आईपीसी 1860 के तहत संपत्ति के खिलाफ अपराध (धारा 378-462) पर चर्चा

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8161
Indian Penal Code
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यह लेख एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा के छात्र Sidra Khan ने लिखा है। यह लेख संपत्ति से संबंधित अपराधों से संबंधित प्रावधानों (प्रोविजंस) पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

जैसा कि हम जानते हैं कि एक संपत्ति को दो भागों में विभाजित (डिवाइड) किया जा सकता है;  चल  (मूवेबल) संपत्ति और अचल (इम्मूवेबल) संपत्ति है। संपत्ति से संबंधित कोई भी अपराध चाहे चल या अचल हो, इंडियन पीनल कोड, 1860 के प्रावधानों के तहत दंडनीय होते है। संपत्ति से संबंधित अपराधों के लिए प्रावधान इस कोड की धारा 378 से धारा 460 के तहत दिए गए हैं।

चोरी

इसे इंडियन पीनल कोड की धारा 378 के तहत परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उस व्यक्ति के कब्जे (पजेशन) से किसी भी चल संपत्ति को बेईमान इरादे से लेता है, तो उसे संपत्ति की चोरी करना कहा जाता है।

चोरी के पांच मुख्य इंग्रेडिएंट्स

1. संपत्ति लेने का बेईमान इरादा (डिसऑनेस्ट इंटेंशन टू टेक प्रॉपर्टी)

यह चोरी का मुख्य इंग्रीडिएंट है। कोई भी संपत्ति जो ली जाती है वह तब तक चोरी नहीं मानी जाएगी जब तक कि इरादा बेईमान न हो और जो व्यक्ति संपत्ति ले रहा है उसका इरादा एक व्यक्ति को गलत लाभ और दूसरे व्यक्ति को गलत नुकसान पहुंचाना है।

उदाहरण: A के पास एक हार है, और B उसे A के घर में पाता है। हार A के कब्जे में है और अगर B इसे बेईमानी से लेता है तो B चोरी करता है।

2. संपत्ति चल होनी चाहिए

चोरी करने के लिए संपत्ति चल होनी चाहिए। वह संपत्ति जो इधर-उधर ले जाने में सक्षम हो, चल संपत्ति कहलाती है। कोई भी संपत्ति या वस्तु जो स्थायी (पर्मानेंट) रूप से पृथ्वी से जुड़ी हुई है, एक अचल संपत्ति कहलाती है और चोरी का विषय नहीं होती है। लेकिन यह चोरी का विषय बन सकती है जब इसे जमीन से अलग कर दिया जाएगा और किसी ऐसे व्यक्ति जिसके कब्जे में यह है, की सहमति के बिना स्थानांतरित (मूव) करने में सक्षम होगा ।

उदहारण: एक खड़ा पेड़ जो जमीन से जुड़ा होता है उसे अचल संपत्ति कहा जाता है। लेकिन जब इसे काट दिया जाता है तो यह चल संपत्ति बन जाता है।

केस लॉ: प्यारेलाल भार्गव बनाम राजस्थान स्टेट

इस केस में चीफ इंजीनियर कार्यालय से एक कार्यालय की फाइल को अस्थायी (टेंपरेरी) रूप से हटाकर एक दिन के लिए निजी (प्राईवेट) पार्टी को दे दिया था, यह चोरी की श्रेणी में आता है। माननीय कोर्ट ने माना कि चोरी करने के लिए नुकसान का स्थायी होना आवश्यक है। यहां तक ​​कि संपत्ति का कब्जा अस्थायी हो, संपत्ति को बहाल (रिस्टोर) करने के इरादे से लेने वाले व्यक्ति को भी चोरी करना कहा जाता है।

3. संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे से बाहर किया जाना चाहिए

चोरी की गई कोई भी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे में होनी चाहिए। जब तक संपत्ति को हटा नहीं दिया जाता है तब तक कोई अपराध नहीं किया गया है।

उदाहरण: Y को X के घर में सोफे पर एक मोबाइल फोन मिलता है जो X का है। मोबाइल फोन X के कब्जे में था यदि Y इसे बेईमानी से हटा देता है, तो Y चोरी करता है। यहां X के कब्जे में मोबाइल फोन था।

केस लॉ: राकेश बनाम एनसीटी दिल्ली स्टेट

इस केस में, माननीय कोर्ट ने माना कि अपराधी का केवल व्यक्ति की सहमति के बिना उस व्यक्ति के कब्जे से संपत्ति को बेईमानी से लेने का इरादा कोई अपराध नहीं है। जब तक संपत्ति को हटा नहीं दिया जाता है, तब तक कोई अपराध नहीं किया जाता है। किसी व्यक्ति के कब्जे से संपत्ति का हटाना आवश्यक है, जैसा कि आईपीसी की धारा 378 में वर्णित है।

4. संपत्ति व्यक्ति की सहमति के बिना ली जानी चाहिए

यदि किसी व्यक्ति की संपत्ति उसकी पूर्व (प्रायर) सहमति के बिना ली जाती है (व्यक्त (एक्सप्रेस) या निहित (इंप्लाइड)) तो वह चोरी करने के बराबर होता है। अपराध तब होगा जब अपराधी बेईमानी से और उस व्यक्ति की सहमति के बिना संपत्ति लेता है।

उदाहरण: S, R का मित्र होने के कारण, R के घर में प्रवेश करता है और R की सहमति के बिना, R की मेज पर रखी अंगूठी लेकर भाग जाता है। S ने चोरी की है। क्योंकि यहां R की सहमति मौजूद नहीं है।

केस लॉ: के.एन. मेहरा बनाम राजस्थान स्टेट

इस केस में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बेईमान इरादे को साबित करने के लिए संपत्ति से स्थायी रूप से वंचित (डिप्राइव) करने या गलत लाभ प्राप्त करने के इरादे का सबूत आवश्यक नहीं है। चोरी करने के लिए उस व्यक्ति की सहमति का अभाव (एब्सेंस), जिसकी संपत्ति ली जा रही है और उस संपत्ति को लेने के समय बेईमान इरादे की उपस्थिति आवश्यक है।

5. संपत्ति को लेने के लिए स्थानांतरित किया जाना चाहिए

बेईमानी से किसी संपत्ति को स्थानांतरित करना चोरी करने का प्रारंभिक चरण (इनिशियल स्टेज) है। इसलिए, अपराध करने के लिए संपत्ति को स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

उदाहरण: A, B के घर जाता है, और देखता है कि एक हीरे का हार मेज पर पड़ा है। A उस हार को B के स्थान पर छुपा देता है और सोचता है कि वह अगली बार जब आएगा तो वह इसे ले जाएगा। यहां, A कोई चोरी नहीं करता है क्योंकि संपत्ति को स्थानांतरित नहीं किया गया है।

चोरी की सजा आईपीसी की धारा 380 में दी गई है

इस धारा में जो कोई भी चोरी करता है उसे 3 साल की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

एक्सटोर्शन

इंडियन पीनल कोड की धारा 383 के तहत एक्सटोर्शन को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी जानबूझकर किसी व्यक्ति को उसे, या किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाने से डराता है, और बेईमानी से उसे कोई संपत्ति या कोई मूल्यवान चीज या मुहरबंद (सील्ड) और हस्ताक्षरित कुछ भी देने के लिए डराता है तो उसे एक्सटोर्शन करना कहा जाता है।

एक्सटोर्शन के मुख्य इंग्रेडिएंट्स

  • जानबूझकर किसी व्यक्ति को चोट लगाने से डराना;
  • बेईमानी से उस व्यक्ति को प्रेरित (इंड्यूस) करना जिससे वह डर में अपनी संपत्ति, मूल्यवान सुरक्षा (वेल्युएबल सिक्योरिटी) किसी अन्य व्यक्ति को दे दे।

केस लॉ: धनंजय बनाम बिहार स्टेट

इस केस में, कोर्ट ने कहा कि एक्सटोर्शन का गठन (कंस्टीट्यूट) करने के लिए, इन इंग्रेडिएंट्स को पूरा करना होगा:

  1. आरोपी को किसी व्यक्ति या अन्य व्यक्ति को चोट लगाने के डर से डराना चाहिए;
  2. जानबूझकर व्यक्ति को आरोपी द्वारा डराया गया था;
  3. देने के लिए आरोपी की ओर से प्रेरित किया गया था;
  4. प्रेरित बेईमानी से किया जाना चाहिए।
  • जानबूझकर किसी व्यक्ति को चोट लगाने के डर से डराना

बात सिर्फ इतनी है कि एक व्यक्ति को डर में डाल देना चाहिए और एक को गलत लाभ और दूसरे व्यक्ति को गलत नुकसान होना चाहिए,और चोट का डर प्रकृति में वास्तविक होना चाहिए। डर की वजह से उसके द्वारा किया गया कार्य उसकी इच्छा से है।

उदाहरण: Y, Z के विरुद्ध समाचार पत्र में एक मानहानिकारक (डिफामेट्री) लेख प्रकाशित (पब्लिश) करने के लिए Z को धमकी देता है। Y, Z को पैसे देने के लिए प्रेरित करता है।  Y एक्सटोर्शन करता है।

  • किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति या क़ीमती सामान देने के लिए बेईमानी से प्रेरित करना

अपराध का गठन करने के लिए व्यक्ति को अपनी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा देने के लिए उसे डराकर बेईमानी से प्रेरित करना चाहिए। ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा भय में संपत्ति की डिलीवरी इसका एसेंस है। चल और अचल संपत्ति दोनों ही एक्सटोर्शन के दायरे में आती हैं।

उदाहरण: Y, Z को प्रेरित करता है और उसे वचन पत्र पर हस्ताक्षर करने और Y को देने की धमकी देता है। अन्यथा, Y, Z के बेटे को मार देगा। Z डर में हस्ताक्षर कर देता है और पत्र दे देता है।  इधर, Y एक्सटोर्शन करता है।

केस लॉ: गुरशरण सिंह बनाम पंजाब स्टेट

इस केस में, कोर्ट ने माना कि एक्सटोर्शन करने का सबसे महत्वपूर्ण इंग्रेडिएंट यह है कि आरोपी, व्यक्ति को प्रेरित करता है और संपत्ति या किसी भी मूल्यवान सुरक्षा को डिलीवर करने के लिए डराता है और मांग की गई राशि कुछ दिनों के बाद भुगतान (पेड) की जाती है, तब भी इसे एक्सटोर्शन कहा जाता है।

एक्सटोर्शन करने पर आईपीसी की धारा 384 के तहत सजा का प्रावधान है

इस धारा में जो कोई भी एक्सटोर्शन करता है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

एक्सटोर्शन के अधिक एग्रावेटेड रुप

धारा 386 से 389 एक्सटोर्शन के अग्रावेटेड रूपों से संबंधित है।

  1. आईपीसी की धारा 386 कोई भी व्यक्ति से जो मौत या किसी अन्य व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाने के डर से एक्टोर्शन करता है, तो उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  2. आईपीसी की धारा 387 में कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को मौत या गंभीर चोट के डर से उसे एक्सटोर्ट का प्रयास करता है, तो मौत और गंभीर चोट का डर एक्सटोर्ट के लिए पर्याप्त है। यह आवश्यक नहीं है कि एक्सटोर्शन वास्तव में किया जाए।  इसके तहत सजा दोनों में से किसी भी तरह की कैद है जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  3. आईपीसी की धारा 388 में कोई भी व्यक्ति जो किसी व्यक्ति पर आरोप लगाने की धमकी देकर एक्सटोर्शन करता है, उसे मौत की सजा दी जाएगी, या आजीवन कारावास या कारावास जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या किसी अन्य व्यक्ति को एक्सटोर्शन के लिए प्रेरित करने का प्रयास करता है, तो किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है।
  4. आईपीसी की धारा 389 में कोई भी व्यक्ति से जो किसी व्यक्ति को अपराध के आरोप के डर में डालकर एक्सटोर्शन का प्रयास करता है। एक्सटोर्शन वास्तव में नही किया जाता है। इस धारा के तहत सजा मृत्यु, या आजीवन कारावास या कारावास जो 10 साल तक हो सकती है और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

रॉबरी

आईपीसी की धारा 390 में कहा गया है कि सभी रॉबरी में या तो चोरी होती है या फिर एक्सटोर्शन होता है। ब्लैक लॉ डिक्शनरी के अनुसार रॉबरी किसी व्यक्ति से उसकी निजी संपत्ति लेने या उसकी इच्छा के खिलाफ तत्काल बल और भय का उपयोग करके, वस्तु के मालिक को स्थायी रूप से वंचित करने के इरादे से पूरा करने का एक गंभीर कार्य है।

हमें दोनों ही मामलों में रॉबरी को समझने की जरूरत है:

  1. चोरी;
  2. एक्सटोर्शन

चोरी कब रॉबरी होती है?

रॉबरी तब होती है जब चोरी या संपत्ति को स्थानांतरित करते समय अपराधी इनमें से कोई भी कार्य करता है:

  1. जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति को मौत, चोट या गलत तरीके से रोकने का कारण बनता है या करने का प्रयास करता है;
  2. जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति को तत्काल मृत्यु, चोट या गलत तरीके से रोकने का भय पैदा करता है या करने का प्रयास करता है।

चोरी करने या चोरी से प्राप्त संपत्ति को ले जाने के लिए आरोपी द्वारा कार्य किया जाना चाहिए।

उदाहरण : A को B के घर में गहने मिलते हैं। A, B को पकड़ लेता है और B की सहमति के बिना कपटपूर्वक (फ्रॉडुलेंटली) उन गहनों को ले लेता है। यहां A चोरी करता है और रॉबरी करने के लिए, A गलत तरीके से B को रोकता है। यहां A रॉबरी करता है।

एक्सटोर्शन कब रॉबरी होता है?

जब आरोपी इनमें से कोई भी कार्य करता है तो एक्सटोर्शन रॉबरी बन जाता है:

  1. जो कोई एक्सटोर्शन करता है और किसी व्यक्ति को तत्काल मृत्यु, चोट या गलत रोक के भय में डालता है;
  2. आरोपी व्यक्ति को प्रेरित करता है और उसे संपत्ति देने के लिए डराता है;
  3. एक्सटोर्शन के समय आरोपी व्यक्ति को भय में डालता है।

उदाहरण: B हाईवे पर C से मिलता है, और B की ओर एक पिस्तौल दिखाता है, और B के पर्स की मांग करता है। B अपना पर्स दे देता है। इधर, C ने तत्काल मौत के डर से B को डालने के अलावा एक्सटोर्शन भी किया है, तो C ने रॉबरी भी की है।

डकैती के लिए आईपीसी की धारा 392 के तहत सजा का प्रावधान है

धारा 392 के अनुसार; जो कोई भी डकैती करता है, उसके लिए सजा कठोर कारावास है जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और इसमें जुर्माना भी शामिल है।

यदि अपराधी सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच हाईवेज पर रॉबरी करता है तो यह सजा 14 साल तक की होती है।

डकैती का प्रयास करने पर 7 साल का कठोर कारावास और जुर्माना भी है।

डकैती

आईपीसी की धारा 391 में कहा गया है कि जब 5 या अधिक व्यक्ति मिलकर रॉबरी करते हैं या रॉबरी करने का प्रयास करते हैं, तो इसे डकैती कहा जाता है। अपराधियों की संख्या को छोड़कर रॉबरी और डकैती में कोई अंतर नहीं है। 5 या 5 से अधिक लोगों का समूह रॉबरी करने का प्रयास करता है या रॉबरी करने या उसके प्रयास करने में सहायता करता है, तो इसे डकैती करना कहा जाता है।

केस लॉ: अमरीश देवनारायण बनाम गुजरात स्टेट

इस केस में, माननीय कोर्ट ने कहा कि डकैती साबित करने के लिए, कुछ तथ्यों (फैक्ट्स) को स्थापित (एस्टेब्लिश) करना चाहिए:

  1. एक अपराध के किए जाने में एक आरोपी के रूप में व्यक्तियो की भागीदारी 5 या उससे अधिक होनी चाहिए;
  2. अपराध करने का प्रयास या अपराध करना संयुक्त (कोजोइंट) होना चाहिए।

ये आवश्यक तथ्य हैं जिन्हें डकैती साबित करने के लिए कोर्ट में साबित करने की जरूरत है।

डकैती की सजा आईपीसी की धारा 395 के तहत है

इस धारा के अनुसार डकैती करने वाले को आजीवन कारावास या कठोर कारावास जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा।

संपत्ति का क्रिमिनल मिसेप्रोप्रिएशन

क्रिमिनल मिसेप्रोप्रिएशन का अर्थ

मिसेप्रोप्रिएशन शब्द का अर्थ बेईमानी से एप्रोप्रिएशन और किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति का अपने उपयोग के लिए उपयोग करना है।

संपत्ति का बेईमानी से मिसेप्रोप्रिएशन आईपीसी की धारा 403 के तहत है

इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो किसी भी चल संपत्ति का बेईमानी से मिसेप्रोप्रिएट करता है या किसी चल संपत्ति को अपने उपयोग के लिए परिवर्तित (कन्वर्ट) करता है, उसे 2 साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया जाएगा।

अपराध करने के लिए आवश्यक इंग्रेडिएंट्स

  1. संपत्ति का बेईमानी से मिसेप्रोप्रिएशन किया जाना चाहिए;
  2. ऐसी संपत्ति चल होनी चाहिए;
  3. ऐसी संपत्ति शिकायतकर्ता (कंप्लेनेंट) की होनी चाहिए।

उदाहरण: Y, X की संपत्ति को, X के कब्जे में से, गुड फेथ में लेता है। यह मानते हुए कि संपत्ति उसी की है। Y चोरी का दोषी नहीं है। लेकिन जैसे ही Y को पता चलता है कि संपत्ति उसकी नहीं है और बेईमानी से संपत्ति को अपने उपयोग के लिए एप्रोप्रिएट करता है। Y संपत्ति का बेईमानी से मिसेप्रोप्रिएशन के अपराध का दोषी है।

केस लॉ: रामास्वामी नादर बनाम महाराष्ट्र स्टेट

इस केस में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 403 में प्रयुक्त शब्द ‘अपने स्वयं के उपयोग में परिवर्तित’ का तात्पर्य है कि आरोपी ने संपत्ति का उपयोग उस संपत्ति के मालिक के अधिकारों के अपमान में किया है।

सामान का फाइंडर

कोई भी व्यक्ति जो सामान को फाइंड करता है और सामान के कब्जे के समय इरादा बेईमानी नहीं था, केवल विचार में परिवर्तन उस कब्जे को अवैध नहीं बनाता है। सामान का फाइंडर उन सामानों पर कब्जा कर सकता है यदि उसने सामान के असली मालिक को फाइंड करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए हैं। अगर उसे असली मालिक नहीं मिलता है तो वह इसे अपने लिए इस्तेमाल कर सकता है।

मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके पास मौजूद संपत्ति का आईपीसी की धारा 404 के तहत बेईमानी से मिसाप्रोप्रिएशन करना

किसी भी व्यक्ति ने किसी भी मृत व्यक्ति की संपत्ति का बेईमानी से मिसाप्रोप्रिएट किया है या इसे अपने उपयोग के लिए परिवर्तित कर लिया है, यह जानते हुए कि संपत्ति उसके द्वारा उपयोग की गई मृत्यु के समय मृतक व्यक्ति के कब्जे में थी, और उस व्यक्ति के किसी भी कानूनी उत्तराधिकारी जो कानूनी रूप से उस संपत्ति का कब्जा पाने का हकदार है, के कब्जे में भी नहीं थी। उस व्यक्ति को वर्णित (डिस्क्राइब) कारावास से दंडित किया जाएगा जो 3 साल तक का हो सकता है, और साथ ही जुर्माना के लिए उत्तरदायी होगा और यदि अपराधी ऐसे व्यक्ति की बीमारी के समय नौकर या क्लर्क था, तो वह 7 साल के कारावास के लिए उत्तरदायी होगा।

अपराध करने के लिए आवश्यक इंग्रेडिएंट्स

  1. संपत्ति चल होनी चाहिए;
  2. मृतक की मृत्यु के समय संपत्ति उसके कब्जे में होनी चाहिए;
  3. आरोपी द्वारा संपत्ति का मिसाप्रोप्रिएशन किया जाना चाहिए;
  4. आरोपी द्वारा बेईमानी की जानी चाहिए।

केस लॉ: उड़ीसा स्टेट बनाम बिष्णु चरण मुदुलि

इस केस में, सुप्रीम कोर्ट ने नाविक से बलपूर्वक सामान निकालने के लिए एक हेड कांस्टेबल को उत्तरदायी ठहराया, जिसने इसे एक डूबे हुए व्यक्ति के शव से बरामद किए थे तथा हेड कांस्टेबल को मृत व्यक्ति के सामान को बेईमानी से अपने कब्जे में रखने के लिए धारा 404 के तहत उत्तरदायी ठहराया गया था।

क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट

आईपीसी की धारा 405 के तहत क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट

इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसके पास संपत्ति है, वह अन्य लोगों को संपत्ति या उस पर प्रभुत्व (डोमिनियन)  प्रदान करता है और आरोपी ने बेईमानी से मिसेप्रोप्रियट किया या इसे अपने उपयोग के लिए परिवर्तित कर लिया या वह धोखाधड़ी से उस संपत्ति का उपयोग या निपटान किसी भी कानून के उल्लंघन में करता है जिसमें ट्रस्ट को निर्वहन (डिस्चार्ज) करने के लिए निर्धारित तरीका दिया गया है, या कोई कानूनी कॉन्ट्रैक्ट जो या तो व्यक्त या निहित हो सकता है, जो ट्रस्ट के निर्वहन के लिए बनाया गया है, तो उसे क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट कहा जाता है।

उदाहरण: Y एक मृत व्यक्ति की वसीयत (विल) का एग्जिक्यूटर है। एक वसीयत को एग्जिक्यूट करते समय, Y बेईमानी से कानून की अवज्ञा (डिसोबे) करता है, जो उसे समान रूप से हिस्से को विभाजित करने का निर्देश देता है, और Y धोखाधड़ी से संपत्ति का कुछ हिस्सा लेता है। यहाँ, Y क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट करता है।

अपराध करने के लिए आवश्यक इंग्रेडिएंट्स

  1. एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को संपत्ति का सौंपना (एंट्रस्टमेंट);
  2. आरोपी संपत्ति को मिसाप्रोप्रियट करता है या अपने स्वयं के उपयोग के लिए परिवर्तित करता है;
  3. ट्रस्ट के निर्वहन के लिए निर्देश या कानून द्वारा निर्धारित किसी भी कानून का उल्लंघन;
  4. संपत्ति को बेईमानी से परिवर्तित या मिसाप्रोप्रियट किया जाना।

केस लॉ: शिव सागर तिवारी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सार्वजनिक संपत्ति के संबंध में एक मंत्री ट्रस्टी का पद धारण करता है, लोगों की संपत्ति के साथ न्यायपूर्ण और निष्पक्ष (फेयर) तरीके से व्यवहार करना उसका कर्तव्य है और यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो वह क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट के लिए उत्तरदायी होगा।

आईपीसी की धारा 406 के तहत क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट के लिए दंड

इस धारा में कोई भी व्यक्ति जो क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट करता है उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के लिए उत्तरदायी होगा।

चोरी हुई संपत्ति प्राप्त करना

आईपीसी की धारा 410 चोरी हुई संपत्ति प्राप्त करना परिभाषित करती है

इस धारा में कहा गया है कि जिस व्यक्ति के पास ऐसी कोई संपत्ति है जिसका कब्जा चोरी, एक्सटोर्शन या रॉबरी के माध्यम से स्थानांतरित (ट्रांसफर) किया गया है और उस संपत्ति का क्रिमिनल मिसेप्रोप्रिएट किया गया है या जिसके संबंध में क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट किया गया है, उसे चोरी की संपत्ति माना जाएगा। भारत के भीतर या भारत के बाहर संपत्ति को स्थानांतरित किया गया है, या संपत्ति का मिसेप्रोप्रिएशन किया गया है, या ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट किया जा सकता है।

जिस किसी भी व्यक्ति के पास उस संपत्ति का वैध कब्जा है, तो वह चोरी की संपत्ति नहीं मानी जाएगी।

अपराध करने के लिए आवश्यक इंग्रीडिएंट

  1. संपत्ति चोरी की संपत्ति होनी चाहिए;
  2. यह आवश्यक नहीं है कि भारत के भीतर या उसके बाहर मिसाप्रोप्रिएशन या ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट किया गया हो;
  3. ऐसी संपत्ति कानूनी रूप से इसके हकदार कानूनी व्यक्ति के कब्जे में आती है, तो चोरी की संपत्ति नहीं मानी जाती है।

आईपीसी की धारा 411 चोरी हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करने को परिभाषित करती है

इस धारा में कोई भी व्यक्ति चोरी की गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करता है या रखता है, यह जानते हुए कि यह एक चोरी की संपत्ति है या यह विश्वास करने का कारण है कि यह चोरी की गई संपत्ति है, उसे 3 साल तक की कैद या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।

अपराध करने के लिए आवश्यक इंग्रेडिएंट्स

  1. आरोपी के पास चोरी की संपत्ति का कब्जा है;
  2. किसी अन्य व्यक्ति के पास किसी संपत्ति का कब्जा आरोपी के कब्जे में होने से पहले है;
  3. संपत्ति चोरी हो गई है और आरोपी को इसकी जानकारी है।

केस लॉ: नागप्पा धोंडीबा बनाम स्टेट

इस केस में आरोपी द्वारा दी गई सूचना के आधार पर महिला की हत्या के 30 दिन के भीतर मृतक महिला के चोरी हुए गहने बरामद किए गए, जो उसने जीवित समय में पहने थे। कोर्ट ने माना कि व्यक्ति को धारा 411 के तहत उत्तरदायी बनाया जाएगा, न कि धारा 302 के तहत या धारा 394 के तहत क्योंकि मामले का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं था और आरोपी को उन आधारों पर उत्तरदायी नही बनाया गया था।

धोखाधड़ी (चीटिंग)

अर्थ

हॉकिन्स के अनुसार, सामान्य ईमानदारी के सादे नियम के विपरीत (कंट्रारी), किसी आर्टफुल डिवाइस के माध्यम से किसी व्यक्ति के अधिकार को धोखा देने या धोखा देने का प्रयास करना एक छलपूर्ण (डिसिटफुल) प्रथा है।

आईपीसी की धारा 415 धोखाधड़ी को परिभाषित करती है

इस धारा में जो कोई किसी व्यक्ति को धोखा देकर, धोखे से या बेईमानी से इस तरह के व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति को कोई संपत्ति देने के लिए प्रेरित करता है या सहमति देता है कि व्यक्ति किसी भी संपत्ति को बनाए रखेगा, या जानबूझकर ऐसे धोखेबाज व्यक्ति को कुछ भी करने के लिए प्रेरित करेगा या कुछ भी करने के लिए छोड़ देगा और वो कार्य या चूक उस व्यक्ति को शरीर, मन, प्रतिष्ठा (रेप्यूटेशन) या संपत्ति के नुकसान का कारण बनता है या नुकसान पहुंचाता है, तो इसे धोखाधडी कहा जाता है।

इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जिसने संपत्ति को बनाए रखने के इरादे से वादा करते समय धोखाधड़ी या बेईमानी का इरादा किया है, वह धोखाधड़ी का दोषी है।

अपराध करने के लिए आवश्यक इंग्रेडिएंट्स

1. धोखा (डिसेप्शन)

इसका अर्थ है किसी भी व्यक्ति को जो सत्य नहीं है उस पर विश्वास कराकर उसे धोखा देना या उसे शब्दों या आचरण (कंडक्ट) के माध्यम से गुमराह करना।

2. बेईमान इरादा

कोई भी व्यक्ति जो धोखा देता है, उसे बेईमानी से, गलत तरीके से नुकसान करना चाहिए और गलत तरीके से हासिल करना चाहिए या अनजाने में संपत्ति को नुकसान पहुंचाना या धोखाधड़ी का इरादा रखना चाहिए या व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति को कोई संपत्ति देने के लिए प्रेरित करना चाहिए या कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए जो इस तरह से धोखा देने वाले व्यक्ति ने किया हो।

3. नुकसान का कारण बनना

ऐसे धोखेबाज व्यक्ति के मन, शरीर, संपत्ति या प्रतिष्ठा को नुकसान होना चाहिए न कि किसी अन्य व्यक्ति को।

उदाहरण: Z, Y को हीरे को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है, जो Z जानता है कि वे असली हीरे नहीं हैं, जानबूझकर Y को धोखा देता हैं, और बेईमानी से Y को प्रेरित करता हैं। यहाँ, Z धोखाधड़ी करता है।

आईपीसी की धारा 416 पर्सोनेशन द्वारा धोखाधड़ी को परिभाषित करती है

इस धारा में इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि जहां कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के होने का नाटक करता है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को सब्स्टीट्यूट करके और उस अन्य व्यक्ति होने का ढोंग करके या उस अन्य व्यक्ति का रिप्रजेंटेशन करके धोखा देता है, तो इसे पर्सोनेशन द्वारा धोखाधड़ी कहा जाता है।

आईपीसी की धारा 417 धोखाधड़ी के लिए सजा से संबंधित है

इस धारा के तहत कोई भी व्यक्ति जो धोखाधड़ी का दोषी है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

आईपीसी की धारा 419 पर्सोनेशन द्वारा धोखाधड़ी के लिए सजा से संबंधित है

इस धारा में कोई भी व्यक्ति जो पर्सोनेशन द्वारा धोखाधड़ी के लिए दोषी है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा जो 3 साल तक का हो सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडनीय है।

आईपीसी की धारा 420 धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करती है

इस धारा में यह एक ऐसा अपराध है जो किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को धोखा देकर और उसे अपनी संपत्ति अपराधी को सौंपने के लिए या उसे बदलने के लिए, या मूल्यवान सुरक्षा के संपूर्ण या किसी भाग को नष्ट करने के लिए, और कुछ भी जो हस्ताक्षरित या मुहरबंद है, और एक मूल्यवान संपत्ति में परिवर्तित करने को नष्ट करने के लिए किया जाता है, तो उस व्यक्ति को किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा जो 7 साल तक का हो सकता है और जुर्माना भी हो सकता है।

केस लॉ: सुशील कुमार दत्ता बनाम वेस्ट बंगाल स्टेट

इस केस में, आरोपी खुद को एक आईएएस परीक्षा में अनुसूचित जाति (शेड्यूल कास्ट) के उम्मीदवार के रूप में पेश करता है और परीक्षा में चयनित (सिलेक्ट) हो जाता है और उसकी नियुक्ति (अपॉइंटमेंट) झूठे रिप्रजेंटेशन के कारण होती है। कोर्ट ने कहा कि धारा 420 के तहत कनविक्शन न्यायोचित (जस्टीफाइड) है और आरोपी को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

मिस्चीफ

आईपीसी की धारा 425 मिस्चीफ को परिभाषित करती है

इस धारा के अनुसार एक व्यक्ति मिस्चीफ करता है यदि वह यह जानकर संपत्ति का विनाश (डिस्ट्रिक्ट) करता है कि वह जनता या किसी व्यक्ति को गलत तरीके से नुकसान पहुंचा सकता है, भले ही उस नुकसान का करने का इरादा न हो।

अपराध करने के लिए आवश्यक इंग्रीडिएंट

  1. जनता को गलत तरीके से नुकसान पहुंचाने का इरादा या ज्ञान होना चाहिए;
  2. किसी भी संपत्ति को नष्ट करना चाहिए;
  3. जो विनाश कर रहा है उसके मूल्य में कमी (गलत हानि) होनी चाहिए।

उदाहरण: C अपनी इच्छा से D का हार समुद्र में फेंक देता है। D को गलत तरीके से नुकसान पहुंचाने के इरादे से ऐसा करता है। यहां, C मिस्चीफ करता है।

केस लॉ: इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन बनाम एनईपीसी इंडिया लिमिटेड और अन्य

इस केस में, कोर्ट ने माना कि धारा 425 के उद्देश्य के लिए संपत्ति का स्वामित्व (ओनरशिप) या कब्जा आवश्यक नहीं है। यहां ऐसे भी केस है जहां संपत्ति भी आरोपी की है, और उसे आवश्यक इंग्रेडिएंट बनाया गया है। मिस्चीफ किया जाता है। इस केस में, रिस्पॉन्डेंट विमान से इंजनों को हटा देता है, जिससे विमान का मूल्य कम हो जाता है, और यह उन्हें बुरी तरह प्रभावित करता है। इससे अपीलेंट को नुकसान होता है जिसके पास पूरा विमान था। जांच करने के बाद पता चला कि मिस्चीफ के सभी इंग्रीडिएंट संतुष्ट थे। जो आरोप लगाए गए थे वे सही थे और मिस्चीफ के अपराध का गठन किया गया था।

धारा 426 के तहत मिस्चीफ के लिए सजा

इस धारा के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो मिस्चीफ करता है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे 3 महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

मिस्चीफ के एग्रावेटेड रूप

आईपीसी की धारा 427 से धारा 440 अधिक एग्रावेटेड अपराधों से संबंधित है, उन्हें 7 प्रकारों में क्लासिफाई किया गया है:

  1. धारा 427 50 रुपये और उससे अधिक मूल्य की संपत्ति के नुकसान से संबंधित है;
  2. धारा 428 से 429 जानवरों के संबंध में किसी भी व्यक्ति द्वारा किए गए मिस्चीफ से संबंधित है;
  3. धारा 430 से धारा 434 सप्लाई और सार्वजनिक कार्यों के संबंध में किसी भी व्यक्ति द्वारा किए गए मिस्चीफ से संबंधित है;
  4. धारा 435 से धारा 436 आग द्वारा किए गए मिस्चीफ से संबंधित है;
  5. धारा 437 से धारा 438 डॉक किए गए जहाजों के संबंध में किए गए मिस्चीफ से संबंधित है;
  6. धारा 439 किसी भी जहाज को चोरी करने के संबंध में किए गए मिस्चीफ से संबंधित है;
  7. धारा 440 मिस्चीफ के साथ मौत, चोट या गलत रोक, या ऐसी मौत के डर, चोट या गलत तरीके से रोकने की तैयारी से संबंधित है।

क्रिमिनल ट्रेसपास

अर्थ

कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की निजी संपत्ति में अवैध रूप से प्रवेश करता है, या उसकी पूर्व अनुमति के बिना या तो निहित या व्यक्त प्रवेश करता है, उसे क्रिमिनल ट्रेसपास कहा जाता है।

भारत में, यह एक सिविल रॉन्ग है और नुकसान के लिए मुआवजा (कंपनसेशन) दिया जाता है। लेकिन आईपीसी में क्रिमिनल ट्रेसपास को एक अपराध माना जाता है और धारा 441 के तहत दंडनीय है।

आईपीसी की धारा 441 क्रिमिनल ट्रेसपास से संबंधित है

यह किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की निजी संपत्ति में किसी अपराध को करने या उस व्यक्ति को डराने-धमकाने या उस व्यक्ति को नाराज़ या अपमानित करने के इरादे से की गई गैरकानूनी प्रविष्टि (एंट्री) को संदर्भित (रेफर) करता है। व्यक्ति द्वारा ली गई एक प्रविष्टि कानूनी थी लेकिन वह उस व्यक्ति का अपमान करने या परेशान करने या डराने के इरादे से गैरकानूनी रूप से वहां रहता है तो कहा जाता है कि उसने क्रिमिनल ट्रेसपास किया है।

क्रिमिनल ट्रेसपास करने के लिए आवश्यक इंग्रीडिएंट

  1. किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति पर अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) प्रवेश होना चाहिए;
  2. एक प्रविष्टि जो की गई थी उसे अधिकृत (ऑथराइज्ड) किया जाना चाहिए लेकिन परिसर में अवैध रूप से रहना चाहिए;
  3. गैरकानूनी प्रवास एक इरादे से होना चाहिए

केस लॉ: पंजाब नेशनल बैंक लिमिटेड बनाम ऑल इंडिया पंजाब नेशनल बैंक एम्प्लॉयज

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्ञान और इरादे में अंतर होता है। ऐसे में इस बैंक के कर्मचारी पेन डाउन हड़ताल पर चले गए। यहां मेनेजमेंट का तर्क था कि यदि कर्मचारी अपना काम करना चाहते हैं, तो उन्हें परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। अन्यथा, उन्हें ट्रेस्पासर माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि वर्कर्स का एकमात्र इरादा अपनी मांगों को पूरा करना था। हालांकि हड़ताल करने वालो को पता था कि इस तरह की कार्रवाई से अधिकारी नाराज हो सकते हैं, लेकिन बैंक की सीनियर अथॉरिटीज को नाराज करने का कोई इरादा नहीं था। कोर्ट ने माना कि हड़ताल करने वालो ने क्रिमिनल ट्रेसपास नहीं किया था।

आईपीसी की धारा 442 हाउस ट्रेसपास से संबंधित है

इस धारा में कोई भी व्यक्ति जो किसी भवन या वेसल या तंबू में प्रवेश करते या रहते हुए क्रिमिनल ट्रेसपास करता है, और वह स्थान जो मानव निवास के रूप में उपयोग किया जाता है या पूजा स्थल के रूप में एक इमारत या संपत्ति की हिरासत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उसे ऐसा करने के लिए हाउस ट्रेसपास कहा जाता है।

हाउस ट्रेसपास करने के लिए आवश्यक इंग्रेडिएंट

इसमें क्रिमिनल ट्रेसपास के तीनों इंग्रेडिएंट्स हैं:

  1. किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति पर अनधिकृत प्रवेश होना चाहिए;
  2. एक प्रविष्टि जो की गई थी उसे अधिकृत किया जाना चाहिए लेकिन परिसर में अवैध रूप से रहना चाहिए;
  3. गैरकानूनी प्रवास एक इरादे से होना चाहिए;
  4. जिस संपत्ति पर व्यक्ति प्रवेश करते हैं उसका उपयोग मानव निवास या पूजा स्थल या संपत्ति की हिरासत के स्थान के रूप में किया जाना चाहिए।

केस लॉ: माखन बनाम एंपरर

इस केस में, कोर्ट ने माना कि हाउस ट्रेसपास करना क्रिमिनल ट्रेसपास का एक एग्रावेटेड रूप है। क्रिमिनल ट्रेसपास करने में संपत्ति के धारक को परेशान या अपमान करने का इरादा है। जबकि हाउस ट्रेसपास करने के लिए मुख्य इंग्रेडिएंट यह है कि संपत्ति उचित दीवारों और उस पर छत के साथ एक इमारत होनी चाहिए, केवल एक परिसर की दीवार को एक आवास घर नहीं कहा जा सकता है।

आईपीसी की धारा 447 क्रिमिनल ट्रेसपास के लिए सजा से संबंधित है

इस धारा में कोई भी व्यक्ति जो क्रिमिनल ट्रेसपास करता है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से, जिसे 3 महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

आईपीसी की धारा 448 हाउस ट्रेसपास के लिए सजा से संबंधित है

इस धारा में कोई भी व्यक्ति जो हाउस ट्रेसपास करता है, उसे एक 1 तक के कारावास, या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।

क्रिमिनल ट्रेसपास और हाउस ट्रेसपास के एग्रावेटेड रूप

  1. धारा 443, धारा 455 से लेकर धारा 460 तक लर्किंग हाउस ट्रेसपास से संबंधित है;
  2. धारा 453 से धारा 455 तक घर तोड़ने से संबंधित है;
  3. धारा 446, धारा 456 से धारा 460 रात में घर तोड़ने से संबंधित है;
  4. धारा 449 मौत से दंडनीय अपराध करने के इरादे से हाउस ट्रेसपास से संबंधित है;
  5. धारा 450 आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने के इरादे से हाउस ट्रेसपास से संबंधित है;
  6. धारा 451 कारावास से दंडनीय अपराध करने के इरादे से हाउस ट्रेसपास से संबंधित है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

सैद्धांतिक (थियोरिटेकली) रूप से, यह कहा गया है कि संपत्ति किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का विस्तार है। यह समाज में व्यक्ति के स्वयं को संतुष्ट करने के उद्देश्य से कार्य करता है।

भारत के संविधान द्वारा संपत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता स्वयं समाज में किसी के जीविका में संपत्ति की जीवन शक्ति की बात करती है।

इंडियन पीनल कोड आगे संपत्ति धारक (होल्डर) की रक्षा करती है और उन बुराइयों पर निरोध (डिटेरेंस) पैदा करती है जो संपत्ति से संबंधित विभिन्न अपराधों के लिए दंड और जुर्माना लगाकर दूसरे के अधिकारों का उल्लंघन करने की योजना बनाते हैं।

इस संदर्भ में संपत्ति की अवधारणा के न्यायशास्त्रीय (ज्यूरिस्प्रूडेंशियल) आधार की जांच करना काफी दिलचस्प और उपयोगी है। संपत्ति की संस्था (इंस्टीट्यूशन) की उत्पत्ति की जांच करने पर, यह पाया जाता है कि संपत्ति की अवधारणा को समाज में एक व्यक्ति की स्वयं की संतुष्टि के रूप में पहचाना गया है।

व्यक्ति के लिए किसी भी मूल्य वाली वस्तु को सुरक्षा प्रदान करने के लिए संपत्ति के रूप में मान्यता दी गई है। यह भी स्पष्ट है कि जिस संपत्ति को सुरक्षित करने की मांग की गई है वह किसी व्यक्ति के कब्जे या स्वामित्व में होनी चाहिए। यह आगे किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विस्तार के रूप में संपत्ति की मान्यता के उक्त मूल सिद्धांत के साथ पुष्टि करता है।

इसलिए समाज में इसके स्वस्थ योगदान के लिए संपत्ति और संबंधित अधिकारों की रक्षा के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए।

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