पंजीकृत और अपंजीकृत ट्रेडमार्क के बीच अंतर

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Trademark Act
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यह लेख Tirumala Chakraborty द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में एन.यू.जे.एस., कोलकाता से बिजनेस लॉ में एम.ए. कर रही हैं। इस लेख में वह पंजीकृत (रजिस्टर्ड) और अपंजीकृत (अनरजिस्टर्ड) ट्रेडमार्क के बीच अंतर पर चर्चा करती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय

  • शुरू से ही मनुष्य के पास कई सारे अधिकार हैं और ऐसा कोई समय नहीं था जब इन अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया गया था या उनके अधिकार चोरी या आक्रमण से मुक्त थे। और यहीं पर ट्रेडमार्क की आवश्यकता निहित है। ट्रेडमार्क एक विशिष्ट चिह्न या संकेतक (इंडिकेटर) है जो किसी व्यक्ति या कंपनी की वस्तुओं या सेवाओं को बाजार में दूसरे की या उसके प्रतिस्पर्धियों (कॉम्पिटिटर) की वस्तुओ के मुकाबले में पहचान देता है या उनसे अलग करता है।
  • इस प्रकार ट्रेडमार्क एक व्यक्ति के अधिकार को दूसरे व्यक्ति द्वारा उल्लंघन या चोरी के माध्यम से आक्रमण करने से सुरक्षा प्रदान करता है। व्यापार और वाणिज्य (कॉमर्स) में वृद्धि के साथ और कई अनुरोध किए जाने के साथ; भारतीय व्यापारिक जनता द्वारा ट्रेडमार्क पर कानून की आवश्यकता को गंभीरता से महसूस किया गया था। मांग ने गति पकड़ी और तत्कालीन केंद्र सरकार को इस विषय पर एक अधिनियम पारित करने की आवश्यकता को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया और एक ज्ञापन (मेमोरेंडम) तैयार किया गया और सभी स्थानीय सरकारों और वाणिज्यिक निकायों के बीच राय के लिए परिचालित (सर्कुलेट) किया गया।
  • अंततः 11 मार्च 1940 को इसके लिए एक विधेयक (बिल) पारित किया गया और इसे गवर्नर-जनरल की स्वीकृति प्राप्त हुई। ट्रेडमार्क अधिनियम, 1940 ट्रेडमार्क की सुरक्षा के लिए अधिनियमित किया गया था और यह अधिनियम 1938 के अंग्रेजी अधिनियम पर आधारित था। लेकिन तब से ट्रेडमार्क के प्रभावी या बेहतर संरक्षण के लिए क़ानून को संशोधित करने की आवश्यकता महसूस की गई थी और हाल के दिनों में ट्रेडमार्क विधेयक, 1999 पारित होने के बाद ट्रेडमार्क कानून में काफी हद तक बदलाव आए है। भारत में, ट्रेडमार्क से संबंधित कानून मुख्य रूप से ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 द्वारा शासित होता है और यह ट्रेडमार्क पंजीकरण के लिए तंत्र प्रदान करता है और एक बार पंजीकृत होने के बाद, यह ट्रेडमार्क को संपत्ति का दर्जा प्रदान करता है।

ट्रेडमार्क क्या होता है?

  • ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 को, मौजूदा कानून की व्यापकता से समीक्षा (रिव्यू) करने के बाद और मुख्य रूप से व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में तेजी से विकास और बढ़ते वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) के कारण विकसित किया गया था। यह अधिनियम पारित किया गया था क्योंकि ट्रेडमार्क प्रणाली को सरल बनाने और निवेश के प्रवाह (फ्लो) और प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) के हस्तांतरण (ट्रांसफर) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता थी।
  • इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, 1999 के अधिनियम ने ट्रेडमार्क की परिभाषा में संशोधन किया था, वस्तुओं के अलावा सेवाओं के लिए भी ट्रेडमार्क के पंजीकरण को मान्यता दी गई थी, उन वस्तुओं पर ट्रेडमार्क का पंजीकरण जो जाने माने ट्रेडमार्क की नकल है उनकी अनुमति नहीं दी गई थी, पंजीकरण से इनकार करने के लिए आधारों को भी बढ़ाया गया था और रक्षात्मक ट्रेडमार्क को हटा दिया गया था। पंजीकृत उपयोगकर्ताओं (यूजर) की पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाया गया और पंजीकरण और नवीनीकरण (रिन्यूअल) की अवधि को सात से बढ़ाकर दस वर्ष कर दिया गया था। इस अधिनियम ने ट्रेडमार्क अपराधों को संज्ञेय (कॉग्निजेबल) बना दिया और ट्रेडमार्क से संबंधित अपराधों के लिए सजा में वृद्धि की और अपीलों के त्वरित समाधान के लिए एक अपीलीय बोर्ड भी प्रदान किया।
  • ‘ट्रेडमार्क’ शब्द को ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 2 (zb) के तहत परिभाषित किया गया है। इस धारा के अनुसार, ‘ट्रेडमार्क’ का अर्थ एक व्यक्ति की वस्तुओं या सेवाओं को दूसरे से अलग करने या विभिन्न दिखाने के उद्देश्य से बनाए गए चिह्न, प्रतीक या चिन्ह का चित्रमय प्रतिनिधित्व (ग्राफिकल रिप्रेजेंटेशन) है।
  • इस तरह की विभिन्नता में वस्तुओं का आकार, उनकी पैकेजिंग और रंगों का संयोजन (कॉबिनेशन) शामिल हो सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि अध्याय XII [अपराध, दंड और प्रक्रिया] (धारा 107 के अलावा) [पंजीकृत के रूप में एक ट्रेडमार्क का झूठा प्रतिनिधित्व करने के लिए जुर्माना] के संबंध में एक पंजीकृत ट्रेडमार्क या तो व्यापारिक गतिविधियों के उद्देश्य से या उसके संबंध में हो सकता है और/मालिक को विशेष रूप से चिह्न का उपयोग करने का अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से हो सकता है।
  • इसी को आगे बढ़ाते हुए और इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों के संबंध में ट्रेडमार्क, वस्तुओं या सेवाओं के बीच व्यापार करने और/किसी ऐसे व्यक्ति को अधिकार देने के उद्देश्य से इस्तेमाल किए गए चिह्न का उल्लेख करता है, जो किसी वस्तु या सेवा का मालिक है या एक अनुमत उपयोगकर्ता हो सकता है, जो चिह्न के मालिक की पहचान के किसी भी संकेत के साथ या बिना, उस चिह्न का उपयोग कर सकता है। एक ट्रेडमार्क में प्रमाणन (सर्टिफिकेशन) ट्रेडमार्क या सामूहिक (कलेक्टिव) चिह्न भी शामिल होते है।
  • ट्रेडमार्क एक संकेतक या विशिष्ट संकेत है जिसमें एक नाम, डिज़ाइन, प्रतीक, उपकरण, ब्रांड, लेबल, अक्षर, शब्द, वस्तु का आकार, पैकेजिंग या रंगों का संयोजन या ऐसा कोई संयोजन शामिल हो सकता है। एक ट्रेडमार्क एक चिह्न का एक दृश्य (विजुअल) प्रतिनिधित्व है और इसका उपयोग किसी व्यक्ति या संगठन या कंपनी द्वारा अपने उत्पादों को दूसरे के उत्पादों से पहचानने या अलग करने के लिए किया जाता है।
  • ट्रेडमार्क के उपयोग का उद्देश्य वस्तुओं या सेवाओं के बीच व्यापार में एक संबंध को इंगित करना है, और कुछ व्यक्तियों के पास या तो मालिक होने या अनुमत उपयोग के माध्यम से इसका उपयोग करने का अधिकार होता है। मिल्टन राइट के आविष्कारों, पेटेंटों और ट्रेडमार्क (दूसरा संस्करण (एडिशन), पृष्ठ 38) से एक उद्धरण (एक्सट्रैक्ट) देखा जा सकता है, जिसे सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) रूप से स्वीकार किया गया है, यह कहता है कि एक आदर्श ट्रेडमार्क एक ऐसा ट्रेडमार्क होना चाहिए जो बोलने, याद रखने, वर्तनी (स्पेल) में आसान और डिजाइन में सरल हो। एक आदर्श ट्रेडमार्क सुनने में और दिखने में आकर्षक होना चाहिए और उत्पाद की गुणवत्ता का सुझाव देना चाहिए। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक आदर्श ट्रेडमार्क इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि वह उसी वर्ग के अन्य ट्रेडमार्क से अलग हो और पंजीकरण योग्य और संरक्षित हो।

पारले उत्पाद बनाम जे.पी. एंड कंपनी, मैसूर [एआईआर 1972 एससी 1359, (1972) 1 एससीए 184], में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह देखा गया था कि जब कोई प्रश्न उठता है कि क्या एक चिह्न भ्रामक (डिसेप्टिव) रूप से दूसरे के समान है, तो उन दो चिह्न की आवश्यक विशेषताओं पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले विचार किया जाना चाहिए। दोनों के बीच की विभिन्नताओं को इंगित करने के लिए दोनो को एक साथ रखना पर्याप्त नहीं है। यह पर्याप्त होगा यदि आक्षेपित (इंपंग्ड) चिह्न में पंजीकृत चिह्न के संबंध में ऐसी समग्र समानता हो जिससे पंजीकृत ट्रेडमार्क से संबंधित किसी व्यक्ति को इस हद तक भ्रमित करने की संभावना हो कि वह उस आक्षेपित (इंपंग्ड) चिह्न वाले उत्पाद को स्वीकार कर लेता है जब उसे उसके सामने पेश किया जाता है। 

एक ट्रेडमार्क के मालिक को उस वर्ग को समझना चाहिए जिसके तहत उसे पंजीकृत किया जाना चाहिए और उसके अनुसार चुनना चाहिए क्योंकि यह व्यवसाय की सद्भावना की रक्षा करता है। भारत में, एक ट्रेडमार्क को कई श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है जैसे शब्द चिह्न, उपकरण चिह्न, सेवा चिह्न, सामूहिक चिह्न, प्रमाणन चिह्न, प्रसिद्ध चिह्न और अपरंपरागत (अनकन्वेंशनल) चिह्न। 

विभिन्न प्रकार के ट्रेडमार्क 

  • एक शब्द चिह्न, ट्रेडमार्क का एक रूप है जो चिह्न के मालिक को केवल शब्द, अक्षर या संख्यात्मक (न्यूमेरिकल) में अधिकार देता है।
  • जहां कोई ट्रेडमार्क किसी शब्द, अक्षर या संख्यात्मक के अद्वितीय (यूनिक) प्रतिनिधित्व के रूप में होता है, उसे उपकरण चिह्न कहा जाता है।
  • वस्तुओं के मामले में एक सेवा चिह्न नहीं देखा जा सकता है लेकिन यह किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा दी जाने वाली सेवा का प्रतिनिधित्व करता है। सेवा चिह्न सेवा उद्योग (इंडस्ट्री) में उपयोग किए जाने वाले चिह्नों की सुरक्षा के लिए उपलब्ध एक तंत्र है। सेवा चिह्नों को प्रतीक एस.एम. द्वारा दर्शाया जाता है न कि टी.एम. द्वारा।

उदाहरण के लिए, मैकडॉनल्ड्स जिसके पास रेस्तरां सेवाओं, जो वह प्रदान करता है, के लिए एक सेवा चिह्न है। सेवा चिह्न को अन्य प्रकार के ट्रेडमार्क से आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है और यही कारण है कि कई कंपनियां दोनों को रखना पसंद करती हैं।

  • सामूहिक चिह्नों का उपयोग कंपनियों के समूह या संघ (एसोसिएशन) या सार्वजनिक संस्थान या सहकारी (कॉपरेटिव) द्वारा उत्पाद की एक विशिष्ट विशेषता के बारे में आम जनता को सूचित करने के लिए किया जाता है। “सी.ए.” जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान के सदस्यों को दर्शाता है, एक प्रमुख उदाहरण है।
  • प्रमाणन चिह्नों का उपयोग खरीदारों या उपभोक्ताओं (कंज्यूमर) को आश्वस्त करने के लिए किया जाता है कि उत्पाद के कुछ मानक (स्टैंडर्ड) हैं और उत्पाद सफलतापूर्वक निर्दिष्ट मानक परीक्षण से गुजरे हैं। वूलमार्क, एगमार्क और आई.एस.आई. कुछ सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले प्रमाणन चिह्न हैं।
  • एक ट्रेडमार्क एक प्रसिद्ध ट्रेडमार्क का खिताब प्राप्त करता है और अधिक सुरक्षा प्राप्त करता है जब इसे बड़ी संख्या में लोगों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है।
  • अपरंपरागत ट्रेडमार्क वे ट्रेडमार्क होते हैं जिन्हें उनकी विशिष्ट विशेषता जैसे कि रंग, ध्वनि, सुगंध और आकार के लिए पहचाना जाता है, उदाहरण के लिए जब एक इत्र की सुगंध विशिष्ट होती है और इसे इससे संबंधित उत्पाद के लिए गलत नहीं माना जा सकता है, तो उसे एक सुगंध चिह्न के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है। याहू योडेल पहला साउंड मार्क था जिसे भारत में पंजीकृत किया गया था और इसके बाद नोकिया ट्यून को भी पंजीकृत किया गया था।

पंजीकृत ट्रेडमार्क

  • ट्रेडमार्क रजिस्ट्री द्वारा ट्रेडमार्क पंजीकृत और स्वीकृत होने के बाद, ऐसे चिह्न का उपयोग करने के अधिकार सहित अधिकारों का एक बंडल विशेष रूप से ऐसे पंजीकृत ट्रेडमार्क के मालिक को प्रदान किया जाता है। भारत में, पंजीकृत ट्रेडमार्क कोई भी ऐसा चिह्न है जो कानूनी रूप से ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत पंजीकृत है।
  • पंजीकरण, पंजीकृत मालिक के अधिकारों को कानूनी सुरक्षा देता है और कोई व्यक्ति ट्रेडमार्क के उल्लंघन के लिए न्यायपालिका के पास जा सकता है और उस व्यक्ति से नुकसान का दावा कर सकता है जो उसकी सहमति या अनुमोदन (अप्रूवल) के बिना उसके ट्रेडमार्क का उपयोग कर रहा था। पंजीकरण के लिए, चिह्न के मालिक को ट्रेडमार्क रजिस्ट्री के समक्ष एक आवेदन दाखिल करने की आवश्यकता होती है जो यह दर्शाता है कि यह वस्तुओं या सेवाओं को एक विशिष्ट पहचान देता है, और बाजार में उपलब्ध अन्य वस्तुओं या सेवाओं से इसे अलग किया जा सकता है।
  • एक बार ट्रेडमार्क पंजीकृत हो जाने पर, (टी.एम.), जो ट्रेडमार्क को इंगित करता है, के स्थान पर (आर) जोड़ा जाता है  और आमतौर पर चिह्न के ऊपरी दाएं कोने में लिखा जाता है।
  • हालांकि, भारत में ट्रेडमार्क का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन इस तरह के पंजीकरण से स्वचालित (ऑटोमैटिक) रूप से प्राप्त होने वाले कुछ लाभों के कारण चिह्न को पंजीकृत करना हमेशा उचित होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चिह्न का पंजीकरण आवश्यक है क्योंकि यह उत्पाद की पहचान करने के साथ-साथ विज्ञापन देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • पंजीकरण व्यापारी की सद्भावना को सुरक्षित करता है और उपभोक्ताओं को नकली उत्पाद या बेकार गुणवत्ता वाले उत्पाद को खरीदने से सुरक्षा प्रदान करता है। ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 का अध्याय IV पंजीकरण के प्रभावों के बारे में बात करता है और इस तरह के पंजीकरण द्वारा अधिनियम की धारा 28 के तहत कुछ अधिकार प्रदान किए जाते हैं। अधिनियम की धारा 27 के अनुसार, अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मामले में उल्लंघन के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। जबकि, यदि किसी पंजीकृत ट्रेडमार्क का उल्लंघन किया जाता है, तो पीड़ित व्यक्ति अपने चिह्न के इस तरह के उल्लंघन के लिए मुकदमा कर सकता है और कार्रवाई कर सकता है और राहत की मांग भी कर सकता है।
  • अधिनियम की धारा 31 के अनुसार, जो व्यापार और पण्य (मर्केंडाइज) अधिनियम, 1958 की धारा 31 के अनुरूप है, ट्रेडमार्क का पंजीकरण इसकी वैधता का प्रथम दृष्टया (प्राइम फेसी) प्रमाण होता है। इसका मतलब यह है कि साक्ष्य खंडन (रिबट) किया जा सकता है और सबूत का भार इसकी अमान्यता का आरोप लगाने वाले व्यक्ति पर होता है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कॉर्न प्रोडक्ट्स रिफाइनिंग कंपनी बनाम शांगरीला फ़ूड प्रोडक्ट्स लिमिटेड [एआईआर 1960 एससी 142, (1960) 1 एससीए 536] में देखा कि ट्रेडमार्क के पंजीकरण से जो एकमात्र अनुमान निकलता है, वह यह है की इसकी वैधता का प्रथम दृष्टया प्रमाणिक मूल्य है।

  • ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 का अध्याय III पंजीकरण की प्रक्रिया और समय अवधि से संबंधित है। एक ट्रेडमार्क के लिए पंजीकरण की समय अवधि भारत में 10 वर्ष है और 10 वर्ष की ऐसी समय अवधि की समाप्ति पर नवीनीकरण (रिन्यूअल) के अधीन है । भारत में पंजीकरण की पूरी प्रक्रिया ट्रेडमार्क अधिनियम 1999 द्वारा शासित है।
  • पंजीकरण की प्रक्रिया जटिल, महंगी है और इसमें समय लगता है। अपने ट्रेडमार्क को पंजीकृत करने में रुचि रखने वाले मालिक को अधिनियम की धारा 18 के तहत निर्धारित आवेदन करना होता है। एक बार आवेदन दायर करने के बाद, यह पता लगाने के लिए कि क्या कोई विसंगति (डिसक्रीपेंसी) है, रजिस्ट्रार द्वारा सावधानीपूर्वक जांच की जाती है। स्वीकृति पूर्ण और बिना किसी शर्त के होनी चाहिए। रजिस्ट्रार द्वारा आवेदन स्वीकार किए जाने के बाद, आवेदन को ट्रेडमार्क जर्नल में विज्ञापित किया जाता है जो साप्ताहिक प्रकाशित होता है।
  • ट्रेडमार्क जर्नल में वे सभी ट्रेडमार्क शामिल हैं जो रजिस्ट्रार द्वारा स्वीकार किए जाते हैं। एक बार जब यह जर्नल में प्रकाशित हो जाता है, तो आम जनता को इस तरह के पंजीकरण पर आपत्ति करने का अवसर मिलता है यदि उन्हें लगता है कि ऐसा पंजीकरण उनके लिए नुकसान का कारण हो सकता है। कोई भी तीसरा पक्ष आवेदन के विज्ञापन की तारीख से तीन महीने के भीतर या एक महीने से अधिक की अवधि के भीतर आपत्ति कर सकता है, जैसा कि अधिनियम में प्रदान किया गया है, वह रजिस्ट्रार को एक निर्धारित तरीके से नोटिस लिखकर इस तरह के पंजीकरण पर आपत्ति कर सकता है। रजिस्ट्रार को अधिनियम की धारा 19 के तहत किसी भी दोष या त्रुटि (एरर) के मामले में आवेदन वापस लेने का भी अधिकार है।
  • जब रजिस्ट्रार द्वारा कोई आपत्ति या विरोध प्राप्त नहीं होता है, तो रजिस्ट्रार का अगला कदम ट्रेडमार्क प्रमाण पत्र तैयार करना होता है और फिर से आवेदक को जारी करना होता है और प्रमाण पत्र जारी होने के बाद, ट्रेडमार्क को अधिनियम की धारा 23 के तहत पंजीकृत ट्रेडमार्क माना जाता है और तब ® प्रतीक को ट्रेडमार्क लोगो या ™ प्रतीक के बगल में रखा जा सकता है।

अपंजीकृत ट्रेडमार्क

  • एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क एक ऐसा ट्रेडमार्क है जो ट्रेडमार्क अधिनियम 1999 के तहत पंजीकृत नहीं है और उसके उल्लंघन के खिलाफ सुरक्षा उपाय नहीं दिए जाते है। अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मालिक को ® प्रतीक का उपयोग करने का अधिकार नहीं है। एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क में केवल ™ प्रतीक होता है जो दर्शाता है कि ऐसा ट्रेडमार्क पंजीकृत नहीं है लेकिन अन्य समान वस्तुओं या सेवाओं से अलग है।
  • ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत, एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क को अधिक सुरक्षा नहीं मिलती है और वह किसी तीसरे पक्ष को समान चिह्न का उपयोग करने से नहीं रोक सकता है। एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क वह है जिसे वैधानिक संरक्षण नहीं मिलता है लेकिन उसके पास कुछ सामान्य कानूनी अधिकार होते हैं।
  • ऐसे व्यापारी हैं जो ऐसे ट्रेडमार्क का उपयोग करते हैं जो पंजीकरण के लिए सक्षम नहीं हैं और वे पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं करना पसंद करते हैं। कभी-कभी ट्रेडमार्क अपंजीकृत रहता है क्योंकि बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) कानूनों की अज्ञानता के कारण मालिक पंजीकरण के लिए आवेदन दाखिल नहीं करते हैं। पंजीकरण की पूरी प्रक्रिया जटिल और काफी लंबी है और इस वजह से ट्रेडमार्क रजिस्ट्री के समक्ष बहुत सारे ऐसे मामले लंबित होते हैं जहां एक मालिक द्वारा एक आवेदन दायर किया गया है लेकिन ट्रेडमार्क को अभी तक पंजीकृत नहीं माना गया है।
  • पंजीकृत ट्रेडमार्क वाले वस्तुओं या सेवाओं की तुलना में एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क को अधिक सुरक्षा और कानूनी सरंक्षण नहीं मिलता है। अपंजीकृत ट्रेडमार्क का मालिक ™ चिह्न लगा सकता है। यह जनता के लिए एक नोटिस के रूप में कार्य करता है और इंगित करता है कि उसके द्वारा अपने उत्पाद पर उपयोग किया गया चिह्न अपंजीकृत है, लेकिन इसका उपयोग, बाजार में उपलब्ध अन्य उत्पादों से अपने उत्पाद को दर्शाने या अलग करने के लिए ट्रेडमार्क के रूप में किया जा सकता है।
  • हालांकि ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क के उल्लंघन के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है, लेकिन तीसरे पक्ष पर पासिंग ऑफ के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। अपंजीकृत ट्रेडमार्क सामान्य कानून के तहत कुछ लाभ प्राप्त करते हैं और पासिंग ऑफ के खिलाफ कार्रवाई उस सिद्धांत पर आधारित है जो कहता है कि “एक आदमी अपनी वस्तुओं को इस ढोंग के तहत नहीं बेच सकता है कि वे दूसरे आदमी के सामान हैं”।
  • पासिंग-ऑफ अनुचित व्यापार का अभ्यास करने और किसी अन्य सहयोगी व्यापारी की सद्भावना से लाभ प्राप्त करने का एक तंत्र है। पासिंग ऑफ कार्रवाई के मुख्य आवश्यक तत्वों में से एक यह है कि उपभोक्ताओं के मन में व्यापार के नामों के बारे में कुछ भ्रम पैदा हो गया है और ऐसे मामलों में लागू होने वाली जांच यह है कि क्या औसत (एवरेज) समझ वाला व्यक्ति और अपूर्ण स्मरण का व्यक्ति, उत्पाद के स्रोत की पहचान करने में भ्रमित हो जाएगा। यह साबित करने की जिम्मेदारी पीड़ित पक्ष की है कि दोनो चिह्नो के बीच एक समानता है और प्रतिवादी धोखे से अपने उत्पादों को पीड़ित के उत्पादों के रूप में बेच रहा है।

पंजीकृत और अपंजीकृत ट्रेडमार्क के बीच अंतर

एक पंजीकृत ट्रेडमार्क को नीचे दिए गए आधारों  पर अपंजीकृत ट्रेडमार्क से अलग किया जा सकता है:

चुनौती दिए जाने पर वैधता और सबूत का भार

ट्रेडमार्क अधिनियम की धारा 31 के अनुसार, किसी ट्रेडमार्क का पंजीकरण उसकी वैधता का ‘प्रथम दृष्टया’ प्रमाण होना चाहिए। इससे यह आसानी से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पंजीकरण के साथ, ट्रेडमार्क को इसके प्रमाणिक मूल्य के संदर्भ में बहुत लाभ मिलता है। माना जाता है कि मान्यता केवल उन ट्रेडमार्क पर कार्य करती है जो पंजीकृत होते हैं। अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मामले में वस्तुओं या सेवाओं से जुड़े मूल्य और सद्भावना को साबित करना मालिक का दायित्व होता है। भारत में, जहां ट्रेडमार्क का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क तभी कुछ सुरक्षा प्राप्त कर सकता है जब उत्पाद बाजार में कुछ स्तर की प्रतिष्ठा अर्जित करता है, उद्योग में एक अत्यधिक ठोस स्थिति का प्रबंधन (मैनेज) करता है और जनता की बड़ी संख्या के बीच अच्छी तरह से जाना जाता है। 

उपलब्ध उपाय

एक पंजीकृत ट्रेडमार्क को बहुत सुरक्षा मिलती है और यदि चिह्न और उसकी वैधता से संबंधित कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो पंजीकृत मालिक को ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत वैधानिक उपाय भी प्रदान किए गए  है, वही दूसरी तरफ एक अपंजीकृत चिह्न कम संरक्षित है और सामान्य कानून के तहत लाभ प्राप्त करता है। यदि कोई तीसरा पक्ष सहमति के बिना पंजीकृत मालिक के चिह्न का उपयोग करता है, तो मालिक के पास कानूनी उपाय है और वह इस तरह के उल्लंघन के लिए कार्रवाई कर सकता है। दूसरी ओर, एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क, उल्लंघन का वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं करता है, लेकिन तीसरे पक्ष पर मुकदमा कर सकता है और पासिंग-ऑफ के लिए कार्रवाई कर सकता है। एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क सामान्य कानून प्रणाली के तहत उपाय की तलाश कर सकता है।

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राम नाथ, पार्टनर मैसर्स पन्ना लाल, [एआईआर 1972 एससी 232] के प्रसिद्ध मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय अभी भी ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के अध्याय XII में वर्णित अपराधों, दंड और प्रक्रियाओं पर अच्छी तरह से लागू होता है। इस मामले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा एक पंजीकृत ट्रेडमार्क को एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क से स्पष्ट रूप से अलग किया गया था। ट्रेड और पण्य अधिनियम, 1958 की धारा 77, 78 और 79 जैसी कुछ धाराओं की व्याख्या करने की आवश्यकता महसूस की गई थी, यह निर्धारित करने के लिए कि विधायिका चुप है और अपराधों, दंड और प्रक्रिया से निपटने के दौरान अध्याय में ट्रेडमार्क, चिह्न या व्यापार विवरण शब्दों से पहले जानबूझकर “पंजीकृत” शब्द का प्रयोग नहीं किया है। इसमें आगे यह कहा गया था कि आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए ट्रेडमार्क का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। इसलिए, एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क का धारक भी आपराधिक कार्रवाई का सहारा ले सकता है।

प्रतीक या लोगो का उपयोग करने का अधिकार

एक बार जब कोई मालिक अपनी वस्तुओं या सेवाओं पर कोई चिह्न लगाता है तो वह टी.एम. प्रतीक का उपयोग कर सकता हैं। टी.एम. प्रतीक इंगित करता है कि मालिक द्वारा इस्तेमाल किया गया चिह्न उस विशेष मालिक का ही ट्रेडमार्क है। यह लोगो आमतौर पर छोटे फ़ॉन्ट में लिखा जाता है और चिह्न के बगल में रखा जाता है। एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क का धारक टी.एम. या ट्रेडमार्क प्रतीक का उपयोग कर सकता है लेकिन एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क धारक को ® प्रतीक का उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। ® प्रतीक पंजीकृत ट्रेडमार्क का प्रतिनिधित्व है। एक बार जब ट्रेडमार्क बिना किसी आपत्ति के सफलतापूर्वक पंजीकृत हो जाता है और प्रमाण पत्र जारी हो जाता है, तो मालिक ™ लोगो के साथ ® लोगो का उपयोग कर सकता है।

पंजीकरण और नवीनीकरण की समय अवधि

एक बार जब ट्रेडमार्क पंजीकृत हो जाता है और ट्रेडमार्क रजिस्ट्री की पुस्तक में दर्ज हो जाता है, तो 10 वर्षों के तक इसका अधिकार इसके मालिक के पास रहता है। पंजीकरण की समय अवधि समाप्त होने पर इसे समय-समय पर नवीनीकृत किया जा सकता है। प्रत्येक नवीनीकरण ट्रेडमार्क के अंतिम पंजीकरण की समाप्ति से पहले छह महीने की अवधि के भीतर किया जाता है। यदि पिछले पंजीकरण की समाप्ति पर मालिक द्वारा नवीनीकरण शुल्क का भुगतान नहीं किया जाता, तो रजिस्ट्रार को इस तरह के ट्रेडमार्क को रजिस्टर से हटाने और जर्नल में विज्ञापन देकर इस तथ्य को जनता को बताने का पूर्ण अधिकार होता है। लेकिन एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मामले में, मालिक उस समय या अवधि को साबित करने के लिए दायित्व के अधीन है, जिसके लिए उसकी वस्तुओ या सेवाओं की प्रतिष्ठा व्यापार बाजार प्रणाली में मौजूद है या मौजूद थी।

क्षेत्र या भौगोलिक (ज्योग्राफिकल) क्षेत्र

इस तरह के पंजीकरण के परिणामस्वरूप पंजीकृत ट्रेडमार्क को राष्ट्रव्यापी (नेशनवाइड) सुरक्षा प्राप्त होती है और यदि कोई आवेदक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना चिह्न पंजीकृत कराना चाहता है, तो वह ट्रेडमार्क के अंतर्राष्ट्रीय पंजीकरण के लिए सामान्य विनियमों (रेगुलेशन) द्वारा निर्धारित प्रपत्र (फॉर्म) पर एक अंतर्राष्ट्रीय आवेदन करके ऐसा कर सकता है। संक्षेप में, पंजीकरण एक ट्रेडमार्क के लिए बाजार में जीवित रहना आसान बनाता है जबकि दूसरी ओर एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मालिक को उस भौगोलिक क्षेत्र को साबित करना होता है जिसमें उसके उत्पाद ने उपभोक्ताओं के बीच महत्वपूर्ण विश्वसनीयता हासिल की है।

निष्कर्ष

ट्रेडमार्क अधिनियम उन सुरक्षाओं से संबंधित है जो केवल पंजीकृत ट्रेडमार्क पर लागू होती हैं इसलिए पंजीकृत ट्रेडमार्क अपंजीकृत ट्रेडमार्क की तुलना में अधिक सुरक्षित और संरक्षित होते हैं। संक्षेप में, ट्रेडमार्क पंजीकृत करना हमेशा बेहतर होता है, भले ही यह भारत और कई अन्य देशों में अनिवार्य न हो। ट्रेडमार्क के पंजीकरण में कई प्रोत्साहन हैं। पंजीकरण इसे उल्लंघन की किसी भी कार्रवाई से बचाता है जो पंजीकृत ट्रेडमार्क धारकों को कुछ हद तक राहत देता है। पंजीकृत ट्रेडमार्क धारक उल्लंघन के लिए कानूनी मुकदमा दायर कर सकते हैं और चूंकि ट्रेडमार्क पंजीकृत है, इसलिए प्रमाण का भार धारक पर नहीं होता है। पंजीकृत ट्रेडमार्क उत्पाद बाजार में ब्रांड की एक बेहतर छवि बनाते हैं और उपभोक्ताओं द्वारा अपंजीकृत ट्रेडमार्क पर अधिक वरीयता (प्रिफरेंस) प्राप्त करते हैं। और अंत में लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की पंजीकरण भी ब्रांड के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो व्यापार और वाणिज्य के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इसलिए हम कह सकते हैं कि व्यापार बाजार प्रणाली में सद्भावना पैदा करने के लिए ट्रेडमार्क पंजीकृत करना महत्वपूर्ण है। बाजार में आसान तरीके से और लंबे समय तक जीवित रहने के लिए, प्रत्येक व्यक्ति, साझेदारी (पार्टनरशिप), कंपनी या संगठन, ट्रेड यूनियनों या कानूनी संघों को ट्रेडमार्क के लिए आवेदन करना चाहिए बशर्ते कि ट्रेडमार्क अधिनियम की आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए।

संदर्भ

संक्षिप्ताक्षरों (एब्रेविएशन) /प्रतीकों की सूची

ट्रेडमार्क का प्रतीक
® पंजीकृत ट्रेडमार्क का प्रतीक

संदर्भित पुस्तकें

  • Trade Marks Act, 1999 (Bare Act)
  • Commentary on the Trade Marks Act by Iyengar

संदर्भित वेबसाइटें

संदर्भित शब्दकोश (डिक्शनरी)

  • Oxford Dictionary
  • Black’s law Dictionary

संदर्भित निर्णयों की तालिका (टेबल)

मामले का नाम साईटेशन
पारले उत्पाद बनाम जे.पी. एंड कंपनी, मैसूर [एआईआर 1972 एससी 1359, (1972) 1 एससीए 184]
कॉर्न प्रोडक्ट्स रिफाइनिंग कंपनी बनाम शांगरीला फ़ूड प्रोडक्ट्स लिमिटेड [एआईआर 1960 एससी 142, (1960) 1 एससीए 536]
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राम नाथ, पार्टनर मैसर्स पन्ना लाल, [एआईआर 1972 एससी 232]

 

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