वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण, एक बहुत जरूरी सुधार

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Indian Penal Code
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यह लेख  Mariya Paliwala द्वारा लिखा गया है जो मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ, उदयपुर, राजस्थान की छात्रा है और सातवें सेमेस्टर में है। इस लेख में वह वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की आवश्यकता के बारे में बात करती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

परिचय (इंट्रोडक्शन)

“विवाह को सबसे पवित्र दायित्व में से एक माना जाता है, लेकिन जब वही पवित्र दायित्व वैवाहिक कर्तव्यों के नाम पर महिलाओं के लिए अभिशाप बन जाता है, जब पति, जिसे इस धरती पर पत्नी के लिए भगवान के रूप माना जाता है वह बदल जाता है और जब परिवार के सदस्य वैवाहिक बलात्कार को एक महिला के दिन-प्रतिदिन के जीवन का हिस्सा मान लेते हैं और सबसे जरुरी बात यह की भूमि के कानून (लॉ ऑफ़ द लैंड), समानता की गारंटी देते हैं, वह खुद ही इस मुद्दे पर महिलाओं की पीड़ा नही समझ पा रहे और शांत हो जाते हैं।”

इस 21वीं सदी में, जिस दौर में ज्यादातर नारीवाद लोग (फेमिनिस्ट), समाज की विभिन्न बुराइयों के खिलाफ आवाज उठा रहें हैं, जो महिलाओं के खिलाफ होती हैं, लेकिन फिर भी इस पुरुष प्रधान (मेल डॉमिनेटेड) समाज में वैवाहिक बलात्कार जैसी बुराई बनी हुई है। मानवाधिकारों की मान्यता के इस युग में अभी भी महिलाओं के अस्तित्व (एक्सिस्टेंस) को ही मान्यता नहीं मिली है।

बलात्कार का अर्थ

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 के तहत बलात्कार को परिभाषित किया गया है। किसी भी कार्य को भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध बनने के लिए 2 शर्तों को पूरा करने की आवश्यकता है:

  1. आपराधिक कार्य करना (एक्टस रीअस)
  2. आपराधिक मनःस्थिति होना (मेंस रीआ)

1. एक्टस रीअस

अर्थात ऐसा कार्य या आचरण जो किसी दुर्भावना या बुरे इरादे के साथ किया जाता है। इस प्रकार बलात्कार के अपराध का गठन (कांस्टीट्यूट) करने के लिए एक आदमी निम्नलिखित 4 कार्यों में से कोई एक करता है:

  • अपने लिंग (पेनिस) को किसी महिला के मुंह, योनि (वजीना), मूत्रमार्ग (यूरेथरा) या एनस में किसी भी हद तक घुसाएं या उससे खुद या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कार्य करवाए।
  • जब कोई पुरुष किसी महिला की योनि या मूत्रमार्ग या एनस में लिंग के अलावा किसी अन्य वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा डालता है या उसे खुद या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करता है।
  • यदि कोई पुरुष किसी महिला के शरीर के किसी हिस्से में हेरफेर कर, महिला की योनि या मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कर जाए।
  • या किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या एनस पर मुंह लगाता है।

2. मेंस रीआ

मेंस रीआ का अर्थ, दोषी मन या आरोपी का बुरा इरादा होता है। कार्य को बलात्कार के अपराध के रूप में स्थापित करने के लिए उपर्युक्त कार्यों को इन 7 परिस्थितियों में से किसी के तहत किया जाना चाहिए:

  • किया गया कार्य महिला की इच्छा के विरुद्ध था।
  • किया गया एक कार्य उसकी सहमति के बिना था।
  • उसे या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके वह निकट है, मृत्यु या चोट के तत्काल भय में डालकर, सहमति प्राप्त की गई थी।
  • दी गई सहमति इस गलतफहमी के कारण है कि वह उपरोक्त कार्यों को करने वाले व्यक्ति की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। हालांकि, एक आदमी जानता है कि वह उसका पति नहीं है।
  • जब सहमति देते समय मन की अस्वस्थता के कारण सहमति प्राप्त की जाती है।
  • जब वह 18 साल से कम उम्र की होती है, चाहे सहमति दी गई हो या न दी गई हो, तब भी वह बलात्कार होता है।
  • जब वह अपनी सहमति देने में असमर्थ होती है।

बलात्कार के अपवाद (एक्सेप्शंस)

अपवाद 1. कोई चिकित्सीय हस्तक्षेप (मेडिकल इंटरवेंशन) या प्रक्रिया, बलात्कार की श्रेणी (कैटेगरी) में नहीं आएगी।

अपवाद 2. अपनी पत्नी के साथ किसी पुरुष द्वारा संभोग (सेक्शुअल इंटरकोर्स) या यौन कार्य बलात्कार के अपराध का गठन नहीं करता है। हालांकि, पत्नी की उम्र 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए, हालांकि यह उम्र पहले 15 साल थी।

भारत में वैवाहिक बलात्कार

उपर्युक्त धारा यह बताती है कि यदि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी पर अपराध किया जाता है तो वह पक्षों की वैवाहिक स्थिति के आधार पर बलात्कार नहीं माना जाएगा। भारत में, बलात्कार से संबंधित पूरी कानूनी व्यवस्था में एक बड़ी गड़बड़ी है और सबसे विरोधाभासी (पैराडॉक्सिकल) खामियों में से एक यह है कि एक पति पर अपनी ही पत्नी के बलात्कार के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। इसके साथ, यह एक धारणा (नोशन) स्थापित करता है कि विवाह के लिए सहमति देना, संभोग करने के लिए निहित सहमति को माना जाता है। अधिक सटीक होने के लिए, इसका मतलब है कि एक पति अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध कहीं भी, कभी भी और किसी भी प्रकार का संभोग कर सकता है, विवाह के अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) की निहित शर्तों में से एक है जो पत्नी पर बाध्यकारी शर्त है और वह इसका उल्लंघन नहीं कर सकती है।

बड़ा विवाद यह है कि, क्या ऐसे विवाह को संरक्षित (प्रिजर्व) करने का कोई मतलब है, जो पति द्वारा अपनी पत्नी के प्रति चिंता की कमी पर आधारित हो? यह मुद्दा कानून की अदालतों और विधायिका (लेजिस्लेचर) द्वारा भी ध्यान देने योग्य है।

तो यह अपवाद अपराध को निम्नानुसार सीमांकित (डिमार्केट) करता है:

  1. अपनी ही पत्नी के साथ बलात्कार करना और शादी के बाहर महिला के साथ बलात्कार करना।
  2. आरोपी से शादी करने वाली 15-18 साल की लड़की के साथ बलात्कार और 15-18 साल की उम्र की लड़की के साथ बलात्कार करना, जिसकी आरोपी से शादी नहीं हुई है।
  3. अपनी ही पत्नी के साथ बलात्कार और शादी के बाहर महिला के साथ बलात्कार दोनों अलग बात हैं। पहली स्थिति में, एक महिला के साथ अपराध जो उस व्यक्ती की पत्नी नहीं है, उसे बलात्कार के अपराध के रूप में माना जाएगा, जबकि एक महिला के साथ अपराध, जो उस व्यक्ति की पत्नी है, तो उसे अपवाद के तहत कवर किया जाएगा और इसलिए बलात्कार के तहत अपराध नहीं होगा। 
  4. आरोपी से शादी करने वाली 15-18 साल की लड़की के साथ बलात्कार और 15-18 साल की उम्र की लड़की के साथ बलात्कार, जिसकी आरोपी से शादी नहीं हुई है।

दूसरी ओर, दूसरे बिंदु से उत्पन्न विवाद को निपटाने के लिए, इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, रिट याचिका (सिविल) संख्या 382, 20 के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक दीवानी (सिविल) रिट याचिका दायर की गई थी, ​​जहां आई.पी.सी. की धारा 375 अपवाद II में मामूली संशोधन (अमेंडमेंट) किया गया था।  इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति की आयु 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी थी।

इस मामूली बदलाव के बाद हम निम्नलिखित स्थिति पर विचार कर सकते हैं जहां धारा 375 के तहत पति उत्तरदायी नहीं है:

जब पति अपनी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी जो 18 वर्ष से अधिक उम्र की हो, के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध रखता है।

हालांकि, दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि जब पति ने कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाए, जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक नहीं है, तो यह बलात्कार की श्रेणी में आता है।

वैवाहिक बलात्कार के लिए राजनीतिक परिप्रेक्ष्य (पर्सपेक्टिव)

केंद्र सरकार बार-बार वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग को इस आधार पर दबाने की कोशिश कर रही है कि:

  1. केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाना “विवाह की संस्था को अस्थिर (अनस्टेबल) कर सकता है” और यह पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन जाएगा। 
  2. उनका दावा है कि एक पत्नी के लिए यौन शोषण करने वाले पति के साथ रहना अनिवार्य नहीं है और वह उसे क्रूरता के आधार पर छोड़ सकती है, जो कि प्रत्येक व्यक्तिगत (पर्सनल) कानून में एक प्रावधान (प्रोविजन) है।

मौलिक अधिकारों का उल्लंघन

आर्टिकल 21

यह आर्टिकल जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में बात करता है, जो भारत के संविधान के भाग III के तहत एक मौलिक अधिकार है। इस आर्टिकल में निजता (प्राइवेसी) का अधिकार शामिल है। न्यायमूर्ति के.एस. ने सर्वोच्च न्यायालय की 9-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पुट्टस्वामी (रिटायर्ड) बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया ने कहा, “गोपनीयता में व्यक्तिगत अंतरंगता (इंटिमेसी), पारिवारिक जीवन की पवित्रता, प्रजनन (रिप्रोडक्शन), घर और यौन अभिविन्यास (सेक्शुअल ओरिएंटेशन) का संरक्षण (प्रिजर्वेशन) शामिल है। निजता भी अकेले छोड़े जाने के अधिकार को दर्शाती है। निजता का अर्थ भी व्यक्तिगत स्वायत्तता (ऑटोनोमी) की रक्षा को दर्शाता है और व्यक्ति को अपने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को नियंत्रित (कंट्रोल) करने की क्षमता के बारे मे बताता है।”

हालाँकि, वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार का अपवाद बनाकर एक विवाहित महिला को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित किया जाता है।

आर्टिकल 14

यह आर्टिकल कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण की अवधारणा (कांसेप्ट) को विस्तृत करता है। वैवाहिक बलात्कार की बर्बर प्रथा, स्पष्ट रूप से कानून की अदालतों द्वारा किसी भी व्यक्ति के साथ कुछ गलत होने पर सुनवाई के समान अधिकार का उल्लंघन करती है। लेकिन वैवाहिक बलात्कार के मामले में सुनवाई तो बहुत दूर की बात है; यहां तो एफ.आई.आर. भी दर्ज़ नहीं  कराई जाती है।

जिस समाज में पितृसत्ता (पैट्रियार्की) अपने उफान पर है, वहां विवाहित महिला के मामले में गलत काम करने वालों के खिलाफ आवाज उठाने के अधिकार को दबा दिया जाता है।

आर्टिकल 15

यह आर्टिकल धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के निषेध (प्रोहिबिशन) को विस्तृत करता है। यौन अभिविन्यास के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव, व्यक्ति की गरिमा (डिग्निटी) और आत्म-मूल्य के लिए बहुत अपमानजनक है।

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, (प्रोटेक्शन ऑफ़ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट), 2005

2005 में विधायिका ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 अधिनियमित (इनैक्ट) किया, जो वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बल्कि घरेलू हिंसा का एक हिस्सा मानता है। इस अधिनियम में यदि कोई महिला वैवाहिक बलात्कार से प्रताड़ित होती है तो वह वैवाहिक बलात्कार के अपराध के खिलाफ नहीं बल्कि अपने पति द्वारा की गई क्रूरता के आधार पर न्यायिक अलगाव (ज्यूडिशियल सेपरेशन) के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है। इसलिए, अपनी ही पत्नी के साथ बलात्कार करने वाले अपराधी को दंडित करने के संबंध में उपरोक्त अधिनियमन पूरी तरह से विफल है।

वैवाहिक बलात्कार पर अंतर्राष्ट्रीय स्टैंड

महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ़ ऑल फॉर्म्स ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमन) (सी.ई.डी.ए.डब्ल्यू.) के हस्ताक्षरकर्ताओं (सिग्नेटरीज) में से एक भारत है। इस सम्मेलन में महिलाओं के खिलाफ इस तरह के भेदभाव को अधिकारों की समानता और मानवीय गरिमा या महिला के सम्मान के उल्लंघन के सिद्धांत (प्रिंसिपल) का उल्लंघन माना गया है।

साथ ही मानवाधिकार आयोग (कमीशन ऑन ह्यूमन राइट्स) ने अपने 51वें सत्र (सेशन) में 8-3-1995 के संकल्प संख्या (रेजोल्यूशन नंबर) 1995/85 के साथ, “महिला के खिलाफ हिंसा का उन्मूलन” शीर्षक के साथ, अपनी सिफारिशों में कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाया जाना चाहिए।

हम पहले से ही जानते हैं कि यू.एस.ए. में दो प्रकार के कानून मौजूद हैं, एक राष्ट्रीय कानून है जबकि दूसरा राज्य कानून है। वैवाहिक बलात्कार से संबंधित कानून राज्य के कानूनों के तहत उपलब्ध हैं, न कि राष्ट्रीय कानून के तहत। बलात्कार के अपराध को सैन्य न्याय के समान संहिता (यूनिफॉर्म कोड ऑफ मिलिट्री जस्टिस) में अध्याय 47X, धारा 920, आर्टिकल 120 के तहत परिभाषित किया गया है और इस प्रावधान के तहत वैवाहिक बलात्कार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसका आरोपी द्वारा बचाव के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। राज्य के कानूनों की स्थिति यह है कि, अमेरिका के सभी 50 राज्यों में वैवाहिक बलात्कार अवैध है। प्रारंभ में, “वैवाहिक बलात्कार छूट” मौजूद थी, जिसने किसी भी कानूनी परिणाम का सामना करने के डर के बिना एक व्यक्ति को अपने पति या पत्नी के साथ बलात्कार करने की अनुमति दी थी। दक्षिण डकोटा इस छूट को लाने वाला पहला राज्य था और उत्तरी कैरोलिना अंतिम राज्य था।

वैवाहिक बलात्कार की सजा उतनी ही है जितनी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए बलात्कार की होती है। आरोपी को कई साल की सजा या उम्र कैद भी हो सकती है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

इसलिए, यह कहते हुए कि पाप करने वाला व्यक्ति पापी है, जबकि उन बुरे कर्मों को सहने वाला व्यक्ति चुपचाप ही बड़ा पाप कर देता है। लेकिन एक सवाल यह है कि अगर कानून का समर्थन न हो तो क्या होगा?

इस सवाल को सामने रखकर कि क्या बलात्कार को परिभाषित करने के दो मापदंड (यार्डस्टिक) हो सकते हैं- अविवाहित महिला का बलात्कार और एक विवाहित महिला का बलात्कार? क्या किसी महिला के साथ सिर्फ इसलिए भेदभाव करना स्वीकार्य है क्योंकि उसकी शादी उस पुरुष से हुई है जिसने उसका बलात्कार किया था?

यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भारतीय कानून पहले की तरह महिलाओं को उचित सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहे हैं क्योंकि महिलाओं को अभी भी पति की संपत्ति के रूप में माना जाता है और उनके पास उसका शोषण करने के सभी अधिकार हैं और इस मुद्दे पर कोई उपचार प्रदान नहीं किया गया है। यद्यपि एक पति के हिंसक और सहमति के बिना संभोग करने का कार्य पत्नी को आपराधिक हमले के लिए कार्रवाई करने का अधिकार दे सकता है, हमारे दंड कानूनों में वैवाहिक बलात्कार के लिए दायित्व के सिद्धांत का समावेश (इनकॉरपोरशन) मौजूद नहीं है। यह प्रथम दृष्टया (प्राइमा फेसी) भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 और 21 का उल्लंघन करता है। भारतीय कानूनी व्यवस्था में वैवाहिक बलात्कार का गैर-अपराधीकरण प्रमुख चिंता का विषय है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका को उनकी सुरक्षा के लिए पहल करनी चाहिए। विवाहित महिलाओं की उचित देखभाल की जानी चाहिए और उनके साथ यौन उत्पीड़न या हिंसा नहीं होनी चाहिए। इसलिए इस धारा का यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए एक बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण (नैरो व्यू) है और अब तक ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जो विवाहित महिलाओं की रक्षा करता हो।

हालाँकि, वैवाहिक बलात्कार एक पति का विशेषाधिकार (प्रिविलेज) नहीं है, बल्कि एक हिंसक कार्य और एक अन्याय है जिसे अपराध बनाया जाना चाहिए।

 

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