लिमिटेड पार्टनरशिप (एल.पी.) और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एल.एल.पी.) के बीच अंतर

0
1943
Indian Partnership Act
Image Source- https://rb.gy/ikox8f

यह लेख गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली की छात्रा Sanjana Jain द्वारा लिखा गया है। यह लेख, लिमिटेड पार्टनरशिप (एल.पी.) और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एल.एल.पी.) और उनके बीच के अंतर के बारे में भी बात करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

बहुत से व्यापार (बिजनेस) पार्टनरशिप को उसके लचीलेपन (फ्लेक्सिबिलिटी) और सरलता (सिंपलीसिटी) के कारण पसंद करते हैं, हालांकि, कई इस तथ्य से चिंतित हैं कि पार्टनर व्यक्तिगत रूप से पार्टनरशिप की लायबिलिटीज के लिए जिम्मेदार हैं। इस चिंता को कम करने के लिए, लिमिटेड पार्टनरशिप और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप जैसी व्यावसायिक (बिजनेस) संरचनाएँ (स्ट्रक्चर) डिज़ाइन की गई हैं। लिमिटेड पार्टनरशिप और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप दोनों में, पार्टनर पास-थ्रू कराधान (टैक्सेशन) का आनंद लेते हैं और एक जनरल पार्टनरशिप के लचीलेपन से, व्यक्तिगत लायबिलिटीज को बचाया जा सकता है। लिमिटेड पार्टनरशिप और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप लगभग समान चीजें हैं, इस प्रकार की पार्टनरशिप उन व्यक्तियों के लिए ज्यादा उपयुक्त (सूटेबल) है जो एक ही प्रकार के पेशे में लगे हुए हैं, जैसे कि लॉ फर्म या अकाउंटिंग फर्म।

पार्टनरशिप

एक पार्टनरशिप दो या दो से ज्यादा पार्टनर्स के बीच एक औपचारिक (फॉर्मल) समझौता है, जिसमें वह सह-मालिक (को-ऑनर्स) होने के लिए सहमत होते हैं, व्यापार चलाने के लिए आपस में जिम्मेदारियों को बांटते हैं और व्यापार द्वारा उत्पन्न होने वाले लाभ और हानि को बांटते हैं। एक पार्टनरशिप में पार्टनर्स द्वारा उत्पन्न इनकम को उनकी व्यक्तिगत इनकम के रूप में माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इस पर केवल एक बार टैक्स लगाया जाता है, दूसरी ओर, निगमों (कॉरपोरेशन) के मालिकों को दोहरे कराधान का सामना करना पड़ता है, क्योंकि पहले निगम की इनकम पर टैक्स लगाया जाता है और फिर मालिक की व्यक्तिगत इनकम पर टैक्स लगाया जाता है। 

भारत में, पार्टनरशिप, इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 द्वारा शासित होती है। इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 की धारा 4 पार्टनरशिप को “पार्टनर्स के बीच एक समझौते के रूप में परिभाषित करती है जिसमें वह, उन सभी के लिए कार्य करने वाले उनमें से किसी एक व्यक्ति द्वारा किए गए व्यापार लाभ को साझा करने के लिए सहमत हुए हैं”।

इस परिभाषा के अनुसार, पार्टनरशिप के लिए ऐसे पार्टनर्स की आवश्यकता होती है जो एक दूसरे के साथ व्यावसायिक लाभ बांटते हैं। इसके अलावा, या तो उन सभी को एक साथ व्यापार करना होगा या उनमें से किसी एक के द्वारा कार्य करना होगा जो दूसरों की ओर से भी व्यापार करेगा, ऐसे व्यापार के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से पार्टनर और सामूहिक रूप से एक फर्म कहा जाता है।

पार्टनरशिप की विशेषताएं (फीचर्स ऑफ़ पार्टनरशिप)

पार्टनरशिप की विशेषताओं का उल्लेख (मेंशन) नीचे किया गया है:

1. अनुबंध या गठन (कॉन्ट्रैक्ट और फॉर्मेशन)

यदि किसी फर्म के कई मालिक हैं, तो उस फर्म पार्टनर्स के बीच कानूनी समझौता होना चाहिए। अतः पार्टनरशिप फर्म स्थापित (एस्टेब्लिश) करने के लिए पार्टनरशिप अनुबंध का होना अनिवार्य है।

पार्टनरशिप का उद्देश्य, लाभ कमाना होना चाहिए, और इसकी व्यावसायिक गतिविधि (एक्टिविटीज) वैध होनी चाहिए, इसलिए यदि दो लोगों के बीच दान या सामाजिक कार्य करने के लिए गठबंधन  (एलायंस) बनाया जाता है तो यह पार्टनरशिप का गठन (कांस्टीट्यूट) नहीं करेगा। इसी तरह, एक पार्टनरशिप अमान्य हो जाएगी यदि वह तस्करी (स्मगलिंग) जैसे किसी भी अवैध काम को अंजाम देती है।

2. अनलिमिटेड लायबिलिटी

फर्म में सभी पार्टनर्स की अनलिमिटेड लायबिलिटी होती है और वह सभी ऋणों (डेट) के भुगतान के लिए समान रूप से लाएबल होंगे, भले ही उन्हें अपनी व्यक्तिगत संपत्ति का परिसमापन (लिक्विडेट) ही क्यो ना करना पड़े।

एक पार्टनर पार्टनरशिप के अनुबंध के अनुसार अपने हिस्से के ऋण के लिए अन्य पार्टनर्स पर मुकदमा कर सकता है यदि उससे केवल धन की वसूली की जाती है।

3. निरंतरता (कंटीन्यूटी)

किसी भी पार्टनर की मृत्यु, दिवालियेपन (बैंकरप्टसी) और सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) की स्थिति में पार्टनरशिप को भंग कर दिया जाता है, शेष पार्टनर जो पार्टनरशिप को जारी रखने के इच्छुक (विलिंग) हैं, उन्हें एक दूसरे के साथ एक नया पार्टनरशिप समझौता करना होगा। इसी प्रकार एक पिता की पार्टनरशिप पुत्र को विरासत (इन्हेरिटेंस) में नहीं मिल सकती है, लेकिन अन्य पार्टनर सदस्यों की सहमति से उसे एक नए पार्टनर के रूप में जोड़ा जा सकता है।

4. सदस्यों की संख्या

एक पार्टनरशिप फर्म में कितने भी सदस्य हो सकते हैं, एक पार्टनरशिप फर्म के सदस्यों की ज्यादा से ज्यादा संख्या के लिए कोई विशिष्ट (स्पेसिफिक) संख्या नहीं है। हालांकि, बैंकिंग के लिए केवल 10 सदस्यों की अनुमति है, और कंपनियों के लिए, सदस्यों की ज्यादा से ज्यादा संख्या कंपनीज एक्ट, 2013 के अनुसार 20 से अधिक नहीं होनी चाहिए।

5. पारस्परिक माध्यम (म्यूचुअल एजेंसी)

इसका मतलब यह है कि एक कंपनी के संचालन (ऑपरेशन) के लिए सभी पार्टनर्स को समान रूप से जिम्मेदारी लेनी चाहिए, लेकिन कभी-कभी एक पार्टनर बाकी पार्टनर्स की ओर से पर्यवेक्षण (सुपरवाइज़) या कार्रवाई कर सकता है।

हर एक पार्टनर एक एजेंट होने के साथ-साथ पार्टनरशिप का प्रिंसिपल भी होता है, वह एक एजेंट होता है जब वह कुछ मामलों में अन्य पार्टनर्स का प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन) करता है, और वह एक प्रिंसिपल होता है जब वह अन्य पार्टनर्स के कार्यों से बाध्य (बाउंड) होता है।

पार्टनर्स के प्रकार

एक पार्टनरशिप में, सभी पार्टनर्स की समान जिम्मेदारी और कार्य नहीं होते हैं। पार्टनरशिप में कई तरह के पार्टनर होते हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

1. एक्टिव पार्टनर

जैसा कि आप नाम से समझ सकते हैं कि ये पार्टनर फर्म के व्यापार में जोश से भाग लेते हैं, वह पूंजी (कैपिटल) में योगदान करते हैं, व्यापार से होने वाले लाभ में हिस्सा लेते हैं, और फर्म की रोज की गतिविधि में भी भाग लेते हैं। फर्म में उनकी अनलिमिटेड लायबिलिटी होती है और साथ ही वह अक्सर अन्य पार्टनर्स के लिए एक एजेंट के रूप में भी कार्य करते हैं।

2. डॉरमेंट पार्टनर

एक डॉरमेंट पार्टनर को स्लीपिंग पार्टनर के रूप में भी जाना जाता है, वह  व्यापार के दैनिक कामकाज में भाग नहीं लेते हैं। लेकिन वह व्यापार की पूंजी में अपना योगदान देते हैं। बदले में, उन्हें व्यापार द्वारा उत्पन्न लाभ का हिस्सा मिलता है, और फर्म में उनकी अनलिमिटेड लायबिलिटी भी होती है।

3. सीक्रेट पार्टनर

सीक्रेट पार्टनर वह पार्टनर होते हैं जिनके फर्म के साथ जुड़ाव के बारे में जनता को पता नहीं होता है, यह पार्टनर फर्म के बाहर एजेंट्स या पार्टीज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। वह पूंजी में भी अपना योगदान देता है और बदले में व्यापार द्वारा उत्पन्न लाभ में हिस्सा प्राप्त करते हैं। फर्म में उसकी अनलिमिटेड लायबिलिटी होती है।

4. नॉमिनल पार्टनर

नॉमिनल पार्टनर केवल नाम से पार्टनर होते हैं, वह फर्म को उसके नाम और उससे जुड़ी सद्भावना (गुडविल) का उपयोग करने की अनुमति देते हैं। ये पार्टनर व्यापार की पूंजी में योगदान नहीं करते हैं और इसलिए व्यापार द्वारा उत्पन्न लाभ में भी उनका कोई हिस्सा नहीं होता है। वह व्यापार की गतिविधियों में भी शामिल नहीं होते हैं, लेकिन फर्म में उनकी अनलिमिटेड लायबिलिटी होती है।

5. एस्टोपल द्वारा पार्टनर

यदि कोई व्यक्ति अपने आचरण (कंडक्ट) या व्यवहार से यह सिद्ध करता है कि वह फर्म का पार्टनर है और वह उन्हें ठीक नहीं करता है, तो वह एस्टोपल द्वारा पार्टनर बन जाता है। हालांकि, फर्म में उसकी अनलिमिटेड लायबिलिटी होती है।

इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932

भारत में, कई व्यापार पार्टनरशिप व्यापार का विकल्प चुनते हैं, इसलिए ऐसी पार्टनरशिप को नियंत्रित (कंट्रोल) करने और उस पर निगरानी रखने के लिए इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 को 1 अक्टूबर 1932 को बनाया गया था। इस एक्ट के तहत, दो या दो से ज्यादा व्यक्ति अपने बीच एक समझौता करते हैं और व्यापार को एक साथ संचालित करने और व्यापार से उत्पन्न होने वाले मुनाफे को वितरित करने के लिए सहमत होते हैं।

इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 में पाँच महत्वपूर्ण तत्व (एलिमेंट) हैं और वह इस प्रकार हैं:

1. पार्टनर्स के लिए समझौता (एग्रीमेंट फॉर पार्टनर्स)

पार्टनरशिप एक समझौते या अनुबंध से उत्पन्न होती है, एक समझौता पार्टनर्स के बीच पार्टनरशिप का आधार होता है। ऐसा समझौता लिखित या मौखिक रूप में हो सकता है। किसी भी गलतफहमी से बचने के लिए, समझौते को लिखित रूप में कर लेना हमेशा बेहतर होता है और हर एक पार्टनर के पास लिखित समझौते की एक कॉपी होनी चाहिए।

2. दो या दो से ज्यादा व्यक्ति

एक पार्टनरशिप के लिए यह आवश्यक है कि एक समान लक्ष्य (गोल) रखने वाले कम से कम 2 व्यक्ति होने चाहिए। इस प्रकार पार्टनरशिप के लिए आवश्यक व्यक्तियों की कम से कम संख्या 2 है और लोगों की ज्यादा से ज्यादा संख्या पर कोई प्रतिबंध (कांस्ट्रेंट) नहीं है।

3. लाभ का बंटवारा (शेयरिंग ऑफ़ प्रॉफिट)

पार्टनरशिप का एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व, लाभ का बंटवारा है, पार्टनरशिप में हर एक पार्टनर व्यापार से उत्पन्न होने वाले लाभ और हानि को समान रूप से साझा करता है।

4. व्यापार का मकसद (बिजनेस मोटिव)

पार्टनरशिप में किसी न किसी प्रकार का व्यावसायिक उद्देश्य होता है और हर एक पार्टनर का एक ही प्रकार का उद्देश्य होता है और ऐसा उद्देश्य लाभ कमाने का होता है।

5. आपसी व्यापार (म्युचुअल बिजनेस)

एक फर्म में पार्टनर, फर्म के मालिक के साथ-साथ उसके एजेंट भी होते हैं, एक पार्टनर द्वारा किया गया कोई भी कार्य अन्य पार्टनर्स के साथ-साथ फर्म को भी प्रभावित (एफेक्ट) करता है। इस प्रकार, यह तत्व सभी पार्टनर्स के लिए पार्टनरशिप की एक परीक्षा के रूप में कार्य करता है।

पार्टनरशिप के प्रकार

राज्य के आधार पर और जहां व्यापार संचालित होता है, पार्टनरशिप को विभिन्न प्रकारों में विभाजित (डिवाइड) किया जाता है। पार्टनरशिप के चार सबसे जनरल प्रकार हैं:

  1. जनरल पार्टनरशिप
  2. लिमिटेड पार्टनरशिप
  3. लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप
  4. इच्छा पर पार्टनरशिप (पार्टनरशिप एट विल)

जनरल पार्टनरशिप

एक जनरल पार्टनरशिप में, व्यापार चलाने के लिए 2 या 2 से अधिक मालिकों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की पार्टनरशिप में, समान अधिकारों वाला हर एक पार्टनर फर्म का प्रतिनिधित्व करता है, और सभी पार्टनर प्रबंधन (मैनेजमेंट) गतिविधियां करने, निर्णय लेने में समान रूप से भाग लेने और व्यापार को नियंत्रित करने का अधिकार रखते हैं। इसी तरह, व्यापार के सभी लाभ और लायबिलिटीज उनके बीच समान रूप से साझा की जाती हैं।

जनरल पार्टनरशिप को उस प्रकार की पार्टनरशिप के रूप में कहा जा सकता है जहां प्रबंधन और निर्णय लेने के मामले में पार्टनर्स के बीच सभी अधिकार और जिम्मेदारियां समान रूप से साझा की जाती हैं। हर एक पार्टनर द्वारा, दूसरे पार्टनर द्वारा लिए गए ऋणों और लायबिलिटीज के लिए पूरी जिम्मेदारी ली जाती है। यदि किसी पार्टनर पर मुकदमा चलाया जाता है तो अन्य सभी पार्टनर्स को जवाबदेह (अकाउंटेबल) माना जाता है, इस कारण से ज्यादातर पार्टनर इस पार्टनरशिप का विकल्प नहीं चुनते हैं।

एक जनरल पार्टनरशिप को निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी चाहिए:

  1. इस तरह की पार्टनरशिप में कम से कम 2 लोगों को जरूर शामिल करना चाहिए।
  2. उनकी पार्टनरशिप द्वारा किए गए किसी भी लायबिलिटी को सभी पार्टनर्स के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए।
  3. पार्टनरशिप औपचारिक लिखित समझौते में बनाई जानी चाहिए, हालांकि मौखिक समझौते भी मान्य हैं।

उदाहरण:

एक जनरल पार्टनरशिप में, सभी पार्टनर्स द्वारा पार्टनरशिप में संपत्ति या नकदी (कैश) का योगदान दिया जाता है, और एक बार पार्टनरशिप शुरू होने के बाद सभी पार्टनर संपत्ति का सह-स्वामित्व (को-ऑन) करते हैं। इसलिए यदि एक पार्टनर पार्टनरशिप में एक तिहाई (1/3) हिस्सेदारी के लिए अपनी कार का योगदान देता है, तो इसका स्वामित्व (ओनरशिप) सभी पार्टनर्स के पास संयुक्त (ज्वाइंटली) रूप से होता है। लेकिन अगर किसी कारण से पार्टनरशिप भंग हो जाती है, तो शेष पार्टनरशिप संपत्ति को पार्टनरशिप समझौते और पार्टनर के पूंजी अकाउंट्स के आधार पर पार्टनर्स में विभाजित कर दिया जाता है।

लिमिटेड पार्टनरशिप

  • एक लिमिटेड पार्टनरशिप एक व्यावसायिक एंटिटी है जिसमें 2 प्रकार के पार्टनर शामिल होते हैं जो जनरल पार्टनर और लिमिटेड पार्टनर होते हैं। जनरल पार्टनर की जिम्मेदारियों में कंपनी का दैनिक प्रबंधन शामिल है, जबकि लिमिटेड पार्टनर व्यापार में निवेश (इन्वेस्ट) करते हैं लेकिन प्रबंधन में भाग नहीं लेते हैं और किसी भी कंपनी के ऋण के लिए व्यक्तिगत रूप से लाएबल नहीं होते हैं। एक जनरल पार्टनर कोई भी व्यक्ति या एंटिटी, जैसे कि एक निगम (कॉर्पोरेशन) हो सकता है।
  • कई मामलों में, लिमिटेड पार्टनर केवल निवेश करते हैं और कंपनी द्वारा उत्पन्न लाभ में हिस्सा लेते हैं। वे खुद को प्रबंधन या निर्णय लेने की प्रक्रिया (प्रोसेस) में शामिल नहीं करते हैं, और किसी प्रक्रिया ने ना भाग लेने का मतलब यह है कि वे अपने इनकम टैक्स रिटर्न से पार्टनरशिप के नुकसान की भरपाई करने के लिए लाएबल नहीं हैं।
  • लिमिटेड पार्टनरशिप का उपयोग ज्यादातर उन फर्म्स में किया जाता है जिनमें पेशेवर (प्रोफेशनल) शामिल होते है और जनरल पार्टनर्स को व्यापार का प्रबंधन देते हैं। उदाहरण के लिए- रियल एस्टेट निवेशक, लिमिटेड पार्टनरशिप का उपयोग करते है।
  • पारिवारिक (फैमिली) व्यापार में भी लिमिटेड पार्टनरशिप का प्रयोग किया जा सकता है जिसे परिवारिक लिमिटेड पार्टनरशिप कहा जा सकता है। इसमें परिवार के सभी सदस्य अपना पैसा जमा करते हैं, और एक जनरल पार्टनर नियुक्त करते हैं, और अपने निवेश को बढ़ते हुए देखते हैं।

लिमिटेड पार्टनरशिप की वर्किंग

  • एक लिमिटेड पार्टनरशिप में, कम से कम 1 जनरल पार्टनर होता है जो व्यापार के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होता है। एक जनरल पार्टनर, निगम की तरह कोई भी व्यक्ति या संस्था हो सकता है। इन पार्टनर्स द्वारा किए गए निर्णय, व्यापार को प्रभावित करते हैं और वे व्यापार द्वारा लिए गए सभी ऋणों और मुकदमों के लिए पूरी तरह लाएबल होते हैं।
  • जनरल पार्टनरशिप के अलावा, लिमिटेड पार्टनरशिप में भी 1 या अधिक लिमिटेड पार्टनर्स हो सकते हैं, उन्हें “साइलेंट पार्टनर” भी कहा जाता है, क्योंकि वे किसी भी चीज़ में शामिल नहीं होते हैं और वे केवल व्यापार में निवेश करते हैं ताकि वे व्यापार से उत्पन्न लाभ का हिस्सा प्राप्त कर सकें। मालिकों (सदस्यों) की तरह, उनकी लायबिलिटीज भी पार्टनरशिप में उनके निवेश तक ही लिमिटेड है।
  • अन्य पार्टनरशिप की तरह, लिमिटेड पार्टनरशिप में भी व्यक्तिगत पार्टनर्स, व्यापार में अपने हिस्से के अनुसार इनकम टैक्स का भुगतान करते हैं, शेयर को एक वितरण (डिस्ट्रीब्यूटिव) शेयर कहा जाता है, जो मालिक के व्यक्तिगत टैक्स रिटर्न के माध्यम से पास किया जाता है, और इनकम टैक्स का भुगतान व्यक्ति के व्यक्तिगत टैक्स रेट पर किया जाता है।

जब लिमिटेड पार्टनरशिप में नुकसान होता है, तो इस बात में अंतर होता है कि टैक्स उद्देश्यों के लिए जनरल और लिमिटेड पार्टनर्स के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। जनरल पार्टनर को नुकसान उठाना पड़ता है, भले ही उसकी भरपाई के लिए उसके पास कोई अन्य इनकम न हो। जैसा की एक लिमिटेड पार्टनर पार्टनरशिप चलाने में भाग नहीं लेते हैं, क्योंकि उनकी निष्क्रिय (पैसिव) इनकम होती है, जिसका अर्थ है कि यदि उनके पास इस नुकसान की भरपाई के लिए कोई अन्य इनकम नहीं है तो वे इनकम टैक्स को कम करने के लिए कोई नुकसान नहीं उठाएंगे।

लिमिटेड पार्टनरशिप का गठन (फॉर्मेशन ऑफ़ लिमिटेड पार्टनरशिप)

कई व्यापारों की तरह, राज्य के साथ रजिस्ट्रेशन करके और एक फाइलिंग वैल्यू का भुगतान करके लिमिटेड पार्टनरशिप का गठन (फॉर्मेशन) किया जा सकता है। इसके अलावा पार्टनर्स के बीच एक पार्टनरशिप समझौता बनाया जाएगा, जिसमे पार्टनर्स की सभी जिम्मेदारियों बताई जाएंगी। पार्टनरशिप समझौते में यह भी शामिल होगा कि पार्टनरशिप के लाभ को पार्टनर्स के बीच कैसे बांटा जाएगा।

लिमिटेड पार्टनरशिप के फायदे (एडवांटेज ऑफ लिमिटेड पार्टनरशिप)

  1. अनलिमिटेड शेयरहोल्डर
  2. टैक्स के फायदे
  3. पार्टनर्स की वित्तीय (फाइनेंशियल)/प्रबंधकीय (मैनेजेरियल) शक्तियों का उपयोग
  4. पार्टनरशिप समझौते के साथ पूंजी अधिग्रहण (एक्विजिशन) पर अनलिमिटेड कैप
  5. लिमिटेड पार्टनर्स के लिए लायबिलिटीज का संरक्षण (प्रोटेक्शन)

लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप

पार्टनरशिप का हर एकरूप, अनलिमिटेड लायबिलिटी की समस्या से गुजरता है, उनकी लायबिलिटीज उनकी व्यक्तिगत संपत्ति तक फैली होती हैं, जो कई उद्यमियों (एंटरप्रोन्योर) के लिए नियमित (रेगुलर) पार्टनरशिप को अवांछनीय (अनडिजायरेबल) बनाता हैं, लेकिन लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप द्वारा इस समस्या को हल किया जा सकता है।

एक ही कानूनी एंटिटी की स्थिति और पार्टनर्स की अनलिमिटेड लायबिलिटी को छोड़कर एक एल.एल.पी. में एक नियमित पार्टनरशिप फर्म की सभी बुनियादी (बेसिक) विशेषताएं हैं। एक लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप अपने मालिकों को लिमिटेड व्यक्तिगत लायबिलिटीज प्रदान करती है। इस प्रकार की पार्टनरशिप्स पेशेवर समूहों के लिए सबसे उपयुक्त (सूट) है, जैसे वकील और एकाउंटेंट, कुछ राज्यों में एल.एल.पी. केवल पेशेवरों के लिए ही उपलब्ध हैं।

एल.एल.पी., पेशेवरों द्वारा पसंद की जाती है क्योंकि वे अन्य पार्टनर्स की गलतियों के कारण खुद लाएबल नहीं होना चाहते हैं, विशेष रूप से वह गलतियां जिनमे कदाचार (मालप्रैक्टिसीज) के दावों में शामिल हैं। एक एल.एल.पी. दूसरे पार्टनर के खिलाफ कदाचार के मुकदमों से उत्पन्न होने वाले ऋणों से बचाता है।

भारत में लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप को नियंत्रित करने के लिए, 2008 में भारत की संसद द्वारा लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट पास किया गया था। इस एक्ट की धारा 2 के अनुसार, एक एल.एल.पी. इस एक्ट के तहत रजिस्टर्ड एक पार्टनरशिप है, और एक एल.एल.पी. समझौते का मतलब, एल.एल.पी. के पार्टनर्स के बीच या स्वयं एल.एल.पी. और उसके पार्टनर्स के बीच एक लिखित समझौता है। इस समझौते में सभी पार्टनर्स के अधिकारों, लायबिलिटीज, कर्तव्यों और शक्तियों का उल्लेख (मेंशन) किया जाता है।

इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 के प्रावधान (प्रोविजंस) एल.एल.पी. पर लागू नहीं होते हैं क्योंकि यह विशेष रूप से लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट, 2008 द्वारा शासित है।

एल.एल.पी. की विशिष्ट विशेषताएं (डिस्टिंक्ट फीचर्स ऑफ़ एल.एल.पी.)

लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में शामिल विशिष्ट विशेषताएं नीचे उल्लिखित हैं:

1. अलग कानूनी पहचान (सेपरेट लीगल एंटिटी)

लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप को एक अलग कानूनी एंटिटी के रूप में माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे संपत्ति के मालिक हो सकते हैं और उनके नाम पर लायबिलिटीज हो सकती है।

2. पार्टनर्स की लिमिटेड लायबिलिटीज

लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में, पार्टनर्स की लायबिलिटीज अलग और लिमिटेड होती है। लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप के वाइंडिंग अप के मामले में या जब वह ऋण को चुकाने (रिपे) के लिए कुछ कानूनी परिणाम भुगतती है, तो उस मामले में पार्टनर्स की व्यक्तिगत संपत्ति अटैच करने के लिए लाएबल नहीं होगी। लेकिन, धोखाधड़ी, या किसी अन्य गलत या अवैध कार्य या अपराधों के मामले में, पार्टनर्स की लायबिलिटीज अनलिमिटेड हो सकती हैं।

3. लाभ का बंटवारा (शेयर ऑफ़ प्रॉफिट्स)

व्यापार से उत्पन्न सभी लाभ, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप के पार्टनर्स के बीच उसी तरह साझा किए जाते हैं जैसे इसे नियमित फर्म्स के पार्टनर्स के बीच साझा किया जाता है। हालांकि, वे उस अनुपात (रेशियो) को तय करने के लिए स्वतंत्र हैं जिसमें वे लाभ साझा करेंगे।

4. एल.एल.पी. के पार्टनर

लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप का पार्टनर कोई भी हो सकता है, यह या तो प्राकृतिक व्यक्ति हो सकता है, अर्थात व्यक्ति, या यहां तक ​​कि कॉर्पोरेट निकाय भी। यदि कोई व्यक्ति विकृत (अनसाऊंड) दिमाग या दिवालिया (इंसोल्वेंट) है तो वह एल.एल.पी. का पार्टनर नहीं बन सकता है।

पार्टनर्स की कम से कम संख्या 2 है जो एल.एल.पी. के पास हर समय होनी चाहिए, पार्टनर्स की ज्यादा से ज्यादा संख्या अनलिमिटेड है। यदि पार्टनर्स की कम से कम न्यूनतम संख्या की आवश्यकता को बनाए नहीं रखा जाता है और एकमात्र पार्टनर व्यापार करता है, तो फर्म के प्रति उसका दायित्व अनलिमिटेड हो जाएगा।

इच्छा पर पार्टनरशिप (पार्टनरशिप एट विल)

इच्छा पर पार्टनरशिप का अर्थ एक ऐसी पार्टनरशिप है जिसमें पार्टनरशिप की समाप्ति के संबंध में किसी भी क्लॉज का उल्लेख नहीं किया गया है। इंडियन पार्टनरशिप एक्ट 1932 की धारा 7 के अनुसार, एक फर्म को अपनी इच्छा से पार्टनरशिप बनने के लिए, निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा:

  1. पार्टनरशिप समझौते में, पार्टनरशिप की समाप्ति के संबंध में किसी भी क्लॉज का उल्लेख नहीं किया जाएगा।
  2. पार्टनरशिप के विशेष निर्धारण (पार्टिकुलर डिटरमिनेशन) का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए।

यदि पार्टनरशिप समझौते में अवधि और निर्धारण का उल्लेख किया गया है, तो यह इच्छा पर पार्टनरशिप नहीं है। हालांकि, यदि फर्म द्वारा एक समाप्ति तिथि निर्धारित की जाती है, लेकिन फर्म का संचालन उल्लिखित तिथि से आगे जारी रहता है, तो इसे इच्छा पर पार्टनरशिप के रूप में माना जाएगा।

इच्छा से पार्टनरशिप में बकाया ऋणों का भुगतान (ट्रीटमेंट ऑफ़ आउटस्टैंडिंग डेट्स एट ए पार्टनरशिप एट विल)

इच्छा से पार्टनरशिप में बकाया ऋणों की उपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि ऋण के भुगतान से पहले पार्टीज द्वारा पार्टनरशिप को भंग नहीं किया जा सकता है, पार्टनरशिप को भंग करने के बाद भी ऋणों का भुगतान किया जा सकता है। यह सेम प्रिंसिपल निश्चित अवधि के लिए भूमी की लीज पर भी लागू होगा, लीज एक समझौते के रूप में काम नहीं करेगी, पार्टनरशिप लीज में निर्धारित किए गए समय तक रहेगी।

यदि किसी एकल (सिंगल) या विशेष वेंचर को करने के उद्देश्य से इच्छा से पार्टनरशिप बनाई गई है, तो अनुबंध के अभाव (अबसेंस) में वेंचर पूरा होने पर इसे भंग नहीं किया जाएगा।

इच्छा से पार्टनरशिप में सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) के प्रावधान को शामिल किया जा सकता है। इच्छा से पार्टनरशिप, किसी भी पार्टनर को किसी एक एडवेंचर या किसी अन्य पार्टी के साथ अंडरटेकिंग के लिए दूसरी पार्टनरशिप में प्रवेश करने से नहीं रोकती है। एक एडवेंचर या अंडरटेकिंग का मतलब यह नहीं है कि यह एक अल्पकालिक (शॉर्ट टर्म) घटना है।

इच्छा से पार्टनरशिप के फायदे

  • किसी भी एंटिटीज के बीच बनाया जा सकती है।
  • पार्टनरशिप के किसी भी पार्टनर द्वारा उचित नोटिस के साथ समाप्त की जा सकती है।
  • प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं।

एल.पी. और एल.एल.पी. के बीच तुलना

  • संरचनात्मक अंतर (स्ट्रक्चरल डिफरेंस)

एल.पी. और एल.एल.पी. दोनों में अलग-अलग संगठनात्मक (ऑर्गनाइजेशनल) संरचनाएं हैं। एल.पी. का गठन 1 व्यक्ति के साथ, जनरल पार्टनर के रूप में किया जा सकता है, जबकि एल.एल.पी. के गठन के लिए एक जनरल पार्टनर के रूप में कम से कम 2 व्यक्ति होने चाहिए।

एक एल.पी. में 2 प्रकार के मालिक होते हैं यानी जनरल पार्टनर और लिमिटेड पार्टनर, इसमें 1 या ज्यादा जनरल पार्टनर या 1 या अधिक लिमिटेड पार्टनर हो सकते हैं। एल.पी. में जनरल पार्टनर्स द्वारा दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों और व्यावसायिक निर्णय लिए जाते हैं। लिमिटेड पार्टनर मूल रूप से एक व्यापार में निवेशक होते हैं जो पूंजी में योगदान करते हैं और बदले में व्यापार के लाभ से हिस्सा प्राप्त करते हैं।

जबकि एल.एल.पी. में केवल 1 ही प्रकार का मालिक होता है यानी जनरल पार्टनर, वे वही होते हैं जो व्यापार में धन, संपत्ति या समय का योगदान करते हैं। एल.एल.पी. में सभी पार्टनर व्यावसायिक निर्णयों और संचालन में शामिल होते हैं और लाभ या हानि भी साझा करते हैं।

  • गठन (फॉरमेशन)

एल.पी. और एल.एल.पी. का गठन उस राज्य के कानून द्वारा शासित होता है जहां व्यापार बनता है। सभी राज्यों में लिमिटेड पार्टनरशिप को शासित करने वाले अलग-अलग कानून होते हैं। जिन राज्यों में एल.एल.पी. की अनुमति है, उनके अपने शासित करने वाले कानून हैं। एल.पी. और एल.एल.पी. दोनों में, उपयुक्त राज्य एजेंसी के पास एक रजिस्ट्रेशन दस्तावेज दाखिल करना होता है।

एक लिमिटेड पार्टनरशिप समझौते पर हस्ताक्षर करके एक एल.पी. का गठन किया जाता है। इस समझौते में पार्टनरशिप का नाम, जनरल और लिमिटेड पार्टनर्स का नाम, हर एकपार्टनर का योगदान, लाभ कैसे वितरित किया जाएगा, और नए पार्टनर्स को कैसे भर्ती किया जा सकता है, इसका उल्लेख किया जाता है। यदि 1 या अधिक जनरल पार्टनर हैं, तो जनरल पार्टनर्स के बीच एक अतिरिक्त समझौता होगा।

जबकि, एल.एल.पी. के गठन के लिए सभी पार्टनर्स द्वारा एक लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। लिमिटेड पार्टनर्स से संबंधित प्रावधान को छोड़कर, एक लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप समझौता, एक लिमिटेड पार्टनरशिप के समझौते के समान है।

  • लायबिलिटी की सीमा (लिमिटेशन ऑफ़ लायबिलिटी )

व्यापार के मालिकों के लिए, उनकी पहली चिंता व्यापार के ऋणों के लिए उनकी व्यक्तिगत लायबिलिटीज है, जिसमें मुकदमों से संबंधित ऋण भी शामिल हैं। यदि व्यापार के पास पर्याप्त संपत्ति नहीं है, तो व्यापार के लेनदार (क्रेडिटर्स) मालिकों की व्यक्तिगत संपत्ति में दावा कर सकते है, यदि वह व्यापार या तो सोल प्रोपराइटरशिप या जनरल पार्टनरशिप के रूप में संचालित होता है। इस प्रकार व्यावसायिक ऋणों और अदालती निर्णयों को पूरा करने के लिए, मालिक का घर, कार, व्यक्तिगत बैंक खाते, आदि खो सकते हैं।

व्यक्तिगत लायबिलिटीज के लिए कुछ सीमाएं प्रदान करने के लिए, लिमिटेड पार्टनरशिप (एल.पी.) और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एल.एल.पी.) जैसी व्यावसायिक एंटीटीज का निर्माण किया गया था।

लिमिटेड पार्टनरशिप में, जनरल पार्टनर्स की व्यक्तिगत लायबिलिटीज होती है, हालांकि, लिमिटेड पार्टनर व्यावसायिक ऋणों के लिए लाएबल नहीं होते हैं, जिसमें व्यापार में होने वाले नुकसान भी शामिल हैं। एकमात्र जोखिम जो लिमिटेड पार्टनर्स उठाते है, वह खाली उनके निवेश तक सीमित है।

जबकि, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में, सभी पार्टनर्स की लिमिटेड लायबिलिटीज होती है, और यह सीमा सभी व्यावसायिक ऋणों पर लागू होती है, लेकिन यह कुछ जानबूझकर या आपराधिक कृत्यों के दावों पर लागू नहीं होती है।

  • पूंजी रेज़ करना

जब व्यापार का विस्तार करने के लिए धन जुटाने के लिए पार्टनर्स को जोड़ने की बात आती है तो लिमिटेड पार्टनरशिप हमेशा लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप से बेहतर होती है। लिमिटेड पार्टनरशिप में, व्यावसायिक निर्णयों में भाग लेने का अधिकार दिए बिना, लिमिटेड पार्टनर्स को जोड़ा जाता है, जबकि लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में, पार्टनर्स को केवल व्यावसायिक निर्णयों और संचालन में भाग लेने का अधिकार देकर ही जोड़ा जा सकता है।

  • प्रोफेशनल लिमिटेड पार्टनरशिप

व्यावसाय के किसी भी प्रकार में, एक लिमिटेड पार्टनरशिप का गठन किया जा सकता है, जबकि एक लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप केवल कुछ प्रकार के व्यापारों, जैसे वकील, आर्किटेक्ट और एकाउंटेंट द्वारा ही बनाई जा सकती है। कैलिफ़ोर्निया जैसे देशों में, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप केवल वकीलों और एकाउंटेंट तक ही लिमिटेड है। लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप के ज्यादा पार्टनर के पास उपयुक्त राज्य द्वारा जारी व्यावसायिक लाइसेंस होता है, जबकि लिमिटेड पार्टनरशिप में इसकी आवश्यकता नहीं होती है।

  • इनकम और टैक्स विचार

एक लिमिटेड पार्टनरशिप में कंपनी से प्राप्त धन पर स्वरोजगार (सेल्फ एंप्लाइमेंट) टैक्स का भुगतान जनरल पार्टनर द्वारा किया जाता है, जबकि इसका भुगतान करने के लिए लिमिटेड पार्टनर्स की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में कंपनी के लाभ और हानि के अपने हिस्से पर स्वरोजगार टैक्स का भुगतान ज्यादा पार्टनर को करना होता है।

एक लिमिटेड पार्टनरशिप में, जनरल पार्टनर्स को उनके लाभ का हिस्सा प्राप्त होने के बाद व्यापार से लिमिटेड पार्टनर्स द्वारा इनकम प्राप्त की जाती है। जबकि लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में, कंपनी में स्वामित्व हित (इंटरेस्ट) के अनुसार हर एक पार्टनर को लाभ और हानि का अपना हिस्सा प्राप्त होता है।

निष्कर्ष (कंक्लूजन)

लिमिटेड पार्टनरशिप (एल.पी.) और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एल.एल.पी.) दोनों एक से ज्यादा मालिकों वाले व्यापार हैं और दोनों अपने कुछ मालिकों को व्यावसायिक ऋणों के लिए लिमिटेड व्यक्तिगत लायबिलिटीज प्रदान करते हैं, लेकिन जनरल पार्टनरशिप में, यह प्रदान नहीं किया जाता है।

लिमिटेड पार्टनरशिप में, एक मालिक को एक जनरल पार्टनर माना जाता है, जिसके पास व्यावसायिक निर्णय लेने की शक्ति होती है और वह सभी व्यावसायिक ऋणों के लिए व्यक्तिगत रूप से लाएबल होता है। उनके पास एक लिमिटेड पार्टनर भी है जो व्यापार में निवेश करता है लेकिन दैनिक व्यावसायिक निर्णयों और संचालन में शामिल नहीं होता है, लिमिटेड पार्टनर होने के लाभों में से एक यह है कि वे व्यावसायिक ऋणों के लिए व्यक्तिगत रूप से लाएबल नहीं हैं।

जबकि एक लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में कोई जनरल पार्टनर नहीं होता है, और एक एल.एल.पी. के सभी पार्टनर्स के पास व्यावसायिक ऋणों के लिए लिमिटेड व्यक्तिगत लायबिलिटीज होती है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here