छल और धोखाधड़ी (धारा 415- 424)

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22468
Indian Penal Code
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यह लेख हैदराबाद के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की द्वितीय वर्ष की छात्रा Shristi Suman ने लिखा है। इस लेख में, वह आई.पी.सी. के तहत छल (चीटिंग) के अपराध से संबंधित दायरे, सामग्री और विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करती है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

भारतीय दंड संहिता के तहत छल को एक अपराध माना जाता है। यह किसी धोखेबाज साधनों का उपयोग करके किसी अन्य व्यक्ति से लाभ या फायदा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जो व्यक्ति दूसरे के साथ छल करता है, उसे इस तथ्य के बारे में ज्ञान होता है कि यह दूसरे व्यक्ति को अनुचित स्थिति में डाल देगा। आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत छल को अपराध के रूप में दंडनीय बनाया जा सकता है।

धारा 415 का दायरा

भारतीय दंड संहिता की धारा 415 के तहत छल के अपराध को ऐसे परिभाषित किया गया है की “जो भी कोई भी व्यक्ति, किसी व्यक्ति को धोखा दे कर उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार धोखा दिया गया है, कपटपूर्व (फ्रॉडुलेंटली) या बेईमानी से उत्प्रेरित करता है कि वह कोई संपत्ति किसी व्यक्ति को सौंप दे, या यह सहमति दे दे कि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति को रखे या साशय (इंटेंशनली) उस व्यक्ति को, जिसे धोखा दिया गया है, उत्प्रेरित करता है कि वह ऐसा कोई कार्य करे, या करने का लोप करे, जिसे वह नहीं करता या करने का लोप न करता यदि उसे इस प्रकार धोखा न दिया गया होता, और जिस कार्य या लोप से उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, ख्याति (रेप्यूटेशन) संबंधी या साम्पत्तिक नुकसान या क्षति कारित होती है, या कारित होने की संभावना है, तो उसे छल करना कहा जाता है । तथ्यों का कोई भी बेईमानी से छिपाना जो किसी व्यक्ति को ऐसा कार्य करने के लिए धोखा दे सकता है, जो उसने अन्यथा नहीं किया होता, वह भी इस धारा के अर्थ में छल के तहत आता है।

छल के आवश्यक तत्व

इस धारा के तहत निम्नलिखित आवश्यकता दी गई है:

  • किसी भी व्यक्ति को धोखा देना।
  • छल या बेईमानी से उस व्यक्ति को, किसी भी अन्य व्यक्ति को कोई संपत्ति देने के लिए प्रेरित करना या सहमति देना कि कोई भी व्यक्ति किसी भी संपत्ति को रखेगा; या
  • किसी व्यक्ति को जानबूझकर ऐसा करने के लिए प्रेरित करना या कुछ भी करने से लोप करना, जो वह नहीं करेगा या करने से लोप करेगा, यदि उसे इस प्रकार धोखा नहीं दिया गया होता, और कार्य या लोप उस व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, ख्याति (रेप्यूटेशन) संबंधी या साम्पत्तिक नुकसान या क्षति का कारण बनता है या नुकसान पहुंचाता है।

धोखे और प्रलोभन (इंड्यूसमेंट) के महत्वपूर्ण तत्व

धोखा

छल के अपराध का गठन (कॉन्स्टीट्यूट) करने वाले महत्वपूर्ण तत्वों में से एक धोखा है। दूसरे व्यक्ति को संपत्ति देने या बनाए रखने या कोई कार्य या लोप करने के लिए प्रेरित करने के लिए धोखा दिया जा सकता है। धोखा देने का अर्थ है, किसी व्यक्ति को किसी असत्य तत्व में विश्वास दिलाना कि वह सत्य है या किसी व्यक्ति को शब्दों या आचरण द्वारा सत्य को असत्य बना देना।

के आर कुमारन बनाम स्टेट ऑफ़ केरल के मामले में, अस्पताल में भर्ती एक व्यक्ति की डॉक्टर ने जाँच की और डॉक्टर को पता था कि वह व्यक्ति इस स्थिति में है कि वह जीवित नहीं रह पाएगा। डॉक्टर ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर उस व्यक्ति के लिए जीवन बीमा पॉलिसी जारी करने की साजिश रची, जिसकी मृत्यु होने वाली थी और ऐसा करने के लिए, उसने फिट और स्वस्थ होने का प्रमाण दिया। ऐसा आरोपी ने मरीज की मौत के बाद बीमा कंपनी से राशि दिलाने के लिए किया था। अदालत ने आरोपी को लाभ कमाने के लिए बीमा कंपनी के साथ छल करने और धोखा देने के अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया। आरोपी को आई.पी.सी. के तहत छल का दोषी ठहराया गया था।

जान बूझकर प्रतिनिधित्व करना और छल

धोखे में, छल के अपराध को करने के इरादे से प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) या अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्ट) रूप से एक कपटपूर्ण प्रतिनिधित्व या किसी तथ्य का जान बूझकर गलत रूप में प्रतिनिधित्व किया जाता है। अपराध को साबित करने के लिए, न केवल यह साबित करना महत्वपूर्ण है कि आरोपी द्वारा असत्य प्रतिनिधित्व किया गया था, बल्कि यह भी साबित करना आवश्यक है कि आरोपी को यह ज्ञान था कि प्रतिनिधित्व असत्य था और अभियोजक (प्रोसिक्यूटर) को धोखा देने के लिए जानबूझकर इसे बनाया था। यदि आरोपी जानबूझकर एक प्रतिनिधत्व करता है, जो असत्य है तो आरोपी को आई.पी.सी. के तहत छल के अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

छल और गबन / दुरुपयोग (मिसअप्रोपरिएशन)

छल और गबन / दुरुपयोग का गहरा संबंध है। छल में, गलत रूप मे प्रतिनिधित्व करने का कार्य, एक कार्य की शुरुआत से शुरू होता है, जबकि, गबन / दुरुपयोग के मामले में यह महत्वपूर्ण नहीं है कि छल का अपराध शुरू से ही शुरू होगा। आरोपी नेकनीयती से संपत्ति प्राप्त कर सकता है और फिर लाभ के लिए उसे बेचने के लिए उसका गबन / दुरुपयोग कर सकता है। यह इच्छा के विरुद्ध या मालिक की सहमति के बिना किया जा सकता है।

यह देखा गया है कि गबन / दुरुपयोग सामान्यतया किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो कोई संबंधी, मित्र या परिचित व्यक्ति होता है। गबन / दुरुपयोग के अपराध को आई.पी.सी. की धारा 403 के तहत परिभाषित किया गया है। यह केवल अचल संपत्तियों से संबंधित है, न कि शरीर, मन, प्रतिष्ठा या अचल संपत्ति से।

शादी के असत्य वादे के संबंध में धोखा देना और छल करना

शादी के असत्य वादे के संबंध में धोखे और छल के मामले में, आई.पी.सी. के तहत एक वादे के उल्लंघन के लिए कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है, जब तक कि पक्षों द्वारा एक-दूसरे से शादी करने का अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) नहीं किया जाता है। अनुबंध के गठन के संबंध में कोई विशेष आवश्यकताएं नहीं हैं। यह अनिवार्य रूप से लिखित रूप में नहीं होना चाहिए और शब्दों का कोई विशेष सेट नहीं होता है, जिसे विवाह के अनुबंध के लिए उपयोग करने की आवश्यकता है। एक व्यक्ति द्वारा दूसरे से शादी करने का वादा बाध्यकारी वादा नहीं होगा जब तक कि दूसरा व्यक्ति भी पहले व्यक्ति से शादी करने का वादा न करे। दो पक्षों के बीच शादी करने के लिए आपसी वादे पक्षों के आचरण से निहित हो सकते हैं। किसी तीसरे व्यक्ति से किए गए किसी अन्य व्यक्ति से शादी करने के इरादे की घोषणा एक उचित वादा और शादी करने का प्रस्ताव नहीं होगी, जब तक कि उस व्यक्ति को उसका प्रस्ताव नहीं बताया जाता है, जिससे वह शादी करना चाहता है। यह आवश्यक नहीं है कि पक्षों के बीच आपसी वादे समवर्ती (कंकररेंट) हों, यह एक पक्ष द्वारा दूसरे को प्रस्ताव दिए जाने के बाद एक उचित समय के भीतर किया जाना चाहिए। शादी के वादे के उल्लंघन के लिए धोखे और छल के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

प्रलोभन (इंड्यूसमेंट)

जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को, उस व्यक्ति के लिए हानिकारक किसी भी बात पर सहमत होने के लिए राजी करने के लिए कपटी अभ्यास / कार्यों का उपयोग करता है, तो इसे प्रलोभन के रूप में माना जाता है। यह आम तौर पर तब होता है जब दो पक्ष अनुबंध में प्रवेश करते हैं और एक पक्ष दूसरे पक्ष पर लाभ प्राप्त करने के लिए कपटपूर्ण प्रलोभन का उपयोग करता है। कपटपूर्ण प्रलोभन तब किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति किसी चीज के बारे में झूठी जानकारी देता है, जो उस व्यक्ति के लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है। कपटपूर्ण प्रलोभन छल से अलग होता है क्योंकि प्रलोभन के लिए एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति को उस वस्तु के लिए मनाने की आवश्यकता होती है, जिसे वह प्राप्त करना चाहता है और बाद में व्यक्ति को उस वस्तु के लिए स्वयं एक धोखेबाज कार्य या अभ्यास करने की आवश्यकता होती है जिसे वह प्राप्त करना चाहता है।

कपटपूर्ण प्रलोभन की अनुपस्थिति का प्रभाव

छल के अपराध के लिए जरूरी नहीं है कि जिस व्यक्ति को धोखा दिया जा रहा है, उसे कोई ऐसा कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाए जिससे उसे नुकसान हो सकता है। यदि कपटपूर्ण प्रलोभन का अभाव है, तो छल का अपराध गठित करने के लिए पर्याप्त है कि धोखा खाने वाला व्यक्ति ऐसे कार्य के लिए प्रेरित किया जाता है, जिससे उसे नुकसान होने की संभावना है।

छल के अपराध से संबंधित महत्वपूर्ण पहलू

वादा करने के समय बेईमान इरादा मौजूद होना चाहिए

धोखे और बेईमानी का आशय आई.पी.सी. के तहत छल के अपराध का गठन करने के लिए महत्वपूर्ण तत्व हैं। किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी ठहराने के लिए बेईमान इरादे की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। यह तथ्य कि, वादा करने के समय बेईमान इरादा मौजूद था, को छल के अपराध के लिए आरोपी को दोषी ठहराये जाने के लिए साबित किया जाना चाहिए। वादा करने के समय बेईमान इरादे का अनुमान बाद में वादा पूरा न करने से नहीं लगाया जा सकता है।

असत्य प्रतिनिधित्व के समय वादे का सम्मान करने के इरादे की अनुपस्थिति

छल के अपराध में शुरू से ही कपटपूर्ण या बेईमान इरादे का तत्व होता है। जब कोई पक्ष कुछ लाभ प्राप्त करने के लिए किसी अन्य पक्ष के समक्ष असत्य प्रतिनिधित्व करता है, तो असत्य प्रतिनिधित्व के समय वादे का सम्मान करने का इरादा अनुपस्थित माना जाता है।

बेईमानी या तो गलत लाभ या गलत नुकसान का कारण बनती है

बेईमानी से कार्य करने को, आई.पी.सी. की धारा 24 के तहत एक ऐसे कार्य करने या किसी भी कार्य को करने से लोप करने के रूप में परिभाषित किया गया है, जिससे एक व्यक्ति को गलत तरीके से लाभ होता है या किसी विशेष व्यक्ति को संपत्ति का गलत नुकसान होता है। गलत तरीके से संपत्ति हासिल करने या किसी अन्य व्यक्ति को गलत तरीके से नुकसान पहुंचाने के लिए किए गए कार्य को बेईमानी कहा जाता है।

परिस्थितियों के अनुसार अनुमान लगाया जाने वाला असत्य दिखावा

छल से लाभ हासिल करने के लिए कपटपूर्ण इरादे से किए गए असत्य बयान और प्रतिनिधित्व को असत्य दिखावे के रूप में जाना जाता है। जरूरी नहीं कि हर दिखावा असत्य ही हो, परिस्थितियों के अनुसार अनुमान लगाना पड़ता है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति ने संपत्ति के क्रेडिट या वितरण के लिए किसी को प्रेरित किया हो सकता है लेकिन फिर भी, यह पर्याप्त नहीं हो सकता है क्योंकि यह एक असत्य दिखावा हो सकता है और क्रेडिट या वितरण नहीं किया गया होगा। एक असत्य दिखावे का इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां एक पक्ष दूसरे पक्ष के साथ अनुबंध में आना चाहता है। किसी व्यक्ति की ओर से धोखा देने या छल करने का इरादा होना चाहिए। धोखा देने का इरादा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। असत्य दिखावे का अनुमान मामले की परिस्थितियों से लगाया जाना चाहिए।

छल करने के अपराध के आवश्यक तत्व के रूप में मेन्स रीआ

मेन्स रीआ का अर्थ, किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति या अपराध करने के इरादा है। यह आरोपी की मानसिक स्थिति है, जिसे अपराध के लिए दायित्व तय करते समय ध्यान में रखा जाता है। छल के अपराध के लिए मेन्स रीआ को एक आवश्यक तत्व के रूप में साबित करना होता है। यह साबित करना होता है कि आरोपी ने जानबूझकर पूर्व नियोजित योजना के तहत छल का अपराध किया है। यदि अपराध के लिए मेन्स रीआ का तर्क साबित हो जाता है तो आरोपी को आई.पी.सी. के तहत छल के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।

होने वाले या संभावित नुकसान का मुद्दा

शारीरिक, मानसिक, ख्याति संबंधी या साम्पत्तिक क्षति कारित करना, या कारित होने की संभावना होना

छल एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को यह विश्वास दिलाकर किया जाता है कि कोई भी ऐसा तथ्य सत्य है, जो वास्तव में नहीं है। छल किसी व्यक्ति के शरीर, ख्याति या संपत्ति को प्रभावित करती है, जिस पर व्यक्ति का कब्जा या स्वामित्व हो सकता है। छल उस व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, जो एक भरोसेमंद रिश्ते में है, यह उस व्यक्ति के मानसिक स्थिती को प्रभावित करता है, जिसके साथ छल किया गया है। किसी व्यक्ति द्वारा तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करके या दूसरे पक्ष को छल करने के लिए असत्य साक्ष्य का उपयोग करके छल किया जा सकता है। छल करने वाला व्यक्ति यह मानता है कि धोखा देने वाले पक्ष के द्वारा किया गया प्रतिनिधित्व सत्य हैं और फिर यह व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से और भी बुरी तरह प्रभावित करता है। छल करने से तनाव हो सकता है और व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। यह विश्वास के मुद्दों में भी परिणाम कर सकता है और उस व्यक्ति के लिए फिर से किसी अन्य व्यक्ति पर भरोसा करना मुश्किल बना सकता है जिसे धोखा दिया गया है। छल करने के बाद व्यक्ति को कम आत्मसम्मान और संपत्ति के नुकसान से मौद्रिक (मॉनेटरी) रूप में नुकसान का अनुभव हो सकता है।

जब शिकायतकर्ता को कोई नुकसान नहीं होता

मामले में जब छल के कार्य से शिकायतकर्ता को कोई नुकसान नहीं होता है, तब भी आई.पी.सी. की धारा 420 के अनुसार आरोपी छल के अपराध के लिए उत्तरदायी होगा क्योंकि यह किसी व्यक्ति के मन में एक व्यक्ति द्वारा छल होने की एक आशंका पैदा करता है। छल करने वाले व्यक्ति के इरादे और उद्देश्य को भी ध्यान में रखा जाता है और यदि यह पाया जाता है कि आरोपी का उस व्यक्ति को धोखा देने का दुर्भावनापूर्ण इरादा था, तो आरोपी को आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत छल के अपराध के लिए दोषी माना जाएगा।

आरोपी का इरादा महत्वपूर्ण है और आरोपी के अपराध का फैसला करते समय इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। आम तौर पर, आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत शिकायत दर्ज की जाती है, जब कोई व्यक्ति कपटपूर्ण तरीके से उपभोग की गई सेवाओं या उत्पाद में दोष से पीड़ित होता है, या यदि उस व्यक्ति पर किसी उत्पाद या सेवा के लिए एम.आर.पी. से अधिक कीमत वसूल की जाती है, या जब कोई व्यक्ति अनुचित व्यापार प्रथाओं आदि से नुकसान और क्षति से पीड़ित होता है। लेकिन अगर धोखा देने वाला व्यक्ति मौद्रिक नुकसान या क्षति से पीड़ित नहीं होता है, तो भी आरोपी को आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत छल के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। 

जब आरोपित को कोई लाभ नहीं होता लेकिन शिकायतकर्ता को नुकसान होता है

चूंकि छल एक दीवानी (सिविल) और आपराधिक दोनों तरह का गलत है और यदि दूसरे पक्ष को कोई लाभ नहीं हुआ है और उस पक्ष को नुकसान का अनुमान लगाया गया है जिसे धोखा दिया गया है, तो उस स्थिति में, शिकायतकर्ता कंपनी आरोपी पर छल के लिए मुकदमा कर सकती है। 

सेबस्टियन बनाम आर. जवाहरराज के मामले में, यह माना गया था कि आरोपी आई.पी.सी. की धारा 420 और 465 के तहत छल और जालसाजी (फॉर्जरी) के लिए उत्तरदायी था क्योंकि उसने शिकायतकर्ता को दोषपूर्ण सेवाएं प्रदान करके धोखा दिया था लेकिन दोषपूर्ण सेवाएं प्रदान करने के बाद आरोपित को कोई लाभ नहीं मिला, लेकिन इसके कारण शिकायतकर्ता को नुकसान उठाना पड़ा।

यदि आरोपी लाभ नहीं कमाता है या लाभ प्राप्त करता है लेकिन शिकायतकर्ता को नुकसान होता है, तो शिकायतकर्ता आई.पी.सी. के तहत छल के लिए कार्रवाई कर सकता है।

निरंतर हानि, छल के अपराध को स्थापित करने का मानदंड नहीं है

आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत, केवल वह व्यक्ति जो उक्त छल के सामान का उपभोक्ता नहीं है या उसने वाणिज्यिक (कमर्शियल) और बिक्री के उद्देश्य से सेवाओं या सामान की खरीद नहीं की है या माल या सेवाओं से लाभ का आनंद लेने का हकदार नहीं है, तो वह आई.पी.सी. के तहत छल का आरोपी के खिलाफ मुकदमा करने का हकदार नहीं है। एक उपभोक्ता या एक व्यक्ति जो माल या सेवाओं से लाभ पाने का हकदार है, आरोपी पर छल के अपराध के लिए मुकदमा कर सकता है, इस तथ्य के बिना कि उसे कोई नुकसान हुआ है या नहीं। अगर शिकायतकर्ता को नुकसान नहीं होता है, तब भी वह छल के लिए आई.पी.सी. के तहत मुकदमा ला सकता है।

दीवानी दायित्व की तुलना में आपराधिक दायित्व

छल के अपराध को गठित करने के लिए आरोपी की मंशा एक महत्वपूर्ण पहलू है। अक्सर यह देखा जाता है कि वाणिज्यिक लेन-देन से संबंधित मुद्दों में, दीवानी और आपराधिक दायित्व के संदर्भ में अपराध को अलग करना मुश्किल हो जाता है। कार्रवाई के आपराधिक कारण और दीवानी कारण के बीच मुख्य अंतर इरादे का है। यदि आरोपी जानबूझकर और इरादे से दूसरे व्यक्ति को प्रेरित करने के लिए कोई कार्य करता है, तो आरोपी को आपराधिक दायित्व के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। यदि आरोपी विवाद उत्पन्न होने के बाद कोई कार्य करता है और उसने जानबूझकर अपने कार्य की योजना नहीं बनाई है, तो वह दीवानी दायित्व के लिए उत्तरदायी होगा।

नागेश्वर प्रसाद सिन्हा बनाम नारायण सिंह के मामले में, प्रतिवादी ने आरोपी के साथ एक समझौता किया था। भुगतान का एक हिस्सा आरोपी के कब्जे के बदले में दिया गया था। आरोपी तब कब्जे के वितरण के लिए पूरा भुगतान करने में विफल रहा था। प्रतिवादी ने कब्जे के वितरण के संबंध में कानूनी औपचारिकताओं (फॉर्मेलिटीज) को भी पूरा नहीं किया क्योंकि उसे इसके लिए पूरा भुगतान नहीं मिला था। आरोपी ने प्रतिवादी के खिलाफ विशिष्ट प्रदर्शन के लिए दीवानी वाद दायर किया। प्रतिवादी ने आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत आरोपी के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज कराई। अदालत ने माना कि आरोपी की देनदारी, दीवानी प्रकृति की थी और आपराधिक नहीं क्योंकि आरोपी ने कब्जे के वितरण के लिए भुगतान का एक हिस्सा बनाया और यह साबित नहीं किया जा सकता कि उसका इरादा शुरू से ही धोखा देने का था।

दीवानी और आपराधिक दायित्व के बीच का अंतर आरोपी के इरादे से पता लगाया जा सकता है। प्रलोभन के समय आरोपी की मंशा को यह तय करने के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए कि क्या आरोपी का दायित्व एक दीवानी या आपराधिक दायित्व होगा। केवल अनुबंध के उल्लंघन को आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत छल नहीं माना जा सकता है, जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता है कि लेन-देन की शुरुआत से ही बेईमानी का इरादा मौजूद था।

दीवानी विवाद में कष्टप्रद (वेक्सेशस) आपराधिक कार्यवाही: लागत का अधिरोपण (इंपोसिशन)

कष्टप्रद मुकदमेबाजी, एक ऐसी कार्रवाई है जो एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को परेशान करने के लिए की जाती है। यह एक ऐसा मुकदमा है जो पूरी तरह से एक गुणहीन मुकदमा दायर करके दूसरे पक्ष को परेशान करने के लिए लाया जाता है। कष्टप्रद कार्यवाही को न्यायिक प्रक्रियाओं का दुरुपयोग माना जाता है। उत्पीड़न के लिए दूसरे पक्ष को क्षतिपूर्ति करने के लिए आरोपी पर लागत का आरोप लगाया जाता है, जो कष्टप्रद कार्यवाही के कारण हुआ था।

दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 35A के तहत, दीवानी विवाद में कष्टप्रद आपराधिक कार्यवाही पर आरोपी पर जुर्माना लगाने का प्रावधान शामिल है। यदि न्यायालय संतुष्ट है कि आपराधिक कार्यवाही आरोपी द्वारा तंग करने के उद्देश्य से की गई है, तो अदालत इस धारा के तहत आरोपी पर उस उत्पीड़न के लिए प्रतिपूरक लागत लगा सकती है, जो प्रतिवादी को कार्यवाही के कारण भुगतना पड़ा।

यह धारा उन वादों पर लागू होती है जो तंग करने के उद्देश्य से और अपीलों या संशोधनों के लिए लाए जाते हैं। इस धारा के तहत अदालत द्वारा लगाई जा सकने वाली अधिकतम लागत 3000 रुपये है और प्रतिपूरक (कंपेंसेटरी) लागत के लिए अदालत के आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं हो सकती है।

छल की सजा

छल और बेईमानी से संपत्ति के वितरण के लिए प्रेरित करना

आई.पी.सी. की धारा 420 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति छल करता है और इस तरह बेईमानी से दूसरे व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को कोई संपत्ति देने के लिए प्रेरित करता है या एक मूल्यवान सुरक्षा के पूरे या किसी हिस्से को बनाता है, बदल देता है या नष्ट कर देता है, या कुछ भी जो हस्ताक्षरित या मुहरबंद है, और जो एक मूल्यवान सुरक्षा में परिवर्तित होने में सक्षम है, तो ऐसे अपराधी को किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी हो सकता है। आई.पी.सी. की धारा 420 छल का एक उग्र रूप है।

आई.पी.सी. की धारा 417 के तहत साधारण छल दंडनीय है। आई.पी.सी. की धारा 417 में कहा गया है कि जो कोई भी छल के अपराध के लिए उत्तरदायी है, उसे एक अवधि के लिए कारावास या जुर्माना या फिर जुर्माना और कारावास, दोनों से दंडित किया जा सकता है।

यदि धोखा देने वाले व्यक्ति के कार्य से किसी संपत्ति की सुपुर्दगी (अल्टरेशन) या विनाश या किसी मूल्यवान सुरक्षा का परिवर्तन या विनाश होता है, तो अपराध आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत दंडनीय है।

आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत, यह साबित करना आवश्यक है कि शिकायतकर्ता एक प्रतिनिधित्व पर काम कर रहा था जो एक असत्य प्रतिनिधित्व था और आरोपी का इसके लिए एक बेईमान इरादा था।

ईश्वरलाल गिरधारीलाल बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र के मामले में, न्यायालय द्वारा यह देखा गया कि आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत उल्लिखित ‘संपत्ति’ शब्द में केवल उन्हीं संपत्तियों को शामिल नहीं किया गया है जिनका मौद्रिक या कुछ बाजार मूल्य है। इसमें वे संपत्तियां भी शामिल हैं जिनका कोई मौद्रिक मूल्य नहीं है। यदि किसी संपत्ति का उस व्यक्ति के लिए कोई मौद्रिक मूल्य नहीं है, जिसके पास उसका कब्जा है, लेकिन किसी अन्य व्यक्ति द्वारा धोखा दिए जाने के बाद यह उस व्यक्ति के लिए कुछ मौद्रिक मूल्य की संपत्ति बन जाती है, जो इसे धोखा देकर कब्जा कर लेता है तो इसे आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत छल का अपराध माना जा सकता है और संपत्ति को आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत संपत्ति माना जाएगा।

अभयानंद मिश्रा बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार के मामले में, अपीलकर्ता एक उम्मीदवार था जिसने पटना विश्वविद्यालय में एम.ए. परीक्षा के लिए एक निजी उम्मीदवार के रूप में अंग्रेजी में एम.ए. परीक्षा में उपस्थित होने की अनुमति के लिए आवेदन किया था। उन्होंने खुद को एक स्नातक होने का प्रतिनिधित्व किया, जिन्होंने पहले ही अपना बी.ए. डिग्री प्राप्त कर ली थी और अब विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल करना चाहता है। बाद में, उनकी प्रवेश परीक्षा शुरू होने से ठीक पहले, यह पता चला कि उम्मीदवार द्वारा अपने एम.ए. प्रवेश के लिए प्रस्तुत प्रमाण पत्र जाली थे और उन्होंने वास्तव में अपनी बी.ए. डिग्री प्राप्त नहीं की थी। अदालत ने उम्मीदवार को स्नातक होने के बारे में असत्य बयान देने का दोषी ठहराया क्योंकि उसने अपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त नहीं की थी। उसने एक आवेदन किया और विश्वविद्यालय को धोखा दिया और इसलिए, आई.पी.सी. की धारा 420 के तहत छल करने का प्रयास करने का दोषी था, जैसा कि आई.पी.सी. की धारा 511 के साथ पढ़ा गया था।

प्रतिरूपण (पर्सोनिफिकेशन) द्वारा छल

आई.पी.सी. की धारा 416 के तहत, प्रतिरूपण द्वारा छल करने की व्याख्या इस प्रकार की जाती है जैसे कि कोई व्यक्ति किसी विशेष व्यक्ति होने का नाटक करके किसी को धोखा देता है, या यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी विशेष व्यक्ति को दूसरे के लिए प्रतिस्थापित करता है, या किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के रूप में दर्शाता है तो उसे प्रतिरूपण द्वारा छल करने के लिए कहा जाता है। एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के स्थान पर रखने वाले व्यक्ति को यह ज्ञान होना चाहिए कि ऐसा अन्य व्यक्ति उस व्यक्ति से भिन्न व्यक्ति है, जिसका वह प्रतिनिधित्व कर रहा है। प्रतिरूपण द्वारा छल करने का अपराध तब किया जाता है, जब व्यक्ति जिसका प्रतिरूपण किया जाता है वह एक वास्तविक व्यक्ति होता है न कि एक काल्पनिक व्यक्ति।

सुशील कुमार दत्ता बनाम स्टेट के मामले में, आरोपी ने खुद को अनुसूचित जाति का उम्मीदवार बताया और भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में शामिल हुआ। अनुसूचित जाति होने के कारण, उसके असत्य प्रतिनिधित्व के कारण, उसे उस संवर्ग (कैडर) में नियुक्त किया गया था। अदालत ने यह माना कि वह आई.पी.सी. की धारा 416 के तहत छल के अपराध का दोषी था क्योंकि वह अनुसूचित जाति से संबंधित नहीं था और उसने खुद को अनुसूचित जाति के रूप में असत्य प्रतिनिधित्व किया था और इसलिए, उक्त धारा के अनुसार छल के लिए उसकी सजा को उचित ठहराया गया था।

प्रत्ययी (फिडूशियरी) संबंध में छल

एक प्रत्ययी संबंध, ऐसा कोई भी संबंध है जो दो पक्षों के बीच मौजूद होता है जहां वे लेनदेन के लिए अत्यंत अच्छा आस्था और विश्वास साझा करते हैं। आई.पी.सी. की धारा 418 छल के मामलों पर लागू होती है जिसमें पक्षों के बीच एक भरोसेमंद संबंध होता है। प्रत्ययी संबंध में छल संरक्षक, ट्रस्टी, एजेंट, सॉलिसिटर, एक हिंदू परिवार के प्रबंधक (मैनेजर), किसी कंपनी या बैंक के प्रबंधकों या निदेशकों द्वारा शेयरधारकों द्वारा किया जा सकता है। आई.पी.सी. की धारा 418 उन मामलों से संबंधित है जिनमें पक्षों के बीच विश्वास मौजूद होता है और धोखा देकर इस विश्वास का दुरुपयोग होता है। धारा 418 उन पक्षों को छल के मामले में दंडित करती है जिन पर दूसरे पक्ष के प्रति विशेष जिम्मेदारी थी। पक्षों को उनके बीच मौजूद विश्वास के दुरुपयोग और उल्लंघन के लिए दंडित किया जाता है।

यह उन पक्षों का दायित्व है जो पक्षों के हितों की रक्षा करने के लिए एक भरोसेमंद रिश्ते में हैं और उनके बीच मौजूद विश्वास का दुरुपयोग नहीं करते हैं। दूसरे पक्ष के हितों की रक्षा करना पक्ष की जिम्मेदारी है और यदि वह इसकी रक्षा करने में विफल रहता है और धोखा देकर विश्वास का उल्लंघन करता है, तो उसे आई.पी.सी. की धारा 418 के तहत छल के अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। जो व्यक्ति एक प्रत्ययी संबंध में बयान देता है, यह जानते हुए कि यह बेईमान इरादे से एक असत्य बयान है, तो वह व्यक्ति छल के अपराध के लिए उत्तरदायी होगा।

इरादा, अपराध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है यदि छल करने का इरादा नहीं है तो इसे छल के तहत अपराध के रूप में स्थापित नहीं किया जा सकता है। यह अपराध एक गैर-संज्ञेय (नॉन कॉग्निजेबल) अपराध है और एक मजिस्ट्रेट द्वारा जमानती और विचारणीय है।

एस. शंकरमणि बनाम निबर रंजन परिदा के मामले में एक मकान मालिक द्वारा बैंक के खिलाफ छल का मुकदमा दर्ज कराया गया था। बैंक मकान मालिक के घर को किराए पर लेना चाहता था और उसके लिए मकान मालिक ने उसका घर सुसज्जित (फर्निश) किया। उसने घर को साज-सज्जा करने में बहुत बड़ा खर्च किया लेकिन बैंक कुछ कारणों से घर को किराए पर नहीं ले सका। बैंक का इरादा मकान मालिक के साथ छल करने का या धोखा देने का नहीं था। अदालत ने यह माना कि बैंक धारा 418 के तहत छल के लिए उत्तरदायी नहीं था क्योंकि अपराध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला इरादा मौजूद नहीं था।

निष्कर्ष

छल आई.पी.सी. के तहत एक अपराध है, जिसमें एक व्यक्ति किसी व्यक्ति को धोखा देकर या किसी कार्य को करने से चूकने के लिए दूसरे को प्रेरित करता है। आरोपी की मंशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और उसका दोष तय करते समय इसे ध्यान में रखा जाता है। अपराध का गठन करने के लिए जिन दो मुख्य तत्वों पर विचार किया जाना है, वे हैं धोखा और प्रलोभन। असत्य प्रतिनिधित्व करते समय आरोपी की ओर से धोखा देने की मंशा को साबित करने की आवश्यकता है। यह दिखाया जाना चाहिए कि आरोपी द्वारा एक वादा किया गया था और वह वादा निभाने में विफल रहा और इसके अलावा, वादा निभाने के लिए उसके द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया था।

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