भारत में एडल्टरी का अपराध

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Indian Penal Code
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यह लेख Utkarshini Jamuar ने लिखा है। इस लेख में भारत में एडल्टरी के अपराध के बारे में चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary और Harshita Ranjan द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

एडल्टरी एक फ्रेंच शब्द से लिया गया है, जो लैटिन क्रिया, “एडल्टरियम” से विकसित हुआ है, जिसका अर्थ भ्रष्ट (करप्ट) है। एडल्टरी को सहमति से एक्स्ट्रामैरिटल सेक्शुअल संबंध के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे सामाजिक, धार्मिक और नैतिक (मॉरल) और पहले कानूनी आधार पर भी आपत्तिजनक (ऑब्जेक्शनेबल) माना जाता है।

जबकि एडल्टरी को अपराध से मुक्त कर दिया गया है, यह अभी भी एक अपराधिक कार्य के रूप में मौजूद है क्योंकि यह सामाजिक नॉर्म्स का उल्लंघन करता है, जिसके बारे में माना जाता है कि एक व्यक्ति को उनका पालन करना चाहिए। 

पिछले 158 वर्षों से, इसे एक अपराध के रूप में माना जाता था, लेकिन जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, एडल्टरी को अपराध से मुक्त कर दिया गया और अपराध होने की वजह यह केवल एक सिविल रोंग बनकर रह गया है। एडल्टरी को अपराध से मुक्त करने के लिए दो प्रमुख तर्क (कंटेंशन) थे। वो थे:-

  • धारा 497 ने पतियों को अपनी पत्नियों के एडल्टरर पर मुकदमा चलाने का अधिकार प्रदान किया जबकि पत्नियों को अपने पति की एडल्टरेस के खिलाफ शिकायत करने से वंचित रखा था।
  • यह धारा पति के एडल्टरस कार्यों की बात से अनभिज्ञ (इग्नोरेंट) थी।

धर्म के अनुसार एडल्टरी

भारत एक ऐसा देश है जो अनेकता में एकता के लिए जाना जाता है। हमारा देश एक सेक्युलर देश है जहां सभी धर्मों की भावनाओं का समान रूप से सम्मान किया जाता है। प्रत्येक धर्म अपने स्वयं के विचारों और उद्देश्यों का पालन करता है। हालांकि, एडल्टरी के मामले में कमोबेश (मोर और लेस) हर धर्म अधिक क्रिटिकल है। एडल्टरी पर अलग धर्मों के अलग विचार हैं लेकिन मूल दृष्टिकोण एक ही है। हर धर्म में, एडल्टरी को अपराध माना जाता है। हालांकि, सजा के रूप धर्मों में भिन्न हो सकते हैं। इसे एक अपराधी कार्य के रूप में माना जाता है क्योंकि यह हर धर्म की धार्मिक भावना का उल्लंघन करता है। 

प्राचीन काल से ही इसे न केवल धार्मिक या कानूनी बल्कि स्पिरिचुअल आधार पर भी पाप (सिन) माना जाता है।

  • एडल्टरी के संबंध में पारंपरिक हिंदू विचार यह है कि यह समाज में अव्यवस्था (डिसऑर्डर) पैदा करता है और पारिवारिक मान कम होता है। हिंदू धर्म में, विवाह एक संस्कार है, जिसे सात जन्मों के लिए माना जाता है, जहां दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति वफादार माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे अपने जीवनसाथी के अलावा किसी ओर के साथ सेक्शुअल संबंध नहीं बनाएंगे।
  • इस्लाम के अनुसार, एडल्टरी, बलात्कार और फॉर्निकेशन जो गैरकानूनी हैं, उन्हें ज़िना माना जाता है। कुरान के अनुसार, भगवान द्वारा तय की गई सजा के लिए जिना को अपराध माना गया है। हाथ काटने और सूली पर चढ़ाने से लेकर सार्वजनिक रूप से कोड़े, पत्थर मारने से लेकर मौत तक की सजा दी जाती है। विशेष रूप से, कुरान के अनुसार एडल्टरी के लिए, एक एडल्टरस व्यक्ति को पत्थर मारकर मार देना चाहिए।
  • बाइबिल के अनुसार, एडल्टरी एक पाप के रूप में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मृत्यु के योग्य है। एडल्टरी को अनेथिकल और इम्मोरल और समाज के लिए बुराई माना जाता है।
  • बौद्ध धर्म के अनुसार, विवाह के बाहर सेक्शुअल इंटरकोर्स एक ऐसा पाप है जो कष्टों को बढ़ाता है। बौद्ध धर्म में, एडल्टरी पाँच फंडामेंटल उपदेशों (प्रीसेप्ट) में से तीसरा है जिससे व्यक्ति को बचना चाहिए।
  • जुडैस्म धर्म, जो प्राचीन धर्मों में से एक है, के अनुसार एडल्टरी और एडल्टरेस दोनों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान (प्रोविजन) है।  

कानून के अनुसार एडल्टरी

भारत में, इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) 1860 की धारा 497 में एडल्टरी को इस प्रकार परिभाषित किया गया है:

“जो कोई भी ऐसे किसी अन्य पुरुष की पत्नी के साथ बिना उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत (कॉन्निवेंस) के सेक्शुअल इंटरकोर्स रखता है और जिसे वह जानता या विश्वास करता है, ऐसा सेक्शुअल इंटरकोर्स बलात्कार के अपराध की कोटि में नहीं आता, वह एडल्टरी के अपराध का दोषी होगा और उसे दोनों में से किसी भी प्रकार के कारावास जिसकी अवधि 5 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है, या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा। ऐसे मामले में, पत्नी एक अबेटर के रूप में दंडनीय नहीं होगी”।

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अजय मणिकारो खानविलकर, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​की 5 जजों की संवैधानिक बेंच द्वारा सर्वसम्मति से धारा 497 को खारिज कर दिया था। यह भी कहा गया कि यदि कोई पीड़ित पति या पत्नी सबूतों के आधार पर आत्महत्या करता है तो उसे इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने (अबेटमेंट) वाला माना जा सकता है। हालांकि, धारा 497 को अपराध मुक्त बना दिया, लेकिन चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए.एम. खानविलकर की घोषणा के अनुसार इसे मौजूदा मामले में तलाक के लिए वैध आधार (ग्राउंड) के रुप में माना जाता है।

मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता (पिटीशनर) इटली के एक होटल व्यवसायी, श्री जोसेफ शाइन थे, हालांकि वह व्यक्तिगत रूप से कानून से अप्रभावित (अनअफेक्टेड) थे। समाज के कल्याण और समाज में न्याय लाने के उद्देश्य से जनहित याचिका (पिटिशन) (पीआईएल) मामलों में लोकस स्टैंडी (कार्रवाई लाने या कोर्ट में पेश होने का अधिकार या क्षमता) के मद्देनजर उनकी याचिका स्वीकार कर ली गई थी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कानून महिलाओं को सेक्शुअल ऑटोनोमी के मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) से वंचित (डिप्राइव) करता है। दूसरी ओर, सरकार ने तर्क दिया कि यह विवाह की पवित्रता को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक तत्व (एलीमेंट) है, हालांकि धारा 497 को महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के रूप में भी मान्यता (रिकॉग्नाइज्ड) दी और एडल्टरी के अपराध को जेंडर-न्यूट्रल बनाने का प्रस्ताव (प्रपोज्ड) दिया था।

मामले में यह माना गया कि अपराधीकरण ने महिलाओं के निम्नलिखित अधिकारों को प्रतिबंधित (रिस्ट्रिक्टेड) कर दिया है:-

  • संविधान के आर्टिकल 21 (जीवन का अधिकार) के तहत प्रदान की गई सेक्शुअल ऑटोनोमी का अधिकार।
  • संविधान के आर्टिकल 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत सेक्शुअल अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) का अधिकार।
  • संविधान के आर्टिकल 14 के तहत प्रदान किए गए समानता का अधिकार। 
  • संविधान के आर्टिकल 15 के तहत भेदभाव के खिलाफ अधिकार।
  • किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत मामलों में राज्य का हस्तक्षेप (इंटरफेरेंस)। हालांकि, यह पुरुषों और महिलाओं दोनों पर लागू होता है।

भारत के चीफ़ जस्टिस माननीय जस्टिस दीपक मिश्रा और ए.एम. खानविलकर ने माना कि आईपीसी की धारा 497 जेंडर स्टीरियोटाइप के आधार पर मतभेद पैदा करती है जो महिलाओं के प्रति आक्रोश पैदा करती है। उन्होंने यह भी कहा कि पति की सहमति पर जोर देना महिलाओं की अधीनता (सबोर्डिनेशन) के बराबर है। साथ ही, यह संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन करता है। उनके अनुसार एडल्टरी कोई अपराध नहीं है लेकिन उन्होंने कहा कि एडल्टरी को तलाक के लिए आधार के रूप में माना जाना बेहतर है। इस प्रकार, उन्होंने आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक (अनकांस्टीट्यूशनल) घोषित किया और एडल्टरी के अपराध के संबंध में सीआरपीसी की धारा 198 को भी असंवैधानिक घोषित किया।

जस्टिस नरीमन के अनुसार, सीआरपीसी 1973 की धारा 198 के साथ आईपीसी की धारा 497 भारत के संविधान के आर्टिकल 14, 15(1) और 21 का उल्लंघन है।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि धारा 497 में सहमति से सेक्शुअल इंटरकोर्स को अपराध घोषित करने के सिद्धांत (प्रिंसीपल) का अभाव है और यह स्पष्ट रूप से आर्बिट्रेरी है। उन्होंने यह भी कहा कि धारा 497 विवाह और समाज में महिलाओं की सबॉर्डिनेट स्थिति का निर्माण करती है और इस प्रकार संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करती है। उन्होंने यह भी कहा कि धारा 497 महिलाओं की भूमिका के बारे में जेंडर स्टीरियोटाइप है और इस प्रकार, संविधान के आर्टिकल 15 का उल्लंघन करती है। उन्होंने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 497 संविधान के आर्टिकल 21 का भी उल्लंघन करती है क्योंकि यह गरिमा (डिग्निटी), स्वतंत्रता, गोपनीयता (प्राइवेसी) और सेक्शुअल ऑटोनोमी प्रदान नहीं करती है।

जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​ने धारा 497 को संविधान के आर्टिकल 14,15 और 21 का उल्लंघन बताया। उनके अनुसार,

“एक लेजिस्लेशन जो रिश्तों में इस तरह के स्टीरियोटाइप को कायम रखता है, और भेदभाव को संस्थागत (इंस्टीट्यूशनालाइज) करना, संविधान के भाग III द्वारा गारंटी किए गए मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। इसलिए, 1860 में बनाए गए आईपीसी की धारा 497 को क़ानून की किताब पर बने रहने का कोई औचित्य (जस्टिफिकेशन) नहीं है।”

इस प्रकार, माननीय सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से इंडियन पीनल कोड की धारा 497 को संविधान के स्वर्ण त्रिभुज (गोल्डन ट्राएंगल) अर्थात संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 21 का उल्लंघन बताते हुए खारिज कर दिया। 

यह धारा भी जेंडर-बायस्ड थी क्योंकि इसने महिलाओं को दंडित होने से रोका और केवल पुरुषों को ही एडल्टरस संबंधों के लिए दंडित किया जाता था। इसके अलावा, धारा ने महिलाओं को पीड़ित के रूप में माना, भले ही पुरुष और महिला दोनों कार्य के समान पार्टी थे।

धारा 497 के गैर-अपराधीकरण के कारण, महिलाओं को अब अपने पति की संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता है। गैर-अपराधीकरण से पहले, यदि किसी विवाहित महिला के पति की सहमति प्राप्त की गई, तो उस कार्य को एडल्टरस नहीं कहा जाता था। इस प्रकार, धारा 497 ने समाज में महिलाओं की स्थिति पर आपत्ति जताई और संविधान के प्रावधानों का भी उल्लंघन किया।

गैर-अपराधीकरण का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (सीआरपीसी) की धारा 198(2) को हटाना था जिसमें कहा गया था कि:

“उपधारा (1) के उद्देश्यो के लिए, महिला के पति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को उक्त कोड की धारा 497 या धारा 498 के तहत दंडनीय अपराध से पीड़ित नहीं समझा जाएगा: बशर्ते कि जब ऐसा अपराध किया गया, तब पति की अनुपस्थिति में महिला की देखभाल कर रहा कोई व्यक्ति, कोर्ट की अनुमति से, उसकी तरफ से शिकायत कर सकता है।” 

गैर-अपराधीकरण से पहले, महिलाओं को पति के खिलाफ किसी अन्य महिला के साथ एडल्टरस कार्य में शामिल होने पर मामला दर्ज करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। 

माननीय कोर्ट ने निर्णय में पहुंचने से पहले प्रेसिडेंट्स पर भी गौर किया, जैसे सौमित्री विष्णु बनाम यूओआई 1985, यूसुफ अब्दुल अजीज बनाम स्टेट ऑफ बॉम्बे 1954 और वी. रेवती बनाम यूओआई 1988। हालांकि, इन मामलों को मौजूदा माननीय जजों द्वारा एडल्टरी को एक आपराधिक अपराध बनाते हुए खारिज कर दिया गया था, लेकिन निश्चित रूप से इन मामलों ने जोसेफ शाइन बनाम यूओआई मामले में गैर-अपराधीकरण का मार्ग पक्का (पेव्ड) किया।

यूसुफ अब्दुल अजीज बनाम स्टेट ऑफ बॉम्बे,1954 के मामले में, याचिकाकर्ता ने सवाल किया कि क्या आईपीसी की धारा 497 संविधान के आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन करती है। यह माना गया कि आईपीसी की धारा 497 संविधान के किसी भी आर्टिकल का उल्लंघन नहीं करती है। लेकिन याचिकाकर्ता ने कुछ बिंदु रखे जो जोसेफ शाइन के मामले में लिए गए थे क्योंकि एडल्टरी का अपराध केवल पुरुष द्वारा ही किया जा सकता है, लेकिन इसके विपरीत किसी भी प्रावधान के अभाव में महिला को एबेटर के रूप में दंडित किया जाएगा, लेकिन आईपीसी की धारा 497 की आखिरी वाक्य इसे प्रतिबंधित करती है,

“ऐसे मामले में पत्नी अबेटर के रूप में दंडनीय नहीं होगी”।

जज ने संविधान के आर्टिकल 15(3) के महत्व को बताते हुए मामले को खारिज कर दिया।

श्रीमती सौमित्री विष्णु बनाम यूओआई, 1985, के मामले में, कई बिंदुओं की आलोचना (क्रिटिसाइज्ड) की गई, जैसे, धारा 497 पति को एडल्टरर पर मुकदमा चलाने का अधिकार देती है लेकिन पत्नी को उस महिला पर मुकदमा चलाने का कोई अधिकार नहीं देती जिसके साथ उसके पति ने एडल्टरी कि है। एक पुरुष चाहे विवाहित हो या अविवाहित, यदि किसी विवाहित महिला के साथ सेक्शुअल संबंध रखता है, तो उसे एडल्टरी कहा जाता है लेकिन आईपीसी की यह धारा 497 उन मामलों पर ध्यान नहीं देती जहां पति ने अविवाहित महिला के साथ सेक्शुअल संबंध बनाए हों, इस प्रकार अविवाहित महिलाओं के साथ एक्स्ट्रा-मैरिटल संबंध रखने के लिए कानून के तहत मुफ्त लाइसेंस देने का मार्ग पक्का हुआ। इस प्रकार महिलाओं को चैटल या पुरुषों की संपत्ति की तरह मानते हैं। 

एडल्टरी तलाक का ग्राउंड

सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि एडल्टरी तलाक का आधार और नागरिक दंड हो सकता है, लेकिन आपराधिक अपराध नहीं हो सकता है।

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13(1) के अनुसार, किसी ऐसे व्यक्ति के साथ मर्जी से सेक्शुअल इंटरकोर्स, जो उसका जीवनसाथी नहीं है, तलाक का आधार है। हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 10 में एडल्टरी को ज्यूडिशियल सेपरेशन के आधार के रूप में परिभाषित किया गया है।

इंडियन डाइवोर्स एक्ट की धारा 22 में एडल्टरी के आधार पर ज्यूडिशियल सेपरेशन का प्रावधान किया गया है।

स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति विवाह के बाहर मर्जी से सेक्शुअल इंटरकोर्स करता है, तो तलाक के लिए एक वैध आधार है।

निष्कर्ष और सुझाव (कंक्लूज़न एंड सजेशंस)

एडल्टरी का अपराधीकरण एक प्रगतिशील (प्रोग्रेसिव) समाज की दिशा में एक रचनात्मक (कंस्ट्रक्टिव) कदम है जो महिलाओं की गरिमा से वंचित कानून को खत्म कर देता है। यह एक विचलित (डेवियंट) व्यवहार है क्योंकि यह अनेथिकल और इम्मोरल है क्योंकि यह विवाह की संस्था की पवित्रता का उल्लंघन करता है जिसे समाज की एक पवित्र संस्था माना जाता है।

हालांकि, यह अभी आधे रास्ते में है। भेदभाव को मिटाने और जेंडर समानता सुनिश्चित करने के लिए हमारे देश को अभी भी एक लंबा सफर तय करना है। मेरा मानना ​​है कि समाज को भी पितृसत्तात्मक (पैट्रिआर्कल) मानसिकता से ऊपर उठना चाहिए।

विवाह की पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए मेरे अनुसार धार्मिक, कानूनी या स्पिरिचुअल, हर पहलू में एक आवश्यकता है, सभी को विवाह की संस्था और परिवार व्यवस्था के प्रति अधिक सावधान और संवेदनशील रहना चाहिए क्योंकि यह समाज की फंडामेंटल इकाई (यूनिट) है।

एंडनोट्स

  • AIR 1985 SC 1618
  • AIR 1951 Bom 470
  • AIR1988 SC 835
  • AIR 1951 Bom 470
  • AIR 1985 SC 1618

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