भारतीय कानून के तहत नागरिकता

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Citizenship Act
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यह लेख Shubham Choudhary द्वारा लिखा गया है, जो वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज्यूरिडिकल साइंसेज के कानून के छात्र हैं। लेखक ने नागरिकता की अवधारणा (कॉन्सेप्ट) पर चर्चा की है और इससे संबंधित विभिन्न अवधारणाओं के बारे में बताया है। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary द्वारा किया गया है।

Table of Contents

नागरिकता से निपटने के लिए संवैधानिक प्रावधान (कांस्टीट्यूशनल प्रोविजंस टू डील विद सिटिजनशिप)

भारतीय संविधान का भाग II नागरिकता से संबंधित है, निम्नलिखित भाग में 6 आर्टिकल्स हैं जो, आर्टिकल 5 से आर्टिकल 11 तक हैं।

  1. आर्टिकल 5, संविधान के लागू होने के समय पर नागरिकता के बारे में बात करता है, जिसमें 3 खंड (क्लॉज) शामिल हैं, पहला, भारतीय क्षेत्र में पैदा हुआ व्यक्ति भारतीय नागरिक होगा। दूसरा यह बताता है कि, जिसके माता-पिता भारत में पैदा हुए हैं, वह भी भारतीय नागरिक होगा, तीसरा यह की भारतीय संविधान के लागू होने से पहले 5 साल की लगातार अवधि के लिए भारत में रहने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक होगा।
  2. आर्टिकल 6, कुछ ऐसे व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकारों के बारे में बात करता है जो पाकिस्तान से भारत आए हैं। लेख को आगे 2 खंडों में विभाजित किया गया है और दूसरे खंड को आगे 2 उपखंडों में विभाजित किया गया है।
    • पहला खंड किसी भी व्यक्ति को नागरिकता का अधिकार देता है जिसने पाकिस्तान से भारत में प्रवास (माइग्रेटिड) कर गया है, बशर्ते यह की गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 के अनुसार उसके माता-पिता या दादा-दादी भारतीय नागरिक थे।
    • दूसरा खंड उस व्यक्ति की नागरिकता के बारे में बात करता है जिसने 19 जुलाई 1948 से पहले और बाद में पलायन (माइग्रेट) किया था और पंजीकृत (रजिस्टर्ड) दस्तावेज़ में इसकी रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया के बारे में बात करता है।
  3. आर्टिकल 7 एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करता है जो भारत से पाकिस्तान चला गया है, उसे अब भारतीय नागरिक नहीं माना जाएगा, बशर्ते कि वे पुनर्वास (रीसेटलमेंट) के लिए परमिट के तहत भारत नहीं लौटे हों।
  4. आर्टिकल 8 वह खंड उन व्यक्तियों को नागरिकता के बारे में बात करता है जो भारतीय मूल (ओरिजन) के बाहर रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति है  और जिनके माता-पिता या दादा-दादी में से कोई भी भारत में पैदा हुए थे और उन्होंने भारत के कांसुलर या राजनयिक (डिप्लोमेटिक) प्रतिनिधि में खुद को भारतीय नागरिक के रूप में रजिस्टर किया है।
  5. संविधान के आर्टिकल 9 में भारतीय नागरिक का अपने आप निलंबन (सस्पेंशन) का प्रावधान (प्रोविजन) है यदि वह व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त करता है।
  6. आर्टिकल 10 में प्रावधान है कि जो व्यक्ति भाग II के तहत नागरिक की परिभाषा के अंदर आता है, वह तब तक नागरिक बना रहेगा जब तक कि पार्लियामेंट ने परिभाषा में संशोधन (एमेंड) करके उस व्यक्ति को परिभाषा से बाहर किया हो।
  7. आर्टिकल 11, सरकार को, संविधान द्वारा बिना किसी सीमा (लिमिटेशन) के, यह अधिकार देता है कि  वह तय कर सकें की कौन नागरिक होगा और कौन नहीं होगा।

ये आर्टिकल्स, संविधान के लागू होने पर नागरिकता प्रदान करते हैं, इसके बाद पार्लियामेंट ने सिटिजनशिप एक्ट, 1955 पारित किया है जो भारत की नागरिकता के अधिग्रहण (एक्विजिशन) और  समाप्ति (टर्मिनेशन) का प्रावधान करता है।

सिटिजनशिप एक्ट, 1955 के तहत नागरिकता का अधिग्रहण (एक्विजिशन ऑफ सिटिजन अंडर सिटिजनशिप एक्ट,1955)

सिटिजनशिप एक्ट, भारत की नागरिकता प्राप्त करने के 5 तरीके प्रदान करता है, जो जन्म, वंश (डेसेंट), पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन), देशीयकरण (नेचुरालाइजेशन) और क्षेत्र का समावेश (इनकॉरपोरेशन) हैं।

जन्म

  • बिल के पारित होने के बाद भारत में पैदा हुए व्यक्ति को 1 जुलाई 1987 की तारीख तक भारतीय नागरिक माना जाएगा, भले ही उसके माता-पिता की नेशनलिटी कुछ भी हो। इसके बाद एक बड़ा संशोधन हुआ जिसके तहत किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिक तभी माना जाता है जब उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत के नागरिक होंगे।
  • 3 दिसंबर 2004 के बाद, भारत में जन्म लेने वालों को भारतीय नागरिक माना जाएगा यदि उसके माता-पिता में से कोई एक या दोनों भारत के नागरिक है।
  • हालाँकि, भारत में तैनात एक विदेशी राजनयिक के बच्चे और एनिमी एलियंस भारत में जन्म से नागरिकता प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

वंश

संविधान के लागू होने के बाद, लेकिन 10 दिसंबर 1992 से पहले भारत के बाहर पैदा हुए व्यक्ति को भारतीय नागरिक माना जाएगा यदि उसके पिता, उसके जन्म के समय भारतीय नागरिक थे।

  • 10 दिसंबर 1992 को या उसके बाद पैदा हुए व्यक्ति को भारतीय नागरिक तभी माना जाएगा यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक थे।
  • 3 दिसंबर 2004 के बाद से, किसी व्यक्ति को तब तक भारतीय नागरिक नहीं माना जाएगा जब तक कि उसका जन्म भारतीय कांसुलर में या उस देश का राजनयिक या सरकार की अनुमति से पंजीकृत न हो।

पंजीकरण

केंद्र सरकार, एक आवेदन (एप्लीकेशन) पर, भारत के नागरिक के रूप में किसी भी व्यक्ति (अवैध प्रवासी नहीं होने पर) को पंजीकृत कर सकती है, यदि वह निम्नलिखित में से किसी भी श्रेणी (केटेगरी) से संबंधित है, अर्थात्:

  1. भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले 7 साल के लिए भारत में सामान्य (ऑर्डिनेरिली) रूप से निवासी है;
  2. भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो अविभाजित (अनडिवाइडेड) भारत के बाहर किसी भी देश या स्थान में सामान्य रूप से निवासी है;
  3. एक व्यक्ति जो भारत के नागरिक से विवाहित है और पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले 7 साल के लिए भारत में सामान्य रूप से निवासी है;
  4. जो व्यक्ति भारत का नागरिक है उनके नाबालिग बच्चे;
  5. पूर्ण आयु और क्षमता (केपेसिटी) का व्यक्ति जिसके माता-पिता भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हैं।
  6. पूर्ण आयु और क्षमता का व्यक्ति, या उसके माता-पिता में से कोई एक स्वतंत्र भारत के पहले से नागरिक थे, और पंजीकरण के लिए आवेदन करने से ठीक पहले, 12 महीने के लिए भारत में सामान्य रूप से निवासी है;
  7. पूर्ण आयु और क्षमता का व्यक्ति जो 5 साल के लिए भारत के कार्डधारक (कार्डहोल्डर) के एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत है, और जो पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले 12 महीने के लिए भारत में सामान्य रूप से निवासी है।

देशीयकरण

केंद्र सरकार, एक आवेदन पर, किसी भी व्यक्ति को (अवैध प्रवासी न होने पर) देशीयकरण का प्रमाण पत्र प्रदान कर सकती है, यदि उसके पास निम्नलिखित योग्यताएं (क्वालिफिकेशंस) हैं:

  • वह किसी ऐसे देश का विषय (सब्जेक्ट) या नागरिक नहीं है, जहां भारत के नागरिकों को देशीयकरण द्वारा उस देश का नागरिक बनने से रोका जाता है।
  • वह किसी भी देश का नागरिक है, भारतीय नागरिकता के लिए उसके आवेदन को स्वीकार किए जाने की स्थिति में वह उस देश की नागरिकता को त्यागने (रेनाउंस) का वचन (अंडरटेक्स) देता है।
  • आवेदन की तारीख से ठीक पहले 12 महीने की अवधि के दौरान, वह या तो भारत में रहता है या भारत में सरकारी नौकरी में रहा है या आंशिक (पार्टली) रूप से इन दोनों का हिस्सा है।
  • 12 महीने की कथित अवधि से ठीक पहले के 14 वर्षों के दौरान, वह या तो भारत में रहा हो या भारत में किसी सरकारी नौकरी में रहा हो, या दोनों का हिस्सा रहा हो, और कुल मिलाकर 11 वर्ष से कम की अवधि नहीं होनी चहिए।
  • वह अच्छे चरित्र (कैरेक्टर) का है।
  • उसे संविधान के 8वें शेड्यूल में निर्दिष्ट (स्पेसिफाइड) भाषा का पर्याप्त (एडीक्वेट) ज्ञान है।
  • यह कि उसे देशीयकरण का प्रमाण पत्र दिए जाने की स्थिति में, वह भारत में रहने का इरादा रखता है या भारतीय सरकार के तहत या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन (ऑर्गेनाइजेशन), जिसका भारत एक सदस्य है , उसके तहत सेवा में प्रवेश करने या जारी रखने का इरादा रखता है  या भारत में स्थापित किसी सोसाइटी, कंपनी या व्यक्तियों के निकाय के अंतर्गत है।

क्षेत्र को शामिल करके (बाई इनकॉरपोरशन ऑफ टेरिटरी)

जब भारत के बाहर का कोई क्षेत्र भारत का हिस्सा बन जाता है, तो उस क्षेत्र का नागरिक स्वतः ही अधिसूचित (नोटिफाइड) तिथि से भारत का नागरिक बन जाता है। उदाहरण के लिए, जब गोवा और पॉन्डिचेरी भारत का हिस्सा बन गए, तो नागरिको ने स्वतः ही भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली थी।

नागरिकता की हानि

सिटिजनशिप एक्ट, 1955, नागरिकता की समाप्ति के लिए 3 तरीके प्रदान करता है और यह 3 तरीके हैं- त्याग (रिनंसिएशन), समाप्ति और वंचना (डेप्रिवेशन)।

  • त्याग द्वारा:

मेजॉरिटी और क्षमता वाला कोई भी व्यक्ति अपनी नागरिकता त्यागने की घोषणा कर सकता है। अनुरोध (रिक्वेस्ट) के ऐसे पंजीकरण पर, व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं रहेगा।

  • समाप्ति द्वारा: 

जब कोई व्यक्ति अपने ज्ञान के साथ किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, तो भारतीय नागरिकता अपने आप ही समाप्त हो जाती है।

  • वंचन द्वारा: 

यह केंद्र सरकार द्वारा भारतीय नागरिकता की अनिवार्य (कंपलसरी) समाप्ति है, यदि

  • नागरिक ने धोखाधड़ी (फ्रॉड) से नागरिकता प्राप्त की है।
  • नागरिकों ने भारत के संविधान के प्रति निष्ठा (डिस्लॉयल्टी) दिखाई है।
  • नागरिक ने युद्ध के दौरान दुश्मन के साथ अवैध रूप से व्यापार या संचार (कमिनिकेट) किया है।
  • नागरिक को, पंजीकरण या देशीयकरण के 5 साल के अंदर, किसी भी देश में 2 साल के लिए कारावास से दंडित किया गया है; और
  • नागरिक सामान्य रूप से लगातार 7 वर्षों से भारत से बाहर का निवासी है।

नागरिकों के अधिकार

भारत का संविधान केवल भारतीय नागरिकों को कुछ अधिकार प्रदान करता है और विदेशी राष्ट्रों को भी इससे वंचित (डिनाइड) किया जाता है। निम्नलिखित अधिकार हैं:

  • आर्टिकल 15: धर्म, मूलवंश (रेस), जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव (डिसक्रिमिनेशन) के खिलाफ अधिकार।
  • आर्टिकल 16: सार्वजनिक रोजगार (पब्लिक एंप्लॉयमेंट) के मामले में अवसर की समानता का अधिकार।
  • आर्टिकल 19: भाषण (स्पीच) और अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन), सभा (असेंबली), संघ (एसोसिएशन), आंदोलन, निवास और पेशे (प्रोफेशन) की स्वतंत्रता का अधिकार।
  • आर्टिकल 29 और 30: सांस्कृतिक (कल्चरल) और शैक्षिक अधिकार।
  • लोकसभा और राज्य विधानसभा (लेजिस्लेटिव असेंबली) के चुनावों में मतदान (इलेक्शंस) का अधिकार।
  • पार्लियामेंट और राज्य विधानमंडल (लेजिस्लेचर) की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार।
  • कुछ सार्वजनिक पदों, जैसे की भारत के राष्ट्रपति, भारत के उपराष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल (गवर्नर), भारत के अटॉर्नी जनरल और राज्यों के एडवोकेट जनरल को धारण करने की योग्यता (एलिजिबिलिटी)।

यह, वह अधिकार हैं जो भारतीय नागरिक को उपलब्ध हैं लेकिन इसके कारण नागरिकों पर भी कुछ दायित्व (ऑब्लिगेशन) हैं। यह दायित्व, सरकार को समय पर टैक्स चुकाने, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीक (एंबलम) का सम्मान करने और ऐसा करने की आवश्यकता होने पर देश की रक्षा करना हैं।

क्या भारत में दोहरी नागरिकता की अनुमति है (इज डुअल सिटिजनशिप परमिटेड इन इंडिया)?

  • दोहरी नागरिकता का अर्थ, एक ही समय में दो अलग राष्ट्रों की नागरिकता प्राप्त करना है। दुनिया में कुछ देश हैं जो इसे प्रदान करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, भारत उनमें से एक नहीं है। भारत एक ही नागरिकता प्रदान करता है जिसका अर्थ है कि भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए किसी को अपनी मूल नागरिकता छोड़नी होगी या किसी अन्य राष्ट्र की नागरिकता प्राप्त करने के लिए किसी को भारतीय नागरिकता समाप्त करनी होगी या यह अपने आप ही समाप्त हो जाएगी।
  • भारतीय नागरिकता प्रदान न करने के पीछे का कारण यह है कि एक नागरिकता को राष्ट्र के प्रति कमिटमेंट माना जाता है और यदि किसी को दोहरी नागरिकता प्रदान की जाती है, तो सारा विश्वास और वफादारी गायब हो जाती है।

विदेशी नागरिक कौन हैं (हू आर ओवरसीज सिटिजन)?

  • 2005 में दोहरी नागरिकता के जवाब में विदेशी नागरिकता की शुरुआत की गई थी। यह विदेशी नागरिकों को अनिश्चित (इंडिफिनेटली) समय  तक भारत में काम करने और रहने की अनुमती (ग्रांट्स) देता है। निम्नलिखित व्यक्तियों को विदेशी नागरिकता के लिए माना जाता है।
  1. एक व्यक्ति जो संविधान के लागू होने या उसके बाद के किसी भी समय यानी 26.01.1950 को भारत का नागरिक था।
  2. एक व्यक्ति जो 26.01.1950 को भारत का नागरिक बनने के योग्य था।
  3. एक व्यक्ति जो उस क्षेत्र से संबंधित है जो 15.08.1947 के बाद भारत का हिस्सा बन गया।
  • एक व्यक्ति जो ऐसे नागरिक का बच्चा या पोता या परपोता है।
  • एक व्यक्ति जो ऊपर वर्णित ऐसे व्यक्तियों की नाबालिग संतान है।
  • एक व्यक्ति जो एक नाबालिग बच्चा है और जिसके माता-पिता भारत के नागरिक हैं या माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक है।
  • भारत के नागरिक के विदेशी मूल के पति या पत्नी या विदेशी मूल के भारत के कार्डधारक के पति या पत्नी, जो सिटिजनशिप एक्ट, 1955 की धारा 7 A के तहत पंजीकृत हैं और जिसका विवाह आवेदन प्रस्तुत करने से ठीक पहले कम से कम 2 वर्ष की निरंतर अवधि के लिए पंजीकृत और निर्वाह (सब्सिस्ट) किया गया हो।

राष्ट्रीयता, नागरिकता, विदेशी नागरिकता और अनिवासी नागरिकता के बीच अंतर (डिफरेंस बिटवीन नेशनेलिटी, सिटिजनशिप, ओवरसीज सिटिजनशिप एंड नॉन-रेजिडेंस सिटिजनशिप)

  • राष्ट्रीयता

किसी विशेष राष्ट्र से संबंधित होने की स्थिति (स्टेटस) है। व्यक्ति की राष्ट्रीयता निर्धारित की जाती है कि वह कहाँ से संबंधित है, यह जातीय (एथनिक) और नस्लीय (रेशियल) समूहों द्वारा निर्धारित समाजशास्त्रीय (सोसियोलॉजिकल) अवधारणा से ज्यादा है और व्यक्ति की पहचान बनाता है। व्यक्ति को प्रदान किए गए अधिकारों के साथ राष्ट्रीयता का कोई संबंध नहीं है।

  • नागरिकता

एक कानूनी अवधारणा से अधिक है और इसे किसी देश की सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है। राष्ट्रीयता के विपरीत, इसे किसी व्यक्ति से बदला या लिया जा सकता है। नागरिकता के आधार पर व्यक्ति को उसकी अपनी सरकार द्वारा अधिकार दिए जाते हैं। जबकि एक व्यक्ति एक राष्ट्रीयता से संबंधित हो सकता है, लेकिन वह एक ही समय में कई राष्ट्रों की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। यह वह व्यक्ति हैं, जिनके पास कुछ विशेष अधिकार हैं जिनका वह आनंद उठा सकते हैं और यह उस राष्ट्र के नागरिक के कारण उनके विशेषाधिकार (प्रिविलेज) हैं।

  • विदेशी नागरिकता 

दोहरी नागरिकता के स्थान पर है और यह भारत के लिए एक विषेश अवधारणा है और दोहरी नागरिकता के विपरीत, यह केवल कुछ निश्चित (सर्टेन) श्रेणी के लोगों के लिए उपलब्ध है, जिनका पहले भारत या उनके माता-पिता या दादा-दादी से संबंध था। विदेशी नागरिकों के लिए अधिकार उपलब्ध हैं लेकिन यह उतने विशिष्ट (एक्सक्लूसिव) नहीं हैं जितने कि आम नागरिकों के लिए हैं।

  • अनिवासी नागरिकता 

उन लोगों को दी जाती है जिनके पास भारतीय नागरिकता होती है, लेकिन काम या अन्य कारणों से यह लोग भारत में नहीं रहते हैं, लेकिन इन लोगों के पास भारत के आम नागरिक के सभी अधिकार होते हैं।

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