सी.आर.पी.सी. 1973 के तहत इन्क्वायरी की अवधारणा और उससे संबंधित ऐतिहासिक निर्णय

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Criminal Procedure Code
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यह लेख Khushi Sharma द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में आई.आई.एम.टी और स्कूल ऑफ़ लॉ, आई.पी यूनिवर्सिटी से बी.ए. एलएलबी (ऑनर्स) कर रही हैं। यह एक विस्तृत लेख है, जो कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973, के तहत इन्क्वायरी से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

आपराधिक कानून के तहत “इन्क्वायरी” शब्द सबसे महत्वपूर्ण शब्द है, यह किसी भी मुकदमे को हल करने या संसाधित (प्रोसेस) करने के लिए एक मुख्य कुंजी  है। प्रत्येक मामला इन्क्वायरी के साथ अपनी कार्यवाही शुरू करता है; सामान्य शब्दों में इन्क्वायरी का अर्थ है प्रश्न पूछने की प्रक्रिया और मूल्यवान (वैल्युएबल) जानकारी निकालने के लिए इन्वेस्टीगेशन करना, जो किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए ट्रायल में सहायक होगा। इन्क्वायरी के कुछ स्थापित क़ानून, कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 के तहत प्रदान किये गए हैं। इस लेख में, हम प्रक्रिया, इन्क्वायरी के प्रकार और इन्क्वायरी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णयों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

इन्क्वायरी

हम देख सकते हैं कि अक्सर लोग इन्क्वायरी और एन्क्वारी जैसे शब्दों के उपयोग के बारे में भ्रमित हो जाते हैं, जिसे इस लेख के तहत स्पष्ट किया जाएगा; एन्क्वारी का अर्थ है प्रश्न पूछना, और इन्क्वायरी एक औपचारिक (फॉर्मल) इन्वेस्टीगेशन है, हालांकि इन्क्वायरी और एन्क्वारी एक ही चीज है लेकिन उनमें कुछ अंतर का स्तर (लेवल) होता है।

जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, इन्क्वायरी एक ऐसे व्यक्ति से जानकारी मांगने की प्रक्रिया होती है जो संबंधित मामले के बारे में कुछ प्रासंगिक (रेलेवेंट) जानकारी दे सकता है। इन्क्वायरी को कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 के सेक्शन 2(g) के तहत परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है, इस कोड के तहत किसी भी ट्रायल में की जाने वाली इन्क्वायरी, जो एक मजिस्ट्रेट या एक कोर्ट द्वारा आयोजित की जाती है।

इन्क्वायरी समाप्त होने पर हर मामले में सुनवाई शुरू होती है। कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 के तहत पुलिस अधिकारी के कार्य को इन्क्वायरी नहीं कहा जा सकता है लेकिन इसे इन्वेस्टीगेशन के रूप में समझा जा सकता है। सी.आर.पी.सी. (कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973) के सेक्शन 159 के तहत ये समझाया गया है की, मजिस्ट्रेट या कोर्ट एक आदेश के द्वारा, प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी करने की आज्ञा दे सकते है, ताकि यह देखा जा सके कि क्या अपराध किया गया था और यदि ऐसा है तो इसमें कौन-कौन लोग शामिल थे।

इन्क्वायरी का उद्देश्य

सी.आर.पी.सी. के तहत इन्क्वायरी में उस अपराध से संबंधित घटनाएं और वारदातें (इंसिडेंट्स) शामिल होती हैं, इसमें घटना से संबंधित लोग और उस घटना के बारे में उनकी जानकारी या जो कुछ भी वे देखते हैं उस समय, वह शामिल होता हैं। सी.आर.पी.सी. के तहत इन्क्वायरी एक अनिवार्य स्तंभ (पिलर) के रूप में काम करती है, इन्क्वायरी का मुख्य उद्देश्य मूल्यवान जानकारी और ऐसी जानकारी निकालना है, जो यह साबित करने में मदद करती है कि किया गया अपराध प्रकृति में आपराधिक था या नहीं। सी.आर.पी.सी के तहत इन्क्वायरी मामले की जांच की एक शुरुआत है, जो किए गए अपराध की प्रकृति को जानने में मदद करती है। यदि अपराध की प्रकृति आपराधिक है, तो यह आगे इसमें शामिल लोगों को देखता है और उन पर मुकदमा चलाने की प्रक्रिया करता है। इन्क्वायरी एक स्तंभ के रूप में खड़ी है क्योंकि इसके बिना कोई भी वास्तव में यह पता नहीं लगा सकता कि घटना में वास्तव में क्या हुआ था। न्याय प्रणाली (सिस्टम) के तहत इन्क्वायरी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो न केवल भारत की बल्कि दुनिया भर की स्थिति है। ट्रायल के लिए आगे बढ़ते समय यह सबसे महत्वपूर्ण कदम है। बिना इन्क्वायरी के कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि घटना से जुड़े लोग नहीं मिलेंगे।

इन्क्वायरी की प्रक्रिया

सेक्शन 154 का संक्षेप 

जैसा कि हमने सेक्शन 154 में देखा है कि पुलिस अधिकारी केवल कॉग्निजेबल अपराधों के मामलों में ही कार्रवाई और इन्वेस्टीगेशन कर सकता है और दूसरी तरफ, नॉन- कॉग्निजेबल अपराधों की इन्वेस्टीगेशन के लिए पुलिस अधिकारियों को मजिस्ट्रेट के आदेश की आवश्यकता होती है।

प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी की प्रक्रिया (सेक्शन 157)

सी.आर.पी.सी का सेक्शन 157, प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी की प्रक्रिया से संबंधित है, जो बताती है कि जब पुलिस अधिकारी को किसी अपराध के बारे में कुछ जानकारी मिलती है और अपराध का मुख्य संकेत यह है कि, यह एक कॉग्निजेबल अपराध होना चाहिए, इसलिए यदि किसी कॉग्निजेबल अपराध के बारे में कोई जानकारी पुलिस अधिकारी द्वारा प्राप्त की जाती है, वह इसकी रिपोर्ट करने के लिए जवाबदेह है और ऐसी रिपोर्ट उस ज्यूरिस्डिक्शन के मजिस्ट्रेट को भेजी जाएगी।

मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजने की क्या जरूरत है (व्हाट इज़ द नीड टू सेंड द रिपोर्ट टू द मजिस्ट्रेट)?

कभी-कभी कुछ निश्चित कारण होते हैं जहाँ पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट को उस ज्यूरिस्डिक्शन के मजिस्ट्रेट को भेजी जाती है, जो इस प्रकार हैं:

  1. जिला, मजिस्ट्रेट के अधीन होने के कारण, जिले में होने वाले सभी अपराधों से अवगत (अवेयर) होना और उसका त्वरित (स्पीडी) निपटान सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी होती है।
  2. एक मजिस्ट्रेट, पुलिस अधिकारी की इन्क्वायरी और इन्वेस्टीगेशन की निगरानी कर सकते है।
  3. यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि इन्वेस्टीगेशन ठीक से नहीं हो रही है तो वह निर्देश भी दे सकते है ताकि मामले को आसानी से निपटाया जा सके और सभी को न्याय मिल सके।

रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद मजिस्ट्रेट अपराध का कॉग्निजेंस लेंगे और व्यक्तिगत रूप से काम करेंगे या किसी पुलिस अधिकारी को नियुक्त (अप्पोइंट) करेंगे, जो स्टेट गवर्नमेंट के द्वारा नियुक्त पद से नीचे का नहीं होना चाहिए, जो उस मामले से सम्बंधित इन्वेस्टीगेशन, पर्यवेक्षण (सुपरवाइस), तथ्यों और परिस्थितियों को देखन और यदि आवश्यक हो तो अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकता है।

सेक्शन 157 का प्रोविजो

बशर्ते:

  1. यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ प्राप्त मामले के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है और यदि अपराध गंभीर नहीं है, तो पुलिस अधिकारी आगे नहीं बढ़ेंगे या किसी अधिकारी को किसी भी इन्वेस्टीगेशन को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिनियुक्त (डिप्यूट) नहीं करेंगे।
  2. यदि इन्वेस्टीगेशन के लिए पर्याप्त कारण नहीं है, तो पुलिस अधिकारी इसकी इन्वेस्टीगेशन नहीं करेगा।

इन्वेस्टीगेशन न होने पर मजिस्ट्रेट को सूचना (इनफार्मेशन टू मजिस्ट्रेट व्हेन नो इन्वेस्टीगेशन ऑकर्स)

(A) और (B) में मामलों के अनुसार यदि कोई इन्वेस्टीगेशन नहीं हुई है, तो उसके कारणों का उल्लेख मजिस्ट्रेट को भेजी गई रिपोर्ट में किया जाएगा और (B) के मामले में पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति को सूचित करेगा जो अपराध के संबंध में जानकारी के साथ आया था; और इन कारणों से कोई इन्वेस्टीगेशन नहीं होगी।

मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट कैसे भेजी जाती है (हाउ इज़ द रिपोर्ट सेंट टू द मजिस्ट्रेट) (सेक्शन 158)?

सेक्शन 158 बताता है कि पुलिस अधिकारी से मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट कैसे भेजी जाती है। इस सेक्शन में यह देखा गया है कि ऐसी रिपोर्ट स्टेट गवर्नमेंट द्वारा नियुक्त एक वरिष्ठ (सुपीरियर) अधिकारी के माध्यम से भेजी जाएगी। वरिष्ठ अधिकारी पुलिस इन चार्ज को निर्देश भी दे सकता।

इन्वेस्टीगेशन या प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी करने की शक्ति (द पॉवर टू होल्ड इन्वेस्टीगेशन और प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी) (सेक्शन 159)

सेक्शन 159 के तहत यह कहा गया है की, यदि पुलिस इन चार्ज कोर्ट को सूचित करते हैं कि वे इन्वेस्टीगेशन के साथ आगे नहीं बढ़ेंगे क्योंकि कोई कॉग्निजेबल अपराध नहीं बना है या यदि वे सूचना देने वाले को इनकार करते हैं कि इन्वेस्टीगेशन के लिए पर्याप्त आधार नहीं है; ऐसे मामलों में, कोर्ट पुलिस इन चार्ज को प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी करने या मामले की इन्वेस्टीगेशन करने का निर्देश दे सकती है; इस सेक्शन के तहत विकल्प यह है कि कोर्ट अपने अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) किसी मजिस्ट्रेट की नियुक्ति के लिए भी आगे बढ़ सकती है। मजिस्ट्रेट उसे प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी करने का निर्देश दे सकते है और ऐसी इन्क्वायरी को ट्रायल नहीं कहा जाएगा।

इन्क्वायरी के प्रकार

कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 के तहत 6 प्रकार की इन्क्वायरी होती है, जो इस प्रकार हैं:

न्यायिक इन्क्वायरी

जनता के मुद्दे से संबंधित मामले में इन्क्वायरी होना जो गवर्नमेंट द्वारा नियुक्त एक न्यायाधीश द्वारा की जाती है।

गैर-न्यायिक इन्क्वायरी

गैर-न्यायिक इन्क्वायरी को एक प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) इन्क्वायरी के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि कोई भी इन्क्वायरी जो कानून के प्रवर्तन (इंफोर्समेंट) के उद्देश्य से नहीं है।

प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी

प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी, ट्रायल से पहले की इन्क्वायरी होती है और जो अपराध की आपराधिक प्रकृति को जानने के उद्देश्य से या इस कारण से की जाती है कि ट्रायल शुरू होना चाहिए या नहीं।

लोकल इन्क्वायरी

सी.आर.पी.सी का सेक्शन 148, लोकल इन्क्वायरी से संबंधित है जो यह परिभाषित करता है कि मजिस्ट्रेट लोकल इन्क्वायरी करने के लिए किसी भी अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को नियुक्त कर सकते है। मजिस्ट्रेट इन्क्वायरी के लिए और अधीनस्थ मजिस्ट्रेट के मार्गदर्शन के लिए निर्देश भी दे सकते है।

अपराध की इन्क्वायरी

अपराध की इन्क्वायरी कभी भी दोषसिद्धि (कन्विक्शन) या दोषमुक्ति (एक्यीइटटल) में समाप्त नहीं हो सकती। अपराध की इन्क्वायरी सिर्फ मुकदमे के लिए मामले को आधार बनाती है। अपराध की इन्क्वायरी किए गए अपराध के बारे में सामान्य जानकारी से संबंधित है।

अपराध के अलावा अन्य मामलो की इन्क्वायरी

इसमें ऐसी इन्क्वायरी शामिल है जो अपराध के अलावा अन्य मामलों पर आधारित है, इसमें सामान्य इन्क्वायरी या कोई अन्य इन्क्वायरी शामिल है जिसमें विशेष अपराध शामिल नहीं है।

इन्क्वायरी और इन्वेस्टीगेशन के बीच अंतर

आधार  इन्क्वायरी इन्वेस्टीगेशन
अर्थ इन्क्वायरी ट्रायल से पहले होती है और इन्वेस्टीगेशन के चरण के बाद, यह अपराध की प्रकृति या घटना में शामिल लोगों की प्रकृति का पता लगाती है। इन्वेस्टीगेशन पुलिस के माध्यम से तथ्यों का पता लगाने, किसी विशेष मामले में साक्ष्य (एविडेन्स) एकत्र करने की प्रक्रिया है।
उद्देश्य इसका मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि अपराध आपराधिक प्रकृति का था या नहीं। इन्वेस्टीगेशन का मुख्य उद्देश्य किसी विशेष मामले में साक्ष्य को एकत्रित करना है ताकि सही घटना का पता लगाया जा सके।
घटना का तरीका (मोड ऑफ़ अकरेन्स) इन्क्वायरी न्यायिक और गैर-न्यायिक दोनों तरीकों से हो सकती है। इन्वेस्टीगेशन केवल गैर-न्यायिक रूप से हो सकती है।
कानूनी स्थिति (लीगल स्टेटस) इन्क्वायरी को कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 के सेक्शन 2(g) के तहत परिभाषित किया गया है। कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 के सेक्शन 2(h) के तहत इन्वेस्टीगेशन को परिभाषित किया गया है।
चरणों (स्टेजिस) यह इन्वेस्टीगेशन के बाद और ट्रायल से पहले का कोई भी चरण है। यह हर मामले का पहला चरण है।

ऐतिहासिक निर्णय

1. केजी अप्पुकुट्टन बनाम स्टेट ऑफ़ केरल राज्य कॉयर कंपनी,1989

इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसे दर्ज किया जाना चाहिए और आगे के सबूतों से छेड़छाड़ से बचने और मजिस्ट्रेट को सूचित रखने के लिए, इसे समय पर मजिस्ट्रेट को भेजा जाना चाहिए और जब कोई नोटिस या रिपोर्ट कोर्ट में नहीं लाई जाती है, तो यह मान लिया जाता है कि इन्वेस्टीगेशन भ्रष्ट है।

2. अर्जुन मारिक बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार, 1994

इस मामले में, मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजने की प्रक्रिया, इस प्रक्रिया का एक अविभाज्य (इनसेपरेबल) हिस्सा है और इसे तत्काल प्रभाव से भेजा जाना चाहिए ताकि अनुचित देरी से बचा जा सके और रिपोर्ट सटीक हो सके। मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट देने के दो आवश्यक कारण होते है, पहला यह की, कहानी के अभियोजन (प्रोसेक्यूशन) पक्ष में और सुधार को रोका जा सके और दूसरा यह की, मजिस्ट्रेट मामले में प्रगति और इन्वेस्टीगेशन की प्रक्रिया को देखने में सक्षम बन सके।

3. स्टेट ऑफ़ राजस्थान बनाम तेजा सिंह और अन्य, 2001

इस मामले में, पुलिस इन चार्ज ने मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट में देरी के कारण के रूप में कोर्ट की छुट्टियां का बहाना लगाया, इसे पर्याप्त कारण नहीं माना गया और यह माना गया कि छुट्टी, देरी के लिए आधार नहीं हो सकती क्योंकि कानून की आवश्यकता है कि एफ.आई.आर. बिना किसी रुकावट और देरी के मजिस्ट्रेट तक पहुंचनी चाहिए।

4. एस.एन. शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी और अन्य, 1970

इस मामले में यह माना गया कि कोर्ट को इन्वेस्टीगेशन रोकने और मैजिस्ट्रियल इन्क्वायरी के आदेश देने का कोई अधिकार नहीं था। हाई कोर्ट ने यह माना था कि न्यायपालिका के कार्य कॉम्प्लिमेंट्री हैं और ओवरलैपिंग नहीं हैं। इसे अन्य क्षेत्रों के कामकाज में हस्तक्षेप (इंटरफेयर) नहीं करना चाहिए।

5. सवाई राम बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान, 1997

इस मामले में, यह माना गया कि केवल रिपोर्ट भेजने में देरी से अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज करने का अधिकार नहीं मिलता है, लेकिन देर से रिपोर्ट भेजने से यह संदेह पैदा होता है कि एफ.आई.आर. विचार-विमर्श (डेलीब्रेशन्स) और परामर्श (कंसल्टेशन) का परिणाम है और इस तरह की भ्रष्ट इन्वेस्टीगेशन से  किसी को न्याय नहीं मिलेगा। 

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

इस लेख में, हमने इन्क्वायरी के चरणों के साथ-साथ इन्क्वायरी को कानूनी रूप से परिभाषित किया और इसका अर्थ भी जाना। इन्क्वायरी से हमें, किए गए अपराध की प्रकृति की समझ मिलती है। अपराध की प्रकृति हमें बताती है कि क्या अपराध वास्तव में किया गया है और यदि ऐसा है तो इसमें शामिल लोग कौन हैं। इन्क्वायरी आमतौर पर इन्वेस्टीगेशन के चरण के बाद होती है और वह यह निर्देश देती है कि पुलिस द्वारा एकत्र किए गए सबूत वास्तव में सच है या नहीं, और क्या वे किए गए अपराध को सिद्ध करते हैं। आमतौर पर लोग इन्क्वायरी और इन्वेस्टीगेशन के बीच भ्रमित हो जाते हैं लेकिन दोनों के बीच एक स्पष्ट अंतर है क्योंकि इन्क्वायरी अपराध की आपराधिकता से संबंधित है और इन्वेस्टीगेशन सबूतों को एकत्रित करने से संबंधित है। इन्क्वायरी न्यायिक और गैर-न्यायिक दोनों हो सकती है लेकिन इन्वेस्टीगेशन केवल गैर-न्यायिक होती है, यह केवल पुलिस अधिकारी द्वारा की जाती है।

इन्क्वायरी को एक उचित प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और यह इन्वेस्टीगेशन के बाद और ट्रायल से पहले की प्रक्रिया है। यह मुकदमे को आधार बनाता है ताकि मुकदमे हो सके और लोग विशेष मामले में शामिल हों सके। मजिस्ट्रेट द्वारा इन्क्वायरी का आदेश दिया जा सकता है जब पुलिस द्वारा बनाई गई रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजी जाती है, हमने विभिन्न ऐतिहासिक निर्णयों को देखा है जो बताते हैं कि रिपोर्ट का प्रेषण (डिस्पैच) तत्काल होना चाहिए और यदि देरी हो तो यह माना जाएगा कि इन्वेस्टीगेशन भ्रष्ट है लेकिन फिर भी इसका मतलब यह नहीं है कि अभियोजन की पूरी कहानी खारिज कर दी जाएगी। तो, ये सभी कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 के तहत इन्क्वायरी से संबंधित कुछ सामान्य प्रावधान थे।

संदर्भ (रेफरेन्सेस)

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