यह लेख सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नोएडा की प्रथम वर्ष की छात्रा Khushi Agrawal ने लिखा है। उन्होंने कैपिटल पनिशमेंट की अवधारणाओं (कांसेप्ट) और भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 पर विस्तार से चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
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कैपिटल पनिशमेंट क्या है?
कैपिटल पनिशमेंट को मौत की सजा के रूप में भी जाना जाता है, एक अपराधी को कोर्ट द्वारा एक अपराध की सजा के बाद मौत की सजा दी जाती है। कैपिटल पनिशमेंट, इंडियन जस्टिस सिस्टम के महत्वपूर्ण भागों में से एक है।
भारत में कैपिटल पनिशमेंट का विकास
भारत ने 1947 में स्वतंत्रता के समय 1861 की क्रिमिनल कोड को लागू किया, जिसमें मर्डर के लिए मृत्युदंड का प्रावधान (प्रोविज़न) था। 1947 और 1949 के बीच भारतीय संविधान के प्रारूपण (ड्राफ्टिंग) के दौरान संविधान सभा के कई सदस्यों द्वारा, मृत्युदंड की सजा को समाप्त करने का विचार व्यक्त किया गया था, लेकिन संविधान में ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं किया गया था। अगले दो दशकों में, मृत्युदंड को समाप्त करने के लिए, लोकसभा और राज्य सभा दोनों में निजी सदस्यों के बिल पेश किए गए, लेकिन उनमें से किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया। यह अनुमान लगाया गया था कि 1950 और 1980 के बीच, 3000 से 4000 निष्पादन (अग्जिकयुशन) हुए थे। 1980 और 1990 के मध्य के बीच मृत्युदंड और फांसी की सजा पाए लोगों की संख्या को मापना अधिक कठिन है। ऐसा अनुमान है कि प्रतिवर्ष दो या तीन लोगों को फाँसी दी जाती थी। 1980 के बचन सिंह के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृत्यु दंड का इस्तेमाल केवल “रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर” मामलों में ही किया जाना चाहिए, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर को परिभाषित करता है।
भारत में स्थिति
भारत ने मृत्युदंड पर रोक लगाने के लिए यूनाइटेड नेशंस के प्रस्ताव का विरोध किया क्योंकि यह भारतीय वैधानिक (स्टेट्यूटरी) कानून के साथ-साथ प्रत्येक देश की अपनी कानूनी प्रणाली स्थापित करने के संप्रभु (सॉवरेन) अधिकार के खिलाफ है।
भारत में, यह सबसे गंभीर अपराधों के लिए प्रदान किया जाता है। यह हिनियस और गंभीर अपराधों के लिए दिया जाता है। आर्टिकल 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को ‘जीवन के अधिकार’ से वंचित (डिप्राइव) नहीं किया जाएगा जिसका वादा भारत के प्रत्येक नागरिक से किया गया है। भारत में, क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी, मर्डर, सरकार के खिलाफ युद्ध, विद्रोह (म्यूटीनी) के लिए उकसाना, मर्डर के साथ डकैती और आतंकवाद विरोधी जैसे विभिन्न अपराध इंडियन पीनल कोड (आई.पी.सी.) के तहत मृत्युदंड के साथ दंडनीय हैं। मृत्युदंड के मामले में राष्ट्रपति को मर्सी देने का अधिकार है। बचन सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब में, कोर्ट ने माना कि मृत्युदंड केवल रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों में ही दिया जाएगा।
मृत्युदंड से संबंधित मामलों में मर्सी प्रदान करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास होता है। सेशंस कोर्ट द्वारा किसी मामले में एक बार किसी दोषी को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद, इसकी पुष्टि (कन्फर्म) हाई कोर्ट द्वारा की जानी चाहिए। यदि दोषी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में की गई अपील विफल हो जाती है तो वह भारत के राष्ट्रपति को ‘मर्सी पिटीशन’ प्रस्तुत कर सकता है। मृत्युदंड के दोषियों की ओर से मर्सी पिटीशन से निपटने के लिए स्टेट्स द्वारा प्रक्रिया पर विस्तृत निर्देशों (इंस्ट्रक्शंस) का पालन किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में अपील और ऐसे दोषियों द्वारा उस कोर्ट में अपील करने के लिए विशेष अनुमति के लिए अनुरोध मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स द्वारा निर्धारित किया जाएगा। भारत के संविधान के आर्टिकल 72 के तहत, राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को क्षमा करने, राहत देने, या छूट देने या सजा को निलंबित (रिमिशन) करने, हटाने या कम करने की शक्ति है।
भारत में निष्पादन के कौन से तरीके अपनाए जाते हैं (व्हाट आर द अग्जिक्युशन मेथड्स फ़ॉलोड इन इंडिया)?
भारत में निष्पादन के दो तरीके हैं और वे कुछ इस प्रकार हैं:
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फांसी
भारत में सभी मृत्युदंड, अपराधी को फांसी पर लटका कर दिए जाते हैं। स्वतंत्रता के बाद, महात्मा गांधी के मामले में गोडसे, मृत्युदंड द्वारा भारत में निष्पादित होने वाले पहले व्यक्ति थे। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि मृत्युदंड केवल भारत में रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों में ही दिया जाना चाहिए।
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शूटिंग
आर्मी एक्ट, 1950 के तहत, फांसी और शूटिंग दोनों को मिलिट्री कोर्ट-मार्शल सिस्टम में निष्पादन के आधिकारिक तरीकों के रूप में सूचीबद्ध (लिस्ट) किया गया है।
मृत्युदंड किन अपराधों में दिया जाता है?
वे अपराध जिनमे मृत्युदंड की सजा दी जाती हैं:
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क्रोध में (एग्रावेटेड) मर्डर
यह इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 302 के तहत अपराधी को मौत की सजा दी जाती है। बचन सिंह बनाम पंजाब स्टेट में,भारत के सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मृत्युदंड केवल तभी संवैधानिक है जब एक असाधारण दंड जैसे की ” रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर” मामलो में लागू किया जाता है ।
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अन्य अपराध जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु होती है
इंडियन पीनल कोड में आर्म्ड रॉबरी के दौरान मर्डर करने वाले व्यक्ति को मृत्यदंड दिया जाता है। पैसे के लिए पीड़िता का एब्डक्शन करते समय अगर पीड़ित का मर्डर कर दिया जाता है, तो वह मृत्यदंड के साथ दंडनीय है। संगठित (ऑर्गेनाइज़्ड) अपराध में शामिल होना, अगर यह मौत की ओर ले जाता है, तो मौत की सजा दी जाती है। किसी अन्य व्यक्ति को सती करने या करने में मदद करने पर भी मृत्युदंड दिया जाता है।
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आतंकवाद से संबंधित अपराध जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु नहीं होती
मोहम्मद अफजल को 9 फरवरी 2013 को फांसी पर लटका दिया गया था। उन्हें भारत की संसद पर दिसंबर 2001 को हमला करने के लिए मार डाला गया था जिसमें 9 लोग बंदूक और विस्फोटक से लैस 5 बंदूकधारियों (गनमैन) द्वारा मारे गए थे। 2008 में एकमात्र जीवित शूटर मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को 21 नवंबर 2012 को भारत पर युद्ध छेड़ने, मर्डर और आतंकवादी कृत्यों सहित विभिन्न अपराधों को करने के लिए फांसी दी गई थी।
किसी विशेष श्रेणी के विस्फोटक का उपयोग विस्फोट का कारण बनने के लिए जो जीवन को खतरे में डाल सकता है या संपत्ति को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, तो वह मृत्युदंड से दंडनीय है।
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यदि रेप से पीड़ित की मृत्यु नहीं होती
एक व्यक्ति जो सेक्शुअल असॉल्ट में चोट पहुंचाता है जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित की मृत्यु हो जाती है या उसे “परसिस्टेंट वेजीटेटिवे स्टेट” में छोड़ दिया जाता है, तो उसे क्रिमिनल लॉ एक्ट, 2013 के तहत मौत की सजा दी जा सकती है।
गैंग रेप मृत्युदंड के साथ दंडनीय हैं। ये बदलाव नई दिल्ली में, मेडिकल छात्रा ज्योति सिंह पांडे के 2012 के गैंग रेप और मौत के बाद किये गए थे।
2018 के क्रिमिनल लॉ ऑर्डिनेंस के अनुसार, जो व्यक्ति 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ रेप करता है, उसे मौत की सजा दी जा सकती है या जुर्माने के साथ 20 साल की जेल हो सकती है। 2018 का अमेंडमेंट 12 साल से कम उम्र की लड़की के गैंग रेप के लिए मृत्यदंड या आजीवन कारावास को भी निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) करता है। आपराधिक कानून में ये बदलाव 8 साल की लड़की के रेप और मर्डर के बाद हुए, जिसका नाम आसिफा बानो था, और मामले ने जम्मू और कश्मीर में और देश भर में बहुत सारी राजनीतिक अशांति (अनरेस्ट) पैदा की। ।
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यदि अपहरण मे मौत नहीं होती
इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 364A के अनुसार, अपहरण, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु न हो, तो वह मृत्यु से दंडनीय अपराध है। यदि कोई व्यक्ति किसी का अपहरण करता है और उसे मारने या उसे नुकसान पहुंचाने की धमकी देता है, जिसके दौरान अपहरणकर्ता के कार्य के परिणामस्वरूप वास्तव में पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, तो इस धारा के तहत वह उत्तरदायी होगा।
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नशीले पदार्थों की तस्करी (ट्रेफिकिंग) करते समय यदि किसी की मृत्यु नहीं होती
यदि कोई व्यक्ति किसी नशीले पदार्थों की तस्करी के अपराधों में से किसी एक को करने या किसी को उकसाने, या आपराधिक साजिश करने का प्रयास करता है, या कुछ प्रकार के नारकोटिक्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस के फाइनेंस के लिए दोषी ठहराया जाता है, तो उसे मौत की सजा दी जा सकती है।
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राजद्रोह (ट्रिसन)
मृत्युदंड किसी भी व्यक्ति को दिया जाता है जो सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने या लड़ने की कोशिश करता है और नौसेना, सेना, या वायु सेना के अधिकारियों, सैनिकों या सदस्यों को विद्रोह (म्यूटिनी) करने में मदद कर रहा है।
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सैन्य अपराध जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित की मृत्यु नहीं होती
सेना या नौसेना या वायु सेना के किसी सदस्य द्वारा किए गए हमले, विद्रोह या वायु सैनिक, सैनिक, नाविक को अपने कर्तव्य और विभिन्न अन्य अपराधों से बहकाने के प्रयास के लिए मौत की सजा दी जाती है।
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अन्य अपराध जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित की मृत्यु नहीं होती
- यदि कोई व्यक्ति आपराधिक साजिश का एक पक्ष है तो मृत्युदंड की सजा दी जाती है।
- आजीवन कारावास की सजा पाने वालों को मारने का प्रयास करने के लिए मौत की सजा दी जा सकती है यदि पीड़ित को प्रयास से नुकसान पहुंचाया जाता है।
- यदि कोई व्यक्ति इस ज्ञान के साथ झूठा साक्ष्य (एविडेंस) प्रदान करता है कि इससे शेड्यूल कास्ट या ट्राइब के व्यक्ति को ऐसे साक्ष्य के आधार पर मृत्युदंड के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, तो उसे मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा यदि इसका परिणाम दोष सिद्ध होता है और एक निर्दोष व्यक्ति को फांसी की सजा से दण्डित किया जाता है।
किस श्रेणी के अपराधियों को मृत्युदंड से बाहर रखा गया है?
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माइनर
भारत में कानून के अनुसार, अपराध करने के समय 18 वर्ष से कम आयु के माइनर को फांसी नहीं दी जाती है।
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गर्भवती महिला
2009 के अमेंडमेंट के अनुसार मौत की सजा पाने वाली गर्भवती महिला को क्षमादान (क्लेमेंसी) दिया जाना चाहिए।
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बौद्धिक रूप से अक्षम (इंटेलेक्चुअली डिसेबल्ड)
इंडियन पीनल कोड के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपराध करते समय मानसिक रूप से बीमार होता है या अपराध की प्रकृति को समझने में सक्षम नहीं होता या कार्य गलत होता है, तो उस व्यक्ति को कानून के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और उसे मृत्युदंड से दंडित किया जा सकता है ।
संवैधानिकता (कांस्टीट्यूशनल लॉ)
संविधान का आर्टिकल 21 सभी को जीवन और व्यक्तिगत (पर्सनल) स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें मानवीय गरिमा (डिग्निटी) के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है। स्टेट, कानून और सार्वजनिक व्यवस्था (ऑर्डर) के नाम पर जीने का अधिकार भी छीन सकता है या कम कर सकता है। लेकिन यह प्रक्रिया “उचित प्रक्रिया” होनी चाहिए जैसा कि मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया में कहा गया था। मनुष्य के पवित्र जीवन को छीनने वाली प्रक्रिया न्यायसंगत (जस्ट), निष्पक्ष (फेयर) और उचित होनी चाहिए। हमारे संवैधानिक सिद्धांत इस प्रकार है
- केवल रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों में ही मृत्युदंड का उपयोग किया जाना चाहिए।
- केवल विशेष आधारों पर ही मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है और इसे असाधारण सजा के रूप में माना जाना चाहिए।
- आरोपी को सुनवाई का अधिकार होगा।
- व्यक्तिगत परिस्थितियों को देख कर ही, सजा को व्यक्तिगत किया जाना चाहिए।
- मृत्युदंड की पुष्टि हाई कोर्ट द्वारा की जाएगी। संविधान के आर्टिकल 136 के तहत और सी.आर.पी.सी की धारा 379 के तहत, सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार है।
- सी.आर.पी.सी. की धारा 433 और 434 के तहत आरोपी, सजा की क्षमा, परिवर्तन आदि के लिए प्रार्थना कर सकता है, और आर्टिकल 72 और 161 के तहत राष्ट्रपति या गवर्नर्स को भी यह शक्ति दी गयी है। आर्टिकल 72 और 161 में न्यायिक शक्ति के अलावा, राष्ट्रपति और गवर्नर के लिए मामले के गुण-दोष में हस्तक्षेप (इंटरफेयर) करने की विवेकाधीन (डिस्क्रेशनरी) शक्ति शामिल है; हालांकि, न्यायिक अधिकारियों के पास इसकी समीक्षा (रिव्यू) करने के लिए एक सीमित अधिकार है और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राष्ट्रपति या गवर्नर के पास सभी प्रासंगिक (रेलिवेंट) दस्तावेज और सामग्री उनके सामने हों।
- हालांकि, गवर्नर की शक्ति का सार (एसेंस) जाति, धर्म, जाति या राजनीतिक संबद्धता पर नहीं, बल्कि कानून के शासन और तर्कसंगत मुद्दों पर होना चाहिए।
- संविधान के आर्टिकल 21 और 22 के अनुसार आरोपी को त्वरित (प्रांप्ट) और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।
- आरोपी, आर्टिकल 21 और 22 के तहत प्रताड़ित (टॉर्चर्ड) होने का हकदार नहीं है।
- संविधान के आर्टिकल 21 और 19 के तहत, आरोपी को हिरासत में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
- आरोपी को विधिवत (ड्यूली) रूप से योग्य और नियुक्त वकीलों द्वारा पेश किए जाने का हक है।
निर्णय विधि (केस लॉज़)
जगमोहन बनाम स्टेट ऑफ़ यू.पी. में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आर्टिकल 14, 19 और 21 मृत्युदंड का उल्लंघन नहीं करते हैं। जज को परिस्थितियों, तथ्यों और मुकदमे के दौरान दर्ज अपराध की प्रकृति के आधार पर मृत्यदंड और आजीवन कारावास के बीच चुनाव करने के लिए कहा गया था, इसलिए मृत्युदंड देने का निर्णय आर्टिकल 21 द्वारा आवश्यक कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किया गया था।
लेकिन, राजेंद्र प्रसाद बनाम स्टेट ऑफ़ यूपी, में जज ने कहा कि जब तक यह नहीं दिखाया जाता कि अपराधी समाज के लिए खतरनाक है, मृत्युदंड देना उचित नहीं होगा। माननीय जज ने निवेदन किया कि मृत्युदंड को समाप्त कर दिया गया है और कहा कि इसे केवल “व्हाइट कालर अपराधों” के लिए ही रखा जाना चाहिए। यह भी माना गया कि मर्डर के अपराध के लिए मृत्य दंड आई.पी.सी.की धारा 302 ने संविधान के बेसिक फीचर का उल्लंघन नहीं किया।
लेकिन, बचन सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब में, कोर्ट ने समझाया कि, कानून द्वारा निर्धारित एक समान, निष्पक्ष और उचित प्रक्रिया के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने स्टेट को अपराधियों को आर्टिकल 21 के तहत उसके जीवन के अधिकार से वंचित करने को मान्यता दी है। इसके अलावा, आई.पी.सी की धारा 302 के तहत दिए गए मर्डर के अपराध के लिए मृत्युदंड द्वारा संविधान के मूल चरित्र का उल्लंघन नहीं किया गया था।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
यह एक विवादित (कॉन्ट्रोवर्शियल) विषय है जो सामाजिक और नैतिक (मोरल) पहलू से जुड़ा है। कोर्ट ने मौत की सजा चुने जाने से पहले समाप्त होने वाले “दूसरे विकल्पों” की सीमा का विस्तार किया और सुप्रीम कोर्ट ने बचन सिंह के मामले में दोषसिद्धि (कन्विक्शन) के पक्ष में फैसला सुनाया और मृत्युदंड को बरकरार रखते हुए कहा की, हम किसी ऐसे जो निर्दोष हो व्यक्ति को मौत की सजा नहीं दे सकते।
एंडनोट्स
- AIR 1980 SC 898
- AIR 1980 SC 898
- 1978 AIR 597, 1978 SCR (2) 621
- 1973 1 SCC 20
- 1979 3 SCC 646
- 1980 2 SCC 684