एसिड अटैक और भारत में कानून

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Indian penal Code
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यह लेख यू.पी इ.एस. की छात्रा Surbhi Agarwal ने लिखा है। इस लेख में वह भारत में एसिड अटैक से संबंधित कानूनों, अमेंडमेंट और सजा पर चर्चा करती हैं और साथ ही कुछ ऐतिहासिक मामलों के बारे में भी बताती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

अपराध, अपराध, अपराध, हर जगह अपराध शब्द का इस्तेमाल पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा किया जा रहा है। एक छोटे से शब्द ‘अपराध’ ने दूसरों के जीवन में इतना महत्व पैदा कर दिया है कि सबके मुंह से एक ही शब्द सुनाई देता है। ऐसे अपराध के लिए कौन जिम्मेदार हैं? हम किसे दोष दे सकते हैं? इसका सीधा सा जवाब है हम लोग (वी द पीपल)। अपराध कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे भगवान ने बनाया है; इसे मनुष्य ने ही बनाया है। आज हम जिस हीनियस अपराध का सामना कर रहे हैं, उसके लिए केवल मनुष्य ही जिम्मेदार है। अपराध कोई ऐसी चीज नहीं है जो हमारे लिए नई हो बल्कि अपराध करने के तरीके में सुधार किया गया है। शहरी क्षेत्रों में एक समय था, जब लोग घर के कामों में एसिड का इस्तेमाल करते थे लेकिन अब एसिड का इस्तेमाल दूसरे तरीकों से भी किया जा रहा है और अब इसे लोगों के जीवन को तबाह करने के लिए भी इस्तेमाल में लिया जा रहा है।

एसिड फेंकना समाज में अपराध का सबसे शातिर (विशियस) रूप है। पिछले कुछ वर्षों में एसिड अटैक में तेजी से वृद्धि (राईस) हुई है और हमेशा की तरह ज्यादातर पीड़ित महिलाएं और केवल महिलाएं ही हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों पर एसिड से हमला करने की खौफनाक हरकत होती रही है। महिलाओं के जीवन का शोषण (एक्सप्लॉयटेशन) करने के लिए पुरुष ने वैकल्पिक रूप से इस कार्य का विकल्प चुना है। हाइड्रोक्लोरिक एसिड और सल्फ्यूरिक एसिड जो बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, एसिड अटैक के लिए उपयोग किये जाते है जो पीड़ित की त्वचा और यहां तक ​​कि हड्डियों को भी पिघला देते हैं। एसिड अटैक अपराध का ऐसा हीनियस रूप है, जो पीड़िता के जीवन को दयनीय (मिज़रेबल) बना देता है।

परिणाम (कंसीक्वेंसेस)

एसिड अटैक का सबसे उल्लेखनीय (नोटेबल) प्रभाव आजीवन शारीरिक विकृति (डिस्फ़िगरमेंट) है। एसिड अटैक एक प्रकार का हिंसक हमला है जिसमें शरीर को विकृत करने के इरादे से किसी अन्य व्यक्ति के शरीर पर संक्षारक पदार्थ (कोरोसिव सब्सटेंस) फेंका जाता है। मुख्य रूप से एसिड, पीड़ित के चेहरे पर फेंका जाता है, जो उन्हें जलाता है, और त्वचा के ऊतकों (टिशू) को नुकसान पहुंचाता है, वह अक्सर एक्सपोज होता है और कभी-कभी हड्डियों को भी गला देता है। इस प्रकार के अटैक का लंबा परिणाम यह होता है कि यह व्यक्ति को अंधा बना देता है, साथ ही चेहरे और शरीर पर स्थायी (पर्मनेंट) निशान भी बना देता है। एसिड अटैक, व्यक्ति के जीवन को बदतर बना देता है और यह उनके सामाजिक, आर्थिक (ऐकोनोमिक) और मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) जीवन को भी प्रभावित करता है।

एसिड हमलों के चिकित्सीय (मेडिकल) प्रभाव व्यापक (एक्सटेंसिव) हैं। एसिड अटैक ऐसा नहीं है जिसे आसानी से ठीक किया जा सकता हो, क्योंकि ज्यादातर एसिड अटैक चेहरे पर ही होते हैं, यह एसिड की सांद्रता (कंसन्ट्रेशन) पर निर्भर करता है और एसिड को पानी से अच्छी तरह से धोए जाने या न्यूट्रलाइजिंग एजेंट से बेअसर होने से पहले की अवधि पर निर्भर करता है। एसिड अटैक हमारे शरीर को पंगु (पेरालाइज़्ड) बना देता है क्योंकि यह तेजी से हमारी त्वचा, त्वचा के नीचे की वसा (फैट) की परत और कुछ मामलों में अंतर्निहित (अंडरलाइंग) हड्डियों को भी खा जाता है। पलकें और होंठ पूरी तरह से नष्ट हो सकते हैं, नाक और कान गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं।

एसिड अटैक का कानूनी प्रभाव (लीगल इफ़ेक्ट ऑफ़ एसिड अटैक)

एसिड अटैक के मामलों से निपटने के लिए पहले भारत में कोई विशेष कानून नहीं था। इंडियन पीनल कोड की धारा 326 जो अपनी इच्छा से संबंधित है खतरनाक हथियारों या साधनों से गंभीर चोट (ग्रीविअस हर्ट) पहुंचाना इस हीनियस अपराध से निपटने में इतना प्रभावी नहीं था क्योंकि इसमें एसिड अटैक शामिल नहीं है। भारत का 18वें लॉ कमीशन, जिसकी अध्यक्षता (हेड), जस्टिस ए.आर. लक्ष्मणन, ने तब इंडियन पीनल कोड में एक नई धारा 326A और 326B और इंडियन एविडेंस एक्ट में धारा 114B का प्रस्ताव रखा।

धारा 326 की परिभाषा का दायरा बहुत छोटा है और यह एसिड अटैक के मुद्दे से पर्याप्त रूप से निपट नहीं पाती क्योंकि:

  • यह एसिड अटैक के कारण से लगी विभिन्न प्रकार की चोटों को कवर नहीं करता है। 
  • यह धारा, एसिड अटैक को प्रशासित (एडमिनिस्ट्रिंग) करने, यानी इसकी योजना बनाने के कार्य को कवर नहीं करती है।
  • धारा यह भी निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) नहीं करती है कि जुर्माना किसे दिया जाना चाहिए। 
  • यदि कोई चोट नहीं होती है तो धारा जानबूझकर एसिड फेंकने के कार्य को दंडित नहीं करती है। 

इसके अलावा एसिड अटैक के मामलों में इंडियन एविडेंस एक्ट में धारा 114B के रूप में एक उपधारणा (प्रिजंप्शन) शामिल किया गया है। इंडियन एविडेंस एक्ट की प्रस्तावित धारा 114B को निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

एसिड अटैक के बारे में उपधारणा- यदि किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति पर एसिड फेंका है या उसे एसिड पिलाया है, तो न्यायालय यह मान लेगा कि ऐसा कार्य इरादे से किया गया है, या इस ज्ञान के साथ किया गया है कि इस तरह के कार्य करने से ऐसी चोट लगने की संभावना है, जो इंडियन पीनल कोड की धारा 326A में वर्णित है। एसिड अटैक को व्यापक परिप्रेक्ष्य (पर्स्पेक्टिव) देने के लिए यह धारा लागू की गई थी। एसिड अटैक को हाल ही में क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2013 के माध्यम से इंडियन पीनल कोड के तहत एक अलग अपराध के रूप में पेश किया गया था।

इंडियन पीनल कोड की धारा 326A के अनुसार “एसिड” में कोई भी पदार्थ शामिल है, जिसमें अम्लीय (एसिडिक) या संक्षारक चरित्र या उसकी जलती हुई प्रकृति होती है जो शारीरिक चोट के कारण निशान या विकृति या अस्थायी (टेम्परेरी) या स्थायी अक्षमता (डिसेबिलिटी) पैदा करने में सक्षम (केपेबल) है। इन हमलों के दीर्घकालिक (लॉन्ग टर्म) परिणामों में अंधापन, चेहरे और शरीर के स्थायी निशान शामिल हो सकते हैं और साथ ही दूरगामी (फार-रीचिंग) सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक कठिनाइयां भी हो सकती है। इंडियन पीनल कोड की धारा 326A और धारा 326B में सजा शामिल है जो एक आरोपी को दी जाती है, जो इस प्रकार है:

धारा 326A में एसिड फेंकने पर सजा का प्रावधान है। न्यूनतम (मिनिमम) सजा 10 साल की कैद है, जिसे जुर्माने के साथ आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

धारा 326B में एसिड फेंकने के प्रयास के लिए सजा का प्रावधान है। न्यूनतम सजा 5 साल की कैद है, इसमें जुर्माने के साथ 7 साल तक की सजा हो सकती है।

इस अमेंडमेंट में उन लोगों के लिए सजा शामिल थी, जो इस हीनियस अपराध का अभ्यास करते हैं लेकिन अमेंडमेंट व्यर्थ रहा क्योंकि लोग अभी तक इसका अभ्यास करते हैं। इसलिए ऐसे लोगो के लिए सबसे अच्छी सज़ा यही होगी की इनके साथ जैसे का तैसा ही किया जाये यानी जो लोग इस अपराध का अभ्यास करते हैं उनके साथ भी यही किया जाना चाहिए। ये सबसे अच्छी सजा होगी जो उन्हें दी जा सकती है।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आज का परिदृश्य (टुडेज सिनेरियो इन बोथ नेशनल एंड इंटरनेशनल प्लेन)

आज दुनिया के कई हिस्सों में एसिड अटैक की खबरें आती हैं। 1990 के दशक के बाद से, बांग्लादेश से, महिलाओं के लिए सबसे अधिक हमलों और घटनाओं की दर (रेट) की रिपोर्ट आईं, जिसमें 1999 और 2013 के बीच 3,512 बांग्लादेशी लोगों पर एसिड से हमला किया गया था। भारत भी अब लक्ष्मी के मामले के बाद एसिड अटैक के मामले में हाई अलर्ट पर है। 2000 में भारत में एसिड अटैक के 174 मामले थे लेकिन अब यह अचानक बढ़ गया है। हालांकि, बांग्लादेश वह देश है जहां एसिड अटैक के सबसे ज्यादा मामले हैं।

इनमें से ज्यादातर मामलों में हाइड्रोक्लोरिक और सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल किया गया था और सभी पीड़ित महिलाएं थीं। हालांकि एसिड अटैक एक ऐसा अपराध है जो पुरुष और महिला दोनों के खिलाफ किया जा सकता है, लेकिन भारत में इसका एक विशिष्ट लिंग आयाम (डाइमेंशन) है। रिपोर्ट किए गए अधिकांश एसिड अटैक महिलाओं पर किए गए हैं, विशेष रूप से युवतियों पर आरोपियों के प्रोपोजल को ठुकराने के लिए। कर्नाटक में पीड़ितों की उम्र 16 से 25 साल के बीच की बहुत कम उम्र की महिलाएं थीं, और उन पर उन पुरुषों ने हमला किया था जो उन्हें जानते थे। ज्यादातर अटैक सार्वजनिक (पब्लिक) स्थानों या घर पर हुए।

जो व्यक्ति अस्वीकृति (रिजेक्शन) का सामना नहीं कर सकता वह पीड़ित के चेहरे पर एसिड फेंक कर अपना ‘बदला’ लेता है ताकि महिला का जीवन नष्ट हो जाए। पुरुष हमारे शरीर को चोट पहुंचाने या विकृत करने के इरादे से हम पर एसिड फेंकते हैं, हमारे चेहरे जलाते हैं, हमारी नाक तोड़ते हैं, हमारी आंखें पिघलाते हैं, और खुश हो कर चले जाते हैं। हमसे बदला लेने के लिए लोग हम पर एसिड फेंकते हैं। संबंध खत्म करने और यौन उत्पीड़न (सेक्शुअल हैरेसमेंट), यौन शोषण, शादी के प्रस्ताव और दहेज की मांग से इनकार करने पर पुरुषों की भावनाएं आहत होती हैं। चूंकि एसिड मेडिकल और अन्य दुकानों पर आसानी से मिल जाता है, एसिड अटैक महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कृत्यों को करने का एक सस्ता और प्रभावी तरीका बन गया है। एसिड अटैक पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और कुछ अन्य देशों में आम है। पूरे देश में, कोई भी ग्रामीण या शहरी केंद्रों में कई दुकानों में जा सकता है और दुकानदारों से अत्यधिक कॉन्सेंट्रेटिड एसिड खरीद सकता है, और दुकानदार अपने उपभोक्ताओं (कस्टमर्स) को ऐसा अत्यधिक संक्षारक पदार्थ, बेचते समय शायद ही कुछ सोचते हैं। कई औद्योगिक (इंडस्ट्रियल) प्रक्रियाओं में कॉन्सेंट्रेटिड एसिड के उपयोग के अलावा, अत्यधिक कॉन्सेंट्रेटिड  सल्फ्यूरिक और हाइड्रोक्लोरिक एसिड इसके भी उपयोग होने के कारण आम जनता को बेचा जाता है, जो वास्तविक समस्या है।

पाकिस्तान जैसे देशों में, कॉटन के बीज से लिंट को हटाने के लिए अत्यधिक कॉन्सेंट्रेटिड एसिड का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह साफ बीज प्राप्त करने का एक सस्ता तरीका है। एसिड की पहुंच न केवल एसिड फेंकने के अपराध को बढ़ावा देने के लिए इसके उपयोग को प्रोत्साहित करती है, बल्कि ग्रामीण आबादी द्वारा एसिड का व्यापक उपयोग स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करता है, दुर्घटनाओं का कारण बनता है और पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव डालता है। ये सभी कारण सरकार को प्रचलित (प्रिवेलेंट) कॉटन बीज उपचार के अन्य विकल्प खोजने के लिए पर्याप्त तर्क प्रदान करते हैं। शहरी क्षेत्रों में, सफाई के लिए या यहां तक ​​कि नाली-खोलने के लिए एसिड का उपयोग करना एक आम घरेलू उपाय है। यदि सरकारी नीतियों (पॉलिसीस) को उनके निर्माण और बिक्री को रोकने के लिए लागू किया जाता है, तो सुरक्षित सफाई एजेंटों के उपयोग को बढ़ावा देना बहुत आसान होगा। पोइज़न एक्ट  (XII) ,1919 के तहत एसिड सहित जहरीले पदार्थों के कब्जे और बिक्री के लिए बिक्री लाइसेंस जारी किए जाते थे।

एसिड अटैक से जुड़े मामले (केसेस रिलेटेड टू एसिड अटैक)

चूंकि एसिड अटैक के अपराध पहले से बढ़े हैं, इसलिए एसिड अटैक की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध (रेस्ट्रिक्शन) लगा दिया है।

लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, के प्रमुख मामले के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने दुकानों में एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पास किया। एसिड हमलों को रोकने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने रासायनिक (केमिकल) की खुली बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी, जब तक कि विक्रेता खरीदार के पते और अन्य विवरण (डिटेल्स) और मात्रा की रिकॉर्डिंग नहीं रखता है। खरीदार द्वारा डीलर को, सरकार द्वारा जारी फोटो पहचान पत्र दिखाने और खरीद के उद्देश्य को निर्दिष्ट करने के बाद ही अब डीलर रसायन बेच सकते हैं। विक्रेता को लेन-देन के तीन दिनों के भीतर बिक्री का विवरण स्थानीय पुलिस को प्रस्तुत करना चाहिए। 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को एसिड नहीं बेचा जाना चाहिए और सभी स्टॉक को स्थानीय सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (एस.डी.एम.) के पास 15 दिनों के भीतर घोषित किया जाना चाहिए। अघोषित (अनडिक्लेयरड) स्टॉक जब्त किया जा सकता है और डिफॉल्टर पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। एसिड अटैक अब एक नॉन– बेलेबल और कॉग्निजेबल अपराध है।

22 साल की लक्ष्मी, जो एसिड अटैक सर्वाइवर थी, 2005 में दिल्ली के टोनी खान मार्केट में बस का इंतजार कर रही थी, जब दो लोगों ने उस पर एसिड फेंक दिया, क्योंकि उसने उनमें से एक को शादी करने से इनकार कर दिया था, जिससे वह विकृत हो गई। हालांकि पीड़िता और उसके माता-पिता गरीब थे, लेकिन उन्हें सौभाग्य से एक हितैषी (बेनेफेक्टर) ने मदद की, जिसने लगभग  2.5 लाख रुपए का खर्च उठाया। हालाँकि, 4 प्लास्टिक सर्जरी के बाद भी, पीड़िता की शारीरिक बनावट भयावह बनी हुई थी और उसकी शारीरिक बनावट को वैसा ही बनाने के लिए कई और सर्जरी की आवश्यकता थी। बेशक पीड़िता कभी भी वैसी नहीं दिख सकती जैसी वह अटैक से पहले थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्टेट को एसिड अटैक पीड़िता को, चिकित्सा उपचार (मेडिकल ट्रीटमेंट) और देखभाल के बाद पुनर्वास (रिहेबिलिटेशन) के लिए 3 लाख रुपये देने का निर्देश दिया और एक घटना के 15 दिनों के भीतर 1 लाख और उसके बाद दो महीने के भीतर शेष राशि का भुगतान करने को कहा। स्टॉप एसिड अटैक के फाउंडर आलोक दीक्षित का कहना है कि इससे जो अच्छी बात सामने आई है, वह मुआवजा (कंपनसेशन) है और वह उन लड़कियों के लिए है जिन पर भविष्य में हमला हो सकता है। 

देवानंद बनाम स्टेट, में एक व्यक्ति ने अपनी अलग पत्नी पर एसिड फेंक दिया क्योंकि उसने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया था। पत्नी को स्थायी रूप से विकृति और एक आंख की हानि का सामना करना पड़ा। आरोपी को धारा 307 के तहत दोषी ठहराया गया और उसे 7 साल की कैद हुई।

कोई आधिकारिक (ऑफिशियल) आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन अनुमान है कि भारत में हर साल 1,000 एसिड अटैक होते हैं। भारत के लोग इतने कठोर दिल के हो गए हैं कि वह मासूम महिलाओं के चेहरे पर एसिड डालने से पहले सोचते भी नहीं हैं। भारतीय लोगों का दिल काला हो गया है, वह अपने परिवार के सदस्यों के बारे में भी नहीं सोचते क्योंकि वे भी उसी हीनियस अपराध के शिकार हो सकते हैं, अगर उनके परिवार के सदस्यों को भी ऐसा ही भुगतना पड़े तो वे क्या करेंगे। सबसे अच्छी सजा यही है की, उनके साथ भी वही किया जाना चाहिए जो वह निर्दोष महिलाओं के साथ करते है। उन्हें दूसरों का जीवन खराब करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें तब तक सबक नहीं मिलेगा जब तक उन्हें उसी दयनीय स्थिति में नहीं रखा जाएगा।

पड़ोसी देश जैसे, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने भी पिछले कुछ वर्षों में एसिड अटैक के कई मामले दर्ज किए हैं। और कारण, अधिकतर एक ही रहे हैं – एसिड का आसानी से मिल जाना, और एक ठुकराया हुआ “प्रेमी” जो लड़की को ‘सबक सिखाना’ चाहता है। 2002 में कॉन्सेंट्रेटड एसिड की बिक्री को प्रतिबंधित (रेस्ट्रिक्टिड) करने के बाद बांग्लादेश में मामलों की संख्या में तेजी से कमी आई। भारत में, एसिड हर दुकान में 10 या 15 रुपये प्रति लीटर पर उपलब्ध हैं।

एसिड अटैक को रोकने के लिए रिटेल बाजार में एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना ही एकमात्र उपाय है। “एसिड हिंसा प्रतिशोध (वेंगियंस) का अपराध है। कानून में बदलाव तभी प्रभावी होगा जब इसे ठीक से लागू किया जाएगा। एसिड बेचने वाले लोगों में भी जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। जब तक लोग अपना विचार नहीं बदलेंगे तब तक कानून बनाना बेकार है। नए कानूनों को लागू करने के बजाय पहले लोगों का दिमाग बदलना चाहिए। भारत एसिड अटैक की समस्या से जूझने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जब तक उनमें जागरूकता नहीं पैदा की जाती है, तब तक प्रयास विफल रहेगा।

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

एसिड अटैक का पीड़ित के जीवन पर लंबे समय तक चलने वाले परिणाम होते हैं, जिसकी वजह से वह पूरे जीवन भर निरंतर यातना (टॉर्चर), स्थायी क्षति (डेमेज) और अन्य समस्याओं का सामना करती है। उनका जीना मुश्किल हो जाता है; वे अपने घर से बाहर निकलने और साधारण कार्यों को करने के लिए बहुत परेशान और शर्मिंदा हो जाती हैं, शादी करने, बच्चे पैदा करने, नौकरी पाने, स्कूल जाने आदि को छोड़ देती है। भले ही वे एक सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार हों, इसकी कोई गारंटी नहीं है कि समाज स्वयं एक अटैक के बाद उनकी उपस्थिति और अक्षमताओं (डिसएबिलिटिस) को देखते हुए उनके साथ सामान्य मनुष्य के रूप में व्यवहार करेगा। वे काम करने में सक्षम नहीं हो सकती, या नौकरी खोजने में सक्षम नहीं हो सकती, और इस तरह जीवित रहने के लिए हमेशा संघर्ष करती हैं। इसलिए महिलाओं पर होने वाले हमलों को रोकने के लिए व्यक्ति को कठोर सजा दी जानी चाहिए ताकि वे भी वैसा ही महसूस करें जैसा पीड़िता महसूस करती है।

एसिड अटैक का अपराध कोई छोटा दायरा नहीं है, दिन-ब-दिन एसिड अटैक के अपराध बढ़ते जा रहे हैं इसलिए सरकार को ऐसा बेकार कानून बनाने की बजाय उचित कार्रवाई करनी चाहिए जिससे पीड़िता को मदद मिले।

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