक बलात्कार के मामले पर भी विचार करते हैं, तो वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार के दायरे से अलग करने की कोई गुंजाइश नहीं है। वैवाहिक बलात्कार के मामलों में, महिला जो एक पीड़िता है, उसको पता होता है कि यह बलात्कार था या नहीं, और इसलिए इस अपराध को बलात्कार के रूप में दर्ज करना आवश्यक है।
अपराधीकरण की आवश्यकता
यौन स्वायत्तता यानी की दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार एक बुनियादी मानव अधिकार है और निजता (प्राइवेसी) के अधिकार के अंतर्गत आता है, जो एक मौलिक अधिकार है। इस प्रकार जब किसी के अधिकार का उल्लंघन किया जाता है तो उसकी कुछ सजा होती है। वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण ना करने से भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) और आर्टिकल 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन होता है। यह भारत के संविधान के आर्टिकल 19(1)(A) (भाषण और अभिव्यक्ति (स्पीच एंड एक्सप्रेशन) की स्वतंत्रता का अधिकार) और आर्टिकल 15 (लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न करने का अधिकार) का भी उल्लंघन करता है। स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र बनाम मधकर नारायण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक महिला के पास यौन गोपनीयता (प्राइवेसी) का अधिकार है, जो किसी भी व्यक्ति को, जब वह चाहे या प्रसन्न होने पर उसकी गोपनीयता का उल्लंघन करने का कोई अधिकार नहीं है। पति की सनक और इच्छा पर यौन संबंधों के लिए कोई निहित (इम्प्लाइड) सहमति नहीं है। संभोग का अधिकार विवाह में पति का अंतर्निहित (इन्हेरेंट) अधिकार नहीं है, क्योंकि ऐसा अधिकार समानता और मानवीय गरिमा (ह्यूमन डिग्निटी) की अवधारणा (कॉन्सेप्ट) को ही पीछे छोड़ देता है।
वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ यह आवाज कोई पूरी तरह से नई घटना नहीं है, लेकिन यह भारत में अधिक समय से अलग-अलग नामों से चलती आ रही है। फुलमोनी दासी की, उसके पति द्वारा बलात्कार करने के बाद मौत पर बहुत शोर मचाया गया था, जो अंततः वैवाहिक बलात्कार का मामला था (हालांकि पति को बलात्कार का दोषी नहीं ठहराया गया था और केवल जीवन को खतरे में डालकर गंभीर चोट पहुंचाने के लिए और दूसरों की व्यक्तीगत सुरक्षा को ठेस पहुंचाने के लिए ही सजा दी गई थी)। इसके बाद व्यापक आक्रोश (वाइडस्प्रेड आउटरेज़) के कारण तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन ने एज ऑफ कंसेंट बिल पेश किया, जिसने अपवाद खंड में आयु को बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया था। उसके बाद, प्रारंभिक गर्भधारण (प्रेग्नेंसी) के खिलाफ महिला समूहों द्वारा आंदोलन के जवाब में, 1949 में बिल मे 15 साल की उम्र करने के लिए एक संशोधन (अमेंडमेंट) किया गया था। लगभग 70 वर्षों के बाद से, धारा 375 में बलात्कार कानून वैवाहिक छूट (एगज्मप्शन) अछूती रही है, केवल एक केस-कानून के माध्यम से किए गए एक हाल ही के बदलाव के लिए, जिसमें कहा गया था कि यदि पति, 15 से 18 साल की उम्र की अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाएगा तो उसे बलात्कार के रूप में माना जाएगा और अपवाद (एक्सेप्शन) के रूप मे नही माना जाएगा। समय के साथ विवाह की परिभाषाएँ बदलती रहीं है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
लॉर्ड कीथ ने कोर्ट के लिए बोलते हुए घोषणा की थी की, “विवाह को आज के समय में बराबरी की साझेदारी के रूप में माना जाता है और अब ऐसा नहीं माना जाता की पत्नी, पति की संपत्ति होनी चाहिए।” इस मामले में यह कहा गया था की पति को अपनी पत्नी के बलात्कार में मुख्य अपराधी के रूप में आरोपित किया जा सकता है; हालाँकि, भारत में इस निर्णय का पालन कभी नहीं किया गया।
फिर भी, अगर वैवाहिक बलात्कार शादी के नाम पर दरवाजे के पीछे एक बलात्कार ही है, तो उससे संबंधित कुछ कानून होने चाहिए जो न केवल एक महिला के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं बल्कि विवाह की पवित्रता की रक्षा भी कर सकते हैं। वैवाहिक बलात्कार इतना विनाशकारी है क्योंकि यह वैवाहिक संबंधों के मूलभूत (फंडामेंटल) आधार के साथ विश्वासघात करता है और न केवल साथी और शादी पर बल्कि वैवाहिक संबंध के हर पहलू पर भी सवाल उठाता है। तो अब जरूरत इस बात की है कि इसके खिलाफ कुछ कानूनों की जरूरत है, और इससे भी बड़ी बात इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की है। किसी भी अपराध को दर्ज किए बिना नहीं छोड़ा जा सकता है और वैवाहिक बलात्कार किसी अपराध से कम नहीं है। ऐसा माना जाता है कि भारत में महिलाओं को किसी अजनबी की तुलना में अपने पति से बलात्कार का अनुभव होने की संभावना 40% अधिक होती है। 2018 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे) के अनुसार, यौन हिंसा का अनुभव करने वाली 80 % से अधिक विवाहित महिलाओं ने अपने वर्तमान पति को अपराधी बताया है। 2014 में सात भारतीय राज्यों में 9,200 से अधिक पुरुषों के सर्वेक्षण में, एक तिहाई ने अपनी पत्नियों पर जबरन यौन क्रिया करने की बात स्वीकार की थी। फिर भी, 18 अमेरिकी राज्यों, 3 ऑस्ट्रेलियाई राज्यों, न्यूजीलैंड, कनाडा, इज़राइल, फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, सोवियत संघ, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया में वैवाहिक बलात्कार अवैध है। इसे कई अन्य देशों द्वारा अवैध बना दिया गया है (लगभग 52 देशों ने इसे स्पष्ट रूप से एक आपराधिक कृत्य बना दिया है)।
किसी परिचित व्यक्ति जैसे परिवार के किसी सदस्य द्वारा बलात्कार किया जाना अजनबियों की तुलना में कहीं अधिक दर्दनाक और कठोर होता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड) के अनुसार, भारत में 75% विवाहित महिलाएं वैवाहिक बलात्कार का शिकार होती हैं। यह एक भारतीय महिला की दयनीय स्थिति को बयां करता है। पीड़ित महिलाओं के पास एकमात्र उपाय भारतीय दंड संहिता की धारा 498 A है जो पति और रिश्तेदार द्वारा एक महिला पर क्रूरता और धारा 354 यौन उत्पीड़न से निपटने के बारे में बात करती है। बदतर मामलों में, वह घरेलू हिंसा कानूनों का विकल्प चुन सकती है। एक महिला को हमेशा हाशिए पर रहने वाले वर्ग के रूप में माना जाता है; हालाँकि हाल में हुए विकास से पता चला है कि उनके उत्थान की गुंजाइश है।
न्यायमूर्ति वर्मा समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटा दिया जाना चाहिए। इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य के हाल ही के ऐतिहासिक फैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार के संबंध में एक निर्णय पास किया, जहां यह माना गया कि यदि पति अपनी पत्नी, जिसकी उम्र 15 से 18 वर्ष की आयु के बीच हो, के साथ यौन संबंध रखता है तो उसे बलात्कार के रूप में माना जाएगा और इसे अपवाद नहीं माना जाएगा। हालाँकि, यह निर्णय केवल एक विशेष आयु वर्ग के लिए आया था, न कि समग्र रूप से पीड़ितों के लिए। याचिकाकर्ता (पेटीशनर) द्वारा यह स्पष्ट रूप से तर्क दिया गया था कि इसका उन पत्नियों से कोई ताल्लुक नहीं है जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक है। हालाँकि जब हम साक्षी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले को देखते हैं, तो एन.जी.ओ. द्वारा यह तर्क दिया गया था कि जहाँ एक पति अपनी पत्नी को कुछ शारीरिक चोट पहुँचाता है, तो वह उचित अपराध के तहत दंडनीय है और तथ्य यह है कि वह पीड़िता का पति है तो वह कानून द्वारा मान्यता प्राप्त एक विलुप्त (एक्सटेनुएट) होने वाली परिस्थिति नहीं है। इसलिए, कोई कारण नहीं है कि केवल बलात्कार/यौन उत्पीड़न के अपराध के मामले में छूट दी जानी चाहिए क्योंकि पत्नी की उम्र किसी विशेष उम्र से अधिक है।
पति-पत्नी के बलात्कार पर सबसे दिलचस्प विचारों में से एक हाल ही में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला द्वारा किया गया है, जिन्होंने निमेशभाई भरतभाई देसाई बनाम स्टेट ऑफ़ गुजरात के मामले की सुनवाई करते हुए दंड कानून की सीमाओं के प्रति पूरी तरह से निराशा दिखाई थी। उनका विचार था कि वैवाहिक बलात्कार का पूर्ण वैधानिक उन्मूलन (एबोलीशन), शिक्षण समाजों में पहला आवश्यक कदम है कि महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और वैवाहिक बलात्कार एक पति का विशेषाधिकार (प्रिविलेज) नहीं है, बल्कि एक हिंसक कार्य और एक अन्याय है। जिसका अपराधीकरण किया जाना चाहिए। उन्होंने महिलाओं को उनकी वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना समान अधिकारों की वकालत की और देखा कि वैवाहिक बलात्कार को बढ़ावा देने वाले विनाशकारी दृष्टिकोण को दूर करने का एकमात्र तरीका इसे अपराध बनाना है।
ये बयान वास्तव में भारतीय महिलाओं के लिए एक बड़े समर्थन के रूप में सामने आए हैं, लेकिन यह केवल वही है जो कानून बनाने वालो को अपना दृष्टिकोण बदलने मे मदद कर सकता है और उन्हें कानून में भी बदलाव करने के लिए मजबूर कर सकता है। भारतीय महिलाओं को उन अधिकारों से वंचित करने के लिए बहुत कुछ करना होगा और उन्हें केवल अग्रणी (पायोनियर) बनने की जरूरत है।
सुझाव और निष्कर्ष (सजेशंस एंड कंक्लूज़न)
एक अमेरिकी महिला अधिकार कार्यकर्ता सुसान बी एंथनी के अनुसार, “वह दिन आएगा जब पुरुष न केवल आग के किनारे बल्कि राष्ट्र की परिषदों में महिला को अपने साथी के रूप में मान्यता देंगे। तब, और तब तक नहीं, पूर्ण सहकारिता (कॉमरेडशिप) होगी, अर्थात लिंगों के बीच आदर्श मिलन होगा जिसके परिणामस्वरूप जाति का उच्चतम विकास होगा।”
सबसे बुनियादी चीज जो करने की जरूरत है वह है पुरुषों और महिलाओं दोनों को यह सिखाना कि वे एक दूसरे के बराबर हैं और कोई भी एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है। महिलाओं को उस स्थिति तक पहुंचने के लिए एक नैतिक (मोरल), साथ ही कानूनी समर्थन की आवश्यकता होती है, जहां वे रहने योग्य हैं। उन्हें अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया जाएगा, और वैवाहिक बलात्कार उन में से एक ऐसा अत्याचार है। वैवाहिक बलात्कार एक बलात्कार है, तो पीड़िता के लिए एक ही अपराध को मापने के लिए दो मापदंड क्यों? भारतीय कानून की किताब एक तरफ उन अजनबियों को सजा देती है जो एक लड़की से बलात्कार करते हैं, लेकिन व्यक्ति जब पीड़ित से शादी करता है तो उसे बरी कर देते हैं या अलग छोटे अपराधों (जब बलात्कार की तुलना में) के लिए दंडित करते हैं। पत्नी का शरीर अयोग्य रूप से उसका है और वह अपने शरीर को देने के लिए बाध्य नहीं है जब तक कि उसे यह महसूस न हो कि वह इच्छा और स्नेह के पूर्ण ज्वार के साथ ऐसा कर सकती है। हालाँकि भारतीय समाज में, एक महिला को सिखाया जाता है कि शादी के बाद उसका मालिक पति ही होता है; उसे एक इंसान के रूप में नहीं, बल्कि एक वस्तु के रूप में माना जाता है, जिसे उसके परिवार द्वारा पति के एकमात्र स्वामित्व को सौंप दिया गया है। उसे समाज द्वारा कभी भी विवाह से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है क्योंकि विवाह के बाद उसके पति द्वारा उसका दैनिक आधार पर बलात्कार किया जाता है।
वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग करने वाली दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिकाओं के मामले में, तीन याचिकाकर्ताओं में से एक, एक व्यक्ति, जो स्वयं वैवाहिक बलात्कार का शिकार था, ने कहा कि उसे अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा इस तथ्य को अनदेखा करने की सलाह दी गई थी कि उसके पति ने उसके साथ बलात्कार किया और इसके खिलाफ न बोलने के लिए भी बोला गया; इसके अलावा, उसे अपने ही भाई द्वारा धमकी दी गई थी कि अगर वह शादी से बाहर निकलती है तो उसे अपने परिवार से अलग कर दिया जाएगा। हालांकि, उसने ऐसा ही किया और परिवार ने उससे सभी संबंध तोड़ लिए। वैवाहिक बलात्कार का मामला यही करता है; यह पूरे परिवार को नष्ट कर देता है और जिसे सजा मिलती है वह खुद पीड़ित होता है। असली आरोपी खुलेआम घूमता है। इस बड़े मुद्दे की जमीनी समस्या यह है कि यह स्वीकार किया गया है कि विवाह को चुनौती नहीं दी जा सकती है और यह ईश्वरीय प्रकृति का है, और एक महिला समकक्ष एक वस्तु है, जो अपने स्वभाव के बावजूद पति की हर इच्छा और कल्पना की पूजा करने के लिए बाध्य है। हालांकि, यह शादी की सही परिभाषा नहीं है। यह माना जाता है कि यह आपसी सम्मान और विश्वास में पनपता है, दोनों को एक समान स्तर पर रखा जाता है और न तो उच्च और न ही निम्न, न ही प्रभावशाली और न ही उत्पीड़ित स्तर पर रखा जाता है।
इस प्रकार समाज में मौजूद इस बुराई को अपराध बनाने की मांग है। वैवाहिक बलात्कार को रोकने के लिए बस बात करना, इसके खिलाफ आवाज उठाना, मां या बहन की पहचान को छोड़कर महिलाओं के रूप में एकजुट होना और सख्त कानून बनाने की जरूरत है। महिलाओं को ही आपस में हाथ मिलाकर आगे आना होगा और अपने हक के लिए लड़ना होगा। आई.पी.सी. की धारा 375 के तहत जबरन वैवाहिक संबंध को बलात्कार के दायरे में लाया जाना चाहिए। अपराधी और पीड़िता के बीच एक वैवाहिक या अन्य संबंध को एक वैध बचाव के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए और न ही इसे बलात्कार की निचली सजा को सही ठहराने वाले कारक के रूप में माना जाना चाहिए। फिर भी, समाज को इस समस्या पर चर्चा करने की आवश्यकता है और उन्हें अपनी बेटियों को जब वह दबी हुई महसूस करती है तो आवाज उठाने के लिए सिखाने और समर्थन करने की जरूरत है। पर्याप्त जागरूकता होनी चाहिए ताकि न तो गरीबी और न ही अशिक्षा इस नैतिक विरोधी प्रथा को अपराधीकरण करने की राह में बाधा बने।
एंडनोट्स
- State (NCT of Delhi) v. Navjot Sandhu, (2005) 11 SCC 600
- K. D. Baddett, Doctrinal Insights to the Book of Mormon, 21 (1st Vol., 2007)
- Kailash Chand v. Dharam Pass, (2005) 5 SCC 375; M.C. Mehta v. Union of India, (1987) 1 SCC 395; C.I.T. v. Minal Rameshchandra, 1987 167 ITR 507 Guj.
- D.L. Pope, Who’s Changing the Meaning? (2017).
- Tej Kumar Siwakoti, Social, Political, and Economic aspects of Sikkim during pre and post merger Period, 157 (1st ed., 2017).
- Soibam Rocky Singh, Criminalising marital rape ‘may destabilise institution of marriage’: Centre tells Delhi HC, Hindustan Times (29/08/2017), available at https://www.hindustantimes.com/india-news/criminalising-marital-rape-may-destabilise-institution-of-marriage-centre-tells-delhi-hc/story-gmt8sh4eAAoc2w2kvOSHkJ.html., last seen on 05/07/2019
- Susan Brown miller, Against Our Will: Men, Women and Rape, 18 (1993).
- State of UP v. Chottey Lal, (2011) 2 SCC 550
- Paras Diwan, Peeyushi Diwan & Shailendra Jain, Dr. Paras Diwan on Hindu Law, 547 (2nd ed., 2005)
- Paul Finkelman, The Encyclopedia of American Civil Liberties: A – F, 961 (1st Vol., 2006).
- State v. Vikash, SC No.1/14 (Special Fast Track Court, Dwarka Courts, New Delhi, 07/05/2014)
- D.K. Gosselin., Heavy Hands – An Introduction to the Crimes of Domestic Violence, (1st ed., 2000)
- Robby Sherwin, A good husband, Counter Punch, available at https://www.counterpunch.org/2015/09/14/a-good-husband-makes-a-good-wife-how-the-supremes-saved-marriage-and-didnt-even-know-it/, last seen on 21/10/19
- S. 354D, Indian Penal Code, 1860.
- S. 354C, Indian Penal Code, 1860.
- S.509 and S. 354, Indian Penal Code, 1860
- K.S. Puttaswamy v. Union of India, AIR 2017 SC 4161
- AIR 1991 SC 207
- Queen Empress v. Haree Mohan Mythee, (1890) 18 Cal 49
- Shalini Nair, Meet Anam- One of the three petitioners seeking criminalisation of marital rape, The Indian Express (17/09/2017), available at https://indianexpress.com/article/india/meet-anam-marital-rape-survivor-criminal-offence-delhi-high-court-4847094/, last seen on 04/11/2019
- Independent Thought v. Union of India, AIR 2017 SC 4904.
- R. v R. [1991] UKHL 12
- Meghna Baveja, Marital Rapes: A crime less acknowleged, The Viewspaper, available at http://theviewspaper.net/marital-rapes-a-crime-less-acknowledged/, last seen on 04/10/2019.
- Sonal Singh, Dear Supreme Court, Here’s Why Marital Rape Should Be Criminalised, The Better India, available at https://www.thebetterindia.com/123017/supreme-court-criminalise-marital-rape-laws-india/, last seen on 05/10/19.
- [25] Dominique Mosbergen, Marital Rape Is Not A Crime In India. But One High Court Judge Is Pushing For Change, HUFFPOST, available at https://www.huffingtonpost.in/2018/04/05/marital-rape-is-not-a-crime-in-india-but-one-high-court-judge-is-pushing-for-change_a_23404061/, last seen on 05/10/19
- [26] S. Shankar Mishra, Marital Rape is Not a Rape?, Just In Print, available at http://justinprint.in/marital-rape-not-rape/, last seen on 05/10/2019.
- Press Trust of India, Marriage sacred in India, so marital rape cannot be applied: Centre, The Indian Express (30/04/2015), available at https://indianexpress.com/article/india/india-others/concept-of-marital-rape-cannot-be-applied-in-india-govt/, last seen on 06/10/19
- Notification No. SO (3003)E, Government of India, Report of the Committee on Amendments to Criminal Law, available at http://www.prsindia.org/uploads/media/Justice%20verma%20committee/js%20verma%20committe%
- 20report.pdf, last seen on 06/10/2019
- AIR 2017 SC 4904.
- AIR 2004 SC 3566
- R/Criminal Misc. Application Nos. 26957, 24342 of 2017 and R/Special Criminal Application No. 7083 of 2017 (The High Court of Gujarat, 02/04/2018)
- Lynnette D. Madsen , Successful Women Ceramic and Glass Scientists and Engineers: 100 Inspirational Profiles, 546 (2016).
- Supra 20.