सी.आर.पी.सी. की धारा 320 

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17332
Criminal Procedure Code

यह लेख Samiksha Madan द्वारा लिखा गया है, जो सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, हैदराबाद में कानून की छात्रा हैं। यह लेख आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 के तहत शमनीय (कंपाउंडेबल) अपराधों के प्रावधानों का विश्लेषण करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय 

लैटिन कानूनी कहावत ‘इंटरेस्ट रिपब्लिका अट सिट फिनिस लिटियम’ का अर्थ है कि मुकदमेबाजी का समापन राज्य के सर्वोत्तम हित में है। लंबे समय से, विभिन्न मामले कानून की अदालतों के समक्ष लंबित हैं। कानून ने आपराधिक न्याय प्रणाली को एक शक्तिशाली उपकरण दिया है, जिसका उपयोग किए जाने पर, किसी मामले को समाप्त करने में लगने वाले समय को महत्वपूर्ण रूप से कम किया जा सकता है। इस तरह के प्रावधान को आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 में रखा गया है, जो कि शमनीय अपराध से संबंधित है। इस लेख का उद्देश्य यह बताना है कि शमनीय अपराध क्या हैं और किस आधार पर धारा 320 के तहत गैर शमनीय (नॉन कंपाउंडेबल) अपराधों का शमन किया जा सकता है।

एक अपराध को शमन करना क्या है

यदि अभियुक्त और अपराध के पीड़ित के बीच समझौता हो जाता है, तो कुछ मामलों में अपराधों के शमन की अनुमति देना और कानूनी कार्यवाही को समाप्त करना विवेकपूर्ण हो सकता है। कभी-कभी, लोक अभियोजक (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) या शिकायतकर्ता यह निर्णय ले सकते है कि मामले को छोड़ देना बेहतर होगा; अदालत तब आपराधिक मुकदमे को समाप्त करते हुए इस निकासी (विड्रॉल) को मंजूरी दे सकती है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता विशिष्ट परिस्थितियों में कार्यवाही को रोकने की अनुमति देती है, लेकिन कुछ प्रतिबंधों के अधीन यदि मजिस्ट्रेट स्वयं इसे वांछनीय (डिजायरेबल) समझता है। विशिष्ट परिस्थितियों में, शिकायतकर्ता के उपस्थित न होने या उसकी मृत्यु हो जाने पर कार्यवाही को बंद करने का आदेश दिया जा सकता है; और, विशिष्ट अपवादों के अधीन, स्वयं अभियुक्त व्यक्ति की मृत्यु के परिणामस्वरूप मामले को समाप्त किया जा सकता है। कुछ सम्मोहक (कंपेलिंग) कारणों से, अभियुक्त व्यक्ति को अपराध में उसके शामिल होने का दावा करने के लिए सशर्त क्षमा प्रदान करना आवश्यक हो सकता है। इस तरह की क्षमा प्रदान किए जाने की स्थिति में अभियुक्त व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलाना बंद करना होगा। 

शमन करने का अर्थ है “किसी अन्य दायित्व के बदले में पैसे के भुगतान के द्वारा मामले को सुलझाना।” आपराधिक कानून में, पीड़ित के पास अपराध को शमन करने की क्षमता होती है। अपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320, अपराधों के शमन के लिए कानूनी प्रावधान प्रदान करती है। इस संहिता की धारा 320 का उद्देश्य शांति बनाए रखने के लिए पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना है।

सामान्य कानून के तहत अपराधों को शमन करना

किसी भी बुरे कार्य को शमन करना आम कानून के तहत एक दुष्कर्म माना जाता था। ऐसे कानून हैं जो कई राज्यों में एक बुरे कार्य के रूप में अपराध को दंडित करते हैं। दुष्कर्म को शमन करना अवैध नहीं है। हालांकि, एक दुष्कर्म के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने का समझौता अप्रवर्तनीय (अनइनफॉर्सेबल) है क्योंकि यह सार्वजनिक नीति का उल्लंघन करता है। इस सिद्धांत के तहत, शमन करना एक अपराध है जो व्यावहारिक रूप से पूरे अमेरिकी कानून में है। एक अपराध को शमन करने को दो राज्यों में एक सामान्य कानून अपराध के रूप में और 45 राज्यों में एक वैधानिक अपराध के रूप में आजमाया जा सकता है। शमन करने को इंग्लैंड और वेल्स, उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य में गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।

सी.आर.पी.सी .की धारा 320 के घटक

धारा 320(1) – न्यायालय की अनुमति के बिना अपराध का शमन करना

यह कानून अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 320(1) के तहत न्यायालय की अनुमति के बिना अपराधों को शमन करने का प्रावधान करता है। ये अपराध भारतीय दंड संहिता, 1860 की कुछ धाराओं द्वारा दंडनीय हैं, जिन्हें नीचे दी गई तालिका (टेबल) के तीसरे कॉलम में सूचीबद्ध व्यक्तियों द्वारा शमन किया जा सकता है।

यहाँ ऐसे अपराधों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

आई.पी.सी. की धारा जो यहां लागू होगी अपराध वे व्यक्ति जिनके द्वारा अपराधों का शमन किया जा सकता है 
298 किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से जानबूझकर कुछ शब्द बोलना, आदि। वह व्यक्ति जिसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने का इरादा हो।
323, 334 स्वेच्छा से चोट पहुँचाना, स्वेच्छा से उकसावे पर चोट पहुँचाना। वह व्यक्ति जिसे चोट लगी हो।
341, 342 किसी व्यक्ति को सदोष अवरोध (रोंगफुल रिस्ट्रेंट) करना। वह व्यक्ति जिसे रोका गया है या सीमित किया गया है।
352, 355, 358 हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना। वह व्यक्ति जिस पर हमला किया गया हो या जिस पर आपराधिक बल का प्रयोग किया गया हो। 
426, 427 रिष्टि (मिस्चीफ), जब एकमात्र नुकसान या क्षति किसी निजी व्यक्ति को हुई हानि या क्षति हो। वह व्यक्ति जिसे हानि या क्षति हुई हो।
447 आपराधिक अतिचार (ट्रेसपास) संपत्ति के कब्जे वाला व्यक्ति  जिस पर अतिचार हुआ हो।
448 गृह-अतिचार संपत्ति के कब्जे वाला व्यक्ति जिस पर अतिचार हुआ हो।
451 किसी अपराध जिसे कारावास से दंडित किया जाता है, को करने के लिए गृह-अतिचार। चोरी के अलावा अन्य अपराध में उस व्यक्ति द्वारा जिसके कब्जे में वह संपत्ति है जिसमे ग्रह अतिचार किया गया हैं।
482 मिथ्या संपत्ति चिह्न का उपयोग करने के लिए दंड वह व्यक्ति जिसे नुकसान या चोट पहुंचाई गई हो, जो की इस तरह के प्रयोग के कारण हुई है।
483 दूसरे व्यक्ति द्वारा उपयोग किए गए संपत्ति चिह्न की जालसाजी (काउंटरफीट) करना वह व्यक्ति जिसे नुकसान या चोट पहुंचाई गई हो, जो की इस तरह के प्रयोग के कारण हुई है।
486 नकली संपत्ति चिह्न के साथ चिह्नित माल को जानबूझकर बेचना, या बिक्री के लिए या विनिर्माण (मैन्युफैक्चर) करने के उद्देश्य के लिए उजागर करना या अपने पास रखना। वह व्यक्ति जिसे नुकसान या चोट पहुंचाई गई हो, जो की इस तरह के प्रयोग के कारण हुई है।
491  सेवा के अनुबंध का आपराधिक उल्लंघन करना। वह व्यक्ति जिसके साथ अपराधी ने अनुबंध किया है।
497 व्यभिचार (एडल्टरी) महिला का पति।
498 विवाह करने के आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाना या ले जाने का कार्य करना या हिरासत में लेना महिला और महिला का पति।
500  लोक अभियोजक द्वारा की गई शिकायत पर उसके सार्वजनिक कार्यों के संबंध में राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल (गवर्नर) या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक या मंत्री के खिलाफ मानहानि (डिफामेशन) करना। वह व्यक्ति जिसकी मानहानि हुई है।
501 सामग्री को छापना या उकेरना (इंग्रेव), यह जानते हुए कि यह मानहानिकारक है। वह व्यक्ति जिसकी मानहानि हुई है।
502 यह जानते हुए मानहानिकारक सामग्री वाले छपे हुए या उकेरे हुए पदार्थ की बिक्री करना कि इसमें ऐसा कोई मामला है। वह व्यक्ति जिसकी मानहानि हुई है।
504 अपमान करना, जिस का उद्देश्य शांति भंग करना है वह व्यक्ति जिसका अपमान किया गया है।
506 आपराधिक धमकी। वह व्यक्ति जिसे धमकाया गया है।
508 व्यक्ति को स्वयं को दैवीय अप्रसन्नता का पात्र मानने के लिए प्रेरित करना। वह व्यक्ति जिसे प्रेरित किया गया है।

धारा 320(2) – अपराध को शमन करने से पहले न्यायालय की अनुमति आवश्यक है 

कानून उन अपराधों को शमन करने की अनुमति प्रदान करता है जिनमें आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 320(2) के तहत अदालत की अनुमति एक पूर्व-आवश्यकता है। ये अपराध भारतीय दंड संहिता, 1860 की कुछ धाराओं के द्वारा दंडनीय हैं, जिन्हें नीचे दी गई तालिका के तीसरे कॉलम में सूचीबद्ध व्यक्तियों द्वारा शमन किया जा सकता है।

यहाँ ऐसे अपराधों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

आई.पी.सी. की धारा जो लागू होती है अपराध वह व्यक्ति जिसके द्वारा अपराध को शमन किया जा सकता है 
312 गर्भपात करित करना जिस महिला का गर्भपात हुआ हो।
325 स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाना वह व्यक्ति जिसे चोट पहुँची हो।
337 इतनी उतावलेपन और लापरवाही से कोई कार्य करके चोट पहुँचाना जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ जाए। वह व्यक्ति जिसे चोट पहुँची हो।
338 उतावलेपन और लापरवाही से ऐसा कार्य करके गंभीर चोट पहुँचाना जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ जाए। वह व्यक्ति जिसे चोट पहुँची हो।
357 किसी व्यक्ति को सदोष अवरोध के प्रयास में हमला या आपराधिक बल करना। जिस व्यक्ति पर हमला किया गया हो या जिस पर बल प्रयोग किया गया हो।
381 क्लर्क या नौकर द्वारा, मास्टर के कब्जे में संपत्ति की चोरी। संपत्ति का मालिक, जिसकी संपत्ति चोरी हो गई थी।
406 विश्वास का आपराधिक उल्लंघन करना संपत्ति का मालिक जिसके संबंध में विश्वास का उल्लंघन किया गया है।
408 क्लर्क या नौकर द्वारा विश्वास का आपराधिक उल्लंघन होना संपत्ति का मालिक जिसके संबंध में विश्वास का उल्लंघन किया गया है।
418 किसी ऐसे व्यक्ति को धोखा देना जिसके हित की रक्षा करने के लिए अपराधी कानून द्वारा या कानूनी अनुबंध द्वारा बाध्य था। वह व्यक्ति जिसने धोखा दिया है।
420 धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की सुपुर्दगी (डिलीवरी) के लिए प्रेरित करना या मूल्यवान प्रतिभूति (सिक्योरिटी) को बनाना, बदलना या नष्ट करना। वह व्यक्ति जिसने धोखा दिया है।
494 पति या पत्नी के जीवनकाल में दोबारा शादी करना इस प्रकार विवाह करने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी द्वारा।
500 सरकारी वकील द्वारा की गई शिकायत पर राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक या मंत्री के खिलाफ उनके सार्वजनिक कार्यों के संबंध में मानहानि करना। व्यक्ति जिसकी मानहानि हुई है।
509 किसी महिला की लज्जा (मोडेस्टी) का अपमान करने के इरादे से कुछ शब्दों या ध्वनियों का उच्चारण करना या इशारे करना या किसी वस्तु का प्रदर्शन करना या किसी महिला की निजता में दखल देना। वह महिला जिसका अपमान करने का इरादा था या जिसकी निजता में दखल दी गई थी।

उपरोक्त प्रावधानों के अलावा, कुछ राज्य के द्वारा संशोधन किए गए थे, जैसे कि 2003 का आंध्र प्रदेश अधिनियम (धारा 2), जिसके परिणामस्वरूप आई.पी.सी. की धारा 498A को शामिल किया गया था, जो एक महिला के खिलाफ उसके पति या किसी भी रिश्तेदार द्वारा क्रूरता का प्रावधान करता है। 

धारा 320(3) 

इस धारा के खंड 3 के तहत कहा गया है कि यदि कोई अपराध शमनीय प्रकृति का है, जैसा कि इस धारा द्वारा रेखांकित किया गया है, तो ऐसे अपराध को करने में सहायता करना या उकसाना, या ऐसा करने का प्रयास, या जहां अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 34 या धारा 149 के तहत उत्तरदायी ठहराया जाता है वह वैसे ही प्रकृति में शमन करने योग्य है। दूसरे शब्दों में, यदि किसी व्यक्ति ने शमनीय अपराध करने का प्रयास किया है या शमनीय अपराध को करने में किसी अन्य व्यक्ति की सहायता की है, तो प्रयास या सहायता भी शमनीय प्रकृति का है। यह केवल उन अपराधों के लिए सटीक है जिनके लिए सहायता करना और उकसाना और करने का प्रयास करना अपने आप में अपराध है। उदाहरण के लिए, यदि व्यक्ति ‘A’ ने किसी अन्य व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्दों का उच्चारण किया है, तो यह एक शमन करने योग्य अपराध है, और पक्ष आपस में एक समझौते पर पहुंच सकते हैं। इसी प्रकार, यदि ‘A’ ने चोरी करने का प्रयास किया है, या किसी अन्य व्यक्ति को चोरी का अपराध करने के लिए उकसाया/ उसकी सहायता की है, तो यह प्रयास और उकसाने की प्रकृति भी शमनीय है।

धारा 320(4) 

यह उप-धारा उन परिस्थितियों के बारे में बताती है जिसमें पीड़ित नाबालिग है, पागल है, या मृत है। यह प्रावधान दावा करता है कि जब पीड़ित नाबालिग (18 वर्ष) या मानसिक रूप से अस्वस्थ होता है, तो ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाला अभिभावक (गार्डियन) उनकी ओर से अपराध को शमन कर सकता है। हालांकि, इससे पहले कि कोई अभिभावक नाबालिग की ओर से अपराध को शमन कर सके, अदालत को स्वीकृति देनी होगी। यह प्रावधान आगे इंगित करता है कि यदि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) में परिभाषित अनुसार अपराध को शमन करने का अधिकार रखने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उस व्यक्ति का कानूनी प्रतिनिधि उसकी ओर से अपराध को शमन कर सकता है यदि अदालत से पूर्व अनुमति प्राप्त की जाती है।

धारा 320(5) 

इसके तहत कहा गया है कि जब अभियुक्त पर शमन करने योग्य अपराध का मुकदमा चल रहा हो या जब अभियुक्त को अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया हो और दोषसिद्धि के खिलाफ अपील लंबित हो, तो अदालत की अनुमति के बिना इस तरह के अपराध को शमन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अपराध को धारा 320(1) और (2) के तहत वर्ग 1 या वर्ग 2 के रूप में वर्गीकृत किया गया है या नहीं।

धारा 320(6) 

यह उच्च न्यायालय को सी.आर.पी.सी. की धारा 401 के तहत और सत्र न्यायालय को सी.आर.पी.सी. की धारा 399 के तहत, शमन करने योग्य अपराधों की अनुमति देने की अनुमति देता है, बशर्ते अनुमति का अनुरोध करने वाला व्यक्ति ऐसा करने के लिए सक्षम हो। सी.आर.पी.सी. की धारा 401 और 399 में उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय की संबंधित पुनरीक्षण (रिविजनरी) शक्तियां शामिल हैं।

धारा 320(7) 

यह खंड निर्धारित करता है कि यदि अभियुक्त, या तो अतिरिक्त दंड के लिए उत्तरदायी है या किसी पूर्व सजा के लिए एक अलग प्रकार की सजा के लिए उत्तरदायी है, तो ऐसे में अपराध को शमन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

धारा 320(8) 

यह खंड एक अपराध के शमन के परिणामों पर चर्चा करता है। अपराध के शमन का परिणाम यह होता है कि अभियुक्त बरी हो जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई थी या मुकदमा शुरू हो गया था; जब तक अदालत की अनुमति के साथ अपराध को शमन किया गया था, तब तक अपराधी को सभी आरोपों से छूट दी गई है। इसलिए, येसुदास बनाम पुलिस उप-निरीक्षक, कलामस्सेरी (2007) के मामले में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि धारा 320(8) के तहत ‘अभियुक्त’ और धारा 320(2) के तहत ‘अभियोजन’ शब्द के इस्तेमाल से न्यायालय द्वारा यह निष्कर्ष नही निकला जा सकता है कि रचना केवल एक पश्च-संज्ञेय (कॉग्निजेबल) घटना हो सकती है। 

धारा 320(9) 

इस खंड में कहा गया है कि इस धारा के तहत किए गए अपराध को छोड़कर किसी भी अपराध को शमन योग्य नहीं माना जाएगा। इसके अलावा, गुरचरण सिंह भवानी बनाम राज्य (2002) के मामले में यह कहा गया है कि धारा 320(9) के तहत शमन योग्य नहीं होने वाले अपराधों को संहिता की धारा 482 के तहत निपटाया नहीं जा सकता है।

गैर शमनीय अपराध क्या होते हैं 

गैर शमनीय अपराध वे होते हैं जिन्हें शमन नहीं किया जा सकता है, लेकिन केवल रद्द किया जा सकता है। इसका तर्क यह है कि अपराध की प्रकृति इतनी जघन्य (हीनियस) और गैरकानूनी है कि अभियुक्त को पकड़ से बाहर नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में शिकायतकर्ता द्वारा समझौता करने की धारणा उत्पन्न नहीं होती है, क्योंकि सामान्य तौर पर, यह ‘राज्य’ या पुलिस होती है, जो मामले को सामने लाती है। ये अधिक महत्वपूर्ण और जघन्य अपराध हैं जो सिर्फ एक व्यक्ति के बजाय पूरे समाज को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे अपराधों को शमन करने की अनुमति न देने का कारण यह है कि गंभीर अपराधों से बच निकलने से समाज में एक नकारात्मक मिसाल कायम होगी। गैर शमनीय अपराध सार्वजनिक नीति के विरुद्ध हैं, और इसलिए नियमित न्यायालय द्वारा निपटान की अनुमति नहीं है। सी.आर.पी.सी. की धारा 320 के तहत सूची में निर्दिष्ट नहीं किए गए सभी अपराध गैर-शमनीय योग्य हैं। यहां तक ​​कि अदालत के पास भी इस तरह के अपराध को शमन करने के अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) और क्षमता का अभाव है। एक पूर्ण परीक्षण आयोजित किया जाता है, जो प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर अपराधी के बरी होने या सजा के साथ समाप्त होता है।

गैर शमनीय अपराधों के कुछ उदाहरण – जहाँ न्यायालय की अनुमति आवश्यक निम्नलिखित है: 

  • खतरनाक हथियारों या साधनों से स्वेच्छा से चोट पहुँचाना – धारा 326
  • हस्तांतरण (ट्रांसफर) के एक विलेख (डीड) का कपटपूर्ण निष्पादन (एग्जिक्यूशन) जिसमें प्रतिफल (कंसीडरेशन) का झूठा विवरण है – धारा 423
  • किसी व्यक्ति को गलत तरीके से तीन दिन या उससे अधिक समय तक रोकना- धारा 343
  • किसी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल- धारा 352
  • संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोजन (मिसएप्रोप्रिएशन) – धारा 403
  • पचास रुपये या उससे अधिक के किसी भी मूल्य के मवेशी (कैटल) आदि को मारने या अपंग करने के द्वारा रिष्टी – धारा 429
  • किसी अन्य द्वारा उपयोग किए गए व्यापार या संपत्ति चिह्न की जालसाजी – धारा 483
  • उतावलेपन और लापरवाही से ऐसा कार्य करके गंभीर चोट पहुंचाना जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ जाए – धारा 338
  • धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति का सुपुर्दगी या मूल्यवान सुरक्षा का निर्माण, परिवर्तन या विनाश – धारा 420
  • किसी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से शब्द बोलना या ध्वनि निकालना या इशारे करना या किसी वस्तु का प्रदर्शन करना या किसी महिला की निजता में दखल देना – धारा 509

शमनीय और गैर शमनीय अपराधों के बीच अंतर

अपराध की प्रकृति

अपराध की प्रकृति शमनीय अपराध के मामले में उतनी गंभीर नहीं होती है। जबकि गैर शमनीय अपराध में अपराध की प्रकृति गंभीर होती है। उदाहरण के लिए, विश्वास का आपराधिक रूप से उल्लंघन करना, स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना आदि शमनीय अपराध हैं, जबकि किसी महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से किया गया हमला या आपराधिक बल, संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोजन, आदि गैर शमनीय अपराध हैं।

आरोप वापस लेना 

अभियुक्त के खिलाफ एक शमन करने योग्य अपराध के लिए लाए गए आरोपों को हटाया या वापस लिया जा सकता है। हालांकि, अभियुक्तों के खिलाफ आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता है, जब वे गैर-शमनीय अपराध के लिए लंबित हैं।

प्रभावित पक्ष

एक निजी व्यक्ति ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति होता है जिस पर शमनीय अपराध का प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, एक गैर-शमनीय अपराध का निजी व्यक्तियों और समाज दोनों पर पूर्ण रूप से प्रभाव पड़ता है।

शमन करने की योग्यता

एक शमन करने योग्य अपराध में, सी.आर.पी.सी. की धारा 320 (1) के तहत अदालत की अनुमति के साथ या सी.आर.पी.सी. की धारा 320 (2) के तहत अदालत की अनुमति के बिना समझौता किया जा सकता है। इसके विपरीत, एक गैर शमनीय अपराध को केवल रद्द किया जा सकता है; इसे शमन नहीं किया जा सकता क्योंकि अदालत के पास इन अपराधों के निपटारे की अनुमति देने की शक्ति नहीं है।

मामले को दायर करना

शमनीय अपराधों में, मामले अक्सर एक व्यक्ति द्वारा दायर किए जाते हैं। हालाँकि, गैर शमनीय अपराधों में राज्य ही मामले को सामने लाता है।

अंतर का आधार शमनीय अपराध गैर शमनीय अपराध
अपराध की प्रकृति अपराध की प्रकृति शमनीय अपराध के मामले में उतनी गंभीर नहीं है। उदाहरण के लिए, विश्वास का आपराधिक उल्लंघन, स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना, आदि शमनीय अपराध हैं। जबकि गैर शमनीय अपराध में अपराध की प्रकृति गंभीर होती है। उदाहरण के लिए, महिलाओं की लज्जा भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग, संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोजन, आदि गैर शमनीय अपराध हैं।
आरोप वापस लेना  अभियुक्त के खिलाफ शमन करने योग्य अपराध के लिए लाए गए आरोपों को हटाया या वापस लिया जा सकता है। गैर-शमनीय अपराध के लिए लंबित होने पर अभियुक्तों के खिलाफ आरोपों को हटाया नहीं जा सकता है।
प्रभावित पक्ष एक निजी व्यक्ति ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति होता है जिस पर शमनीय अपराध का प्रभाव पड़ता है। एक गैर-शमनीय अपराध का निजी व्यक्तियों और समाज दोनों पर समग्र रूप से प्रभाव पड़ता है।
शमन करने की योग्यता शमनीय अपराध के लिए, अदालत की स्वीकृति के साथ या उसके बिना समझौता किया जा सकता है। एक गैर शमनीय अपराध को केवल रद्द किया जा सकता है; इसे शमन नहीं किया जा सकता है।
मामला दर्ज करना शमनीय अपराधों में, मामले अक्सर एक व्यक्ति द्वारा दायर किए जाते हैं। हालाँकि, गैर-शमनीय अपराध में राज्य द्वारा मामले लाए जाते हैं।

प्ली बार्गेनिंग क्या है और यह एक अपराध को शमन करने से कैसे भिन्न है

प्ली बार्गेनिंग मुकदमे से पहले अभियोजन पक्ष और अभियुक्त के बीच बातचीत का परिणाम है, जिसमें अभियुक्त लाभ या कम सजा के बदले में अपराध स्वीकार करता है। भारत की आपराधिक प्रक्रिया संहिता धारा 265A से 265L के तहत प्ली बार्गेनिंग को संबोधित करती है। यह उन अपराधों पर लागू होता है जिनमें 7 साल तक की जेल की सजा होती है और यह 14 साल से कम उम्र के नाबालिगों या महिलाओं के खिलाफ किए गए अपराधों पर लागू नहीं होता है। अगर अदालत प्ली बार्गेनिंग पर फैसला देती है, तो उस फैसले के खिलाफ अपील नहीं हो सकती है। आरोप कम कर दिए जाते हैं, और अन्य आरोप वापस ले लिए जाते हैं। 

दोनों के बीच अंतर इस प्रकार हैं: 

  • प्ली बार्गेनिंग में अपराध को स्वीकार करना शामिल है, जबकि शमन करने योग्य अपराध में, अपराध स्वीकार नही होते है।
  • इसके विपरीत, शमन करने योग्य अपराध का विचार 1974 के आसपास रहा है। प्ली बार्गेनिंग की धारणा को पहली बार 2006 में पेश किया गया था।
  • प्ली बार्गेनिंग सिर्फ आरोपों और दंडों पर बातचीत करती है; इसका परिणाम अपराधी के बरी होने में नहीं होता है। दूसरी ओर, शमन करने योग्य अपराधों के परिणामस्वरूप अपराधी को बरी कर दिया जाता है।
  • एक प्ली बार्गेन के तहत, अपराधी धारा 300 का उपयोग नहीं कर सकता है, जो एक अभियुक्त को दोषी पाए जाने या दोषी नहीं होने के बाद समान परिस्थितियों के आधार पर एक ही या एक अलग आरोप के लिए मुकदमा चलाने से रोकता है, हालांकि, एक अभियुक्त शमनीय अपराधों के तहत ऐसा कर सकता है। 

सी.आर.पी.सी. की धारा 320 के तहत गैर-शमनीय अपराधों को किस आधार पर शमन किया जा सकता है 

“सिर्फ इसलिए कि एक अपराध सी.आर.पी.सी. की धारा 320 के तहत शमन करने योग्य है, फिर भी अदालत अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अपने विवेक का उपयोग कर सकती है।”

भाग्य दास बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य (2019), के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि एक अदालत के पास एक अपराध को शमन करने के लिए एक याचिका को खारिज करने का विवेक है, भले ही आरोप अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 320 के तहत शमन करने योग्य हो।

सर्वोच्च न्यायालय ने कई फैसलों का हवाला दिया, विशेष रूप से ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य (2012), जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि उच्च न्यायालय को आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से बचना चाहिए जहां कार्य जघन्य और गंभीर है या जब सार्वजनिक हित का मुद्दा बीच में हो। कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है यदि अपराध केवल एक नागरिक मुद्दा है, वाणिज्यिक (कमर्शियल) गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले अपराध है जब नुकसान प्रकृति में व्यक्तिगत है, और पक्षों ने अपनी असहमति को सुलझा लिया है। उच्च न्यायालय द्वारा आपराधिक कार्यवाही को रोका जा सकता है यदि सजा की संभावना कम है और आपराधिक मामले के जारी रहने से अभियुक्तों के साथ घोर अन्याय होगा।

ज्ञान सिंह मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने नरिंदर सिंह मामले (1947) में ध्यान में रखा था, और यह नोट किया गया था कि जहां पक्ष एक समझौते पर पहुंच गए हैं, तो उच्च न्यायालय सी.आर.पी.सी. की धारा 482 के तहत अपने अंतर्निहित (इन्हेरेंट) अधिकार का उपयोग गैर शमनीय अपराधों के मामलों में भी आपराधिक कार्यवाही को रोकने के लिए कर सकता है। हालाँकि, इस शक्ति का सावधानी से उपयोग किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आई.पी.सी. की धारा 307 के तहत अपराध समाज के खिलाफ है, तो उच्च न्यायालय इस बात पर विचार कर सकते हैं कि क्या आई.पी.सी. की धारा 307 को शामिल करना केवल दिखाने के लिए ही है या इसे साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। अंत में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि नरिंदर सिंह मामले में फैसले की समग्र रूप से और पूरे मामले के संदर्भ में व्याख्या की जानी चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषित करने में सावधानी बरती है कि कौन से आपराधिक मामले शमन करने योग्य हैं, और उच्च न्यायालय ने अपराधों को खत्म करने के लिए पर्याप्त मानकों (स्टैंडर्ड) को निर्धारित किया है। रमेशचंद्र जे, ठक्कर बनाम एपी झवेरी और अन्य (1972) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्थापित किया कि यदि एक अपराधी को मामले को शमन करने के आधार पर बरी कर दिया जाता है और बाद में पता चलता है कि शमन करना अमान्य था, तो उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण शक्ति द्वारा उसे बरी किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि एक गैर-शमनीय अपराधी को अनुचित आधार पर बरी कर दिया जाता है, तो उच्च न्यायालय दोषमुक्ति को पलट सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने वाई. सुरेश बहन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1987) में एक गैर-शमनीय अपराध, यानी आई.पी.सी. की धारा 326 में समझौते की अनुमति दी। न्यायालय ने इसे एक विशेष मामला करार दिया और कहा कि इसे एक मिसाल के तौर पर माना जाना चाहिए।

अन्य कानूनों के तहत शमन करने योग्य अपराधों के प्रावधान

कंपनी अधिनियम, 2013 

अपराधो को शमन करना, समझौता करने की एक प्रक्रिया है जिसमें अपराधी को मुक़दमे का सामना करने के बजाय पैसा देने का विकल्प दिया जाता है, जिससे लंबी कानूनी लड़ाई को रोका जा सकता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 441 के तहत अपराधों को शमन करने को संबोधित किया गया है। 2013 के कंपनी अधिनियम की धारा 441 के तहत अपराधों के शमन करने को शामिल किया गया है। धारा 441 (1) के अनुसार, एक अपराध जिसे केवल जुर्माने से दंडित किया जा सकता है, उसे ही शमन किया जा सकता है। कंपनी कानून के तहत शमन करने योग्य अपराध कोई नई अवधारणा नहीं है; 1956 के कंपनी अधिनियम की धारा 621A में पहले से ही तुलनीय प्रावधान थे।

कोविड-19 महामारी के दौरान 2013 कंपनी अधिनियम द्वारा लगाए गए विधायी, प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) और तकनीकी आवश्यकताओं के पालन में कंपनियों को कई कठिनाइयाँ हुईं। कोविड-19 महामारी के दौरान इस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत निगमों पर अनुपालन के बोझ को शमन करने के लिए, भारत सरकार ने कहा है कि ऐसे कई अपराध जो प्रकृति में शमन करने योग्य हैं, को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जाएगा।

आयकर (इनकम टैक्स) अधिनियम, 1961 

शब्द ‘सक्षम प्राधिकारी (अथॉरिटी)’ का उपयोग अपराध को शमन करने के अधिकार के साथ इकाई (एंटिटी) को संदर्भित करने के लिए किया जाएगा। धारा 279(2) के अनुसार, किसी भी अधिनियम से संबंधित अपराध को किसी भी समय, चाहे कानूनी कार्रवाई शुरू करने से पहले या बाद में, शमन किया जा सकता है।

कानूनी सेवा प्राधिकरण (लीगल सर्विसेज अथॉरिटी) अधिनियम, 1987 

कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 19(5) के अनुसार, लोक अदालत के पास किसी भी कानून के तहत दंडनीय अपराध से जुड़े किसी भी मामले पर विवाद के पक्षों के बीच मूल्यांकन और समझौते तक पहुंचने की शक्ति है।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन (फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट) अधिनियम (फेमा), 1999

फेमा अधिनियम के तहत दिए गए किसी भी दिशा-निर्देश, निर्देश, अधिसूचना या आदेश के उल्लंघन को अधिनियम का उल्लंघन माना जाता है। इस तरह के उल्लंघनों को शमन करने के लिए स्वैच्छिक रूप से उल्लंघन को स्वीकार करना, इसके लिए दोष स्वीकार करना और क्षतिपूर्ति का अनुरोध करना शामिल है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को धारा 13 के तहत उस शब्द की अधिनियम के तहत दी गई परिभाषा के किसी भी उल्लंघन को शमन करने की अनुमति है। यह एक स्वैच्छिक अभ्यास है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा उल्लंघन का प्रयास करने और उसे शमन करने के लिए किया जाता है। फेमा के तहत उल्लंघन को शमन करने के अन्य फायदे हैं, जैसे मुकदमेबाजी से बचना, अतिरिक्त कार्रवाइयां शुरू करने में देरी करना और न्यायिक प्रणाली पर भार कम करना।

शमनीय अपराधों का वैधीकरण (डिक्रिमिनलाइजेशन)

अपराध को शमन करना भी वैधीकरण सिद्धांत के तहत काम करता हैं क्योंकि यह अभियुक्तों को आरोपों से मुक्त करता है। हो सकता है कि दोषी पक्ष ने शिकायतकर्ता को वापस भुगतान कर दिया हो, या पक्षों का एक दूसरे के प्रति रवैया पूरी तरह से बदल गया हो। इन स्थितियों को पहचानने और विशेष प्रकार के अपराधों के लिए आपराधिक जांच को समाप्त करने का एक तरीका प्रदान करने के लिए, आपराधिक कानून को बदलना होगा। यही अपराधों को शमन करने का औचित्य (जस्टिफिकेशन) है। हो सकता है कि पीड़ित को अपराधी से मुआवजा मिला हो, या पक्षों की एक दूसरे के प्रति धारणा बेहतर के लिए बदल गई हो। कौन से अपराध को शमनीय माना जाना चाहिए या नहीं माना जाना चाहिए, इस प्रश्न का विधायक अक्सर सामना करते हैं। इस मुद्दे को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा गया है, इसके फायदे और कमियों का मूल्यांकन किया गया है, और एक तर्कसंगत और उचित विकल्प बनाया गया है। सामान्य तौर पर, ऐसे अपराधों से समझौता करने की अनुमति नहीं है जो राज्य की सुरक्षा को खतरे में डालते हैं या समुदाय पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। इसके अलावा, जघन्य अपराधों को शमन करने के लिए कोई विकल्प नहीं है। अपराध के शमन होने के बाद अपराधी को निर्दोष घोषित किया जाता है, और अदालत मामले पर अधिकार क्षेत्र खो देती है।

न्यायिक घोषणाएं 

  1. महालोव्या गौबा बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2021)– महालोव्या गौबा बनाम पंजाब राज्य और अन्य के मामले में अदालत के फैसले के अनुसार, शमन करने योग्य अपराधों से जुड़े आपराधिक मामलों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
  • सी.आर.पी.सी. की धारा 320(1) के तहत अदालत की मंजूरी के बिना आपराधिक मामलों का निपटारा, और
  • सी.आर.पी.सी. की धारा 320 (2) के तहत अदालत की अनुमति से हल किए जा सकने वाले आपराधिक मामलों की सुनवाई लोक अदालत द्वारा की जा सकती है। इन मामलों को सी.आर.पी.सी. की धारा 320(1) के तहत अदालत की अनुमति के बिना या सी.आर.पी.सी. की धारा 320(2) के तहत अदालत की अनुमति से सुलझाया जा सकता है।

2. बीएस जोशी बनाम हरियाणा राज्य (2003) – इस मामले में अभियुक्तों पर ऐसे अपराधों का आरोप लगाया गया था जिन्हें शमन नहीं किया जा सकता था। हालाँकि, अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के बाद, पक्षों ने उच्च न्यायालय से मामले को रद्द करने के लिए कहा था। हालांकि, अदालत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, और मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाया गया जहां फैसला पलट दिया गया और मामला खारिज कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के तर्क के अनुसार, धारा 482 न्याय के हितों को आगे बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय को कुछ अंतर्निहित शक्तियाँ देती है। भले ही अपराध कुछ परिस्थितियों में शमनीय नहीं है, फिर भी उच्च न्यायालय कानून को बनाए रखने के लिए धारा 482 के तहत मामले को रद्द कर सकता है। न्याय की सेवा धारा 320 द्वारा बाधित नहीं की जा सकती है। गैर शमनीय अपराधों की स्थिति में पक्षों के बीच समझौते की अनुमति देना कहीं अधिक सटीक है और प्रत्येक मामले की बारीकियों पर आधारित है।

3. निखिल मर्चेंट बनाम सीबीआई (2008) – इस मामले में बीएस जोशी मामले में लिए गए फैसले की फिर से पुष्टि की गई थी। इस मामले में अभियुक्तों के खिलाफ आरोपों में शमनय और गैर शमनय दोनों तरह के अपराध शामिल थे। हालाँकि, आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल करने से पहले, पक्ष एक समझौते पर पहुँचे थे और चाहते थे कि प्रतिवादी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी जाए। उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें रद्द करने से इनकार करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक कार्यवाही को पलट दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 320 द्वारा वहन की जाने वाली तकनीकी के कारण न्याय के हितों की अवहेलना नहीं की जा सकती है कि कब कोई पक्ष कार्यवाही को रद्द करने के लिए आगे बढ़ सकता है और कब कोई पक्ष किसी समझौते पर पहुंच सकता है। आपराधिक प्रक्रियाओं को जारी रखने का कोई फायदा नहीं है जब पक्ष पहले ही एक समझौते पर पहुंच चुके हैं, जिसकी वैधता औपचारिक रूप से अदालत द्वारा सत्यापित (वेरिफाई) की गई है।

4. बिस्वभान दास बनाम गोपेन चंद्र हजारिका और अन्य (1966)- बिस्वभान दास बनाम गोपेन चंद्र हजारिका और अन्य में, तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला किया कि इस तरह के अपराध के लिए उचित उपाय को शमन किया जा सकता है यदि यह शिकायतकर्ता को उनकी व्यक्तिगत क्षमता में प्रभावित करता है।

5. शिजी @ पप्पू बनाम राधिका (2011) – सर्वोच्च न्यायालय ने शिजी @ पप्पू बनाम राधिका के हाल ही में तय मामले में फिर से पुष्टि की कि सिर्फ इसलिए कि एक अपराध प्रकृति में शमन करने योग्य नहीं है, उच्च न्यायालय को अभियुक्तों के अभियोजन को धारा 482 के तहत इसका अंतर्निहित अधिकार का उपयोग करने रद्द नहीं कर सकता है। 

निष्कर्ष

एक अपराध समाज और राज्य के खिलाफ किया गया एक मौलिक गलत है। परिणामस्वरूप, अभियुक्त और अपराध के विशिष्ट पीड़ित के बीच हुए किसी भी समझौते से अभियुक्त को आपराधिक दोष से मुक्त नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, जहां अपराध मुख्य रूप से एक निजी प्रकृति के हैं और प्रकृति में विशेष रूप से गंभीर नहीं हैं, संहिता उनमें से कुछ को शमनीय अपराधों के रूप में और अन्य को केवल न्यायालय की स्वीकृति के साथ शमन योग्य मानती है। अधिकांश शमनीय अपराध असंज्ञेय हैं, हालांकि सभी असंज्ञेय अपराध शमनीय नहीं हैं। हालांकि, ऐसे अपराध जिन्हें केवल अदालत की सहमति से ही शमन किया जा सकता है, आमतौर पर संज्ञेय होते हैं, हालांकि सभी संज्ञेय अपराधों को शमन नहीं किया जा सकता है। शमनीय अपराधों के दायरे में आने के लिए, अपराध की प्रकृति अत्यधिक गंभीर नहीं होनी चाहिए। सामान्य रूप में, अपराध प्रकृति में निजी होने चाहिए। निजी अपराधों को ऐसे अपराधों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनका किसी व्यक्ति की क्षमता या पहचान पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। ऐसे अपराधों को आम जनता को खतरे में नहीं डालना चाहिए या राज्य की भलाई के लिए हानिकारक नहीं होना चाहिए। बलात्कार, हत्या और डकैती सभी जघन्य अपराध हैं जिन्हें शमन नहीं किया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफ.ए.क्यू.) 

सी.आर.पी.सी. के अनुसार, अपराध को शमन करने का अधिकार किसके पास है?

धारा 320 के अनुसार अपराध के पीड़ित व्यक्ति द्वारा शमन किया जा सकता है। अभियुक्त बच्चे, मृत व्यक्ति, या विकलांग व्यक्ति के माता-पिता और कानूनी प्रतिनिधि अदालत की मंजूरी से शमन कर सकते हैं।

धारा 320 के तहत अपराध का शमन कौन कर सकता है यदि ऐसा करने के लिए अन्यथा सक्षम व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है?

जब कोई व्यक्ति जो अन्यथा धारा 320 के तहत अपराध को शमन करने में सक्षम होता है, मृत हो जाता है, तो धारा 320(4)(b) बताती है कि उस व्यक्ति का कानूनी प्रतिनिधि, न्यायालय की मंजूरी के साथ, उस अपराध को शमन कर सकता है।

धारा 320 के तहत शमन करने का क्या परिणाम होता है?

धारा 320(8) के अनुसार, अपराध के शमन का वही प्रभाव होगा जो अभियुक्त के बरी होने का होता है।

संदर्भ 

 

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