इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत मर्डर (सेक्शन 300 और 302) का विस्तृत विश्लेषण 

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Indian penal Code
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यह लेख एलायंस यूनिवर्सिटी से Vanya Verma ने लिखा है। यह एक विस्तृत लेख है जो इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत मर्डर और कल्पेबल होमिसाइड के साथ-साथ इसके प्रावधानों, सजा, उदाहरण और केस कानूनों के बारे में बताता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

इंडियन पीनल कोड, 1860 के सेक्शन 299 और सेक्शन 300 मर्डर से संबंधित है। सभी मर्डर, कल्पेबल होमिसाइड हैं, लेकिन सभी कल्पेबल होमिसाइड, मर्डर नहीं हैं। कल्पेबल होमिसाइड एक जीनस है और मर्डर इसकी प्रजाति है, इस प्रकार, मर्डर एक कल्पेबल होमिसाइड है लेकिन सभी कल्पेबल होमिसाइड मर्डर नहीं हैं।

होमिसाइड शब्द लैटिन से लिया गया है, जहां होमो का अर्थ “आदमी” है जबकि साइड का अर्थ “आई कट” है। इस प्रकार, एक आदमी द्वारा एक आदमी की हत्या, कल्पेबल होमिसाइड माना जाता है। कल्पेबल होमिसाइड कानून द्वारा दंडनीय है। हत्या वैध या गैर कानूनी हो सकती है। कल्पेबल होमिसाइड को आगे दो श्रेणियों में बांटा गया है:

  • कल्पेबल होमिसाइड, जो मर्डर की श्रेणी में आता है (अमाउंटिंग टू मर्डर)।
  • कल्पेबल होमिसाइड, जो मर्डर की श्रेणी में नहीं आता है (नॉट अमाउंटिंग टू मर्डर)।

मर्डर (सेक्शन 300)

इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 300 के तहत मर्डर को परिभाषित किया गया है। इस एक्ट के अनुसार, कल्पेबल होमिसाइड को मर्डर माना जाता है यदि:

  • यह कार्य, व्यक्ति की हत्या करने के इरादे से किया गया हो।
  • यह कार्य ऐसी शारीरिक चोट लगाने के आशय से किया गया हो, जिसके बारे में अपराधी को यह ज्ञान हो कि इससे मृत्यु हो जाएगी।
  • व्यक्ति को यह ज्ञान हो कि वह कार्य खतरनाक है और इससे मृत्यु या शारीरिक चोट लग सकती है लेकिन फिर भी वह कार्य करता है, तो यह मर्डर माना जाएगा।

मर्डर के इंग्रेडिएंट्स

  • व्यक्ति की हत्या करना : हत्या करने का इरादा होना चाहिए,
  • एक कार्य करना: ऐसी शारीरिक चोट लगाने का इरादा होना चाहिए जिससे मृत्यु होने की संभावना हो, या
  • कार्य अवश्य किया जाना चाहिए: इस ज्ञान के साथ कि कार्य से दूसरे की मृत्यु होने की संभावना है।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन)

  • A, W को मारने के इरादे से गोली मारता है। परिणामस्वरूप, W की मृत्यु हो जाती है, इसलिए ये माना जाएगा की, A द्वारा मर्डर किया गया है।
  • D जानबूझकर R को तलवार से काट देता है, जो सामान्य स्थिति में किसी की मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त था। परिणामस्वरूप, R की मृत्यु हो जाती है। यहां, D मर्डर का दोषी है, हालांकि उसका इरादा R की मौत का नहीं था।

कल्पेबल होमिसाइड (सेक्शन 299)

कल्पेबल होमिसाइड, इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 299 के तहत परिभाषित किया गया है। कल्पेबल होमिसाइड का अर्थ है- यदि कोई व्यक्ति, किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु करने के इरादे से कोई कार्य करता है या ऐसी शारीरिक चोट पहुंचता है, जिससे मृत्यु होने की संभावना है, या उसे इस बात का ज्ञान है कि उसके द्वारा किए गए कार्य से मृत्यु होने की संभावना है, तो यहा माना जाता है की उस व्यक्ति ने कल्पेबल होमिसाइड का अपराध किया है।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन) 

  • X, Y को उस स्थान पर आग लगाने के लिए प्रेरित करता है, यह जानते हुए कि Z उस ढके हुए स्थान के पीछे बैठा है। यहां, X कल्पेबल होमिसाइड के अपराध के लिए उत्तरदायी होगा, क्योंकि उसे पहले से ज्ञान था कि Z उस स्थान पर मौजूद था और उसके कार्यों से Z की मृत्यु हो जाएगी। यहां, इरादा X को कल्पेबल होमिसाइड के लिए उत्तरदायी बनाता है।
  • Y को लाइलाज बीमारी है और दिन-प्रतिदिन जीने के लिए उसे कुछ दवाओं की आवश्यकता होती है। Z, Y को एक कमरे में बंद कर देता है और उसे दवा लेने से रोकता है। यहाँ, Z कल्पेबल होमिसाइड का दोषी है।

मामले (केसेस)

रेग बनाम गोविंदा, 1876, के मामले में, आरोपी ने अपनी पत्नी को नीचे गिरा दिया, उसकी छाती पर अपना घुटना रखा और उसके चेहरे पर बंद मुट्ठी से दो से तीन हिंसक वार किए थे। इस कृत्य से उसके मस्तिष्क पर रक्त का अपव्यय (एक्सट्रावर्ज़न) हुआ और इस वजह से बाद में उसकी मृत्यु हो गई। यह कार्य मृत्यु करने के इरादे से नहीं किया गया था और शारीरिक चोट मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त नहीं थी। आरोपी कल्पेबल होमिसाइड का भागी था, जो मर्डर की श्रेणी में नहीं आता।

मर्डर और कल्पेबल होमिसाइड के बीच बस इरादे का अंतर है। यदि इरादा मौजूद है तो अपराध को आई.पी.सी. के सेक्शन 300 के तहत माना जाएगा। यदि इरादा अनुपस्थित है, तो अपराध आई.पी.सी. के सेक्शन 300 के तहत माना जाता है।

आई.पी.सी. के सेक्शन 300 के अपवाद जहां कल्पेबल होमिसाइड को मर्डर नहीं माना जाता 

अचानक और गंभीर उत्तेजना (सडन एंड ग्रेव प्रोवोकेशन)

यदि अपराधी अचानक और गंभीर उत्तेजना के कारण अपनी आत्म-संयम (सेल्फ कंट्रोल) की शक्ति को खो देता है, और उसके कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, जिसने दुर्घटना या गलती से किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु के लिए उत्तेजित किया हो या उसकी मृत्यु का कारण बना हो।

यह अपवाद (एक्सेप्शन) कुछ शर्तों के अधीन है, अर्थात्:

  • यदि, यह उत्तेजना किसी को मरने के बहाने या खुद किसी अन्य व्यक्ति को उत्तेजित करके उसकी हत्या करके या उसे कोई शारीरिक चोट पहुँचाकर, बहाने के रूप में न इस्तेमाल की गयी हो।
  • यह कि, उत्तेजना किसी ऐसी चीज से न दी गयी है, जो कानून का पालन करते हुए या किसी लोक सेवक द्वारा उसकी शक्तियों का वैध रूप से प्रयोग करते हुए की गयी हो।
  • यह कि, निजी प्रतिरक्षा (डिफेन्स) के अधिकार का वैध प्रयोग करते समय उत्तेजना न की गयी हो।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन) 

A को C द्वारा गंभीर और अचानक से उत्तेजित जाता है। A इस उत्तेजना के परिणामस्वरूप C पर आग लगाता है। A का इरादा नहीं था या उसे यह जानकारी नहीं थी कि उसके कार्य से C की मृत्यु की संभावना हो सकती है, जो A की दृष्टि से बाहर था। A, C की मृत्यु कर देता है। A मर्डर के लिए उत्तरदायी नहीं है, लेकिन  कल्पेबल होमीसाइड के लिए उत्तरदायी है।

मामले (केसेस)

  • के.एम. नानावती बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, 1961

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने भारत में उत्तेजना से संबंधित कानून की विस्तृत व्याख्या की। न्यायालय द्वारा यह देखा गया की:

  • “अचानक और गंभीर उत्तेजना” का परीक्षण यह है कि यदि किसी तर्कसंगत (रीजनेबल) व्यक्ति , जो आरोपी के समान समाज से संबंधित है, को उस स्थिति में रखा जाये, जिसमें आरोपी को रखा गया था, जिसमें उसने अपना आत्म-नियंत्रण खोया, तो उस स्थिति में वह व्यक्ति क्या करता है।
  • कुछ परिस्थितियों में, शब्दों और इशारों से भी आरोपी अचानक और गंभीर उत्तेजित हो सकता है, जिससे उसका कार्य अपवाद के तहत आ जाता है।
  • पीड़ित के मानसिक संतुलन को ध्यान में रखा जा सकता है, उसके पिछले कार्य को ध्यान में रखते हुए यह पता लगाया जा सकता है कि, क्या उसके बाद के कार्य के द्वारा, अपराधी, अपराध करने के लिए अचानक और गंभीरता से उत्तेजित हुआ।
  • अपराधी द्वारा घातक प्रहार से, स्पष्ट रूप से उसके जुनून के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है, जो अचानक और गंभीर उत्तेजना से उत्पन्न हुआ है। यह समय बीत जाने के कारण, उत्तेजना शांत होने के बाद नहीं होना चाहिए, अन्यथा, यह अपराधी को सबूत बदलने के लिए जगह और गुंजाइश दे देगा।
  • मुथु बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु, 2007

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह माना गया था कि निरंतर उत्पीड़न (हर्रेसमैंट) से व्यक्ति अपनी आत्म-नियंत्रण की शक्ति खो देता है, जो अचानक और गंभीर उत्तेजना के बराबर होता है।

जब व्यक्ति निजी प्रतिरक्षा के अपने अधिकार की तुलना में अधिक कार्य कर देता है (व्हेन द पर्सन एक्सीड्स हिज़ राइट टू प्राइवेट डिफेन्स )

जब कोई व्यक्ति अपने आप को किसी नुकसान से बचाने के लिए कोई कार्य करता है, और वह जानबूझकर अपने निजी प्रतिरक्षा के अधिकार को, उस परिस्थिति की तुलना में ज्यादा कर देता है, तो वह मर्डर के लिए उत्तरदायी है। यदि वह अनजाने में करता है, तो कल्पेबल होमिसाइड का अपराध माना जाता है, जो मर्डर की श्रेणी में नहीं आता।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन) 

X, Y को कोड़े मारने का प्रयास करता है,पर Y को गंभीर चोट पहुंचाने के इरादे से नहीं। Y एक पिस्तौल निकालता है, और X तब तक उसे मारता रहता है। Y के मुताबिक उसके पास खुद को X से बचाने का कोई रास्ता नहीं था, इसलिए Y, X पर गोली चला देता है। X कल्पेबल होमिसाइड के लिए उत्तरदायी है जो मर्डर की श्रेणी नहीं है।

मामला (केस)

नाथन बनाम स्टेट ऑफ मद्रास, 1972

इस मामले में, मकान मालिक जबरदस्ती आरोपी को घर से निकालने की कोशिश करता है और आरोपी निजी प्रतिरक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए मकान मालिक की हत्या कर देता है। आरोपी को मौत का कोई डर नहीं था क्योंकि मृतक के पास कोई घातक हथियार नहीं था जिससे आरोपी को गंभीर चोट या उसकी मौत हो सकती थी। मृतक का आरोपी को मारने का कोई इरादा नहीं था, इस प्रकार, आरोपी ने अपने निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का परिस्थिति की तुलना में ज्यादा इस्तेमाल कर लिया। इसलिए, आरोपी कल्पेबल होमिसाइड का भागी था, जो मर्डर की श्रेणी में नहीं आता।

लोक सेवक के मामले में कल्पेबल होमिसाइड

यह कार्य एक लोक सेवक द्वारा किया जाता है, जो लोक न्याय को बढ़ावा देने के लिए कोई कार्य करता है। यदि लोक सेवक कोई ऐसा कार्य करता है जो उसके कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए आवश्यक है और जो कि गुड फेथ में किया गया हो और वह इसे वैध मानता हो।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन) 

यदि पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने जाता है और वह व्यक्ति भागने का प्रयास करता है और उस घटना के दौरान यदि पुलिस अधिकारी व्यक्ति को गोली मारता है तो पुलिस अधिकारी मर्डर का दोषी नहीं होगा।

मामला (केस)

दाखी सिंह बनाम स्टेट, 1955

इस मामले में, अपीलकर्ता, रेलवे सुरक्षा बल (रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स) के सिपाही थे, जब वह ड्यूटी पर थे, तब उन्होंने अनजाने में एक फायरमैन की हत्या कर दी, जब वह चोर को पकड़ने के लिए गोलियां चला रहे थे। इसलिए उस कांस्टेबल को इस सेक्शन के तहत मर्डर का अपराधी नहीं माना जाएगा।

अचानक लड़ाई (सडन फाइट)

अचानक लड़ाई तब मानी जाती है, जब लड़ाई अप्रत्याशित (अनएक्सपेक्टेड) या पहले से नियोजित (प्री-मेडिटेटेड) नहीं होती। दोनों पक्षों का, किसी को मारने या किसी की मौत का कारण बनने का कोई इरादा नहीं होता और यदि किसी पक्ष ने पहले हमला किया या उकसाने की कोशिश की हो, तो यह इस अपवाद के लिए महत्वपूर्ण नहीं है।

मामला (केस)

राधेश्याम और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश, 2018

इस मामले में, अपीलकर्ता को जब पता चला कि उसका बछड़ा, मृतक के स्थान पर गया है तो उसे काफी गुस्सा आया और वह मृतक को गाली देने लगा, जब उसे रोकने की कोशिश की गई तो अपीलकर्ता ने मृतक पर गोली चला दी। मृतक के पास उस समय कोई हथियार नहीं थे। अपीलकर्ता का मृतक को मारने का इरादा था, इसलिए, उसे मर्डर के लिए उत्तरदायी ठहराया गया।

सहमति (कंसेंट)

यदि कार्य पीड़ित की सहमति से किया गया है। सहमति, बिना शर्त, स्पष्ट और बिना किसी प्रकार की रुकावट के होनी चाहिए।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन) 

  • A ने F (जिसकी आयु 18 वर्ष से कम थी) को, आत्महत्या करने के लिए उकसाया। F अपनी मृत्यु के लिए सहमति देने में असमर्थ था। इसलिए, A मर्डर का दोषी है।
  • X ने अपने सौतेले पिता Y को मार डाला, जो बूढ़े और दुर्बल थे। X ने Y की सहमति से उसे मार डाला। इसलिए, यह कार्य सेक्शन 304 के तहत दंडनीय था।

गुड फेथ के अभ्यास में कल्पेबल होमिसाइड

अगर निजी या सार्वजनिक संपत्ति की प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते समय, किसी की मृत्यु हो जाती है, तो कल्पेबल होमिसाइड, मर्डर की श्रेणी में नहीं आएगा क्योंकि यह माना जाएगा की वो कार्य गुड फेथ में किया गया था। यदि किसी व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य, कानून द्वारा प्रदान किये गए अधिकार से अधिक हो जाता है और वह व्यक्ति किसी को या किसी चीज़ को बचाने के लिए किसी का मर्डर कर देता है, तो यह कार्य मर्डर की श्रेणी में नहीं आता।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन) 

Y चाबुक से (गंभीर चोट न पहुँचाने के इरादे से)  Z पर वार करने का प्रयास करता है। Z एक पिस्तौल निकालता है, लेकिन Y, Z पर हमला करता रहता है। Z गुड फेथ से खुद को चाबुक से बचाने के लिए, Y पर इस तरह से गोली मारता है कि उसकी मौत हो जाती है। Z कल्पेबल होमिसाइड का दोषी है न कि मर्डर का।

यह कार्य आई.पी.सी. के सेक्शन 302 के तहत दंडनीय है यदि यह आई.पी.सी. के सेक्शन 300 के अपवाद के तहत नहीं आता।

जिस व्यक्ति की मृत्यु का इरादा था, उसके अलावा अन्य व्यक्ति की मृत्यु करके, कल्पेबल होमिसाइड के लिए अपराधी (सेक्शन 301)

आई.पी.सी. के सेक्शन 301 के तहत, कल्पेबल होमिसाइड, मर्डर की श्रेणी में आता है, भले ही जिस व्यक्ति की मृत्यु का इरादा नहीं था, वह अपराधी द्वारा किए गए कृत्य के कारण मर जाता है, हालांकि उसने किसी और के मर्डर करने की योजना बनाई थी।

दूसरे शब्दों में, कानून की दृष्टि में उन मामलों में कोई अंतर नहीं है, जहां जिस व्यक्ति को मारने का इरादा हो उसकी मृत्यु होती है या जिसे मारने का इरादा ना हो उसकी मृत्यु हो जाती है।

मामला (केस)

अब्दुल इसे सुलेमान बनाम स्टेट ऑफ गुजरात, 1994

इस मामले में, एक विवाद के दौरान आरोपी व्यक्तियों ने, व्यावसायिक इलाके में भाग रहे शिकायतकर्ता पक्ष पर जमकर फायरिंग की। पहली गोली में वह व्यक्ति घायल हो गया, जबकि दूसरी गोली में एक शिकायतकर्ता के दस वर्षीय पुत्र की मृत्यु हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चे की मौत जानबूझकर की गई थी और इसलिए  आई.पी.सी. के सेक्शन 301 के साथ सेक्शन 300 को लागू किया।

लापरवाही से मृत्यु होना (सेक्शन 304A)

आई.पी.सी के सेक्शन 304A के तहत, यदि कोई व्यक्ति जल्दबाजी या लापरवाही से किसी अन्य की मृत्यु का कारण बनता है, जो कि कल्पेबल होमिसाइड की श्रेणी में नहीं आता है, तो उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

मामले (केसेस)

  • स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम मो. इस्माइल, 1988

इस मामले में, 28 वर्षीय मोटरसाइकिल सवार ने 85 वर्षीय व्यक्ति को पीछे से टक्कर मार दी। हादसे के समय सिर में चोट लगने से वृद्ध की मौके पर ही मृत्यु हो गई, तो यह माना गया कि मृत्यु जल्दबाजी और लापरवाही के कारण हुई।

  • एम.एच. लोकरे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, 1971

इस मामले में, अपीलकर्ता, जो तेज गति से वाहन नहीं चला रहा था, लेकिन सड़क पार करते समय अचानक से वाहन के पहियों के नीचे आके एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी, तो इस सेक्शन के तहत अपीलकर्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि एक आदमी कितना भी सतर्क और धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा हो, और अगर कोई व्यक्ति अचानक सड़क पार करते समय उसके वाहन के सामने आ जाये, तो दुर्घटना को टाला नहीं जा सकता।

दहेज मृत्यु (डाउरी डेथ) (सेक्शन 304B)

आई.पी.सी. के सेक्शन 304B में यह कहा गया है कि अगर शादी के सात साल के भीतर एक महिला की शारीरिक चोट या जलने से मृत्यु हो जाती है, या यह पता चलता है कि शादी से पहले महिला को, उसके पति या उसके पति के किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। तो, महिला की ऐसी मृत्यु को दहेज की मांग के संबंध में, दहेज मृत्यु माना जाएगा।

दहेज मृत्यु की सजा कम से कम सात साल की कैद या अधिकतम उम्र कैद हो सकती है।

मर्डर का प्रयास (एटेम्पट टू मर्डर) (सेक्शन 307)

आई.पी.सी. के सेक्शन 307, मर्डर के प्रयास से संबंधित है। जो कोई भी व्यक्ति इस इरादे या ज्ञान के साथ और ऐसी परिस्थितियों में कोई कार्य करता है, जिससे किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है, तो उसे मर्डर का दोषी माना जाएगा और उसे दस साल तक की अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, और वह जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा, और यदि वह कार्य किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाता है, तो अपराधी आजीवन कारावास, या ऐसी अन्य सजा के लिए उत्तरदायी होगा जैसा कि न्यायालय द्वारा तय किया गया हो।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन)

  • R, S को मारने के इरादे से, उसे गोली मारता है। यदि ऐसी परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है, तो R मर्डर का दोषी होगा।
  • P, Q की मृत्यु करने के इरादे से, जो कि सात वर्ष का बच्चा है, उसे एक निर्जन (डेज़र्टिड) भूमि में छोड़ देता है। हालांकि बच्चे की मृत्यु सुनिश्चित नहीं है, लेकिन P इस सेक्शन के तहत अपराध करता है।

कल्पेबल होमिसाइड करने का प्रयास (सेक्शन 308)

आई.पी.सी. के सेक्शन 308 के तहत, जो कोई भी इस तरह के इरादे या इस तरह के ज्ञान के साथ और ऐसी परिस्थितियों में कोई कार्य करता है, और यदि वह कार्य मृत्यु का कारण बनता है, तो वह व्यक्ति कल्पेबल होमिसाइड का दोषी होगा, जो मर्डर की श्रेणी में नहीं आएगा और उसे कारावास से दंडित किया जा सकता है जो अधिकतम तीन साल तक बढ़ सकता है , या जुर्माना या दोनों के साथ। यदि कार्य से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचती है, तो अपराधी को कारावास से, जो सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

उदाहरण (इलस्ट्रेशन) 

A अचानक और गंभीर उत्तेजना के कारण Z पर आग लगाता है। यदि इस घटना के कारण Z की मृत्यु हो जाती है, तो A कल्पेबल होमिसाइड का दोषी होगा जो मर्डर की श्रेणी में नहीं आएगा।

सज़ा (पनिशमेंट)

मर्डर के लिए सजा (सेक्शन 302)

आई.पी.सी. के सेक्शन 302 के तहत मर्डर की सजा दी गई है। इस सेक्शन के तहत जो कोई भी मर्डर करता है उसे दंडित किया जाता है:

  • मौत
  • आजीवन कारावास
  • जुर्माना

कल्पेबल होमिसाइड के लिए सजा (सेक्शन 304)

अगर यह सेक्शन 300 के तहत दिए गए पांच अपवादों में से किसी एक के तहत व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य आता है, तो कल्पेबल होमिसाइड, मर्डर नहीं है। आई.पी.सी. के सेक्शन 304 में कल्पेबल होमिसाइड के लिए सजा का वर्णन किया गया है, जो कि मर्डर की श्रेणी में नहीं आएगा:

  • आजीवन कारावास,
  • दस साल तक की अवधि के लिए  किसी भी विवरण का कारावास,
  • जुर्माना।

लाइफ-कन्विक्ट द्वारा मर्डर की सजा (सेक्शन 303)

लाइफ-कन्विक्ट वह व्यक्ति है जिसे किसी अपराध का दोषी पाया गया हो और न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी हो। आई.पी.सी. के सेक्शन 303 के तहत, यदि कोई व्यक्ति मर्डर करता है जिसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी हो, तो तब उसे मौत की सजा दी जाएगी। सेक्शन 303 केवल उस व्यक्ति पर लागू होती है जो सेक्शन 302 के साथ सेक्शन 34 के तहत या सेक्शन 302 के साथ सेक्शन 149 के तहत दोषी ठहराया जाता है। सेक्शन 303 उस व्यक्ति के लिए मृत्युदंड आवश्यक बनाती है जो आजीवन कारावास के लिए दोषी है और मर्डर करता है।

न्यायालय ने यह कहा की यदि, कोई व्यक्ति, जो मर्डर के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहा था, छूट (रेमिशन) द्वारा रिहा किया जाता है, तो उसे आजीवन कारावास की सजा के तहत नहीं माना जाता। यदि मर्डर, छूट की अवधि के दौरान किया जाता है, तो आई.पी.सी. के सेक्शन 303 के तहत सजा देते समय इसको नहीं माना जाएगा। इसलिए आरोपी को आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जाएगी।

मिठू बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब, 1983 के मामले में आई.पी.सी. के सेक्शन 303 की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया। सेक्शन 303 को मनमाना (आरबिटरेरी) और असंवैधानिक माना गया क्योंकि न्यायालय ने यह कहा कि अनिवार्य मृत्यु की सजा, लाइफ-कन्विक्ट के लिए, मनमानी और अनुचित है, क्योंकि:

  • इस बात का पहले से ही बहुत तनाव होता है कि एक लाइफ-कन्विक्ट जेल में पहले ही बंद है।
  • आजीवन कारावास के तहत व्यक्ति द्वारा जेल के अंदर या बाहर मर्डर के अपराध के लिए मृत्यु की सजा निर्धारित करने का कोई औचित्य (जस्टिफिकेशन) नहीं  हैं।
  • मृत्यु के रूप में एक अनिवार्य सजा, प्रत्येक व्यक्ति के कार्य और परिस्थितियों को ध्यान में रखने में विफल रहेगी।

गर्भवती महिला का कन्विक्शन

कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 का सेक्शन 416, एक गर्भवती महिला को दी जाने वाली मृत्युदंड की सजा को स्थगित करने से संबंधित है। इस सेक्शन के तहत, यदि गर्भवती महिला को दोषी ठहराया जाता है, तो हाई कोर्ट, सजा के निष्पादन (एक्सिक्यूशन) को स्थगित कर सकता है या सजा को कम करके आजीवन कारावास कर सकता है।

इस सेक्शन के तहत अजन्मे बच्चे के अधिकारों की रक्षा की गयी है। इस सेक्शन का मुख्य उद्देश्य उस बच्चे को मारे जाने से बचाने का है, जिसने कोई गलती नहीं की है। गर्भावस्था को उचित चिकित्सा जांच और रिपोर्ट के साथ साबित किया जाना चाहिए।

नाबालिग की सजा

जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन) एक्ट, 2000 के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति यदि कोई अपराध करते हैं तो उन्हें निष्पादित नहीं किया जा सकता। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। अमेंडेड एक्ट, 16 ​​से 18 वर्ष की आयु के व्यक्ति को एडल्ट के रूप में मुकदमा चलाने की अनुमति देता है यदि वे बलात्कार और मर्डर जैसे किसी भी जघन्य (हिनस) अपराध के लिए उत्तरदायी पाए जाते हैं। .

को-अक्यूज़ड को सजा

इंडियन एविडेंस एक्ट का सेक्शन 30, को-अक्यूज़ड के कॉन्फेशन के बारे में बताता है। यदि 2 व्यक्ति एक ही अपराध करते हैं तो, आरोपी व्यक्तियों को समान कारावास की सजा दी जाती है। को-अक्यूज़ड द्वारा किया गया कॉन्फेशन एक उचित साक्ष्य मूल्य रखता है। यह समता (पैरिटी) सिद्धांत द्वारा सुनिश्चित किया जाता है कि सजा, उन अपराधियों या व्यक्तियों के लिए समान होनी चाहिए जो एक ही अपराध के लिए दोषी हैं। सजा देते समय इस सिद्धांत द्वारा निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित की जाती है।

ऐतिहासिक निर्णय (लैंडमार्क जजमेंट्स)

जग मोहन सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश, 1972

इस मामले में, एक मर्डर हुआ था, जो 1973 में कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर के अमेंडमेंट के बाद सामने आया, जहां मर्डर के अपराध के लिए मृत्यु की सजा को अनिवार्य सजा न बनाकर अब न्यायालय के विवेक के अधीन कर दिया। मृत्युदंड की संवैधानिकता के संबंध में तर्क इस आधार पर दिए गए, कि न्यायालयों को इस से संबंधित अधिक विवेकाधीन शक्तियां दी गयी हैं, क्योंकि मर्डर की सजा देने के लिए कोई निर्धारित दिशानिर्देश या स्टैंडर्ड नहीं हैं। यह माना गया कि इसने आर्टिकल 14, आर्टिकल 19 और आर्टिकल 21 का उल्लंघन किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि जीवन का अधिकार, आर्टिकल 19 का हिस्सा नहीं था और मृत्यु की सजा को अनुचित या सार्वजनिक नीति के विपरीत नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह सजा कानून के लागू होने से पहले भी थी और यह माना जाएगा की लेजिस्लेचर को इसके अस्तित्व का पता होना चाहिए, और क्योंकि इसे कभी हटाया नहीं गया, इसलिए यह माना जा सकता है कि लेजिस्लेचर ने इसे उचित माना है।

न्यायिक विवेक से जुड़े मामलों में आर्टिकल 14 को शायद ही लागू किया जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक मामला तथ्यों और परिस्थितियों के हिसाब से ही विशिष्ट (पेक्यूलिअर) होता है। मृत्यु की सजा देने के लिए न्यायालयों को दिए गए विवेक को अनियंत्रित नहीं कहा जा सकता। कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, विस्तृत प्रक्रिया बताता है कि कब मृत्यु की सजा दी जाती है और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन असंवैधानिक नहीं माना जा सकता।

आर्टिकल 19

इस मामले में, मर्डर की सजा के विकल्प में मृत्यु की सजा की अनुमति देने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में रिट पेटिशन दायर की गई थी।

जगमोहन मामले से बचन मामले के बीच, महत्वपूर्ण बदलाव यह था कि मेनका गांधी के मामले में दी गई व्याख्या से आर्टिकल 19 और आर्टिकल 21 के दायरे का विस्तार किया गया था।

इस समय तक भारत, इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स का एक सदस्य बन चुका था। न्यायालय ने यह कहा की यह कोवेनेंट भी, मृत्यु की सजा को रद्द नहीं करती।

यदि आर्टिकल 19 के तहत उल्लिखित स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जाता है, तो आर्टिकल 19 लागू किया जा सकता है। चूंकि जीवन का अधिकार आर्टिकल 19 के अंतर्गत नहीं आता है, इसलिए इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 302 की संवैधानिकता को निर्धारित करने के लिए इसे लागू नहीं किया जा सकता, जो मर्डर के लिए वैकल्पिक सजा के रूप में मौत की सजा प्रदान करता है, केवल इस आधार पर कि मृत्युदंड आर्टिकल 19 के तहत स्वतंत्रता को अधिक प्रभावित नहीं करता, इसलिए मृत्युदंड को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता है।

न्यायालय ने कहा की, कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर में दी गई सजा से पहले सुनवाई एक अनिवार्य आवश्यकता है। अपराधों के साथ-साथ अपराधी की परिस्थितियों पर विचार करना आवश्यक बना दिया गया था।

त्रिवेणीबेन बनाम स्टेट ऑफ़ गुजरात राज्य और अन्य, 1989

इस मामले में, अपीलकर्ता को मृत्यु की सजा सुनाई गई थी। वह आपराधिक साजिश करने का मुख्य आरोपी था और एक कस्टम्स ऑफिसर का प्रतिरूपण करके कई लोगों का मर्डर किया था, इंटेररोगेटिंग ऑफिसर की आड़ में अपहरण करके उन्हें लूटा और फिर उनका मर्डर किया। आठ साल तक आरोपी को कारावास में रखा गया। मुख्य अपील यह थी कि आर्टिकल 21 का उल्लंघन किया गया है क्योंकि निष्पादन में देरी हुई थी।

न्यायालय द्वारा यह कहा गया की, सजा को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत लागू किया जाना चाहिए। यदि निष्पादन में लंबे समय तक देरी होती है, तो इसका एक अमानवीय प्रभाव होता है, जो किसी व्यक्ति को उसके जीवन और स्वतंत्रता से अन्यायपूर्ण (अनजस्टली) तरीके से वंचित करके आर्टिकल 21 का उल्लंघन करता है।

यदि दो साल से अधिक की देरी होती है, तो यह एक कैदी को मृत्यु की सजा को रद्द करने का अधिकार देता है।

शेर सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब, 1983

इस मामले में, यह माना गया कि, निष्पादन में देरी, भारत के संविधान के आर्टिकल 21 को लागू करने का आधार हो सकती है। कोई बाध्यकारी नियम नहीं है कि निष्पादन में देरी से कैदी को मौत की सजा रद्द करने का अधिकार है।

राजेंद्र प्रसाद बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश, 1979

इस मामले में, मृत्यु की सजा देने से पहले विचार की जाने वाली विशेष स्थितियों के बारे में चर्चा की गई। न्यायालय ने यह माना कि मृत्यु की सजा देने से पहले न केवल अपराध की प्रकृति बल्कि अपराधियों के विभिन्न कारकों पर भी विचार करना चाहिए।

राजू जगदीश पासवान बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र, 2019

इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने, अपीलकर्ता को, जिसने नौ साल की बच्ची का रेप किया था, को मृत्यु की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने भी यही सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर सजा कम कर दी गई, क्योंकि मौत की सजा केवल रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों में ही दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजीवन कारावास एक नियम है जबकि मृत्यु की सजा एक अपवाद है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निम्नलिखित कारणों से मृत्यु की सजा नहीं दी गयी:

  • मर्डर की कोई पूर्व योजना नहीं थी।
  • जिस व्यक्ति ने यह कृत्य किया वह समाज के लिए निरंतर खतरा नहीं था।
  • राज्य द्वारा यह साबित करने के लिए सबूतों की कमी थी कि व्यक्ति का पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) और सुधार नहीं किया जा सकता।
  • अपराध को अंजाम देने के दौरान अपीलकर्ता की उम्र महज 22 साल थी।
  • मूल सिद्धांत यह है कि मानव जीवन मूल्यवान है और मृत्यु की सजा तभी दी जानी चाहिए जब यह अनिवार्य हो और किसी अन्य सजा का कोई विकल्प न हो और यहां तक ​​कि उन मामलों में भी जहां अपराध की सीमा जघन्य हो।

सबसे प्रसिद्ध मर्डर के मामले जिनके बारे में आपको जानना आवश्यक है

आरुषि तलवार मामला

इस मामले में, 18 वर्षीय आरुषि का 16 मई 2008 को हेमराज बंजादे नामक व्यक्ति (जो उस समय 45 वर्ष के थे), के साथ मर्डर कर दिया गया था। आरोपियों की सूची में आरुषि के माता-पिता सहित कई संदिग्ध थे। इस मामले को बहुत मीडिया कवरेज मिली और इस मामले ने जनहित को भी जगाया।

आरुषि के माता-पिता, लंबे समय तक हिरासत में रहे। फिर भी, यह स्पष्ट नहीं हुआ कि, आरुषि का मर्डर उसी के माता-पिता ने किया या अन्य दो नौकर जो उसके घर में काम करते थे उन्होंने किया। हालांकि आरुषि के माता-पिता को बरी कर दिया गया, फिर भी कोई नहीं जानता कि आरुषि और हेमराज को किसने मारा।

जेसिका लाल हत्याकांड 

यह मामला, वर्ष 1999 में ‘नो वन किल्ड जेसिका’ शीर्षक के साथ उजागर हुआ। चश्मदीद गवाहों को भूलने की बीमारी थी और शायद ही कोई था जो यह बताने के लिए आगे आता कि एक महत्वाकांक्षी मॉडल का, गोली मारकर मर्डर कैसे हुआ। बाद में लोगों को पता चला कि, जेसिका द्वारा शराब परोसने से मना करने पर, व्यापारी मनु शर्मा ने ही उसको गोली मारकर, उसका मर्डर कर दिया।

प्रद्युम्न ठाकुर हत्याकांड

इस मामले में, गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल के वॉशरूम में दूसरी कक्षा के छात्र प्रद्युम ठाकुर को मृत पाया गया। जिस बच्चे ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था, उसे बस कंडक्टर द्वारा यौन उत्पीड़न की वजह से मार दिया गया था, जिसे बाद में गिरफ्तार भी कर लिया गया था, लेकिन बाद में यह पता चला कि मर्डर 11वीं के छात्र द्वारा किया गया था, जिसे कोर्ट ने एडल्ट समझकर ही, उस पर मुकदमा चलाया।

शीना बोरा हत्याकांड 

इस मामले में, शीना बोरा की मां इंद्राणी मुखर्जी असली अपराधी थीं, जिन्होंने अपनी ही बेटी शीना बोरा, के मर्डर की योजना बनाई थी। इंद्राणी मुखर्जी ने दावा किया था कि शीना उसकी बहन थी और उसने कभी भी दो बच्चे होने की बात स्वीकार नहीं की। इंद्राणी मुखर्जी और उनके पति पीटर मुखर्जी के वित्तीय (फिनेंशिअल) लेनदेन की वजह से यह मामला सुर्खियों में आया था।

प्रमोद महाजन हत्याकांड

इस मामले में, प्रमोद महाजन, भारतीय जनता पार्टी में एक राजनेता थे। उनका, घर के अंदर दिनदहाड़े, मर्डर कर दिया गया। अप्रैल 2006 में, प्रवीण ने अपने भाई को गोली मारकर, उसका मर्डर कर दिया। अपने भाई का मर्डर करने के बाद, प्रवीण, प्रमोद को गोली मारने का अपराध कबूल करने के लिए नजदीकी पुलिस स्टेशन चला गया। प्रवीण को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और बाद में ब्रेन हैमरेज के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

अमर सिंह चमकीला हत्याकांड

इस मामले में, अमर सिंह एक लोकप्रिय पंजाबी गायक, संगीतकार और गीतकार थे। अमर सिंह अपनी पत्नी और बैंड के दो सदस्यों के साथ 8 मार्च 1988 को अज्ञात युवकों के गैंग द्वारा मारे गए थे। इतने लोगों के सामने और दिनदहाड़े मारे जाने पर भी किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया।

सुनंदा पुष्कर हत्याकांड 

इस मामले में, एक पूर्व भारतीय राजनयिक और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर जो एक प्रसिद्ध व्यवसायी थीं, उनका दिल्ली के लीला पैलेस होटल के कमरे में मर्डर कर दिया गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि जब शशि थरूर ने सुनंदा पुष्कर को देखा तो उन्हें लगा कि वह सो रही हैं और जब वह नहीं उठीं तो शशि थरूर ने पुलिस को सूचना दी।

यह बताया गया कि, जब उन्होंने एक पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार पर, ट्विटर पर उनके पति का पीछा करने का आरोप लगाया, तो उसके एक दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, यह निष्कर्ष निकाला गया कि आत्महत्या की थी। लेकिन ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों की रिपोर्ट में कहा गया है कि मौत ड्रग ओवरडोज से हुई थी और उसके शरीर पर चोट के निशान भी थे.

नीरज ग्रोवर हत्याकांड

यह मामला इतना घातक था और इस वजह से यह खूब सुर्खियों में रहा। इस मामले में, नीरज के शरीर को पहले टुकड़ों में काटा गया और फिर बाद में कूड़ेदान में भरकर जंगल में आग लगा दी गई।

नीरज की दोस्त मारिया सुसैराज ने थाने में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई और बाद में पता चला कि वह  खुद इस मर्डर में शामिल थी। यह पता चला कि मारिया के प्रेमी ने गुस्से में आकर नीरज का मर्डर कर दिया था क्योंकि मारिया का नीरज के साथ प्रेम संबंध था।

शरथ हत्याकांड 

इस मामले में, शरथ एक इनकम-टैक्स ऑफिसर का 19 साल का बेटा था,  जिसका बैंगलोर में मर्डर  कर दिया गया था। शरथ का शव, शहर के बाहरी इलाके में रामोहल्ली झील के पास मिला, और उसके हाथ बंधे हुए थे। यह पता चला कि अपहरणकर्ताओं ने शरथ का मर्डर गला दबाकर किया और बाद में उसी दिन उन्होंने उसका शव फेंक दिया था।

पुलिस को पता चला कि अपहरणकर्ता शरथ के दोस्त थे और उसका करीबी दोस्त विशाल ही था जिसने कर्ज चुकाने के लिए इस मर्डर और अपहरण की योजना बनाई थी।

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

न्यायालय केवल रेयरेस्ट परिस्थितियों में ही मृत्यु की सजा का आदेश देता है, जहां न्यायालय के विचार में आरोपी समाज के लिए एक खतरा हो, न्यायालय जीवन के मूल्य को समझता है, इसलिए उसके पास सजा को कम करने के सभी अधिकार और शक्तियाँ हैं।

संदर्भ (रेफरेन्सेस)

 

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