यह लेख एडवांस्ड कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्टिंग, नेगोशियेशन एंड डिस्प्यूट रेजोल्यूशन में डिप्लोमा कर रहे Dheeraj Joshi द्वारा लिखा गया है और इसे Oshika Banerji (टीम लॉसिखो) द्वारा संपादित किया गया है। इस लेख में मध्यस्थता न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) की शक्ति और कार्यों पर चर्चा की गई हैं। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash के द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय
आज की दुनिया में जहां एक आम आदमी के लिए समय कीमती है, वहीं कंपनियों के लिए भी यह बहुत कीमती है, चाहे वे कितनी भी बड़ी या छोटी क्यों न हों। नियमित अदालतों के साथ समस्या यह है कि उन पर मामलों का अत्यधिक बोझ होता है, इसलिए जहां समय एक महत्वपूर्ण कारक है उन मामलों के लिए अदालतों का सहारा लेना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। इस स्थिति का समाधान करने के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) पद्धति को अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर अपनाया जाता है। मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) एक प्रकार की एडीआर पद्धति है जहां एक निजी विवाद के पक्षकार एक तटस्थ (न्यूट्रल) व्यक्ति को मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर) के रूप में चुनते हैं जो एक मध्यस्थ पंचाट (अवार्ड) पारित करके विवाद का फैसला करता है जो पक्षों पर बाध्यकारी होता है। पक्ष अपने समझौते में विशेष रूप से एक विवाद समाधान खंड का उल्लेख कर सकते हैं जो समझौते में एक अतिव्यापी (ओवरलैपिंग) खंड है या वे मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 7 के तहत अलग से एक मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। मध्यस्थता न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) नियमित अदालतों की तुलना में काफी प्रभावी हैं क्योंकि वे बहुत कम समय के भीतर पक्षों के बीच विवाद को प्रभावी ढंग से तय कर सकते हैं और बहुत लागत प्रभावी हैं।
मध्यस्थता की क्या जरूरत है
आमतौर पर हमारे मन में यह सवाल उठता है कि हम मध्यस्थता क्यों चुनते हैं, जबकि हमारे पास पहले से ही अदालतों की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है, जिसे हर किसी को न्याय दिलाने का काम सौंपा गया है। इस प्रश्न का उत्तर यह है कि भारतीय अदालतों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया अत्यधिक तकनीकी और औपचारिक है, जिससे पक्षों के बीच निजी विवादों को सुलझाने के लिए एक त्वरित और कम औपचारिक तंत्र की गुंजाइश बनती है। मध्यस्थता की कुछ मुख्य विशेषताएं हैं-
मध्यस्थता पक्षों के बीच आपसी समझौता है
जब पक्षकार कोई समझौता करते हैं तो वे उल्लेख करते हैं कि भविष्य में किसी भी विवाद की स्थिति में वे मध्यस्थता का सहारा लेंगे। मध्यस्थता तभी होती है जब समझौते के दोनों पक्ष इस पर सहमत होते हैं। कोई भी पक्ष मध्यस्थता समझौते से एकतरफा तौर पर पीछे नहीं हट सकता।
पक्ष अपने मध्यस्थ चुन सकते हैं
दोनों पक्ष या तो एक एकमात्र मध्यस्थ चुन सकते हैं या वे अपना स्वयं का मध्यस्थ चुन सकते हैं, ये मध्यस्थ फिर एक तीसरा मध्यस्थ चुनते हैं जो पीठासीन (प्रीसिडिंग) मध्यस्थ के रूप में कार्य करेगा। मध्यस्थों की संख्या सम (इवन) नहीं हो सकती। ये मध्यस्थ कानूनी क्षेत्र में अत्यधिक विशिष्ट व्यवसायी होते हैं।
मध्यस्थ तटस्थ होते हैं
पक्ष किसी भी राष्ट्रीयता के मध्यस्थों को चुन सकते हैं। यह मध्यस्थता कार्यवाही की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए है। इसके अलावा, पक्ष मध्यस्थता कार्यवाही के संचालन का स्थान, कार्यवाही में पालन की जाने वाली भाषा और पक्षों पर लागू होने वाले कानून का भी चयन कर सकते हैं।
मध्यस्थता की कार्यवाही गोपनीय होती है
अदालतों के विपरीत जहां मामले की कार्यवाही खुली अदालत में होती है, मध्यस्थता की कार्यवाही गुप्त रूप से होती है। पक्षों के बीच व्यापार रहस्यों का खुलासा, मध्यस्थता का स्थान और साथ ही मध्यस्थता पंचाट सभी कारकों को गुप्त रखा जाता है।
मध्यस्थ पंचाट अंतिम होता हैं
चूंकि पक्षों ने स्वयं मध्यस्थ न्यायाधिकरण में जाने के लिए सहमति व्यक्त की होती है, इसलिए इसके द्वारा पारित निर्णय अंतिम होता है और पक्षों पर बाध्यकारी होता है। न्यूयॉर्क कन्वेंशन, 1958 के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थ पंचाट द्वारा पारित पंचाट को कुछ अपवादों के साथ घरेलू अदालतों द्वारा लागू किया जाता है।
मध्यस्थता का यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल
अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता पर यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल कानून (1985) का गठन राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कानूनों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अपने मध्यस्थता कानूनों में सुधार और आधुनिकीकरण (मॉडर्नाइजेशन) करने में सहायता करने के लिए किया गया है। मॉडल कानून में आठ (8) अध्यायों में शामिल छत्तीस (36) अनुच्छेद शामिल हैं, जो मध्यस्थता समझौते की पूरी श्रृंखला, मध्यस्थ न्यायाधिकरण की संरचना और अधिकार क्षेत्र, मध्यस्थ पंचाटों की मान्यता और प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) पर अदालत के हस्तक्षेप के लिए मध्यस्थों के कर्तव्यों और दायित्वों को शामिल करते हैं। यह मॉडल कानून अधिकांश देशों के बीच अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता प्रक्रिया का पालन करने की इच्छा का प्रतीक है।
मध्यस्थ समझौता
मध्यस्थ न्यायाधिकरण की शक्तियों और कार्यों को समझाने से पहले आइए पहले यह बताएं कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की कौन सी धाराएं इसमें शामिल हैं। पक्षों के बीच मध्यस्थता समझौते को 1996 के अधिनियम की धारा 7 के तहत परिभाषित किया गया है। अधिनियम की धारा 7 के अनुसार पक्ष या तो एक अलग समझौते के रूप में अनुबंध में मध्यस्थता समझौते का उल्लेख कर सकते हैं या भविष्य के किसी भी विवाद के मामले में समझौते में एक खंड का उल्लेख कर सकते हैं। यह समझौता लिखित रूप में होगा यदि यह पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेजों या पक्षों के बीच संचार के किसी अन्य माध्यम में शामिल है।
यदि पक्ष अपने विवादों के संबंध में किसी न्यायिक प्राधिकारी के समक्ष संपर्क करते हैं तो अधिनियम की धारा 8 के तहत न्यायिक प्राधिकारी पक्षों को मध्यस्थ न्यायाधिकरण के पास भेज सकता है यदि पक्षों ने मध्यस्थता के बारे में अपने समझौते में विशेष रूप से उल्लेख किया है। मध्यस्थता पंचाट के पहले, उस समय पर या पारित होने के बाद, लेकिन इसके लागू होने से पहले, अभिभावक द्वारा नाबालिग या विकृत दिमाग वाले व्यक्तियों की हिरासत, किसी भी संपत्ति या चीजों की हिरासत, संरक्षण और निरीक्षण, जो मध्यस्थता समझौते का विषय है, मध्यस्थता में विवाद में राशि प्राप्त करना, अंतरिम निषेधाज्ञा (इनजंक्शन), प्राप्तकर्ता की नियुक्ति या किसी अन्य मामले के बारे में अंतरिम उपायों के लिए अधिनियम की धारा 9 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है, जैसा कि अदालत उचित समझती है।
मध्यस्थ न्यायाधिकरण की संरचना
मध्यस्थ न्यायाधिकरण क्या है
मध्यस्थ न्यायाधिकरण न्यायाधीशों का एक पैनल है जिसे मध्यस्थ कहा जाता है जो अनुबंध में पक्षों के बीच विवादों का फैसला करने के लिए जिम्मेदार होता है। अधिनियम का अध्याय 03 मध्यस्थ न्यायाधिकरण की संरचना से संबंधित है।
मध्यस्थ की नियुक्ति, संख्या और बरखस्ती
अधिनियम की धारा 10 में कहा गया है कि पक्ष मध्यस्थों की संख्या निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते कि वह संख्या सम न हो, जिस स्थिति में मध्यस्थ न्यायाधिकरण में मात्र एक मध्यस्थ शामिल होगा। अधिनियम की धारा 11 कहती है कि किसी भी राष्ट्रीयता का व्यक्ति मध्यस्थ हो सकता है, जब तक कि पक्षों द्वारा अन्यथा सहमति न हो। पक्ष मध्यस्थ नियुक्त करने की प्रक्रिया पर सहमत होने के लिए स्वतंत्र हैं, ऐसा न होने पर तीन मध्यस्थों वाले मध्यस्थता में प्रत्येक पक्ष एक मध्यस्थ नियुक्त करेगा और ये नियुक्त मध्यस्थ तीसरे मध्यस्थ को नियुक्त करेंगे जो पीठासीन मध्यस्थ होगा। मध्यस्थ की नियुक्ति को चुनौती दी जा सकती है यदि उसकी स्वतंत्रता या निष्पक्षता के बारे में उचित संदेह हैं या उसके पास पक्षों द्वारा सहमत योग्यताएं नहीं हैं। अधिनियम की धारा 15 कहती है कि मध्यस्थ को समाप्त किया जा सकता है यदि-
- वह किसी भी कारण से कार्यालय से हट जाता है
- पक्षों के या उनके समझौते के अनुसार
- जहां उसका जनादेश समाप्त हो जाता है और एक स्थानापन्न मध्यस्थ को उन नियमों के अनुसार नियुक्त किया जाएगा जो प्रतिस्थापित किए जा रहे मध्यस्थ की नियुक्ति पर लागू थे।
मध्यस्थ न्यायाधिकरण की शक्तियाँ और कार्य
अपने अधिकार क्षेत्र पर शासन करने की शक्ति
मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व और वैधता के लिए किसी भी चुनौती पर निर्णय लेने के लिए एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण के अधिकार को अधिनियम की धारा 16 में संबोधित किया गया है। मध्यस्थता खंड, जिसे अनुबंध की अन्य शर्तों से एक अलग समझौता माना जाता है, मध्यस्थ न्यायाधिकरण के फैसले से अप्रभावित है कि अनुबंध शून्य और अप्रवर्तनीय है।
वेलिंगटन एसोसिएट्स लिमिटेड बनाम श्री किरीत मेहता (2000) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मध्यस्थता अधिनियम, 1996 की धारा 33 यह स्पष्ट करती है कि मध्यस्थता समझौते के “अस्तित्व” के संबंध में कोई भी विवाद केवल न्यायालय में आवेदन द्वारा हल किया जा सकता है, न कि मध्यस्थ द्वारा। 1996 के मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 16 ने मध्यस्थ की अक्षमता को समाप्त कर दिया है। इसलिए एक अनुबंध में मध्यस्थता खंड के “अस्तित्व” के बारे में निर्णय अब धारा 16 के तहत मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा किया जा सकता है।
अंतरिम उपाय करने की शक्ति
धारा 17 अंतरिम उपायों का आदेश देने के लिए मध्यस्थ न्यायाधिकरण की शक्ति बताती है, यदि-
- मध्यस्थता कार्यवाही के दौरान एक पक्ष मध्यस्थता कार्यवाही के लिए नाबालिग और विकृत दिमाग वाले व्यक्ति के लिए अभिभावक की नियुक्ति के लिए मध्यस्थ न्यायाधिकरण में आवेदन करता है; या
- किसी भी सामान के संरक्षण, अंतरिम हिरासत या बिक्री के लिए अंतरिम उपाय जो मध्यस्थता समझौते की विषय वस्तु हैं; या
- विवाद में राशि सुरक्षित करना या रिसीवर की नियुक्ति और अंतरिम निषेधाज्ञा।
मौखिक सुनवाई करने की शक्ति
अधिनियम की धारा 24 के अनुसार, मध्यस्थ न्यायाधिकरण यह निर्धारित कर सकता है कि कार्यवाही केवल कागजात और अन्य सामग्री के आधार पर की जाए या सबूत पेश करने के लिए या मौखिक तर्क के लिए मौखिक सुनवाई की जाए। पक्षों को सुनवाई से पहले सूचित किया जाना चाहिए, और एक पक्ष द्वारा मध्यस्थ न्यायाधिकरण को प्रस्तुत की गई कोई भी टिप्पणी या सामग्री दूसरे पक्ष के साथ साझा की जानी चाहिए।
एकपक्षीय कार्यवाही करने की शक्ति
जहां पर्याप्त कारण बताए बिना, अधिनियम की धारा 25 के तहत, दावेदार या प्रतिवादी अधिनियम की धारा 23 की उप-धारा (1) के तहत अपने दावे या बचाव के बयान को संप्रेषित (कम्युनिकेट) करने में विफल रहता है, तो मध्यस्थ न्यायाधिकरण एकपक्षीय कार्यवाही करेगा।
किसी विशेषज्ञ को नियुक्त करने की शक्ति
अधिनियम की धारा 26 में कहा गया है कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारित किए जाने वाले विशिष्ट मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिए मध्यस्थ न्यायाधिकरण एक या अधिक विशेषज्ञों को नियुक्त कर सकता है। विशेषज्ञ, अपनी मौखिक या लिखित रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद, मौखिक सुनवाई में भाग लेगा जहाँ पक्षकार उससे प्रश्न पूछेंगे। विशेषज्ञ किसी पक्ष के अनुरोध पर उसके कब्जे में मौजूद सभी दस्तावेज, सामान या अन्य संपत्ति को जांच के लिए उस पक्ष के समक्ष रखता है।
मध्यस्थ पंचाट देने की शक्ति
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के अध्याय 06 में धारा 28 से 33 विशेष रूप से मध्यस्थ पंचाटों के बारे में बताती है। पक्षों के बीच विवाद की स्थिति में कौन से नियम लागू होते हैं, यह यहां एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यदि मध्यस्थता भारत में होती है, तो मध्यस्थ न्यायाधिकरण अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक (कमर्शियल) मध्यस्थता के अलावा अन्य सभी मध्यस्थताओं में भारतीय मूल कानून के अनुसार विवाद का निर्णय करेगा, लेकिन यह अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में पक्षों द्वारा स्थापित नियमों के अनुसार विवाद का निर्णय करेगा।
मध्यस्थ प्रक्रिया में मध्यस्थ के अधिकांश सदस्यों को निर्णय पर सहमत होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता से जुड़े मामलों के अलावा, मध्यस्थ न्यायाधिकरण को प्रारंभिक शिकायत दर्ज करने की तारीख के एक वर्ष के भीतर पंचाट जारी करना होगा। यदि मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान पक्षकार किसी समझौते पर पहुंचते हैं, तो मध्यस्थ न्यायाधिकरण को कार्यवाही समाप्त करनी होगी और समझौते को मध्यस्थता पंचाट के रूप में दर्ज करना होगा।
इससे पहले कि इसे अंतिम माना जाए, मध्यस्थ न्यायाधिकरण के सभी सदस्यों को मध्यस्थ पंचाट पर हस्ताक्षर करना होगा। मध्यस्थ पंचाट का आधार पंचाट में ही बताया जाना चाहिए। मध्यस्थता पंचाट दिए जाने के बाद प्रत्येक पक्ष को उसकी एक हस्ताक्षरित प्रति दी जानी चाहिए।
मध्यस्थता कार्यवाही के संबंध में मध्यस्थ न्यायाधिकरण के पास यह निर्धारित करने का विवेक होगा कि क्या लागत एक पक्ष द्वारा दूसरे को देय है, और ऐसी लागतों की राशि और ऐसी लागतों का भुगतान कब किया जाना है। मध्यस्थ कार्यवाही अंतिम मध्यस्थ पंचाट की घोषणा या मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश द्वारा समाप्त कर दी जाएगी जब दावेदार अपना दावा वापस ले लेता है, पक्ष कार्यवाही की समाप्ति पर सहमत होते हैं या न्यायाधिकरण को पता चलता है कि कार्यवाही जारी रखना अनावश्यक या असंभव हो गया है।
मध्यस्थ न्यायाधिकरण के कर्तव्य
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत मध्यस्थ न्यायाधिकरणों को दी गई शक्तियों के अलावा, इन न्यायाधिकरणों के पास पक्षों के प्रति कुछ दायित्व भी हैं। ये कर्तव्य नीचे दिए गए हैं:
निष्पक्ष रहने का कर्तव्य
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 18 कहती है कि निष्पक्ष होना एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण का कर्तव्य है, इसका मतलब है कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण प्रत्येक पक्ष के साथ समान व्यवहार करेगा और प्रत्येक पक्ष को अपना मामला प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया जाएगा।
मध्यस्थता का समय, स्थान और भाषा चुनने का कर्तव्य
अधिनियम की धारा 20 में कहा गया है कि पक्ष अपनी सुविधा के अनुसार मध्यस्थता का स्थान चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो मामले की परिस्थितियों के संबंध में ऐसी जगह निर्धारित करना मध्यस्थ न्यायाधिकरण का कर्तव्य है। सैंशिन केमिकल्स इंडस्ट्री बनाम ओरिएंटल्स कार्बन्स एंड केमिकल्स (2001) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 2(6) और धारा 20 को संयुक्त रूप से पढ़ने से यह निष्कर्ष निकलता है कि, भले ही पक्ष मध्यस्थता का स्थान चुनने के लिए स्वतंत्र थीं, लेकिन उन्हें यह निर्णय लेने के लिए किसी संस्था सहित किसी को भी अधिकृत करने का अधिकार था। मौजूदा मामले में, संयुक्त समिति एक ऐसी ही संस्था है, और इसका निर्णय अपील के अधीन नहीं होगा। धारा 22 के अनुसार, यदि पक्ष उनमें से एक या अधिक पर सहमत होने में असमर्थ हैं, तो मध्यस्थ न्यायाधिकरण मध्यस्थता में उपयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं का चयन करेगा।
पक्षों द्वारा ज्ञात किए जाने वाले प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करने का कर्तव्य
जब एक मध्यस्थ को इस तरह से नियुक्त किया जाता है तो यह उसका कर्तव्य है कि वह अधिनियम की धारा 12 के तहत, सभी अतीत और वर्तमान संबंधों का लिखित रूप में खुलासा करेगा, चाहे पक्षों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से या विवाद में विषय वस्तु जो मध्यस्थता कार्यवाही के लिए पर्याप्त समय देने की उसकी क्षमता को प्रभावित करेगी।
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम ब्रिटिश मरीन पीएलसी (2016) के मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने मूल्यांकन किया कि क्या एटी सदस्यों का यह तर्क कि वे पहले से ही किए गए खुलासे के अलावा कोई अन्य खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं हैं, वैध था या नहीं। दूसरे शब्दों में, न्यायालय ने निर्णय लिया कि क्या मध्यस्थों को पांचवीं अनुसूची के मानदंडों, अर्थात् उस अनुसूची के आइटम 24 का पालन करना आवश्यक था या नहीं। न्यायालय ने धारा 12(1) के स्पष्टीकरण 2 को ध्यान में रखा था, जो उन स्थितियों में संभावित अपवादों की अनुमति देता है जहां पक्ष आम तौर पर विभिन्न उदाहरणों के लिए एक ही मध्यस्थ चुनती हैं।
पंचाट को सही करने का कर्तव्य
धारा 33 कहती है कि यदि कोई पक्ष मध्यस्थ पंचाट की प्राप्ति से तीस (30) दिनों के भीतर, दूसरे पक्ष को नोटिस देकर, मध्यस्थ न्यायाधिकरण से पंचाट में किसी भी कम्प्यूटेशनल, लिपिकीय (क्लेरिकल) या मुद्रण (टाइपोग्राफिकल) संबंधी त्रुटि को ठीक करने का अनुरोध करता है यदि निर्णय के किसी विशिष्ट बिंदु की व्याख्या देनी है, तो मध्यस्थ न्यायाधिकरण का यह कर्तव्य है कि वह सुधार करे या व्याख्या दे जो मध्यस्थ पंचाट का हिस्सा बनेगी।
कदाचार से बचने का कर्तव्य
मध्यस्थ न्यायाधिकरण का यह कर्तव्य है कि वह किसी भी ऐसे निर्णय को पारित करने से बचें जो सार्वजनिक नीति के विपरीत हो। उसे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार में शामिल नहीं होना चाहिए और उसे प्राकृतिक न्याय के नियम को भी नहीं तोड़ना चाहिए।
निष्कर्ष
आधुनिक समय में जहां पक्षों के बीच विवाद जटिल हैं, मध्यस्थ न्यायाधिकरण न्याय प्रदान करने के कार्य में नियमित अदालतों की मदद कर रहे हैं। पक्षों के वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए मध्यस्थता न्यायाधिकरणों को शक्तियां प्रदान की जाती हैं, इसके अलावा इन न्यायाधिकरणों के पास कर्तव्य भी हैं जिनका पालन करना होता है। विभिन्न देशों के बीच बने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कानून और सम्मेलन इस क्षेत्र को अतीत से वर्तमान तक विकसित करते हैं और यह विकसित होता रहेगा।
संदर्भ
- UNCITRAL Model Law on International Commercial Arbitration (1985), with amendments as adopted in 2006
- https://viamediationcentre.org/readnews/MTgy/Duties-of-an-arbitrator-in-an-arbitration
- https://icmai.in/upload/PPT_Chapters_RCs/Jaipur/Jaipur_26072015.pdf
- https://legislative.gov.in/sites/default/files/A1996-26.pdf